Kiwada

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Author: Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क IFS (R)
Location of villages around Niwai in Tonk district

Kiwada (किवाड़ा) is a village in Niwai tahsil in Tonk district in Rajasthan. It is main village of Juwania Jats.

Founders

Kiwara village was founded by Juwania Jats in 1058 AD.

Location

Kiwara is situated at a distance of 75 km from Jaipur, 45 km from Tonk, 17 km from Niwai in east, located on Niwai - Baunli Road about 1 km off-road in south near Khirgi.

Jat Gotras

Other communities are - Gurgar, Meena, Dholi, Brahman, Vaishnav, Khatik, Kumhar, Nai etc.

History

Kiwara is main village of Juwania Jats. As per records of Bard Juwania Jats came from Delhi and settled at village Jarunda in Nrihara area of Sawaimadhopur. In Samvat 949 (892 AD) Dewasi Patel son of Kunwala Patel moved to place at the bottom of Ghata Bhairunji. Dewasi had two sons: 1. Nathu and 2. Anchi. Nathu was married to Gumani daughter of Nahnu Patel of Bhenrwal Gotra. Nathu had three sons: 1. Pala, 2. Bala, and 3. Rala.

Rala was a warrior and martyred when fighting with Meenas for protecting cows on Baisakh Sudi Friday Samvat 1105 (1048 AD) at place called Jharania. Kiwara village was founded by Juwania Jats in 1058 AD.

Due to good deeds of Rala he got the status of folk-deity and is being worshipped over a large tract in south Rajasthan by all communities. Rala Baba Temple has been constructed at Kiwara village in Tonk district of Rajasthan.

राला बाबा का जीवन परिचय

लोक देवता राला बाबा

गाँव के बुजुर्गों और राव की बही के अनुसार राला बाबा की जीवनी पौराणिक व ऐतिहासिक दृष्टि से काफी प्राचीन है। गाँव किंवाड़ा, तहसील निवाई जिला टोंक में लोक देवता राला बाबा का पवित्र धाम है। वे यहाँ गौरक्षा में शहीद हुये थे। यहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को गाँव किंवाड़ा के मंदिर में मेला लगता है। गाँव किंवाड़ा की बसावाट का इतिहास राला बाबा की चमत्कारिक घटना से जुड़ा है।

कहावत है कि दिल्ली से कुछ जुवणिया गोत्र के जाट राजस्थान आकर सवाईमाधोपुर के नृहड़ा क्षेत्र में जारूण्डा गाँव में बस गए। वहाँ से संवत 949 (892 ई.) में श्री कुंवाला पटेल का बेटा देवासी पटेल घाटा भैरुंजी की तलहटी में आकर बस गया। देवासी पटेल को दो संतान हुई - 1. पुत्र नाथुराम और 2. पुत्री अणची, पुत्र नाथु राम की शादी भैंड़वाल गोत्र के नहनू पटेल की लड़की गुमानी के साथ हो गई। शादी के कई वर्ष बाद भी संतान नहीं होने से उनको वंश वृद्धि की चिंता सताने लगी। एक दिन वे पास की पहाड़ियों में घूमने गए। वहाँ एक तपस्वी साधू धूना लगाकर तपस्या कर रहा था। उस संत की सेवा में यह दंपति वहीं रुक गए और सेवा करने लगे। साधू ने उनकी तपस्या से खुश होकर आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे 3 पुत्र होंगे जिनमें से तीसरे की शादी मत करना। वह एक महान भगत और वीर पुरुष होगा। नाथु राम के 3 पूत्र हुये 1. पाला, 2. बाला, 3. राला। पाला और बाला की शादी हो गई और राला गायें चराने लगा।

राला का गायें चराना  : राला गायें चराने लगा तब राला के साथ पास के ही गाँव का बोदू मीना भी बकरियाँ चराता था। उन दोनों की अच्छी दोस्ती थी। बोदू की भाभियाँ उसको रोटी नहीं देती थी। भूखा होने के कारण कई बार वह बकरियों का दूध निकालकर पी लेता था। शाम को घर पहुँचने पर भाई और भाभी उसकी पिटाई करते थे। बोदू के भाई-भाभी उसकी शादी नहीं करना चाहते थे परंतु उसके मामा ने बोदू की शादी एक गाँव के छोटूमीना की पुत्री मंगली से करवादी। बोदू अपनी पत्नी मंगली के साथ अपने हिस्से के खेत में झोंपड़ी बनाकर रहने लगा। बोदू की किस्मत ने साथ दिया और उसके खेत में ज्वार की अच्छी फसल हुई। बोदू के भाई-भाभी को यह रास नहीं आया और उन्होने फसल नष्ट करने के लिए उसमें पशु छोड़ दिये। बोदू ने पशुओं को भगाने का प्रयास किया तो ऊन दोनों की पिटाई करदी। वे चिल्लाने लगे । तभी वहाँ से राला अपनी घोड़ी से गुजर रहा था। उस दिन राखी का त्योहार था। राला अपनी घोड़ी के साथ मामा के गाँव से लौट रहा था। मंगली की रोने की आवाज सुनकर उसकी पीड़ा जानी। राला को मंगली पर दया आई और उसको धर्म बहिन बना लिया। राला ने अपनी बहिन को ढांढस बंधाते हुये उन लोगों को ललकारा। पीट-पीट कर उनको और पशुों को भगा दिया।

राला रोज सालिग्राम की पूजा अर्चना कर अपने साथी ग्वालों के साथ गायें चराने जाता था। उन ग्वालों में पास के गाँव की लड़की राधा भी अपनी गुर्जर सहेली पेमा के साथ गाय चराने आती थी। राधा राला की सुंदरता और निडरता पर मोहित हो गई और उसको चाहने लगी। राधा ने पेमा गूजरी के माध्यम से राला के घरवालों को संदेश भी पहुंचा दिया। राला के घरवालों ने राला के मना करने पर भी रिश्ता कायम कर लिया। शादी की तैयारियां होने लगी।

कहावत है कि एक कांकड़ (जंगल) से एक मीना दंपति गुजर रहे थे। वर्तमान राला तालाब के स्थान पर कुछ भैंस पानी में नहा रही थी। एक भैंस ने अपनी पूंछ से मीना दंपति में कीचड़ उछाल दिया। मीना दंपति का मन इन भैंसों को चोरी करने का हुआ। परंतु राला के डर से भैंस चुराने की हिम्मत नहीं कर सके। वे गाँव जाकर सैकड़ों मीना लोगों को लेकर आए और भैंस चुराने का प्रयास किया। 2-3 ग्वालों को पीटकर भगा दिया। मीना लोग जानवरों को घेरकर अपने गाँव ले आए। पेमा गुर्जरी ने जाकर चोरी की खबर राला को दी। उस समय राला दूल्हा बनकर निकासी के लिए घोड़ी पर बैठा था। पेमा गूजरी की बात सुनते ही राला ने साफा और कटार पेमा को देदी और कहा कि अगर मैं युद्ध में जुझार हो जाऊं तो राधा का ब्याह उस साफा और कटार के साथ कर देना। राला गौ रक्षा के लिए शादी की निकासी रोककर दूल्हा रूप में ही गाय-भैंसों को वापस लाने के लिए अपनी ढाल और तलवार लेकर चल पड़ा। ढोली को ढ़ोल लेकर रण का ढ़ोल बजाते हुये साथ चलने का कहा। मीनों के पास जाकर राला ने ललकारा और अपनी सभी गायों-भैंसों को छुड़ाया। मीनों ने योजना बनाकर महिलाओं को आगे कर दिया और खुद पीछे छुप गए। महिलाएं राला पर वार करती रही। राला अपने धर्म का पक्का होने के कारण महिलाओं पर वार नहीं किया। मीनों ने राला के पीछे से वार किया और तलवार से गर्दन काट दी। गर्दन कटने के बाद भी राला ने 150 मीनों को मार गिराया। इस युद्ध में ढोली भी मारा गया। झरनिया में हुई इस शहादत के कारण झरनिया में भी राला बाबा का शीश पूजा जाता है। बिना गर्दन के राला का शरीर जहां गिरा वह राला सरोवर की पाल है।

राला गायों को पहले ही छुड़ा चुका था जिनको ग्वाले अपने गाँव ले गए। दूसरे दिन राधा को सूचना मिली तो वह पेमा गूजरी को दिये गए साफे और कटार के साथ सती हो गई।

संवत 1105 (1048 ई.) बैसाख सुदी शुक्रवार को राला जुझार हुआ

किंवाड़ा गाँव की स्थापना: संवत 1115 (1058 ई.) में जब जुवाणिया जाट घाट गाँव छोडकर अन्यत्र स्थान के लिए जा रहे थे तब राला बाबा के तालाब के पास से गुजरते हुये बैलगाड़ी में रखा किंवाड़ गिर गया। बार बार वापस रखने के बावजूद भी किवाड़ वापस गिर जाता था। कहते हैं कि राला पितृ ने आवाज लगाई कि या तो आप यहीं रुक जाओ या मुझे भी साथ ले चलो। यह सुनकर वे वहीं रुक गए और वहाँ पर राला बाबा का चबूतरा बना दिया। जुवाणिया जाट वहीं बस गए। कहते है किंवाड़ गिरने के कारण ही गाँव का नाम किंवाड़ा पड़ा। गाँव किंवाड़ा में राला बाबा की सिर कटी प्रतिमा मौजूद है। गाँव में स्थित राला बाबा की महिमा बढ़ती गई। अब यहाँ एक विशाल मंदिर निर्माणाधीन है। राला बाबा की रणभूमि पर संत प्रकाशदास जी ने वर्ष 2013 में राला बाबा के गौरक्षार्थ त्याग बलिदान से प्रभावित होकर गौशाला निर्माण की स्थापना का संकल्प लिया।

संदर्भ - किवाड़ा ग्राम का यह विवरण 'जन विकास पत्रिका', मई 2017 में छपा है।

स्वतन्त्रता आंदोलन में सहभागिता

यहाँ के किसानों की स्वतन्त्रता आंदोलन और किसान आंदोलन में सहभागिता रही है। अंग्रेज़ो भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में किवाड़ा के भैरूजी , प्रतापजी, भूरजी और सुखदेवजी ने भाग लिया था। पूर्व किसान नेता और मंत्री चौधरी कुंभा राम आर्य का भी किवाड़ा से संपर्क रहा है।

Notable persons

  • Hari Ram Kiwara (Jawaniya) - From village Kiwara, Niwai, Tonk, Rajasthan. Journalist and Social worker, JVP Media Group Email: jvpmediagroup@gmail.com, Mob: 9784412859.
  • देवी लाल चौधरी - पूर्व सदस्य जिला परिषद, टोंक
  • रमेश चौधरी - अध्यक्ष किसान संघ, निवाई
  • डॉ मुकेश जुवाणिया - चिकित्सा अधिकारी
  • डॉ श्रीमति चारू
  • श्रीमति मीरा पहाड़िया - CISF
  • गाँव के वरिष्ठ जन - शिवजी राम पटेल, बदरी लाल मेम्बर, राम रतन चौधरी, जगदीश चौधरी, हरी नारायण चौधरी (घोडला वाला), गुलाब चंद चौधरी, राम सहाय चौधरी, किशन लाल चौधरी, बजरंग लाल चौधरी, राम दयाल चौधरी
  • गाँव में सेवा निवृत - राम किशोर जुवाणिया एवं छितरमल जुवाणिया अध्यापक,
  • सरकारी व निजी सेवा के लोग - हरीराम जुवाणिया : परिचालक रोडवेज, बिरदीचंद जुवाणिया:आईसीडीएस, शिवराज जुवाणिया: कृषि पर्यवेक्षक, श्रीमति नाथी देवी: राज पुलिस, श्रीमति रामप्यारी जुवाणिया आईसीडीएस, श्रीमती अनीता जुवाणिया:पीटीआई

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External links

References


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