Sukha Singh

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Genealogy of the Fridkot rulers

Sukha Singh (सुखा सिंह) (b.1681, r.1710 - d.1731) was Barar-Jat Chief of Faridkot State. He founded Kot Sukha village and fort in his name. Thakur Deshraj writes him as Shekha Singh.

History

Lepel H. Griffin[1] writes that Kapura was eighty years old at his death in 1708, who left three sons, Sukha, Sajja and Makhu, who determined to avenge their father's murder, and, assembling the clan and obtaining the aid of a strong Imperial force, they attacked Isa Khan, defeated and killed him and plundered his fort.

Sajja, though the second son,* succeeded his father as head of the family, but only survived him twelve years, when his brother Sukha Singh became Chief. He added to his possessions the estates of Rahadatta, Behkbodla, Dharamkot, Karman and Mamdot, and founded the new village of Kot Sukha. To his younger brother, Makhu, the villages Rori and Matta, were assigned from the patrimony, and these are still in the possession of Makhu's descendants.


Sukha died in 1731, aged fifty, leaving three sons, Jodh, Hamir and Vir, who for some time lived together in peace, but at length they quarreled and the two younger wished to divide the estate. To this Jodh, the eldest, would not agree, and Hamir and Vir then asked assistance from some of the Sikh Chiefs then rising to power.


* Sirdar Attar Singh Bhadour, one of the best authorities on early Cis-Satlej history, considers Sukha Singh to have been the second son, and Sajja or Lena Singh the elder. Also that the latter was Chaudhri for only two years, dying in 1710.

शेखासिंह फरीदकोट के राजा वराड़ वंशी जाट सिख थे। जाट इतिहास:ठाकुर देशराज से इनका इतिहास नीचे दिया जा रहा है।

शेखासिंह

इनमें सेनासिंह ज्यादा दिलावर था। ये आए दिन फौज इकट्ठी करते और ईसाखां पर हमला बोलते। बदला लेने की इन्हें ऐसी धुन सवार हुई कि रियासत के इन्तजाम की भी सुध भूल गए। यहां तक कि बाप की जगह जांनसीनी और राजतिलक की रस्म की भी सुध न रही। दिन-रात उसी धुन में रहते कि ईसाखां की कमर तोड़ कर, उसका चुल्लू भर खून पीकर, उसके दिल के अरमान निकालें। बारह-तेरह वर्ष तक बराबर लड़ाई होती रही। इस लम्बे अरसे में शेखासिंह ने हिसार के सूबेदार से दोस्ती पैदा कर ली और उसको ईसाखां के खिलाफ भड़का कर अपने पक्ष में कर लिया। हिसार के सरदार ने जिसका नाम सहदादखां था, दिल्ली के बादशाह से इस बात का अहद प्राप्त कर लिया कि ईसाखां को दण्ड दिया जाए। लाहौर के सूबेदार ने भी अपनी फौज सहदादखां के पास सहायता के लिए भेज दी। सहदादखां ने सेनासिंह की मारफत ईसाखां को ललकारा। ईसाखां के पास लड़ाई के लिए काफी फौज थी। सहदादखां और इसाखां की फौजें प्रदाद में पहुंच गईं। खडियाल को जीतने के बाद कोट ईसाखां पर हमला किया गया। दोनों तरफ बराबर फौजें थीं। दोनों ओर से घमासान लड़ाई हुई। कहते हैं कि जोधा की औलाद के कुछ लोग मैदान छोड़कर घरों को भाग गए, लेकिन उनकी औरतों ने उनको बड़ा शर्मिन्दा किया और धिक्कारा। कहते हैं कि एक नौजवान सरदार अपना मुकलावा करके लाया। उसकी मां को उदास देखकर पूछा। मां ने कुल हाल अपनी उदासी का कहा कि ऐसे मर्दों से तो औरत अच्छी हैं। इस नौजवान का नाम पदारथसिंह था। मां की ऐसी बातें सुनकर उसका खून खौल उठा। वह मुकलावा की सारी खुशी भूल गया। हथियार बांध, घोड़े पर सवार हो सीधा युद्ध-क्षेत्र की ओर चल दिया। वहां जाकर बड़ी भारी बहादुरी दिखलाई। यह लड़ाई तीन दिन तक होती रही। हजारों आदमियों की लौथों से जमीन पट गई। ईसाखां हाथी पर सवार होकर सेनासिंह के सामने हाथी की तरफ बढ़ा। सेनासिंह की बगल में सहदादखां था और ईसाखां का मददगार था। जुमलेखां को सहदादखां ने बढ़कर मार डाला। सरदार सेनासिंह ने हाथी को बढ़ा कर आगे


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-446


किया और खुद फुरती से कूदकर ईसाखां के ओहदे में जा पहुंचा। तलवार के एक हाथ में ईसाखां का सिर काट दिया। दाहिने हाथ से चुल्लू भर लोहू पीने लगा लेकिन साथियों ने कहके बन्द कर दिया। ईसाखां की फौज भाग निकली। किले शहर पर वराड़ का कब्जा हो गया। कुछ इतिहासकारों ने ईसाखां की यह लड़ाई सन् 1715 ई० बअहद फर्रुखशियार बादशाह के लिखी है।

शेखासिंह को राजगद्दी - इन तमाम लड़ाई-झगड़ों के बाद शेखासिंह को राजगद्दी हुई। जिन दिनों शेखासिंह ने अपनी हुकूमत संभाली, उन दिनों दिल्ली के तख्त पर मुहम्मदशाह रंगीला (1702-1748) बादशाह था। सरदार शेखासिंह ने सबसे पहला काम यह किया कि जो इलाके उनके दुर्भाग्य के दिनों में दुर्बल हो गये थे, उनको ठिकाने पर लाए। इसके बाद उन्होंने आबादियां बसानी आरम्भ कीं। एक गांव का नाम अपने ही नाम पर कोटसिखा रक्खा।

References


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