Puran Dungaran Ki
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Puran Dungaran Ki (पुरां डूंगरा की) is a village in .... tehsil of Sikar district in Rajasthan.
Location
Jat Gotras
History
Monuments
इतिहास
विक्रम संवत 1192 (=1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान के बाद मलसी ने मालीसर गांव बसाया- वैशाख सुदी आखा तीज के दिन विक्रम संवत 1194 साल (=1137 ई.)। जहां मलसी ने पनघट का कुआं खुदवाया, जोहड़ खुदवाया, सवा सौ बीघा पड़तल भूमि छोड़ी तथा महादेव जी की छतरी करवाई। [1]
मलसी माली (1135 ई.) (पत्नि:सुंदर पूनिया पुत्री जोधराज पूनिया, चन्द्रा की पोती ) → धरमा (पत्नि:हेमी गोदारा, पुत्री मेहा गोदारा/हिदु की पोती) → जैतपाल (पत्नि: रायमल भावरीया, की पुत्री सायर) (भाई: करमसी, बहिन: राजां, जोरां) → उदय (पत्नि: सुलखा हरचतवाल की बेटी सिणगारी) (भाई रतन, जीवराज, बहिन सरस्वती) → धनराज (बहिन गणी) [2]
धरमा माली ने बेटी राजा व जोरां का विवाह किया- वैशाख सुदी तीज विक्रम संवत 1278 (=1221 ई.) विवाह में 21 गायें दहेज में दी। विक्रम संवत 1329 (=1272 ई.) में मालीसर गांव में धर्मा की याद में करमसी व जैतपाल ने ₹900 में पानी की 'पीय' कराई तथा विक्रम संवत 1338 (=1281 ई.) में मालीसर गांव में दान किया। विक्रम संवत 1342 (=1286 ई.) में मालीसर गांव में चौधरी उदय ने दान कार्य किया। (करमसी की पत्नि महासी निठारवाल की बेटी हरकू थी- वंश विराम)[3]
चौधरी उदयसी, रतनसी, जीवराज गांव मालीसर छोड़ पलसाना बसे- वैशाख सुदी 7 विक्रम संवत 1352 (=1295 ई.) (शनिवार) के दिन सवा पहर दिन चढ़ते समय छड़ी रोपी। [4]
विक्रम संवत 1513 (=1456 ई.) में चौधरी घासीराम माली पलसाना छोड़कर कासली बसा। [5]
वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1732 की साल (28 अप्रैल 1675 ई.) में चौधरी खडता व धर्मा ने कासली छोड़ गांव पूरां बसाया। [6]
विक्रम संवत 1746 (1689 ई.) की साल धर्मा ने पुरां में धर्माणा जोहड़ा खुदवाया। कार्तिक सुदी सात विक्रम संवत 1754 (=1697 ई.) में चौधरी पांचू, बीजा, लौहट ने पिता धर्मा का मौसर किया। वह गंगाजी घाल गंगोज कराया। विक्रम संवत 1780 (=1723 ई.) की साल चौधरी पांचू/बाछू ने दान कार्य किया। [7]
चौधरी पीथा का पुरां छोड़ रुल्याणा बसना: विक्रम संवत 1840 का चालीसा अकाल या अन्य तत्कालीन दुरुह परिस्थितियों में दीपा माली का बेटा चौधरी पीथा अपने अन्य बंधुओं व घर परिवार को छोड़कर अन्यत्र बसने की खोज में पूरां गांव से विस्थापन कर गया। पूरां से प्रस्थान के पश्चात बसने के स्थल की तलाश में चौधरी (महत) पीथा बैशाख सुदी तीज (आखातीज) विक्रम संवत 1841 (22 अप्रैल 1784 ई. गुरुवार) के दिन इस खंडहर बन चुके प्राचीन निर्जन गांव भारमली का रुल्याणा से होकर अपनी बैलगाड़ी पर गुजर रहा था जहां गोधूलि बेला के समय क्षितिज में डूबते सूरज को देख रात्रि को विश्राम के लिए रुका और इन्हीं घड़ियों में प्रकृति के कुछ शुभ संकेतों को देखकर रात्रि विश्राम में धरती से जुड़े कुछ लगाओं से उसने यहीं बसने का फैसला किया। इस तरह से मात्र संयोगवस 22 अप्रैल 1784 गुरुवार के दिन खंडहर बन चुका रुल्याणा गांव पुनः आबाद हुआ और इत्तेफाक से पीथा इस गांव को बसाने वाला द्वितीय प्रवर्तक बना। [8]
पूरां (डूंगरा की) की शक्ति माता
पिथा माली के रुल्याणा माली गांव में बसने से पहले उनके पैतृक गांव पूरां (डूंगरा की) में गठित हुई एक घटना का विवरण आज तक लोगों से कहते सुना जा सकता है। कहते हैं कि पिथा के परिवार में भोजाई की सोने की नथ ननंद ने चुरा ली थी। भोजाई द्वारा उसे वापस मांगने या चोरी कर लेने की आशंका दर्शाने पर ननदने मना कर दिया। आखिर विवाद से तंग आकर व ननद के 'जलजा' के चुभने वाले बोल पर भोजाई ने आत्मदाह कर लिया। उसी समय जलती हुई भोजाई ने श्राप दे दिया कि "मालियों के आई हुई सुख पाएगी और गई हुई (जाई-जन्मी) दुख पाएगी (स्वर्गीय श्री हरदेवा पटेल के अनुसार)। [9]
इस कहावत में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता परंतु आज भी जब इस गांव की किसी बेटी को उसके ससुराल में कष्ट पहुंचता है तो उस समय सती का कहा गया कथन लोगों को अनायास ही स्मरण हो जाता है। आज भी पूरा (डूंगरां की) गांव में शक्ति का चबूतरा मौजूद है जिसे माली पूजते हैं तथा उस शक्ति को देवी स्वरूप मानकर उसकी याद में विवाह के अवसर पर फेरों में शक्ति का एक नख टाला जाता है।[10]
माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम
रुल्याणा माली गांव के माली गोत्र के पूर्वज तुर्कों के सांभर पर आक्रमण के फलस्वरूप विक्रम संवत 1192 (1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान कर गए तथा विक्रम संवत 1194 (1137 ई.) की साल के किसी दिन छड़ी रोककर मालीसर गाँव बसाया। माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम निम्न तरह से मिलता है[11]:
सांभर (विक्रम संवत 1192 = 1135 ई.) → मालीसर (विक्रम संवत 1194 = 1137 ई.) → पलसाना (विक्रम संवत 1352 = 1295 ई.) → कासली (विक्रम संवत 1513 = 1446 ई.) → छापर (विक्रम संवत 1518 = 1461 ई.) → बाड़ा (विक्रम संवत 1522 = 1465 ई.) → बुसड़ी खेड़ा (?) (विक्रम संवत 1525 = 1468 ई.) → भींवसर (विक्रम संवत् 1535 ई. = 1478 ई.)
कासली (विक्रम संवत 1513= 1446 ई.) → पुरां डूंगरा की (विक्रम संवत 1732= 1675 ई.) → रुल्याणा माली (वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1841 = 22 अप्रैल 1784)
झाड़ी वाले माली ढूंढाड़ → बादलवास → दुगोली → रुल्याणा माली
पलसाना से क्रमिक स्थानांतरण के लगभग चार सौ साल बाद माली पुरां (डूंगरा की) बसे और वहां से करीब सौ साल बाद दीपा माली का बेटा पीथा माली रुल्याणा माली में आकर बसा।
Notable persons
External links
References
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.76
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.77
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
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