Hoti Lal Varma
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Hoti Lal Varma (born:1887-died?) (Madhur Gotra), from Harnol, Mathura, Uttar Pradesh, was social worker and Freedom fighter. Hoti Lal Verma was undaunted Hero of the Political Prisoners and Revolutionaries of Cellular Jail in the Andamans.
Early life and education
Hoti Lal Varma son of Chaudhary Kewal Singh (Madhur Gotra) was born in 1887 in village Harnol, Tehsil Mant (मांट) of District Mathura. His parents died in his childhood. In his school education pursuits poor Hoti Lal was supported by Kunwar Hukam Singh, zamindar of Angai village, Mathura district in Agra Collegiate Agra. He was provided free Boarding and lodging in the Jat Boarding House Agra which was built in 1892 - 1894 with the subscription of Jat gentry for poor Jat students. However adolescent Hoti Lal failed in his Middle School Examination and perhaps financial support was withdrawn from him. Poor Hoti had no means to pursue his studies. But he was adamant to study further. During this state of despair and vacillation, it was alleged that the poor boy converted to Christianity in 1903 and was admitted to St. Stephen's High School Delhi (popularly known as Mission School, Chaudhary Chhotu Ram's alma mater too.) and continued his studies.[1]
Career in Journalism
Hoti Lal ji was Assistant Editor of Jat Samachar Weekly for some time also.
He visited Britain, France, Japan, Korea and Hongkong for political activities. Many members of House of Commons were known to him like Kier Hardie and Rutherford were known to him.
Later on he was appointed North India correspondent of Bandemataram Calcutta whose Editor was shri Arbindo Ghosh.[2]
Hoti Lal Varma deportation to the Andamans, Convicted and Sentenced
In 1908 Hoti Lal Ji sent allegedly a seditious telegram/message to Bandemataram regarding the hanging of Muzaffarpur murder convicts and for which he was arrested in May 1908 from Jat Boarding House Agra. Consequently most of the Jat gentry disassociated themselves from Hoti Lal Verma Ji. He was tried for sedition and convicted in Aligarh Court and transported to Andamans and kept in the Cellular Jail. Interestingly no case was filed against Bandemataram for publishing the telegram said telegram. But Hoti Lal ji was tried and convicted under Section 124A of IPC. [3][4]
From Cellular Jail he surreptitiously sent a letter under his signatures, detailing the atrocities inflicted on the political prisoners and the misbehavior of jail officials, to Babu Surendera Nath Banerjee who published the said letter in his English newspaper the "Bengallee". Hoti Lal was also punished for this daring act. He, perhaps, never submitted a mercy petition to the British Government requesting for his release. He only wrote petitions for the rights of the political prisoners of Cellular jail. Hoti Lal Varma Ji was released in about 1918.[5]
Information Made Available by Harpal Singh Rana
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क्रांतिधर्मी यायावर : होती लाल वर्मा
स्रोत: क्रांतिधर्मी यायावर : होती लाल वर्मा, फ़िरोज़ नक़वी की फेसबुक-पोस्ट
होती लाल वर्मा उस क्रांतिधर्मी यायावर का नाम है, जो सेलुलर जेल की स्थापना के बाद संयुक्त प्रान्त से कालापानी भेजे जाने वाले प्रथम राजनीतिक बंदी थे। ब्रिटिश इंटेलिजेंस रिपोर्ट के पन्ने होती लाल के कारनामों से भरे पड़े हैं। समकालीन क्रांतिकारियों में शायद कोई ऐसा नाम हो, जिससे होतीलाल वर्मा के संबंध न रहे हों, चाहे वह देश में रहकर क्रांति की ज्वाला धधका रहे हो या विदेश में रहकर करती की चिंगारी फैलाने को प्रयासरत रहे हों। होती लाल वर्मा मात्र एक क्रांतिकारी ही नहीं, एक पत्रकार और कालापानी के दौरान क़ैदियों के मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा का नाम है। यह हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ऐसे क्रांतिधर्मी के विषय में विस्तृत सूचनाएं केवल अभिलेखगरों तक ही सीमित रह गईं। होती लाल वर्मा के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर एक पुस्तक का इरादा है, देखिए इसमें कितनी सफलता मिलती है। थोड़ा धैर्य रखें और प्रतीक्षा करें।....फ़िरोज़ नक़वी
होतीलाल वर्मा के विषय में कोई सम्पूर्ण पुस्तक तो दूर की बात, किसी पुस्तक में दो से ढाई पृष्ठ से अधिक विवरण उपलब्ध नहीं है। जो विवरण उपलब्ध भी हैं उनमें कई मिथक भी शामिल हैं। जिनमें से एक मिथक, इलाहाबाद से प्रकाशित उर्दू साप्ताहिक 'स्वराज्य' के संपादक रहने या उनके द्वारा 'स्वराज्य' के लिए नए प्रेस की व्यवस्था की बात भी शामिल है। इस विषय पर हम आगे भी बात करेंगे। कई लेखकों ने उन्हें हरियाणा का निवासी बताया है, जबकि इंटेलिजेंस रिपोर्ट व अन्य विश्वसनीय स्रोतों में उन्हें मथुरा जनपद का निवासी बताया गया है।
होतीलाल वर्मा के विषय में एक बहुप्रचलित मिथक यह है कि उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित क्रांतिकारी साप्ताहिक 'स्वराज्य' का संपादन भी किया। दस्तावेज़ इस तथ्य की पुष्टि नहीं करते। 'स्वराज्य' के प्रथम संपादक शांति नारायण भटनागर के वे आलेख, जिन्हें आपत्तिजनक मानते हुए श्री भटनागर को सज़ा सुनाई गई थी, उनकी प्रकाशन तिथि क्रमशः 23 मई व 30 मई 1908 थी। जबकि होतीलाल वर्मा 25 मई 1908 को ही आगरा कालेज के जाट बोर्डिंग हॉउस से गिरफ़्तार किए जा चुके थे। ऐसे में होतीलाल वर्मा के द्वारा 'स्वराज्य' के सम्पादन का प्रश्न ही नहीं उठता। इसी प्रकार शांति नारायण भटनागर को सज़ा होने से पूर्व ही होतीलाल के गिरफ्तार हो जाने पर दूसरी वैकल्पिक प्रेस की व्यवस्था की बात भी सम्भव नहीं दिखती।
होती लाल वर्मा की आगरा में गिरफ़्तारी' की ख़बर, लाहौर से प्रकाशित 'सिविल ऍन्ड मिलिट्री गज़ट' में 9 जून 1908 को प्रकाशित हुई। खबर इस प्रकार थी-
"आगरा में गिरफ़्तारी
आगरा, 6 जून।
कई भारतीय निवासियों के घरों की पुलिस ने तलाशी ली है। जाति के एक जाट होती लाल को कलकत्ता षड्यंत्र से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। जब गिरफ्तार किया गया, वह आगरा कॉलेज बोर्डिंग हाउस में से एक में रह रहा था। बताया जाता है कि उसके पास से कुछ महत्वपूर्ण कागजात मिले हैं, जिसके उल्लेखनीय परिणाम सामने आ सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि वह अलीगढ़ पुलिस द्वारा वांछित था, और इस कथन की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि श्री वैलाच, सरकारी वकील, अलीगढ़ के जिलाधिकारी श्री पर्ट आई.सी.एस, के समक्ष पेश हुए और भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के तहत होती लाल के खिलाफ शिकायत दर्ज की। मजिस्ट्रेट ने मामले की सुनवाई के लिए 9 जून तारीख तय की है, और पुलिस अधीक्षक, आगरा, श्री पी. ब्रामली, को विशेष रूप से कार्यवाही देखने के लिए शासन द्वारा प्रतिनियुक्त किया गया है। वह फौरन अलीगढ़ के लिए रवाना हो गए। होती लाल बहुत यात्रा करने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने चीन, जापान और फ्रांस में बड़े पैमाने पर यात्रा की है।"
होती लाल वर्मा द्वारा निरंतर यात्रा करने और एक स्थान पर टिक कर न रहने के कारण ही मैंने उन पर प्रस्तावित पुस्तक का शीर्षक 'क्रांतिधर्मी यायावर' रखने का निर्णय लिया है।
होती लाल वर्मा की आगरा से गिरफ्तारी के बाद संयुक्त प्रान्त के समाचार पत्रों में छपे घटनाक्रम से अनुमान लगता है कि उस समय राज्य के पत्रकार इसे कैसे देख रहे थे?
31 मई के नसीम-ए-आगरा के स्थानीय समाचार "होती लाल वर्मा" के कॉलम में निम्नलिखित समाचार प्रकाशित दिखता है:- "यह अफवाह है कि होती लाल नाम का एक युवक, जो आगरा कॉलेज में पढ़ा हुआ था, और जो अभी-अभी जापान से माचिस की फैक्ट्री खोलने के लिए धन इकट्ठा करने के लिए मैन्युफैक्चरिंग सीखकर लौटा था और पुलिस को शक था कि वह एक घुमक्कड़ है।"
इसी प्रकार 31 मई के इंडियन पीपल (इलाहाबाद) में टिप्पणी कुछ ऐसी थी:-
कलकत्ता के कुछ अखबारों ने एक टेलीग्राम प्रकाशित किया जिसमें कहा गया है कि 'एक हिंदुस्तानी व्यक्ति को बम की साजिश के सिलसिले में आगरा में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने विदेशों में यात्रा की है और हाल ही में भारत लौटे हैं। इस तथ्य के सत्यापन की आवश्यकता है। इसका कुछ असर अलीगढ़ की घटना पर भी पड़ा है। जैसा कि हमने कहा है, यह अनुमान लगाया गया है कि एक अराजकतावादी 'देशभक्त' की गिरफ्तारी के बारे में तार भेजने वाले और एक एक पम्फलेट का वितरक एक ही व्यक्ति हैं। यह सोचना भी असंभव है कि इन प्रांतों का कोई भी मूल निवासी कलकत्ता गुप्त समाज का सदस्य है। उनमें से एक कैदी ने स्वीकार किया कि अराजकतावादी आंदोलन के सिलसिले में उसने भारत में काफी यात्राएं की थीं, लेकिन उसे कोई खास सफलता नहीं मिली थी। 'कॉलेज की योजना' में देश के विभिन्न हिस्सों में सदस्य शामिल थे, लेकिन साजिश के इस हिस्से को तब अंजाम नहीं दिया गया था जब पुलिस ने ठिकानों पर छापा मारा था। जिस व्यक्ति के आगरा में गिरफ्तार होने की सूचना है, उसे अभी तक एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया है और उसके खिलाफ आरोप भी ज्ञात नहीं है। अलीगढ़ में कोई नई बात नहीं हुई है, और यह आशा की जानी चाहिए कि यह विचार कि टेलीग्राम किसी पार्टी या साजिश के अस्तित्व को इंगित करता है, गलत साबित होगा।"
प्रथम जून के आर्य मित्र (आगरा) ने भी स्थानीय पुलिस द्वारा 25 मई के दिन एच.एल. वर्मा की गिरफ्तारी का उल्लेख किया है।
मथुरा की कृषक जाति (जाट) में जन्म लिया, आगरा कॉलेजिएट स्कूल में पढ़े और मिडिल स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन विश्वविद्यालय की एंट्रेन्स परीक्षा में असफल रहे। इनके बारे में कहा जाता है कि एक मिशनरी श्री मैकलीन, द्वारा उन्हें ईसाई धर्म में दीक्षित किया गया, जिन्होंने उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली भेजा। वे वहाँ केवल कुछ ही महीनें ही रहे और फिर कलकत्ता चले गए जहाँ उन्होंने अमृत बाज़ार पत्रिका के कार्यालय में कार्य करना आरंभ कर दिया।
उनका महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने भारत और विदेशों में अलग-थलग पड़े विभिन्न क्रांतिकारियों को सूत्रबद्ध किया और अपने सघन अभियान में जिन स्थानों और लोगों का दौरा किया, वे सभी उनके द्वारा अपनी डायरी में दर्ज किए गए थे, जिसे बाद में बरामद किया गया।
होती लाल 1905-06 में वे विभिन्न समाचार पत्रों पर भारत में रोजगार पाने के लिए भटकते रहे, आगरा, अजमेर, बम्बई, लाहौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ आदि स्थानों पर घूमते हुए उनकी यात्रा एक बार फिर से दिसंबर, 1906 में कलकत्ता के अमृता बाजार पत्रिका कार्यालय में समाप्त हुई।
होती लाल कलकत्ता से रवाना होकर 23 दिसंबर 1906 को हांगकांग पहुंचे। हांगकांग में उनका प्रवास 30 अप्रैल, 1907 तक रहा। यहां से वह 3 मई को शंघाई पहुंचे। तक़रीबन एक मास शांघाई प्रवास के बाद होती लाल 4 जून को कोबे, और 26 जून को टीनसिन (1958 के बाद से यह नगर तिआंजिन के नाम से जाना जाता है) पहुंचे। उनका चीन प्रवास 22 जुलाई 1907 तक रहा और वे वहां विभिन्न स्थानों की यात्रा करते रहे। चीन में ब्रिटिश भारतीय सैन्य ठिकानों का दौरा करना और सैनिकों में असंतोष पैदा करने का प्रयास करना, ही होती लाल वर्मा का मुख्य उद्देश्य रहा। 12 जुलाई को उन्हें 41वीं डोगरा लाइन्स से बाहर कर दिया गया था। हांगकांग में भी उन्होंने ऐसा ही प्रयास किया था।
होती लाल वर्मा 15 सितंबर, 1907 को तूतीकोरिन पत्तन से भारत लौटे और 16 सितंबर को ही पांडिचेरी चले गए। यहां वह 3 अक्टूबर तक रुके रहे और इस मार्ग से भारत में हथियारों के आयात की व्यवस्था करने की कोशिश करते रहे। इसके बाद वे बंबई गए और वहां 6 से 14 नवंबर तक रहे। उन्होंने इस दौरान 'बाल गंगाधर तिलक' और 'गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे', के अतिरक्त एक अन्य व्यक्ति श्री आर.के. प्रभु (जिनके बारे में माना जाता है कि वे मानिकटोला गार्डन साज़िशकर्ताओं के बम्बई स्थित एजेंट थे), से भी मिले।
15 नवंबर, 1907 को वे यूरोप के लिए रवाना हुए और 5 दिसंबर को मक्सेई (फ्रांस का मार्सिले बंदरगाह) पहुंचे। उन्होंने पेरिस में श्यामजी कृष्ण वर्मा को अपने आगमन की सूचना के लिए एक तार भेजा और उसी रात पेरिस के लिए रवाना हो गए, जहां वे अगले दिन पहुंचे। वह 22 दिसंबर तक पेरिस में रहे, और 23 दिसंबर को 'आचार्य' (क्रांतिकारी युवा मद्रासी एम. पी. तिरुमाला चारी) और पांडुरंग महादेव बापट (अहमदनगर के, मराठा बम विशेषज्ञ, जिनके लिए मानिकटोला मामले में वारंट जारी किया गया था) के साथ लंदन के लिए रवाना हो गए।
होती लाल लंदन में केवल तीन दिन रुके, और 27 दिसंबर को पुनः भारत भारत वापसी के इरादे से वाया मक्सेई (29 दिसंबर) रवाना हुए। वह 1 जनवरी, 1908 को अलेक्जेंड्रिया के लिए रवाना हुए, जहां वह 6 जनवरी को उतरे और काहिरा गए। वहां होती लाल वर्मा नेशनल होटल में डॉ. रदरफोर्ड का साक्षात्कार लिया और 'कांग्रेस मामलों' के बारे में बात की। काहिरा से वह स्वेज गए, और आर्थिक समस्या होने पर तिलक को निम्नलिखित टेलीग्राम भेजा, जिसे मूल रूप में बरामद किया गया: "तिलक, पूना को। टेलीग्राफिक रूप से पंद्रह स्टर्लिंग की आवश्यकता है। वर्मा।"
यह ज्ञात नहीं है कि पैसा भेजा गया था या नहीं, लेकिन वह 31 जनवरी को कराची पहुंचे, और एक या दो अन्य स्थानों का दौरा करते हुए 14 फरवरी को जोधपुर से पूना के लिए रवाना हुए, जहां वे 25 तारीख तक बाल गंगाधर तिलक के साथ रहे। यहां उनकी मुलाकात अरबिंदो घोष के कलकत्ता से प्रकाशित समाचार पत्र 'द बंदे मातरम' के प्रबंधक एस.एस. चक्रवर्ती से हुई।
वह पांडुरंग महादेव बापट, जिनसे उनकी मुलाक़ात पेरिस में हुई थी, से भी पूना में मिले। इसके बाद वे 26 फरवरी को बंबई गए, जहां उनकी मुलाकात जी.एन. पोतदार (बी.ए., टोकियो) से हुई, जो जापान से पैदा हुए संदिग्ध थे। होती लाल इसके बाद अमरावती गए, जहां वे 28 फरवरी से 2 मार्च तक गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे के साथ रहे। फिर वह पांडुरंग महादेव बापट से मिलने के लिए अहमदनगर गए, लेकिन उन्हें खोजने में असफल रहे और मद्रास चले गए, जहां वे 10 मार्च तक रहे। इस तारीख को उन्होंने हांगकांग में सूबेदार मेजर अहमद दीन को मद्रास के निकट ट्रिप्लिकेन से "पंजाबियों के लिए एक संदेश" शीर्षक वाला पैम्फलेट पोस्ट किया; इसका प्रमाण बाद में होती लाल के मुकदमे में दिया गया।
11 मार्च से 9 अप्रैल, 1908 के मध्य, होती लाल वर्मा पांडिचेरी में फिर से हथियारों के आयात की व्यवस्था कर रहे थे। इसके बाद वे 12 अप्रैल को कलकत्ता गए। यहां वह मानिकटोला क्रांतिकारी समूह के सदस्यों के साथ मिले, और उनकी डायरी में कुछ नोट्स और अन्य सबूतों से, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अलीपुर में 10 वीं जाट लाइन्स (वह खुद एक जाट थे) का भी दौरा किया, जो कि चंदा एकत्रित करने के लिए किया गया था। इसके बाद वे रांची, इलाहाबाद और अंततः 21 अप्रैल को अलीगढ़ पहुंचे।
11 मई, 1908 को उन्होंने कलकत्ता के बंदे मातरम् को एक तार भेजा, जो कि बंदे मातरम के 13 मई के अंक में "हमारे विशेष संवाददाता से" के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने मानिकटोला क्रांतिकारी समूह के सदस्यों व मुज़फ्फरपुर बम कांड के आरोपियों के साथ सहानुभूति व्यक्त की।
इस बीच अलीगढ़ में "पंजाबियों के लिए एक संदेश" पत्रक छपा और होती लाल द्वारा आपत्तिजनक भाषण दिए जाने के साक्ष्य भी प्रशासन द्वारा एकत्र किए गए। वह 19 मई को अलीगढ़ से आगरा के लिए निकले और 25 मई को आगरा कॉलेज के जाट बोर्डिंग हाउस से गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 28 जुलाई, 1908 को दोषी ठहराया गया और 7 साल के निर्वासन की सजा सुनाई गई। बाद में उन पर धारा 124-ए, आई.पी.सी. के तहत एक पूरक मामले में मुकदमा चलाया गया। ऊपर उल्लिखित आपत्तिजनक पत्रक का प्रसार करने के लिए, और विभिन्न अवसरों पर देशद्रोह का प्रचार करने के लिए, और 1 अक्टूबर, 1908 को तीन आरोपों में से प्रत्येक पर 5 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई, ये सज़ाएं,साथ-साथ चलनी थीं। उच्च न्यायालय में अपील करने पर सात साल के निर्वासन की सजा को घटाकर 5 साल के निर्वासन में कर दिया गया।
होती लाल वर्मा को अलीगढ़ सत्र न्यायालय राजद्रोह के मामले में आरोपित किया गया। इस मामले में सरकारी पक्ष के गवाह बरकतपुर, बुलंदशहर निवासी सरदार लछमन सिंह के पुत्र कुंवर कल्याण सिंह द्वारा 19 जून 1908 को दिए गए बयान का मूल पाठ-2
बंगाल में यूरोपियों को बमों से उड़ा देने के लिए लोगों ने कदम उठाए हैं, और यह अफ़सोस की बात है कि मेरा अपना देश इन मामलों में इतना पीछे है, और यहाँ के लोग इस मामले पर कोई ध्यान ही नहीं देते हैं, मैं इस संबंध में उनकी जिम्मेदारियों की भावना को एक स्तर तक ले जाना चाहता हूँ । मैं बंगाल गैंग से ताल्लुक रखता हूं। हमारे साथ लगभग 6000 समर्पित साथी हैं और हमने देश के हित के लिए अपनी कमर कस ली है। इस संबंध में मेरे मुसलमान भाई मेरे साथ हैं। होती लाल नर बताया, "उर्दू-ए-मुअल्ला" के संपादक और मुहम्मडन कॉलेज के लगभग 10 छात्र मेरे पक्ष में हैं। इसके अलावा मेरे पास हिंदू छात्र हैं और साथ ही एक पुराने मुसलमान ज़मींदार का कारिंदा भी है। "उर्दू-ए-मुअल्ला" के संपादक की सहायता से, मैंने सरकार के कार्यों के बारे में लोगों को आगाह करने के उद्देश्य से रात में नोटिस छपवाए और उन्हें प्रसारित किया। उसने कहा कि यदि आप चाहें तो मैं आपके गाँव में अपना मुख्यालय स्थापित कर सकता हूँ। हमारी पार्टियां चार पार्टियों या वर्गों में बंटी हुई हैं, जैसे -
प्रथम. धन और सदस्यता एकत्र करने के लिए एक वर्ग,
द्वितीय. पत्राचार जारी रखना।
तृतीय. बम और विस्फोटकों के लिए कारख़ाना
चतुर्थ. मुझे नहीं पता कि यह वर्ग क्या करता है।
हम विदेशों से भी धन और आर्थिक सहायता पाते हैं। उसने मुझे पांच लोगों वाली एक तस्वीर भी दिखाई,उसमें एक तरफ होती लाल था और दूसरी तरफ बंदूक लिए एक आदमी था, और बीच में तीन अन्य थे, होती लाल ने मुझे बताया, इनमें से एक वह आदमी था, जिसने बंगाल में आत्महत्या कर ली। मेरे अधिकारी ने अब आदेश दिया है कि हमें कुछ समय के लिए भारत छोड़ देना चाहिए। यह सब सुनकर, और विशेष रूप से फोटो को देखकर, मैं मन ही मन बहुत व्याकुल हो गया था, और मुझे व्यक्तिगत रूप से फंसाए जाने का डर था। मैंने उसे तस्वीर वापस दे दी। अब ट्रेन आ गई और हम चढ़ गए। होती लाल वर्मा पीछे रह गए। मुरसान पहुंचने पर हमें कोठी निकबी भाग में ठहराया गया जो टिक्का भाग से एक मील की दूरी पर है। उस समय राजा जन्म समारोह में व्यस्त थे, और रानी बीमार थीं। इसलिए हम अगली शाम तक उनसे नहीं मिले सके। अगले दिन होती लाल फिर आया और मुझे मुरसान में देखा, उसे देखकर मैं डर गया। फिर उसने मुझे 4000 रुपये की व्यवस्था करने के लिए कोशिश करने को कहा। यह उसने घर जाने और वकालत के अध्ययन के लिए सहायता करने के लिए मांगा था। मैंने कहा कि यह एक बहुत ही सम्मानित ज़मींदार का घर है, और यह उचित नहीं है कि वह वहाँ रुके, और वह चला जाए और बाद में मुझसे कहीं और मिले। बाद में वह लगभग 7 या 8 बजे लौट आया। उसी तारीख को हम राजा से मिले जो मंदिर में पूजा करके लौट रहे थे और कुछ अनौपचारिक बातचीत के बाद और बच्चे के जन्म के कारण खुद व्यस्तता बताकर टिक्का भाग पर पहुंचे, और कहा कि वह "देवजी" की पूजा करने के बाद और बच्चे के जन्म संबंधी कार्यक्रम से फुरसत पाकर, कल फिर हमसे मिल सकते थे, लेकिन तीसरे दिन भी हम उन्हें देखे बिना इंतजार करते रहे। जैसा कि मैंने यह बताना आवश्यक समझा कि होती लाल ने मुझसे क्या कहा था (विशेष रूप से मैं जाट सभा का संयुक्त सचिव था), मैंने मुरसान छोड़ दिया और कुंवर ओंकार सिंह से मिलने गया, और उनकी सलाह ली। वह एक जिम्मेदार पद पर एक सरकारी अधिकारी हैं और सभा के एक अधिकारी भी। इसलिए मैं फतेहगढ गया, और मैंने जो कुछ सुना था, उन्हें बताया और उनसे सलाह मांगी, और कहा कि होती लाल के इस मामले को न्याय हित में सरकार को सूचित किया जाना चाहिए। अगर जिला अधिकारियों ने इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की तो मैं आगे मामला सीधे स्थानीय सरकार के पास रिपोर्ट करने का इरादा रखता हूं। । फिर मैं फतेहगढ़ से बुलंदशहर लौटा, और होती लाल के इस मामले की रिपोर्ट करने के लिए जिलाधिकारी के घर गया। हालाँकि, मैं उस दिन मेरी भेंट उनसे नहीं हो सकी इसलिए घर लौट आया। अलीगढ़ के सब जज की अदालत में मेरी संपत्ति के संबंध में एक भारी मुकदमा लंबित है, और मुझे इस संबंध में यहां आना पड़ा, और फिर से बुलंदशहर लौट आया, और तुरंत जिलाधिकारी को मैंने एक पत्र द्वारा मैंने जो सुना था उसको संक्षिप्त रूप में सूचित किया था। अब जबकि होती लाल को गिरफ्तार कर लिया गया है, इसलिए यदि आवश्यक हो तो मैं उसके बारे में जो कुछ भी जनता हूँ, उसे लिखने को मैं व्यक्तिगत रूप से तैयार हूं, और इस संबंध में जाट सभा के सभी सदस्यों का समर्थन भी मुझे प्राप्त है। इतने खतरनाक व्यक्ति के विरुद्ध विधिक कार्रवाई में हर तरह से सहायता करने के लिए मैं तैयार हूं। यहां मैं यह भी बताना चाहूंगा कि 1903 या उसके आसपास होती लाल को हमने धर्म त्यागने के कारण सभा से निकाल दिया था।
कलकत्ता के 'बन्दे मातरम्' समाचार पत्र को एक आपत्तिजनक तार भेजने से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत आरोपी होती लाल वर्मा के खिलाफ मामला 23 जुलाई (गुरुवार) को अलीगढ़ में सत्र न्यायाधीश श्री एचजे बेल के समक्ष सुनवाई के लिए आया। क्राउन (सरकारी अभियोजन पक्ष) का प्रतिनिधित्व श्री डब्ल्यू वालाच, (सरकारी वकील), संयुक्त प्रांत, और श्री रूप नारायण, सरकारी वकील, अलीगढ़ द्वारा किया गया। श्री शिव शंकर सिन्हा, बार.-एट-लॉ, और श्री सोहन लाल गौर, वकील, ने आरोपी का बचाव किया।
अभियुक्त द्वारा तार भेजे जाने का औपचारिक साक्ष्य दिया गया। विस्फोटकों के मुख्य निरीक्षक मेजर स्मॉलवुड को भी अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश किया गया था। उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी के समय अभियुक्त के पास से मिले हस्तलिखित नुस्खे में, जो गवाहों को दिखाए गए थे, उसमें पिकरिक एसिड, नाइट्रो-ग्लिसरीन और अन्य उच्च विस्फोटक के निर्माण के लिए विस्तृत विवरण थे, जिसमें बम बनाने संबंधी निर्देश थे। इसमें सेफ्टी माचिस बनाने के भी कुछ फॉर्मूले भी थे। एक विशेषज्ञ के रूप में गवाही देने के लिए गवाह से उसकी योग्यता के बारे में काफी विस्तार से जिरह की गई। उन्होंने कहा कि विस्फोटकों के फार्मूले में पाए जाने वाले कुछ अवयवों का इस्तेमाल अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट में गवर्नमेंट रिपोर्टर बी. गुरसरन लाल ने उनके द्वारा किए गए अनुवादों की सटीकता की गवाही दी। गवाही में उन्होंने कहा अभियुक्त के क़ब्ज़े में पाई गई नज़्मों (कविताओं) के साथ साथ नुस्ख़े भी जो देशद्रोही थे।
'बन्दे मातरम्' के एक प्रूफ रीडर सुरेंद्र नाथ धर मजूमदार ने गवाही देते हुए 'बन्दे मातरम्' कार्यालय, कलकत्ता में टेलीग्राम की प्राप्ति को प्रमाणित किया। मजूमदार ने कहा कि उन्होंने ही उस पत्र में प्रकाशित टेलीग्राम के लिए सुर्खियाँ तैयार की थीं, और अगले दिन समाचार पत्र में एक अस्वीकरण भी प्रकाशित हुआ।
कलकत्ता में 2 मई को 'नव शक्ति' कार्यालय कलकत्ता में पड़े छापे और अराजकतावादी मुकदमे के सिलसिले में अरबिंदो घोष और अन्य (टेलीग्राम में संदर्भित) की गिरफ्तारी के संदर्भ में, नौशेर अली खान, हेड कांस्टेबल, कलकत्ता पुलिस, गवाही देने को उपस्थित हुए।
सामान्य मुद्दों पर कुछ गवाह पेश किए जाने के बाद, अदालत अगले दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
25 जुलाई 1908 को अलीगढ़ के सत्र न्यायाधीश के समक्ष मुकदमा तीसरे दिन फिर आरम्भ हुआ।
बचाव पक्ष की ओर से श्री शिव शंकर सिंह ने न्यायालय में होती लाल वर्मा का पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि तार में देशद्रोही प्रकृति की सामग्री नहीं थी, यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि जिन राजद्रोहियों के संबंध में, यह ज़िक्र किया गया था, किसी भी तरह से प्रकाशित किया गया था। विस्फोटकों का नुस्ख़ा और 400 डिग्री फारेनहाइट तक दर्ज करने वाला थर्मामीटर, के संबंध में उन्होंने तर्क दिया कि थर्मामीटर किसी के पास होना साबित होने पर भी, किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, और मामले पर इसका कोई असर पड़ता है।
उन्होंने यह भी आग्रह किया कि कलकत्ता के कथित अराजकतावादियों की स्वीकारोक्ति और बंदे मातरम के मुद्दों का कोई महत्व नहीं था, क्योंकि यह नहीं माना जा सकता था कि टेलीग्राम किसको संदर्भित करता है। बंदे मातरम् के अस्वीकरणों से भी स्पष्ट है कि टेलीग्राम को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
बचाव पक्ष के प्रतिवाद में मिस्टर वैलाच ने उस दण्ड विधान की धारा का अर्थ दिखाने के लिए फैसलों का उल्लेख किया जिसके तहत आरोपी पर आरोप लगाया गया था। इस मामले में यह दिखाया गया था कि अभियुक्त ने सरकार के प्रति ऐसी दुर्भावना और शत्रुता को भड़काने का प्रयास किया था जो उसे धारा के दायरे में आता है। उन्होंने तर्क दिया कि तार संदेश भेजने के समय होती लाल वर्मा, बंदे मातरम् समाचार पत्र के अलीगढ़ संवाददाता थे। उन्होंने उस पत्र के पाठकों को सूचित किया कि 'अलीगढ़ के लोगों को मुजफ्फरपुर के हत्यारों और कलकत्ता में जिन अराजकतावादियों पर मुकदमा चलाया जा रहा था, उनके प्रति बहुत सहानुभूति थी। उन्होंने इन लोगों को शहीदों के रूप में वर्णित किया, और आगे कहा कि जिन समाचार पत्रों और अन्य लोगों ने उन कार्यों की निंदा की थी, उन्हें पाखंडी, समय के हिसाब से चलने वाला और वफादार के रूप में प्रदर्शित किया गया था। बंदे मातरम की प्रतियां यह स्पष्ट कर देती हैं कि कि ये कौन थे? वे पुरुष थे, जिनमें से कई ने हथियार इकट्ठा करने, विस्फोटक बनाने और भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए भर्ती करने में सक्रिय रूप से शामिल होने की बात स्वीकार की थी, कुछ अन्य ने स्वीकार किया था कि उन्होंने मुजफ्फरपुर में इस्तेमाल किए गए बम बनाए थे और बंगाल के लेफ्टिनेंट-गवर्नर के साथ-साथ चंदरनगर के मेयर की ट्रेन उड़ाने की कोशिश की थी।
अभियुक्त ने इन रिपोर्टों वाले अपने अख़बार की प्रतियां तब प्राप्त की थीं, जब उसने टेलीग्राम भेजा था जो अखबार के सामान्य पाठक के लिए था। होती लाल ने मुजफ्फरपुर विद्रोह और कलकत्ता षड्यंत्रकारियों के अपराध को समर्थन और प्रशंसा की थी। एक सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कि न्यायालय किस प्रकार के व्यक्ति के साथ व्यवहार कर रहा है, हमें उसके कब्जे में पाए गए विभिन्न लेखों को देखना होगा, वह एक शिक्षित व्यक्ति था जो दुनिया भर में यात्रा करता रहा और वास्तव में जानता था कि वह क्या है कर रहा है। अपनी गिरफ्तारी के समय उनके पास न केवल देशद्रोह संबंधी लेख थे, बल्कि बम बनाने के लिए पूर्ण लिखित निर्देश थे, स्पष्ट रूप से होती लाल ने व्याख्यान के लिए उपयोग इनका उपयोग किया। जैसा कि विभिन्न नुस्खों के बीच के अंशों से प्रकट होता है। वे केवल नुस्ख़े मात्र नहीं थे, बल्कि इनमें चरण दर चरण पूरी तरह से वर्णित था कि विभिन्न विस्फोटकों के लिए सामग्री कैसे तैयार की जानी थी, और अंत में विभिन्न प्रकार के बम कैसे भरे जाने थे। यह उस तरह का आदमी नहीं था जिसकी हरकतों को एक गर्म दिमाग वाले स्कूली लड़के की सनक के रूप में देखा जा सकता है, जैसा कि बचाव पक्ष ने सुझाव दिया था। वकील ने बचाव पक्ष के गवाह श्री पोतदार की प्रशंसा की, जिस सीधे तरीके से उन्होंने अपनी गवाही दी। वह आरोपी को जापान में जानता था और नुस्खे के हानिरहित चरित्र को साबित करने के लिए उसके द्वारा बुलाया गया था। जिरह में, उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि कई नुस्खे स्पष्ट रूप से बम और उच्च विस्फोटक बनाने के लिए थे।
मिस्टर वैलाच ने टिप्पणी करते हुए निष्कर्ष निकाला कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि अभियुक्त एक बहुत ही गंभीर अपराध का दोषी था जो ऐसी सजा का हकदार है यो लंबे समय तक याद रखी जाए।
आँकलन कर्ताओं ने सर्वसम्मति से अभियुक्तों को दोषी पाया। जज ने कहा कि वह 28 जुलाई मंगलवार को फैसला सुनाएंगे। सत्र न्यायाधीश ने गुरुवार को वर्मा के मामले में फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि अभियुक्त द्वारा भेजा गया तार निस्संदेह 124 ए के दायरे में देशद्रोही था, वह अपराधियों और अराजकतावादियों के आचरण का उल्लेख करने और समर्थन करने के रूप में, और "उनकी निंदा करने वालों की निंदा करता है। आरोपी के कब्जे से मिले कागजात से पता चलता है कि वह किसी साजिश में शामिल था। तार अलीगढ़, जहाँ उसका कोई दोस्त या हमदर्द नहीं था, के लोगों के बारे में एक झूठा और अपमानजनक बयान था।
सत्र न्यायाधीश एच. जे. बेल ने आरोपी को सात साल के निर्वासन की सजा सुनाई।
स्रोत: क्रांतिधर्मी यायावर : होती लाल वर्मा, फ़िरोज़ नक़वी की फेसबुक-पोस्ट
जाट इतिहास में प्रकाशित जीवन परिचय
चौधरी होतीलाल जी वर्मा ग्राम हरनौल जिला मथुरा उत्तर प्रदेश के रहनेवाले थे और झरिया, धनबाद, झारखंड में लकड़ी का व्यवसाय करते थे। चौधरी होतीलालजी वर्मा ने जाट इतिहास को छपाने में दिल खोलकर ठाकुर देशराज को जहां स्वयं सहायता दी वह दूसरों से भी दिलाई।[6]
होतीलाल वर्मा जी के बारे में जानकारी जुटाने की आवश्यकता
अफ़्सोस है कि होतीलाल वर्मा जी के जीवन के बारे में सन 1920 के बाद की कोई भी जानकारी नहीं मिलती। ठाकुर देशराज वर्ष 1934 में प्रकाशित जाट इतिहास में उनका चित्र प्रकाशित किया और उल्लेख किया कि होतीलाल वर्मा जी द्वारा जाट इतिहास पुस्तक के प्रकाशन के लिए रु. २०० की सहायता प्रदान की। ठाकुर देशराज ने जाट इतिहास की पृष्ठ भूमि में लिखा है कि इन दिनों होती लाल वर्मा जी झरिया में लकड़ी का व्यवसाय करते हैं।
आज झरिया कस्बा धनबाद के पास झारखन्ड राज्य में है। अगर झरिया की किसी सामाजिक संस्था, जाट संस्थान या जाट व्यपारियों अथवा प्रमुख जाट भाइयों के नाम व मोबाइल नम्बर मिल सकें या किसी महानुभाव के पास होतीलाल वर्मा जी के बारे में कोई भी जानकारी हो तो कृपया वह जानकारी श्री वीरेंद्र सिंह जटराणा (Mob: 93508 73694) अथवा लेखक लक्ष्मण बुरड़क (Mob: 9826092101) को उपलब्ध करने हेतु अनुरोध है।
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Source
- Virendra Singh Kadipur (Jatrana) - Content in English made available by him. He may be contacted at Mob: 93508 73694
- फ़िरोज़ नक़वी : क्रांतिधर्मी यायावर : होती लाल वर्मा, फ़िरोज़ नक़वी की फेसबुक-पोस्ट
Gallery
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Ch. Hoti Lal Varma, Harnol, Mathura, Courtesy: Thakur Deshraj (1934)]]
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Hoti Lal Varma
References
- ↑ Virendra Singh Kadipur (Jatrana), Mob: 93508 73694
- ↑ Virendra Singh Kadipur (Jatrana), Mob: 93508 73694
- ↑ Proposed Deportation to the Andamans of Hoti Lal Varma and Ram Hari who were Convicted and Sentenced under Section 124-A, Indian Penal Code
- ↑ Virendra Singh Kadipur (Jatrana), Mob: 93508 73694
- ↑ Virendra Singh Kadipur (Jatrana), Mob: 93508 73694
- ↑ Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Parishisht, p.1
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