Amrit Kalash/Chapter-18

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स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),

लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर


श्रद्धान्जलि – भजन 1

कवि नौरंगलाल सांगठिया द्वारा गुरू को श्रद्धान्जलि।
राष्ट्रोत्थान सार- नोहर (हनुमानगढ़)-राज., नवम्बर 2009

राजस्थान, पंजाब व वर्तमान हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वतंत्रता के जोश भरे लोकगीत व भजन गाने वाले प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया अपने जीवन के 84 वर्षों की यात्रा पूर्ण कर 8 अक्टूबर, 2009 को स्वर्गारोहण कर गये। मुझे याद है सन् 1954 में जब मैं तीसरी या चौथी कक्षा में पढ़ता था तब नव जागृति का एक बहुत बड़ा रात्रि जागरण हमारे गाँव छानी बड़ी में लगा था। 1000 घरों के गाँव में 10 हजार व्यक्ति बाहर से आये और हम बालकों की टोलियों नें घरों से 10-10 रोटियाँ इकट्ठी करने हेतु भाग-भाग कर व्यवस्था की थी। पूरी रात चले कार्यक्रम में भजनोपदेशक स्व.सूरजमल साथी' नूनिया गोठड़ा (झुंझुनूं) के उपरान्त छरहरे शरीर के 25 वर्षीय नौजवान धर्मपाल सिंह भालोठिया ने सुबह के पाँच बजे तक लगातार 6 घंटे देशप्रेम के जोश भरे गीत गाये थे। क्षेत्र का लक्खी मेला गोगामेड़ी 30 वर्षों तक धर्मपाल भालोठिया के नाम से एक रात अतिरिक्त भरता था। ऐसे देश धर्म के प्रहरी को राजस्थान सरकार ने तो स्वतंत्रता सेनानी भी घोषित नहीं किया था। अब वे चले गये हैं तो समय निकलने के पश्चात ही सही सरकार द्वारा उनको सम्मानित किया जाना चाहिए। राष्ट्रोत्थान सार परिवार उनको श्रद्धान्जलि अर्पित करता है व उनके शिष्य रहे क्षेत्रीय लोक कवि श्री नौरंगलाल सांगठिया द्वारा रचित काव्य श्रद्धान्जलि प्रस्तुत है।

श्रद्धान्जलि

समय-समय पर याद करूँ, स्वतंत्रता सेनानी मैं।

जैसे उनको याद करूँ, ज्यों नैन भरे मेरे पानी में।।

ईश्वर से मान्यता लेकर, मानव जग में आते हैं।

वह इस दुनियाँ में शुभ कर्मों की, छाप छोड़कर जाते हैं।

धर्मपाल सिंह भालोठिया की, लिख रहा सुनो कहानी मैं ।। 1 ।।

कर्मठता की कृति, कड़ी मेहनत ने उसे उभारा था।

जांगू गोत, जाट कौम , सब जन जाति से प्यारा था।

वो हरियाणा का हीरो जन्मा, भालोठियों की ढ़ाणी में ।। 2 ।।

उन्नीस सौ छियालीस में आया, राजस्थान की धरती पर।

गोगामेड़ी मेला देखा, भरा हुआ फुल भरती पर।

जनता जुट रही जलसे ऊपर, आई जब निगरानी में ।। 3 ।।

साजिन्दो के साथ शायर, जब स्टेज ऊपर खड़ा हुआ।

तारों बीच दिखा ज्यों, चाँद शिखर में चढ़ा हुआ।

दुबला पतला तन में था, पर जादू भरा था वाणी में ।। 4 ।।

जब छेड़ी तान सुरीली, एकदम चसा चिराग अंधेरे में।

फिर जनता हो गई मुग्ध, ज्यों नागिन ध्यान सपेरे में।

बैठ गया श्रोता दल जमके, रूक गये आना जानी ।। 5 ।।

निर्वाचन अभियान चला था, तीन महीने गाँवों में।

ग्रामीण गुण गरिमा से भरे, प्रेम भजन के भावों में।

एक लगा था जागरण जोरदार, तहसील भादरा छानी में ।। 6 ।।

गंगानगर क्या सीकर चुरू, जिला बीकानेर सुनो।

सरस्वती सरगम सुरों की, याद सब टेर सुनो।

क्या राजस्थान हरियाणा दिल्ली, भारत की राजधानी में ।। 7 ।।

छिड़ी लड़ाई राजस्थान में, जालिम जागीरदारों से।

कायर मुर्दे जाग उठे, सुन जोश भरे प्रचारों से।

प्रकृति ने भी ठूँस-ठूँस कर, खूब भरे गुण ज्ञानी में ।। 8 ।।

छिड़ी लड़ाई पंजाब में, जब कैरो और घनश्याम की।

वेदोकत प्रचार किया, जब जीती सेना राम की।

हिन्दी रक्षा आन्दोलन की, मिली सफलता जवानी में ।। 9 ।।

जब आया बुढ़ापा बैठ गया घर, ले के शरण विधाता की।

जीत गया जंग जीवन का, कर कूख सपूती माता की।

यह लिख सकता पर नहीं देखना चाहता शोक निशानी मैं ।। 10 ।।

आठ अक्टूबर दो हजार नौ, कर अपना अंतकाल गया।

हरा भरा परिवार छोड़कर, पाके चौरासी साल गया।

नौरंगलाल सांगठिया आपको, ना भूले जिन्दगानी में ।। 11 ।।

हम हैं शोकाकुल-लेखक नोरंगलाल सांगठिया, अमरसिंह पूनिया-फेफाना, बनवारी लाल - अरड़की, लादूराम जेवलिया, जसवंत आर्य - नोहर

श्रद्धांजलि भजन - 2

प्यारेलाल आर्य

गांव सांवलोद

जिला- झुंझुनू, राजस्थान

राधेश्याम

दिल में ललक लगी बचपन से आजादी को पाने की ।

सुनो कहानी लिखता हूँ आजादी के परवाने की ।।

करी बगावत अंग्रेजों की परवाह ना पीने - खाने की।

जेल मिलो चाहे रेल मिलो परवाह ना जिंदगी जाने की।

भालोठियों की ढाणी छोटी-सी चर्चा है हरियाणे की।

धर्मपाल सिंह भालोठिया था तेग दुधारी गाने की।।

भजन

तर्ज - सांगीत

हिंद के परवाने याद सतावै तेरी ।। टेक ।।

तारीख थी सताईस उस दिन जनवरी था पहला मास।

सन् उन्नीस सौ छब्बीस था और ढाणी सतनाली के पास ।

धन्नाराम और श्रवण की करी परमेश्वर नै पूरी आस।

बड़े चाव से माता-पिता ने धर्मपाल सिंह रखा नाम।

आठ साल की उम्र पिताजी छोड़ चले गए सुर-पुर धाम ।

सारे घर का बोझ उठाया सिर पर चाचा जीसुखराम।

चारों भाई तीन बहन माता की उम्र बड़ेरी ।। 1 ।।

गावण और बजावण यो पढ़ते पढ़ते चा होग्या।

बोहतराम से शिक्षा लेकर प्रचारों का राह होग्या ।

बीस साल की उम्र हुई फिर सुमित्रा जी से ब्याह होग्या।

केशवानंद का संग हुआ यह बात समझ में आई थी ।

क्रांति का पूर्ण रूप शिक्षा ही बतलाई थी ।

चंदा कर-कर एक सौ पचास स्कूल खुलवाई थी।

कुंभाराम आर्य के संग रहते शाम सवेरी ।। 2 ।।

आंदोलनकारी दे गिरफ्तारी जा-जा के भरैं थे जेल।

निरंकुश शासक और अंग्रेजों के नाकों में दी घाल नकेल।

ऐसी भड़की चिंगारी पुस्तक लिख दी 'बागड़ मेल'।

बीकानेरी शासन हिल गया जो पुस्तक में था व्याख्यान।

सत्रह जून सन् सैंतालीस को जारी किया यह फरमान।

धर्मपाल सिंह भालोठिया की गिरफ्तारी का किया ऐलान।

प्रतिबंध पुस्तक पर ला दिया करली जब्त भतेरी ।। 3 ।।

कुंभाराम का कहण मान के पुलिस के लगे ना हाथ।

सिर पर बाजा कई कई मिलों जंगलों में बिताई रात।

जोशीले प्रचार कर-कर जत्थे भेजे कई कई साथ ।

'आजादी की गूंज' लिखी 'जनता मेल' किन्ही तैयार।

'सुनहरी गीतांजलि' और 'मेरा अनुभव' शुद्ध विचार।

एक पुस्तक 'स्पेशल' जिसमें राजनीति का मिलता सार ।

कर प्रचार गिणा दी सारी थी कुरीत घणेरी ।। 4 ।।

संघर्ष ही जीवन का नाम मूल मंत्र बतलाया करते ।

मार्केट कमेटी महेंद्रगढ़ में चेयरमैन कहलाया करते।

कुप्रथा और पाखंडों का खंडन कर-कर गाया करते ।

तारीख आठ और नौ का सन् महीना था अक्टूबर का।

सुर-पुर अंदर सुरती लाई मोह कम हो गया था घर का ।

हम खड़े देखते रह गए शरणा ले लिया जा हर का।

प्यारेलाल प्रणाम करै श्रद्धा से शाम सवेरी ।। 5 ।।

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समाप्त