Umaria

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

District map of Umaria

Umaria (उमरिया) is the name of a city and district in Madhya Pradesh.

Location

Umaria district is located to the North East of Madhya Pradesh. Mathematically the coordinates of the District extend from 23o38′ to 24o20′ North and 80o28′ to 82o12′ East. It has geographical area of 4548 sq.km. The greatest length of the district is about 150 km. from north to south and the greatest width is about 60km from east to west.[1]

Metalled roads connect the town with Katni, Rewa Shahdol etc., on which regular buses ply. Umaria is also a railway station on the Katni-Bilaspur section of the South-Eastern Railway.[2]

Tahsils in Umaria District

Source https://www.census2011.co.in/data/district/298-umaria-madhya-pradesh.html

History

Umaria was formerly the headquarters of the South Rewa District and thereafter the headquarters town of the Bandhavgarh tehsil. It is situated at a distance of about 69 Km. from Shahdol, the parent district.[3]

Economy

The district has extensive forests. About 42% of the total area is covered by forests only. The District is rich in minerals. The most important mineral found in the district is coal and as a result 8 mines are being operated by South Eastern Coalfield Limited in the district.[4]

The famous Bandhavgarh National Park (Tala) and Sanjay Gandhi Thermal Power Station Mangthar (Pali) are located in the district.

Jat Gotras Namesake


उमरिया जिले में राम वनगमन मार्ग पर स्थित स्थान

राम वनगमन मार्ग - दशरथ घाट

उमरिया. विंध्य मैकल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी अमरकंटक से निकलने वाली दो नदियों सोन एवं जोहिला के संगम स्थल पर स्थित दृश्य भगवान राम के वन गमन का मार्ग है जो लोगों की आस्था का केंद्र तो है लेकिन उपेक्षा का शिकार भी हैं. पौराणिक मान्यता के मुताबिक चित्रकूट से सतना होते हुए भगवान राम उमरिया के मार्कण्डेय आश्रम पंहुचे थे. जहां से वह बांधवंगढ़ के लिए रवाना हुए और रात्रि विश्राम कर दूसरे दिन आगे बढ़े और सोन जोहिला नदी के संगम में अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया. उसी क्षण के बाद इस स्थल का नाम दशरथ घाट हो गया. तब से लेकर लोग यहां आज तक आस्था की डुबकी लगाते हैं लेकिन घने जंगल और पगडंडियों से होकर यहां तक पंहुचने में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हालांकि प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में स्थित राम वनगमन मार्ग को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने के फैसले से लोगों में उत्साह है. राम वनगमन समय के उमरिया जिले में तीन मुख्य केंद्र हैं जिसमे पहला मार्कण्डेय आश्रम है जो अब बाणसागर जलाशय बन जाने के बाद डूब में आ चुका है. दूसरा बांधवंगढ़ का किला और तीसरा दशरथ घाट संगम. जानकारों की माने तो प्रभु श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को लंका में निगरानी रखने के लिए यह किला दान में दिया था और इसका निर्माण सेतुबन्धु रामेश्वरम का निर्माण करने वाले नल नील ने किया था. किवदंती है कि बांधवंगढ़ के पर्वत की ऊंचाई इतनी ज्यादा थी कि लंका का किला ठीक से दिखाई नही देता था. जिसके चलते लक्ष्मण ने अपने पैर बांधवंगढ़ के ऊपर रखकर इसे छोटा कर दिया था. भूगोल के जानकार आज भी बांधवंगढ़ के पहाड़ को किसी फुटप्रिंट जैसे होना बताते हैं. बांधवंगढ़ के किले में स्थित रामजानकी मंदिर आज भी देश भर के लोगो की आस्था का केंद्र है. जहां हर जन्माष्टमी लाखों लोग दर्शन करने आते हैं. प्रदेश सरकार के द्वारा राम वनगमन मार्ग को चिन्हित कर विकसित करने से जिले में उपेक्षित पड़े राम वनगमन मार्ग के ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार संभव हो सकेगा. वहीं लोगों के जेहन में धुंधली होती जा रही राम वन गमन की तस्वीर भी साफ होगी.[5]

Notable persons

External links

References


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