Khinwani

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, जयपुर
Mahasati Dadi Khinwani Statue at Shimla

Khinwani (खींवणी) was a seven year girl of Saran clan of Shimla Sardarshahar village in Churu district of Rajasthan. She was engaged to Jaita Ram Sihag who died in war and Khinwani became sati in year 1588 AD. There is a grand temple built on this samadhi.

महासती दादी खींवणी (बीरा)

चूरू जनपद की सरदारशहर तहसील के गाँव शिमला में सारण जाट के घर जन्मी खींवणी बाई जब सात वर्ष की थी तो उसका वैवाहिक सम्बन्ध गिद्धासर गाँव (अब गैर आबाद) के सींवर जाटों के भांजे जैताराम सिहाग के साथ हो गया था। जैताराम सिहाग बड़ा ताकतवर था। गिद्धासर पिचकराई ताल से डालमान के बीच 5 किमी पर तथा शिमला ग्राम से दक्षिण-पश्चिम कोने में 4 किमी की दूरी पर बसा हुआ था। जैताराम सिहाग का शिमला में रिश्ता होने के कारण ये पशुधन को बिना लाग-बाग़ दिए रोजाना कुए पर मुफ्त में पिलाते थे। गाँव के सारण तो लड़की के रिश्ते की वजह से तथा अन्य लोग गाँव की लड़की का वैवाहिक सम्बन्ध हो जाने के कारण मना नहीं कर सकते थे परन्तु मन ही मन नाराज थे। जैताराम सिहाग को इस कृत्य से रोकने के लिए गाँव के एक नायक को तैयार किया था, वह भी शरीर में ताकतवर था तथा बन्दूक अदि चलाता था। दूसरे रोज जब जैताराम सिहाग पानी पिलाने पशुधन को लेकर शिमला गाँव के कुए पर पहुंचा तो उस नायक ने जैताराम सिहाग को ललकारा तथा पानी पिलाने से रोका एवं लाठी से वार किया। जैताराम सिहाग लाठी के वार को टालते हुए पीछे चलने लगा। संघर्ष करते हुए वह डेढ़ किमी दूरी तक चला गया, जहाँ शिमला से पश्चिम की तरफ टीला है। जैताराम के साथ एक बहुत बढ़िया वफादार कुत्ता भी था। कुत्ते ने संघर्ष में पूरा सहयोग दिया परन्तु अंत में वह नायक की गोली का शिकार हो गया। जैताराम का जबरदस्त संघर्ष हुआ परन्तु वह भी नायक की गोली का शिकार होकर सदा के लिए मृत्यु की नींद सो गया।

खींवणी कुंवारी सती हुई

जैताराम की मृत्यु का समाचार जब खींवणी को लगा तो वह सात वर्ष की बालिका असोज सुदी 7 विक्रम संवत 1645 (1588 ई.) को जैताराम सिहाग पर कुंवारी सती हो गयी। सती होते समय उसने शिमला के अपने सारण परिजनों को श्राप दिया कि तुम मेरे सुहाग की रक्षा नहीं कर सके इसलिए आपका इस गाँव में बधेपा (वृद्धि) नहीं होगी। यह वरदान दिया कि जो व्यक्ति मेरी धोक-पूजा करेगा तो इस क्षेत्र में चारों और विषैले गोहिरों से किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। कहते हैं यह चमत्कार अब तक बरकरार है।

महासती खींवणी का भव्य मंदिर

जैताराम सिहाग की समाधी स्थल पर जो शिमला - सरदारशहर रोड पर ऊँचे टीले पर महासती खींवणी का भव्य मंदिर बना है तथा नीचे की तरफ पहले पहल कुत्ते की समाधी बनी है। बिल्यूंबॉस रामपुरा तहसील सरदारशहर के सिहाग तथा घासला अगूणा तहसील तारानगर के सिहाग महासती के यहाँ बच्चो के शादी के बाद गठ्जोड़े की धोक लगाने आते हैं और अन्य कष्टों से मुक्ति की पूजा भी करते हैं। यहाँ हर वर्ष आसोज शुक्ल 7, माघ शुक्ल 7 एवं चित्र शुक्ल 7 को विशेष पूजा अर्चना होती है। हर वर्ष आसोज शुक्ल 7 को मेला लगता है। सिहाग जाटों के अलावा अन्य जातियां भी धोक-पूजा करती हैं लेकिन नायक, हरिजन तथा मुसलमान को सती दादी अपने यहाँ धोक-पूजा नहीं करने देती। महासती दादी खींवणी शराब एवं मांस का सेवन करने वाले से पूरी नाराजगी रखती है।

सन्दर्भ

यह खोजपूर्ण लेख जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा उद्देश्य जून 2013 (पृ.89-90) में प्रकाशित किया गया है जो घासला आथूणा के सेवानिवृत पटवारी प्रेम सिंह सिहाग ने अपने बहीभाट की जानकारी के आधार पर उपलब्ध कराया है। ये चित्र अरविंद भाम्बू द्वारा उपलब्ध कराये गए हैं।

पिक्चर गैलरी


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