Jat Itihas Ki Bhumika/Dilli Mandal Ke Jaton Ka Hindukaran

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जाट इतिहास की भूमिका

दिल्ली मंडल के जाटों का हिन्दुकरण

[p.95]: इस किताब के पिछले लेखों में मैनें बताया है कि बौध्द धर्मी जाट, ब्राहमण धर्म (हिन्दु धर्म ) से बचने के लिए मुसलमान बना था। बौध्द धर्मी जाट इसलिए मुसलमान बने थे कि कही इन्हे गुलामी के धर्म हिन्दू धर्म को न लादना पड़ जाए, सो इन्होने एक अल्लाह में विश्वास करने वाले इस्लाम में अपनी आस्था जताई थी। कुछ जाट इस्लाम के पंजाबी संस्करण सिखधर्म में शामिल हो गए थे।

हरयाणा क्षेत्र अथवा दिल्ली मंडल के जो जाट, अभी प्रच्छन्न बौध्द ही थे, इन पर इस्लाम में दीक्षित होने और सिख बनने का सकारात्मक दबाव भी था, साथ ही इन प्रच्छन्न बौध्द जाटों पर ब्राह्मण भी गिध्द दृष्टि जमाए बैठा था कि मौका पाते ही इन्हे हिन्दू बना दे।

जाटों में सन् 1717 में गांव छुडानी, झज्जर हरियाणा में चौ बलराम धनखड़ जी के घर एर ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसे मात्र दस वर्ष की आयु में ही ब्राह्मणों के षडयंत्र समझ में आने लगे थे। यह बालक आगे चलकर संत गरीबदास जी के नाम से मशहूर हुआ। संत गरीबदास जी को अपनी सहज जट्ट बुध्दि से यह समझ में आने लगा था कि हो सकता है दिल्ली मंडल के जाटों के सिख या मुसलमान बनने की मुहिम सिरे ही न चढ़ पाए और ब्राह्मण इन्हे हिन्दू बनाने में कामयाब हो जाए।

सच्चाई यह है कि संत गरीबदास जी महाराज को जो डर था, वह पूरा भी हुआ। दिल्ली मंडल का जाट आखिरकार हिन्दू धर्म के ही जाल में फंस गया। इसे हिन्दू धर्म में फसाने के लिए ब्राह्मणों ने पहले तो इन्हे आर्यसमाजी बनाया, जिसमें मूर्तिपूजा के खण्डन के नाम इनसे इनके


[p.96]: पूर्वजों और जनजातिय देवी देवताओं की पूजा छुडवाई गई, फिर जो जगह खाली हुई उस जगह पर इन्ही आर्यसमाजियों ने हिन्दू बनकर 'गणेश’ की मूर्ति रख दी और जाटों को हिन्दू बना दिया।

ब्राह्मणों ने तो आर्यसमाज के नाम पर जाटों से इनके पूर्वजों को दूर कर दिया, लेकिन ब्राह्मण ने कट्टर आर्यसमाजी होने का दिखावा जरूर किया परंतु अपने पूर्वजों की मूर्तियों अथवा स्थलियों की पूजा करनी कभी नही छोडी।

पंजाब के एक बड़े आर्यसमाजी भाई परमानन्द के जीवनीकार ने उनकी जीवनी में लिखा है, भाई जी आर्यसमाजी संस्कारों में पले होने के कारण पुराने रीति रिवाजों, पण्डे पुरोहितो और मंदिर मठो की पूजा आरतियों के विषय में श्रध्दा न रखते थे। सनातनियों वाली रूढिगत श्रध्दा से शुन्य होते हुए भी वे भावना रहित न थे। अपने गांव में बाबा मरागा और भाई मतिदास की समाधि पर लोग उन्हे साष्टांग प्रणाम करते देखते।

मुझे याद है, उनके निकट संबंधी ने लिखा है, “ जब वे अण्डमान से रिहा होकर आए थे तो चाकवाल से करियाले तक पैदल चलकर आए, तांगे पर नही बैठे। पांच छ: आदमी और भी साथ थे। एक आर्यसमाजी ने कहा आप तो मूर्तिपूजा नही करते फिर बाबा साहब की थल्ली तक पैदल जाने का क्या कारण है? “ वे बोले, “मै मूर्तिपूजा करने नही जा रहा हूं बल्कि जिनकी संतान हू और जिनका रक्त मेरी रगों में है, उनकी सेवा में जा रहा हू वही तो मुझे छुडाकर लाए हैं। वे पहले बाबा साहब की थल्ली पर गए और उसके बाद किसी रिश्तेदार से मिले। ( संदर्भ:- क्रान्तिकारी भाई परमानन्द, लेखक धर्मवीर एम०ए० प्रकाशक डी०ए०वी० संस्थान, चिञगुप्त मार्ग, नई दिल्ली,प्रकाशन वर्ष 1987, पृष्ठ 199,200) । उपरोक्त उदाहरण से आप समझ गए होगे कि ब्राहमणो ने आर्यसमाज के नाम पर जाटों से


[p.97]: तो इनके दादाखेडा और दादा भैय्या को छुडवा दिया जबकि खुद अपने ब्राह्मण पूर्वजों की थल्लियों पर साष्टांग करते रहे। जाटों से इनके पूर्वजो की पूजा छुडवाकर अब ब्राह्मण इन्हे अपने कृत्रिम देवी देवताओ की पूजा करवाना चाहता था, तो अब जाटों को हिन्दू बनाना भी जरूरी था। भाई प्रमानन्द के जीवनीकार ने लिखा है बहुत से लड़कों ने कालेज छोड दिए तब उनमें से कुछ मुझे मिलने आए। उनमें एक विशेषता थी : उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे अपना जीवन हिन्दू समाज तथा हिन्दू धर्म गुजार दे मैने (भाई प्रमानन्द ने) सुझाव दिया की एक मंडली बनाकर हरियाणा की जाट आबादी में हिन्दूत्व का प्रचार किया जाए। इस उद्देश्य के लिए जिला हिसार का गांव नारनौल चुना गया। दस नवयुवक के अतिरिक्त एक अध्यापक साथ लेकर हम पांच मास तक उस गांवों में ठहरे। हमारा काम गांव के छोटी बड़ी आयु के सब लोगो में, जिनमें जाटों के अतिरिस्त तथाकथित अछूत भी थे, हिन्दी की शिक्षा देना था। (वही, पृष्ठ स०180)।

अत: जाटों को सुविचारित योजना के साथ ब्राह्मणों ने हिन्दू बनाया। दिल्ली मंडल में जाटों के हिन्दूकरण के इस भविष्य को संत गरीबदास जी ने आज से लगभग 300 वर्ष पहले भांप लिया था और इस स्थिती को counter करने के लिए वाणिया लिखवाई थी और इन्फ्रास्टक्चर भी खड़ा किया था।

संत गरीबदास ने जाटों के इस भावी, हिन्दूकरण के मद्देनज़र एक ऐसी योजना तैयार की थी कि अगर यह योजना जाटों की समझ में आ जाती तो अभी तक हिन्दू धर्म पर जाटों का कब्जा हो चुका होता।


[p.98]: संत गरीबदास जी ने जाटों द्वारा हिन्दू धर्म पर कब्जा करके, इस धर्म से ब्राह्मणों को अपदस्थ करने की थीसीस लिखी थी और इस पर कार्य भी शुरू किया था। वर्तमान में उग्र हो चुके अंबेडकरी आन्दोलन की छाया में हमें यह कार्य असंभव लग सकता है क्योंकि डा० अम्बेडकर साहब ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में यह निष्कर्ष निकाल दिया था कि अन्यायकारी हिन्दूधर्म में रहकर कभी भी दलित समाज का भला नही हो सकता, जिससे इस घटिया धर्म को त्यागना ही श्रेयसकर है और उन्होने बौध्द धर्म ग्रहण कर लिया था।

लेकिन ,संत गरीबदास जी ने अपनी प्रखर मेधा से हिन्दू धर्म पर ही काबिज होने का Experiment शुरू किया था, क्योंकि इसी धर्म पर जाटों का कब्जा हो गया, तो फिर ब्राह्मण कहा मुंह छीपाएगा।

संत गरीबदास जी ने भविष्य में ब्राह्मणों द्वारा जाटों को हिन्दू बनाने की चुनौति को स्वीकार किया था और उन्होने मन ही मन सोचा था कि तुम जाटों को हिन्दू बनाओ ,हम इस हिन्दू धर्म पर ही कब्जा करके दिखाएगे। यह एक चुनौति भरा कार्य था, जिसमें बहुत अधिक बुध्दि कौशल की दरकार थी।

संत गरीबदास जी महाराज ने हिन्दूधर्म पर कब्जा करने के लिए, सन् 1398 में जन्में संत कबीर साहब की Legacy को दिल्ली मंडल में आगे बढाने की कोशिश की। उन्होने “असुर निकंदन रमैनी “ में लिखा:-

दिल्ली मंडल पाप की भूमा,
धरती नाल जगाऊ सूमा।

[p.99]:

जे कोई माने शब्द हमारा,
राज करे काबूल कंधारा।
साहिब तख्त कबीर खवासा,
दिल्ली मंडल लीजै वासा।

लेकिन, दुख की बात यह है कि जाटों ने अपने इस सच्चे मसीहा की दूरदर्शी वाणी को कभी नही समझा, कुछ जाट तो गरीबदास जी की शरण में आए भी बहुतेरे जाटों ने इन्हे बावला (पांगल) प्रचारित कर दिया। मैनें इस पुस्तक की शुरूआत में कहा था कि भारत का इतिहास अपने देवताओं को पूजवाने और दूसरों के देवताओं को पूजवाने और दूसरों के देवताओं को अपदस्थ करने का इतिहास है।


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