Amrit Kalash/Chapter-13

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स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),

लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर


अध्याय – 13: विविध भजन

चंचल – मन, गद्दारी, कर्महीन, खटका आदि

चंचल-मन

64. दिल डटता कोनी, डाटूँ सूँ रोज भतेरा

भजन-64

तर्ज:-सांगीत - मरण दे जननी,मौका यो ठीक बताया.......

दिल डटता कोनी, डाटूँ सूँ रोज भतेरा ।। टेक ।।

कभी मन चाहे मेरे, छात पर अटारी हो ।

कभी मन चाहे मेरे, मोटरकार लारी हो ।

कभी मन चाहे मेरे, हाथी की सवारी हो ।

कभी मन चाहे मैं, धरती पर ना पैर धरूँ ।

कभी मन चाहे मैं, आसमान की सैर करूँ ।

कभी मन चाहे मैं, जहाजों में माल भरूँ ।

कभी-कभी मन चाहे हो, चढणे नै उलेल बछेरा ।

दिल डटता कोनी.......... ।। 1 ।।

कभी मन चाहे मेरे, बाग में शिवाला हो ।

कभी मन चाहे मेरे, कन्धे पर दुशाला हो ।

कभी मन चाहे मेरे, साग में मसाला हो ।

कभी मन चाहे मेरे, बैठक बंगले नोहरे हों ।

कभी मन चाहे मेरे, दूध के बखोरे हों ।

कभी मन चाहे मेरे, पाँच सात छोरे हों ।

कभी-कभी मन न्यूँ चाहे, यहाँ घूमे जा लठ मेरा ।

दिल डटता कोनी......... ।। 2 ।।

कभी मन चाहे मेरे, करोड़ों की कमाई हो ।

कभी मन चाहे मेरे, बढ़िया सी असनाई हो ।

कभी मन चाहे मेरे, खाणे को मिठाई हो ।

कभी मन चाहे मैं, अच्छे-अच्छे काज करूँ ।

कभी मन चाहे मैं, दुनिया का राज करूँ ।

कभी मन चाहे मैं, नखरे और मिजाज करूँ ।

कभी-कभी मन न्यूँ चाहे, मेरा हो अरबों का डेरा ।

दिल डटता कोनी.......... ।। 3 ।।

कभी मन चाहे मैं, साहूकार अमीर बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, निर्मोही फकीर बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, देश का वजीर बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, गाँधीजी की गैल बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, नेहरू या पटेल बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, भगतसिंह दलेल बनूँ ।

‘सुभाष’ कहे मन चाल, करूँ चरखी में दूर अंधेरा ।

दिल डटता कोनी.......... ।। 4 ।।
गद्दारी

65. भाइयों के संग गद्दारी, कर

।। भजन-65।।

तर्ज:- चौकलिया

भाईयों के संग गद्दारी कर, कहो कौन सुख पाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा, अन्त समय पछताया ।। टेक ।।

एक भयानक बन में रहता, शेर बड़ा बलशाली ।

शेर गया कहीं जंगल में और गुफा पड़ी थी खाली ।

गीदड़ और गीदड़ी आ गये, शाम थी होने वाली ।

दो बच्चे थे साथ में उनके, उमर थी जिनकी बाली ।

खाली गुफा देख गीदड़ ने, अपना डेरा लगाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 1 ।।

पूरी रात शेर जंगल में, करता रहा घुमाई ।

हुआ सवेरा उसने अपने, घर की सुरत लगाई ।

गीदड़ को जिस वक्त शेर, दिया आता हुआ दिखाई ।

कहने लगा भगवान आज ये, कहाँ से आफत आई ।

बचने के लिए गीदड़ ने, फिर कैसा दाँव चलाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 2 ।।

जोर से बोला बनरानी, ये बच्चे क्यों चिल्लाते ।

बोली सिंह पछाड़ ये बच्चे, भूखे रूदन मचाते ।

शाम को लाया मांस शेर का, उसको क्यों नहीं खाते ।

बन रानी कहे नहीं खाने को, ताजा मांस मँगाते ।

गीदड़ बोला ठहर जरा, एक शेर नजर में आया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 3 ।।

शेर ने जब ये बात सुनी, उसकी तबियत घबराई ।

सिंह पछाड़ और बनरानी से, भाग कर जान बचाई ।

आगे शेर को इसी गीदड़ का, मिला पड़ौसी भाई ।

गजब किया उसने अपने, भाई की चुगली खाई ।

घर का भेदी लंका ढ़ावे, वही कर दिखलाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 4 ।

चला शेर के साथ में गीदड़, खुशी मनाई भारी ।

सिंह पछाड़ ने देखा, सुमरे दीनों के हितकारी ।

बन रानी इन बच्चों के आज, हो गई क्या बिमारी ।

बोली बच्चे भूखे मरते, रात बीतगी सारी ।

सिंह पछाड़ कहे भेजा नौकर, शेर यहीं बुलवाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 5 ।।

शेर ने जब ये बात सुनी, नहीं रहा था जोश बदन में ।

जैसे तैसे करके बड़ग्या, भाग-दौड़ के बन में ।

पीछे-पीछे आया गीदड़, हँसता आवे मन में ।

क्यों सिंहनी का दूध लजाया, धूल तेरे इस तन में ।

यदि वह होता इसा शिकारी, क्यूँ नहीं मुझको खाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 6 ।।

तेरे बिना नहीं बन का राजा, और कोई जंगल में ।

हिम्मत करले तेरा ये मसला, करवाऊँगा हल मैं ।

करले तू विश्वास तेरे संग, नहीं करने का छल मैं ।

यदि नहीं एतबार तेरी ले, पूँछ बांध मेरे गल में ।

अब के कर इन्तजाम शेर ने, अपना कदम उठाया।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 7 ।।

सिंह पछाड़ ने देखा अबके, भाई ने करा चाळा ।

हिम्मते-मर्दे मददे-खुदा, अपना हथियार संभाला ।

बनरानी अबके नौकर ने, शेर के फँदा डाला ।

धर्मपालसिंह सुन केहरी का, ढीला हुआ मसाला ।

मारा शेर ने घसीट गीदड़, करणी का फल पाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा.......... ।। 8 ।।
कर्महीन

66. सकल पदार्थ हैं जग मांही

।। भजन-66।।

तर्ज:-होगा गात सूक के माड़ा,पियाजी दे दे मनैं कुल्हाडा़..........

सकल पदारथ है जग मांही, कर्महीण नर पावत नाहीं ।

आई चौपाई रामायण में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। टेक ।।

शिव पार्वती बैठे बन में, प्राणी आ गये तीन ।

एक लड़का दो बुड्ढ़ा-बुड्ढ़ी, उनका दिखाऊँ सीन ।।

कर्महीन थे तीनों प्राणी, खोवें टोटे में जिन्दगानी ।

हानि लाभ रहे नहीं ध्यान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 1 ।।


गोरां बोली पति आप हो, परदुख भंजन हारी ।

इनको मालोमाल बना दो, मिटे मुसीबत सारी ।।

भारी उठा रहे परेशानी, रहेगी आपकी बनी कहानी ।

दानी हो सबसे बड़े जहान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 2 ।।

शिवजी बोले बूढ़े बाबा, कुछ भी मांग लो आज ।

अन्न-धन की नहीं कमी रहण द्यूँ ,चाहे मांग लो राज ।।

ताज तखत मिले सरकारी, हो दरबार की शोभा न्यारी ।

सारी बनजां बात जबान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 3 ।।

हाथ जोड़ कर बूढ़ी बोली, नहीं माँगू धन-माल ।

जेवर कपड़े रंग रूप दो, उमर अठारह साल ।।

बाल काले हों, जावे बुढ़ापा, खाऊँ गूँद देखल्यूँ जापा ।

छापा लागे उमर जवान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 4 ।।

फिर बोली बूढ़े से, बाबा सुनले तोड़ खुलासा ।

तेरे साथ मैं नहीं रहूँ ,अब नया करूँ घर बासा ।।

तमाशा देखलो घर फूँक, बूढ़ा रोया मार के हूक ।

टूक अब कुण सेकेगा छान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 5 ।।

बुड्ढ़ा बोला शिवजी देवता, कहन पुगादे मेरा ।

सूरी बनादे इस रंडी नै, गुण नहीं भूलूँ तेरा ।।

डेरा बसा बसाया छुटग्या, मेरा देख-देख दम घुटग्या ।

लुटग्या मैं चौडे़ मैदान में, रहे कर्महीन नुकसान में ।। 6 ।।

शिवजी महाराज ने देखी, अब बुड्ढ़े की मजबूरी ।

बनड़ी बनने वाली की, तत्काल बनादी सूरी ।।

भूरी भद्दी शक्ल बनाई, हो गई बुड्ढ़े की मनचाही ।

ताई सूनी फिरे बियाबान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 7 ।।

लड़का रोवे खड़ा-खड़ा, मिलगे धरती आकाश ।

शिवजी बोले कुछ भी माँगो, बेटा मेरे पास ।।

आस मैं तेरी पूरी करद्यूँ ,जो माँगेगा वोही वर द्यूँ ।

भरद्यूँ पेटा तेरा इम्तहान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 8 ।।

लड़का बोला महाराज मेरी, और नहीं कोई माँग ।

म्हारा घर पहले जैसा था, उसा जचादो सांग ।।

भाँग साथ में कुण्डी-सोटा, दूँगा बैल चढ़ण नै मोटा ।

लंगोटा द्यूँ सम्मान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 9 ।।

भालोठिया कहे कर्महीन, रहते हैं नंगे भूखे ।

भरे समंदर में बड़के ये, तीनों आ गये सूके ।।

चूके वक्त का लाभ उठाणा, वही झोंपड़ी वही ठिकाणा ।

दाणा मिले खेत खलिहान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 10 ।।

67. कर्महीन बालक के लक्षण

।। भजन-67।।
तर्ज:- चौकलिया

कर्महीन बालक के लक्षण, रूठा करे त्यौंहार को ।

आप तो भूखा मरे और दुखी करे परिवार को ।। टेक ।।

त्यौंहार के दिन हर घर-घर में, बढ़िया माल बणा करै ।

हलवा पूरी खीर किसी के, चूरमा दाल बणा करै ।

कलाकन्द रसगुल्ले पेड़े, दिलखुशहाल बणा करै ।

और लोग सब माल उड़ावें, उसकी टाळ बणा करै ।

भगवान भी नहीं मना सके, उस मूर्ख मूढ़ गवार को ।

आप तो भूखा मरे ..........।। 1 ।।

जो कोई इसको समझावे तो, कान बंद कर नीच ले ।

जो कोई इसको कहे देखण की, दोनो आँख मींच ले ।

जो कोई इसको कहे बोलण की, चौकस जाड़ भींच ले ।

जो कोई इसको कहे खड़ा हो, करड़ी चादर खींच ले ।

नहीं समझता मूर्ख अपने, माँ-बापां के प्यार को ।

आप तो भूखा मरे ........।। 2 ।।

शिव पार्वती बैठे बन में, सामने एक आवे राहगीर ।

पैरों में टूटी जूती थी, कपड़े उसके झीरम-झीर ।

गोरां बोली पति आप नित्य, हरते रहे पराई पीर ।

इसने आपका क्या बिगाड़ा, क्यों इसकी फोड़ी तकदीर ।

शिव बोला ये कर्महीन, नहीं समझे पर उपकार को ।

आप तो भूखा मरे .......।। 3 ।।

हाल देख राहगीर का शिव के, जाग उठी हमदर्दी थी ।

मोहर अशरफी की थैली, उसके मार्ग में धर दी थी ।

अपनी समझ में शिव ने उसकी, सारी काढ़ कसर दी थी ।

लेकिन कर्महीन ने वो थैली, अनदेखी कर दी थी ।

भालोठिया कहे आँख मींच के, तेज करी रफ्तार को ।

आप तो भूखा मरे ........।। 4 ।।
खटका

68. हर प्राणी को रहता, बबाल का खटका

भजन-68

तर्ज:- काली टोपी वाले तेरा नाम तो बता .......

हर प्राणी को रहता, किसी बबाल का खटका ।

कहीं प्रकृति का कोप, कहीं भूचाल का खटका ।। टेक ।।

कहीं बाढ़ कहीं सूके धान, प्रकृति का कोप महान ।

किसान को रहे सबसे बड़ा, अकाल का खटका ।

पशुओं को चारा और रोटी-दाल का खटका ।

हर प्राणी को रहता..........।। 1 ।।

खटका रहता हर प्राणी में, जीवन बीते परेशानी में ।

पानी में मछली को रहता, जाल का खटका ।

मल्लाह को रहता पानी में, झाल का खटका।

हर प्राणी को रहता ..........।। 2 ।।

लगे जिसके खटके की मार, नींद नहीं आवे उसको यार ।

साहूकार को रहे अपने, धनमाल का खटका ।

चोर को रहता हरदम, कोतवाल का खटका ।

हर प्राणी को रहता ..........।। 3 ।।

है खटका चिन्ता का बीज, कोई नहीं अच्छी लागे चीज ।

मरीज को रहता है, अपने हाल का खटका ।

आँखों में बन जाता है, पड़बाल का खटका ।

हर प्राणी को रहता ..........।। 4 ।।

नहीं खटके का कोई हिसाब, खटका अच्छा नहीं जनाब ।

शराब पीने वालों को, धर्मपाल का खटका ।

भ्रष्टाचारी को रहता हरदम हवालात का खटका ।

हर प्राणी को रहता ..........।। 5 ।।

69. डंडे बिना जग में कोई करे नहीं प्रीत

भजन – 69 (डंडा शक्ति का प्रतीक)

डंडे बिना जग में कोई करे नहीं प्रीत ।। टेक ।।

सारी शक्ति बसे वहां पर, जहां डंडे का बल होता ।

डंडे वालों का दुनिया में, हर एक मसला हल होता ।

देश द्रोही स्वार्थियों का कभी नहीं कोई दल होता ।

लापरवाही ब्लैक रिश्वत, नहीं झूठ व छल होता ।

राई का बने पहाड़ और पहाड़ की जगह दंगल होता ।

जहां पानी वहां थल होता, जहां पर थल वहां जल होता ।

जो कुछ प्रोग्राम बन गया, वह समझो काम अटल होता ।

इतनी शक्ति डंडे में, नहीं कोई काम मुश्किल होता ।

आगे पीछे इधर उधर, डंडा हर जगह सफल होता ।

सुबह नहीं तो शाम को होता, आज नहीं तो कल होता ।

जग में डंडे वालों की जय बोला करती भीत ।। 1 ।।

नहीं राजा नहीं रंक और नहीं छिपी पुजारी पंडे से ।

छोटे और बड़े जितने सब, शिक्षा पावें डंडे से ।

कहने से नहीं समझे मूर्ख, समझ में आवे डंडे से ।

अड़ियल घोड़ा ऊँट को फेरा, चाल सिखावे डंडे से ।

खेती करे किसान बैल को चलना आवे डंडे से ।

चले सर्कस में खूनी हाथी खेल दिखावे डंडे से ।

बाजीगर बन्दर भालू को, नाच नचावे डंडे से ।

चार ऊँगल की लकड़ी पे बकरा, पैर जमावे डंडे से ।

डंडे से महानीच अधर्मी, पकड़े धर्म की रीत ।। 2 ।।

जब से सरकार ने दिया डंडा अलमारी में छोड़ यहां ।

अवसरवादी खुदगर्जो की होने लगी घुड़दौड़ यहां ।

रंग बिरंगे झण्डे ले लागी आपस में होड़ यहां ।

घर-घर में लीडर बनगे और करने लगे मरोड़ यहां ।

स्वार्थ में अन्धे होकर चले बांध-बांध के मोड़ यहां ।

भूल गये जिम्मेवारी दिया अनुशासन को तोड़ यहां ।

कोई दुर्योधन जयचन्द बना, कोई बन गया अर्जुन गौड़ यहां ।

जगह-जगह लगवादी आग, करवादी तोड़ फोड़ यहां ।

कहीं रेल की लाइन उखाड़ी, कहीं तुड़वादी रोड़ यहां ।

भले आदमी के लिए, छोड़ी नहीं रहने का ठोड़ यहां ।

आपाधापी चली रहा नहीं कोई किसी का मीत ।। 3 ।।

जिस दिन भारत सरकार ने, डंडे के लगाया तेल यहां ।

जितने पड़ोसी दुश्मन उनकी स्कीम हो गई फेल यहां ।

चीन और अमरीका वाली, लगी मुरझाने बेल यहां ।

उनके जितने एजेन्ट उनके डाली पकड़ नकेल यहां ।

बदअमनी फैलाने वाले, बैठे काटो जेल यहां ।

आन्दोलन हड़तालों का सब बन्द हो गया खेल यहां ।

एरोप्लेन और रोडवेज समय पर चलती रेल यहां ।

पांच मिनट एडवान्स आ रही सब लोकल व मेल यहां ।

अनुशासन में बंधगे सारे न कोई फिरे अकेल यहां ।

अमन की लहर देश में आई मिटगी धक्कापेल यहां ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया गावे डंडे के गीत ।। 4 ।।

70. मैं क्या गाऊँ तुम क्या सुनोगे

भजन–70 (संगीत शास्त्र में परिवर्तन)

मैं क्या गाऊँ तुम क्या सुनोगे, गाने का स्वर बदल गया ।

गाने वाला बदल गया, श्रोता नारी नर बदल गया ।। टेक ।।

स्वर में हारमोनियम सारंगी बीन बंसरी प्यारी थी ।

ताल में खरताल खंजरी ढोलक नकारा ढोल नकारी थी ।

स्वर और ताल मिले दोनों, गावणियें की लयदारी थी ।

निहालदे आल्हा पीला धुन, सामण फागण की न्यारी थी ।

अब कम्पीटीशन वाले आ गये, संगीत का घर बदल गया ।। 1 ।।

कलाकार आ गया तख्त पर पहन के ढीला सा चोला ।

कभी मनावे सदाभवानी जिसने घट का पट खोला ।

रसना पर बासा करो माई, कान पकड़ के न्यू बोला ।

कभी मनावे गौरी पुत्र, ब्रह्मा विष्णु शिव भोला ।

ओम का सुमरण करते थे, वो नाम पवित्र बदल गया ।। 2 ।।

दस बारह का साथ जोड़ के, आ गया मलंगा का टोला ।

साज बाज की कमी नहीं थी घड़वे धरे पन्द्रह सोला ।

वर्कसोप से लाये मुफ्त में, ट्यूबां का भरके झोला ।

पैग लगावें शराब का कहे पीऊँ सूं कोका कोला ।

जाड़ भींच मारें किलकारी, नत्थू मनभर बदल गया ।। 3 ।।

लीलो चमन और ज्यानी चोर का सांग करण लागे धोला ।

गावें रागनी अक्खन काणा, हीर का ले गया डोला ।

हाथां नै फटकारण लाग्या, जाणु बगावै सै गोला ।

बांह चढ़ावे बार-बार, ज्याणु इब यो काढ़ैगा ओला ।

देख देख के लट्टू हो गया, मांगे खोपर बदल गया ।। 4 ।।

हरियाणा संगीत का दादा बस्तीराम खजाना था ।

ईश्वर सिंह, स्वामी भीष्म इनका गजब तराना था ।

पृथ्वी सिंह बेधड़क, मेहर सिंह का जोशीला गाना था ।

लखमी, बाजे, मांगे, धनपत इनका राग जनाना था ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, गोधू झाबर बदल गया ।। 5 ।।

71. बड़ाई चाहो तो बड़ों से करो मेल

भजन – 71 (शिक्षाप्रद)

बड़ाई चाहो तो बड़ों से करो मेल ।। टेक ।।

एक काठ की कड़ी, लोहे में जड़ी ।

तराई चाहो तो, दो पाणी में धकेल ।। 1 ।।

पौधा दो पान का, कोमल बिरवान का ।

चढ़ाई चाहो तो, दरखत पै चढ़ जा बेल ।। 2 ।।

जाओ गुरू के पास, हो बुद्धि का विकास ।

पढाई चाहो तो, कभी नहीं हो फेल ।। 3 ।।

यदि सीखो तुम गाना, भालोठिया गुरू बनाना ।

कविताई चाहो तो ये बुद्धि का खेल ।। 4 । ।


बीकानेर रियासत द्वारा प्रतिबंधित पुस्तक बागड़ मेल के 2 गाने –

72. जुल्मों की हद होली, भगवान

भजन - 72

जुल्मों की हद होली, भगवान बीकानेर में ।। टेक ।।

दिन दूने रात चौगुने जुल्म कमाये जा रहे ।

भोली जनता को आज डाकू लूट लूट के खा रहे ।

बना बना के टोली, भगवान बीकानेर में ।। 1 ।।

आज ठिकाने जुल्मों से जागीर बचाना चाहते हैं ।

मारपीट प्रजा की आवाज दबाना चाहते हैं ।

चले डंडे और लठोली, भगवान बीकानेर में ।। 2 ।।

कहीं पुलिस वाले गांव में लोगों को धमकाते हैं ।

अगर कोई जय हिंद बोले तो उसकी खाल उड़ाते हैं ।

पीट रहे दिन धोली, भगवान बीकानेर में ।। 3 ।।

एक रोज की बात कहूं जो जाती नहीं सुनाई ।

रायसिंहनगर में इकट्ठे होकर आए थे अन्यायी ।

वहां चली धड़ाधड़ गोली, भगवान बीकानेर में ।। 4 ।।

श्री स्वामी कर्मानन्द जी जो रियासत को जगा रहे ।

गांव गांव में घूम घूम कर पाठशाला खुलवा रहे ।

दे रहे शिक्षा अनमोली, भगवान बीकानेर में ।। 5 ।।

इसी लगन में छोड़ नौकरी चौधरी कुंभाराम फिरे ।

वीर मास्टर दीपचंद, प्रजा परिषद का काम करे ।

बना बना के टोली, भगवान बीकानेर में ।। 6 ।।

बुगला भक्त बना बैठा है, आज यहां का न्यायाधीश ।

कहे प्रजा के हक दे दूंगा लेकिन करै चारसो बीस ।

रहा पहर कपट की चोली, भगवान बीकानेर में ।। 7 ।।

चाहे कितने ही यतन करो, अब पाप का मटका फूटेगा ।

धर्मपाल सिंह बच्चा-बच्चा, जय हिंद करके उठेगा ।

खून बहे ज़्यूं रोली, भगवान बीकानेर में ।। 8 ।।

73 . बीकानेर के वीर जवान

भजन - 73

बीकानेर के वीर जवान, करके दुश्मन को ऐलान,

चलो आजादी के जंग में ।। टेक ।।

रियासत बीकानेर में आज, नहीं कोई जुल्मों का अंदाज । 1 ।

हुकूमत गैर जिम्मेदार, इसी से हो रहे अत्याचार । 2 ।

यह बनी डाकुओं की सरकार, करते खूब लूट और मार । 3 ।

राजा डाकुओं का सरदार, छोड़े डाकू बेशुमार । 4 ।

नाजिम और जागीरदार, नायब और तहसीलदार । 5 ।

गिरदावर और पटवारी, कहीं थानेदार की मक्कारी । 6 ।

तरह-तरह के टैक्स लगा, नर नारी सब किये तबाह । 7 ।

कपड़ा चीनी तेल अनाज, कोई चीज ना मिलती आज । 8 ।

जो कुछ आता है सामान, खा जाते डाकू बेईमान । 9 ।

मिलकर सब मजदूर किसान, क्या हिंदू क्या मुसलमान । 10 ।

प्रेम के जत्थे बना बना, सत्याग्रह में नाम लिखा । 11 ।

चलेंगे स्वामी कर्मानन्द , साथ मास्टर दीपचन्द । 12 ।

चौधरी कुंभाराम चले, कर दुष्टों को बदनाम चले । 13 ।

चलेंगे और कौमी सरदार, हनुमान का सब परिवार । 14 ।

मत मुंह देखो मक्कार का, उस ख्याली सिंह गद्दार का । 15 ।

धर्मपाल सिंह करके मेल, कर दो एकदम धक्का पेल । 16 ।

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