Mohar Singh Punia
Mohar Singh Punia was Bhajanopadeshak and did extensive touring of villages to awaken the people. He was from village Jetpura Churu, born in the family of Jiwan Ram Punia. He was a Freedom fighter and a social worker.[1] He was elected MLA from Sadulpur Churu once as CPI (M) candidate in bypoll 1974.[2]
जीवन परिचय: कामरेड मोहरसिंह
गणेश बेरवाल[3] ने लिखा है.... वर्ष 1918 विक्रम संवत 1075 में ग्राम जैतपुरा तहसील राजगढ़ जिला बीकानेर (अब चुरू) में चौधरी जीवणराम पूनिया के घर मातेश्वरी श्रीमती नानी के गर्भ से मोहर सिंह का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ।
मोहर सिंह के पिता जीवण राम थे। वे वाणी के धनी थे और हालात को देखकर समाज में बदलाव और सुधार के लिए रचनाएँ करते थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर मोहर सिंह ने एक भजन मंडली बनाई जिसके सदस्य थे [4]-
- 1 मोहर सिंह
- 2 धुडनाथ जोगी, हमीरवास
- 3 जगमाल सिंह राठोड (वीरेंद्र के समसीर)
- 4 रिछपाल सिंह फगेडिया (लंबोर बड़ी)
- 5 कामरेड बृजलाल
- 6 कामरेड भागू राम बिस्सु (जिसने किताब के रूप में इस मंडली के भजनों का संकलन किया)
इस मंडली ने जनजागृति का कारी किया।
ठाकुरों के जुल्मों से तंग आकर सन् 1944 में 25 किसानों का एक जत्था टमकोर के आर्य समाज जलसे में आया जिसके सरगना चौधरी हनुमान सिंह बुड़ानिया एवं नरसा राम कसवा थे। मोहर सिंह और जीवन राम भी इस जलसे में आए थे। जीवन राम ने दूधवाखारा के लोगों को समझाया कि संघर्ष में सब साथ मिलकर रहें। राजगढ़ तहसील वाले भी आपका साथ देंगे। [5]
दूधवाखारा सम्मेलन – 1946 में यह सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 हजार के करीब आदमी थे। जिसमें रघुबर दयाल गोयल, मधाराम वैद्य, चौधरी हरीश चन्द्र वकील (गंगानगर), सरदार हरी सिंह (गंगानगर), चौधरी हरदत्त सिंह बेनीवाल (भादरा) और चौधरी घासी राम (शेखावाटी) शामिल थे। इस जलसे में मोहर सिंह भी सम्मिलित हुये थे। इस जलसे को चारों तरफ भारी समर्थन मिला। राजा को आखिर किसानों की अधिकतर मांगे माननी पड़ी।[6]
मोहर सिंह की डायरी के पन्नों से ....
नोट - 'जन जागरण के जन-नायक कामरेड मोहरसिंह' पुस्तक में गणेश बेरवाल ने कामरेड मोहरसिंह द्वारा लिखी गई डायरी (पृष्ठ 41- 62) प्रकाशित की है जो यहाँ दी जा रही है। डायरी में मोहर सिंह ने स्वतन्त्रता आंदोलन और जागीरदारों के शोषण के खिलाफ किए गए संघर्ष को रेखांकित किया है।
[p.41]: 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों की जीत हुई। मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया। मुगल बादशाह के दो पुत्रों के कटे हुये सिर जब उन्हें दिखाये गए तो उन्होने कहा कि मुझे मरना मंजूर है लेकिन अंग्रेजों की दास्ता स्वीकार नहीं। अंग्रेजों ने देसी रियासतों में राजाओं को अधिनस्त कर जागीरदारों को बड़े-बड़े अधिकार दे दिये। जनता पूर्णत: अशिक्षित थी। ऐसे समय में सयानों और तंत्र जानने वाले आदमियों की मूर्ख अशिक्षित जनता में बड़ी चल-बल थी। गांवों में जगह-जगह शीतला, भोमिया व मावली गुड़गांवा की वसाली आदि की बड़ी पूजा होती थी।
ऐसी हालत में वर्ष 1918 विक्रम संवत 1075 में ग्राम जैतपुरा तहसील राजगढ़ जिला बीकानेर (अब चुरू) में चौधरी जीवणराम पूनिया के घर मातेश्वरी श्रीमती नानी के गर्भ से मोहर सिंह का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ।
टमकौर में आर्य समाज का जलसा: उसी साल वर्ष 1918 में टमकौर नगर में आर्य समाज के जलसे में पिताश्री चौधरी जीवणराम पूनिया को आर्य-समाजी बनाया गया। यज्ञ (हवन कुंड) के सामने बैठाकर उनसे बुराइयां छोडने का संकल्प करवाया गया।
ग्रामीण जनता पर घोर अत्याचार: राजा के नीचे खालसा तथा जागीरी के अंदर दो किस्म के किसान थे। दोनों तरह के किसान ही मालगुजारी व लाग-बाग तथा सैंकड़ों प्रकार के बोझ के नीचे दबे हुये थे। किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए जाते थे। जमीन पर किसान के खातेदारी हक नहीं थे। राजा और जागीरदार जब चाहे किसान को गाँव से निकाल बाहर कर देते थे। जागीरी इलाके में जागीरदार के मकान के आगे से कोई घोड़ी या ऊंट पर चढ़कर नहीं निकल सकता था। जागीरदार के मरने के बाद उसके इलाके के सभी ग्रामीणों को दाढ़ी-मूंछ मुड़ानी पड़ती थी । जागीरदार के सामने किसान खात पर नहीं बैठ सकता था। ग्रामीण जनता पर घोर अत्याचार थे।
जागीरदारों से संघर्ष: वर्ष 1917 में ही रूस में समाजवादी सरकार बन गई थी। प्रथम विश्व तुद्ध में अंग्रेजों की विजय के बाद अंग्रेजों ने अपने सिपाहियों को वापस हिंदुस्तान भेजना शुरू कर दिया। लड़ाई में खुले में रहे सिपाही अपने गाँव में आकर जागीरदारों के दबाव व शोषण के नीचे से निकलना चाहते थे। फलस्वरूप आपसी संघर्ष शुरू हो गया।
ईधर देश में कई जगह अलग-अलग संगठन उभर रहे थे। उनमें प्रमुख थे - कांग्रेस, आर्य-समाज, जाट महासभा आदि। इसी समय 1920 में भिवानी में महात्मा गांधी का आना हुआ। शेखावाटी की किसान नेताओं का जत्था गांधी जी से मिला। चौधरी पन्ने सिंह देवरोड, पंडित तड़केश्वर पचेरी, चौधरी ताराचंद झारोड़ा, चिमना राम, भूदा राम सांगासी, नेतराम सिंह गौरीर, तथा गोविंदराम जी हनुमानपुरा जत्थे में थे। उन्होने गांधीजी से अनुरोध किया कि रियासती जनता में जागीरदारों के द्वारा अत्यधिक अत्याचार व जुल्म किए जा रहे हैं। हमारी जनता की भी कुछ मदद करो। गांधीजी ने कहा कि तुम संघर्ष शुरू करो देशी राजलोक परिषद तुम्हारी मदद करेगा। यह देशी राजलोक रियासतों में आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के तहत लोगों में जागृति और संघर्ष बढ़ाने के लिए संगठन था। जिसके प्रधान पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्री जयनारायण मंत्री थे।
[p.42]: पुष्कर में जाट महासभा का जलसा: वर्ष 1925 के पुष्कर (अजमेर) में जाट महासभा का जलसा हुआ। जिसमें महाराज किशनसिंह जी प्रधान बनाए गए थे। राजगुरु मदन मोहन मालवीय भी साथ थे। अजमेर में उनका भव्य जुलूस निकाला गया। इस जलसे का सारे राजस्थान में जबरदस्त प्रभाव देखने को मिला। जागीरदारों के दिलों में दहशत पैदा हो गई और किसानों का भारी उत्साह बढ़ा। रियासतों में जागीरदारों के खिलाफ यत्र-तत्र संघर्ष शुरू हो गया। उन्ही दिनों काफी स्थानों पर आर्य समाज पत्थर पूजा तथा अंधविश्वासों का विरोध कर रही थी और शिक्षा व संगठन का जोरदार प्रचार कर रही थी।
मंडावा में आर्य समाज का जलसा : सन 1917 में उन दिनों मंडावा के जागीरदार ने मंडावा के आर्य समाज (चौधरी जीवनराम, देवी बक्स के गांवों में खुली आर्य समाज मंडावा में कविता भजन 1927) के मंदिर के ताले लगा दिये। सेठ देवी बक्स सराफ़ के सानिध्य में आर्य समाज का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था। जागीरदार देवीबक्स सर्राफ के बहुत खिलाफ था। 1927 में आर्य समाज का जलसा मंडावा में रखा। 5000 ग्रामीण जनता इसमें सम्मिलित हुई। गाँव जैतपुरा में छतुसिंह शेखावत जलसे में चौधरी जीवन राम पूनीया को साथ लेकर पहुंचे। आर्य समाज के मंडावा मंदिर का ताला जनता द्वारा तोड़ दिया गया। मंडावा में बड़ा जबर्दस्त जलसा हुआ जिससे सारे शेखावटी और बीकानेर क्षेत्र में रोशनी फ़ैल गई।
साईमान कमीशन: 1928 में लाहोर में साईमान कमीशन आया। साईमान कमीशन के भारत आगमन पर जब विरोध प्रदर्शन में लाला लाजपत राय को लाठियों से पीटने से गिरे और मृत्यु हो गई। उसके विरोध में भगतसिंह ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सांडर्स को गोली से मार्कर लालाजी की मौत का बदला ले लिया।
जागीरी जुर्म के खिलाफ जन-जागृति: निरंतर 1927 से 1934 तक शेखावाटी में पिताश्री चौधरी जीवणराम जी ने शेखावाटी व बीकानेर जिले के लोगों में भजनों व मिसालों द्वारा शिक्षा, सामाजिक सुधार तथा छूआछूत को मिटाने के लिए जागीरी जुर्म के खिलाफ काफी जन जागृति पैदा की। इससे भविष्य में जुल्मों के खिलाफ संघर्ष में काफी योगदान मिला।
इधर उत्तर प्रदेश की जाट सभा ने भी किसानों को जगाने के लिए काफी योगदान दिया। कृषि कालेज बड़ौत, जिला मेरठ से तैयार किए कितने ही अध्यापकों को शिक्षा के प्रचार के लिए शेखावाटी में भेजा गया। उनमें प्रमुख थे मास्टर रघुवीर सिंह, मास्टर चंद्रभान, मास्टर हेमराज, मास्टर फूल सिंह, मास्टर हरफूल सिंह आदि। इनहोने जागीरदारों के जुल्मों की संकट की घड़ी में हिम्मत के साथ किसानों के लड़कों को पढ़ाया। शिक्षा प्रचार और अंधविश्वासों से किसान परिवारों को शेखावाटी में जागृत किया।
जागीरदार किसानों को तंग करने के साथ ही जकात, लगान आदि के प्रश्न पर व्यापार करने वाले महाजनों को भी तंग करते थे। महाजनों ने भी जागीरदारों के डर से किसानों को शिक्षा दिलवाना तथा जागृति पैदा करना आवश्यक समझा। शेखावाटी के सेठों ने जगह-जगह स्कूल-कालेज खोले।
[p.43]: जिसमें बिड़ला ने पिलानी में कालेज खोला। नवलगढ़, बगड़, खेतड़ी, अलसीसर, मलसीसर, बिसाऊ, मंडावा आदि में सेठों ने काफी स्कूल खोले। इन संस्थाओं में गरीब बच्चों को छात्रवृति दी जाती थी। बिड़ला हाई स्कूल के हैड मास्टर चौधरी रतन सिंह को 'शेखावाटी में जाटों की दुर्दशा' नामक किताब लिखने के कारण इलाके से ही निकाल दिया गया।
जागीरदारों के खिलाफ संगठन में जाटों के अलावा महाजन, सैनी, गुर्जर, ब्राह्मण, यादव (अहीर), हरिजन आदि सब जतियों के लोग संगठन में जुडने लगे व संगठन में भरोसा करने लगे।
दिल्ली में जाट महासभा का जलसा: वर्ष 1930 में जाट महासभा का जलसा दिल्ली में हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश के जाट नेता भी जलसे में पहुंचे। उन्होने उन नेताओं से भी निवेदन किया कि शेखावाटी में भी जागृति व शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने हमारा साथ दो तो उन्होने कहा कि कोई बहुत बड़ा जलसा रखो, हम सब वहाँ आएंगे तब वहाँ भी जागृति आएगी। यह तय किया गया कि बसंत पंचमी वर्ष 1932 में झुंझुनू में जाट सभा का बड़ा जलसा रखा जावे। इधर आर्य समाज भी सक्रिय था।
जाट महासभा का झुंझुनू कान्फ्रेंस: [p.44]: जाट महासभा का झुंझुनू कान्फ्रेंस बसंत पंचमी 1932 को हुआ। इस जलसे में 80 हजार आदमी व औरतें इकट्ठे हुये। जलसे में उपस्थित होने वालों में 50 हजार जाट और 30 हजार अन्य कौम के लोग थे। अन्य कौम के लोग भी जाटों से सहानुभूति रखते थे क्योंकि जाट जागीरदारों का मुक़ाबला कर रहे थे। पिलानी कालेज से प्रोफेसर, मास्टर अकान्टेंट आदि इस जलसे में पहुंचे। बिड़ला जी का रुख इस जलसे को सफल बनाने का था। जलसे को सफल बनाने वालों में पिताश्री जीवनराम जी भजनोपदेशक, पंडित हरदत्तराम जी, चौधरी घासीराम जी, हुकम सिंह जी, मोहन सिंह जी आदि ने गांवों में भारी प्रचार किया। चौधरी मूल सिंह जी, भान सिंह जी मुकाम तिलोनिया (अजमेर) आदि इस जलसे को सफल बनाने के लिए आए। उत्तर प्रदेश, हरयाणा से भी कफी लोग आए। अधिवेशन में जुलूस निकाला गया जिसमें चौधरी रिछपाल सिंह जी मुकाम धमेड़ा (उत्तर प्रदेश) से पधारे थे। वे जलसे के प्रधान थे।
[p.45]: इसी जलसे में मास्टर नेतराम गौरीर की बड़ी लड़की जो घरड़ाना के मोहर सिंह राव को ब्याही थी, ने लिखित में भाषण पढ़ा था। उस वक्त शेखावाटी में स्त्री शिक्षा झुञ्झुणु में शुरू हो चुकी थी। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए पिताश्री जीवन राम जी के निम्नांकित भजनों से बड़ा प्रोत्साहन मिला....
- सुनिए ए मेरी संग की सहेली
- रीत एक नई चाली। बहन विद्या बिन रह गई खाली री
- एक जाने ने दो वृक्ष लगाए सिंचिनिया भी एक माली
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री......
- मैं जन्मी तब फूटा ठीकरा – भाई जन्मा तब थाली री
- विद्या बिन रह गई खाली री
- भईया को पढ़न बैठा दिया, मैं भैंसा की पाली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- भाई खावे दूध पतासो मैं रूखी रोटी खाली री
- विद्या बिन रह गई खाली री.....
- भाई के ब्याह में धरती धर दी मेरे ब्याह में छुड़ाली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- भईया पहने पटना का आभूषण मैं पहनू नथ-बाली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- मेरा पति जब आया लेवण ने मैं पहन सींगर के चाली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- जब सासु के पैरों में लागी कपड़ों में उजाली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- देवरानी जिठानी पुस्तक बाँचे मेरे से मजवाई थाली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- मेरे में उनमें इतना फर्क था वो काली मैं धोली री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- जीवन सिंह चलकर के आयो बहन न डिग्री ला दी री
- बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
- सुनिए ए मेरी संग की सहेली रीत एक नई चाली
- बहन स्कूल में चाली री
चौधरी जीवन राम जी के इस गीत ने जादू का सा असर किया। गाँव-गाँव में लड़कियां पढ़ने स्कूल जाने लगी। आज के दिन स्त्री शिक्षा में झुंझुणु जिला राजस्थान में प्रथम है। झुंझुणु अधिवेशन से 4-5 जिलों में भारी जागृति फैली। इस जलसे में राजगढ़ तहसील के 17 आदमी गए थे। महाराजा गंगा सिंह ने हमारे पीछे सी.आई.डी. लगा राखी थी। इस जलसे ने मेहनतकशों व अन्य क़ौमों में जागृति पैदा
[p.46]: कर दी। जागीरदारों के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठने लगी और शेखावाटी किसान आंदोलन तेज हो गया। इस दौरान शेखावाटी के नेतागण निम्नांकित थे-
- चौधरी घासी राम,
- चौधरी ताराचंद,
- नेतराम जी गौरीर,
- चौधरी तारा सिंह,
- सरदार हरलाल सिंह,
- पन्ने सिंह देवरोड,
- चौधरी चिमना राम,
- विधायक भूदाराम जी कुलहरी, सांगसी,
- चौधरी गुरमुख राम, दौलतपुरा,
- चौधरी ताराचंद जी झारौड़ा, आदि।
जनता को जगाने में संघर्ष करते भजनोपदेशक पिताश्री जीवन राम आर्य, भजनोपदेशक पंडित दंतू राम (मुकाम पोस्ट डाबड़ी, त. भादरा, गंगानगर) साथी सूरजमल (नूनिया गोठड़ा), तेजसिंह (भडुन्दा), साथी देवकरण (पलोता), स्वामी गंगा राम, हुकम सिंह, भोला सिंह आदि थे। गाँव-गाँव में प्रचारकों की मंडलियाँ प्रचार में जुटी हुई थी जो जनता को जागृत कर रही थी। इस प्रकार शेखावाटी में जन आंदोलन की लहर सी चल पड़ी।
दूधवाखारा आंदोलन (1943-1946): [p.55]: दूधवाखारा में जमीन तथा कुंड जब्त करना, जमीन से बेदखल करना, हनुमान बुड़ानिया तथा उसके खानदान को बार-बार जेलों में डालना जैसी घटनाएँ हुई। ठाकुर सूरजमालसिंह गाँव से बुड़ानियों को निकालना चाहता था। ठाकुर के ऊपर महाराज सारदूल सिंह का वरदहस्त था। सूरजमाल सिंह महाराज सारदूल सिंह के ए. डी. सी. थे, इसलिए सूरजमाल सिंह पूरे घमंड में थे।
ठाकुरों के जुल्मों से तंग आकार सन् 1944 में 25 किसानों का एक जत्था टमकोर के आर्य समाज जलसे में आया जिसके सरगना चौधरी हनुमान सिंह बुड़ानिया एवं नरसा राम कसवा थे। मोहर सिंह और जीवन राम भी इस जलसे में आए थे। जीवन राम ने दूधवाखारा के लोगों को समझाया कि संघर्ष में सब साथ मिलकर रहें। राजगढ़ तहसील वाले भी आपका साथ देंगे।
महाराज सारदूल सिंह ने सूरजमाल सिंह की मदद के लिए त्रिलोक सिंह जज को भेजा। और आदेश दिया कि तुम जाकर किसानों को बेदखल कर दो। इसके बाद दूधवाखारा में कुंड व जमीन कुर्क कर ली गई, परंतु किसानों ने गाँव नहीं छोड़ा और गाँव में ही जमे रहे। हनुमान सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। हनुमान सिंह ने भूख हड़ताल शुरू कर दी तो उनको छोड़ दिया गया। गर्मियों के दिनों में महाराज से
[p.56]: मिलने दूधवाखारा के किसानों का जत्था गया। उन्होने कहा, “राजन हमारे ऊपर जुल्म बंद करवादो।“ राजा ने उनकी बात न मानी बल्कि उन्हें फटकार दिया। वापिस आते समय रतनगढ़ स्टेशन पर हनुमान सिंह को गिरफ्तार करलिया। कुछ दिनों बाद रिहा भी कर दिया गया। वर्ष 1944 से 1946 तक इसी प्रकार गिरफ्तारियाँ होती रही।
8 अप्रेल 1946 को बीकानेर शहर में राजगढ़ के किसानों का काफी बड़ा जुलूस निकला जो की दूधवाखारा के किसानों के हिमायत के लिए निकाला गया था। लोगों को गिरफ्तार किया गया परंतु कुछ दूर लेजाकर छोड़ दिया गया।
10 अप्रेल 1946 को शीतला मंदिर चौक राजगढ़ में किसानों का बड़ा जुलूस निकला। इसमें पुलिस की तरफ से भयंकर लाठी चार्ज हुआ जिससे काफी किसान घायल हुये। इस लाठी चार्ज की खबर बहुत से अखबारों ने निकाली। 12 अप्रेल 1946 के हिंदुस्तान में राजगढ़ के लाठी चार्ज की खबर छपी। इसके बाद जलसों का एक नया दौर आया।
(1) दूधवाखारा सम्मेलन – 1946 में यह सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 हजार के करीब आदमी थे। जिसमें रघुबर दयाल गोयल, मधाराम वैद्य, चौधरी हरीश चन्द्र वकील (गंगानगर), सरदार हरी सिंह (गंगानगर), चौधरी हरदत्त सिंह बेनीवाल (भादरा) और चौधरी घासी राम (शेखावाटी) शामिल थे। इस जलसे में मोहर सिंह भी सम्मिलित हुये थे। इस जलसे को चारों तरफ भारी समर्थन मिला। राजा को आखिर किसानों की अधिकतर मांगे माननी पड़ी।
(2) नेशन गाँव का जलसा: मई माह 1946 में नेशल (राजगढ़) गाँव में बहुत बड़ा जलसा हुआ। जलसे में मोहर सिंह मुख्य वक्ता थे। इस जलसे में 4-5 हजार व्यक्ति इकट्ठा हुये। इस जलसे का चारों तरफ बड़ा अच्छा असर हुआ।
(3) घुमाना गाँव का जलसा - घुमाना गाँव रतनगढ़ तहसील से अढ़ाई कोस अगुना स्थित है। जलसे का आयोजन हो रहा था कि जागीरदार के 350 लोगों ने जलसे पर हमला करने की सोची और गढ़ से निकले। करणी माता की जय बोलकर मंदिर के आगे जलसे की ओर बढ़े। जागीरदारों के नारे सुनकर कार्यकर्ताओं में एक कुरड़ा राम की की माताजी ने जलसे में आकर पूछा कि उनके पास लठियाँ हैं कि नहीं, उन सब के पास लठियाँ थी जो देखकर बड़ी खुश हुई और उनकी पीठ थपथपाई। थोड़ी दूर जागीरदार चले लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि जलसे में बहुत आदमी हैं तो वे चुपचाप वापस चले गए।
(4) लोहा ग्राम का जलसा – [p.57]: तहसील रतनगढ़ से 8 कोस (?) पश्चिम में लोहा ग्राम अवस्थित है, जिसमें टीकूराम बुड़ानिया के प्रयास से बड़े जलसे का आयोजन किया गया। यह बहादुर सिंह एस. पी. का गाँव था। इस जलसे में भी काफी संख्या में जागीरदार, किसानों पर हमला करने के उद्देश्य से गढ़ से करणी माता की जय बोलकर निकले। जलसा आयोजन स्थल से पश्चिम की ओर एक जोहड़ लगता है, जिसके पश्चिम की तरफ जागीरदारों ने अपना मंच लगाया। गोपीदान चारण उनका मुख्य वक्ता था, जबकि हमारे जलसे में चौधरी हरीशचन्द्र वकील (गंगानगर), चौधरी बहादुर सिंह भजनोपदेशक (फेफाना) रघुवर दयाल गोयल, सरदार हरी सिंह तथा मोहर सिंह उस जलसे में प्रमुख वक्ता के रूप में मौजूद थे। जागीरदारों का बड़ा हुजूम देखकर कुछ लोग भागने की चेष्ठा करने लगे तो मोहर सिंह ने खड़े होकर लोगों को ढाढ़स बँधाया तब लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ गए। आखिरकार जागीरदार वापस चले गए। इस जलसे में एस. पी. जसवंत सिंह शांति स्थापना के लिए आ पहुंचे थे। यह जलसा बड़ा शानदार हुआ, चारों तरफ जलसे की धूम मच गई।
(5) श्री गंगानगर व कर्णपुर के जलसे - श्री गंगानगर, लालगढ़ जाटान व कर्णपुर में भी तगड़े जलसे हुये। चारों तरफ जलसों की धाक जाम गई। मोहर सिंह इन जलसों में मौजूद थे।
(6) रायसिंहनगर का जलसा – रायसिंहनगर के जलसे में बिकानेर डिवीजन के बहुत से आदमी शामिल थे। यह सबसे बड़ा जलसा था। यह इलाका पंजाब से आए सरदारों- सिखों का था। इस जलसे में हजारों आदमियों ने भाग लिया। लोगों में भारी जोश था। सरदार अमर सिंह जलसे के संचालक थे। इस जलसे में मास्टर बेगाराम जी (अबोहर), पंजाब कांग्रेस के प्रधान पंडित जी, रामचन्द्र जैन, चौधरी ख्यालीराम गोदारा, आदि प्रमुख थे। जब मोहर सिंह जलसे में बोल रहे थे तभी जनता बहुत उत्साहित थी कि इतने में दुधवा खारा के किसान नेता हनुमान सिंह के बड़े भाई बेगा राम बीकानेर जेल से रिहा होकर समय पर जलसे में पहुँच गए। हमने उनसे कहा कि दुधवा खारा जाकर अपने बच्चों को संभालो, जलसा तो चलता रहेगा हम संभाल लेंगे। बेगाराम दुधवा खारा जाने की मंशा से रेलवे स्टेशन पर टिकट लेने आए। उनके हाथ में तिरंगा झण्डा था, जो कि महाराजा के आदेश से सभा मंच के सिवाय बाहर लगाना प्रतिबंधित था। पुलिस झंडे सहित बेगा राम पर टूट पड़ी और घसीट कर रेस्ट हाउस ले आए। वहाँ उसे लेटाकर उसकी छाती पर दो लठियाँ रखकर दो पुलिस वाले बैठ गए। इधर सारे घटनाक्रम को एक साधू पैनी नजर से देख रहा था । वह भाग कर स्टेज पर आया और कहा कि आपके एक आदमी को पुलिस रेस्ट हाऊस में बुरी तरह
[p.58]: पीट रही है। यह सुनकर दसों हजार आदमी खड़े हो गए और सारे जलसे में गुस्से की लहर दौड़ गई। सभी आदमी रेस्ट हाऊस की तरफ दौड़ पड़े। इस मौके पर राजगढ़ तहसील से 84 आदमी जलसे में गए हुये थे।
बीरबल मोची की सहादत: जलसे में श्री गंगानगर का रहने वाला बीरबल जो रायसिंहनगर में ब्याहा था, वो भी जलसे में आया हुआ था। इस सारे घटनाक्रम को देखकर उससे रुका नहीं गया, अतः वह रेस्ट हाऊस में घुस गया तथा कोने में पड़े हुये तिरंगे झंडे को उठाकर पुलिस से धक्का मुक्की करते हुये बाहर आ गया। इधर सादुलसिंह इन्फेंट्री ने, जो रेस्ट हाऊस से पश्चिम की तरफ ठहरी हुई थी, खतरे की सीटी सुनकर दीवार फांद कर रेस्ट हाऊस में आकर मोर्चा ले लिया। जो आदमी जलसे में राजगढ़ से आए उनसे चार कदम पश्चिम की तरफ चौधरी जीवन राम कडवासरा, उनसे पश्चिम की तरफ नोरंगराम (हमीरवास) तथा उनसे पश्चिम तरफ गाड़ी के पास चौधरी भादरा वाले खड़े हो गए। इतने में 17 गोलियां चली और रेस्ट हाऊस से झण्डा लेकर आते हुये बीरबल की जांघ में एक गोली लगी कि तत्काल ही उनका मुंह स्टेशन की तरफ फिर गया, तभी दूसरी गोली दूसरी जांघ में आकार लगी। उस गोली का हमें पता नहीं लगा, इतने में गोलियां चलनी बंद हो गई थी। पहली जांघ में जो गोली लगी थी, उसके ऊपर जीवन राम ने अपनी धोती फाड़ कर मरहमपट्टी कर दी, लेकिन दूसरी गोली का हमें पता नहीं लगा क्योंकि उसके ऊपर कमीज था। खून नीचे की ओर बहने लगा। बीरबल को मंच के पास लाया गया। बिहारी लाल कमिश्नर ने डाक्टरों और दूकानदारों को कह रखा था कि इनको कोई सहायता नहीं दी जावे। इलाज के अभाव में शाम 4.30 बजे बीरबल खत्म हो गया। इस सहादत का पता लगा तो चारों तरफ से आकर 15-20 हजार लोग रायसिंह नगर में उमड़ गए। सवेरे जब बीरबल मोची को दाह-संस्कार के लिए शमशान घाट की तरफ ले जाने लगे तभी बीरबल की पत्नी का गंगानगर से तार आया कि जब तक मैं अंतिम दर्शन न करलूँ दाह-संस्कार नहीं करें। सब लोग सकते में पड़ गए। इतने में बीरबल का मामा तथा उसके मामा का बेटा आगे आए और कहने लगे कि इसका दाह संस्कार कर दो, हम दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं।
[p.59]: बीरबल की बहू पहुंची तो उसका स्टेज पर मास्टर तेजराम ने माला डालकर स्वागत किया। वह बोली – "मेरे पति देश के लिए शहीद हो गए हैं मुझे संतोष है। मेरे लिए जमीन व आसमान मिल गए है"।
बीकानेर महाराज ने अपने राज में धारा 144 लगा दी। हम 84 आदमी जब स्टेशन पर पहुंचे तो जगदीश एस. पी. स्टेशन पर खड़े थे। वे हमारे तिरंगे झंडे को देख रहे थे। उन्होने हाथ जोड़कर कहा – “बेटो मेरी शान रखो, झंडे राजा ने माना कर रखे हैं”। मोहर सिंह ने कहा – झण्डा ज्यादा ऊंचा नहीं रखेंगे, कुछ ऊंचा रखकर ही जुलूस निकाल लेंगे और आपकी शान रख देंगे”। इस जलसे का प्रचार कई प्रान्तों में हुआ।
(7) नोहर, हनुमानगढ़, सुजानगढ़ के जलसे – इन जलसों से इन क्षेत्रों में प्रजा परिषद की साख बढ़ी। इन जलसों का आयोजन मुख्य रूप से मोहर सिंह द्वारा ही किया गया था और इनकी सफलता में मोहर सिंह का विशेष योगदान रहा।
(8) सेहला, सातड़ा, अजीतसर, दाऊदसर , काकलासर, मेहरासर के जलसे – इन जलसों में लोगों को जगाने के लिए प्रजा-परिषद के सदस्यता फार्म भरे गए। कांगड़ ग्राम (रतनगढ़) में जलसा करने के बाद प्रजा-परिषद के 200 फार्म भरे गए और प्रजा-परिषद की शाखा खोली। इन सभी जलसों में नोरंगराम (हमीरवास) , चंदगीराम (गागड़वास), रूप राम, विद्यार्थी भवन के संचालक शीश राम (हरयाणा) भी मोहर सिंह के साथ थे। कांगड़ के बाद थकावट के कारण एक सप्ताह के लिए गाँव गया।
प्रजा-परिषद की बैठक का आयोजन बीकानेर में हुआ, मोहर सिंह उसमें सम्मिलित हुये। प्रजा-परिषद के दफ्तर में थानेदार गिरफ्तारी के लिए आ गया जिसे रघुवर दयाल गोयल प्रधान बीकानेर रियासत प्रजा-परिषद ने धमका कर दफ्तर से निकाल दिया। थानेदार चौधरी हरदत सिंह को गिरफ्तार करने के लिए आया हुआ था, जो मुंसिफ़ (जजगिरी) को छोडकर प्रजा-परिषद में शामिल हुये थे। दूसरे दिन हरदत सिंह को हम सभी ने सड़क पर लेजाकर गिरफ्तार करवा दिया।
दूसरे दिन चौधरी पन्ना लाल के घर मोहर सिंह सोये हुये थे। तभी पुलिस फोर्स ने आकर मकान को घेर लिया और मोहर सिंह को गिरफ्तार कर कोतवाली ले गए जहां जसवंत सिंह एस. पी. बैठे हुये थे। रात को मोहर सिंह को धोके से एक तंग कोटरी में लेजाकर ताला जड़ दिया। कोटरी में पेशाब का डब्बा पड़ा था और एक फटा हुआ कंबल पड़ा था।
[p.60]: मोहर सिंह ने बड़ी मुश्किल से रात काटी। दूसरे दिन अदालत लेजाकर मोहर सिंह को जेल भेज दिया। यहाँ प्रजा-परिषद के कार्य-कर्ता पूर्व से ही गिरफ्तार थे यथा, चौधरी जीवनराम (राजगढ़), नानुराम योगी (गंगानगर), चौधरी राम लाल (सरदार गड़िया), हरिदत सिंह (पूर्व मुंसिफ़), बालचंद, हीरा लाल आदि। मोहर सिंह को 4 महीने जेल में रहना पड़ा।
राजगढ़ आंदोलन - बीकानेर से राजगढ़ आंदोलन शुरू करवाया गया। एक दिन बीकानेर जेल में 22 नंबर वर्ाड के पश्चिम में बनी हुई होदी (कुंड) पर चौधरी हरदत सिंह, सरदार गुरुदयाल सिंह और मोहर सिंह बैठे थे। हरदत सिंह ने कहा कि मोहर सिंह जेल में ही रहेंगे या कभी छूट भी जाएंगे। मोहर सिंह ने कहा की जनता सत्याग्रह करे तो छूट सकते हैं। तब हम तीनों ने अपने-अपने इलाके से सत्याग्रह शुरू करवाने का निर्णय किया। राजा पर दबाव पड़ेगा तो अपने को छोड़ेगा। मोहर सिंह ने बैरक में आकर खून से राजगढ़ के लिए चिट्ठी लिखी जो प्रजा-परिषद राजगढ़ के कैशियर चौधरी रामलाल सिंह कड़वासरा (नेशल) के नाम से रवाना की गई थी। इस चिट्ठी को बाहर पहुँचाने के लिए हमें बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। इस चिट्ठी में मोहर सिंह ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, जिसमें पिताश्री चौधरी जीवणराम , ताराराम स्योराण, भानी राम (जैतपुरा), गुगनाराम, (बैरासर), उदमी राम (बैरासर छोटा), जीराम , लालचंद (हमीरवास), टीकू राम, हेमा राम (बींजावस), आदि कई साथियों के नाम थे। चौधरी मुख राम, लक्ष्मण राम (बैजुआ) के नाम इसमें थे। मोहर सिंह ने लिखा था -- "हम तो जेल में चाहे सड़ कर मर जाएँ पर तुम चूड़ी पहनकर चुंदड़ी ओढ़कर घरों में घुस जाओ या हिम्मत है तो सत्याग्रह करो"। घोड़े से यह चिट्ठी जैतपुरा पहुंचाई गई। जैतपुरा में उस समय कई आदमी बैठे थे तब उनके सामने चिट्ठी खोली गई। तारा राम स्योराण तथा भानी राम लांबा ने कहा कि लिखा तो बहुत सख्त है पर किया क्या जाए। इस पर पिताश्री जीवण राम ने कहा कि हिम्मत है तो चन्दा इकट्ठा करो ओर सत्याग्रह शुरू करवाओ। आस-पास के 20-30 गांवों से चंदा इकट्ठा किया गया जो 18750 रुपये हुआ औए इसके साथ ही 25000 फार्म जो पहले भरवाये गए थे जेल जाने से पूर्व, उनका सदस्यता शुल्क 6350 रुपये शामिल करके 25000 रुपये इकट्ठा हुये। पिताश्री जीवण राम ने ये रुपये करमानन्द तथा दीपचन्द को भिजवाए।
[p.61]: उधर दोदराम जाखड़ के नेतृत्व में सत्याग्रह की अलख गुड़ान गाँव से जलाई। इसके बाद श्योकरण भाकर (चांदगोठी) के सानिध्य में आयोजन हुआ। सुलखनिया, नोरंगपुरा, भैंसली आदि गांवों में प्रचारार्थ दौरे शुरू हो चुके थे। इस प्रकार सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। मार्च.... में पहला जत्था राजगढ़ गया जिसे बीकानेर जेल भिजवा दिया। उस जत्थे द्वारा जेल दरवाजे पर नारेबाजी की गई। हमारे को दूध सप्लाई करने वाले वार्डन जीतू खां ने आकर खबर दी कि राजगढ़ से सत्याग्रहियों का पहला जत्था आ गया है। हरदत सिंह, गुरु दयाल सिंह ने छोड़ी छाती की तो मोहर सिंह ने कहा कि अब यहाँ शुरू हो गया तो आपके यहाँ भी हो जाएगा। तीन जत्थे आए, जिसमें चाँदगोठी तथा पास के क्षेत्र के आदमियों की अधिकता थी, ये बीकानेर जेल आ गए।
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के मौके पर इन्हें तो छोड़ दिया परंतु मोहर सिंह को 7 फरवरी 1948 को रिहा किया गया तो बीकानेर से राजगढ़ और फिर राजगढ़ से कालरी गए। उसके बाद बेजुआ तथा काफी गांवों का दौरा किया। किसान सभा का निर्माण – अप्रेल 1948 में टीकमाणी धर्मशाला राजगढ़ में प्रजा-परिषद छोडकर किसानसभा का निर्माण किया गया। किसनसभा के गठन में निम्न लोग प्रमुख थे –
गुगनाराम (बैरासर), ताराराम स्योराण (जैतपुरा), जीवण राम (जैतपुरा), भानी राम लांबा (ढाणी मौजी), लालचंद तथा जीराम (हमीरवास) , छैलू राम (हमीरवास),
[प.62] चंदगी राम (गागड़वास), स्योलाल (सुरतपुरा), पृथ्वीसिंह व पूर्ण राम (मूँदी) , रूपचन्द (बीसलाण), जमादार (डोकवा) , सुरतपुरा, बींजवास, बैजुआ आदि प्रमुख गांवों के लोग व किसान ये सब ने मिल कर किसान सभा की सदस्यता अभियान में जुट गए तथा राजगढ़ तहसील में किसानों के जलसे किए गए।
किसानसभा के प्रमुख जलसे –
- 1 गाँव दादरेवा में नाथूराम मिर्धा, घासी राम (झुंझुणु) तथा माघारम वैद्य (बीकानेर) तथा मोहर सिंह ने विचार व्यक्त किए।
- 2 जैतपुरा में जलसा
- 3 गालड का जलसा
- 4 ढिगारला का जलसा
- 5 हमीरवास का जलसा
- 6 नेशल का जलसा
- 7 ढ़ाना का जलसा
- 8 रामसरा ताल का जलसा
अंत में प्रजा-परिषद के कार्यकर्ता किसान सभा में मिलते गए। किसानसभा के बाद पूरे चुरू जिले में जलसे किए और जिला चुरू का प्रधान किसान सभा सूरजराम (जयसिंहसर) को बनाया तथा मंत्री मोहर सिंह (जैतपुरा) को बनाया गया।
मार्क्सवाद से जुड़े
गणेश बेरवाल[7] ने लिखा है ...मोहर सिंह के पिता जीवन राम शेखावाटी के मशहूर भजनोपदेशक थे। उन्होने भजनों के माध्यम से आम आदमी को सामंतशाही व अङ्ग्रेज़ी साम्राज्यवाद के खिलाफ जागृत करने का महान काम किया। "अखिल भारतीय किसान सभा" की राजस्थान इकाई का गठन करने में उन्होने अपना योगदान दिया। सन् 1952 में सीकर में "राजस्थान किसान सभा" के स्थापना सम्मेलन के आयोजन हेतु कामरेड त्रिलोक सिंह व चौधरी घासी राम के साथ उन्होने महती भूमिका निभाई। इसी के साथ वे किसान सभा के नेतृत्व में स्थापित हो गए। थोड़े दोनों बाद मोहर सिंह कम्युनिष्ट पार्टी के सदस्य बन गए। वर्ष 1964 में भारत की कम्युनिष्ट पार्टी (मार्क्सवाद) के गठन के साथ ही वे सी. पी. आई. (एम) में शामिल हो गए।
वे दो बार विधायक चुने गए। विधान सभा मेें उन्होने न केवल राजगढ़ (चुरू) अपितु पूरे राजस्थान के आम आदमी की आवाज बन गए।
मोहर सिंह के सहयोगी
गणेश बेरवाल[8] ने मोहर सिंह के सहयोगियों और राजगढ़ किसान सभा के मुख्य कार्यकर्ताओं की सूची निम्नानुसार दी है ...
- Ramlal Kadwasra (Subedar), Neshal
- Chandagi Ram Punia, Dhani Mauji
- Ramdhan Punia, Mundital
- Shyodan Beniwal, Mundital
- Ami Lal Punia, Suratpura
- Gugna Ram Punia, Captain, Bairasar Bara
- Girdhari Ram Punia, Jaitpura
- Bhani Ram Lamba, Jaitpura
- Piru Ram Kaswan, Chanana Chhota
- Ram Swarup Rahad, Lambor Kheri
- Bhola Ram Moond, Lambor Chhoti
- Chimana Ram Punia, Bairasar Bara
- Ganga Ram Sunda, Thirpali Bari
- Surja Ram, Mahlana
- Ram Chandra Jangir, Gire Ka Bas
- Lichhaman, Beenjawas
- Basti Ram Jakhar, Kharia Bas
- Ganpat Ram Punia, Beijwa
- Bhani Ram Punia , Suratpura
- Kurda Ram Punia, Bhamasi
- Bhani Ram Syoran, Dokwa
- Naurang Ram, Budhawas
- Balla Ram Jhajharia, Chandgothi
- Richh Pal Fageria, Lambor Bari
- Sohan Ram Janawa, Lambor Bari
- Khema Ram Punia, Kalori,
- Ramdhan, Ratanpura
- Hawa Singh Vaidya, Bairasar Bara
- Lal Chand (Subedar), Thirpali Chhoti
- Agar Singh Rathor, Dandeu Sultan Singh [p.167 (a)]
- Maidhan, Harpalu Ramdhan,
- Uma Ram Punia, Mundital,
- Lal Chand Manju, Mundital,
- Bhoma Ram Chahar, Mundital,
- Mam Chand Punia, Bhuwari,
- Syolal Sipat, Kandran,
- Tara Ram Syoran, Jaitpura,
- Ramnath, Lasedi,
- Likhma Ram Saharan, Pahadsar,
- Ram Gopal, Dhani Lutana,
- Tokha Ram Punia, Narwasi,
- Mohar Singh, Dhani Sangwan,
- Jee Ram Jhajharia, Hamirwas,
- Thandu Ram, Malana Bas,
- Khiraj Manjhu, Galar,
- Chailu Ram Punia, Dhani Kisana Ram,
- Prabhu Ram Punia, Jhadu Ka Bas,
- Mai Lal Dhosar, Khariyabas,
- Tara Chand Punia (Subedar), Ratanpura,
- Ranjit Kothari, Mundital,
- Harful Singh, Bairasar Bara,
- Shrawan Ram Dhanak, Mundital,
- Shadi Ram, Gagarwas,
- Het Ram Meghwal, Lakhlan,
- Het Ram Rahar, Lambor Bari,
- Jagmal Singh Rathod, Kalori,
- Mala Ram Jhajharia, [[]],
- Goru Ram Beniwal, Raburi,
- Ganpat Bajad, Neeman,
- Chandgi Ram Punia, Bairasar Bara,
- Sant Lal Punia, Narwasi, [p.167 (b)]
- Sukhdewa Ram Punia, Bairasar Manjhla,
- Gokal Ram Rahad, Vijaypura,
- Ganpat Ram Kalirawana, Jaitpura,
- Prema Ram Punia, Jaitpura,
- Nahad Ram Saharan, Bairasar Manjhla,
- Surja Ram Punia, Bairasar Manjhla,
- Champa Lal Surana, Rajgarh Churu,
- Jaisa Ram Darji, Lambor Chhimpian,
- Harful Singh Sainani, Shyopura Dhani,
- Gopal Ram Punia, Rejri,
- Syo Ram Dhaka, Janau Khari,
- Bhura Ram Punia, Khairoo Bari,
- Bhola Ram Rahad, Ragha Chhoti,
- Bhinwa Ram Gurjar, Maghau,
- Narayan Prajapat, Baijua,
- Ladu Ram Sarawag, Kanawasi,
- Biru Ram Dala, Kalana Teeba,
- Ramsukh Kajla, Kalana Teeba,
- Bisna Ram Kajla, Dhani Kajla,
- Imarta Ram Swami, Kharia Jakhran,
- Pal Das Swami, Baijua,
- Sajjan Singh, Ret Principal, Kalori,
- Magha Ram Punia, Kalori,
- Pokhar Ram Dhaka, Sidhmukh,
- Shri Ram Bidhasra, Galar,
- Nemi Chand Parik, Rajgarh,
- Bhani Ram Dudi, Radwa,
- Nand Lal Punia, Ret HeadMaster, Bhamasi,
- Ramsaran Dinodia, Rajgarh, [p.168 (a)]
- Hans Raj Pahadsar,
- Chandgi Ram Kharsu, Jaitpura,
- Sukha Ram Meghwal, Jaitpura,
- Chandgi Ram Punia, Jaitpura,
- Nathu Ram Nai, Sankhu Fort,
- Singh Ram Syoran, Lambor Bari,
- Rawat Ram Dhanak, Indasar,
- Ramswarup Punia, Bairasar Manjhla,
- Trilok Chand Darji, Rajgarh,
- Deep Singh Rathod, Lambor Kheri,
- Gopal Ram Jewalia, Dhana,
- Harchand Ram Lathar, Chainpura Chhota,
- Chandagi Ram Punia, Khairoo Bari,
- Subhash Bhakar, Bhakran,
- Daula Ram Godara, Lambor Chhoti,
- Syolal Punia, Baijua,
- Harful Chaibarwal, Kanawasi,
- Deepa Ram Kajla , Kalana Teeba,
- Jug Ram Hari Singh, Kalana Teeba,
- Dhanna Ram Kajla, Dhani Kajla,
- Hardeva Ram Jakhar, Khariya Jakharan,
- Deo Karan Syoran, Baijua,
- Khem Chand Jangir, Baijua,
- Shera Ram Punia, Kalori,
- Adu Ram Meghwal, Kalori,
- Likhma Ram Kalirawana, Sidhmukh,
- Chaudhari Fakir Chand, Rajgarh,
- Banwari Lal Pandia, Rajgarh,
- Ammi Lal Punia, Radwa,
- Jitu Khan Nagra, Rajgarh,
- Rambai Sangwan, Gagor, [p.168 (b)]
- Rekha Ram Garhwal, Gagor,
- Tota Ram Punia, Bairasar Bara,
- Chandagi Ram Luhar, Bairasar Bara,
- Brij Lal Punia, Baijua,
- Smt Mohara, w/o Shyodan Ram Saharan, Bairasar Manjhla,
- Goma Ram Bhami, Baijua,
- Gopi Ram Swami, Jaitpura,
- Chandagi Ram Sangwan, Hamirwas,
- Kisan Singh Kaswan, Ladariya,
- Mokam Ram (Caiptain), Koshadhyaksh All India Kisan Sabha [[]],
- Askaran Dudi, Jaitpura,
- Lal Chand Dhariwal, Jaitpura,
- Meghraj Rahad, Lambor Kheri,
- Sawai Singh Mithari Balwant Singh,
- Mulki Dewi Meena, Lambor Chhoti,
- Mukh Ram Punia, Bairasar Bara,
- Yad Ram Jakhar, Gudan,
- Balla Ram Jakhar, Gudan,
- Jai Lal Malik, Bangarwa,
- Richhpal Singh Kulhari, Lal Singh Ka Bas,
- Hawa Singh Punia, Chandgothi,
- Kushala Ram, Khudiyan Bas,
- Indraj Singh Bangarwa, Khudiyan Bas,
- Deda Ram Punia, Bhainsali,
- Ram Singh Punia, Bhainsali,
- Purn Ram/Dhilu Ram Punia, Nawan,
- Chunni Lal/Bhura Ram Meghwal, Nawan,
- Sunda Ram Nayak, Nawan,
- Jee Ram/Data Ram Punia, Heera Ka Bas,
- Govardhan Ram Punia, Than Mathui, [p.169 (a)]
- Ami Lal Punia, Gagor,
- Mohar Singh Punia, Bairasar Bara,
- Syoram Syoran, Baijua,
- Ramdhan Punia, Baijua,
- Chhailu Ram Punia, Baijua,
- Harful Singh Beniwal, Baijua,
- Subh Ram Punia, Jaitpura,
- Jai Singh Punia, Hamirwas,
- Maisukh Punia, Beenjawas,
- Chandru Ram Bajia, Dhandhal Lekhu,
- Yad Ram Punia Vaidya, Gagor,
- Hardewa Ram Dhariwal, Jaitpura,
- Gopal Ram Dhariwal, Jaitpura,
- Bahadur Singh Jharoda, [[]],
- Gopi Ram Sharma, Neshal,
- Hoshiar Singh Kulhari, Lambor Kheri,
- Dulli Chand Dhakarwal, Indasar,
- Dod Ram Jakhar, Gudan,
- Baju Ram Swami, Jaitpura,
- Ramji Lal, Dhani Mauji,
- Shera Ram Punia, Chandgothi,
- Mauji Ram Punia, Chandgothi,
- Maman Ram, Hawaldar, Khudiyan Bas,
- Duli Chand, Harpalu Ramdhan,
- Bhani Ram Punia, Bhainsali,
- Syolal/Sanwat Ram Punia, Nawan,
- Sinhram/Gidaram Punia, Nawan,
- Tokhram Meghwal, Nawan,
- Deo Karan Lichhuram Punia, Heera Ka Bas,
- Bhola Ram /Jethuram Rahad, Heera Ka Bas,
- Jeeram/Sanwal Ram, Than Mathui, [p.169 (b)]
- Shri Chand Punia, Bairasar Manjhla,
- Prabhu Ram Nehra, Ragha Bari,
- Pokar Ram Punia, Gagarwas,
- Khubi Ram Subedar, Kalri,
- Dayanand Beniwal, Kaman,
- Likhmi Chand Beniwal, Kaman,
- Rup Chand Punia, Bislan,
- Prabhu Ram Bugalia, Bislan,
- Chet Ram, Sadau,
- Ram Chandra Jangir, Heera Ka Bas,
- Mahavir Singh Rathor, Sankhu Fort,
- Pema Ram, Bairasar Chhota,
- Raje Ram Jangir, Lasedi,
- Udmi Ram Jhajharia, Gudan,
- Gugan Ram Punia, Khemana,
- Hoshiar Singh Sarawag, Dokwa,
- Bhojraj Lamba, Dhani Lamba,
- Bhura Ram Thori, Pabasi,
- Hira Ram Punia, Heera Ka Bas,
- Bajju Ram Lamba, Dhani Mauji,
- Shri Chand Punia, Jaitpura,
- Nandas Swami, Jaitpura,
- Nanad Ram Meghwal, Jaitpura,
- Gopal Sharma, Baijua,
- Ramdhan Syoran, Swatantrata Senani, Neshal,
- Hans Ram Bhakar, Bhakran,
- Jagmal Singh Rathor, Kalori,
- Amar Singh, Bairasar Manjhla,
- Bholu Ram Sangwan, Than Mathui,
- Surja Ram Kalirawana, Jaitpura,
- Mewa Singh Bhichar, Heera Ka Bas,
- Nandu Ram Punia, Jaitpura,...[p.170 (a)]
- Ranjit Punia, Ragha Bari,
- Imarta Ram Bhakar, Bhakran,
- Jetha Ram , Kandran,
- Gile Ram Subedar, Kalri,
- Hoshiar Singh Lakhlan, Kaman Churu,
- Syonarayan Lakhlan, Kaman Churu,
- Hira Ram, Bislan,
- Naurang Ram, Sadau,
- Mewa Singh Sinwar, Heera Ka Bas,
- Lal Singh Rathor, Sankhu Fort,
- Gumani Ram, Bairasar Chhota,
- Banwari Jamadar, Laseri,
- Budh Ram Punia, Laseri,
- Kanhi Ram Punia, Hamirwas,
- Foola Ram Dhindhwal, Dokwa,
- Kushala Ram, Khudiya Bas,
- Ram Singh Punia, Indasar,
- Piru Ram Punia, Dhani Chhailuram,
- Sultan Punia, Indasar,
- Birbal Ram Punia, Bairasar Chhota,
- Surja Ram Swami, Jaitpura,
- Megha Ram Saharan, Heera Ka Bas,
- Ram Singh, Baijua,
- Ram Singh Punia, Hamirwas,
- Kasi Ram Punia, Bhimsasa,
- Geru Ram Beniwal, Raboori,
- Subhash Chandra Kalirawana, Jaitpura,
- Ganpat Ram Kalirawana, Jaitpura,
- Bhura Ram, Bairasar Manjhla,
- Dayanand Beniwal s/o Ganpat Ram, Kaman Churu,
- Sohan Ram Punia, Bairasar Gumana,
- Ramkaran Rahar, Lambor Bari,....[p.170 (b)]
External links
References
- ↑ Sanjay Singh Saharan, Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, pp.11-12
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.8
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.41
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.7
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.55
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.56
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.8
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.167-182
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