Kiledar

From Jatland Wiki

Kiledar (किलेदार)[1] [2] is a gotra of Jats in Madhya Pradesh. Kiledar is a title rather than Gotra. Their Gotra is Bamroliya.

Origin

They were protectors of forts and known as Kiledar. [3] Zamindaars of Narmada region

History

किलेदार परिवार का गौरवशाली इतिहास

किलेदार परिवार भुगवारा का गोत्र "राणा है"और बम्हरौली कटारा से माईग्रेशन के कारण"राना बम्हरोलिया"लिखा गया है। लगभग 400 साल पूर्व आगरा के पास स्थित गांव बमरोली कटारा से धौलपुर होते हुए किलेदार परिवार के पूर्वज गोहद से ग्वालियर पहुंचे। वहां के रियासत के राजा ने उनकी वीरता और स्वामी भक्ति को देखते हुए अपने राज्य की सेना में उन्हें ऊंचे पद पर रख लिया। बाद में उनकी वीरता एवं कार्यकुशलता को देखते हुए किलेदार की पदवी देकर उनका सम्मान बढ़ाया ।

गोहद स्टेट के राजा एवं महाराजा सिंधिया की घनी मित्रता रही है । उस समय सिंधिया रियासत की सीमा नर्मदा सागर संभाग में नरसिंहपुर तक थी । सत्रहवीं शताब्दी के अंत में, जब मध्य भारत प्रांत तथा बरार स्टेट में पिंडारियों का आतंक अपनी चरम सीमा पर था, उस समय महाराजा सिंधिया ने गोहद के राजा से कहकर किलेदार पूर्वजों को, ग्वालियर परिवार की सुरक्षा के लिए , फौज की एक बटालियन के साथ होशंगाबाद संभाग भेजा । इस तरह किलेदार पूर्वजों का नरसिंहपुर आगमन हुआ । यहां आकर वह अपने शासकों द्वारा प्रदान की गई ग्राम भुगवारा की मालगुजारी संभालने लगे ।

बाद में इस परिवार के पूर्वज मालगुजारी से हटकर समाज सेवा के कार्य में लगे । स्वर्गीय श्री रघुनाथ सिंह किलेदार ने देशभक्ति का रास्ता अपनाकर नरसिंहपुर जिले के इतिहास में महान स्वतंत्रता सेनानी होने का गौरव प्राप्त किया । श्री रघुनाथ सिंह जी की प्रतिभा से आकर्षित होकर महाराजा भरतपुर परिवार की राजकुमारी बीबीजी बृजराज कुमारी कौर का विवाह इनके साथ कर दिया ।

स्वर्गीय श्री महेंद्र सिंह किलेदार ने स्वच्छ राजनीति करके जिले के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया है। जब श्री महेंद्र सिंह किलेदार संविद सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, तब उस समय उन्होंने अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए कभी भी सरकारी वाहन तथा सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं किया । इस बात के लिए विधानसभा की कार्यवाही में श्री डीपी मिश्र जी ने भी उनकी प्रशंसा की थी। साथ ही इन परिवार के लोगों ने जिले भर के लोगों का विश्वास जीतकर राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई ।

श्री बीरेन्द्र सिंह किलेदार पुत्र श्री बैंनी सिंह किलेदार, जन्म15/08/1919 बीरेन्द्र सिंह किलेदार बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं और1942के अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन मे सक्रीय छात्र नेता के रूप में क़ाँन्तिकारी भूमिका निभाई थी तथा बनारस के रेल/रोड के पुल में अपने साथियों के साथ डायनामाइट लगाकर यमुना नदी में जंप कर फरार हो गये थे, इसी बीच सुरक्षा कर्मी द्बारा गोलियां चलाई गई जिससे जिस साथी को पलीता मे आग लगाना थी वो नहीं लग पाई।उस समय डां सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी वाईस चाँसलर थे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के। विवाह सन्1948मे श्रीमती सावित्री देवी किलेदार से हुआ। सावित्री देवी दौराला जिला मेरठ के मालगुजार प़धान महेन्द्र सिंह जी एहलावत कि एक पुत्री हैं।

बीरेन्द्र सिंह जी के जयेष्ट पुत्र श्री रघुनाथ सिंह जी और श्री महेन्द्र सिंह जी के लाडले डॉक्टर राजेंद्र किलेदार नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज से MBBS डॉक्टर है अथवा प्रदेश स्टेट कोंग्रेस कमेटी अध्यक्ष पद का निर्वाहन कर चुके है अद्वितीय व्यवहार के धनी समाज सेवा, समर्पण भाव, सरल आचरण के लिए जाने जाते है इनकी धरम पत्नी श्रीमती रेखा किलेदार उत्तर प्रदेश के बड़े समृद्ध परिवार की एक पुत्री है वे उस जमाने की उच्च शिक्षित महिला LLM है और नरसिंघपुर कन्सूमर फ़ोरम में अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज पद का निर्वहन कर चुकी है। इस परिवार की श्रीमती मंजरी किलेदार ने, जो श्री भूपेंद्र किलेदार की पत्नी हैं, जब तक जिला पंचायत अध्यक्ष पद का निर्वहन किया तब तक जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गंगा बहाई थी । श्रीमती राधा किलेदार जो श्री कृष्ण कुमार किलेदार की पत्नी है , इन्होंने भी अपने सरपंच पद के दायित्व को निभाते हुए ग्राम भुगवारा में कई अच्छे कार्य किए हैं । वर्तमान में ये जिला पंचायत सदस्य हैं तथा स्वास्थ और महिला बाल विकास की सभापति हैं । आज भी लोग स्वर्गीय रघुनाथ सिंह किलेदार की स्मृतियां अपने दिमाग में संजोए हुए हैं ।

महान राष्ट्रभक्त स्वर्गीय श्री रघुनाथ सिंह किलेदार

आपका जन्म महा जन्माष्टमी के दिन सन् उन्नीस सौ एक (1901) में ग्राम भुगवारा तहसील करेली जिला नरसिंहपुर में हुआ था । आपके पिताजी श्री बेनी सिंह जी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिनका संबंध गोहद के राजघराने से था । आपके पूर्वज गोहद राज के सेनापति थे , जिन्होंने गोहद राज पर मुस्लिम राजा द्वारा किए गए आक्रमण का डटकर मुकाबला किया एवं हार नहीं मानी । एक लंबे भीषण युद्ध के बाद अपने किले को बचाने में सफल रहे । उनके इस साहसिक कार्य एवं वीरता से प्रसन्न होकर गोहद के राजा ने उन्हें कई पुरस्कारों, जागीर एवं किलेदार की पदवी से विभूषित किया । तभी से उनके वंशजों द्वारा किलेदार की पदवी धारित की गई जो आज भी निरंतर है , लेकिन आज से 200 वर्ष पूर्व राजतंत्र की समाप्ति के साथ ही उनके वंशज ग्राम भुगवारा की सीमा को क्रय कर कृषि व्यवसाय में संलग्न हो गए किन्तु ग्रामवासियों को इस परिवार के व्यवहार से कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि वह परतंत्र हैं । व्यवस्था तो वह नहीं रही, पर किलेदार परिवार आज भी अपने व्यवहार से लोगों के दिलों पर राज कर रहा है । पावन नर्मदा के अंचल में बसे नरसिंहपुर की गरिमामई माटी को गौरवान्वित करने में रत रहे । नरसिंहपुर में रघुनाथ सिंह जी का नाम कालजयी अक्षरों में अंकित रहेगा । श्री रघुनाथ सिंह जी किलेदार की प्रतिभा के अनुरूप इनके पिता श्री बेनी प्रसाद ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु काशी विश्वविद्यालय भेजा । इस समय नरसिंहपुर जिले के इस विद्यालय के वह प्रथम छात्र थे । अपने छात्र जीवन में ही इनका संपर्क देशभक्त महा मना पंडित मदन मोहन मालवीय जी से हुआ और इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता स्वीकार करते हुए एक सक्रिय सदस्य के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता देना प्रारंभ कर दिया ।

श्री रघुनाथ सिंह जी की प्रतिभा से आकर्षित होकर महाराजा भरतपुर परिवार की राजकुमारी बीबीजी बृजराज कुमारी कौर का विवाह इनके साथ कर दिया । महाराजा भरतपुर ने एक फोर्ड कार तिलक में दी । नरसिंहपुर की वह सौभाग्यशाली कार थी जिस पर करेली प्रवास के दौरान महात्मा गांधी के पावन चरण पड़े , इसमें बैठकर उन्होंने यात्रा की ‌।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके द्वारा किए जा रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के नींव के अनमोल पत्थरों में नरसिंहपुर जिले की अग्रणी सूची में समायोजित श्री रघुनाथ सिंह किलेदार का देश प्रेम, त्याग, तपस्या और बलिदान की गाथा अनूठी है । यही कारण था कि उस समय कांग्रेस और किलेदार, राष्ट्रभक्ति और किलेदार, स्वतंत्रता आंदोलन और किलेदार एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द बन गए थे । उस समय कांग्रेस पार्टी का जिला मुख्यालय नरसिंहपुर के बजाय करेली स्थापित किया गया था ।

रघुनाथ सिंह किलेदार के पास संपत्ति यश-वैभव की कमी नहीं थी । ऊपर से महाराजा भरतपुर जैसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व को श्वसुर के रूप में और एक राजकुमारी को पत्नी के रूप में पाकर सोने में सुगंध की कहावत चरितार्थ हो गई थी । वह चाहते तो अपने सारे जीवन को ऐसो आराम से बगैर कोई जीवन-निर्वाही व्यवसाय गुजार सकते थे । पर सारी दौलत, ऐशो-आराम, परिजनों का सुख सब कुछ त्याग कर स्वतंत्रता की बेदी पर बलिदान होने के लिए खुद मतवाले हुए और हजारों लोगों को मतवाला बनने की अभिप्रेरणा दी । धन्य है यह व्यक्तित्व जिसने विगत और आगत किलेदार पीढ़ी का नाम रोशन किया ।

श्री रघुनाथ सिंह किलेदार स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कई बार कारावास गए उन्हें वेल्लोर, मद्रास (वर्तमान चेन्नई), नागपुर, होशंगाबाद एवं नरसिंहपुर जेल में करीब 5 वर्ष कैद रखा गया । कारावास की यातनाओं के बावजूद वह देश की आजादी के लिए बलिदान की राह पर अडिग रहे । दुर्दांत अंग्रेजों के अन्याय के आगे झुके नहीं, क्षमा नहीं मांगी ।

त्याग की प्रतिमूर्ति श्री किलेदार के जीवन की यह दर्दनाक घटनाएं भूलने योग्य नहीं है । जब आंदोलन की व्यस्तता के कारण वह जेल यात्राओं के दौरान अपने अवयस्क पांच पुत्रों को राष्ट्र पर कुर्बान कर दिया । अपने प्रिय पति की चिंताओं से ग्रस्त होने के कारण क्षय रोग की शिकार हुई पत्नी को खो दिया।

फिर और क्या खोना था? रघुनाथ सिंह और अधिक मतवाले हो गए जंगे आजादी के लिए। धन - दौलत, परिवार था, मान प्रतिष्ठा थी, बुद्धिमता थी । यदि रघुनाथ सिंह चाहते तो बीमार पुत्रों, पत्नी की विशिष्ट चिकित्सा व्यवस्था को समय दे सकते थे , पर नहीं उन्हें तो देश और देश की आजादी, देश के करोड़ों पुत्र और पुत्रियों की चिंता थी, उनके लिए मरने जीने की लालसा थी।

श्री रघुनाथ सिंह किलेदार कांग्रेस में कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में शीघ्र ही प्रतिष्ठित हो गए थे । यही कारण था कि उन्हें ऐतिहासिक त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन की स्वागत समिति का महामंत्री नियुक्त किया गया । इस समिति के अध्यक्ष सेठ गोविंद दास जी थे । इसी कांग्रेस अधिवेशन के राष्ट्र नायक सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष थे । अधिवेशन में शिविर सुरक्षा और राष्ट्र स्तरीय नेता गणों यथा - गांधीजी, नेहरू जी आदि की व्यवस्था का दायित्व इन्हें सौंपा गया था । इस समय ग्राम बधवार एवं भुगवारा से लगभग 60 महिलाओं १०० स्वयं सेवक पुरुष श्री हरि शंकर लाल जी बधवार वालों के नेतृत्व में त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में गए थे । उत्तरदायित्वों के सफल निर्वहन ने उन्हें प्रशंसित किया ।

वर्ष 1958 में आप लोक सभा सदस्य निर्वाचित हुए थे ।

आज रघुनाथ सिंह किलेदार हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनकी स्मृतियां उनका व्यक्तित्व और कृतित्व का दर्शन वर्तमान किलेदार परिवार का दर्पण स्पष्ट कर रहा है।

कर्मवीर से साभार

महेंद्र सिंह किलेदार, पूर्व पंचायत मंत्री , मध्यप्रदेश शासन

श्री महेंद्र सिंह किलेदार का जन्म एक प्रतिष्ठित बमरोलिया गौत्रीय जाट परिवार में सितंबर 1917 में हुआ था । आपके पिता जी श्री बने सिंह जी थे जो मालगुजार परिवार से थे और एक सम्पन्न किसान थे। श्री महेंद्र सिंह किलेदार का समाज सेवा तथा राजनीति में गहरा लगाव था । प्रारभ में वे प्रजावादी सोशलिस्ट पार्टी में थे तथा इसी पार्टी से विधायक थे । वह लगातार 1962 से 11/ 6 /1971 मृत्यु पर्यंत तक क्षेत्र के प्रतिनिधि रहे। 1967 का चुनाव उन्हें कांग्रेस से लड़ना पड़ा क्योंकि वह प्रजावादी सोशलिस्ट पार्टी छोड़ चुके थे और उन्हें कामराज, अशोक मेहता तथा डी पी मिश्रा द्वारा कांग्रेस का सदस्य बना लिया गया था। फलस्वरूप तत्कालीन असंतुष्ट कांग्रेसियों द्वारा संयुक्त मोर्चा बनाकर उनके विरुद्ध दम तोड़ प्रचार किया गया किंतु अपनी योग्यता और कार्यकुशलता के बल पर काफी बहुमत से विजय हुए ।भारत सरकार द्वारा उन्हें अगस्त 1959 में 6 माह के लिए, कृषि स्नातक तथा कार्य कुशलता के आधार पर, कृषि दल का नेता बना कर, अमेरिका, कनाडा, जापान आदि देशों की अध्ययन यात्रा पर भेजा गया। वहां की संस्थाओं के द्वारा सम्मान पत्र एवं प्रशंसा पत्र प्राप्त कर भारत में कृषि विभाग की छवि उज्जवल की। 1967 मैं ग्वालियर में छात्रों के ऊपर गोली चालन के विरोध में राजमाता सिंधिया जी के नेतृत्व में कांग्रेस जनों के प्रतिनिधि मंडल से समय तय होने के बावजूद पचमढ़ी में मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा ने जब राजमाता सिंधिया को मिलने का समय नहीं दिया तो राजमाता द्वारा कांग्रेस छोड़कर विद्रोह शुरू किया । फल स्वरूप 40 विधायक राजमाता के साथ थे। इनमें महेंद्र सिंह किलेदार प्रमुख थे

आप मई 1967 में ओमकारेश्वर दर्शनार्थ गए थे । लगातार गाड़ी चलाने के कारण लौटते समय आपको गंभीर हार्ट अटैक हुआ और आप इंदौर के एम.वाय. हॉस्पिटल में भर्ती रहे । 1 जुलाई 1967 को राजमाता के विशेष प्रबंध से आपको भोपाल लाया गया । राजमाता जी आपको अपना भाई मानती थी एवं अनेक विषयों पर व्यक्तिगत चर्चा कर सलाह देती थी । जब सं.वि.द.का शासन काल आया तब आपको मंत्रिमंडल में पंचायत मंत्री के रूप में शामिल किया गया ।

आप जीवन पर्यन्त समाज सेवा में लगे रहे ।उनके लिए जनहित सर्वोपरि था । मंत्रि पद पर रहते हुए उन्होंने कभी भी शासकीय संसाधनों का निजी कार्य में उपयोग नहीं किया । नरसिंहपुर जिले की जनता आज भी उन्हें तथा उनके कार्यों को भूली नहीं है ।

Distribution in Madhya Pradesh

This gotra people are found in Narsinghpur district in Madhya Pradesh.

Villages in Narsinghpur district

Bhugwara, Khurpa,

Notable persons

  • स्वर्गीय श्री बेनी सिंह किलेदार
  • स्व.श्री रघुनाथ सिंह किलेदार,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा सांसद
  • स्वर्गीय श्री महेंद्र सिंह किलेदार, पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
  • स्व. श्री वीरेंद्र सिंह किलेदार ,पूर्व करेली नगर पालिका अध्यक्ष स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
  • स्वर्गीय श्री देवेंद्र सिंह किलेदार
  • श्री डॉ राजेंद्र सिंह किलेदार ,पूर्व मध्य प्रदेश कोंग्रेस कमेटी अध्यक्ष
  • श्रीमती रेखा किलेदार , पूर्व जिला कन्सूमर फ़ोरम जज
  • स्व. श्री दीपेंद्र सिंह किलेदार
  • श्रीमती मंजू किलेदार
  • भूपेंद्र सिंह किलेदार
  • श्रीमती मंजरी किलेदार पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष
  • स्व.श्री कृष्ण कुमार किलेदार
  • श्रीमती राधा किलेदार, जिला पंचायत सदस्य एवं सभापति स्वास्थ्य एवं महिला बाल विकास
  • नवाब सिंह किलेदार
  • स्व. श्रीमती सुधा किलेदार
  • श्री सिद्धार्थ किलेदार का जन्म 19.11.1983 को भुगवारा में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा The Scindia School ग्वालियर में संपन्न हुई इस दोरान पढ़ाई के साथ साथ खेल कूद, सामान्य ज्ञान, डिबेट आदी प्रतियोगिताओं में अन्य नामी बोर्डिंग स्कूल्ज़ के साथ भाग लिया और सर्वोच्च स्थान प्राप्त किए है। आपकी स्नातक डिग्री मुंबई विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध कॉलेज Sydenham कॉलेज ओफ़ कामर्स से हुई वहाँ भी आपने लगातार ३ साल भारत से सबसे बड़े कॉलेज फ़ेस्टिवल मल्हार में कई पदक जीते और परिवार का नाम रोशन किया।उसके पश्चात मास्टर ओफ बिज़्नेस अड्मिनिस्ट्रेशन यूनिवर्सिटी ओफ़ पुणे के FMS से उत्तीर्ण होकर भारत की सबसे बड़ी FMCG कम्पनी में नोर्थ ज़ोन हेड बनके १० साल कार्यरत रहे। शुरू से ही मन में अपने शेत्र में कुछ करने कि चाह रही इसलिय बड़े शहरो में रहने और देश विदेश का भ्रमण करके भी अपनी जड़ो से जुड़े रहे अब अपने शेत्र में किसानो को २००० मेट्रिक टन कपैसिटी का व्यर हाउस प्रदान कर आधुनिक टेक्नीक के साथ मार्गदर्शन कर रहे हैं इस तरह आप अपने खेत खलियानों से भी जुड़े हुए है और साथ साथ अन्य व्यवसाय भी चला रहे है।
  • श्री समीर किलेदार का जन्म 19.10.1984 को भुगवारा में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा डेली कॉलेज इंदौर में संपन्न हुई । पुने विश्वविद्यालय से आपने स्नातक डिग्री और Marketing & IT में स्नात्कोत्तर डिग्री बाला जी एजूकेशन सोसायटी, पुने से प्राप्त की । वर्तमान में आप सीनियर सेल्स मैनेजर, भारत ,सवीस एमएनसी में कार्यरत हैं । आपने देश विदेश का भ्रमण किया है । समाज सेवा के प्रति आपकी गहन रुचि है और जब कभी आपको समय मिलता है आप समाज सेवा के लिए समर्पित भाव से तैयार रहते हैं ।
  • मानसी किलेदार का जन्म 19.09.1989 उच्च शिक्षा यूनिवर्सिटी ओफ़ बॉम्बे से प्राप्त कर MNC में कार्यरत।
  • अनीला किलेदार का जन्म 01.10.1989 उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त कर इंदौर में कार्यरत।

Gallery

External links

See also

References

  1. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-324.
  2. डॉ पेमाराम:राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.296
  3. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 231



Back to Jat Gotras