Ram Singh Katewa

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Author: Laxman Burdak, IFS (R)

Ram Singh Bhakhtawarpura

Ram Singh Bakhtawarpura (राम सिंह बख्तावरपुरा) was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in year 1882 at village Kanwarpura, which was a bas of village Bakhtawarpura in Chirawa tahsil , district Jhunjhunu, Rajasthan. As such at times he is also known by the name Ram Singh Kanwarpura. He was born in Katewa Jat clan.

Pushkar adhiveshan 1925

Pushkar adhiveshan 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram etc. farmer leaders had also attended. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come namely, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri. 24-year young boy Har Lal Singh also attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely, 1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education. 2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Jagirdars.

राम सिंह बख्तावरपुरा का जीवन परिचय

चौधरी राम सिंह का जन्म बख्तावरपुरा के एक बास कंवरपुरा में लगभग १८८२ ई. में हुआ. शेखावाटी के जाटों में आप पहले व्यक्ति थे जिन्होंने किसानों की समस्याओं का बीड़ा भूदाराम सांगासी और मास्टर रतन सिंह के साथ उठाया. आपने १९२५ में बगड़ में 'जाट सभा' कायम कर उसका अध्यक्ष पद स्वीकार किया तथा शेखावाटी के १९२५-२६ के किसान आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया. मंडावा के बोर्डिंग हॉउस के आप अभिभावक रहे. आपके प्रयास से ही पिलानी में 'जाट बोर्डिंग हाउस' की स्थापना हुई और वर्षों तक आप उसके अभिभावक बने रहे.

१९३२ के झुंझुनू जाट महोत्सव को सफल बनाने में आपने रात-दिन एक कर दिया. बाद में बोर्डिंग हाउस झुंझुनू के अधीक्षक के रूप में आपने सेवाएँ दी. १९३९ के सत्याग्रह में आपने जेल की यात्रा की. आपने शेखावाटी की हर गतिविधि में न केवल रुचि ली बल्कि सक्रीय सहयोग भी दिया. उस समय शेखावाटी में शायद ही कोई मीटिंग हुई हो जिसमें आप सम्मिलित न हुए हों या उसको सफल बनाने में आपका हाथ न रहा हो. आप शेखावाटी की जाग्रति के प्रथम स्तंभों में से एक थे.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी रामसिंह जी कंवरपुरा -[पृ 372]: सीकरवाटी में वैभव के लिहाज से महत्व कूदन गांव को है वही शेखावाटी में बख्तावरपुरा को है। यहां जाटों के दो खानदान अति समृद्धशाली रहे हैं। यह गांव कटेवा गोत के जाटों का है। इसी बख्तावरपुरा में से एक छोटा सा गांव कंवरपुरा बसा है। चौधरी रामसिंह जी कटेवा यहीं के रहने वाले हैं। इस वक्त आप की अवस्था लगभग 66-67 साल है। चौधरी रामकरण, चौधरी खुशीराम और चौधरी गोपाल सिंह जी आपके भाई हैं। श्री भगवानसिंह जी और गणपतिराम जी आपके पुत्र है। दोनों ही पुत्र बड़े लायक और कौम परस्त हैं। ब्रिटिश सेना में उन्होंने बड़ी तरक्की की है। गणपतिरामजी मेजर सुबेदार के पद से रिटायर हुए हैं।

अभी आजकल चौधरी रामसिंह जी आनंद का जीवन बिता रहे हैं। लेकिन वह उन आदमियों में से हैं जो साधन हीन होते हुए भी सेवा के कार्य को अपनाते हैं। और अपने जीवन को और भी दुख पूर्ण बना लेते हैं।

सांगासी के चौधरी भूदा रामजी, मूढ़नपुरा के चौधरी शिव करणजी, हनुमानपुरा के चौधरी गोविंदराम जी के और


[पृ.373]: मास्टर रतन सिंह जी b.a. द्वारा आरंभ किए हुये सन 1925-26 के किसान आंदोलन को आपने अधिक से अधिक मुसीबतें बर्दाश्त कर के चलाया। आपके जीवन की एक घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शेखावाटी के जाट किसानों के के अधिक आवाज बुलंद करने पर उनका मामला रेनेन्यू के एक विशेष अफसर को सौंपा गया। ऊब दिनों भारतभर के जाट वकीलों में चौधरी लालचन्द्र जी का नाम मसहूर था। जाटों ने उन्हें बुलाया किंतु जब वे जाने लगे भेंट स्वरूप देने को कुछ भी न था इसलिए चौधरी रामसिंह जी ने अपना कंबल दे दिया और तमाम जाड़े भर कष्ट पाते रहे।

उन्होंने देखा कि बिना शिक्षा पाए जाट कोम का उद्धार नहीं है तो वे गांवों में जाकर लड़कों को बिड़ला हाई स्कूल पिलानी में भिजवाना आरंभ किया और और बिड़ला बंधुओं तथा महादेव जी लोयलका से कह सुनकर जाट लड़कों के लिए एक अलग बोर्डिंग हाउस खुलवाया और आप उनके अभिभावक बने।

इसके बाद उन्होंने देवरोड के पन्ने सिंह जी को आगे बढ़ाने का उपक्रम किया और थोड़े ही दिनों में जाटों के अंदर जीवन की लहर सी पैदा करदी। सन 1931 में जाकर जाट महासभा को झुंझुनू वार्षिक महोत्सव मनाने के लिए आमंत्रित किया और फिर दिन-रात घूमकर जलसे की तैयारियां करने लगे।

झुंझुनू महोत्सव के बाद जाट बोर्डिंग हाउस झुंझनू के सुपरिंटेंडेंट के रूप में सेवा की। वास्तव में चौधरी रामसिंह जी शेखावाटी के जाटों के लिए रिजर्व सैनिक के रूप में रहे हैं कि जब भी उनकी सेवाओं की और जहां भी जरूरत पड़ी है वे


[पृ.374]: तैयार रहे हैं और बिना गर्दन हिलाए उन्होंने हरेक ड्यूटी को जो उन्हें सौंपी गई है पूरा किया है।

सन् 1938 के सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने जेल की यात्रा भी की है।

वे एक कर्मठ पुरुष हैं और शेखावाटी के जागृति के प्रथम प्रकाश स्तंभों में से हैं। पिछले 25 वर्षों में शेखावाटी में ऐसी शायद ही कोई मीटिंग व कॉन्फ्रेंस हुई हो जिसमें वे शामिल न रहे हों। अथवा उसे सफल बनाने में इनका हाथ न रहा हो।

शेखावाटी रेतिला इलाका है। गर्मी के दिनों में रास्ते लुप्त हो जाते हैं। किंतु शेखावाटी सीकरवाटी और खेतड़ी के लगभग 1000 गांवों में से शायद ही कोई ऐसा गाँव हो जिसका रास्ता वे भूल सके। उन्हें शेखावाटी का बच्चा-बच्चा जानता है और वह बच्चे बच्चे को जानते हैं।

आज वे बुडढे हैं किंतु जवान उनके बराबर परिश्रम नहीं कर सकते और न उनका जैसा सैकड़ों जवानों के चेहरे पर तेज ही है।

सांगासी में बैठक वर्ष 1921

भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में आप भी प्रमुख व्यक्ति थे. [2]

राजेन्द्र कसवा[3]लिखते हैं कि सन् 1921 में शेखावाटी से भिवानी गया जत्था जब लौटा तो वह नई ऊर्जा से भरा था. गांधीजी से मिलने और अन्य संघर्षशील जनता को देखने के बाद, किसान नेताओं में स्वाभाविक उत्साह बढ़ा . सन् 1921 में चिमना राम ने सांगासी गाँव में अपने घर अगुआ किसानों की एक बैठक बुलाई. इस प्रथम बैठक में चिमनाराम और भूदाराम दोनों भईयों के अतिरिक्त हरलाल सिंह, गोविन्दराम, रामसिंह कंवरपुरा, लादूराम किसारी, लालाराम पूनिया आदि सम्मिलित हुए. पन्ने सिंह देवरोड़ और चौधरी घासीराम इस बैठक में नहीं पहुँच सके थे लेकिन आन्दोलन करने के लिए सबका समर्थन और सहयोग था. इस बैठक में निम्न निर्णय लिए गए:

  • बेटे-बेटियों को सामान रूप से शिक्षा दिलाना
  • रूढ़ियों, पाखंडों, जादू-टोना, अंध विश्वासों का परित्याग करना और मूर्तिपूजा को बंद करना
  • मृत्युभोज पर रोक लगाना
  • शराब, मांस और तम्बाकू का परित्याग करना
  • पर्दा-पर्था को समाप्त करना
  • बाल-विवाह एवं दहेज़ बंद करना
  • फिजूल खर्च एवं धन प्रदर्शन पर रोक लगाना

इस बैठक के बाद भूदाराम में सामाजिक जागरण का एक भूत सवार हो गया था. वे घूम-घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे. अप्रकट रूप से ठिकानेदारों के विरुद्ध किसानों को लामबंद भी करने लगे. विद्याधर कुल्हरी ने अपने इस बाबा भूदाराम के लिए लिखा है कि, 'वह नंगे सर रहता था. हाथ में लोहे का भाला होता. लालाराम पूनिया अंगरक्षक के रूप में साथ रहता था. [4]

बगड़ में सभा 1922

गाँवों में प्रचार करने के पश्चात 1922 में भूदाराम, रामसिंह, गोविन्दराम आदि ने बगड़ में एक सार्वजनिक सभा करने की योजना बनाई. गाँवों में इसका प्रचार होने लगा. ठाकुरों के कान खड़े हो गए. शांति भंग होने के नाम पर ठाकुरों ने इनको गिरफ्तार करवा दिया और सभा टल गयी. पुलिस ने नाजिम झुंझुनू के समक्ष पेश किया. गोविन्दराम ने जवाब दिया - 'हम अपनी जाति में सुधार के लिए प्रचार कर रहे हैं. हमें यह हक है. हम सरकार के विरुद्ध कुछ नहीं कह रहे हैं.' नाजिम इस जवाब से प्रभावित हुआ और उसने सबको रिहा कर दिया. अब तो किसान नेताओं का हौसला बढ़ गया. वे पुन: बगड़ में ही सभा करने के लिए जुट गए. जागीरदारों ने बगड़ कसबे में आतंक और भय फैला दिया. ठाकुरों ने हुक्म फ़रमाया, 'सभा के लिए स्थान देना तो अपराध होगा ही, जो व्यक्ति सभा में भाग लेगा, उस पर जुर्माना किया जायेगा.'आम जन भयभीत हो गया. कोई भी सभा के लिए स्थान देने को तैयार नहीं हुआ. आखिर , बगड़ का पठान अमीर खां आगे आया. उसने अपने गढ़ में सार्वजनिक सभा करने की अनुमति दे दी. गढ़ में एक बड़ा हाल था. इसमें पांचसौ से अधिक व्यक्ति बैठ सकते थे. आसपास के गाँवों के प्रमुख किसान बगड़ पहुंचे. भूदाराम के साहस के कारण उन्हें राजा की पदवी दी गयी. समाज को संगठित होने और सामंती जुल्मों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने का आव्हान किया गया. प्रकट में भविष में भी होने वाली सभाओं को समाज सुधार की सभाएं कहने का निश्चय किया. अंग्रेज अधिकारीयों को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी. [5]

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[6]

चनाणा गोलीकांड

चनाणा गोलीकांड - सन 1946 में झुंझुनू जिले के चनाणा गाँव में किसान सम्मलेन का आयोजन किया गया था. सम्मलेन के अध्यक्ष नरोत्तम लाल जोशी व मुख्य अतिथि पंडित टिकाराम पालीवाल थे. किसान नेता सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह, ठाकुर राम सिंह, ख्याली राम, बूंटी राम और स्वामी मिस्रानंद आदि उपस्थित थे. सम्मलेन आरंभ हुआ ही था कि घुड़सवार, ऊँटसवार व पैदल भौमिया तलवारें, बंदूकें, भाले व लाठियां लेकर आये. सीधे स्टेज पर हमला किया जिसमें टिकाराम पालीवाल के हाथ चोट आई. दोनों ओर से 15 मिनट तक लाठियां बरसती रहीं. भौमियों के बहुत से आदमी घायल होकर गिर पड़े तो उन्होने बंदूकों से गोलियां चलाई जिससे कई किसान घायल हो गए और सीथल का हनुमान सिंह जाट मारा गया. किसानों ने हथियार छीनकर जो मुकाबला किया उसमें एक भौमिया तेज सिंह तेतरागाँव मारा गया और 10 -12 भौमियां घायल हुए. सभा में भगदड़ मच गयी और दोनों तरफ से क़त्ल के मुकदमे दर्ज हुए. आगे चलकर समझौता हुआ और दोनों ओर से मुकदमे उठा लिए गए. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 42-43)

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।

यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।

सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी। दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न


[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधानपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।

इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनहोने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.372-374
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 95
  4. विद्याधर कुल्हरी:मेरा जीवन संघर्ष, पृ.27
  5. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 96-97
  6. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  7. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1-2

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