Karpashv

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Karpashv (कारपश्व) Karpashva/Karapashva (कारपश्व)[1] is a gotra of Jats.[2] [3] in Uttar Pradesh.

Origin

Jat Gotras Namesake

Mention by Pliny

Pliny[4] mentions The nations of Scythia and the countries on the Eastern Ocean..... The rivers in their country that are the best known, are the Mandragæus and the Carpasus.

History

Karpashv Jats migrated from Mathura district in Uttar Pradesh, whose capital was at Karab. The founded Karpasika (कार्पासिक) city in Afghanistan. It is the modern Kapisha.[5]

In Mahabharata

Karpasika (कार्पासिक) country has been mentioned in Mahabharata (II.47.7). It is sanskrit of name of Kapiśa (=Kapisha) (Persian: کاپيسا), one of the 34 provinces of Afghanistan.

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 47 mentions the Kings who brought tributes to Yudhishthira: Karpasika (कार्पासिक) country has been mentioned in Mahabharata (II.47.7)[6].... O king, hundred thousands of serving girls of the Karpasika country, all of beautiful features and slender waist and luxuriant hair and decked in golden ornaments; and also many skins of the Ranku deer worthy even of Brahmanas as tribute unto king Yudhishthira.

जाट इतिहास

ठाकुर देशराज[7] ने महाभारत कालीन प्रजातंत्री समूहों का उल्लेख किया है जिनका निशान इस समय जाटों में पाया जाता है....कारपश्व, ताड्य, महा ब्राह्मण 25/1023 में इनका वर्णन है । यमुना के किनारे भूगोल के ‘विश्वांक’ में इनका पता बताया है । यमुना के 6-7 मील के अन्तर पर कारव गांव है, इसी के सन्निकट अथवा यही उसकी राजभूमि रही होगी और इस समय करवारा और खोखिया या खोखर कहलाते हैं । किन्तु खास कारव में आजकल हैगा जाट हैं ।

जाटों का विदेशों में जाना

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है .... उत्तरोत्तर संख्या वृद्धि के साथ ही वंश (कुल) वृद्धि भी होती गई और प्राचीन जातियां मे से एक-एक के सैंकड़ों वंश हो गए। साम्राज्य की लपेट से बचने के लिए कृष्ण ने इनके सामने भी यही प्रस्ताव रखा कि कुल राज्यों की बजाए ज्ञाति राज्य कायम का डालो। ....द्वारिका के जाट-राष्ट्र पर हम दो विपत्तियों का आक्रमण एक साथ देख कर प्रभास क्षेत्र में यादवों का आपसी महायुद्ध और द्वारिका का जल में डूब जाना। अतः स्वभावतः शेष बचे जाटों को दूसरी जगह तलाश करने के लिए बढ़ना पड़ा। .... बाल्हीकों ने अफगानिस्तान में बलख नाम से पुकारे जाने वाले नगर को अपनी राजधानी बनाया था। एक समूह ईरान में भी इनका बढ़ गया था जो आजकल आजकल बलिक कबीले के नाम से मशहूर है। याद रहे कबीला जत्थे और वंश को कहते हैं। यह बलिक आजकल मुसलमान हैं और सिदव प्रांत में रहते हैं। अच्छे घुड़सवार समझे जाते हैं। काश्यप गोत्री जाटों का एक जत्था इन्हीं बलिकों के पड़ोस में रहता है जो आजकल कास्पी कहलाता है। ईरान के सोलहुज जिले में कारापाया एक कबिला है। यह कारपश्व लोगों में से हैं। ये कारपश्व जाट मथुरा जिले से उठकर गए थे जहांकि उनकी राजधानी आजकल के कारब में रही थी। अफगानिस्तान में हमें महावन नामक परगना भी मिलता है। इसका नामकरण मालूम होता है इन्हीं कारपश्व लोगों ने किया होगा। फिर बिचारे वहां से भी सोलहुज जिला (ईरान) में चले गए होंगे। कारपाया लोग बड़े अच्छे घुड़सवार गिने जाते हैं। कहा जाता है कि आरंभ में यह इस जिले में केवल 800 कुटुंब लेकर आबाद हुए थे। आजकल भी यह इस सोलहुज जिले के अधिकारी हैं और मुसलमान धर्म का पालन करते हैं।

Notable persons

Distribution

External links

References

  1. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-308.
  2. Dr Pema Ram:‎Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.297
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. क-197
  4. Natural History by Pliny Book VI/Chapter 19
  5. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Navam Parichhed,pp.147-151
  6. शतं थासी सहस्राणां कार्पासिक निवासिनाम, शयामास तन्व्यॊ थीर्घकेश्यॊ हेमाभरण भूषिताः, शूथ्रा विप्रॊत्तमार्हाणि राङ्कवान्य अजिनानि च (II.47.7)
  7. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V,p.139
  8. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Navam Parichhed,pp.147-151

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