Mangu Singh Malik
Mangu Singh Malik (1903-1993) was a freedom fighter from village Gajipur in Bijnor district of Uttar Pradesh. He was a follower of Subhash Chandra Bose.
जीवन परिचय
कोतवाली देहात। थाना क्षेत्र के ग्राम गाजीपुर निवासी मंगू सिंह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अपील पर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। वह जीवन भर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदर्शों को मानते रहे। थाना क्षेत्र किरतपुर के ग्राम गाजीपुर निवासी मंगू सिंह का जन्म सन 1903 को हुआ था। उनके पिता डूंगर सिंह क्षेत्र के संभ्रांत किसान थे। इसके बावजूद मंगू सिंह के मन में देशभक्ति की भावनाएं हिलोरे लेती रहती थीं। वह गांधीजी के विचारों से बेहद प्रेरित थे ।उसके बाद वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनुयाई हो गए थे। सन 1930 में दांडी यात्रा के दौरान उन्होंने नगीना में नमक बनाकर सत्याग्रह किया था। इसके अतिरिक्त वह क्षेत्र में क्रांतिकारी गतिविधियां चलाते थे तथा जनपद के कई क्रांतिकारी उनके संपर्क में रहते थे। अंग्रेजी शासन का दबाव होने पर वह क्रांतिकारियों को अपने घर में शरण भी देते थे ।
मंगू सिंह निरंतर क्रांतिकारी गतिविधियां करते रहे। मंगू सिंह के पौत्र ओमपाल सिंह बताते हैं कि उनके दादाजी बचपन में उन्हें सुभाष चंद्र बोस की कहानियां सुनाया करते थे । वह बताते थे कि उनकी इच्छा आजाद हिंद फौज में जाने की थी लेकिन पिता ने उन्हें ऐसा न करने को कहा था। नेता जी के आह्वान तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा के उदघोष के बाद हजारों युवा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ हो गए थे।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मंगू सिंह अंग्रेजी सरकार की आंखों में खटकते रहे। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 27 मार्च 1941 को न्यायालय ने उन्हें धारा 34 /35 के अंतर्गत छह माह कारावास की सजा सुनाई ।इसके अतिरिक्त उन पर 250 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। 6 माह बाद जब मंगू सिंह जेल से छूट कर आए तब वह फिर से देश की सेवा करने लगे। ओमपाल सिंह बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की बात सुनाते हुए मंगू सिंह भावुक हो जाते थे।
देश की आजादी के बाद सरकार द्वारा मंगू सिंह को पेंशन प्रदान की गई। मंगू सिंह ने सरकार से पेंशन नहीं ली तथा लिखित में पेंशन लेने से इंकार कर दिया ।उनका मानना था कि उन्हें पेंशन की कोई आवश्यकता नहीं है तथा यह धन देश के विकास में काम आए।
सन 1972 में उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने उन्हें ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया था।
सन 1993 में मंगू सिंह की मृत्यु हो गई थी।
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