Kan Singh Dookiya

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Kan Singh Dookiya

Kan Singh Dookiya (Hav) (13.11.1961 - 05.08.1999), Sena Medal, was Martyr of Kargil War from Rajasthan. He became martyr on 05.08.1999 during Operation Vijay in Kargil War with Pakistan. He was from village Dhyawa, tah: Ladnu, Nagaur district, Rajasthan. Unit: 11 Rajputana Rifles.

हवलदार कानसिंह डूकिया का परिचय

हवलदार कानसिंह डूकिया

13-11-1961 - 05-08-1999

सेना मेडल (मरणोपरांत)

वीरांगना - श्रीमती विमला देवी

यूनिट - 11 राजपुताना राइफल्स

हनीफ सब सेक्टर की लड़ाई

ऑपरेशन विजय

कारगिल युद्ध 1999

हवलदार कानसिंह डूकिया का जन्म 13 नवंबर 1961 को राजस्थान के नागौर जिले की लाडनूं तहसील के ध्यावा गांव में स्व. चौधरी गोमाराम डूकिया एवं श्रीमती तुलसी देवी के परिवार में हुआ था। 22 जून 1979 को वह भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्स रेजिमेंट में राईफलमैन के पद पर भर्ती हुए थे। 1 अगस्त 1992 को उन्हें एक्टिंग हवलदार रैंक पर पदोन्नति मिली। 1 अगस्त 1995 को उन्हें हवलदार रैंक पर पदोन्नति मिली थी।

ऑपरेशन विजय का 26 जुलाई 1999 को युद्धविराम होने तक भारतीय सेना ने सामरिक महत्व की अधिकतर चोटियों को दुश्मन के कब्जे से मुक्त करा लिया था फिर भी कुछ पहाड़ियों पर दुश्मन जमा हुआ था। 5 अगस्त 1999 को सुबह 7:00 बजे तुर्तुक सेक्टर (हनीफ सब सेक्टर) में एक पहाड़ी पर हमले के समय छिपे हुए दुश्मन ने इनकी टुकड़ी पर हमला कर दिया। हवलदार कानसिंह अपने साथियों के साथ दुश्मन पर टूट पड़े और तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया।

भयंकर लड़ाई बीच एक दुश्मन सैनिक छिपते हुए लगभग 50 फीट नीचे किसी बंकर में जाकर छिप गया। जैसे ही यह टुकड़ी ऑपरेशन पूरा कर वहां से हटने वाली थी। बंकर में छिपे उस दुश्मन सैनिक ने गोली चलाई जो हवलदार कानसिंह के गले में लगी। घातक रूप से घायल होने के उपरांत भी अंतिम शौर्य का प्रदर्शन करते हुए वह 50 फीट की ऊंचाई से कूदे पड़े। अपने मजबूत हाथों से उन्होंने एक ही झटके में उस पाकिस्तानी की गर्दन तोड़कर उसे ढेर कर दिया और वीरगति को प्राप्त हुए।

वीरगति से ठीक एक दिन पूर्व वह अपनी यूनिट के हरनावां गांव निवासी नायब सूबेदार मंगेजसिंह राठौड़ की पार्थिव देह को अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी वहां से निकाल कर लाए थे। मंगेज सिंह 6 जून 1999 को बलिदान हुए थे। उनकी पार्थिव देह लगभग 60 दिन से दुश्मन की भारी गोलीबारी के कारण दुर्गम बर्फीली पहाड़ियों में खुले में पड़ी थी। उनकी वीरांगना संतोष कंवर ने पार्थिव देह के दर्शन नहीं होने तक अन्न जल नहीं लेने का प्रण ले लिया था।

हवलदार कानसिंह ने वीरगति प्राप्त होने से चार दिन पूर्व एक साथ चार पत्र लिखकर घर भेजे थे। उन सभी पत्रों में अपने माता-पिता की सेवा करने व परिवारजनों को स्नेह से रखने की सीख दी थी।

हवलदार कानसिंह की वीरगति का समाचार सुनते ही पिता गोमाराम डूकिया को गहरा सदमा लगा और वह मात्र 6 माह बाद ही चल बसे। माता तुलसी देवी इसके बाद ऐसी बेसुध हुई कि वह आज भी सदमे में है। उनका हरसंभव उपचार करवाया गया पर उनकी आंखें पथरा चुकी हैं, वे शून्य में ताकती रहती हैं।

हवलदार कानसिंह को उनके अदम्य साहस, वीरता एवं सर्वोच्च बलिदान के लिए 26 जनवरी 2001 को मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया।

हवलदार कानसिंह डूकिया के बलिदान को देश युगों युगों तक याद रखेगा।

शहीद को सम्मान

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

चित्र गैलरी

संदर्भ

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