Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush/Publisher's Note
प्रकाशक: मरुधरा प्रकाशन, आर्य टाईप सेन्टर, पुरानी तह्सील के पास, सुजानगढ (चुरु)
इतिहास देश और जातियों के उत्थान और पतन का दर्पण है। आधुनिक खोजों से यह प्रमाणित हो चुका है कि जाट कौम का अतीत बहुत शानदार रहा है। इस कौम ने न केवल भारत अपितु विश्वभर में अपने बाहुबल से बड़े-बड़े साम्राज्य स्थापित किए, दीर्घ काल तक शासन किया और विजय पताका फहराई। अंग्रेज़ इतिहासकार कर्नल टोड के अनुसार
- "किसी समय जिस कौम की आधा यूरोप और सम्पूर्ण एशिया महादीप पर धाक थी, सहसा विश्वास नहीं होता कि वह बहादुर कौम आज भारत में खेती करके जीवन-यापन कर रही है।"
पौराणिक काल में जब ब्राह्मण धर्म का उदय हुआ तो जाटों को नीचा दिखाने के लिए न केवल उनका चरित्र हनन किया गया अपितु उन्हें नेपथ्य में ही धकेल दिया गया क्योंकि धार्मिक पाखंडों को जाटों ने कभी स्वीकार नहीं किया। भारतीय जाटों ने निरंकुश शासन प्रणाली को नकार कर गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली को अंगीकार किया तथा समतामूलक समाज रचना में महती भूमिका अदा की। जाटों ने अपना इतिहास कलम से नहीं लिखा बल्कि तलवार की नोक से रण में अथवा हल की नोक से खेतों में लिखा। कृषि में इस कौम की कोई सानी नहीं है। राष्ट्ररक्षा में खून बहाने में जाट का कोई मुक़ाबला नहीं है। जाट कौम विश्व की सबसे बहादुर कौम है। इस कौम ने हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रांताओं से खून की नदियां बहाकर देश की रक्षा की है। जाटों के इतिहास को धूमिल करने वालों को बेपरदा करने हेतु "जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष" के लेखक ने इस पुस्तक द्वारा प्रामाणिक जाट इतिहास की महत्ता स्थापित की है।
जाट इतिहास पर देशी विदेशी अनेक लेखकों ने गत सदी में बहुत कुछ लिखा है, किन्तु जितनी प्रामाणिकता और बोधगम्यता इस पुस्तक के लेखक ने कलम चलाई है, अन्यत्र दुर्लभ है। इस पुस्तक को पढ़कर पाठकों को कौम के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान तो होगा ही जाट जाति के जग-प्रसिद्ध वीरों और महापुरुषों की जीवनियों से भी रूबरू होंगे।
यह मैं विशेष रूप से कहना चाहता हूँ कि ऐतिहासिक तथ्यों की खोज अत्यंत दुसाध्य और खर्चीला कार्य है। ऐतिहासिक रूपी तथ्यों को माला में पिरोकर पाठकों के सामने उपलब्ध कराना भारी समय और श्रम मांगता है। जाट इतिहास के अनेक लेखकों ने भी भारी श्रम से रत्न खोज कर इतिहास रूपी मालाओं की रचनाएँ अवश्य की, किन्तु पाण्डुलिपियों को दीमक चाट गई। इतिहास के प्रकाशन पर भारी खर्च आता है । यदि कौम के शिक्षित और जागरूक बंधुओं में कौम के इतिहास पठन में रुचि जागृत हुई तो लेखन रूपी यज्ञ को सम्पन्न करने में उनका महान योगदान होगा, आहुति होगी।
नई साज-सज्जा के साथ "जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष" पुस्तक का सजिल्द संस्करण पाठकों के हाथों में प्रस्तुत है। आशा है पाठक गण इसे पसंद करेंगे।
- भीम सिंह आर्य
- मरुधरा प्रकाशन