Khoh River

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खोह रामगंगा की एक सहायक नदी है। इसका उद्गम उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जनपद में स्थित द्वारीखाल नामक स्थान पर होता है। यहाँ से यह शिवालिक पहाड़ियों से होकर बहते हुए भाभर मैदानों में उतरती है। कोटद्वार खोह नदी के तट पर बसा एक प्रमुख नगर है, जिसे प्राचीनकाल में इस नदी के नाम पर ही खोहद्वार भी कहा जाता था। बिजनौर ज़िले में यह उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ इसका संगम रामगंगा से हो जाता है।[1]

कोटद्वार में खोह नदी का जीवन है खतरे में

Author: Sunil Negi Publish Date: Thu, 12 Dec 2019 02:07 PM (IST)Updated Date: Thu, 12 Dec 2019 02:07 PM (IST)

कोटद्वार में खोह नदी का जीवन है खतरे में; पढ़िए पूरी खबर

पौड़ी जिले के कोटद्वार में खोह नदी सदियों से लोगों का जीवन बचाती आई है लेकिन आज उसका ही जीवन खतरे में है।

कोटद्वार, अजय खंतवाल। सुना है कि सरकार अस्थायी राजधानी देहरादून में दम तोड़ चुकी रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करने की तैयारी में है, लेकिन यहां मेरी सांसें उखड़ते देख भी कोई सुध लेना वाला नहीं। मैं खोह नदी हूं। वही खोह, जिसके तट पर अप्सरा मेनका अपनी नवजात पुत्री को छोड़कर वापस स्वर्ग लौट गई थी। मेरे ही तट पर शकुंत पक्षी ने अपने पंख फैलाकर उस नवजात की तेज धूप से रक्षा की थी। यही नवजात बालिका बाद में शकुंतला के नाम से जानी गई। इसी शकुंतला के गर्भ से भरत ने जन्म लिया, जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम से प्रसिद्ध हुए।

मैं सदियों से लोगों का जीवन बचाती आई हूं, लेकिन आज मेरा ही जीवन खतरे में है। मेरी जननी लंगूरगाड और सिलगाड अंतिम सांसें गिन रही हैं। मेरे संरक्षण की बात तो हो रही है, लेकिन कोई यह समझने को तैयार नहीं कि मेरा अस्तित्व ही सिलगाड व लंगूरगाड से है। इन्हीं दो नदियों के मिलन से पौड़ी जिले के एतिहासिक दुगड्डा कस्बे में मेरा जन्म होता है और वन क्षेत्र से 25 किमी का सफर तय कर कोटद्वार से दस किमी आगे मैं सनेह में कोल्हू नदी से मिल जाती हूं। इसके बाद धामपुर (बिजनौर-उत्तर प्रदेश) में राम गंगा नदी में समाहित होकर मैं आगे की यात्रा करती हूं।

करीब डेढ़ दशक पूर्व तक मैं कोटद्वार नगर के साथ ही आसपास के तमाम गांवों की प्यास बुझाती थी, लेकिन क्षेत्र में आई नलकूपों की बाढ़ ने मुझसे मेरा यह हक भी छीन लिया। आज मैं लैंसडौन वन प्रभाग के जंगलों में बसे उन बेजुबानों की प्यास बुझा रही हूं, जिन्होंने इस क्षेत्र की जैवविविधता को पहचान दी है।

मेरे वजूद पर संकट खड़ा करने वाला कोई और नहीं, बल्कि वही सरकारी सिस्टम है, जो आज मुझे बचाने के दावे कर रहा है। सुनने में आ रहा है कि मुझे बचाने के लिए मेरे आंचल में चेकडैम बनाने की तैयारी है, जबकि मैं चीख-चीख कर कह रही हूं कि मेरा अस्तित्व उसी सिलगाड व लंगूरगाड से है, जिन पर सरकारी सिस्टम की मिलीभगत से अतिक्रमण कर लगातार व्यावसायिक प्रतिष्ठान बन रहे हैं। क्या कोई इस ओर भी ध्यान देगा या फिर मैं तड़फते-तड़फते अपना अस्तित्व खो बैठूंगी।

बोले अधिकारी - डीएम धीरज सिंह गर्ब्‍यालय का कहना है कि खोह नदी के संरक्षण को सिंचाई विभाग के साथ योजना तैयार की जा रही है। योजना में खोह के साथ ही उसे जीवन देने वाली सिलगाड व लंगूरगाड में भी पानी रोकने के उपायों को शामिल किया जाएगा।

साभार: दैनिक जागरण वेबसाइट

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