Pachaira

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Pachaira (पचैरा) Pachera (पचेरा) Pach-har (पचहरा) Pach'hara (पचहरा) is a place in Mehgaon tahsil of Bhind district in Madhya Pradesh. Pachera PIN Code-477557.

Panch-hare Khap

Panch-hare Khap is a big Khap of 360 villages around Mathura. Udhar, Ayra Khera, Duletia, Kheria and Bahavin are main villages of this Khap. [1]

History

The ancestor of Bamraulis Jagdeo Singh had come from Agra and stayed at Bhind which was ruled by Aniruddh Singh Bhadauria. There was war between Bamraulias and Bhadauria rulers at place called Pach'hara in which Bhadauria was defeated. This war was fought on bhado sudi 10 friday vikram samvat 1794 (1737 AD). 12000 soldiers of Bhadaurias and 7000 soldiers of Jats took part in this war. Bhim Singh Rana captured 11 elephants, nishans of nagaras, big canons and kept them at Chitora, Karwas, Gohad etc places in his state.[2] In 1739 AD Peshwa accepted the rights of Rana rulers on Gohad. [3][4]

The Ranas kept their capital at Pach'hara for some time and later shifted the capital to Gohad. The brother of Gohad ruler Jagdeo Singh constructed a fort here in samvat 1680 (1623 AD). [5]

After the Pachaira war there was no powerful ruler left on the south of Chambal River who could compete with Raja Bhim Singh.[6]

जयसिंह बमरौलिया की दिल्ली के तोमर सम्राट से मित्रता

जयसिंह बमरौलिया तथा दिल्ली के तोमर सम्राट - इस समय दिल्ली में तोमर सम्राट अनंगपाल II (1051-1081) का साम्राज्य था. अनंगपाल II तथा गजनी सुलतान इब्राहिम(1059-1099) के मध्य तंवर हिन्दा तथा रूपाल (नूरपुर) पर युद्ध हुआ था, दोनों राज्य तोमर साम्राराज्य के अंतर्गत थे. सम्राट ने इब्राहिम को आगे बढ़ने से रोका था.[7] इस युद्ध में जय सिंह बमरौलिया 3000 सैनिक लेकर तोमर सम्राट के पक्ष में इब्राहिम के विरुद्ध युद्ध में भाग लेने पहुंचा था. जय सिंह के नेतृत्व में उसकी सेना ने रणक्षेत्र में अदम्य साहस का परिचय दिया, जिसे तुर्क सेना तोमर साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकी. [8] (Ojha, p.33)

तोमर सम्राट द्वारा जयसिंह बमरौलिया को राणा की उपाधि - दिल्ली तोमर सम्राट अनंगपाल ने युद्धक्षेत्र में जयसिंह को अदम्य साहस एवं वीरता प्रदर्शित करने के के उपलक्ष में आगरा के पास बमरौली कटारा की जागीर तथा राणा की उपाधि से विभूषित कर छत्र चंवर प्रदान किये.[9] और इनके पुत्र विरमदेव बमरौलिया को साम्राज्य के सबसे महत्वपूर्ण स्थान तुहनगढ़ की सुरक्षा का दायित्व सौंपा. (Ojha, p.33)

गढ़ बैराठ से बमरौली आगमन - तोमर सम्राट द्वारा प्रदत्त बमरौली कटारा की जागीर[10] में राणा परिवार आकर रहने लगे. रामदेव उर्फ़ विरहमपाल ने अपने समय में वहां रह रहे मुसलमानों को मार भगाया तथा उनकी जागीर को अपनी जागीर में मिला लिया.[11] (Ojha, p.34)

बमरौलिया जाट: इन जाटों ने बमरौली में अपनी स्थिति बहुत सुदृढ़ करली थी तथा यहाँ 172 वर्षों तक रहने के कारण ये लोग बमरौलिया जाट क्षेत्रीय के नाम से सम्बोधित किये जाने लगे.[12] (Ojha, p.34)

बमरौलिया जाटों का ऐसाह की और पलायन :दिल्ली सुलतान फरोजशाह तुगलक के शासनकाल में सन 1367 में आगरा सूबेदार मुनीर मुहम्मद था. उस समय बमरौली कटारा का जागीरदार रतनपाल बमरौली कटारा छोड़कर अपने मित्र तोमर राजा के पास ऐसाह (वर्तमान मुरैना जिले की अम्बाह तहसील में राजस्थान सीमा के पास चम्बल किनारे गाँव, दिल्ली से पूर्व यहाँ तोमरों की राजधानी थी) पहुंचा. जहाँ वह तोमरों के प्रमुख सामंत के रूप में स्थापित हुए.[13] तोमर सम्राट देव वर्मा द्वारा रतनपाल बमरौलिया को पचेहरा (जटवारा) निवास हेतु प्रदान किया गया. (Ojha, p.35)

पचेहरा से बगथरा आगमन - केहरी सिंह बमरौलिया (1390-1395) को ऐसाह के तोमर राजा वीरसिंह देव (1375-1400) के शासनकाल में अपनी वीरता प्रदर्शित करने का अवसर मिल गया. उस समय 1394 में वीरसिंह देव ने ग्वालियर दुर्ग पर दिल्ली सुलतान की ओर से नियुक्त अमीर को पराजित कर ग्वालियर में तोमर राजवंश की नींव डाली. 4 जून 1394 को दिल्ली सुलतान नसीरुद्दीन मुहम्मद को पराजित कर ग्वालियर में स्वतंत्र तोमर राज्य स्थापित किया.[14](Ojha, p.35)

वीरसिंह देव तोमर ग्वालियर के प्रथम स्वतंत्र तोमर शासक बने. तोमर राजा वीर सिंह देव तथा दिल्ली सुलतान के मध्य हुए युद्ध में केहरी सिंह बमरौलिया ने वीरसिंह देव का साथ दिया. केहरी सिंह की जाट सेना की छापामार युद्ध प्रणाली की भयंकर मार से सुलतान की सेना भाग खड़ी हुई थी. जब वीरसिंह देव ग्वालियर के स्वतंत्र राजा बन गए तब केहरी सिंह को बगथरा गाँव निवास हेतु प्रदान किया. [15] (Ojha, p.35)

स्थानीय जाटों से वैवाहिक सम्बन्ध - बगथरा गाँव में बसने के बाद इन बमरौलिया जाटों ने स्थानीय बिसोतिया गोत्र के जाटों से वैवाहिक सम्बन्ध बनाये तथा अपने बल में वृद्धि की.[16] (Ojha, p.35)

जाट संघ - केहरी सिंह बमरौलिया ने बगथरा में निवास करने के दौरान स्थानीय जाटों का एक संगठन बनाया और तोमर राजा का युद्धों में साथ देकर उनका विश्वासपात्र बन गया. इस प्रकार ये बमरौलिया जाट तोमर राजाओं के प्रमुख सामंत बन गए. [17] (Ojha, p.36)

सुजस प्रबंध में उल्लेख

सुजस प्रबंध काव्य में कवि नथन ने पचैरा युद्ध का वर्णन किया है. छंद 63 से 68 तक में कवि राजा भीमसिंह के पचैरा युद्ध का वर्णन करते है. राजा भीमसिंह ने हाथी के कंधे पर बैठकर पचैरा का युद्ध किया था. जदुवंश के उस श्रेष्ठ राजा ने एक शूरवीर की भांति भली प्रकार पचैरा के क्षेत्र में उत्साहपूर्वक युद्ध किया. [18]

यदुवंशियों की सेना आगे सामने की ओर चल रही थी और हरनाथ राजा की दाहिनी ओर का मोर्चा संभाल रहा था. गर्जना करते हुए तोपों के गोले सेना के बीच में गिर रहे थे. राजा के साथ लाल सिंह तथा चामुण्डराय जसे योद्धाओं का भी उल्लेख मिलता है.ये योद्धा शत्रु सेना के बीच घुस जाते थे. इस पर उनके साथ भयंकर युद्ध होने लगता था. इस युद्ध को बालि के साथ हुए युद्ध जैसा कहा जा सकता है. योद्धा लालसिंह कट कर मैदान में गिर गया. उसके साथ जितने शूरवीर थे, उन्होंने भी युद्ध भूमि में अपने शरीरों को समर्पित कर दिया. इन सब के बल पर राजा युद्ध में आया था और विजय प्राप्त की.[19] गोहद नरेश युद्ध भूमि में योद्धाओं को मारकर सुशोभित हुए. उन्होंने उदंड राजाओं को दण्डित करके नीति के तेज की रक्षा की. उनकी वीरता और नीति रक्षण की प्रकृति का यश, समुद्र पार के राजाओं तक भी पहुँच गया था. वे समझ गए थे कि गोहद नरेश दुर्बलों के प्रति सोचते हैं और सब के साथ नीति का पालन करते हैं. उनके सामने जो मैदान में खड़ा होता है उनके साथ संघर्ष करता है और जिस तरह पानी का बुलबुला थोडी देर में ख़त्म हो जाता है, उसी तरह रण भूमि में खड़ा होने वाला शत्रु का दल, थोडी देर में ख़त्म हो जाता है. ऐसे राजा समर भूमि में, शत्रु सेना का सफाया करके, एक बलशाली योद्धा की भांति गोहद लौट आए थे. [20]

ठाकुर देसराज द्वारा रचित जाट इतिहास में उल्लेख

यह शब्द पांचाल का अपभ्रंश है। राजा जगदेव उनमें एक प्रसिद्ध राजा हो गये हैं, ऐसा इनका अनुमान है। यह पंजाब में मालवा होकर बृज में आए हैं। पहले इन्होंने पचपुरी नामक स्थान में, जो आजकल पीपरी कहलाता है, गढ़ निर्माण कराया था। सरदार अरिसिंह की अध्यक्षता में अरिखेड़ा अथवा आयरखेड़ा की नींव डाली। गदर के समय में रामसिंह नाम के एक सरदार ने विद्रोह में भाग लिया था। मथुरा जिले में इनकी भारी संख्या है।[21]

External links

References

  1. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.18
  2. Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : Gohad ke Jaton ka Itihas (Hindi), p. 21
  3. Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : Gohad ke Jaton ka Itihas (Hindi), p. 21
  4. K.C.Luwai:Gwalior State Gazetteer, Part I, p. 217
  5. Bachchoo Singh Nauhwar: “Karwas Ki Garhi (Bhind), Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 48
  6. Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : Gohad ke Jaton ka Itihas (Hindi), p. 24
  7. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.240-241
  8. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.8
  9. Mohan Lal Gupta, Jaipur: Jilewar Sanskritik Evam Aitihasik Adhyayan, p.248-249
  10. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.8
  11. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.8
  12. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.8
  13. Mohan Lal Gupta, Jaipur: Jilewar Sanskritik Evam Aitihasik Adhyayan, p.175
  14. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.30
  15. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.9
  16. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.9
  17. Mohan Lal Gupta, Jaipur: Jilewar Sanskritik Evam Aitihasik Adhyayan, p.175
  18. सुजस प्रबंध:छन्द 64, p. 63
  19. सुजस प्रबंध:छन्द 65, p. 63-67
  20. सुजस प्रबंध:छन्द 68, p. 68-69
  21. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-561

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