Karni Ram Meel
Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur |
Karni Ram Meel
Karni Ram Meel (करणी राम) (2 February 1914 - 13 May 1952) was a brave farmer leader of Jhunjhunu district and leader of the Shekhawati farmers movement. He was a strong follower of Mahatma Gandhi.
Early life
He was born in samvat 1970 i.e. 2 February, 1914 at village Bhojasar in the family of Chaudhary Deva Ram. His mother died in childhood at the age of 4 years. After death of his mother he stayed at his nanihal in village Ajari.
Social service through barrister
There was no school in the village so he had to go to Alsisar along with other boys. Later he studied at Chirawa, Jaipur, Pilani and Allahabad and became a barrister in Jhunjhunu. He treated his profession as a mission to provide all help to the poor people. His house was always full of needy people and students. Who ever was needy was given money by him especially the poor students who could not pay their fees. He first time came in to light when he pleaded the cases of farmers in 'Pacheri kand' in which jagirdar had lodged hundreds of cases against the farmers. With the hard work of Karni Ram, he could win all the cases. He emerged as a leading advocate of Shekhawati. [1]
He was a politician and a social reformer along with an advocate. He was a true follower of Mahatma Gandhi. He was the first person to stop dowry and 'mratyu-bhoja' from his own family. He was very much against untouchability. He employed a harijan servant to remove this evil from the society. He was known as Gandhi of Udaipurwati. He had a very high place in district politics. He was Chairman of district Congress Committee.
Shot dead by jagirdars
Karni Ram was shot dead on 13 May 1952 along with Ramdev Singh Gill by the Jagirdars at village Chanwara (चंवरा) when both Karni Ram and Ramdev Singh were sleeping after taking part in farmers movement against jagirdars. Jagirdars treated both of them as their biggest enemies. The news of murder of both leaders spread like forest fire and thousands of farmers gathered at the spot. They were all very agitated against the Jagirdars. Sardar Har Lal Singh, Chaudhari Kumbharam Arya rushed to the spot from jaipur accompanied with I G Police, to pacify the mob. The dead bodies of both martyrs were brought to Jhunjhunu and last rites performed on 14 May 1952 at "Vidyarthi Bhawan Jhunjhunu".[2]
करणीराम का जीवन परिचय
दादा का नाम :
पिता का नाम : देवाराम निवासी भोजासर, झुंझुनू
माता: .....(जन्म-?, मृत्यु-1910)
पत्नी: श्रीमती चावली देवी (जन्म-, मृत्यु-1983), गिल की ढाणी
भाई: डालूराम (छोटे भाई)
बहन: नारायणी देवी (बड़ी बहन)
मामा: मोहन राम (डूंडलोद ठिकाने के कामदार) पुत्र चौ.टीकू राम गाँव अजाडी, मामी: चावली देवी, मोहन राम जी के बड़े पुत्र हनुमान राम, पुत्री श्रीमति पतासी देवी
पुत्र: 1. ......., 2. सरदारसिंह (जन्म 1950)
जन्म: करणी राम का जन्म 2 फरवरी 1914 को झुंझुनू जिले के गाँव भोजासर में हुआ. पिता का नाम देवाराम था. जब करणी राम की आयु 4 वर्ष की थी तभी माँ का देहांत हो गया. करणी राम का पालन पोषण ननिहाल गाँव अजाडी में हुआ. डूंडलोद ठिकाने के कामदार मोहन राम उनके मामा थे. उनका परिवार आर्थिक दृष्टि से संपन्न था. [3]
शिक्षा: करणी राम ने प्राम्भिक शिक्षा बुगाला की चटशाला में प्राप्त की. मिडिल स्कूल की परीक्षा अलसीसर की जे.के. स्कूल से पास की. सन 1934 में करणी राम चिड़ावा की हाई स्कूल में भर्ती हुए. प्रधानाध्यापक प्यारेलाल गुप्ता थे जो शेखावाटी जनजागरण अभियान के अग्रणी रहे. 1936 में चिड़ावा स्कूल से करणी राम ने दसवीं पास की. 1938 में बिड़ला इंटर कालेज से इंटर परीक्षा पास की. महाराजा कालेज से 1940 में बी.ए. पास किया. उन्होंने 1942 में इलाहबाद यूनिवर्सिटी से वकालत की पढाई पूरी की एवं झुंझनु कोर्ट में वकालत करने लगे. उन दिनों शेखावाटी क्षेत्र सुलग रहा था. करणी राम नरोत्तम जोशी के साथ वकालत सीख ही रहे थे की पचेरी कांड हो गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 188)
वैवाहिक जीवन: श्री करणीराम जी की शादी शिवनाथ सिंह गिल के घर हुई थी। [4] श्री करणीराम जी की पत्नी श्री श्योनाथ सिंह जी भूतपूर्व एम.पी. व शहीद रामदेव सिंह जी की भूआ थी।[5]
श्री करणीराम जी की धर्मपत्नी श्रीमती चावली देवी एक सरल हृदया स्त्री थी जो पति को परमेश्वर मानकर उनकी सेवा में निरत रही और पति की विदाई की घनीभूत पीड़ा को मूकवत् सहकर सन् 1983 में स्वर्ग वासनी हुई।[6]
शेखावाटी भू-भाग: वर्तमान राजस्थान का झुंझुनू जिला तत्कालीन जयपुर रियासत का भाग था और शेखावाटी के नाम से जाना जाता था. पूरा भू-भाग जागिरी क्षेत्र था. छोटे बड़े जागीरदारों का आधिपत्य था. इसी का एक भू-भाग उदयपुरवाटी के नाम से जाना जाता था. आज भी उदयपुरवाटी तहसील क्षेत्र कहलाता है.
जागीरदारों द्वारा शोषण: उदयपुरवाटी भू-भाग पूर्णरूप से छोटे-छोटे जागीरदारों के आधिपत्य में था. थोड़ी-थोड़ी जमीन इनकी जागीरों में थी. जमीन की पैमाइश नहीं हुई थी. लगान की शरह निश्चित नहीं थी. जागीरदार अपनी मनमर्जी से जो चाहा लगान वसूल करता था. जमीनों का कोई रिकॉर्ड नहीं था. कौन सी जमीन कौन काश्त करता है, कोई रिकॉर्ड नहीं होने से बेदखलियाँ बहुत होती थी. लोग बहुत पिछड़े हुए थे. अपने अधिकारों के प्रति कोई ज्ञान उन्हें नहीं था. शिक्षा का पूर्ण अभाव था. जागीरदारों के अत्याचारों का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं थी. लगान बटाई में लिया जाता था. लगान के अलावा अनेक प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी. संपूर्ण समाज दयनीय स्थिति में जी रहा था. किसान की हालत और भी दयनीय थी. पूरे इलाके में किसानों के घर कच्चे छपरों के ही थे. कोई पक्का मकान नहीं मिलता था. बड़ी ही अपमानजनक स्थिति में लोग जी रहे थे. जागीरदार का आदेश ही उनके लिए सब कुछ था. आदेश की अवहेलना उनके लिए बर्बादी का संदेश था. कई गाँवों के किसान जागीरदारों की नाराजगी मोल ले कर अपनी जमीन तथा प्राणों से हाथ धो चुके थे. खिरोड़, देवगांव-हुकमपुरा-चनाना के हत्याकांड इस बर्बरता के साक्षी हैं.
किसानों में नई चेतना: भारत आजाद हुआ. 1952 के आम चुनाव आए. श्री करणी राम जी इस इस क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बने. श्री रामदेव सिंह जी का यह राजनीतिक कार्यक्षेत्र था. दोनों नेताओं ने घर-घर जाकर लोगों की स्थिति देखी. लोगों को अपने अधिकारों के लिए खड़े होने की प्रेरणा दी. अत्याचारों के खिलाफ लड़ने को प्रेरित किया. जनता में नई चेतना आई. खासतौर से किसान वर्ग संगठित होकर उठ खड़ा हुआ. जगह-जगह सभाएँ होने लगी. संगठन बने. नई हवा ने पूरे इलाके को झकझोर दिया. किसान वर्ग श्री करणी राम जी वह रामदेव सिंह जी को अपने उद्धारक त्राणदाता के रूप में देखने लगा. इस नई चेतना से जागीरदार वर्ग विचलित हो गया. इस पूरे परिवर्तन का कारण श्री करणी राम जी व श्री रामदेव सिंह जी को मानकर उन्हें खत्म करने की योजना बनने लगी. कई जगह गुप्त बैठकें हुई. सुदूर के डाकूओं को भी बुलाने की कार्यवाही पर विचार होने लगे.
1952 के चुनाव के बाद राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी. राज्य सरकार ने एक आदेश निकाला कि जिन जमीनों की पैमाइश होकर लगान कायम नहीं हुआ है वहां जागीदार पैदावार के छठे हिस्से से अधिक लगान के रूप में नहीं ले सकता. इस आदेश ने आग में घी का काम किया. अब तक जागीदार पैदावार का आधा हिस्सा लगान के रूप में लेते आ रहे थे. उन्हें छठा हिस्सा स्वीकार नहीं था. किसान चेतन हो उठा था. राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक किसान छठे हिस्से से अधिक देने को तैयार नहीं था. जागीरदार-कश्तकार संघर्ष तेज हो उठा. जगह-जगह खलिहान रोक दिए गए. अराजकता की स्थिति बन गई. श्री करणी राम जी एवं रामदेव सिंह जी इस संघर्ष में किसानों की रहनुमाई कर रहे थे.
गोलियों से भून डाला: इसी सिलसिले में उदयपुरवाटी के गांवों का दौरा करते 13 मई 1952 को चंवरा ग्राम गए. वहां सेठ सेढूराम गुर्जर की ढाणी में ठहरे हुए थे. दोपहर को खाना खाकर आराम कर रहे थे. जागीरदार उनके प्राण लेने को पीछे पड़े हुए थे. उन्हें मौका मिल गया और शेडू राम की ढाणी पर आक्रमण कर दोनों नेताओं को बंदूक की गोलियों से भून डाला.
बलिदान कभी निरर्थक नहीं जाता है. दोनों नेताओं के सीने पर लगी गोलियां सीना चीरते हुये हुए जागीरी प्रथा के पेट में जा घुसी. सरकार हरकत में आई. जागीरदारी प्रथा समाप्त हुई. जमीन का बंदोबस्त हुआ. लगान की शरह कायम हो कर किसानों को जमीन के पर्चे-खतौनी मिले. किसान जमीन का मालिक बना. एक सम्मानजनक जीवन का भोर हुआ.
पिछले सालों से हर वर्ष 13 मई को शहीद स्थल शेढूराम की ढाणी पर श्री करणीराम जी और रामदेव सिंह जी की याद में शहीद मेला लगता है. दूर-दूर से लोग अपने दिवंगत नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं.
पक्के गांधीवादी: श्री करणीराम जी का जन्म झुंझुनू जिले के भोजासर गांव में हुआ था. बीए-एलएलबी की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लेकर झुंझुनू में वकालत शुरु की. गरीबों के दास के नाम से विख्यात हुए. उनका घर गरीबों की शरणस्थली था. बहुत बार फीस लेना तो दूर रहा अपने पास से खर्चा लगा कर गरीबों के मुकदमों की पैरवी करते थे. पक्के गांधीवादी थे. हाथ से कती हुई रूई के कपड़े पहनते थे. रेखाराम हरिजन उनका प्रिय सेवक था. पानी-चौका बर्तन वही करता था. छुआछूत मिटाने की बात करना आसान है अपने जीवन में कार्य रूप में परिणित करना बड़ी बात है. उनका सादा साइमया जीवन अनायास ही लोगों को प्रभावित करता था. वे सबके प्रिय थे. कांग्रेस संगठन से जुड़े हुए थे. जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे.
संदर्भ: यह परिचय शहीद करणीराम-रामदेव के पचासवें निर्वाण दिवस पर प्रकाशित स्मृति ग्रंथ से लिया गया है.
जन्म, शैशव और शिक्षा
रामेश्वरसिंह[7] ने पुस्तक शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम में विस्तार से निम्नानुसार लेख किया है.... करणी राम जी का जन्म: श्री करणी राम जी का जन्म माघ शुक्ला सप्तमी संवत 1970 तदनुसार 2 फरवरी सन 1914 को झुंझुनू जिले के ग्राम भोजासर में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।
भोजासर जिला मुख्यालय झुंझुनू से लगभग 20 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। यह गांव आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व बसाया गया था। इस गांव के बसने की निश्चित तिथि असाढ़ बदी 1 संवत 1632 (=1575 ई.) बताई जाती है।
इस गांव को बसाने वाला भोजा नाम का व्यक्ति था जो जाट जाति के मील गोत्र का था। उसके नाम पर इस गांव का नाम भोजासर पड़ा। भोजासर बसाने से पहले भोजा व उनके पूर्वज रोहिली ग्राम में रहते थे । रोहिली गांव झुंझुनू व सीकर के लगभग बीच में स्थित था। सामरिक दृष्टि से इसकी स्थिति बहुत महत्वपूर्ण थी। राजा नवल सिंह ने अपने शासनकाल में यहां एक गढ़ का निर्माण कराया तथा इस गांव का नाम बदलकर नवलगढ़ रख दिया जो कालांतर में झुंझुनू जिले का प्रमुख व्यवसायिक एवं शैक्षणिक केंद्र बन गया । रोहिली गांव में भोजा के पूर्वजों ने एक बावड़ी का निर्माण करवाया था जो कुछ समय पूर्व तक नवलगढ़ में मौजूद थी। नवलगढ़ के बावड़ी गेट का नाम भी इस बावड़ी के कारण है।
सामरिक केंद्र होने के कारण भोजा के पूर्वजों ने शांतिपूर्वक जीवन यापन के लिए रोहिली गांव छोड़ दिया और वर्तमान सीकर जिले के कोलिडा गांव में बस गए। कोलिंडा ग्राम सीकर के अधीन था। इस गांव में अधिकांश मील गोत्र के जाट परिवार रहते थे। सीकर के राव राजा का वहां के जाटों के साथ सदा ही टकराव रहा। दिन प्रतिदिन के अत्याचारों से तंग आकर भोजा ने कोलिंडा गांव भी छोड़ दिया तथा झुंझुनू के कायमखानियों के अधीन किसी क्षेत्र में आकर बस गए जिसे अब भोजासर कहा जाता है।
शेखावाटी के टीलों से भरे पूरे इस क्षेत्र में पीने के पानी के अभाव में कम वर्षा के कारण गांव का विस्तार बहुत धीरे-धीरे हुआ । फिर भी शासन के साथ टकराव ना होने के कारण यहां का जीवन शांत एवं व्यवस्थित बना रहा। कृषि ही यहां के लोगों का एकमात्र जीवन आधार थी। वर्षा पर निर्भर होने के कारण आर्थिक संकट बना ही रहता था।
किसान सरल हृदय और धर्म प्रिय होता है। अतः गांव में भगवान की मूर्ति स्थापित कर एक छोटा सा मंदिर बनाया गया। यह काम एक महात्मा जी ने किया। उन्होंने बाहर से ठाकुर जी की मूर्ति लाकर गांव के एक कोने पर छोटी सी गुमट्टी बनाकर स्थापित की। आगे चलकर इस मंदिर को कुछ बड़ा आकार मिला। इस मंदिर में उत्कीर्ण एवं अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहां भगवान की मूर्ति का संस्थापन आषाढ़ वदी 1 स. 1862 (=1862 ई.) को किया गया था। आज भी ग्राम में एक मात्र यही मंदिर मौजूद है।
ग्राम में पीने के पानी का तब एक ही कुंवा था। बार बार जीर्णाोदार होने से कोई भी प्राचीनता का द्योतक कोई अवशेष नहीं रहा है। गांव में जाटों की घनी बस्ती है जिनमें अधिकांश मील कुल के हैं।
शेखावाटी में सत्ता का परिवर्तन हुआ। अनेक वर्षों से राज करने वाले कायमखानी नवाब दिल्ली की सल्तनत कमजोर होने से बेसहाय हो गए और उन्हें जयपुर नरेश सवाई जयसिंह की कृपा पर आश्रित रहना पड़ा। कुछ वर्षों तक राज्य
करने के बाद शेखावटी भूभाग का कायमखानी शासन अस्त हो गया और उसकी जगह शेखावतों ने ली।
शार्दुल सिंह की मृत्यु पर विक्रम की 19 वी सदी के प्रारंभ में उनके अधीनस्थ भूभाग का उनके पांच पुत्रों में समान बटवारा हुआ क्योंकि अन्य राजकुलों में पिता के मरने पर पाटवी पुत्र को राज मिलता था और छोटे भाइयों को गुजारे के लिए कुछ गांव मिलते थे शेखावतों में समान बंटवारे का सिद्धांत था। इस सिद्धांत के अनुसार कायमखानी नवाबों से ली गई भूमि को उन्होंने बराबर बांट लिया। इस बाट के अनुसार भोजासर ग्राम खेतड़ी ठिकाने के नीचे आ गया तबसे जागीरदारी पूर्ण ग्रहण तक यह गांव खेतड़ी राज्य के अधीन ही बना रहा।
भोजासर के किसानों की स्थिति सामान्य थी। आर्थिक दृष्टि से वे सफल नहीं थे। एक फसली इलाका था, जिसमें इंद्र देवता की कृपा के कारण कई कई साल अकाल पढ़ते थे। किसान की मेहनत ही उसका बल था जो कुछ भी पैदा करता उसी में संतोष था। मोटा खाना, मोटा पहनना, ना अधिक प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा, ना उसकी प्राप्ति के साधन, सदियों से संतोष का पारंपरिक सुखी निष्कपट जीवन किसान जी रहा था। शिक्षा का नाम मात्र भी साधन आस पास नहीं था। 'मसि कागद छूयो नहीं' कहावत वाली स्थिति थी।
गांव में आर्य समाज का प्रचार प्रारंभ हो चुका था जिससे जागृति का प्रभात कालीन प्रकाश फैलने लगा था। चौ.हरदा राम जी इस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। हरदा राम जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने परंपरा को तोड़कर अपनी पौत्री का विवाह आर्य समाज विधि से संपन्न कराया था। इस गांव के श्री लादूराम ब्राह्मण भी कर्मकांड के खिलाफ थे तथा प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। आगे चलकर हरदा राम जी के भतीजे चो. थानी रामजी, श्री कालूराम जी व श्री जगन सिंह जी ने इस काम को आगे बढ़ाया और उन्होंने झुंझुनू जिले के प्रमुख व्यक्तियों में अपना स्थान बना लिया ।
करणी राम जी का परिवार:
करणी राम जी के पिता का नाम देवाराम जी था। देवाराम जी अनपढ़ व्यक्ति थे। बड़े सीधे साधे, सच्चे और अपना पूरा ध्यान खेती पर केंद्रित रखने
वाले। गांव में उनकी व उनके परिवार की अच्छी प्रतिष्ठा थी। देवाराम जी के पास जमीन, बैलों की जोड़ी, बाड़ा व मकान थे। मकान हालांकि कच्चा था पर काफी लंबा-चौड़ा था। उनका बड़ा संयुक्त परिवार था। उन दिनों गांव में पक्का मकान था ही नहीं। करणी राम जी का जन्म कच्चे फूंस की टापरी में हुआ था। आज की दृष्टि में वह संपन्न परिवार नहीं था पर वह जमाने में बैलों की जोड़ी, संयुक्त लंबा परिवार, खेती आदि हैसियत की प्रतीक मानी जाती थी। इस वजह से अपने जमाने के झुंझुनू इलाके के शीर्षस्थ चौधरी टीकू राम जी ने अपनी पुत्री चीमा बाई को देवाराम जी से ब्याही। पुत्र रत्न, प्राप्त होने पर देवाराम जी के समस्त भरे पूरे परिवार एवं मोहल्ले भर में खुशी की लहर दौड़ गई।
श्री करणी राम जी के एक बड़ी बहन थी जिसका नाम नारायणी देवी है। उनके जन्म के समय बहन की उम्र 3 साल थी। श्री करणी राम जी के जन्म के करीब 3 साल बाद उनके छोटे भाई डालूराम का जन्म हुआ। दो पुत्र और एक पुत्री के होने से घर में अमन चैन और आनंद था। मां अपने बच्चों का बड़े प्रेम से लालन पालन करती थी । वह स्वयं एक संपन्न और संस्कारवान परिवार की थी। अतः अपनी संतान में भी अच्छे संस्कार डालने के लिए प्रयत्नशील थी । लेकिन विधि की विडंबना कौन जानता है। किसी को सपने में भी खयाल ना था की दूसरे पुत्र के जन्म के 1 साल बाद ही कोई अनहोनी घटना होने वाली है। सवंत 1975 इस परिवार के लिए दुर्भाग्य लेकर आया। सवंत 1975 टपकाली की साल कहलाती थी। इस टपकाली का नाम लेते ही आज भी गांव के बड़े बूढ़ों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सैकड़ों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए । लोग घर गांव छोड़कर भागने लगे। यह टपकाली एक महामारी थी। उस समय देहातों में किसी प्रकार की चिकित्सा की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। यह महामारी देवाराम जी के घर में घुसी और उनके परिवार की खुशी छीनकर ले गई। करणी राम जी की माताजी इस महामारी की शिकार हुई, और सदा के लिए इस संसार से विदा ले गई। नियति के क्रूर हाथों ने इस सुखी परिवार को एक तरह से झकझोर कर रख दिया। अबोध शिशु बिलखते रह गए। देवाराम जी के लिए नन्हे नन्हे बच्चों का पालन पोषण करना अत्यंत दुष्कर हो गया। माता की मृत्यु
के समय करणी राम जी की उम्र करीब 4 साल, बहन की 7 साल अनुज की उम्र करीब 1 वर्ष थी।
यह भी एक अजीब संयोग था की करणी राम जी की मां चीमा बाई और उनकी नानी यानी चीमा बाई की मां दोनों की मृत्यु दो-चार दिन के फासले से हुई और दोनों को एक दूसरे के मरने की खबर तक नहीं हुई।
ननिहाल में परवरिश: विपत्ति की इस घड़ी में देवाराम जी के ससुराल पक्ष ने साथ दिया। उनका ससुराल गांव अजाड़ी में था। उनके ससुर चो. टीकू राम जी संपन्न एवं सरल व्यक्ति थे । वे कई गांवों के चौधरी डूंडलोद ठिकाने की ओर नियुक्त थे। उनके नाम बाढ़ था तथा 1800 रुपए की चौधर उनके नाम उनके नाम स्वीकृत थी। यह एक अच्छा खाता पिता परिवार था।
चीमा देवी की गमी में भोजासर बैठने गए तभी करणी राम जी के नाना करणी राम जी व उनकी बड़ी बहन नारायणी देवी को अपने गांव में ले आए। दोनों को बेहद प्यार व अच्छा लालन-पालन मिला। अपने नाना के घर दोनों भाई बहन बड़े होने लगे। उनकी मामी चावली देवी, जो प्यार और समर्पण की साकार मूर्ति थी, ने करणी राम जी को बहुत प्यार दिया और अपने औरस पुत्रों से भी अधिक ध्यान करणी राम जी पर लगाया। मैं तो उन्हें यशोदा माता का दर्जा देता हूं जिन्हें कृष्ण जैसा करणी राम का लालन पालन करने को मिला।
करणी राम जी में सरलता, सच्चाई एवं उत्सर्ग की भावनाओं के संस्कार उनकी मामी चावली देवी से ही मिले। जिस किसी ने एक महान महिला को देखा है वे जानते हैं कि अतिथियों की सेवा और बीमार आदमियों की सेवा वे कितने निस्वार्थ भाव से करती थी। करणी राम जी के कोमल हृदय पर वे संस्कार अमिट रूप से अंकित हो गए। सेवा का अनवरत व्रत करणी राम जी ने अपनी मामी से ही सीखा। वे अनुनय भाव से अपनी मामी को कहते थे की मामी तू यों ही रोटी पो-पो कर लोगों को खिलाती हुई तथा बीमारों की सेवा करती करती ही मर जाएगी-कभी तो आराम किया कर।
करणीराम जी के मामा मोहनराम जी उर्दू फारसी पढ़े हुए सुशिक्षित व्यक्ति थे। वे डूंडलोद ठिकाने में हाकीम थे। ठिकानेदार एवं काश्तकारों के बीच अच्छे संबंध बनाए रखने में सिद्धहस्त थे। इलाके में उनकी बड़ी मान्यता थी। करणी राम जी के मामा जी भी उन्हें अपने बेटे से भी ज्यादा प्यार देते थे। मामा के घर पर रोजाना आने जाने वालों की भीड़ लगी रहती थी। मेहमानों से घर भरा रहता था। सभी को खाना पीना और सब तरह की सुख सुविधाएं मिलती थी। मेहमानगिरी का सारा भार उनकी मामी जी पर होता था। ऐसे माहौल में करणी राम जी बड़े होते गए। मोहन राम जी के बड़े पुत्र हनुमान राम जी करणी राम जी के हम उम्र थे।
शेखावटी के देहातों में उन दिनों शिक्षा का नामोनिशान न था। लोगों के दिल में शिक्षा के प्रति कोई रूचि और सम्मान भी नहीं था। लेकिन मोहन राम जी को शिक्षा के प्रति बड़ा लगाव था। पढ़े-लिखे व्यक्तियों और बच्चों से बातचीत करने के लिए उत्सुक रहते थे। उन दिनों इस इलाके में आर्य समाज का जबरदस्त प्रचार था। आर्य समाज के जोशीले कार्यकर्ता शिक्षा के प्रति लोगों का रुझान पैदा करते थे तथा समाज में फैली कुप्रथाओं पर करारा प्रहार करते थे। करणी राम जी लगभग 11 से 12 वर्ष के हो चुके थे। अतः उनको शिक्षा दिलाने की और स्वभावतः उन्होंने ध्यान दिया। वे करणी राम जी को बहुत अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते थे। लेकिन आसपास कहीं कोई प्राइमरी स्कूल तक नहीं थी।
बुगाला गांव की पाठशाला में: बुगाला गांव में जो अजाड़ी से 5 से 6 किलोमीटर दूर है उन दिनों प. ओंकार लाल जी एक छोटी सी पाठशाला चलाते थे। मोहन राम जी ने करणी राम जी और अपने स्वयं के पुत्र हनुमान राम को पढ़ने के लिए इसी पाठशाला मैं भर्ती कराया। उन दिनों पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था नहीं थी। कुछ गांवों में प. ओंकार लाल जी जैसे ब्राह्मण कुल के गुरु अपने घर में ही पढ़ने की व्यवस्था करते थे और पढ़ने वाले बच्चों के घरों से सीधा के रूप में आटा, घी आदि उनके भरण पोषण के लिए आया करता था।
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श्री करणीरामजी की मामी गौरवशालिनी श्रीमती चावली देवी, जिन्होंने मातृवत् स्नेह से मातृविहीन शिशु का पालन पोषण किया और अपना अप्रतिम पुत्रतुल्य स्नेह प्रदान किया। करणीराम जी के व्यक्तित्व निर्माण में इस स्नेह संकल्पमयी देवी का बड़ा हाथ रहा।
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श्री करणीराम जी की धर्मपत्नी श्रीमती चावली देवी, यह सरल हृदया पति को परमेश्वर मानकर उनकी सेवा में निरत रही और पति की विदाई की घनीभूत पीड़ा को मूकवत् सहकर सन् 1983 में स्वर्ग वासनी हुई।
करणीराम जी ने ऐसे ही गुरु के पास शिक्षा प्रारंभ की। उनके भाई हनुमान राम जी ने भी उनके साथ पढ़ना प्रारंभ किया । इस स्कूल में पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था नहीं थी। स्कूल में पढ़ाई नाम मात्र की ही थी परंतु फिर भी करणीराम जी की पढ़ाई में अत्यधिक लग्न एवं रुचि थी। करणीराम जी की इस लगन, रुचि एवं अन्य गुणों का प्रभाव ओंकार लाल जी पर इतना पडा कि वे कहा करते थे कि यह स्कूल ढ़ाई आदमियों के बलबूते पर चलती है - एक मैं, दूसरा करणीराम तथा आधा बुगाला निवासी भैरूबनिया। इस प्रकार स्वयं गुरु ओंकार लाल ने करणी राम को अपने विद्यालय का स्तंभ माना। वास्तव में बचपन में ही होनहार बच्चों के गुण मुखरित हो जाते हैं। इसलिए तो कहा जाता है कि होनहार बिरमान के होत चिकने पात।
जयपुर रियासत में उन दिनों छठी की परीक्षा भी बोर्ड से संचालित होती थी। यह सन 1931-32 की बात है। करणी राम जी इसी स्कूल से छठी क्लास पूरी नहीं कर सके। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ही ली। मोहन राम जी अपने भांजे करणी राम जी को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाना चाहते थे अतः वे लोगों से पूछताछ किया करते थे । उनको जानकारी मिली की उनके गांव से करीब 40 मील उत्तर में अलसीसर में एक अच्छी स्कूल है। वह मिडिल स्कूल थी। करणी राम जी और हनुमान राम जी के वहीं पढ़ने के लिए भर्ती कराया गया।
अलसीसर मिडिल स्कूल में: अलसीसर मिडिल स्कूल में कुछ ही दिन हुए थे कि करणी राम जी का मन नहीं लगा। अतः पढ़ाई छोड़ कर अपने गांव अजाड़ी आ गए। मोहन राम जी इस बात को कहां पसंद करने वाले थे। उन्हें बहुत बुरा लगा और नाराज होकर करणी राम जी को बोले कि अगर हमारे पास रहोगे तो पढ़ना होगा अन्यथा अपने गांव जाकर रेवड़ चराओ। मामा जी कि इस बात का उनके दिल पर बड़ा प्रभाव पड़ा। बे वापस अलसीसर लौट गए और दृढ़ निश्चय पूर्वक पढ़ाई में जुट गए।
इस स्कूल में पढ़ाई की व्यवस्था अच्छी थी । यहीं से सन 1934 में करणी राम जी ने प्रथम श्रेणी में आठवीं कक्षा पास की। पहले यह अलसीसर की
स्कूल छठी क्लास तक थी और इसके हेड मास्टर श्री मान सिंह जी थे। मिडिल स्कूल होने पर इसके हेड मास्टर श्री कैलाशपति सिंह बने।
अलसीसर स्कूल में इनके साथ पढ़ने वाले अनेक सहपाठी आज भी मौजूद है। प. शिव चंद्र शर्मा जो उनके सहपाठी थे आजकल मंडावा कस्बे में सेवानिवृत अध्यापक का जीवन-यापन कर रहे हैं। उनका कहना है कि करणी राम जी बाल्य-काल में ही बड़ी गंभीर प्रकृति के थे। बच्चों वाली चंचलता एवं काम से जी चुराने की प्रवृत्ति उनमें नहीं थी। वे प्राय अपने काम में लगे रहते थे। अपनी कक्षा के वे सर्वोत्तम विद्यार्थी गिने जाते थे। उनके एक अन्य स्कूल-साथी कर्नल भगवान सिंह ने बताया कि वे छात्र जीवन में भी उच्च आदर्शवादी व्यक्ति थे। उनमें राष्ट्रीय प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। लड़ाई झगड़ों से हमेशा दूर रहते थे। लोगों को नेक सलाह देते। सीधे, सरल और सच्चे इंसान थे। गांव के लोगों में आपसी समझौता कराने एवं भाईचारे की बातें कहते थे।
चिड़ावा हाई स्कूल में: सन 1934 में अलसीसर से आठवीं परीक्षा पास कर वे चिड़ावा हाई स्कूल में भर्ती हुए। स्कूल के प्रधानाध्यापक प्यारेलाल जी गुप्ता थे। राष्ट्रीय संघर्ष में उनका बड़ा योगदान रहा था। प्यारे लाल जी ने सामनतो अत्याचारों के खिलाफ भी संघर्ष किया था। कहते हैं कि जागीरदारों ने उन्हें घोड़े की पूंछ से बांध कर मीलों तक घसीटा था तथा तरह-तरह की यातनाएं दी थी। ऐसे राष्ट्र-प्रेमी एवं मुखरित व्यक्ति के धनी प्यारे लाल जी ने इस स्कूल के बच्चों में राष्ट्र प्रेम एवं सामाजिक जागृति के बीज अंकुरित किए। करणी राम जी के जीवन पर भी उनका अत्यधिक प्रभाव पड़ा और मैं सोचता हूं कि ऐसे गुरु के वरदहस्त के नीचे उनके भावी जीवन की रूपरेखा एवं दिशा निर्धारित हुई। इस स्कूल से करणी राम जी ने सन 1936 में दसवीं परीक्षा पास की।
बिड़ला कॉलेज पिलानी में: हाई स्कूल पास करने के बाद करणी राम जी बिड़ला इंटरमीडिएट कॉलेज में भर्ती हुए। यह कॉलेज बिरला बंधुओं द्वारा संचालित थी। उनके साथ पढ़ने
वालों में अजाड़ी के हर नंदराम जी है जो आजकल एडवोकेट है तथा भोजासर ग्राम के करणी राम के चचेरे भाई राधा किशन जी है जो बाद में बिरला एजुकेशन ट्रस्ट की ओर से शिक्षा अधिकारी नियुक्त हुए।
करणी राम जी का पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित रहता था। वे अन्य प्रवृत्तियों में विशेष रुचि नहीं रखते थे। इस समय तक कॉलेज में विद्यार्थियों का संगठन उभरने लगा था। करणी राम जी ने इस संगठन के किसी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ा हालांकि विद्यार्थियों में वे अति प्रिय थे और सभी प्रकार से चुनाव लड़ने हेतु समर्थ थे। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री श्री शुक् देव पांडे इस कॉलेज के प्रिंसिपल थे। बे पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे और विश्वविद्यालय में पं. मदन मोहन मालवीय जी के पांच रत्नों में से एक थे। सेठ घनश्याम दास जी बिरला उन्हें मालवीय जी से अनुनय कर मांग कर लाए थे। करणी राम जी को इस महान एवं आदर्श व्यक्ति के निकट रहने का अवसर मिला। सदाचार, राष्ट्र प्रेम एवं देश भक्ति के जो बीज चिड़ावा हाई स्कूल में अंकुरित हुए थे वे पांडे जी के प्रेरणा से पल्लवित एवं पुष्पित होने लगे। सन 1938 में बिरला इंटरमीडिएट कॉलेज से उन्होंने इंटरमीडिएट परीक्षा पास की।
रामदेव सिंह व करणीराम की अजीब जोड़ी
शिवनाथ सिंह गिल[8] ने लिखा है....श्री रामदेव सिंह जी व श्री करणीराम जी की अजीब जोड़ी थी, दो अजीब विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति एक साथ मिलकर लोगों को कितना क्या दे गए एक आश्चर्यजनक स्थिति लगती है--- करणीराम जी से ठीक विपरीत श्री राम देव सिंह जी जलती आग का धधकता गोला थे। बड़े ही क्रियाशील व्यक्तित्व के धनी थे--- जागीरी जुल्मों को आंख से देखा था और भुगता था--- जागीरी अत्याचारों के खिलाफ खुले विद्रोही की साक्षात मूर्ति थे। बड़े अच्छे संगठनकर्ता थे, जिस भी गांव में जाते मिनटों में एक अच्छी खासी कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर देते थे। लोग कहा करते थे कि कितनी शक्ति है इस व्यक्ति में कि जहां से निकल जाता है वहीं आग सी लग जाती है। बालकपन से ही उग्र स्वभाव के थे, अन्याय से समझौता करना उनकी कृति में नहीं था। डटकर हर अत्यचार का मुकाबला करते थे। भय नाम की चीज उनके लिए थी ही नहीं। जंहा भी देखते अन्याय हो रहा है छाती खोलकर मुकाबले को खड़े मिलते थे।
श्री रामदेव सिंह जी उम्र में तीन साल बड़े थे लेकिन पढ़ना लिखना हम दोनों ने करीब-करीब एक साथ ही शुरू किया था। बचपन में उनकी नटखटता के कारण मुझे कई बार परेशानियों का शिकार होना पड़ता था। स्कूल में जाते आते बहुधा तंग किया करते थे लेकिन दूसरे बच्चों द्धारा मुझे कभी परेशान नहीं करने दिया----एक ढाल समान मेरी रखवाली करते थे, हम दोनों साथ-साथ हिंदी वर्नाक्युलर फाइनल परीक्षा साथ-साथ पास की। उन्होंने राजपूताना शिक्षा मंडल स्कूल में
अध्यापक का कार्य अपना लिया और मुझे आगे पढ़ाने का निर्णय लेकर आगे पढ़ाई चालू करवा दी। विधि स्नातक बनाने योजना थी।
श्री रामदेव सिंह जी अध्यापक का कार्य कुछ ही समय कर पाये। उनका मन सार्वजानिक क्षेत्र में कार्य करने का था। अध्यापन कार्य छोड़कर सरदार हरलाल सिंह जी के संपर्क में आ गए और जिले की राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। उदयपुरवाटी इलाके के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने तथा विद्यार्थी भवन झुंझनू के प्रबंध को हाथ लिया। विद्यार्थी भवन धन संग्रह में अग्रणी भाग लेते हुए जिले के अन्दर तथा बाहर अहमदाबाद आदि स्थनों से काफी धन संग्रह करवाया। विद्यार्थी भवन को अपनी कर्मस्थली बनवाया व जन जागृति के कार्य गए। 1952 के आम चुनाव आये, श्री करणीराम जी ने उदयपुरवाटी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। बड़ी विकट स्थिति उदयपुरवाटी के उस समय थी। सम्पूर्ण क्षेत्र जागीरदारों के बुरी तरह से प्रभाव में था। मनुष्य को मनुष्य नहीं समझा जाता था। किसानों से मनचाहा लगान लिया जाता था----लगान की कोई दर निश्चित नहीं थी -- जो भी जागीरदार की मर्जी में आया, तय कर लिया और ले गये। अनेक प्रकार की लागबाग चालू थी। किसान की सम्पूर्ण पैदावार जागीरदार के लगान--बोहरे की तुलाई--धुँआबाज--खूंटा बंधी आदि में चली जाती थी। बेगार ऊपर से लेनी पड़ती थी---खलिहान से किसान के घर अनाज का एक दाना भी नहीं पहुंच पाता था। इस पर भी जमीन की सुरक्षा नहीं थी--मनचाहे जब बेदखल किया जा सकता था--सम्पन्न सम्मान पूर्वक जिंदगी बसर करने की बात तो सोचना ही असम्भव था।
जागीरदारों का इतना आंतक था कि कोई जबान भी खोल नहीं पाता था। बहु-बेटियों की इज़्ज़त जागीरदारों के हाथों आये दिन लुटती थी। ऐसे आतंकपूर्ण वातावरण में चुनाव लड़ना कोई आसान बात नहीं थी। कार्यकर्ताओं को लोगों के पास पहुंचने नहीं दिया जाता था। श्री करणीराम जी तथा श्री रामदेव सिंह जी अपने साथी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर रात दिन गाँवों में घूमने लगे। लोगों में कुछ साहस आया। वातावरण में कुछ बदलाव आने लगा। जागीरदारों व कांग्रेस कार्य-कर्ताओं में आपस में विवाद खड़े होने लगे। वह समय ऐसा ही था। सम्पूर्ण राजस्थान की जागीरी क्षेत्रों में यही हाल था। श्री जयनारायण जी व्यास राजस्थान
के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए सन 1952 के चुनाव लड़ रहे थे। उनको भी जागीरदारों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में घुसने तक नहीं दिया और ऐसा लोकप्रिय नेता जो दो स्थानों से चुनाव लड़ रहा था, दोनों ही स्थानों से चुनाव हार गया।
जैसे तैसे चुनाव माहौल समाप्त हुआ। श्री करणीराम जी व श्री रामदेव जी चुनाव का परिणाम निकलते ही फिर अपने क्षेत्र में लग गये, लोगों में अब जाने आने लगे और काश्तकार-जागीरदार संघर्ष अपनी चरम सीमा को पहुंच गया। जगह-जगह भिड़ंत होने लगी। समय बलिदान मांग रहा था। 13 मई 1952 को दोनों नेताओं ने अपने प्राणों की बलि देकर इस बलिदान यज्ञ की पूर्णाहुति दी। गोलियां दागी गई थी इनकी दो की छाती पर और लगी जागीर प्रथा के पेट पर। 13 मई 1952 के बाद उदयपुरवाटी क्षेत्र के किसी जागीरदार ने अपने जागीरी अधिकारों का उपभोग नहीं किया।
पचेरी कांड 1944
16 सितम्बर 1944 को पचेरी गाँव के ठाकुर शिवसिंह व संग्राम सिंह, जो पचेरी की एक-चौथाई जमीन के पानेदर थे, ने ढाणी शिवसिंहपुरा में दतू यादव व बिरजू यादव नाम के दो किसानों को गोलियां चलाकर भून दिया तथा अनेक महिलाओं एवं किसानों को घायल कर दिया. सैंकड़ों मुकदमे बेदखली के कर दिए. वकील करणी राम भोजासर, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरी व नरोत्तम लाल जोशी ने बड़ी हिम्मत व दिलेरी से पचेरी के किसानों की मदद की. उन्होंने किसानों को हौसला बंधाया और उनकी निशुल्क पैरवी करने लगे. करणी राम ने पचेरी बड़ी में ही डेरा दाल दिया और अपनी जान की बजी लगाकर पीड़ितों की क़ानूनी सहायता की. (राजेन्द्र कसवा, p. 188)
झुंझुनु जिला कांग्रेस कमिटी का प्रथम अध्यक्ष
अपनी निष्ठां, त्याग, बलिदान तथा संगठन क्षमता के कारण हरलाल सिंह उभर कर राजस्थान के गणमान्य व्यक्तियों की अग्रिम पंक्ति में शामिल हो चुके थे. स्वतंत्रता के बाद प्रजामंडल कांग्रेस में विलीन हो गया. मालपुरा में प्रजामंडल का अंतिम अधिवेशन हुआ. इसमें आप अध्यक्ष चुने गए. कांग्रेस में विलीन होने के बाद जयपुर डिवीजन में कांग्रेस कमिटियों के निर्माण का कार्य आप को दिया गया. झुंझनु में सन 1951 -52 में हरलाल सिंह की सिफारिस पर वकील करणी राम को झुंझुनु जिला कांग्रेस कमिटी का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 47)
प्रथम विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार
26 अप्रेल 1951 को राजस्थान में जयनारायण व्यास मंत्रिमंडल ने शपथ ली. झुंझुनू के नरोत्तम जोशी को मंत्री बनाया गया. इसके पीछे सरदार हरलाल सिंह का हाथ था. कांग्रेस उदयपुरवाटी में वकील चंद्रभान भार्गव को उम्मीदवार बनाना चाहती थी परन्तु यहाँ भौमियों के आतंक को देख कर उन्होंने मना कर दिया. तब करणी राम को यहाँ से उम्मीदवार बनाया गया. उनके सामने रामराज्य परिषद् की और से देवीसिंह मंडावा उम्मीदवार थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 212)
उदयपुरवाटी विधानसभा क्षेत्र शेखावाटी अंचल का सबसे अधिक चर्चित क्षेत्र था. यहाँ भौमियों ने गाँव-गाँव में आतंक फैला रखा था. यह चिंता थी कि करणी राम चुनाव प्रचार कर भी पाएंगे या नहीं. भौमियों ने अफवाह फैलादी कि करणी राम को गाँवों में नहीं घुसने दिया जायेगा. करणी राम ने एक जीप की व्यवस्था करली. रामदेव के साथ वे उदयपुरवाटी में अपना चुनाव कार्यालय खोलने चले. वहां महसूस हुआ कि स्थिति विकट है. भौमियों के आतंक के कारण कोई भी चुनाव कार्यालय के लिए मकान देने को तैयार नहीं हुआ. (राजेन्द्र कसवा, p. 213)
आखिर उन्हें रूड़ मल पुजारी की बगीची में आश्रय मिला. गाँवों में जब यह समाचार मिला कि करणी राम ने कार्यालय खोल लिया है तो लोग आने लगे. कार्यकर्ता पैदल ही गाँवों में घूमते और करणी राम की विजय के लिए अपील करते. इससे भौमियों का संयम टूट गया और वे करणी राम के समर्थकों और कार्यकर्ताओं की पिटाई करने लगे. (राजेन्द्र कसवा, p. 213)
पोंख गाँव में चुनावी सभा
एक दिन पौंख गाँव में करणी राम की आम सभा रखी गयी. यह गाँव भौमियों का गढ़ था. करणी राम का भाषण सुनने के लिए किसी को भी स्थल पर नहीं आने दिया गया. करणी राम जीप में सवार अपने कुछ साथियों के साथ सभा स्थल पर पहुंचे. देखा , वहां कोई नहीं था. लेकिन करणी राम की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी. वे कठिन परिस्थितियों में भी घबराते नहीं थे. जीप के बोनट पर खड़े हो ऊँची आवाज में कहा, " पौंख वासियों, मैं अपनी बात करने के लिए आया हूँ. आप लोग आये नहीं, कोई बात नहीं. आपके घरों और दीवारों और झौंपड़ियों को ही अपना सन्देश सुनाकर जाऊंगा." (राजेन्द्र कसवा, p. 213)
पोंख गाँव भौमियों के आतंक की मांद था. करणी राम ने मांद में घुसकर अपनी बात कही. साथी लोग भयभीत थे. भौमिये बन्दूक लिए घूम रहे थे. टीम के साथियों ने कहा कि यहाँ से जल्दी निकलना चाहिए. लेकिन करणी राम जल्दी में नहीं थे. लगभग एक घंटा श्रौतावीहीन सभा में भाषण दिया. वे संबोधित कर रहे थे, दीवारों, कंटीली बाड़ और दरख्तों को. घरों में दुबके भयभीत लोग उन्हें सुन रहे थे और चकित थे. ऐसी सभा पोंख में न पहले हुई और न बाद में. पूरे क्षेत्र में इस सभा की चर्चा फ़ैल गयी. इससे आम जन में निडरता, साहस और आत्म विश्वास बोलने लगा. उनके प्रति सहानुभूतु पैदा हुई. धीरे-धीरे उनकी सभाओं में मतदाता आने लगे. गाँवों में वियार्थी और नवयुवक तथा किसान संगठित होने लगे. करणी राम कहते , "मैं जीतूँ या हारूं, इसकी परवाह नहीं. उदयपुर वाटी क्षेत्र मेरा कर्मक्षेत्र है और रहेगा. मैं बराबर यहाँ कार्य करता रहूँगा. किसी के द्वारा भी कानून अपने हाथ में नहीं लिया जायेगा. " (राजेन्द्र कसवा, p. 214)
मतदान हुआ और परिणाम आया. करणी राम दो हजार से भी कम मतों से हारे. यह तब था जब करणी राम को ऐन मौके पर खड़ा किया गया. अन्य कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुआ. इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि वे हारकर भी जन नेता थे. उदयपुरवाटी और पड़ौसी विधान सभा क्षेत्र नवलगढ़ से दोनों जगह एक ही जागीरदार परिवार के देवी सिंह और भीम सिंह निर्वाचित हुए. नवलगढ़ से सरदार हरलाल सिंह हार गए थे जो सर्वोच्च कांग्रेसी नेता थे. उन्होंने लम्बा किसान संघर्ष किया था. (राजेन्द्र कसवा, p. 214)
भौमियों द्वारा झाझड गाँव में लूट
प्रथम आम चुनाव 1952 में उदयपुरवाटी और नवलगढ़ से दो सामंतों (देवी सिंह और भीम सिंह) के विधायक बनने से भौमियों का हौसला बढ़ गया था. वे प्रचार करते कि हमारी जागीर अब भी कायम है और आगे भी रहेगी. उन्हें वोट द्वारा भी समर्थन मिल चुका था. यह भारतीय लोकतंत्र की विडम्बना थी. इससे किसानों की सामत आ गयी. कानून के अनुसार किसान उपज का 1/6 भाग लगान के रूप में देना चाहते थे. किन्तु ठिकानेदार 1/4 से कम पर बिलकुल तैयार नहीं थे. झुंझुनू के कलेक्टर ने करणी राम को तैयार किया कि वे किसानों और भौमियों में समझौता करावें. आजादी मिले पांच साल हो चुके थे परन्तु जागीरदार अब भी धौंस पट्टी से लगान वसूल करने में लगे थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 215)
16 अप्रेल 1952 को भौमियों ने एक राय होकर झाझड गाँव की सरहद में फैली हुई ढाणियों के खलिहान लूटने की योजना बनाई. यहाँ अधिकांश माली किसान थे. जब उनको भौमियों के षड्यंत्र का पता लगा तो वे भी मुकाबले के लिए तैयार हो गए. लड़ाई हुई और दोनों और से काफी लोग घायल हो गए. झाझड गाँव के एक ठाकुर का हाथ कट गया. भयभीत भौमियों ने भागने में ही सलामत समझी. आम किसान में इस आत्म विश्वास को जगाने का जिम्मेवार भौमियों ने करणी राम को ही माना. (राजेन्द्र कसवा, p. 215)
करणी राम समझौता कराने को प्रयत्नशील थे लेकिन ठाकुर लोग उनसे क्रुद्ध थे. इस घटना के बाद उदयपुरवाटी में आतंक बढ़ गया. ठाकुरों ने सन्देश पहुंचा दिया कि करणी राम उदयपुरवाटी क्षेत्र में न आयें. करणी राम उसी दौरान जयपुर भी गए. वहां कुम्भा राम आर्य ने उन्हें सलाह दी कि वे उदयपुरवाटी न जाएँ. लेकिन करणी राम गरीब किसानों को बेसहारा नहीं छोड़ सकते थे. यह उनके स्वभाव के प्रतिकूल था. इसी कारण 11 मई 1952 को उदयपुर वाटी में करणी राम ने बड़ी आम सभा बुलाई. भौमियों ने भी उसी दिन अलग से अपनी बैठक रखी. इसमें करणी राम को भी आमंत्रित किया. करणी राम भौमियों की इस बैठक में पहुंचे. कहा जाता है कि इस बैठक में जागीरदारों ने करणी राम का सम्मान किया और यह आश्वासन भी दिया कि जो समझौता करणी राम कराएँगे, उसे वे मानेंगे. इसके लिए दो दिन बाद 13 मई को चंवरा में एक आम सभा करने की घोषणा जागीरदारों ने की. यह मना जाता है कि 11 मई को जागीरदारों ने करणी राम को इसलिए बुलाया कि भाड़े के कातिल उनकी पहचान करलें. कुछ शुभ चिंतकों ने करणी राम को सलाह दी की 13 मई को वे चंवरा की सभा में न जाएँ. करणी रामने अनसुना कर दिया. (राजेन्द्र कसवा, p. 216)
करणीराम और रामदेवसिंह की शहादत
अप्रेल 1952 में करणीराम और रामदेवसिंह की जोड़ी ने उदयपुरवाटी इलाके में एक सभा बुलाई जिसमें 20 -25 हजार आदमी इकट्ठे हुए. पूरा उदयपुरवाटी खुदबुदा रहा था, किसान मरने मारने को तैयार हो चुके थे और भौमिया भी अपना 'वाटर-लू' लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लगानबंदी आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था. ऐसे में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल मंगवाकर उदयपुरवाटी भेजा जिसका कैम्प चंवरा गाँव में लगा था. 12 मई 1952 की रात को करणीराम ने सुना कि चंवरा गाँव में सारे जागीरदार इकट्ठे होई गए है और जबरन फसल उठाने की योजना है. वहां भारी संख्या में किसान इकट्ठे हो गए हैं. इस पर करणीराम और कुछ साथी झुंझुनू लौटने का कार्यक्रम रद्द कर ऊँट गाडी से रवाना होकर कालका ढाणी में रुके और 13 मई को सुबह चंवरा गाँव पहुँच गए. वहां रामदेवसिंह गिल और अन्य कार्यकर्ता भी आ गए. करणीराम ने किसानों से शांति बनाये रखने की अपील की. वे पक्के गांधीवादी और अहिंसा के पुजारी थे. उसी समय दीप पूरा गाँव का राजपूत गोरधन सिंह करणी राम के पास आया. उसने कहा, "आपको देखने के लिए मुझे भेजा गया है, आप यहीं रुकना. राजपूत शाम तक समझौता करने आप के पास आएंगे." गोरधन सिंह चला गया. तेज गर्मी पड़ने लगी. करणी राम - राम देव उठ कर सेढूराम के घर में बने छप्पर में चले गए. अन्य लोग खाना खाने और विश्राम करने अलग-अलग ढाणियों में चले गए. उसके बाद तेज धूप के कारण सभी किसान व कार्यकर्ता अलग-अलग ढाणीयों में आराम करने चले गए. रामदेव सिंह व करणीराम दोनों सेडू गूजर की ढाणी में आकर रुके और लेट गए. करीब 3 बजे दोपहर भौमियों के भेजे हुए कातिल रामेश्वर दरोगा व गोवर्धनसिंह ने बन्दूक से फायर कर सोते हुए करणीराम व रामदेव सिंह को गोलियों से भून दिया और फरार हो गए. उस दोपहर संभावित आसन्न जानलेवा हमले की चेतावनी उन्हें कुछ शुभचिंतकों ने दी थी और सुझाया था कि वे यहाँ से तत्काल अन्यत्र चले जाएँ परन्तु उन जाबाजों ने कायरों की भांति भागकर जान बचाने की अपेक्षा वीरों की भांति मृत्यु को सहर्ष वरण करना उचित समझा. वे हंसते-हंसते शहीद हो गए. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 45)
हत्या का समाचार सुनकर कुछ ही देर में हजारों की संख्या में जनसमूह इकठ्ठा हो गया. लोगों में भारी रोष व क्रोध फ़ैल गया. झाबर सिंह गिल ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई. इतने में जयपुर से सरदार हरलाल सिंह, कुम्भाराम आर्य व पुलिस महानिरीक्षक पहुँच गए. उन्होंने उत्तेजित जन समूह से शांति बनाये रखने की अपील की. लोग दोनों शहीदों की लाश लेकर विद्यार्थी भवन झुंझुनू पहुँच गए और 14 मई 1952 को वहीँ उनका अंतिम संस्कार किया. हर वर्ष इन शहीदों के निर्वाण दिवस पर गाँवों में मेले लगते हैं. इन दोनों शहीदों की मूर्तियाँ विद्यार्थी भवन झुंझुनू एवं जिलाधीश कार्यालय के सामने पार्क में स्थापित हैं जो इन दोनों शहीदों की अमर कीर्ति का बखान कर रही हैं. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 46)
करणी राम - रामदेव के बलिदान की चर्चा पूरे राजस्थान में फ़ैल गयी थी. विशेषकर शेखावाटी के किसानों ने इसे प्रेरणा और आदर्श के रूप में लिया. उनके दिल से भय मिट गया. वे अब जागीरदारों के कृत्यों का खुले आम विरोध करने लगे. गाँवों में करणी राम - रामदेव की शहादत के गीत प्रचलित हो गए थे. महिलाएं ये गीत गाती हुई अपने खेतों में जाती. (राजेन्द्र कसवा, p. 219)
दिवराला और अणतपुरा में गोली काण्ड 1952
1952 में शेखावाटी में सीकर जिले की तहसील श्रीमाधोपुर के गाँव दिवराला में ठाकुर नाम का ही रौब था जबकि आजादी आये पांच वर्ष हो चुके थे. करणी राम के बलिदान के बाद दिवराला के किसान भी बोलना सीख गए थे. सीकर मुख्यालय से 80 किमी. दूर पूर्व-दक्षिण में गाँव दिवराला और अणतपुरा पास-पास हैं. इनकी जमीन भी मिली-जुली है. दिवराला के राजपूतों को जब पता लगा कि जागीरदारी सचमुच जाने वाली है तो उन्होंने किसानों के खेतों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया. गाँव के किसान शंकर यादव ने बताया कि किसानों ने राजपूतों के अनाधिकृत कब्जे का विरोध किया. तब राजपूतों ने मांग रखी कि वे उपज का तीसरा हिस्सा लेंगे. किसानों ने इसका विरोध किया. उन्होंने साफ़ कह दिया कि उपज का छठा हिस्सा ही लगान में देंगे. इस पर तनाव बढ़ गया. राजपूत कब्ज़ा नहीं दे रहे थे तब करीब 70 किसान बैलों कि जोड़ी लेकर खेत जोतने चल पड़े. लगभग 200 राजपूत भी इकट्ठे हो गए. सब में सहमती बन गयी कि छठा हिस्सा ही लगान दिया जायेगा. लेकिन राजपूत इस समझौते से मुकर गए. जब अन्य किसान चले गए तो पुर्जी कि कोठी वाले खेत को जोत रहे किसानों पर राजपूतों ने हथियारों से आक्रमण कर दिया. गोली चलने से दिवराला के किसान छछू राम डागर, अणतपुरा के भगता राम, भूरा राम और जोधाराम की मौत हो गयी. भूरा राम की गर्दन तलवार से भी काट दी गयी. इस नृशंस हत्याकांड से दोनों गांवों में आतंक फ़ैल गया. भय इतना कि चरों किसानों के शवों को जोहड़े में ही जला दिया. सभी मृत किसान यदव जाती के थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 220)
आश्चर्य की बात है कि किसी भी ठाकुर को इस हत्याकांड में सजा नहीं हुई. दिवराला-अनतपुरा गाँव के चार यादव किसान ठाकुरों की गोली के शहीद हो गए परन्तु अभी तक गाँव में उनका कोई स्मारक नहीं है.(राजेन्द्र कसवा, p. 221)
करणी राम पर पुस्तक
पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम
लेखक: रामेश्वरसिंह
प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984
प्रकाशक: चंवरा शहीद स्मारक समिति, झुंझुनू (राजस्थान), मूल्य रु. 51/-
पुस्तक समीक्षा: प्रस्तुत पुस्तक में धरती के वीर पुत्र शहीद करणीराम अमर एवं गौरव गाथा अंकित है. लेखक ने सफलतापूर्वक जहां अपने नायक करणीराम के बहुविध गुणों, सिद्धांतों, आदर्शों एवं संकल्पों का चित्रण किया है वहां तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी विचारोत्तेजक परिचय कराया है. करणी राम को देव लोके हुए तीन दशकों से भी ज्यादा समय व्यतीत हो चुका है परंतु ऐसे महान पुरुष के जीवन के बारे में कोई विश्वसनीय प्रकाशन नहीं हुआ था. आज देश की वर्तमान परिस्थितियों में अलगाववादी शक्तियां देश के लिए एक जबरदस्त चुनौती दे रही हैं. ऐसे मौके पर शहीदों का स्मरण एवं उनकी उपलब्धियों की जानकारी समाज एवं राष्ट्र को दी जानी चाहिए ताकि राष्ट्र की अखंडता एवं सुरक्षा को कायम रखा जा सके, अतः वर्तमान परिपेक्ष में इस पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ जाती हैं.
श्री रामेश्वर सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं और शहीद करणी राम के आदर्श गांव भोजासर के ही निवासी हैं. उन्होंने शहीद करणी राम के बारे में तथा समसामयिक परिस्थितियों के संबंध में जो कृति प्रस्तुत की है वह वास्तव में सराहनीय प्रयास है. निश्चित रूप से युवा पीढ़ी इस पुस्तक से प्रेरणा ग्रहण कर समाज एवं राष्ट्र की सेवा में अग्रसर होगी.
मेरी मान्यता है कि राज्य सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की पुस्तकों को बच्चों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करें ताकि बच्चों के दिल में देश प्रेम की भावना संचारित हो और वे देश के उज्जवल भविष्य के निर्माण में सहायक हों.
- कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी, प्रधान संपादक, दैनिक नवज्योति, अध्यक्ष राजस्थान स्वतंत्रता सेनानी संगठन जयपुर
लेखक रमेश्वरसिंह का परिचय - गांव भोजासर के साधारण किसान परिवार में 31 जुलाई 1929 को जन्म लिया. चमरिया कॉलेज फतेहपुर से सन 1949 में इंटरमीडिएट परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर राजपूताना विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया. बिरला कॉलेज पिलानी से 1951 में b.a. तथा 1953 में महाराजा कॉलेज से m.a. पास किया. दोनों ही परीक्षाओं में विश्वविद्यालय की योग्यता सूची में सर्वोच्च स्थान मिला और दो स्वर्ण पदक प्राप्त किए. सन 1955 में प्रथम श्रेणी में कानून की परीक्षा पास की. अध्ययन के दौरान फतेहपुर व पिलानी में कई अछूतोद्धार कार्यक्रम चलाये और अछूतों के मोहल्ले में प्रौढ़ पाठशालायें चलाई.
सन् 1955 में राजस्थान प्रशासनिक सेवा में प्रवेश तथा सन् 1977 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति, सन 1976 में प्रशासक नगर परिषद अजमेर के पद पर उल्लेखनीय कर्तव्यपरायणता के लिए योग्यता योग्यता प्रमाण पत्र. जिलाधीश बांसवाड़ा, सवाई माधोपुर, सचिव राजस्थान राज्य विद्युत मंडल आदि पदों पर कार्य किया. वर्तमान में आयुक्त, भू प्रबंध विभाग में. जहां भी रहे, गरीब और बेसहारा लोगों को पूरी मदद करने की कोशिश की.
नोट: लेखक को डॉ. वीरेद्र सिंह द्वारा पुस्तक शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम उपलब्ध कराई गई है जिसका ऑनलाइन संस्करण यहाँ देखे - शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम
पिक्चर गैलरी
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शहीद करणीराम मील
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शहीद करणीराम मील और रामदेवसिंह गिल
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करणीराम मील के सहपाठी हरनन्द राम, हनुमाना राम अजाड़ी
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शहीद करणीराम मील का जन्म स्थान भोजासर
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शहीद करणीराम मील की धर्मपत्नी श्रीमती चावली देवी
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करणीराम मील की मामी चावली देवी
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करणीराम मील की बहन नारायणी देवी
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करणीराम मील का दोस्त भागसिंह सौंथली
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करणीराम मील के भाई डालूराम
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करणीराम मील के दत्तक पुत्र सरदाराराम
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करणीराम मील के चचेरे भाई राधाकृष्ण
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रामदेवसिंह गिल के परिवार को सांत्वना देते मुख्य मंत्री जयनारायन व्यास
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शहीद करणीराम मील के शोक संतप्त परिवार को सांत्वना देते मुख्य मंत्री जयनारायन व्यास
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करणीराम मील का हाईस्कूल चिड़ावा में पढ़ते समय का समूह चित्र, करणीराम मील कुर्सी पर बायें से दूसरे स्थान पर हैं. श्री प्यारेलाल गुप्ता जी प्रधानाध्यापक बीच में हैं.
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टीबी अस्पताल जयपुर का समूह चित्र, जो करणीराम के स्वास्थ्य लाभ कर अस्पताल से छुट्टी के समय लिया गया था.
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श्री मोहनराम अजाड़ी, करणीराम मील के मामा जिन्होने देश प्रेम की दिशा दी. आप डुंडलोद ठिकाने के प्रभावशाली चौधरी थे.
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पुलिस अधीक्षक हकीकत राय की विदाई पार्टी में मोहनराम अजाड़ी साफा उनके बाई तरफ साफा में
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गाँव चंवरा में शहीद स्मारक का शिलान्यास करते हुये तत्कालीन मुख्य मंत्री जयनारायण व्यास
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गाँव चंवरा शहीद करणीराम मील और रामदेव सिंह की मूर्तियाँ
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झुञ्झुनु में शहीद करणीराम मील और रामदेवसिंह गिल की मूर्तियाँ
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राजस्थान विधानसभा के भूतपूर्व अध्यक्ष और न्याय मंत्री श्री नरोत्तमलाल जोशी
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प्रारम्भिक अवस्था में विद्यार्थी भवन झुंझनु
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शेखा वाटी का मान चित्र
External links
- राजस्थान में भी एक बापू थे..ईदुनिया वीडियो
- जानें करणीराम जी और रामदेव जी के बलिदान की कहानी, जिन्होंने किसानों के लिए दे दी थी जान-Jhalko Jhunjhunu
संदर्भ
- ↑ Dr Pema Ram:Shekhawati Kisan Andolan Ka Itihas (शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास), Sri Ganesh Sewa Samiti, Jasnagar, District Nagaur - 341518, First Edition 1990, p. 88
- ↑ Dr Pema Ram:Shekhawati Kisan Andolan Ka Itihas (शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास), Sri Ganesh Sewa Samiti, Jasnagar, District Nagaur - 341518, First Edition 1990, p. 220
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, p. 187
- ↑ Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Shri Karni Ram Ek Amar Jyoti,p.15
- ↑ Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Amar Path Ke Pathik Shri Karni Ramji,p.27
- ↑ Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janm, Shaishav Aur Shiksha,p.6
- ↑ Rameshwar Singh Meel:Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janm, Shaishav Aur Shiksha,pp.1-9
- ↑ Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Shri Karni Ram Ek Amar Jyoti, pp. 18-20
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