Kumar Singh Sogarwal

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Kumar Singh Sogarwal

Kumar Singh Sogarwal (Havildar) (06.01.1968 - 07.07.1999), Vir Chakra, is a Martyr of Kargil War from Uttar Pradesh. He was from village Baseri Kaji in district Agra in Uttar Pradesh. He became martyr on 07 July 1999 during Operation Vijay in Kargil War. He was in Unit-17 Jat Regiment of the Indian Army. He was awarded Vir Chakra for his daring actions of bravery on July 6-7, 1999 in recapturing Pinpal-1 and Pinpal- hills in Dras sector of Jammu and Kashmir.

हवलदार कुमार सिंह सोगरवल का जीवन परिचय

हवलदार कुमार सिंह सोगरवल

06-01-1968 - 07-07-1999

वीर चक्र (मरणोपरांत)

वीरांगना - श्रीमती बलवीर देवी

यूनिट - 17 जाट रेजिमेंट

पिंपल 2 का संग्राम

ऑपरेशन विजय

कारगिल युद्ध 1999

हवलदार कुमार सिंह सोगरवल का जन्म 6 जनवरी 1968 को, उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की फतेहपुर सीकरी तहसील के बसैरी काजी गांव में श्री रघुवीर सिंह सोगरवल एवं श्रीमती दर्यायी देवी के परिवार में हुआ था। वर्ष 1978 में वह भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट में रंगरूट के रूप में भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण के पश्चात उन्हें 17 जाट बटालियन में सिपाही के पद पर नियुक्त किया गया था। अपनी बटालियन में भिन्न-भिन्न परिचालन परिस्थितियों और स्थानों पर सेवाएं देते हुए वर्ष 1999 तक वह हवलदार के पद पर पदोन्नत हो गए थे।

"ऑपरेशन विजय" में, 6 जुलाई 1999 को, 17 जाट बटालियन की चार्ली कंपनी को मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 की पिंपल 2 नामक एक विशेषता पर अधिकार करने का कार्य सौंपा गया था। हवलदार कुमार सिंह 'चार्ली' कंपनी के एक सेक्शन में 2 नंबर थे। रात्रि के 11:00 बजे आक्रमण आरंभ हुआ। शत्रु की भारी गोलाबारी में, 1 नंबर सेक्शन कमांडर दो शत्रु संगरों (IMPROVISED BUNKERS) को नष्ट करने में सक्षम थे, किंतु इससे पूर्व ही, तोपखाने के गोले के छर्रे (SPLINTERS) लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसे विकट समय में हवलदार कुमार सिंह ने त्वरित स्थिति संभाली।

उन्होंने रॉकेट लांचर टुकड़ी को तैनात किया और प्रचंड फायर से शत्रु संगर को घेर लिया। उन्होंने स्वयं संगर के भीतर हथगोले फेंके और तत्पश्चात शारीरिक रूप से आक्रमण करके संगर को CLEAR कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने दूसरे संगर के भीतर हथगोले फेंके और अपने सेक्शन का आक्रमण करके उसे भी CLEAR कर दिया। इस प्रकार उन्होंने दो शत्रु संगरों को CLEAR कर दिया और तीन शत्रु सैनिकों को मार गिराया। किंतु इसके पश्चात उद्देश्य पर अपने सेक्शन को पुनर्गठित करते समय उनके सिर में घातक रूप से एक SPLINTER लग गया और वह वीरगति को प्राप्त हो गए।

हवलदार कुमार सिंह ने शत्रु के समक्ष अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की घोर उपेक्षा करते हुए, कर्तव्य से परे उच्च वीरता प्रदर्शित की और सर्वोच्च बलिदान दिया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः उद्देश्य पर अधिकार कर लिया गया। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

वीर-चक्र विजेता हवलदार कुमर सिंह सोगरवल

आगरा जिले के फतेहपुर सीकरी के पास तेरह मोरी बाँध से करीब तीन किमी दूर स्थित गाँव बसैरी काजी निवासी श्री रघुवीर सिंह सोगरवल के सुपुत्र १७ जाट रेजिमेंट के ४० वर्षीय हवलदार कुमर सिंह ने ६ एवं ७ जुलाई १९९९ की रात सुबह कश्मीर के द्रास सेक्टर में मुश्कोह घाटी की पिम्पल -एक और पिंपल-२ नामक पहाडियों से जो कारनामा कर दिखाया वह विस्मित कर देने वाला है. हवलदार कुमर सिंह की इस बहादुरी पर उनको मरणोपरांत वीर-चक्र के पुरस्कार से नवाजा गया है.

हवलदार कुमर सिंह की शहादत

आठवीं पास हवलदार कुमर सिंह सोगरवल १७ जाट रेजिमेंट में १९७८ में भरती हुए थे. सिपाही से हवलदार बनने के पीछे उनकी सेवा भावना और मेहनत थी. आपका विवाह १९७७ में नगला धनी के चौधरी साहब सिंह की सुपुत्री बलबिरी के साथ हुआ था. हवलदार कुमर सिंह के दो सुपुत्र और दो सुपुत्रियाँ हैं.

हवलदार कुमर सिंह की शहादत रंग लाई और दुश्मन को जान-माल की भारी क्षति उठाते हुए दुम दबाकर भागना पड़ा. शून्य से कम तापमान में हथियार बर्फ में चलाने और बचने के सामान समेत ४० किलो वजन के साथ १८००० फीट ऊँची चोटी पर १० घंटे चढ़ कर आधा सफर तय करने के बाद ख़ुद को दिन भर पत्थरों में समेटे रहना कितना दुष्कर है. दिन ढलने के समय ही फ़िर चढाई करके दुश्मन से करीब २० मीटर दूर पहुँचने के बाद हवलदार कुमर सिंह की टुकड़ी ने धावा बोल कर १६ घुसपेठियों को मार भगाया. इसके बाद पहाडियों को पुरी तरह मुक्त कराने के लिए १० घंटे तक घमासान युद्ध हुआ और पिंपल-१ और पिंपल-२ पर फतह पा ली गई, परन्तु जांबाज हवलदार कुमर सिंह की कीमत पर.

हवलदार कुमर सिंह की शहादत का मलाल है, तो उनके पराक्रम के कारण मिली फतह पर हर किसी को गर्व है. सेना के बख्तरबंद वाहन से तिरंगे में लिप्त हवलदार कुमर सिंह का शव तब गाँव में उतरा तो जमीं आसमान भी जैसे उदास थे. सैंकडों वृद्ध महिलाओं के हिलोरे लेते वात्सल्य ने खामोसी को करूण क्रंदन में बदल दिया. हवलदार कुमर सिंह के परिजनों के अलावा रिश्तेदार नातेदार, साथी सैनिकों के परिजनों और शुभ चिंतकों की लम्बी कतार ने श्रधा सुमन अर्पित किए.

गैलरी

सन्दर्भ

  • जाट समाज पत्रिका आगरा, सितम्बर-अक्टूबर 1999, p.81

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