मेरा राम सर छोटूराम

raka

New member
मेरा राम सर छोटूराम

12278992_10204599896111476_6586201503682931226_n.jpg

" उस शख्स ने जमाने को जीना सीखा दिया ,
दीवारें जहां मिली , दरवाजा बना दिया "

रहबर-ए-आज़म दीनबंधु सर छोटूराम किसान कमेरे वर्ग के लिए फरिश्ता बन कर आए थे | आज जो किसान जातियाँ आनंद ले रही है यह सब उस फरिश्ते की सोच का परिणाम है पर अफसोस की बात यह है कि आज नई पीढ़ी को उस फरिश्ते के बारे में कुछ भी नहीं पता | मैं कई लोगों से सवाल कर लेता हूँ कि चौधरी छोटूराम के बारे में सुना है ? आगे से जवाब मिलता हाँ जी उनके नाम से यूनिवर्सिटी है | फिर पूछता हूँ कि कौन थे क्या थे वो ? जवाब मिलता है इतना नहीं पता ! यह हाल कोई ऐसे ही नहीं हुआ , यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत किया गया है | आज नई पीढ़ी को सावरकर , हेड्गेवर के बारे में जरूर पता है पर सर छोटूराम के बारे में गिनती के लोग ही जानते है | अगर किसी को बताने की कोशिश भी करते है तो कहेंगे वो बीता जमाना हो गया अब जमाना और है ! बड़े ताज्जुब की बात जिस दौर में सावरकर , हेड्गेवर थे उसी दौर में सर छोटूराम थे , ये लोग आज इस दौर में भी याद किए जा रहे है पर जब हमारे बुजुर्ग की बात आती है तो बीते दौर का बहाना हो जाता है ! यह साजिश सिर्फ इसी वजह से रची गई है कि यदि सर छोटूराम फिर से जिंदा हुआ तो सावरकर हेड्गेवर को मरना होगा | सर छोटूराम ने भी देश की आज़ादी के लिए गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा चलाया जा रहे आंदोलन में भाग लिया था पर चौधरी साहब की पारखी नजर ने मंडी-फन्डी के खेल को भाप लिया और उन्होने कांग्रेस छोड़ किसान मजदूर की आर्थिक आज़ादी की लड़ाई शुरू की , और इसका आगाज उन्होने सर फज़ल-ए-हुसैन के साथ मिल यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदारा पार्टी) की स्थापना कर किया | जिन किसानों को हिन्दू महाजनों ने अपने ब्याज के चक्रव्यूह में उलझा कर मुजारा बना रखा था , चौधरी साहब ने कानून बना उन गरीब शोषित किसानों को मुजारे से वापिस जमींदार बनाया , अपनी कलम की ताकत से किसान को उसकी ताकत का एहसास करवाया | उनके द्वारा बनाए ' पंजाब कृषि उपज मंडी एक्ट (1938) ' से हिन्दू महाजनों को सबसे ज्यादा दर्द हुआ और इन लालाओं का यह दर्द एसम्बली में छलक ही गया , इस एक्ट के विरोध में बोलते हुए लाला गोकुलचंद नारंग ने कहा कि अब यह जाट (सर छोटूराम) एक दो धेले के किसान को एक करोड़पति महाजन के बराबर समिति में बैठाएगा ! सर छोटूराम के कार्यों पर आज शोध चल रहा है कई लोगों ने उन पर शोध कर पीएचडी की डिग्री हासिल की है पर असल समस्या ये है कि उनके विचारो का आम किसान को बिलकुल भी ज्ञान नहीं |
सर छोटूराम कमेरे वर्ग के लिए सच्चे रहबर थे और जब तक वो रहे तब तक लूटेरे वर्ग को पंजाब में पैर नहीं जमाने दिये | सर छोटूराम सिर्फ एक नेता ही नहीं थे बल्कि वो कमेरे वर्ग के लिए विचारधारा थी और यहीं कारण है कि उनके जाने के बाद लूटेरे वर्ग ने इस विचारधारा को दफन करने की गहरी साजिश रची , जिसमें लूटेरा वर्ग कामयाब भी रहा | लूटेरे वर्ग ने कहीं तो इनको सिर्फ जाटों का नेता बता मिटाने की साजिश रची तो कहीं अंग्रेज़ो से मिले होने का इल्जाम लगा मिटाने की कोशिश की पर लूटेरे वर्ग ने यह कभी नहीं बताया कि इस फरिश्ते ने तो लूटेरो द्वारा धर्म के आड़ में जो लूट मचा रखी थी उस लूट पर प्रहार कर आर्थिक आज़ादी आर्थिक बराबरी की बात की थी | सर छोटूराम की विचारधारा कमेरे वर्ग के लिए बुनियाद थी जिससे कमेरा वर्ग भटक गया और आज लूटेरा वर्ग हर जगह इनका धर्म की दवा सूंघा शोषण कर रहा है | ऐसा नहीं है कि लूटेरे वर्ग ने कमेरे वर्ग के महात्मा ज्योति बा फुले ,डॉक्टर अंबेडकर आदि नेताओं के साथ ऐसा नहीं किया होगा , उनके साथ भी ये साजिश रचने की अनेक कोशीशे की गई पर मा. कांशीराम के आंदोलन ने डॉक्टर अंबेडकर को फिर से जिंदा कर दिया | कांशीराम जी के आंदोलन की बदौलत ही आज यह हाल हो गया की पेशवा ब्राह्मण का बनाया हुआ संगठन आरएसएस जोकि हिन्दुत्व की बात करता है भी 20वी सदी के हिन्दू धर्म के सबसे बड़े बागी डॉक्टर अंबेडकर की जयंती मनाने को मजबूर हुआ | 14 अप्रैल को डॉक्टर साहब की जयंती पर आरएसएस के नंबर दो स्थान रखने वाले सहकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि ' अंबेडकर और हेड्गेवर दोनों ने समाज के रोगों का निदान करने का काम किया | अंबेडकर कि हमेशा अनदेखी की गई | उन्होने सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया लेकिन समाज के प्रति कभी विद्रोही रवैया नहीं अपनाया ' | डॉक्टर साहब ने हिन्दू धर्म के खिलाफ विद्रोह किया मनुस्मृति को जलाया और हिन्दू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म अपनाया पर ये सब कांशीराम जी के आंदोलन का दबाव है कि हिन्दुत्व का ठेका उठाने वाला संगठन भी डॉक्टर के साहब के विद्रोह को नजरंदाज कर उनकी जयंती मनाने को मजबूर है | कांशीराम जी के आंदोलन की बदौलत लूटेरों की साजिश नाकाम हो गई और डॉक्टर साहब फिर से जिंदा हो गए पर किसानों के रहबर सर छोटूराम लूटेरों की साजिश का
शिकार हो गए |

किसान वर्ग आज अपनी बुनियाद को छोड़ दूसरों की बुनियाद पर खड़ा है , जिस कारण आज यह वर्ग सबसे ज्यादा शोषित है | आज लोग चौधरी चरण सिंह चौधरी देवी लाल को तो याद कर लेते है पर सर छोटूराम की जयंती के नाम पर सिर्फ कुछ संगठन छोटे मोटे कार्यकर्म कर अपना फर्ज निभा रहे है | चौधरी चरण सिंह और चौधरी देवी लाल तो इस बुनियाद की सिर्फ दिवारे है , असल बुनियाद तो सर छोटूराम है , और इन दोनों दीवारों को भी सिर्फ इसलिए याद किया जाता क्योंकि इनके परिवार राजनीति में है , जिस दिन ये लोग राजनीति के मैदान से गायब हुए तो इन दीवारों को ढहाने में भी लूटेरे वर्ग को ज्यादा समय नहीं लगेगा | जब तक हम अपनी बुनियाद पर नहीं आएंगे उस विचारधारा को फिर जिंदा नहीं करेंगे तब तक कोई सुनवाई नहीं , दूसरे के बाप को बाप बहुत कह लिया अब अपने बाप को बाप कहना शुरू कर दो वरना इससे भी बुरे हालात हो जाएंगे | सर छोटूराम ही हम किसानों के असली भगवान है जब तक किसान इनके बताए मार्ग पर नहीं चलेंगे तब तक किसान कौम का कोई भला नहीं हो सकता | किसान कौम को यह बात अपने दिल में बैठानी होगी की उसका असली राम अयोध्या वाला श्री राम नहीं गढ़ी सांपला वाला चौ: छोटूराम है |
" तेरे मज़मूनों से दुश्मन का दिल जाता था दहल
तेरे मज़मूनों , तेरे जोरे-सहाफ़त को सलाम "

‪#‎JaiYoddhey‬
 
ईमानदारी से कहूँ तो मेरे जैसे कितने ही नयी पीढ़ी के जाट युवाओ को सर छोटूराम के बारे में ज्यादा नहीं पता| बस कुछेक कॉलेज स्कूल ही है जो उनकी याद दिलाते है| लेकिन उनको गुमनामी के अँधेरे में धकेलने की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस पार्टी रही है|
उस पार्टी को भला सर छोटूराम क्यों याद रहते| जब आज़ादी के बाद गांधी को राष्ट्रपिता और नेहरु को चाचा बनाने की होड़ मची हुई थी| जिस पार्टी ने भगत सिंह को इतिहास में दफ़न कर दिया उससे सर छोटूराम को देश के इतिहास में जगह देने की उम्मीद नहीं की जा सकती|
यही वजह है कि आज का जाट युवा उनको इन्टरनेट पर ढूँढता है|
मंदिर-मस्जिद की राजनीति तो 90 के दशक से शुरू हुई| लेकिन सर छोटूराम को तो दशको पहले ही बिसरा दिया गया था|
बात अगर दलित आन्दोलन की करें तो जो अलख कांशीराम ने दलितों में जगाई थी| उसको मायावती ने उसके राजनीतिक मुकाम तक पहुँचाया|

पर अफ़सोस कि जिस रास्ते पर सर छोटूराम ने किसान वर्ग को आगे बढाया था| वही किसान वर्ग आज़ादी के बाद सेक्युलर और हिन्दुत्वादी राजनीति के दो पाटो के बीच पिसकर रह गया| अगर यह किसान वर्ग इस राजनीति के मोहजाल से निकल जाये तो शायद सर छोटूराम के किसान सशक्तिकरण का सपना साकार हो जाये|
 
Top