Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Rajbala-Ajit Singh

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-4 राजबाला-अजीतसिंह

सज्जनों ! दुनिया में जति पुरुष और सती नार का इतिहास रहा है । ऐसे ही जति पुरुष और सती नारी का किस्सा सुना रहा हूँ । अमरकोट में राजा अनार सिंह राज करते थे, उनकी रानी का नाम विजयवन्ती एवं लड़के का नाम अजीत सिंह था । अजीत सिंह की सगाई बचपन में बैसलपुर के राजा प्रताप सिंह की लड़की राजबाला से कर रखी थी । अनार सिंह एक लड़ाई में मारा गया और दुश्मन राजा ने अमरकोट पर कब्जा कर लिया।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : चौकलिया
जब तक सूरज चाँद रहेंगे, धरती और आकाश रहे।
जति पुरूष और सती नार का, दुनिया में इतिहास रहे ।। टेक ।।
सती नार और जति पुरूष की, अमर कहानी रहा करे।
उनके जीवन की दुनिया में, अलग निशानी रहा करे।
जति देवता होता है और सती भवानी रहा करे।
उनकी कहानी दुनियां में कभी, नहीं पुरानी रहा करे।
उनके चरित्र का फिर देश के, घर-घर में प्रकाश रहे ।। 1 ।।
जिस देवी ने अपने पति को, कहा जीवन में पति नहीं।
पति को मार सती बन जाती, इसमें झूठ रती नहीं।
जल के मरना आत्महत्या, वो होती कभी सती नहीं।
ऐसी नार नरक में जाती, उनकी हो कभी गति नहीं।
जति सती का अपना परस्पर, जीवन में विश्वास रहे ।। 2 ।।
सती नार और जति पुरूष का, एक इतिहास सुनाऊँ मैं ।
अपनी ओर से हल्द-फिटकड़ी, बिल्कुल नहीं मिलाऊँ मैं।
लिखी कहानी देखी केवल, गीत बनाकर गाऊँ मैं।
साज बाज में शामिल करके, आपका मन बहलाऊँ मैं।
दुनिया दो दिन का मेला, इसमें कौन फैल कौन पास रहे ।। 3 ।।
बैसलपुर की राजबाला, प्रतापसिंह की जाई थी।
अमरकोट के अजीतसिंह से, उसकी हुई सगाई थी।
अनारसिंह के ऊपर एक, राजा ने करी चढाई थी।
राजा अनारसिंह मारा गया, वहाँ ऐसी हुई लड़ाई थी।
भालोठिया कहे लावारिस को, ईश्वर तेरी आस रहे ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अनार सिंह के मारे जाने के बाद रानी बेटे अजीत को लेकर रात में चुपचाप महल से निकल जाती है और जैसलमेर पहुँच जाती है । वहाँ रहकर अजीत सिंह का लालन-पालन करती है लेकिन बीमार होकर एक दिन रानी का देहांत हो जाता है । उसके बाद अजीत सिंह एक सेठ के यहाँ कुवे पर नौकरी करने लग जाता है । एक दिन अजीत को ड्यूटी पर जाने में देर हो जाती है तो लाला क्रोधित होकर अजीत सिंह को गाली-गलोच कर धमकाता है ।

भजन-2 सेठ का अजीत सिंह से

तर्ज : चौकलिया
एक दिन लाला अजीतसिंह से, बोला जाड़ भींच।
कामचोर हरामखोर तू ,ओ नालायक नीच।। टेक ।।
आज तलक मैं नहीं बोला, मेरी सुनले बात अजीत।
मुफ्त का खाना चाहवै सै, नहीं काम करण की नीत।
काम से प्यार करै सै दुनिया, नहीं चाम से प्रीत।
जिसकी चाबें बाकली सब, उसके गावें गीत।
फीत लाग रही कौनसी तेरे, आँख रहा तू मींच ।। 1 ।।
जिस दिन मेरे कुवे पर आया, हाथ रहा था जोड़।
लाला जी मेरे दो पायाँ नै, नहीं धरती पर ठौड़।
काम करूँ दिन-रात, नहीं आराम करण की लोड़।
पेट भरण लाग्या तेरा, आज करने लगा मरोड़।
तोड़ आज मनै करणा सै, तूं घणी रहा सै खींच ।। 2 ।।
माणस की तरह बैठ रोज, घर में समझा लिया।
माफ करूँगा आज नहीं, घणा तंग आ लिया।
गाली देकर बोला, मेरा मगज खा लिया।
मेरी नरमी का तैं, उल्टा अर्थ लगा लिया।
ठा लिया डंडा आज तेरी, मार तोड़ दूँ फींच ।। 3 ।।
गर्मी सर्दी सहें गडरिया, फिरें बजाते एड।
जंगल के मां करें गुजारा, चरा के बकरी भेड़।
कूटे काम दिया करैं, तेरे जैसे ढेड।
भालोठिया कहे चाला जा, नहीं लूँगा खाल उधेड़।
पेड़ जहर का अपने घर में, रहा भूल में सींच ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अजीत सिंह क्षत्रिय का लड़का था वह इतनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सका और तलवार सूतकर सेठ की तरफ चलता है ।

भजन-3 अजीत सिंह का सेठ से

तर्ज : होगा गात सूक के माड़ा, पिया दे दे मनैं कुल्हाड़ा.......
चुभग्या बोल गात में लाला, बिषियर छेड़ दिया तैं काला।
गाला समझ लिए तू ज्यान का, अब मैं सिर तारूँ बेईमान का।। टेक ।।
क्षत्रिय बच्चे धर्म के सच्चे, दुनिया कहती आई।
मैं रघुवंशी राम का अंशी, जिसकी पड़ी दुहाई।
पाई जीत, फूँक दी लंका, जिसका बजा धर्म का डँका।
बंका था रावण अभिमान का ।। 1 ।।
कर मजदूरी ड्यूटी पूरी, अब तक तेरी बजाई।
मुफ्त का खाना माल बिराना, होता है दुखदाई।
खाई नहीं बैठ के रोटी, तेरी नहीं खोली मैं झोटी।
खोटी नीत मरण इन्सान का ।। 2 ।।
जख्म भरे गोली का जिसकी, अनगिनत मिलें दवाई।
बोली का घाव भरजा जिसकी, नहीं औषधि पाई।
साई देण मौत नैं लाग्या, तेरा वक्त आखिरी आग्या।
खाग्या जोश खून बलवान का ।। 3 ।।
नहीं खैर, ल्यूँ चुका बैर, तनै सूता शेर जगाया।
होके अन्धा, बोला गन्दा, झूठा रौब दिखाया।
काया जलके हो गई ढेरी, कहे भालोठिया हो सै देरी।
तेरा टका बणा दूँ शान का ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! सेठ ने अजीत सिंह से कहा की हम बणियेँ हैं हमारी बातों से लड़ाई होती है हम तलवार से नहीं लड़ते । सेठ को पता था कि अजीत सिंह की सगाई बैसलपुर के राजा प्रताप सिंह की लड़की राजबाला से कर रखी है । सेठ ने अजीत सिंह को ताना मारा कि ऐसा क्षत्रिय है तो राजबाला से शादी करके दिखा दे । यही बात अजीत सिंह को चुभ गई ।

भजन-4 सेठ का अजीत सिंह से

तर्ज : चौकलिया
बैसलपुर के राजा की, राजबाला राजकुमारी सै।
उसनै ब्याहले जब जाणूं, तू छोरा छत्रधारी सै।। टेक ।।
क्षत्रिय बच्चे आन बान और शान के ऊपर मरा करें।
अपने कुल को रोशन करदें, बदनामी तैं डरा करें।
पापी का दें खोज मिटा, और निर्बल की रक्षा करा करें।
ज्यान हथेली पर राखें, और कफन सिरहाने धरा करें।
भरा करें दिन रात मुसीबत, शान ज्यान से प्यारी सै ।। 1 ।।
तेरे जैसे बिना विचारे, मुँह छोटा करें बात बड़ी।
बिना बात की करे अंघाई, करलें आफत नई खड़ी।
बेमतलब के झगड़े झोवें, लागे साची बात कड़ी।
जो निर्बल पे हाथ उठावे, उसकी बुद्धि गई हड़ी।
घड़ी नाश की आवे उस दिन, लेवे राड़ उधारी सै ।। 2 ।।
भूख बावली हुआ करे, नहीं लाखों में शरमावै सै।
गुस्सा इतना स्याणा होता, पोल देखकर आवै सै।
जहाँ आगे तै डंडा दीखे, टोहे तैं नहीं पावै सै।
नहीं दिखावे कमजोरी, शान्ति का सबक सिखावै सै।
दिखावे सै तू आँख मनै, बणिये की जात हमारी सै ।। 3 ।।
आज तैं आगे मेरे कुवे पर, काम पे मतना आइये तू।
जहाँ मुफ्त का मिले खाण नै,उसी जगह पर जाइये तू।
जिसने माणस नहीं मिले, वहाँ जाके रौब दिखाइये तू।
भालोठिया दे तनै खाण नै, गीत उसी का गाइये तू।
पाइये तू फल करनी का, न्यू कहती दुनिया सारी सै ।। 4 ।।

वार्त्ता- सज्जनों ! सेठ के व्यंग्य पर अजीत सिंह ने प्रताप सिंह को अपनी शादी के लिए संदेश भिजवाया । प्रताप सिंह ने अजीत सिंह की माली हालत को देखकर शादी से इंकार न करके 20000/- रुपए की मांग कर दी । इसके बाद अजीत सिंह अपनी मां द्वारा बताए गए पिता के दोस्त जैसलमेर के लक्खी चाचा के पास मदद के लिए जाता है -

भजन-5 अजीत का सेठ लक्खी चाचा से

== दोहा ==
प्रतापसिंह को अजीत ने दिया शादी का समाचार।
मँगवा लिये प्रताप ने,रूपैया बीस हजार।।
तर्ज:- मन डोले, मेरा तन डोले.........
लक्खी चाचा,भीड़ में जाँचा, करो मेरा उद्धार,
रूपैया दे दो बीस हजार।। टेक ।।
धीरज धर्म, मित्र और नारी,आपत्ति काल परखिये चार।
शान्ति मन में, धीरज तन में, माणस के दे बदल विचार।
धर्म के बल से, गहरे जल से, नैया होज्या परले पार।
मित्र मन से, तन और धन से, मित्र का करदे उद्धार।
करूँ मैं अर्ज, दो निभा ये फर्ज, मैं आया आपके द्वार,
रूपैया दे दो बीस हजार ।। 1 ।।
मिलैं उदाहरण, चार के कारण, बसा हुआ सारा संसार।
नहीं चार तो घोरमघार, ये दुनिया डूबेगी मझधार।
पिता तुम्हारी, चर्चा सारी, करते घर में बारम्बार।
लक्खी लाला, मेरा निराला, सै दुनियाँ में पक्का यार।
हो दुख में नाथ, मिलाके हाथ, चले पतिव्रता नार,
रूपैया दे दो बीस हजार ।। 2 ।।
बुरा वक्त, ये कितना सख्त, गये ताज तख्त शाही दरबार।
फिरूँ अकेला, मैं अलबेला, ना कोई दीखे रिश्तेदार।
नहीं कोई घर में, मेरी नजर में, जिस पर हो मेरा एतबार।
कपड़ा रोटी, मुश्किल मोटी, ब्याह शादी का टेढ़ा भार।
मेरी हो शादी, मिले शहजादी, बनज्या ब्याह संस्कार,
रूपैया दे दो बीस हजार ।। 3 ।।
लिखतम करले, पेटा भरले, जो हो तेरी बही का रूल।
प्रण करूँ, इज्जत से डरूँ, ये मेरे जीवन का बना उसूल।
वादा खिलाफी, मत दे माफी, जो कोई हो जा मेरी भूल।
रकम तुम्हारी, दे दूँ सारी, पाई-पाई ब्याज और मूल।
धर्मपाल, नहीं करे टाल, मेरा जमानती सै तैयार,
रूपैया दे दो बीस हजार ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजबाला ने पिता की शर्त सुनकर कहा मुझे राजपाट नहीं चाहिए । वह अजीत सिंह से शादी के लिए बांदी को माँ के पास भेजती है -

भजन-6 राजबाला का बान्दी से

तर्ज : फिरकी वाली, तू कल फिर आना..........
जाइये बाँदी, ये काम सै जरूरी, दूँगी तेरी दस्तूरी।
मेरी माता को प्रणाम दे,हे तू मेरी शादी का पैगाम दे ।।
जवान उमर में, बेटी घर में, होती काला सांप हे, चिन्ता रहे दिन रात।
तन में भारी, लगे बीमारी, दुखी पिता और मात।
गात सूके, हाड मांस नै फूँके, खाना कर हराम दे।
हे तू मेरी शादी का पैगाम दे ।। 1 ।।
उन्हे बताइये, मुझे ना चाहिए, राजपाट के ठाठ हे, रथ बग्घी और बहल।
कोठी बंगले, झाँकी जंगले, सुन्दर-सुन्दर महल।
छैल छोरा, रंग का गोरा-गोरा, अजीतसिंह का नाम दे।
हे तू मेरी शादी का पैगाम दे ।। 2 ।।
करले मनादी, करदें शादी, मेरी उसके साथ हे, कर लिया मनै कबूल।
लड़की चाहती, उसको ब्याहती, दुनिया फिरे फिजूल।
रूल पुराना, माता को बताना, चाहे धन की नहीं छदाम दे।
हे तू मेरी शादी का पैगाम दे ।। 3 ।।
करें सहेली, जिनमें खेली, मेरी शादी का चाव हे, मेरी बचपन की प्रीत।
बाजे बाजें, आन बिराजें, मेरे मन के मीत।
गीत सुनावे, धर्मपाल सिंह आवे, मेरी शादी में प्रोग्राम दे।
हे तू मेरी शादी का पैगाम दे ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! अजीत सिंह द्वारा प्रताप सिंह की शर्त पूरी करने पर प्रतापसिंह दहेज में सिर्फ दो घोड़े और दो जोड़ी कपड़े देकर राजबाला को विदा कर देता है और अजीतसिंह राजबाला को घर ले आया लेकिन लक्खी चाचा की शर्तानुसार राजबाला से दूरी बनाए रखी । राजबाला उसका कारण पूछती है -

भजन-7 राजबाला का अजीत सिंह से

तर्ज : मेरा दिल ये पुकारे आजा, मेरे दिल के सहारे आजा.......
मेरे भरतार बतादे, ये के आकार बतादे।
बिस्तर न्यारा-न्यारा क्यों, बीच में खड़ा कटारा क्यों।। टेक ।।
आज तलक मैं मात-पिता के, प्यार में रही, में रही।
आई जवानी आपके इन्तजार में रही, में रही।
नहीं ये भेद कुछ पाया, आपने क्या रचदी माया।
ये कैसा प्यार बतादे ।। 1 ।।
आपको चाँद मानकर के पागल, बनी चकोर मैं, चकोर मैं।
अपने जीवन के बन्धन की, बनगी डोर मैं, डोर मैं।
चोर मैं नहीं बनके आई, आपने कैसी दिखलाई।
ये पैनी धार बता दे ।। 2 ।।
या तो कोई सुनी शिकायत, आपने हो मेरी, हो मेरी।
जिसके कारण आत्मा, दुख पाई हो तेरी, हो तेरी।
देरी हो सै पल-पल की, कहानी के हुई छल की।
ये गुप्ती मार बतादे ।। 3 ।।
देख तमाशा हुई निराशा, जिया दुख पावे, हो पावे।
आप हो गये मौन, कौन ये भेद बतलावे, बतलावे।
गावे भालोठिया आके, अगले गीत में गाके।
इस गीत का सार बतादे ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! राजबाला के पूछने पर अजीत सिंह शादी के पूर्व की सारी कहानी न्यू बताता है -

भजन-8 अजीत सिंह का राजबाला से

तर्ज : चौकलिया
के बूझेगी प्राण पियारी, दुख पावेगी काया।
तेरे पिता ने मेरे लिए, एक चक्र व्यूह रचाया।। टेक ।।
मेरे मन में नहीं था, कोई विचार शादी का।
एक सेठ ने दिया था, ताना मार शादी का।
तेरे पिता को दिया मैंने, समाचार शादी का।
जल्दी करो महाराज, करूँ इन्तजार शादी का।
बीस हजार रूपैया, तेरे बाप ने मँगवाया ।। 1 ।।
रूपैया बीस हजार, नहीं जो ल्याओगे बेटा।
मोड़ बाँध के मेरे घर, नहीं आओगे बेटा।
खाली हाथ आ गये तो, पछताओगे बेटा।
इज्जत का धेला करवाके, जाओगे बेटा।
तेरे पिता का पत्र लेकर, एक हलकारा आया ।। 2 ।।
पढ़ के पत्र मैं हो गया, लाचार था प्यारी।
लक्खी लाला मेरे पिता का, यार था प्यारी।
उससे ल्याया रूपैया, बीस हजार था प्यारी।
मेरे लिए ये बहुत बड़ा, एक भार था प्यारी।
नेम धर्म करवाके अपनी, बही में लिखवाया ।। 3 ।।
नहीं करूँ इन्तजार जो, वचन निभाओगे बेटा।
मेरी बही में इतनी, शर्त लिखाओगे बेटा।
जब तक मेरे रूपैये, नहीं चुकाओगे बेटा।
बीर मर्द का रिश्ता, नहीं बनाओगे बेटा।
धर्मपाल सिंह भालोठिया को, अपना गवाह बनाया ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजबाला ने लक्खी चाचा की 20000/- की शर्त पूरी करने के लिए नौकरी करने के लिए कहा । इसके बाद राजबाला ने मर्दाना भेष धारण किया और दोनों उदयपुर पहुँच जाते हैं ।

भजन-9 कवि का

तर्ज : गंगा जी तेरे खेऽऽत में, घले हिन्डोले चार..........
उदयपुर के बाजाऽऽर में, फिरे सारस बरगी जोट।
घूम रहे मौऽऽज में, छैल दीवाने दोऽऽ।। टेक ।।
गोरे गोरे, छैले छोरे, दोनों चन्दा की उनिहार।
ठहर ठहर के, सारे शहर के, देखें मंडी और बाजार।
कहें नरनारी, ये ब्रह्मचारी, किसी राजा के राजकुमार।
अपनी सवारी, न्यारी-न्यारी, चाल दिखावें घोडा़-घोड़ी।
धन्य विधाता, जग निर्माता, ठाली बैठ मिलाई जोड़ी।
लोग-लुगाई, करें बडा़ई, जनता आवे दौडी़-दौड़ी।
थोडी़ तेज रफ्ताऽऽर में, करदे माणस पर चोट।
घूम रहे मौऽऽज में, छैल दीवाने दोऽऽ।। 1 ।।
लाखों तारे, न्यारे-न्यारे, चमक रहे आसमान में।
दो का उजाला, रहे निराला, चन्द्रमा और भान में।
इतनी लाली, चमक निराली, नहीं दीखे हर जवान में।
सबको प्यारे, लागैं सारे, अपने-अपने बेटा बेटी।
नहीं बतावें, ये शरमावें, देखण आए भरती कमेटी।
पूरी ऊँचाई, देती दिखाई, आँख मृग सी लम्बी घेटी।
पेटी के इन्तजाऽऽर में, करें बालाजी का रोट।
घूम रहे मौऽऽज में, छैल दीवाने दोऽऽ ।। 2 ।।
असली जोड़ी, मिलती थोड़ी, हो चर्चा जिनके नाम की।
त्रेता काल, दशरथ के लाल, थी जोड़ी लक्ष्मण राम की।
मिले कहानी, जोड़ पुरानी, थी अर्जुन घनश्याम की।
पड़ी धूम, चलें घूम-घूम, ये अल्हड़ जवानी के मतवाले।
देखो नजारा, इनका इशारा, कोड वर्ड सैं खास निराले।
इनका नाता, साफ बताता, दीखें बहनोई और साले।
बुलाले पास कोई प्याऽऽर में, उसका नाम करें नोट।
घूँम रहे मौऽऽज में, छैल दीवाने दोऽऽ ।। 3 ।।
चर्चा ताजा, सुनके राजा, पड़ग्या गहन विचार में।
जवान उमर में, किस चक्कर में, फिरते ये बेकार में।
ड्यूटी लगाई, भेजा सिपाही, बुलवा लिये दरबार में।
बोला भूप, ये रंग रूप, नही रोटी दे संसार में।
मेरी फौज में, रहो मौज में, आपको दूँ रोजगार मैं।
नौकरी पक्की, मिले तरक्की, लगवा दूँगा स्टार मैं।
कहे भालोठिया दरबाऽऽर में, आपको मिले स्पोट।
घूम रहे मौऽऽज में, छैल दीवाने दोऽऽ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! ये दोनों राजा ने दरबार में बुला लिये। अजीत सिंह और गुलाब सिंह (राजबाला) बहनोई और साले के रिश्ते से फौज में भरती हो गये। चन्दरोज में चान्दमारी पूरी करली और दशहरा आ गया।

भजन-10 राजा का

तर्ज : साथण चाल पडी़ हे, मेरा डब डब भर आया नैन ........
दशहरा आया रे, आज खेलण चलो शिकार।। टेक ।।
जब फतह राम ने पाई थी, ये विजयदशमी कहलाई थी।
ये आर्यों का त्यौंहार। दशहरा आया रे..........।। 1 ।।
कसलो घोड़े हाथी रे, वो हों जोशीले साथी रे।
सजा लियो हथियार। दशहरा आया रे........।। 2 ।।
जहाँ गहरा जंगल पावेगा, वहाँ शेर गरज के आवेगा।
करलो नंगी तलवार। दशहरा आया रे.........।। 3 ।।
भालोठिया लिखे कहानी रे, थारे गावे गीत जबानी रे।
हो ज्यागी जय-जयकार। दशहरा आया रे........। 4 ।।

वार्ता - दशहरा के त्यौहार पर शेर को मारने की बहादुरी पर राजा दोनों को ड्योढ़ी पर पहरेदार लगा देता है, ड्यूटी के समय रात को बादल गरजते हैं, बादलों की घोर सुनकर गुलाब सिंह (राजबाला) अजीत सिंह से कहता है -

भजन-11 राजबाला का अजीत सिंह से

तर्ज : चौकलिया
बिजली चमचम, बारिश रिमझिम, रात अन्धेरी छाई।
कितने दिन और काटूं गिन-गिन, मेरी नणद के भाई।। टेक ।।
समय बड़ा अनमोल पिया, आज लुट रहा सै दिन धौली।
समय पै आवें तीज दीवाली, समय पर आवे होली।
समय पर बोलें मोर पपीहा, समय पर कोयल बोली।
समय पर पाकें सेव संतरा , नीम्बू आम निम्बोली।
समय के ऊपर छोरा-छोरी, बनते मर्द लुगाई ।। 1 ।।
समय के ऊपर बीर-मर्द, आपस में मेल करैं सैं।
समय के ऊपर दुनियादारी का सब खेल करैं सैं।
समय के ऊपर हारसिंगार व अंतर-फुलेल करैं सैं।
समय के ऊपर अपने कुल की, बढ़ती बेल करैं सैं।
समय के ऊपर सेज आपकी, रहै सै बिछी बिछाई ।। 2 ।।
समय के ऊपर किस पौधे का, पत्ता नहीं हिलै सै।
समय के ऊपर बाग में, हर पौधे का फूल खिलै सै।
समय के ऊपर पपीहा को भी, स्वाति की बूंद मिलै सै।
समय के ऊपर मेरे से भी, नहीं ये चोट झिलै सै।
समय के ऊपर रोग कटे, जब लागे असल दवाई ।। 3 ।।
समय के ऊपर लू चालैं, आकाश में धूल उड़ै सै।
समय के ऊपर प्यासी धरती, इन्द्र से झगड़ै सै।
समय के ऊपर इन्द्र देवता, लेकर घटा चढ़ै सै।
समय के ऊपर मेह बरसे, और मूसलाधार पड़ै सै।
समय के ऊपर भालोठिया, ने गजब करी कविताई ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! दोनों ड्योढ़ी पर पहरेदारों की रात को रानी सारी बातें सुनकर राजा को बताती है ।

भजन-12 उदयपुर के राजा जगत सिंह की रानी का

तर्ज : भरण गई थी नीर राम की सूँ .........
अपने पहरेदार, राम की सूँ।
एक मर्द एक नार, राम की सूँ।। टेक ।।
मैंने इनकी बात आज, गौर से सुनी सै पिया।
किसी की बताई नहीं और से सुनी सै पिया।
कभी धीरे-धीरे कभी जोर से सुनी सै पिया।
दीनी रात गुजार, राम की सूँ ।। 1 ।।
के तो पिछले जन्म का सै, कर्म इनका खोटा पिया ।
के फिर इनके घर में आज, आ गया हो टोटा पिया।
के फिर इनके मां-बाप ने, दे दिया दिसोटा पिया।
सै कोई गुप्ती मार, राम की सूँ ।। 2 ।।
माणस के लिए तो हो सै, थोड़ा सा इशारा पिया।
मुसीबत में ले राख्या सै, आपका सहारा पिया।
मैंने इनका भेद आज, जान लिया सारा पिया।
फिरी पाणी पर गार, राम की सूँ ।। 3 ।।
ड्योढ़ी पर खड़े सैं दोनों, अपने जो सिपाही पिया।
बीर और मर्द सैं, इनकी होती ना मनचाही पिया।
मेरी झूठ मानोगे तो, दे देगा गवाही पिया।
भालोठिया सै त्यार, राम की सूँ ।। 4 ।।

वार्ता- राजा जगत सिंह अजीत सिंह को बुलाकर उसे अपना सारा भेद बताने को कहता है ।

भजन-13 राजा जगत सिंह का अजीत सिंह से

तर्ज : पारवा (खड़े बोल)
हो हो सुन अजीत सिंह मेरे लाल, आज कोई बात सुनादे रे।। टेक ।।
नहीं सुनूँगा इतिहासों में, लिखी हुई कहानी।
आप बीती दे सुना आज तू , अपनी आप जबानी।
हो हो तेरी रहेगी बनी मिसाल, आज कोई बात सुना दे रे ।। 1 ।।
कथा-कहानी सुनने का मैं, बचपन से शौकीन।
नकली सांग नहीं देखूँगा, दिखादे असली सीन।
हो हो तू रहा धर्म को पाल, आज कोई बात सुनादे रे ।। 2 ।।
मैंने अब तक जति सती का, सुना जगत में नाम ।
जति-सती की असली कहानी, रात को सुनी तमाम।
हो हो मैंने देखा अजब कमाल, आज कोई बात सुनादे रे ।। 3 ।।
भरती हो गये फौज में, बन साला और बहनोई।
मेरी फौज में भेद तुम्हारा, जान सका नहीं कोई।
हो हो बीत गया एक साल, आज कोई बात सुनादे रे ।। 4 ।।
पाप की बाजी रहे हार में, धर्म की होती जीत ।
आपकी धर्म कथा गावेगा, बना-बना के गीत।
हो हो ये भालोठिया धर्मपाल, आज कोई बात सुनादे रे ।। 5 ।।

वार्ता- अजीत सिंह राजा को अपनी पीछे की सारी कहानी बताता है ।

भजन-14 अजीत सिंह का राजा से

तर्ज : चौकलिया
के बूझे महाराज आज, मेरी हाले नहीं जबान।
धरती माँ नहीं बड़ने दे, और थ्यावे नहीं आसमान।। टेक ।।
अमर कोट में राज करै था, अनारसिंह महाराज।
महल में जन्म हुआ मेरा और बजे खुशी के साज।
पिता लड़ाई में मारा गया, गये तख्त और ताज।
हाथी घोड़े माल खजाना, गये हवाई जहाज।
लाज बचावणियां सबकी, सै दीनबन्धु भगवान ।। 1 ।।
माता जी को पता लगा, मनै ला छाती के रोई।
नौकर बाँदी दूर गये सब, बात करे नहीं कोई।
जहाँ पकवान बना करते, वो सून्नी पड़ी रसोई।
पान मिठाई गये भाड़ में, वहाँ रोटी तक नहीं पोई।
सोई माँ जंगल में जा, मैं था बिल्कुल नादान ।। 2 ।।
उसी रात को माताजी के, डंक सांप ने मारा ।
माताजी भी छोड़ गई, था मेरा एक सहारा।
एक सेठ के कुवे पर, मैं करने लगा गुजारा।
एक दिन ताना मार सेठ ने, खून फूँक दिया सारा।
कंवारा फिरे, तेरी मांग छूटे, तेरा देखा खानदान ।। 3 ।।
बैसलपुर के राजा को मनैं, भेज दिया समाचार।
राजबाला सै मांग मेरी, अब करदो ब्याह-संस्कार ।
प्रतापसिंह ने मंगा लिये थे, रूपये बीस हजार।
सेठ के पास गया मैं, जो था मेरे पिता का यार।
हजार बीस ले प्रताप ने, करवा दिया कन्यादान ।। 4 ।।
एक राजा की जाई का, मैंने जीवन किया खराब।
राजबाला सै बीर मेरी, जो ये साळा बनी गुलाब।
बीर-मरद का रिश्ता मेरा, उस दिन बने जनाब।
सेठ का कर्जा पाई-पाई, दूँगा चुका हिसाब।
भालोठिया कहे लिखे बही में, सेठ ने मेरे बयान ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अजीत सिंह की कहानी सुनकर राजा जगत सिंह उन दोनों में जति सती का एहसास कर गर्व महसूस करता है ।

भजन-15 राजा जगतसिंह का

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ, पायल की झन्कार.............
सुन के बात अजीतसिंह की, बोला जगत सिंह महाराज।
घर में आये जति-सती के, दर्शन करलो आज।। टेक ।।
लोग देश में जति-सती का, नकली सांग दिखावैं-दिखावैं।
कुण्डी सोटा ले शिवजी को, पीता भाँग दिखावैं, दिखावैं।
बजरंग को विकलांग दिखावें, राम के सारे काज ।। 1 ।।
शील सबर संतोष सर्व गुण, मिलते ना नरनर में, नरनर में।
जति पुरूष और सती नार, ये मिलते नहीं घर-घर में, घर-घर में।
देख लिया दुनिया भर में कोई, बहम का नहीं इलाज ।। 2 ।।
पति मार के सती होण का, जो दावा ठोकैं सैं, ठोकैं सैं।
जलती हुई चिता में, अपने तन को झोकैं सैं, झौकैं सैं।
उसको मूर्ख धोकैं सैं, क्यों अँधा हुआ समाज ।। 3 ।।
चन्द्रमा सा चमके चेहरा, हो गया दूर अँधेरा, हो अँधेरा।
धन्य घड़ी धन्य भाग हमारे, हुआ पवित्र डेरा, हो डेरा।
धर्मपाल भालोठिया तेरा गजब सुरीला साज ।। 4 ।।

सज्जनों ! इस प्रकार राजा जगत सिंह ने जति सती का जोड़ा देखकर सेठ लक्खी को बुलाकर उसका सारा कर्जा चुका दिया । अपनी फौज और प्रताप सिंह की फौज लेकर अमरकोट पर चढ़ाई करते हैं और अजीत सिंह का राजपाट वापिस दिलाते हैं और दोनों आनंदपूर्वक रहने लगते हैं ।


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