Inder Singh Malik

From Jatland Wiki
Inder Singh Malik

Inder Singh Malik (Lt Cdr), Vir Chakra, was Commanding officer of INS Rajput in 1971 war with Pakistan. He along with his team acted bravely and sank Pakistani Submarine PNG Gazi. He was from Anwali village in Gohana tahsil of Sonipat district in Haryana. Unit: INS Rajput.

Introduction

On the night of 4–5 December 1971, PNS Ghazi sunk with all 93 servicemen on board (11 officers and 82 enlisted[1]) under mysterious circumstances:[2] off the Visakhapatnam coast, allowing the Indian Navy to effect a naval blockade of East Pakistan.[3] According to the Indian Navy's claims, Captain Inder Singh Malik changed the course at full speed across the specified point and ordered to drop two depth charges, which was done.[4] The Hydrographic correction book of PNS GHAZI and one sheet of paper with the official seal of the Commanding Officer of PNS GHAZI were recovered by Sajjan Kumar Dahiya.[5]

लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह मलिक 

लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह मलिक

04-10-1924 - 09-10-2023

वीर चक्र

यूनिट - आईएनएस राजपूत

भारत-पाक युद्ध 1971

लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत में, 4 अक्टूबर 1924 को संयुक्त पंजाब (अब हरियाणा) के सोनीपत जिले के आंवली गांव में श्री रति राम मलिक के घर में हुआ था। उन्होंने जाट हाई स्कूल, सोनीपत में 10वीं तक शिक्षा प्राप्त की और जून 1944 में रॉयल इंडियन नेवी में नाविक के रूप में भर्ती हुए थे। उन्होंने ठाणे में HMIS अकबर में अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। सेवा के आरंभ में उन्हें इंग्लैंड में पोर्ट्समाउथ में विमान-रोधी प्रथम श्रेणी पाठ्यक्रम में भाग लेने के लिए नामांकित किया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात अपनी सेवाएं देते हुए वे पेटी ऑफिसर के पद पर पदोन्नत हुए थे।

अंततः 30 सितंबर 1958 को उन्हें सब-लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय नौसेना में कमीशन प्राप्त हुआ था। वर्ष 1971 तक, वह लेफ्टिनेंट कमांडर के कमान तक पहुंच गए थे। वह भारतीय नौसेना के विध्वंसक आईएनएस राजपूत की कमान संभाल रहे थे। आईएनएस राजपूत द्वितीय विश्व युद्ध के युग का विध्वंसक था और भारतीय नौसेना ने 1971 के दिसंबर माह में इसे DECOMMISSION करने का निर्णय लिया था।

किंतु बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में सहायता के लिए भारतीय नौसेना के फ्लैगशिप आईएनएस विक्रांत विमानवाहक पोत और पूर्वी बेड़े की आवश्यकता के कारण, सितंबर, 1971 से ही आईएनएस विक्रांत ने बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ना आरंभ कर दिया। इस मध्य, पाकिस्तानी नौसेना ने आईएनएस विक्रांत को खोजने और नष्ट करने के लिए 14 नवंबर 1971 को अपनी पनडुब्बी पीएनएस गाजी को तैनात किया।

पाकिस्तानी पनडुब्बी, आईएनएस विक्रांत का पीछा करती रही और पूर्वी समुद्री तट पर खदानें लगाने का कार्य भी आरंभ कर दिया। गाजी ने कराची बंदरगाह से समुद्री यात्रा आरंभ की और पूरा मार्ग अरब सागर के माध्यम से श्रीलंका के चारों ओर घूमते हुए आया था और आईएनएस विक्रांत का निरंतर पीछा करते हुए नवंबर‌ 1971 के अंत तक, वह बंगाल की खाड़ी में आ गई थी।

पूर्वी बेड़े के निरंतर बांग्लादेश की ओर बढ़ने के साथ, अंडमान द्वीपों के चारों ओर चक्कर लगाते हुए अंत में नौसैनिक नाकाबंदी के लिए बंगाल की खाड़ी की ओर जाने के लिए, एडमिरल कृष्णन ने पीएनएस गाजी से निपटने के लिए आईएनएस राजपूत का उपयोग करने का निर्णय किया। आईएनएस राजपूत को विशाखापट्टनम बंदरगाह पर DECOMMISSIONED होने से रोक दिया गया और पीएनएस गाजी को रोकने के लिए आईएनएस राजपूत विजाग बंदरगाह से रवाना हुआ। लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने गाजी पनडुब्बी को नष्ट करने के लिए भिन्न रणनीति का प्रयोग करने का निर्णय किया।

उन्होंने सर्वप्रथम आईएएनएस राजपूत के आईएनएस विक्रांत होने का ढोंग किया और अत्यधिक वायरलेस ट्रैफिक उत्पन्न करना आरंभ कर दिया। ईंधन भरने के पश्चात, आईएनएस राजपूत ने अपनी सभी NAVIGATION सहायकों को SWITCH OFF कर दिया। 23 नवंबर को पीएनएस गाज़ी को सीलोन के तट पर देखा गया था और यह स्पष्ट था कि शीघ्र ही, वह विशाखापट्टनम के बंदरगाह के निकट होगा।

2 दिसंबर 1971 को, एक पायलट के साथ आईएनएस राजपूत रवाना हुआ। 3-4 दिसंबर 1971 को, पीएनएस गाजी विशाखापट्टनम के आसपास खदानें बिछा रही थी और आईएनएस विक्रांत की खोज कर रहा था। वह ठीक वही रात्रि थी जब आधिकारिक रूप से पाकिस्तान के साथ युद्ध की घोषणा की गई थी। उस समय, पीएनएस गाजी पेरिस्कोप की गहराई तक अपनी नौवहन स्थिति स्थापित करने के लिए ऊपर आई थी। आईएनएस राजपूत उस समय सीधा पीएनएस गाजी की तत्कालीन दिशा की ओर आगे बढ़ रहा था। पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी को आईएएनएस राजपूत के निकट आने का अनुभव हो गया। उसने त्वरित गोता लगाया और समुद्र की गहराई में चली गई, साथ ही उसने समुद्रतट से दूर जाने का भरसक प्रयास किया।

लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने पानी में हुई अशांति से गाजी की आकस्मिक डुबकी की गतिविधि को अनुभव कर लिया और उन्होंने समुद्र में नीचे गाजी की दिशा में 2 DEPTH CHARGES दागे। पीएनएस गाजी उस समय डुबकी लगा रही थी। दागे गए DEPTH CHARGES में उसके निकट जाकर विस्फोट हो गया, जिससे गाजी जोर से समुद्र तल पर टकराई। टकराने से उसके चेंबर में, जहां खदानें और टॉरपीडो रखे गए थे, उस चेंबर में विस्फोट हो गया। परिणामस्वरूप गाजी के बाहरी खोल में भी भीषण विस्फोट हो गया।

इसके अतिरिक्त, यह भी संभव था कि DEPTH CHARGES के विस्फोट से गाजी के भीतर कोई खदान सक्रिय हो गई, जिसके विस्फोट से वह नष्ट हो गई। अंततः 93 नाविकों के साथ पीएनएस गाजी डूब गई और आईएनएस विक्रांत पर मंडरा रहा संकट पूर्ण रूप से समाप्त हो गया। 3/4 दिसंबर 1971 की रात्रि के 12:16 बजे तक आईएनएस राजपूत की संपूर्ण कार्रवाई समाप्त हो गई थी।

अगले दिन, पूर्वी कमान के गोताखोर लेफ्टिनेंट कमांडर सज्जन कुमार दहिया (शौर्य चक्र) समुद्र में गए और उन्होंने पुष्टि की कि वह एक नष्ट पाकिस्तानी पनडुब्बी थी। गाजी के मलबे में सक्रिय खदानों की आशंका व संकटमय कार्रवाई में लेफ्टिनेंट कमांडर दहिया गाजी के मलबे से घड़ी भी निकाल लाए। घड़ी से ज्ञात हुआ की वह रात्रि में ठीक 12:15 बजे बंद हुई थी। बाद में, एडमिरल कृष्णन ने प्रेस के सामने राष्ट्रपति वीवी गिरि को वह घड़ी दिखाई थी। आगामी युद्ध में भी, पूर्वी बेड़े ने एक इतिहास रचा था।

लगभग आत्मघाती मिशन का सफलतापूर्वक संचालन करने और सबसे परिष्कृत पनडुब्बी के विनाश का नेतृत्व करने के लिए, लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह मलिक को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने 1984 से 1990 तक रोहतक में Ex-servicemen (ESM) लीग के जिला अध्यक्ष और 2011 से 2014 तक ESM लीग, हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में 1 रुपये प्रति माह के सांकेतिक वेतन पर सेवाएं दी। अपना शेष वेतन उन्होंने ESM और हरियाणा की युद्ध वीरांगनाओं के कल्याण के लिए दिया। वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते थे और दान-पुण्य करते रहते थे। उन्होंने रोहतक का 'जाट भवन बनाने में मुख्य भूमिका निर्वहन की थी। उनके मार्गदर्शन में रोहतक में पूर्व सैनिक संघ (ESM) का भव्य भवन बना था और साथ ही साथ अन्य जिलों में भी ESM के भवन बनाने की प्रक्रिया आरंभ हुई। वह सदैव कहते थे सच्चा सैनिक वहीं जो अंतिम श्वास तक राष्ट्र की सेवा करता रहे।

9 अक्टूबर 2023 को अपरान्ह 3:15 बजे सौ वर्ष की आयु में रोहतक में इनका निधन हुआ था। दिल्ली से आई नौसेना की टुकड़ी ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया व शस्त्र उल्टे कर सलामी दी। सैन्य सम्मान से उनका अंतिम संस्कार किया गया।

चित्र गैलरी

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. "PNS/M Ghazi : Officers and Enlisted". pakdef.org.
  2. Till, Geoffrey (2004). Seapower: a guide for the twenty-first century. Great Britain: Frank Cass Publishers. p. 157. ISBN 0-7146-8436-8.
  3. Till, Geoffrey (2004). Seapower: A Guide for the Twenty-first Century. Psychology Press. ISBN 9780714655420. p: 157 
  4. "Bharat Rakshak Monitor: Volume 4(2) September–October 2001". Bharat-rakshak.com.
  5. 1971 War: The Sinking of the Ghazi - Indian Defence Review

Back to The Brave People