Swami Amaranand Saraswati

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Swami Amaranand Saraswati

Swami Amaranand Saraswati (Khola) (1910 - 12.03.1980) was a social reformer and follower of Aryasamaj from village Sesoth in Mahendergarh tahsil and district in Haryana.

स्वामी अमरानंद सरस्वती का जीवन परिचय

स्वामी अमरानंद सरस्वती का जन्म सन् 1910 में गांव सिसोठ तहसील व जिला महेंद्रगढ़ (हरियाणा) में माता श्रीमती सिंगारो देवी, पिता श्री पूरण सिंह खोला के घर हुआ । आप के दादा का नाम हुकम सिंह था । आप 7 बहन भाइयों में सबसे बड़े थे, भाई बहन क्रमश: स्वामी अमरानंद, रामजीलाल, हरिसिंह, बलवंत सिंह, सरती देवी, रूपराम फौजी, अध्यापक रतनलाल आदि जिनमें भाई हरिसिंह अल्पायु में ही काल कर गया था।

शिक्षा

आपका बचपन गांव में ही बीता परंतु आपका मन सांसारिकता में नहीं लग पाया । 14 वर्ष की अल्पायु में ही आपने गृह त्याग दिया व रेवाड़ी के निखरी गांव के मंदिर में रहने लगे। उसके पश्चात आप हांसी के पास जमावड़ी ग्राम अपने मामा के पास गए और वहाँ से मामा को साथ लेकर जींद के पास किसी आश्रम में गए जहां गऊशाला भी थी वहाँ लंबी समयावधि तक रहे । यहीं रहकर आपने शिक्षा ग्रहण की । लगभग आजादी के आसपास आप गांव वापिस आ गए ।

गाँव में आश्रम

गांव में आकर आपने गांव के उत्तर में जोहड़ की पाल के पास एक आश्रम बनाया जहां पर आपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित कर गांव व आसपास के गाँव स्याणा, भगड़ाना, रीवासा, पोता, न्योताना आदि के विद्यार्थियों को पढाया । पानी की व्यवस्था के लिए आश्रम पर एक कुवा भी बनवाया । आपके शिष्य गुरुकुल झज्जर में कार्यरत आचार्य विरजानंद निवासी भगड़ाना ने बताया कि छठी कक्षा तक वे और भाई रतन सिंह व हीरा सिंह ने भी स्वामी जी के आश्रम में ही शिक्षा ग्रहण की थी । वे अक्षर ज्ञान के साथ–साथ गणित व व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा भी दिया करते थे। इसके साथ-साथ वे विद्यार्थियों को नियमित वैदिक संध्या, हवन और योगाभ्यास करवाया करते थे। वह इस कार्य को तब तक करते रहे जब तक की सरकारी विद्यालय नहीं बन गए।

आंदोलन व वेदों का प्रचार

आपने 1957 के हिन्दी सत्याग्रह आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था एवं महेंद्रगढ़ जिले का सत्याग्रहियों का जत्था आपकी अगुवाई में ही भेजा गया था। रास्ते में ही सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया गया व स्वामी जी को अंबाला जेल भेज दिया गया, वहीं भगड़ाना के जयदयाल व खेड़की के हीरालाल भी स्वामी जी के साथ जेल में रहे । आंदोलन खत्म होने पर 31 दिसम्बर, 1957 को सबके साथ रिहा किए गए । इन्होंने खूब वेद प्रचार किया व करवाया । इसके पश्चात बाहर गांवों में घूम-घूम कर वेद प्रचार करते रहे जिनमे स्याणा, पोता आदि प्रमुख गांव थे। जितने भी आर्य भजनोपदेशक व सन्यासी इस क्षेत्र में आया करते वे आपके पास ही ठहरते व व्याख्यान किया करते थे । आचार्य विरजानंद जी ने बताया कि जब वे आश्रम में पढ़ते थे तब हिंदी रक्षा सत्याग्रह के पश्चात (वर्ष 1957 के बाद) स्वामी भीष्म जी महाराज ग्राम सिसोठ (महेंद्रगढ़) में स्वामी अमरानंद जी के आश्रम में आए थे वहां सत्याग्रह की चर्चा चलने पर उपस्थित लोगों को स्वामी जी ने कैरो सरकार द्वारा किए गए अत्याचारों का मार्मिक वर्णन किया और एक दोहा भी सुनाया वह इस प्रकार है --

कंचन कुत्ता कामिनी कुर्सी कोठी कार,

कांग्रेस के राज में षडवस्तु हैं सार ।

यह दोहा सुना कर कहा- मुझे किसी सरकार पर टिप्पणी नहीं करनी, परंतु इस सरकार ने अपनी जनता की उचित मांग भी स्वीकार नहीं की और पंजाब के हरियाणा वाले भाग के बच्चों को बलात् गुरुमुखी पढानी थोंप रखी है । यह अन्याय है और निरपराध जनता पर जो भी सरकार जुल्म करेगी, उसकी भत्र्सना करना सन्यासियों का प्रमुख कार्य है । इसीलिए मैं भजनों के द्वारा भी उन अत्याचारों का विरोध करता रहा हूं । आर्य भजनोपदेशक पं बोहतराम आदि आपके पास आते रहते थे । आप कई गुरुकुलों के संपर्क में भी रहे।

धर्मपाल सिंह भालोठिया से संपर्क

स्वतंत्रता सेनानी व प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया (ढाणी भालोठिया-महेंद्रगढ़) जब भी इधर आते थे तो स्वामी जी के पास जरूर जाते थे व इसी संपर्क के कारण आगे चलकर भालोठिया के कार्यक्रमों के दौरान आप उनके साथ रहकर भजन मंडली में चिमटा, खड़ताल भी बजाते थे । आपने भालोठिया के घर रह कर उनके बच्चों को आध्यात्मिक व योग शिक्षा भी दी ।

अंतिम समय

आप अन्त में सुरेहती जाखल (महेंद्रगढ़) के मंदिर के महंत बने व मंदिर में रहे । अंतिम समय में आप अपने गांव सिसोठ वापस आ गए व कुछ समय बाद गांव में ही 12 मार्च, 1980 को आपका देहावसान हुआ । गाँव के प्रमुख जनों की सम्मति से आपका अंतिम संस्कार आप के आश्रम परिसर में ही कर दिया गया और यहीं पर आपके भाइयों बलवंत सिंह, रामजीलाल, रूपराम व रतनलाल ने आपकी समाधि भी बनवादी ।

लेखक एवं प्रस्तुति

लेखक – वेदप्रकाश – सिसोठ

प्रस्तुति –सुरेन्द्र सिंह भालोठिया

गैलरी

सन्दर्भ

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