Ramesh Chandra Singroha

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Ramesh Chandra Singroha (13.10.1954-20.10.1987) is a martyr of militancy in Srilanka. He was from Hathwala village in Julana tehsil of Jind district in Haryana. He became martyr on 20.10.1987 during Operation Pawan in Srilanka.

शहीद रमेश चन्द्र सिंगरोहा

शहीद रमेश चन्द्र सिंगरोहा का जन्म 13 अक्टूबर 1954 को गांव हथवाला जिला जीन्द हरयाणा में हुआ था । पिता का नाम छतर सिंह था । उन्हें बचपन से ही पढ़ाई के लिए प्रेरित किया । उनकी पढ़ाई गांव हथवाला के सरकारी स्कूल में हुई थी बचपन से ही फ़ौज में जाने की इच्छा थी ।

कहते हैं कि रमेश चन्द्र सिंगरोहा को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ने वाले सैनिकों के बलिदान से बहुत प्रेरित थे । सेना का हिस्सा बनने के पीछे इसे भी एक बड़ा कारण माना जाता है ।

ताऊ रमेश चन्द्र पढ़ने में बचपन से ही कुशाग्र थे । मसलन 1971 में ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकैडमी (ओटीए) पहुंचने में सफल रहे । वहां से पास होने के बाद 16 जून, 19.. को वो 2 राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हुए करीब आठ साल इस यूनिट का हिस्सा रहने के बाद वो 2 RAJ का हिस्सा बने । रमेश चन्द्र सिंगरोहा शुरू से ही अपनी यूनिट में अनुशासन के लिए चर्चित थे । हर ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाते थे । उन्हें शौर्य सेवा मैडल 'ईयर लॉन्ग सेविस मैडल' अवार्ड क्लास जम्मू एवं कश्मीर से सम्मानित किया गया ।

उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी मिलती, वह उसे बखूबी निभाते । जो भी युद्ध के दौरान उनकी सक्रियता थी इसके दो बड़े उदाहरण बने । युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी कार्यशैली से सभी को प्रभावित किया । वह अपने सीनियर्स के प्रिय तो बने ही, साथ ही अपने जूनियर्स और साथियों के बीच भी लोकप्रिय हुए ।

1980 का दशक ख़त्म होते-होते एक ऐसा दौर आया, जब श्रीलंका सिविल वॉर से जूझ रहा था । भारत-श्रीलंका समझौते के अनुसार, भारतीय सेना वहां शांति व कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिए गई । श्रीलंका के अंदर भारतीय सेना द्वारा चलाए गए इस अभियान को 'ऑपरेशन पवन' के नाम से जाना जाता है, जो कि 1987 से 1990 तक चला ।

इस पूरे मिशन में यूं तो हर एक भारतीय जवान ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । मगर एक नाम ऐसा भी रहा, जिसे इस मिशन के दौरान अपनी बहादुरी के लिए जाना जाता है वह कोई और नहीं रमेश चन्द्र सिंगरोहा थे ।

80 के दशक में अचानक श्रीलंका के हालात बिगड़े, तो भारत-श्रीलंका समझौते के अनुसार भारतीय सेना की और से रमेश चन्द्र सिंगरोहा 'ऑपरेशन पवन' के तहत श्रीलंका गए और 20 सितंबर 1987 को मेजर को सूचना मिली कि जाफ़ना के उडुविल शहर के पास मौजूद एक गांव में एक बड़ी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद एकत्र किए गए हैं । इस सूचना पर रमेश चन्द्र सिंगरोहा भी मौके पर पहुंचे और उस घर को घेर लिया, जहां हथियारों का जखीरा मौजूद था । अपने प्लान के तहत उन्होंने तय किया कि 25 सितंबर की सुबह वह अपना तलाशी अभियान शुरू करेंगे । दूसरी तरफ विरोधियों को इसकी खबर लग गई और उन्होंने रमेश सिंगरोहा और उन के समूह पर हमला कर दिया । रमेश चन्द्र जी समझ चुके थे कि यह सब उनके तलाशी अभियान को रोकने के लिए किया जा रहा है । परिस्थितियां बिल्कुल उनके विपरीत थी । दुश्मन मज़बूत स्थिति में था । मगर वह रमेश और उनके साथियों को कमज़ोर नहीं कर पाया । रमेश चन्द्र और उसकी टीम के साथ तलाशी के लिए आगे बढ़े । रमेश सिंगरोहा विरोधियों की घात लगाकर हमला करने की योजना जानते थे । उन्होंने विरोधियों के ख़िलाफ़ इसी का प्रयोग किया और जल्द ही उन्हें चारों तरफ़ से घेर लिया । मेजर की तेज़ी विरोधियों के समझ से बाहर थी । उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें । मेजर उनके रास्ते का सबसे बड़ा अवरोध थे ।

यही कारण रहा कि सब छोड़ कर उन्होंने रमेश चन्द्र सिंगरोहा जी को टारगेट किया और छिपकर उनको अपनी गोली का निशाना बनाया । यह गोली सिंगरोहा के हाथ में लगी और वह बुरी तरह घायल हो गए । बावजूद इसके, उन्होंने विरोधियों से लोहा लिया और उनकी राइफ़ल छीनने की कोशिश की । इसी बीच एक दूसरी गोली उनके सीने पर लगी और वह ज़मीन पर गिर गए । वह अपनी आखिरी सांस ले रहे थे । फिर भी अपने साथियों का हौसला बढ़ाया ।

परिणाम स्वरूप उनकी टीम ने इस संघर्ष में पाँच आतंकवादी मार गिराये । साथ ही तलाशी के दौरान राइफ़लें और रॉकेट लाँचर बरामद किए । इस संघर्ष में रमेश चन्द्र सिंगरोहा जी 20 अक्तूबर 1987 को शहीद हो गए । गांव हथवाला में ताऊ रमेश चन्द्र सिंगरोहा का शहीदी चिन्ह होना चाहिए था । सभी हथवाला वासियों से निवेदन है कि ताऊ रमेश चन्द्र सिंगरोहा की याद में शहीदी चिन्ह का निर्माण होना चाहिए । शहीद रमेश चन्द्र सिंगरोहा अमर रहे ।

शहीद का सम्मान

लेखक

कुलदीप सिंगरोहा

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


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