Tejaji ke Geet

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Author:Laxman Burdak IFS (R)
जन्म स्थान खरनाल के तेजाजी मंदिर में लीलण पर सवार तेजाजी की मूर्ती
बलिदान स्थल सुरसुरा में तेजाजी महाराज

तेजाजी धौल्या जाट ने ग्यारवीं शदीमें गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म - बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात - पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन - साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात - पांत में आस्था कम हो गई।

तेजाजी का जन्म

तेजा के पिता और माता ने शिव के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति की

तेजाजी का जन्म धौलिया या धौल्या गौत्र के जाट परिवार में हुआ। धौल्या शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी

तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार 29 जनवरी, 1074, को धुलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गणराज्य के मुखिया थे। तेजाजी के नाना का नाम दुलन सोढी था. उनकी माता का नाम सुगना था. उनकी माता का नाम रामकुंवरी लिखा था. तेजाजी का ननिहाल त्यौद गाँव (किशनगढ़) में था.

तेजाजी के माता-पिता शंकर भगवान के उपासक थे. शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई. कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार माना गया है. तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम रखा गया तेजा. उनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी -

"कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है, तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा."

तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-

जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।

राजस्थान और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में तेजाजी के गीत सुरीली आवाज और मस्ती भरे अंदाज में गाये जाते हैं. जेठ के महीने में वर्षा होने पर किसान तेजाजी का नाम ले खेतों में हल जोतते हैं. बच्चे बूढे सभी लम्बी टेर में तेजा गीत गाते हैं. जन मानस द्वारा गाये इन गीतों के माध्यम से ही जाट संस्कृति और इतिहास जिन्दा रहा. पाठकों की सुविधा के लिए तेजा गीत निचे दिया जा रहा है. यह राजस्थानी भाषा में है. पहले अर्थ दिया गया है तत पश्चात राजस्थानी में गाने का अंश दिया गया है. तेजा गीत उनकी माता द्वारा तेजाजी को जगा कर हळसौतिया खुद के हाथ से करने के साथ शुरू होता है. तेजा गीत में चित्रण के लिए लेखक द्वारा सुरसुरा तेजाजी के धाम पर स्थित धर्मशाला के भीती चित्रों को डिजीटल कैमरे से तैयार कर दिए गये हैं.

तेजाजी का हळसौतिया

तेजाजी हळसौतिया करते हैं

जेठ के महिने के अंत में तेज बारिश होगई। तेजाजी की माँ कहती है जा बेटा हळसौतिया तुम्हारे हाथ से कर-

गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
थारोड़ा साथिड़ा बीजॅं बाजरो।

सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -

उठ्यो-उठ्यो पौर के तड़कॅ कुँवर तेजा रॅ
माथॅ तो बांध्यो हो धौळो पोतियो
हाथ लियो हळियो पिराणी कँवर तेजा रॅ
बॅल्यां तो समदायर घर सूं नीसर्यो
काँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रॅ
स्यावड़ नॅ मनावॅ बेटो जाटको।
भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रॅ
धोळी रॅ दुपहरी हळियो ढाबियो
धोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रॅ
बारह रॅ कोसां री बा'ई आवड़ी।।

तेजाजी का भाभी से संवाद

नियत समय के उपरांत तेजाजी की भाभी छाक (रोटियां) लेकरआई। तेजाजी बोले कि बैल रात से ही भूके हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है, भाभी इतनी देर कैसे लगादी?

बैल्या भूखा रात का बिना कलेवे तेज।
भावज थासूं विनती कठै लगाई जेज।।

देवर तेजाजी के गुस्से को भावज झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी, उसने चिढने के लहजे में कहा - एक मन पीसना पीसने के पश्चात उसकी रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिर दाना डाला, फिर बैलों के लिए चारा लाई और तेजाजी के लिए छाक लाई परन्तु छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर आई, फिर भी तेजा को गुस्सा आये तो तुम्हारी जोरू जो पीहर में बैठी है. कुछ शर्म-लाज है, तो लिवा क्यों नहीं लाते?


मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रॅ
मण को रान्यो खाटो खीचड़ो।
लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रॅ
साथै तो ल्याई भातो निरणी।
दौड़ी लारॅ की लारॅ आई कँवर तेजा रॅ
म्हारा गीगा न छोड़ आई झूलै रोवतो।
ऐहड़ा कांई भूख भूखा कँवर तेजा रॅ
थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप कॅ

भाभी का जवाब तेजाजी के कलेजे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और अगली सुबह ससुराल जाने की कसम खा बैठे-

ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओ
अब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरॅ
हरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओ
पाणिड़ो पीवो नॅ थे गैण तळाव रो।

तेजाजी का माँ से संवाद

तेजाजी का विवाह रायमल की बेटी के साथ पीले पोतड़ों में पुष्कर में हुआ

खेत से तेजाजी सीधे घर आये। तेजाजी नें कहा-माँ मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई। तेजाजी की माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आ गई पर अब बताने को मजबूर होकर माँ बोली-


ब्याव होतां ही खाण्डा खड़कग्या बेटा बैर बढ़गो।
थारां बाप कै हाथा सूं छोरी को मामों मरगो।
थारो मामोसा परणाया पीळा-पोतड़ा।
गढ़ पनेर पड़ॅ ससुराल कँवर तेजा रॅ
रायमल जी री पेमल थारी गौरजां।

उस समय के रिवाज के अनुसार तेजाजी का विवाह उनके ताऊ बक्सारामजी ने तय किया। मामा ने शादी की मुहर लगाई। तेजाजी का विवाह रायमल की बेटी के साथ पीले पोतड़ों में होना बताया।

बहिन राजल को ससुराल से लाना

तेजाजी राजल को ससुराल से लाते हैं

तेजाजी की भाभी ने कहा कि ससुराल जाने से पहले बहिन राजल को लाओ-

पहली थारी बैनड़ नॅ ल्यावो थे कंवर तेजा रॅ।
पाछै तो सिधारो थारॅ सासरॅ।।

तेजाजी पांच्या चरवाहे से बोलते हैं -

पांच्या रै ! बैल्यां न जल्दी तैयार कर,
बाई राजल न ल्यानी है. पैरों में घूंघर बांध दे

उधर तेजा की बहिन राजल को भाई के आने के सगुन होने लगे वह अपनी ननद से बोली-

डांई-डांई आँख फरुखे नणदल बाई ये
डांवों तो बोल्यो है कंवलो कागलो
कॅ तो जामण जायो बीरो आसी बाई वो
कॅ तो बाबो सा आणॅ आवसी

बहिन के ससुराल में तेजाजी की खूब मनुहार हुई। रात्रि विश्राम के पश्चात सुबह तेजाजी बहिन के सास से बोले-

बाईसा नॅ पिहरिये भेजो नी सास बाईरा
मायड़ तो म्हानॅ लेबानॅ भेज्यो
चार दिना की मिजमानी घणा दिनासूं आया
राखी री पूनम नॅ पाछा भेजस्यां
सीख जल्दी घणी देवो सगी म्हारा वो
म्हानॅ तो तीज्यां पर जाणों सासरॅ

भाई-बहिन रवाना होकर अपने गांव खरनाल पहुंचते हैं। सभी को चूरमा व पतासे बांटे जाते हैं।

तेजल आयो गांव में ले बैनड नॅ साथ
हरक बधायं बँट रही बड़े प्रेम के साथ

तेजाजी का पनेर जाना

तेजाजी के ससुराल पनेर को प्रस्थान के समय अपशकुन
सुरसुरा में तेजाजी बासक नागराजा को जलने से बचाते हैं

तेजाजी अपनी मां से पनेर जाने की अनुमती मांगते हैं। वह मना करती है। तेजाजी के दृढ़ निश्चय के आगे मां की एक न चली। भाभी कहती है कि पंडित से शुभ मूहूर्त निकलवा कर ससुराल रवाना होना। पंडित तेजा के घर आकर पतड़ा देख कर बताता है कि उसको सफ़ेद देवली दिखाई दे रही है जो सहादत की प्रतीक है. सावन व भादवा माह अशुभ हैं. पंडित ने तेजा को दो माह रुकने की सलाह दी.

मूहूर्त पतड़ां मैं कोनी कुंवर तेजा रॅ
धोळी तो दिखॅ तेजा देवली
सावण भादवा थारॅ भार कंवर तेजा रॅ
पाछॅ तो जाज्यो सासरॅ

पंडित की बात तेजाजी ने नहीं मानी। तेजाजी बोले मुझे तीज से पहले पनेर जाना है। तेजा ने कहा कि तीज से पहले मुझे पनेर जाना है चाहे धन-दान ब्रह्मण को देना पड़े. वे कहते हैं कि जंगल के शेर को कहीं जाने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरुरत नहीं है. तेजा ने जाने का निर्णय लिया और माँ-भाभी से विदाई ली.

गाड़ा भरद्यूं धान सूं रोकड़ रूपया भेंट
तीजां पहल्यां पूगणों नगर पनेरा ठेठ
सिंह नहीं मोहरत समझॅ जब चाहे जठै जाय
तेजल नॅ बठै रुकणुं जद शहर पनेर आय

लीलण पर पलाण मांड सूरज उगने से पहले तेजाजी रवाना हुये। मां ने कलेजे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया-

माता बोली हिवड़ॅ पर हाथ रख
आशीष देवूं कुलदीपक म्हारारै
बेगा तो ल्याज्यो पेमल गोरड़ी

अगली सुबह वे अपनी लीलण नामक घोड़ी पर सवार हुए और अपनी पत्नी पेमल को लिवाने निकल पड़े। जोग-संयोगों के मुताबिक तेजा को लकडियों से भरा गाड़ा मिला, कुंवारी कन्या रोती मिली, छाणा चुगती लुगाई ने छींक मारी, बिलाई रास्ता काट गई, कोचरी दाहिने बोली, मोर कुर्लाने लगे. तेजा अन्धविसवासी नहीं थे. सो चलते रहे.


बरसात का मौसम था। रास्ते में कई नाले और बनास नदी पार की। रास्ते में बालू नाग मिला जिसे तेजाजी ने आग से बचाया। तेजाजी को नाग ने कहा-

"शूरा तूने मेरी जिन्दगी बेकार कर दी। मुझे आग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है। मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा।"

कुंवर तेजाजी ने नाग से कहा-

"नागराज! मैं मेरे ससुराल जा रहा हूँ। मेरी पेमल लम्बे समय से मेरा इन्तजार कर रही है। मैं उसे लेकर आऊंगा और शीघ्र ही बाम्बी पर आऊंगा, मुझे डस लेना।"

कुंवर तेजाजी पत्नी को लेकर मरणासन्न अवस्था में भी वचन पूरा करने के लिये नागराज के पास आये। नागराज ने तेजाजी से पूछा कि ऐसी जगह बताओ जो घायल न हुई हो। तेजाजी की केवल जीभ ही बिना घायल के बची थी। नागराज ने तेजाजी को जीभ पर डस लिया।

तेजाजी का पनेर आगमन

तेजाजी का ससुराल पनेर पहुंचना

शाम का वक्त था। पनेर गढ़ के दरवाजे बंद हो चुके थे. कुंवर तेजाजी जब पनेर के कांकड़ पहुंचे तो एक सुन्दर सा बाग़ दिखाई दिया. तेजाजी भीगे हुए थे. बाग़ के दरवाजे पर माली से दरवाजा खोलने का निवेदन किया -

खिड़की बागां री बेगी खोलो बनमाली रे
बारै भीगे बेटो जाट को

माली ने कहा बाग़ की चाबी पेमल के पास है, मैं उनकी अनुमति बिना दरवाजा नहीं खोल सकता.

कोनी कुंची खिड़का री म्हारा कंवरांओ
कुंची तो लेगी पेमल गोरजां

कुंवर तेजा ने माली को कुछ रुपये दिए तो झट ताला खोल दिया. रातभर तेजा ने बाग़ में विश्राम किया और लीलन ने बाग़ में घूम-घूम कर पेड़-पौधों को तोड़ डाला. बाग़ के माली ने पेमल को परदेशी के बारे में और घोडी द्वारा किये नुकशान के बारे में बताया. पेमल भाभी को बाग में भेजती है -

बाग में बेगी जावो भोजाई म्हारी ओ
साथै तो ले जावो झूलो झूलरो

पेमल की भाभी बाग़ में आकर पूछती है कि परदेशी कौन है, कहाँ से आया है और कहाँ जायेगा -

सारो बाग रो विनाश कर दियो, थानै शर्म कोनी आई
कुण हो थे, कठै हूँ आया हो, कठै जावो हो ?

तेजा ने परिचय दिया कि वह खरनाल का जाट है और रायमल जी के घर जाना है. पेमल की भाभी माफ़ी मांगती है और बताती है कि वह उनकी छोटी सालेली है. सालेली (साले की पत्नि) ने पनेर पहुँच कर पेमल को खबर दी. कुंवर तेजाजी पनेर पहुंचे. पनिहारियाँ सुन्दर घोडी पर सुन्दर जवाई को देखकर हर्षित हुई. तेजा ने रायमल्जी का घर पूछा.

सूर्यास्त होने वाला था. उनकी सास गाएँ दूह रही थी। तेजाजी का घोड़ा उनको लेकर धड़धड़ाते हुए पिरोल में आ घुसा। सास ने उन्हें पहचाना नहीं। वह अपनी गायों के डर जाने से उन पर इतनी क्रोधित हुई कि सीधा शाप ही दे डाला, ‘जा, तुझे काला साँप खाए!’ तेजाजी उसके शाप से इतने क्षुब्ध हुए कि बिना पेमल को साथ लिए ही लौट पड़े। तेजाजी ने कहा यह नुगरों की धरती है, यहाँ एक पल भी रहना पाप है.

आई ज्यों ही पाछी मुड़ज्या लीलण म्हारी ऐ
नुगरां की धरती मैं बासो ना करां

तेजाजी का पेमल से मिलन

लाछा का तेजाजी को पेमल से मिलाने का प्रयास

अपने पति को वापस मुड़ते देख पेमल को झटका लगा. पेमल ने पिता और भाइयों से इशारा किया की वे तेजाजी को रोकें. श्वसुर और सेल तेजाजी को रोकते हैं पर वे मानते नहीं हैं. वे घर से बहार निकल आते हैं. पेमल की सहेली थी लाछां गूजरी। उसने पेमल को तेजाजी से मिलवाने का यत्न किया। पेमल अपनी माँ को खरी खोटी सुनाती है. पेमल कलपती हुई आई और लिलन के सामने कड़ी हो गई. पेमल ने कहा - आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकले. मेरे साथ घर वालों ने कैसा वर्ताव किया यह मैं ही जानती हूँ. आज आप चले गए तो मेरा क्या होगा. मुझे भी अपने साथ ले चलो. मैं आपके चरणों में अपना जीवन न्यौछावर कर दूँगी.

पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी पोल में रुके. सभी ने पेमल के पति को सराहा. शाम के समय सालों के साथ तेजाजी ने भोजन किया. देर रात तक औरतों ने जंवाई गीत गए. पेमल की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था. तेजाजी पेमल से मिले. तेजाजी पेमल के नजदीक आये तो पेमल डरते-डरते बोली -

हाथां मेहंदी लगी है सायब म्हारा वो
दागां तो लागेला धोळी धोतियाँ

तेजाजी कहते हैं कि दाग लगे तो लगने दो पेमल तुम्हारी निशानी हमेशा याद रहेगी.

लाछां गुजरी की तेजाजी से गुहार

तेजाजी मीणों से लाछा की गायें छुडाकर लाते हैं

दोनों बतरस में डूबे थे कि लाछां की आहट सुनाई दी. लाछां गुजरी ने तेजाजी को बताया कि मीणा चोर उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं. आप मेरी सहायता कर अपने क्षत्रिय धर्म की रक्षा करो अन्यथा गायों के बछडे भूखे मर जायेंगे -

क्षात्र धर्म की लाज राखो कँवर तेजा रै,
म्हारी गायां तो लेगा रै मीणा चोरडा.
म्हारी गायां जल्दी ल्यावो थे तो जीजा वो,
भूखा तो अरड़ावे छोटा कैरड़ा .
क्षत्रिय थारो धर्म कँवर तेजा रै,
गौरां मैं अरड़ावे बाळक बाछड़ा.

तेजाजी फिर अपनी लीलण घोड़ी पर सवार हुए। पंचों हथियार साथ लिए. पेमल ने घोडी की लगाम पकड़ कर कहा कि मैं साथ चलूंगी. लड़ाई में घोडी थाम लूंगी -

दोय घड़ी ढब ज्यावो परन्या सायबा,
झगडा री बैल्या मैं घोड़ी थामस्युं.

तेजा ने कहा पेमल जिद मत करो. मैं क्षत्रिय धर्म का पालक हूँ. मैं अकेला ही मीणों को हराकर गायें वापिस ले आऊंगा.

तेजाजी के आदेश के सामने पेमल चुप हो गई. पेमल अन्दर ही अन्दर कांप भी रही थी और बड़बड़ाने लगी कि पहाडों पर रास्ता नहीं है, वर्षात की अँधेरी रात है और पग-पग पर काला नाग दुश्मन है ऐसी स्थिति में मत जाओ -

डूंगर पर डांडी नहीं, मेहां अँधेरी रात
पग-पग कालो नाग, मति सिधारो नाथ

तेजाजी की वचन बद्धता

तेजाजी मीणों से लाछा का काणां केरड़ा छुडाकर लाते हैं
सुरसुरा में तेजाजी महाराज बासक नाग राजा के डसने पर अमरत्व को प्राप्त होते हैं

तेजाजी धर्म के पक्के थे सो पेमल की बात नहीं मानी और पेमल से विदाई ली. पेमल ने तेजाजी को भाला सौंपा. वर्तमान सुरसुरा नामक स्थान पर उस समय घना जंगल था. वहां पर बालू नाग, जिसे लोक संगीत में बासक नाग बताया गया है, घात लगा कर बैठे थे. रात्रि को जब तेजाजी मीणों से गायें छुड़ाने जा रहे थे कि षड़यंत्र के तहत बालू नाग ने रास्ता रोका. बालू नाग बोला कि आप हमें मार कर ही जा सकते हो. तेजाजी ने विश्वास दिलाया कि मैं धर्म से बंधा हूँ. गायें लाने के पश्चात् वापस आऊंगा.

जां पगां जास्यूं बां पगां पाछो आस्यूं
पहली गायां ल्या, पाछै थांसू झगड़ो करस्यूं.

तेजाजी बोले मेरा वचन पूरा नहीं करुँ तो समझना मैंने मेरी माँ का दूध नहीं पिया है.

कोल पूरो कियां बिना जाऊँ तो म्हारी माँ रो दूध कोनी चुंग्यो

वहां से तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर लीलन पर चढ़ उन्होंने चोरों का पीछा किया. सुरसुरा से १५-१६ किमी दूर मंडावारियों की पहाडियों में मीणा दिखाई दिए. तेजाजी ने मीणों को ललकारा.

अरे ओ मीणों ! मौत न क्यों बुलाओ हो,
क्यों थारी लुगाईयाँ रो सुहाग उजाड़ो हो

एक मीणा बात काटते हुए बोला -

शूरा मत कर माथा फोड़ी, पाछी फेरल्यो थारी घोड़ी
घर मैं बाट देख रही गौरी, आ जिंदगानी है थोड़ी

तेजाजी ने बाणों से हमला किया. मीने ढेर हो गए, कुछ भाग गए और कुछ मीणों ने आत्मसमर्पण कर दिया. तेजा का पूरा शारीर घायल हो गया और तेजा सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और लाछां गूजरी को सौंप दी .

ए थारी गायां संभालो लाछा गूजरी
भूखा तो अरडावे छोटा बाछड़ा

लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह के मालिक काणां केरडा नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर लाने के लिए बोला.

जीजाजी ! कांणा केरडा न थे पाछा जाय जरूर ल्यावो

तेजाजी वापस गए. पहाड़ी में छुपे मीणों पर हमला बोल दिया व बछड़े को ले आये. इस लड़ाई में तेजाजी का शारीर छलनी हो गया. बताते हैं कि लड़ाई में १५० मीणा लोग मारे गए जिनकी देवली मंदावारिया की पहाड़ी में बनी हैं. सबको मार कर तेजाजी विजयी रहे एवं वापस पनेर पधारे. लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर बोले -

ओ थारो केरड़ो संभालो लाछा गूजरी
तेजल ने जाणों है आगे आसरै
आई ज्योंही पाछी मुड़ज्या लीलण म्हारी ए
बचना रो बांध्योड़ो बदलो चुकस्याँ

तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं कि मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला -

"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है."

तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. तेजाजी यों बोले -

नागराज ऐ कायर का काम हैं
बचनां को बांध्योड़ो तेजा ना टरैला
मैं याचक या भिखारी नहीं हूँ,
महै म्हारो कोल पूरो करियो, अब थे थारो कोल पूरो करो
तेजा हरगिज नहीं झुकैला

नागराज ने कहा -

"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है."

नाग को उनके क्षत्‌-विक्षत्‌ शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की।

तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुलाया और कहा,

" भाई आसू देवासी ! मुसीबत में काम आने वाला ही घर का होता है, तू मेरा एक काम पूरा करना. मेरी इहलीला समाप्त होने के पश्चात् मेरा रुमाल व एक समाचार रायमल्जी मेहता के घर लेजाना और मेरे सास ससुर को पांवा धोक कहना. पेमल को मेरे प्यार का रुमाल दे देना, सारे गाँव वालों को मेरा राम-राम कहना और जो कुछ यहाँ देख रहे हो पेमल को बतादेना और कहना कि तेजाजी कुछ पल के मेहमान हैं."
सासु सुसरा न दीजै राम जुवारी
पेमल न दीजै मेमद मोलियो
अठै देखी ज्यों कह दीजै पेमल न
घडी रै पलक रो तेजो पावनों

लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -

"लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना."
माँ न प्रणाम कर सांचोडा समाचार बतला दीजै
काका, बाबा न प्रणाम कीजै हाथ जोड़
भाई न भौजायाँ कीजै निमणूं
बाई राजल न धीरज दे हाथ फेरणां

नागराज ने कहा - तेजा नागराज कुंवारी जगह बिना नहीं डसता. तुम्हारे रोम-रोम से खून टपक रहा है. मैं कहाँ डसूं?

तेजाजी ने कहा नागराज मुझे वचन चूक मत करो. अपने वचन को पूरा करो. मेरे हाथ की हथेली व जीभ कुंवारी हैं, मुझे डसलो.

बालू नाग नतमस्तक हो गया और बोला -

'धन्य है तेजा तुम्हारे माता-पिता, धन्य है तुम्हारी शूरवीरता और प्राण. आज कालिया हार गया और धौलिया जीत गया.

बालू नाग ने कहा की तेजा देवता के रूप में पूजे जावेंगे तथा पीडितों के दुखों का संहार करेंगे. किसान खेत में हल जोतने से पहले तेजाजी की पूजा करेंगे.

सती पेमल की अमर आशीष

पेमल सुरसुरा में सती हो जाती है

तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई.

पेमल जब चिता पर बैठी है तो लीलण घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना.

सुसराजी न पावां धोक कह दीजै
सासुजी न कीजै पगां लागणा
बाई राजल न दीजै रिमझिम बोलणी
मन मैं रहगी सासुजी की पोल देखती
परण्यो जातो निजरां देखती

कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि - "भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है "

भाया रै उतरता भादुडा री नवमी की रात जगायज्यो
दसम न धोकज्यो धौल्या री देवली
काच्चा दूध को भोग लगाज्यो
थारा मन पसंद कारज सिद्ध होसी
आ ही म्हारी अमर आशीष है

लीलन घोड़ी सतीमाता के हवाले अपने मालिक को छोड़ अंतिम दर्शन पाकर सीधी खरनाल की तरफ रवाना हुई. परबतसर के खारिया तालाब पर कुछ देर रुकी और वहां से खरनाल पहुंची. खरनाल गाँव में खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को अनहोनी की शंका हुई. लीलन की शक्ल देख पता लग गया की तेजाजी संसार छोड़ चुके हैं.

लीलण को खरनाल पहुंची देखकर तेजा की भाभी पूछती है - लीलण तुम्हारे रूप रंग को बिगाड़ अकेले ही कैसे आई हो, देवर तेजाजी कहाँ हैं -

कैयां आई बिरंगो लीलण म्हारी ए
कठोड़ै छोड्यो है देवर लाडलो

कहते हैं कि लीलण घोडी खरनाल आकर तेजा की भाभी को बोली कि तुम्हारा देवर शहीद हो गया है और पेमल उनके साथ सती हो गई है.

देवर थारो वीर गति पाई है
सती तो होगी है पेमल जाटणी

तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी, फिर खड़ी हुई और माता-पिता, भाई-भोजाई से अनुमति लेकर माँ से सत का नारियल लिया और खरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता चिन्वाकर भाई की मौत पर सती हो गई. भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा उदहारण है. राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में हैं.

तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शरीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है.


इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी।

तेजा गायन का महत्व

तेजा गीत का गायन राजस्थान में किसानों द्वारा अच्छी वर्षा और अच्छे उत्पादन के लिए किया जाता है. यह गीत राग मल्हार पर आधारित है जो वर्षा को आकर्षित करता है. केंब्रिज विश्वविद्यालय में तेजा गायन के महत्व पर एक लेख पाठ्यक्रम में सामील किया गया है. T

तेजाजी के गीत सुनें

ये भी देखें

chittorgarh

संदर्भ

  • Mansukh Ranwa: Kshatriya Shiromani Vir Tejaji (क्षत्रिय शिरोमणि वीर तेजाजी), 2001

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