लेकिन यह प्रशन पैदा होता हैं कि जाटों ने इस ब्राह्मणवाद में प्रवेश कैसे किया ? यह जानने के लिए हमे थोड़ा इतिहास में झाकना पड़ेगा | प्राचीन उत्तर भारत में अफगानिस्तान व स्वात घाटी से लेकर मथुरा , आगरा व बौद्ध गया तक जाटों का गढ़ था जहाँ बोद्ध धर्म का ढंका बज रहा था | इस सच्चाई को चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा हैं कि (जिसने सन 399 से 414 तक उत्तर भारत कि यात्रा कि ) इस क्षेत्र में कहीं कहीं ब्रह्मण थे , जो छोटे छोटे मंदिरों में पूजा किया करते थे | यात्री ने इनके धर्म को केवल ब्राह्मणवाद ही लिखा हैं , जबकि उसने जैन धर्म को मानने वालो कि संख्या तक का वर्णन किया हैं | फाह्यान ने अपनी यात्रा व्रतांत चीनी भाषा में लिखा हैं जिसका अंग्रेजी में सबसे पहले अनुवाद जमेस लीगी ने किया , जिसमे अपने अनुवाद में इन ब्राह्मणों को heretics brahmins अर्थात विधर्मी ब्रह्मण लिखा हैं | अर्थात इन ब्राह्मणों का कोई धर्म नहीं था इस कारण पूजा के नाम से इनका गुजर बसर बहुत ही कठिनाई से चल रहा था | जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इन्होने जाटों को खुश करने के लिए अपने मंदिरों में जाट महापुरुषों उदाहरण के लिए शिवजी , श्रीराम ,. श्रीक्रिशन , श्रीहनुमान , गणेश आदि कि मुर्तिया स्थापित कि इससे जाट लोग भी इन्हें कुछ दान पुन्य करने लगे और समय आते आते कुछ जगह ब्रह्मण राजाओ का राज आने पर साथ साथ ब्राह्मणों कि भी पूजा होने लगी | इस काल में कुछ जाट मूर्ति पूजक होकर ब्रह्मण का समर्थन करने लगे थे | महाराजा हर्षवर्धन बैंस कि मृत्यु ( सन 647 ) के पश्चात जिनका कोई वंशज नहीं था , मौका देख कर व अवसर का लाभ उठाते हुए , ब्राह्मणों ने माउन्ट आबू पर्वत पर ब्रह्त्त यज्ञ के नाम से एक यज्ञ रचाकर अग्निकुंड से राजपूत जाति कि उत्पति का ढोंग रचाया | इसी कारण केवल चार गोत्रो के राजपूत अपने आपको अग्निवंशीय राजपूत कहते हैं | जबकि अग्नि से एक चींटी भी पैदा नहीं हो सकती हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव जलाने व भस्म करने का हैं , पैदा करने का नहीं |
इससे स्पष्ट हैं कि ब्रह्मण धर्म अर्थात हिन्दू धर्म जाटों का धर्म न कभी था और न अभी हैं | जो धर्म वास्तव में हैं ही नहीं , तो उसे धारण करने का प्रशन ही पैदा नहीं होता | इसलिए प्रशन पैदा होता हैं कि हम जाटों को अभी किस धर्म को धारण करना चाहिए | इससे पहले हमे सभी मुख्य धर्मो को संक्षेप में समझना हैं | हम सबसे पहले जाटों के प्राचीन धर्म बौद्ध कि बात करेंगे | याद रहे बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित हैं और इसी अहिंसा के सिद्धांत के कारण प्राचीन में जाटों के राज गए इसलिए इसे क्षत्रिय धर्म नहीं कहा जा सकता , जो जाटों के स्वभाव के उपयुक्त नहीं हैं | इसलिए इस धर्म को धारण करने का कोई औचित्य नहीं | इसके बाद संसार के लोगो का एक बड़ा धर्म इस्लाम धर्म हैं , जिसमे हिन्दू कहे जानेवालो जाटों से अधिक मुसलमान जाट हैं | लेकिन इन तथाकथित हिन्दू जाटों के दिलों में सदियों से ब्राह्मणवादी प्रचार ने कूट कूट कर नफरत पैदा कर दी और उसे एक गाली के समान बना दिया जिस कारण यह जाट वर्तमान में इस धर्म को नहीं पचा पाएंगे | हालांकि इस्लाम धर्म कि तरह जाट कौम एकेश्वरवाद में विश्वास करने वाली तथा मूर्ति पूजा विरोधी हैं | इसके बाद दुनिया का सबसे विकासशील और शिक्षित धर्म ईसाई धर्म हैं जो दया और करुना पर आधारित धर्म हैं | परन्तु जाट कौम सालों से इस धर्म के प्रति किसी भी प्रकार कि न तो कोई सोच रखे हुए हैं और न ही इसका कोई ज्ञान | इसलिए इतनी बड़ी कौम को ईसाई धर्म के विचार में अचानक डालना एक मूर्खतापूर्ण कदम हैं | इसके बाद एक और भारतीय जैन धर्म हैं जो पूर्णतया अहिंसावादी सिद्धांत वाला हैं , इसलिए इसके बारे में विचार करना जाट कौम के लिए निरर्थक हैं | इसके बाद नवीनतम धर्म सिक्ख धर्म हैं | वर्तमान में सिक्ख धर्म में 70% जाट हैं और यह मुगलों से लड़ते - लड़ते बहादुरी का प्रतिक होते - होते स्थापित हुआ , जिसमे कमा के खाना सर्वोपरि हैं | यह धर्म पाखंडवाद और असमानता का विरोधी हैं | सेवाभाव में विश्वास करनेवाला एवंम ब्राह्मणवाद का विनाश करने वाला धर्म हैं | यह धर्म आधुनिक , विकासशील व प्रगतिशील और अपनी सुरक्षा करने में सदैव सक्षम हैं | आज तक कि लड़ाइयो से यह सिद्ध हो चूका हैं कि इस धर्म के लोग सबसे अधिक देशभक्त और लड़ाकू हैं | यह धर्म जाट परम्परों और उनकी संस्कृति के सर्वथा अनुकूल हैं | जिसको ग्रहण करने में जाटों को किसी भी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं होगी | वैसे भी निरुक्त ग्रंन्थ में लिखा : जटायते इति जाटयम | अर्थात जो जटाएं रखते हैं , वे असली जाट कहलाते हैं | भाषा किसी भी धर्म को ग्रहण करने में कोई बाधा नहीं होती | इस धर्म को रख पाने में जब पंजाब के जाट को कोई परेशानी नहीं हैं तो हमको कैसे होगी ? यदि भविष्य में जाट कौम अपनी इज्जत , शान और अपने आत्मसम्मान कि रक्षा के लिए इस गौरवपूर्ण एवंम स्वाभिमानी सिक्ख धर्म को धारण करती हैं तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा क्योंकि मैं दावे से लिख रहा हु कि जाट कौम अपने आप को हिन्दू कहकर कभी भी शिखर पर नहीं जा सकती और कभी चली भी गई तो कोई उसे रहने नहीं देगा | इस बात को चौ. चरण सिंह ने भी अपने जीवन में स्वीकार किया था और कहा कि काश . मैं ब्राह्मण होता | हम ब्राह्मण बन नहीं सकते , सिक्ख बन सकते हैं | चौ. छोटूराम ने भी जाट गजट के अंक सन 1924 में जाटों को सिक्ख धर्म अपनाने कि वकालत कि थी | जिसकी निंदा पंडित श्रीराम शर्मा ने अखबार हरियाणा तिलक ने 17 अप्रैल 1924 को छपी थी |
जाट भाइयों , आओ और खुले दिल और दिमाग से इस पर विचार मंथन करे और कौम को पाखंडवाद और कायरता कि गुलामी से मुक्त करे | जय जाट | जोर से कहो . जो बोले सो निहाल | सत श्री अकाल |
राज करेगा खालसा , आकी रहै न कोई |
अर्थात भविष्य में खालिश व पवित्र लोग राज कर सकेंगे आकी अर्थात कोई गुंडा , पाखंडी और लुटेरा नहीं रह पायेगा |
इससे स्पष्ट हैं कि ब्रह्मण धर्म अर्थात हिन्दू धर्म जाटों का धर्म न कभी था और न अभी हैं | जो धर्म वास्तव में हैं ही नहीं , तो उसे धारण करने का प्रशन ही पैदा नहीं होता | इसलिए प्रशन पैदा होता हैं कि हम जाटों को अभी किस धर्म को धारण करना चाहिए | इससे पहले हमे सभी मुख्य धर्मो को संक्षेप में समझना हैं | हम सबसे पहले जाटों के प्राचीन धर्म बौद्ध कि बात करेंगे | याद रहे बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित हैं और इसी अहिंसा के सिद्धांत के कारण प्राचीन में जाटों के राज गए इसलिए इसे क्षत्रिय धर्म नहीं कहा जा सकता , जो जाटों के स्वभाव के उपयुक्त नहीं हैं | इसलिए इस धर्म को धारण करने का कोई औचित्य नहीं | इसके बाद संसार के लोगो का एक बड़ा धर्म इस्लाम धर्म हैं , जिसमे हिन्दू कहे जानेवालो जाटों से अधिक मुसलमान जाट हैं | लेकिन इन तथाकथित हिन्दू जाटों के दिलों में सदियों से ब्राह्मणवादी प्रचार ने कूट कूट कर नफरत पैदा कर दी और उसे एक गाली के समान बना दिया जिस कारण यह जाट वर्तमान में इस धर्म को नहीं पचा पाएंगे | हालांकि इस्लाम धर्म कि तरह जाट कौम एकेश्वरवाद में विश्वास करने वाली तथा मूर्ति पूजा विरोधी हैं | इसके बाद दुनिया का सबसे विकासशील और शिक्षित धर्म ईसाई धर्म हैं जो दया और करुना पर आधारित धर्म हैं | परन्तु जाट कौम सालों से इस धर्म के प्रति किसी भी प्रकार कि न तो कोई सोच रखे हुए हैं और न ही इसका कोई ज्ञान | इसलिए इतनी बड़ी कौम को ईसाई धर्म के विचार में अचानक डालना एक मूर्खतापूर्ण कदम हैं | इसके बाद एक और भारतीय जैन धर्म हैं जो पूर्णतया अहिंसावादी सिद्धांत वाला हैं , इसलिए इसके बारे में विचार करना जाट कौम के लिए निरर्थक हैं | इसके बाद नवीनतम धर्म सिक्ख धर्म हैं | वर्तमान में सिक्ख धर्म में 70% जाट हैं और यह मुगलों से लड़ते - लड़ते बहादुरी का प्रतिक होते - होते स्थापित हुआ , जिसमे कमा के खाना सर्वोपरि हैं | यह धर्म पाखंडवाद और असमानता का विरोधी हैं | सेवाभाव में विश्वास करनेवाला एवंम ब्राह्मणवाद का विनाश करने वाला धर्म हैं | यह धर्म आधुनिक , विकासशील व प्रगतिशील और अपनी सुरक्षा करने में सदैव सक्षम हैं | आज तक कि लड़ाइयो से यह सिद्ध हो चूका हैं कि इस धर्म के लोग सबसे अधिक देशभक्त और लड़ाकू हैं | यह धर्म जाट परम्परों और उनकी संस्कृति के सर्वथा अनुकूल हैं | जिसको ग्रहण करने में जाटों को किसी भी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं होगी | वैसे भी निरुक्त ग्रंन्थ में लिखा : जटायते इति जाटयम | अर्थात जो जटाएं रखते हैं , वे असली जाट कहलाते हैं | भाषा किसी भी धर्म को ग्रहण करने में कोई बाधा नहीं होती | इस धर्म को रख पाने में जब पंजाब के जाट को कोई परेशानी नहीं हैं तो हमको कैसे होगी ? यदि भविष्य में जाट कौम अपनी इज्जत , शान और अपने आत्मसम्मान कि रक्षा के लिए इस गौरवपूर्ण एवंम स्वाभिमानी सिक्ख धर्म को धारण करती हैं तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा क्योंकि मैं दावे से लिख रहा हु कि जाट कौम अपने आप को हिन्दू कहकर कभी भी शिखर पर नहीं जा सकती और कभी चली भी गई तो कोई उसे रहने नहीं देगा | इस बात को चौ. चरण सिंह ने भी अपने जीवन में स्वीकार किया था और कहा कि काश . मैं ब्राह्मण होता | हम ब्राह्मण बन नहीं सकते , सिक्ख बन सकते हैं | चौ. छोटूराम ने भी जाट गजट के अंक सन 1924 में जाटों को सिक्ख धर्म अपनाने कि वकालत कि थी | जिसकी निंदा पंडित श्रीराम शर्मा ने अखबार हरियाणा तिलक ने 17 अप्रैल 1924 को छपी थी |
जाट भाइयों , आओ और खुले दिल और दिमाग से इस पर विचार मंथन करे और कौम को पाखंडवाद और कायरता कि गुलामी से मुक्त करे | जय जाट | जोर से कहो . जो बोले सो निहाल | सत श्री अकाल |
राज करेगा खालसा , आकी रहै न कोई |
अर्थात भविष्य में खालिश व पवित्र लोग राज कर सकेंगे आकी अर्थात कोई गुंडा , पाखंडी और लुटेरा नहीं रह पायेगा |
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