Shayri (Continued)

उम्र बीत गई सारी ,सफाई देते-देते |
बता ए संगदिल , खाता कब करूँ ||----रवि "अतृप्त"
 
सच है कि चुप रहने से ये पागलपन बढ जाता है,
लेकिन पत्थर के इस शहर में आखिर किस से बात करे
 
एक तुम ही ना मिल सके वर्ना।
मिलने वाले बिछड़ बिछड़ कर मिले।।
 
तू बेनकाब जो फिरती है गली कूंचो में,
तो कैसे शहर के लोगो में क़त्ल-ए-आम ना हो
।।
 
तुम बहुत साल रह लिए अपने ।
अब मेरे, सिर्फ मेरे हो कर रहो ।।
 
जिंदगी नही रुकती ,किसी के लिए ,
कभी जी रहे थे , उसके लिए ,
कभी जी लिए ,इसके लिए ,
वजह चाहे कोई भी हो ,
जिंदगी को बस,
जिने का बहाना चाहिये |---रवि "अतृप्त"
 
तुम हुए दूर तो ये राज़ खुला,
अब हमें जिन्दगी से प्यार नहीं।।
 
बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता |
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता ||
 
वक़्त की क़ैद में ज़िंदगी है मगर
चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं
इन को खो कर मेरी जान-ऐ-जान
उम्र भर न तरसते रहो.........
 
दोस्त के पराये होने पर क्या रोयेंगे |
जब दगा भी किसी का सगा हुआ नहीं।
 
उनके ख़यालों में खोकर ही, गहराई समंदर की छू बैठे,
वो होंगें जब पास हकीकत में तो शायद कयामत होगी...
 
कहां का दर्द भरा था, दोस्त तेरे फंसाने में
सिहरन सी दौड गयी सहमें से जमाने मे
शिव का विषपान सुना था ऐ दोस्त
तू तो पी गया समंदर जिंदगी बनाने में
 
हम जान से जायेंगे तभी बात बनेगी ,
तुम से तो कोई राह निकाली नहीं जाती।।
 
जिंदगी में मुस्कुराने का कोई बहाना रखना,
चाहने वालों की कतार में कोई दीवाना रखना।

जिंदगी जिस तरह भी चले चलाना उसको,
खुशियां पराई हों पर गम भी बेगाना रखना।

बादल की उड़ान में खुले आकाश को रखना,
मगर दिल के किसी कोने में जमाना रखना।

जो अच्छा लगे दिल में बसा के रखना उसको,
मगर दिल के एक कोने को वीराना रखना।

भले ही ना बने कोई कहानी जिंदगी में,
पर छोटी सी मुलाकात एक अफ़साना रखना।
 
तुम सोचते रहते हो कि क्या देख रहा हूँ
मैं देखता रहता हूँ कि क्या सोच रहे हो।।
 
पतझड़ के पत्तों को यों ना रौंदो अपने पावों में !

कभी बैठे थे तुम इनकी छावों में !!
 
वो शख़्स एक छोटी सी बात पे यूं रूठ
के चला गया,
जैसे उसे सदियों से किसी बहाने
की तलाश थी|
उस,ने मूड कर एक बार भी ना देखा ,
वहां उसकी दुनिया आबाद थी ,
यहाँ मेरी दुनिया उदास थी ||
 

वो शख़्स एक छोटी सी बात पे यूं रूठ
के चला गया,
जैसे उसे सदियों से किसी बहाने की तलाश थी

बहुत सुन्दर पंक्तिया ......
 
हमारे शहर में बेचेहरा लोग बसते हैं |
कभी-कभी कोई चेहरा दिखाई पड़ता है ||

चलो कि अपनी मोहब्बत सभी को बाँट आएँ |
हर एक प्यार का भूखा दिखाई पड़ता है ||

न कोई ख्व़ाब, न कोई ख़लिश, न कोई खुमार |
ये आदमी तो अधूरा दिखाई पड़ता है ||
 
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