Mera Anubhaw Part-2/Swatantrata Senani
रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया
ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो॰ 9460389546Contents
- 1 91. चौधरी चरणसिंह भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
- 2 92. चौ. देवीलाल भूतपूर्व उप प्रधानमन्त्री
- 3 93. बुड्ढ़ों की पेंशन चौ. देवीलाल
- 4 94. चौ. कुम्भाराम आर्य पूर्व मन्त्री
- 5 95. श्री बूटीराम किशोरपुरा
- 6 96. श्री पन्ने सिंह देवरोड़
- 7 97. म्हारा राम रघुनाथ
- 8 98. उठ जाग मुसाफिर भोर भई
- 9 99. मिलता है सच्चा सुख केवल
- 10 100. तेरे पूजन को भगवान
- 11 101. तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार
- 12 102. क्या तन माँजता रे
- 13 103. भला किसी का कर ना सको तो
91. चौधरी चरणसिंह भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
स्वतंत्रता सेनानी
चौधरी चरणसिंह - भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
तर्ज- चौकलियाअब तो जागो युग पलटा , आज भारत के अन्नदाता ।
चरणसिंह बन के आया आज, तेरा भाग्य विधाता ।।
किसान के घर जन्म लिया, सब देखा मजा झोंपड़ी में ।
ये भी अनुभव किया आपने , क्या क्या सजा झोंपड़ी में ।
बिन साधन रहे चौबीस घंटे , सिर पे कजा झोंपड़ी में ।
शान से अपना प्राण आज तक ,किसने तजा झोंपड़ी में ।
झोंपड़ी वाले ही इसके हैं, सच्चे बहन और भ्राता ।
चरणसिंह बन के आया............। 1 ।
नहीं ये हिन्दू मुसलमान, और नहीं ये सिक्ख ईसाई है।
नहीं ये गूजर राजपूत , नहीं ब्राहम्ण बनिया नाई है ।
नहीं ये अहीर जाट हरीजन ,जोगी और गुसाई है ।
मेहनतकस का सच्चा नेता , हिन्दुस्तानी भाई है।
देश के हित में मरने तक भी, कभी नहीं घबराता ।
चरणसिंह बन के आया............। 2 ।
एम. एल. ए.और एम.पी. तो यहां देखा हर इंन्सान बने ।
जमाखोर और भ्रष्टाचारी , झूठा और बेईमान बने ।
जनता का सच्चा विश्वासी ,नेता नहीं आसान बने ।
नेता बनने वाले का यहां , बार बार इम्तिहान बने ।
हुई सपूती सपूत बेटा, जनके भारत माता ।
चरणसिंह बन के आया............। 3 ।
धन दौलत से दूर रहे, ये भ्रष्टाचारी चोर नहीं ।
सादा जीवन नेक चरित्र , बल्कि रिश्वतखोर नहीं ।
प्रजातन्त्र का हामी ये, कुर्सी पे जमावे जोर नहीं।
ग्यारह बार कुर्सी ठुकरादी, ऐसा नेता और नहीं ।
देशभक्त त्यागी बनने का, सबको सबक सिखाता ।
चरणसिंह बन के आया............। 4 ।
किसान तेरी अंगूठी का, श्री चरण सिंह नगीना है।
कदर नहीं जानी इसकी तो,तेरा मुश्किल जीना है।
तेरे हक में लड़ा रात दिन, खोल खोलकर सीना है।
अपना खून बहा देता, जहां पड़ता तेरा पसीना है ।
तेरा नेता तेरे लिये फिर, देश में अलख जगाता ।
चरणसिंह बन के आया............ । 5 ।
साम्प्रदायिक तानाशाही , शक्तियों का मरण बना ।
लोकतंत्र की नींव भंवर में, इसका तारण तरण बना ।
गांधी जी खुश हुए स्वर्ग में, मेरा पूरा परण बना ।
भारत का प्रधानमंत्री, किसान का बेटा चरण बना।
भालोठिया इस देशभक्त के, घर घर गीत सुनाता ।
चरणसिंह बन के आया............। 6 ।
92. चौ. देवीलाल भूतपूर्व उप प्रधानमन्त्री
इनसे बढ़कर देशभक्त की, मिलती नहीं मिसाल।
चौधरी देवीलाल कहूँ, या भारत माँ का लाल ।।
पच्चीस सितम्बर उन्नीस सौ चौदह,देश में पर्व महान हुआ।
उस दिन भारत माता के, ऊपर राजी भगवान हुआ।
लेखराम जी चौटाला के, घर में प्रगट भान हुआ।
उसी भान की रोशनी में, आजाद हिन्दोस्तान हुआ।
निर्बल का बल, निर्धन का धन, आया दीन दयाल।
चौधरी देवीलाल.........। 1 ।
सतयुग त्रेता द्वापर का, हमको इतिहास बतावै सै।
पाप का भार बढ़े धरती पर, जब कोई जुल्म कमावै सै।
अपने स्वार्थवश जनता को, जो कोई जुल्मी सतावै सै।
नियम कुदरती धरती पर,कोई महान योद्धा आवै सै।
कभी राम बनके आया और कभी कृष्ण गोपाल।
चौधरी देवीलाल..........। 2 ।
पन्द्रह साल की उमर हुई,जब रणभूमि में कूद पड़ा।
जंगे आजादी का बहादुर, अपना सीना तान अड़ा।
अंग्रेजो भारत छोड़ो, ये नारा देकर खूब लड़ा।
या तो शेर पिंजरे में, या स्टेज के ऊपर रहा खड़ा।
पहन हथकड़ी चलता था, जनु जा रहा सै ससुराल।
चौधरी देवीलाल............। 3 ।
पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस को, छुट्टी पाई गोरों से।
उसी रोज से इनका पाला, पड़ गया काले चोरों से।
देश द्रोही भ्रष्टाचारी, दलाल रिश्वतखोरों से।
प्रजातंत्र के दुश्मन, अपराधी सीनाजोरों से।
न्याय युद्ध लड़ गद्दारों की, नहीं गलने दी दाल।
चौधरी देवीलाल...........। 4 ।
राज हाथ में आते ही, जनता से दिखाई हमदर्दी।
नहीं किसी ने धरी आज तक, नींव जो ताऊ ने धर दी।
दस हजार तक कर्ज माफ कर, किस्त बैंक की खुद भरदी।
बेरोजगारों को भत्ता दे, बुड्ढ़ों की पेंशन कर दी।
गाँव-गाँव में हरिजनों की, बनवादी चौपाल।
चौधरी देवीलाल...........। 5 ।
मुख्यमंत्री का पहले भी, यहाँ सत्कार हुआ करता।
कहीं पर थैली भेंट, कहीं नोटों का हार हुआ करता।
कहीं सिक्कों से तोला जाता, जितना भार हुआ करता।
लोग देखते रहते डाकू , लेकर पार हुआ करता।
भालोठिया कहे दो गुणा दे, ताऊ ने करे कमाल।
चौधरी देवीलाल............। 6 ।
93. बुड्ढ़ों की पेंशन चौ. देवीलाल
बुड्ढ़ों की पेंशन का जिस दिन, घर मनीऑर्डर आवै सै।
जुग-जुग जीओ देवीलाल, ईश्वर से दुआ मनावै सै।।
थोड़े से आदमी देश के अन्दर, करैं नौकरी सरकारी।
हर महीने में तीस रोज की, तनख्वाह लेते हैं भारी।
होली दीवाली रविवार की, छुट्टी होती है न्यारी।
आया बुढ़ापा घर पर बैठे, पेन्शन लेते माहवारी।
हरियाणे का हर बुड्ढ़ा आज, बैठा पेन्शन पावै सै।
जुग-जुग जीओ ........। 1 ।
झाबर, झण्डू ,मांगे ठण्डू ,पेंशन आज गिरधारी ले।
हेता, खेता, चेता, भरतू , गोपीचन्द, बनवारी ले।
बूला, फूला और कबूला, बालमुकुन्द, गुलजारी ले।
हेमा, खेमा, जागे, प्रेमा, मातादीन, मुरारी ले।
मोलड़ ले के मनिऑर्डर, बैठक में मूँछ पनावै सै।
जुग-जुग जीओ .......। 2 ।
भरती,सरती,माड़ी,इमरती,पेंशन आज सिणगारी ले।
भगवानी, नारानी, खजानी, पार्वती, हरप्यारी ले।
भरपाई, अणचाही, भतेरी, सुखदेई, हुशियारी ले।
दड़काँ भूलां, लाडो फूलां, बेदकोर, करतारी ले।
धापां नोट पेन्शन का,अपनी बहुवाँ तै गिणवावै सै।
जुग-जुग जीओ .........। 3 ।
अब तक जग में आया ऐसा, कोई माई का लाल नहीं।
सतयुग त्रेता द्वापर में था , कोई ऐसा भूपाल नहीं।
दिन और रात कमावणिये का, किसी को आया खयाल नहीं।
देवीलाल ने कर दिया ऐसा, किसी ने करा कमाल नहीं।
गली-गली में फिरै डाकिया, मनिआर्डर पहुँचावै सै।
जुग-जुग जीओ ..........। 4 ।
थी किसकी सरकार जिसने, पेन्शन करी कमाऊ की।
नहीं रूस के ख्रुश्चेव और नहीं चीन के माऊ की।
होती आई कदर हमेशा, भ्रष्टाचारी खाऊ की।
रामराज से आगे टपगी, आज हुकुमत ताऊ की।
धर्मपाल सिंह भालोठिया, आज गीत खुशी में गावै सै।
जुग-जुग जीओ .........। 5 ।
94. चौ. कुम्भाराम आर्य पूर्व मन्त्री
जब तक सूरज चाँद रहेंगे, रहे आपका नाम।
चौधरी कुम्भाराम कहूँ, या राजस्थान का राम।।
किसान के घर जन्म लिया, सब देखा मजा झोंपड़ी में।
ये भी अनुभव किया आपने, क्या-क्या सजा झोंपड़ी में।
बिन साधन रहे चौबीस घंटे, सिर पे कजा झोंपड़ी में।
शान से अपना प्राण आज तक, किसने तजा झोंपड़ी में।
आपने झोंपड़ी वालों का, देखा दुख दर्द तमाम।
चौधरी कुम्भाराम............। 1 ।
देखा देश गुलाम कुली और काफिर नाम हमारा था।
छोड़ नौकरी सरकारी, परिवार छोड़ दिया सारा था।
कूद पड़ा मैदाने जंग में, शेर बबर ललकारा था।
अंग्रेजो भारत छोड़ो, ये उनका असली नारा था।
जेलों को अपने जीवन में, समझा तीर्थ-धाम।
चौधरी कुम्भाराम...........। 2 ।
गाँव-गाँव में जन जागृति, करने देर सबेर गया।
अलवर भरतपुर चित्तोड़गढ़, कोटा बूँदी अजमेर गया।
जयपुर जोधपुर सीकर झुन्झुनूं, नागौर बीकानेर गया।
लाहौर दिल्ली मेरठ आगरा, राजस्थानी शेर गया।
दृढ़ संकल्प था उनका, अब रहना नहीं गुलाम।
चौधरी कुम्भाराम............। 3 ।
पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस, गोरों से छुट्टी पाई थी।
राजा जागीरदारों से फिर, हो गई शूरू लड़ाई थी।
आगे बढ़ता गया, नहीं दुश्मन को पीठ दिखाई थी।
जीत का झंडा चढ़ा दिया, घर की सरकार बनाई थी।
राज हाथ में आते ही, फिर करे हजारों काम।
चौधरी कुम्भाराम..........। 4 ।
खून पसीना एक बना, जो दिन और रात कमाता था।
एक इन्च भी धरती का, यहाँ मालिक नहीं अन्नदाता था।
पता नहीं कब जाना हो, घर पक्का नहीं बनाता था।
भालोठिया कहे किसानों के लिए, आया भाग्य विधाता था।
एक कलम से मालिक बनाए, काश्तकार तमाम।
चौधरी कुम्भाराम...........। 5 ।
95. श्री बूटीराम किशोरपुरा
तर्ज :- शर्म की मारी मैं मर मर जाऊं.........
जुग-जुग बसो किशोरपुरा, आज बना पवित्र धाम।
शेखावाटी में।।
इस नगरी में जन्म लिया, देश को जीवन दान दिया।
आया श्री बूटीराम, शेखावाटी में । 1।
अंग्रेज, राजा, जागीरदार, हम पर थी तीनों की मार।
डंडे से लेते काम, शेखावाटी में । 2।
रणभूमि में कूद पड़ा, आजादी का जंग लड़ा।
अब रहना नहीं गुलाम, शेखावाटी में । 3।
थे पाण्डू काश्तकार यहाँ, कौरव थे जागीरदार यहाँ।
बनकर आया घनश्याम, शेखावाटी में । 4 ।
यहाँ प्रथा जागीरदारी थी, सबसे बुरी बीमारी थी।
जड़ से मिटा दी पाम, शेखावाटी में । 5 ।
चवरा में चली थी गोली, शहीद हो गये दिन धोळी।
रामदेव और करणी राम, शेखावाटी में । 6 ।
वो देशभक्त अलबेला था, ऋषि दयानन्द का चेला था।
आज पूजे जनता तमाम, शेखावाटी में । 7 ।
जब बनगी फौज किसानों की, शामत आगई ठिकानों की।
बड़ गये घर में नमक हराम, शेखावाटी में । 8 ।
बाबा जनहितकारी था, पर दुख-भंजन हारी था।
नहीं किया कभी आराम, शेखावाटी में । 9 ।
भरे मेला तीस जनवरी को, श्री बूटीराम चौधरी का।
करे भालोठिया प्रणाम, शेखावाटी में । 10 ।
96. श्री पन्ने सिंह देवरोड़
देवरोड़ शेखावाटी में, बना पवित्र धाम।
देशभक्त पन्नेसिंह का, अमर हो गया नाम।।
बचपन बीता आई जवानी, जिस दिन होश संभाला था।
भारतवासी गुलाम देखे, नाम कुली और काला था।
राजा जागीरदारों के, जुल्मों का बोलबाला था।
कूद पड़ा मैदान में वो, आजादी का मतवाला था।
छोड़ दिया घर गाँव बच्चे, छोड़ा ऐशो-आराम । 1 ।
मातृशक्ति का आदर, अछूतों का उद्धार किया।
अन्ध-विश्वास कुरीति खंडन, सामाजिक सुधार किया।
स्कूल छात्रावास बनाये, विद्या का प्रचार किया।
ऊँच-नीच का भेद मिटाया, दीन हीन से प्यार किया।
उनका भाई चारा था, ये गाँव के लोग तमाम । 2 ।
नहीं वो हिन्दू मुसलमान और नहीं वो सिक्ख ईसाई था।
नहीं वो गूजर राजपूत, नहीं ब्राह्मण बनिया नाई था।
नहीं वो अहीर, जाट हरिजन, जोगी और गुसाई था।
जंगे आजादी का बहादुर, राजस्थानी भाई था।
दृढ़ संकल्प था उनका, अब रहना नहीं गुलाम । 3 ।
निर्दोष कमेरा जाति का, जहाँ पर भी पड़ा पसीना था।
देने अपना खून वहाँ पर, चला खोलकर सीना था।
देवरोड़ में वीर बालक , जन्मा लाल लखीना था।
किसान तेरी अंगूठी का, श्री पन्ने सिंह नगीना था।
भालोठिया उस देशभक्त को, करता है सलाम । 4 ।
कवि के पसंदीदा कुछ अन्य संकलन
97. म्हारा राम रघुनाथ
राजस्थानी लोक गीत - 97
म्हारा राम रघुनाथ,
इतना वर तो म्हाने दीज्यो, नित उठ जोडूँ हाथ ।।
म्हारा राम ..........।
आथूणो तो खेत दीज्यो, बिच में दीज्यो नाडी ।
घरवाली न छोरो दीज्यो, भैंस ल्यावे पाडी ।।
म्हारा राम.........। 1 ।
एक म्हाने हलियो दीज्यो, हाल दीज्यो ठाडी।
दोय तो म्हाने बैल दीज्यो, एक दीज्यो गाडी ।।
म्हारा राम.........। 2 ।
दोय म्हाने छाळी दीज्यो, दोय दीज्यो लरड़ी।
काली भूरी दोनों दीज्यो, एक बणाल्याँ बरड़ी।।
म्हारा राम........। 3 ।
बाजरे री रोटी दीज्यो, ऊपर शक्कर घी ।
दोय तो उपरांत दीज्यो, घणों पड़ेलो सी।।
म्हारा राम........। 4 ।
98. उठ जाग मुसाफिर भोर भई
भजन-98
तर्ज :- दिल लूटने वाले जादूगर ,अब मैंने तुम्हें पहचाना है..........
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है ।
जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है।।
उठ जाग मुसाफिर ..........। 1 ।
उठ नींद से अँखियां खोल जरा, और अपने प्रभु से ध्यान लगा।
यह प्रीत करन की रीत नहीं, प्रभु जागत है तू सोवत है।।
उठ जाग मुसाफिर ..........। 2।
जो कल करना सो आज करले, जो आज करना सो अब करले।
जब चिड़ियों ने चुग खेत लिया, फिर पछताए क्या होवत है।।
उठ जाग मुसाफिर ...........। 3।
नादान भुगत करनी अपनी, ए पापी पाप में चैन कहाँ।
जब पाप की गठरी शीश धरी, फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है।
उठ जाग मुसाफिर ......... । 4।
99. मिलता है सच्चा सुख केवल
भजन-99
मिलता है सच्चा सुख केवल, भगवान तुम्हारे चरणों में
यह विनती है पल-पल छिन-छिन, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
जिव्हा पर तेरा नाम रहे, तेरी याद सुबह और शाम रहे।
बस काम यह आठों याम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
भगवान तुम्हारे चरणों में ........ । 1 ।
चाहे संकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारों और अंधेरा हो।
पर चित ना डगमग मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
भगवान तुम्हारे चरणों में ............। 2 ।
चाहे अग्नि में भी जलना हो, चाहे काँटो पर ही चलना हो।
चाहे छोड़ के देश निकलना हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
भगवान तुम्हारे चरणों में .............। 3 ।
चाहे गृहस्थ का फर्ज निभाना हो, चाहे घर-घर अलख जगाना हो।
चाहे दुश्मन सारा जमाना हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
भगवान तुम्हारे चरणों में ..........। 4 ।
चाहे बीच भँवर में नैया हो, चाहे कोई न उसका खिवैया हो।
भवसागर पार उतरने को, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
भगवान तुम्हारे चरणों में ...........। 5 ।
चाहे बैरी सब संसार बने, चाहे जीवन मुझ पर भार बने।
चाहे मौत गले का हार बने, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।।
भगवान तुम्हारे चरणों में .........। 6 ।
100. तेरे पूजन को भगवान
भजन-100
तेरे पूजन को भगवान, बना मन मन्दिर आलीशान।।
किसने जानी तेरी माया, किसने भेद तुम्हारा पाया।
हारे ऋषि-मुनि धर ध्यान। बना मन............। 1 ।
तू ही जल में, तू ही थल में, तू ही मन में तू ही वन में।
तेरा रूप अनूप महान्। बना मन...........। 2 ।
तू हर गुल में, तू बुलबुल में, तू हर डाल के पातन में।
तू हर दिल में मूरतिमान। बना मन ...........। 3 ।
तूने राजा रंक बनाये, तूने भिक्षुक राजा बिठाए।
तेरी लीला अजब महान। बना मन............। 4 ।
झूठे जग की झूठी माया, मूरख उसमें क्यों भरमाया।
कर कुछ जीवन का कल्याण। बना मन........। 5 ।
।। दोहा।।
जब तक रहेगी जिन्दगी,फुरसत न होगी काम से।
कुछ समय ऐसा निकालो, प्रेम करलो राम से।।
101. तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार
भजन-101
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करे।।
नैया तू करदे प्रभु के हवाले, लहर-लहर हरि आप संभाले।
हरि आप ही उतारे तेरा भार, उदासी मन काहे को करे।।
तेरा रामजी करेंगे ..........। 1 ।
ये काबू में मझधार उसी के, हाथों में पतवार उसी के।
बाजी जीते चाहे हार, उदासी मन काहे को करे।।
तेरा रामजी करेंगे .........। 2 ।
गर निर्दोष तुझे क्या डर है, पग-पग पर साथी ईश्वर है।
जरा भावना से करले पुकार, उदासी मन काहे को करे।।
तेरा रामजी करेंगे ........। 3 ।
सहज किनारा मिल जायेगा, परम सहारा मिल जायेगा।
डोरी सौंप दे तू उनके हाथ, उदासी मन काहे को करे।।
तेरा रामजी करेंगे ..........। 4 ।
102. क्या तन माँजता रे
भजन-102
क्या तन माँजता रे, एक दिन माटी में मिल जाना।।
माटी ही ओढ़न, माटी बिछावन, माटी का सिरहाना।
माटी का कलबूत बना है, जिसमें भँवर लुभाना।।
क्या तन माँजता रे .........। 1 ।
माता पिता का कहना मानो, हरि से ध्यान लगाना।
सत्य वचन और रही दीनता, सबको सुख पहुँचाना।।
क्या तन माँजता रे .............। 2 ।
एक दिन दूल्हा बना बराती, बाजे ढ़ोल निशाना।
एक दिन जाय जंगल में डेरा, कर सीधा पग जाना।।
क्या तन माँजता रे .............। 3 ।
हरि की भक्ति कबहुँ नहीं भूलो, जो चाहो कल्याणा।
सबके स्वामी पालन कर्ता, उनका हुकुम बजाना।।
क्या तन माँजता रे .............। 4 ।
103. भला किसी का कर ना सको तो
भजन -103
तर्ज :- क्या मिलिए ऐसे लोगों से,जिनकी फितरत छुपी रहे..........
भला किसी का कर ना सको,तो बुरा किसी का मत करना।
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम ,कांटे बन कर मत रहना ।।
भला किसी का.............।।
बन न सको भगवान अगर तुम, कम से कम इंसान बनो।
नहीं कभी शैतान बनो तुम,नहीं कभी हैवान बनो ।
सदाचार अपना न सको तो,पापों में पग मत धरना ।।
भला किसी का.............। 1 ।
सत्य वचन न बोल सको तो ,झूठ कभी भी मत बोलो ।
मौन रहो तो ही अच्छा, कम से कम विष तो मत घोलो।
बोलो यदि पहले तुम तोलो, फिर मुँह को खोला करना।।
भला किसी का.............। 2 ।
घर न किसी का बसा सको तो,झोपड़ियां न जला देना।
मरहम पट्टी कर न सको तो, घाव नमक न लगा देना।
दीपक बन कर जल न सको तो, अंधियारा भी मत करना
भला किसी का.............। 3 ।
अमृत पिला न सको किसी को, जहर पिलाते भी डरना।
धीरज बंधा नहीं सकते तो, घाव किसी के मत करना ।
राम नाम की माला लेकर,सुबह शाम भजन करना ।।
भला किसी का.............। 4 ।
सच्चाई की राह में बेशक, कष्ट अनेकों मिलते हैं ।
पर कांटों के बीच में देखो, फूल हमेशां खिलते हैं।
सूरज की भांति खुद जलकर, सब जग को रोशन करना।
भला किसी का.............। 5 ।