Ladu Ram Kisari
Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur |
Ladu Ram Kisari (लादूराम किसारी) (?-1946) (Gotra=Tilotia) was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in year ..... at village Kisari in tahsil and district Jhunjhunu, Rajasthan. He had no son so he adopted Sumitra Singh, who was born in village of Kisari in Jhunjhunu district in the family of brother of Shri Ladu Ram Kisari on 3 May, 1930.
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....श्री लादूरामजी किसारी - [पृ.393]: आप मौजा किसारी (जयपुर) के तलोटिया गोत्र के चौधरी हनुता राम के द्वितीय पुत्र रत्न है। आपके बड़े भाई का नाम गणेशरामजी है। आपकी तीसरी स्त्री से एक पुत्र है। जिसका नाम कुंवर राजेंद्र सिंह है।
शेखावाटी के उन प्रसिद्ध जाट नेताओं में से हैं जिन्होंने अपने प्रशंसनीय त्याग अविरल परिश्रम से शेखावाटी के किसानों में जागृति का संख फूँक दिया। 1925 में पुष्कर जाट महासभा अधिवेशन से लौटकर आप उस जाट कार्यकर्ता मंडली में शामिल हो गए जो शेखावाटी के पिछड़े हुए जाटों को जागृति करने का बीड़ा उठा चुकी थी।
1932 में झुंझुनू जाट सभा के ब्रहत अधिवेशन के प्रबंध में आप का विशेष हाथ रहा और उस समय आप खजांची भी थे। शेखावाटी जाट किसान पंचायत शुरू होने से ही आप उसके आवश्यक अंग रहे। कई वर्ष तक आपने उक्त संस्था के प्रधानमंत्री पद पर बड़ी योग्यता से कार्य किया। आप की याददाश्त और तीव्र बुद्धि की साथियों पर गहरी छाया रही।
[पृ.394]: आप दो बार जेल भी गए। प्रथम बार आपको 1938 में .... पैदा करने के जुर्म में गिरफ्तार किया। परंतु 3 दिन बाद ही छोड़ दिया। दूसरी बार सन् 1939 में जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा चलाए गए प्रथम सत्याग्रह में आप प्रथम दलपति बनकर जेल गए और 7 माह तक जयपुर सीखचों में बंद रहे। वही आप बीमार हो गए और वही बीमारी बढ़ते-बढ़ते इस हालत पर पहुंच चुकी कि आप चलने फिरने से भी मोहताज हो चुके है। यद्यपि आप जीवन से निराश हो चुके हैं फिर भी यहां के अत्याचारी ठिकानेदारों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाने में कोई चीज उठा नहीं रखी।
आपकी मृत्यु ने यहां के किसान कार्य को विशेष नुकसान पहुंचाया। आप जैसे निस्वार्थ कार्यकर्ता इने गिने ही पाए जाते हैं। आप बहुत ही हंसमुख और विनयशील व्यक्ति हैं। सन 1946 में आप का देहांत हो गया।
लादूराम किसारी का जीवन परिचय
लादू राम का गाँव किसारी मंडावा क़स्बा के निकट तथा सरदार हरलाल सिंह के गाँव हनुमानपुरा के पड़ौस में था. लादू राम की प्रारंभिक मुलाकात चिमना राम से हुई. तत्पश्चात हरलाल सिंह और गोविन्द राम से संपर्क हुआ. आर्य समाज के प्रभाव के कारण वे बालिका शिक्षा पर जोर देते थे. झुंझुनू जिले में सन 1921 में चिमना राम सांगसी के घर बैठक हुई. इस बैठक में लादू राम भी सम्मिलित हुए. बैठक में तय किया कि समाज सुधार के कार्य किये जावें. सामंतों की मनमानी का विरोध किया जावे. यहीं से किसान आन्दोलन आगाज हुआ. लादू राम प्रत्येक स्तर पर सक्रीय रहे और संघर्ष किया.[2]
बालिका शिक्षा के प्रति उन्हें कितना लगाव था यह एक उदहारण से स्पस्ट हो जाता है. लादू राम के कोई संतान नहीं थी. उन्होंने अपने भाई की बेटी सुमित्रा को जनमते ही गोद लिया और कुछ वर्षों बाद उसको पढ़ने के लिए वनस्थली विद्यापीठ भेजा. वह कर्तव्य निष्ठ और दृढ संकल्प वाले व्यक्ति थे. उन्होंने मौन रहकर सामाजिक चेतना और राजनीतिक परिवर्तन के संघर्ष में अपूर्व योगदान दिया. [3]
आपका जन्म चौधरी हनूत राम के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ. आप शेखावाटी के उन प्रसिद्द जाट नेताओं में से थे जिन्होंने अपने त्याग और परिश्रम से शेखावाटी के किसानों में जागृति पैदा की. 1925 में पुष्कर जाट महोत्सव से लौटकर आप जाट कार्यकर्ता मंडली में शामिल हो गए. 1932 के झुंझुनू महोत्सव के प्रबंध में आपका विशेष हाथ रहा और उस समय आप खजांची थे. शुरू से ही आप शेखावाटी जाट किसान पंचायत के आवश्यक अंग रहे तथा इस संस्था के प्रधान-मंत्री पद पर बड़ी योग्यता के साथ काम किया. आपकी स्मरण-शक्ति और तीव्र बुद्धि की साथियों पर बड़ी छाप थी. आप दो बार जेल गए. प्रथम बार 1938 में और दूसरी बार 1939 में, जबकि आप जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा चलाये गए सत्याग्रह में प्रथम दल-पति बन कर गए. जेल में रहते आपका स्वास्थ्य ख़राब हो गया. बीमारी बढ़ती गयी और 1946 में देहांत होगया. [4]
सांगासी में बैठक वर्ष 1921
भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में आप भी प्रमुख व्यक्ति थे. [5]
राजेन्द्र कसवा[6]लिखते हैं कि सन् 1921 में शेखावाटी से भिवानी गया जत्था जब लौटा तो वह नई ऊर्जा से भरा था. गांधीजी से मिलने और अन्य संघर्षशील जनता को देखने के बाद, किसान नेताओं में स्वाभाविक उत्साह बढ़ा . सन् 1921 में चिमना राम ने सांगासी गाँव में अपने घर अगुआ किसानों की एक बैठक बुलाई. इस प्रथम बैठक में चिमनाराम और भूदाराम दोनों भईयों के अतिरिक्त हरलाल सिंह, गोविन्दराम, रामसिंह कंवरपुरा, लादूराम किसारी, लालाराम पूनिया आदि सम्मिलित हुए. पन्ने सिंह देवरोड़ और चौधरी घासीराम इस बैठक में नहीं पहुँच सके थे लेकिन आन्दोलन करने के लिए सबका समर्थन और सहयोग था. इस बैठक में निम्न निर्णय लिए गए:
- बेटे-बेटियों को सामान रूप से शिक्षा दिलाना
- रूढ़ियों, पाखंडों, जादू-टोना, अंध विश्वासों का परित्याग करना और मूर्तिपूजा को बंद करना
- मृत्युभोज पर रोक लगाना
- शराब, मांस और तम्बाकू का परित्याग करना
- पर्दा-पर्था को समाप्त करना
- बाल-विवाह एवं दहेज़ बंद करना
- फिजूल खर्च एवं धन प्रदर्शन पर रोक लगाना
इस बैठक के बाद भूदाराम में सामाजिक जागरण का एक भूत सवार हो गया था. वे घूम-घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे. अप्रकट रूप से ठिकानेदारों के विरुद्ध किसानों को लामबंद भी करने लगे. विद्याधर कुल्हरी ने अपने इस बाबा भूदाराम के लिए लिखा है कि, 'वह नंगे सर रहता था. हाथ में लोहे का भाला होता. लालाराम पूनिया अंगरक्षक के रूप में साथ रहता था. [7]
गोठडा (सीकर) का जलसा सन 1938
जयपुर सीकर प्रकरण में शेखावाटी जाट किसान पंचायत ने जयपुर का साथ दिया था. विजयोत्सव के रूप में शेखावाटी जाट किसान पंचायत का वार्षिक जलसा गोठडा गाँव में 11 व 12 सितम्बर 1938 को शिवदानसिंह अलीगढ की अध्यक्षता में हुआ जिसमें 10-11 हजार किसान, जिनमें 500 स्त्रियाँ थी, शामिल हुए. सम्मलेन में उपस्थ्तित प्रमुख नेताओं में आप भी थे. [8]
किसान सभा का कोषाध्यक्ष चुना 1946
किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. आपको जयपुर स्टेट की किसान सभा का कोषाध्यक्ष चुन लिया गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 203)
देहांत
जन आन्दोलन के इस नेता का देहांत 1946 में हो गया.
राजस्थान की जाट जागृति में योगदान
ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।
यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।
सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी। दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न
[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधानपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।
इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनहोने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।
सन्दर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.393-394
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 79
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 79
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.85
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 95
- ↑ विद्याधर कुल्हरी:मेरा जीवन संघर्ष, पृ.27
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 163
- ↑ ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1-2
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