Krishi Se Labh Ka Ek Vishleshan

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)

कृषि से लाभ का एक जमीनी विश्लेषण
गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरु राजस्थान की केश स्टडी

इस लेख में गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरू, राजस्थान की कृषि से आय और उस पर होने वाले व्यय की केस स्टडी प्रस्तुत की गई है| यह ग्राउंड रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वर्ष 2022 में किसानों की आय दुगुना करने के दावे की पोल खोलने वाली है| कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इस बारे में सुझाव भी दिये गए हैं।

खेती-किसानी और कृषि कानूनों की ग्राउंड रिपोर्ट

‘खेती-किसानी और कृषि कानूनों की ग्राउंड रिपोर्ट - गांव ठठावता(रतनगढ़) जिला चूरू राजस्थान की केस स्टडी’ विषयक एक लेख मेरे फेसबुक पेज पर दिनांक 20 सितंबर-2021 को प्रकाशित किया था। देखें https://www.facebook.com/laxman.burdak.37/posts/6247120258663983 या खेती-किसानी और कृषि कानूनों की जमीनी हकीकत

उपर्युक्त लेख में फील्ड निरीक्षण के बाद गाँव में किसानों की स्थिति पर एक सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन किया गया था। ग्रामीण किसानों से चर्चा कर जाना कि केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों पर उनकी क्या राय थी। राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे किसान आंदोलन से लेकर गाँव के किसानों से सीधा संवाद कर खेती-किसानी और कृषि कानूनों की जमीनी हकीकत पर एक मोटी-मोटी तस्वीर इस लेख में प्रस्तुत की गई थी।

तीन नए कृषि कानूनों के बारे में सभी ग्रामवासियों की राय थी कि ये किसानों के लिए घातक हैं इसलिए इन्हें रद्द किया जाना चाहिए और सभी कृषि उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानून में गारंटी दी जानी चाहिए। नए कानूनों से पूंजीपतियों को मनमाने दामों पर वस्तुओं की खरीद की छूट मिल जाएगी। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से काले धन को बढ़ावा मिलेगा और वास्तविक किसान का शोषण होगा। भंडारण और कालाबाजारी का कानूनी अधिकार व्यापारियों और कंपनियों को मिलने से जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा और बाज़ार में आवश्यक चीजों का कृत्रिम अभाव पैदा कर ऊंची कीमत पर चीजों को खरीदने के लिए उपभोक्ताओं को बाध्य होना पड़ेगा।

यह किसानों के लिए संतोष और हर्ष का विषय है कि केंद्र शासन ने तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया है। कृषि उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानून में गारंटी अभी अपेक्षित है। उम्मीद है कि देर-सवेर किसानों के हित में केंद्र-शासन कुछ निर्णय लेगा।

पढ़ा-लिखा वर्ग और शहरी जनता समझती है कि खेती बहुत लाभ का धंधा है। इस वर्ग के लोग टीवी में हरे-भरे खेत देखकर थ्रिल अनुभव करते हैं। हाँ, पुराने जमाने में खेती को अच्छा व्यवसाय माना जाता रहा है जैसा कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र में लिखा गया है – उत्तम खेती मध्यम बान, करे चाकरी भूख निदान। सवाल उठता है अगर ऐसा ही होता तो किसान आंदोलन-2020 में किसान इतने लंबे समय से आंदोलन क्यों करते? 700 से अधिक किसान अपनी जान क्यों गँवाते?

खेती से होने वाले लाभ-हानि का विश्लेषण

उपर्युक्त मुद्दों और प्रधान मंत्री के वर्ष 2022 में किसान की आय दुगुना करने के दावे के परिप्रेक्ष्य में मेरा विचार बना कि खेती से होने वाले लाभ-हानि के विश्लेषण की एक केस-स्टडी क्यों न तैयार की जावे। यह केस-स्टडी मैनें मेरे ही एक खेत पर की। गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरू (राजस्थान) में स्थित इस खेत का खसरा क्रमांक 131 है और रकबा 11-16 बीघा है। इस का ऊपर का आधा भाग दोमट और नरम मिट्टीयुक्त ढलान वाला है और नीचे का आधा भाग समतल और ऊपर की दोमट मिट्टी के नीचे काली और चिकनी मिट्टी है। हमारे आसपास के सभी खेतों से इस खेत की उत्पादकता सर्वाधिक है। इस साल खरीफ़ की फसल में खेत में बुवाई से लेकर अंत तक सभी कृषि कर्मों पर हुए व्यय का आयटमवार विवरण निम्नानुसार प्रस्तुत है:

क. सुरक्षा कार्य - पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार की गाय-बछड़ों के बारे में दोषग्रस्त नीति के कारण गाँवों में आवारा पशुओं की संख्या बहुत बढ़ गई है। इसलिए किसान अपने खेतों की सुरक्षा के लिए सीमेंट या पत्थर के खंबे पर कांटेदार तार लगाकर खेती का बचाव करने लगे। इससे गाय, बैल, भैंस आदि आवारा पशुओं से तो खेत की सुरक्षा हो जाती थी परंतु बकरियां इन तारों के अंदर से खेतों में घुस जाती थीं जिसके कारण बकरियों के थन कट जाने से किसानों को भारी नुकसान होने लगा। इस समस्या से निजात पाने के लिए कांटेदार तार के साथ-साथ लोहे की जाली लगानी शुरू की। खेतों के सुरक्षा की यह व्यवस्था भी जंगली नीलगायों द्वारा अप्रभावी की जा रही है क्योंकि वे इन तारों के ऊपर से कूद जाते हैं। किसानों के लिए खेतों की सुरक्षा में किया जाने वाला यह व्यय अनावश्यक और परिस्थितिजन्य है। सरकार यदि आवारा पशुओं के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए उचित नीति निर्धारित करे तो इस व्यय को टाला जा सकता है।

दिनांक 29.06.2021: 1. सुरक्षा के लिए फ़तेहपुर से काँटेदार तार, लोहे का जाल और बांधने के लिए लोहे के तार का चमोटा खरीदा और खेत तक ढुलाई की। इसका व्यय इस प्रकार रहा:

लोहे का जाल 345 किलो @ 76 प्रति किलो = 26000/-
काँटेदार तार 2950 फीट @ 5 प्रति फीट = 14750/-
लोहे के तार का चमोटा = 750/-
ढुलाई किराया = 1300/-

कुल खर्च = 42800/-

दिनांक 02.07.2021: 2. पत्थर की पट्टिया 80 लम्बाई 7 फीट ऊँची का मूल्य =22400/-

दिनांक 05.07.2021: 3. अतिरिक्त लोहे का जाल 294 किलो @ 76 प्रति किलो = 22344/- , चमोटा तार = 450/-, किराया 400/-, बांस की खिड़की = 850/- , पट्टियों की ढुलाई का किराया = 1000/-, कुल खर्च = 25044/-

4. पट्टियाँ गाड़कर काँटेदार तार खींचा और लोहे का जाल लगाया। इन कार्यों के लिए लगे 19 मजदूरों का भुगतान @ 750/- = 14250/-

कुल खर्च (3+4) = 39294/-

सुरक्षा कार्य पर कुल खर्च (1+2+3+4) = रु. 1,04,494/-


ख – विभिन्न कृषि कार्य पर हुए व्यय का विवरण

दिनांक 26.06.2021: 1. महेंद्र बुरड़क ने हेरा करवाया, नीचे की भूमि पर दो बार और ऊपर की नरम भूमि पर एक बार हेरा करवाया, खर्च = 8500/-

दिनांक 11.07.2021: 2. कल्टिङ्ग पद्धति से मूंग बीजने का कार्य किया, ग्रीनमोती बीज 13 किलो @ 270 प्रति किलो = 3510/-, सवाती बीज 13 किलो @ 170 प्रति किलो = 2210/-, मूंग बीज कल्टिङ्ग कार्य का खर्च = 5720/- कुल व्यय= 10920/-

दिनांक 05.08.2021: 3. मूंग फसल की निंदाई (निनाण) करवाई। इस कार्य में लगे 31 मजदूरों की @ 450/- मजदूरी = 13950/-, चाय = 200/- कुल खर्च = 14150/-

दिनांक 30.09.2021: 4. मूंग की पत्तियाँ सिकुड़ने और पेस्ट प्रकोप के कारण कीटनाशक स्प्रे करवाया, कीटनाशक रु. 4400/- एवं मजदूरी रु. 2400/- कुल = 6800/-

दिनांक 06.11.2021: 5. मूंग फसल की कटाई (लावणी) करवाई और इकट्ठा करवाया = 15000/-

दिनांक 17.11.2021: 6. थ्रेशर से मूंग निकलवाया, कुल मूंग उत्पादन 925 किलो, खर्च = 5400/-

कृषि कार्य की गतिविधियों पर कुल खर्च (1+2+3+4+5+6) = रु. 60,770/-

ग. मूंग के विक्रय से हुई आय

दिनांक 30.11.2021: मूंग विक्रय किया 925 किलो @ 51/- प्रति किलो, विक्रय से प्राप्त कुल राशि = 47,175/-

कृषि कार्यों में हानि: सुरक्षा कार्यों पर किए गए गए व्यय को लंबी अवधी का मानकर लाभ-हानि के लिए यदि इसे अलग कर दें तो भी वर्ष 2021 में लाभ के स्थान पर हानि हुई। हानि की राशि = कुल खर्च - विक्रय मूल्य 60,770 – 47,175 = रु. 13,595/-

समर्थन मूल्य क्यों जरूरी है?

उत्पादन और गुणवत्ता की अनिश्चितता: दिनांक 11.9.2021 को मेरे द्वारा गाँव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरू राजस्थान में खेती-बाड़ी का निरीक्षण किया गया था। उस समय खेती की स्थिति बहुत अच्छी थी। कुछ दिन पहले तक गाँव के किसानों के चेहरे मुरझाए हुए थे परंतु सितंबर माह के प्रथम सप्ताह की वर्षा ने किसानों की रौनक लौटा दी थी। 11.9.2021 को खेत के मूंग की कून्त की गई तो अनुमान था की लगभग 30 क्विंटल मूंग का उत्पादन होगा। यदि मौसम साथ देता और फसल इसी तरह से पक जाती तो मुझे वर्तमान विक्रय दर से ही रु. 1,53,000/- प्राप्त होते।

इस क्षेत्र की खेती पूरी तरह मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए इंद्रदेव मेहरबान हो जाएं तो खेती हो जाए और उसी पर निर्भर करता है किसान का अगले साल का इन्वेस्टमेंट प्लान और विवाह शादियां आदि का आयोजन। परंतु किसानों के लिए यह सुखद स्थिति पलट गई जब सितंबर माह के अंत में असामयिक और लगातार कई दिनों तक ज्यादा वर्षा हुई। दिनांक 27.10.2021 को फिर से फसल का निरीक्षण करने जयपुर से गांव जाकर खेत में गए उस समय फसल कट रही थी। निरीक्षण में पाया कि असामयिक वर्षा ने किसानों का पूरा खेल बिगाड़ दिया है। कृषि फसल का उत्पादन भी घट गया और भीगने से अनाजों की गुणवत्ता भी खराब हो गई। फलियों में दाने काले पड़ने लग गए थे।

सौभाग्य से फसल काटने के बाद में नहीं भीगने से मेरे खेत की मूंग कुछ कम खराब हुई इसलिये समर्थन मूल्य से कम रु.51/- प्रति किलो की दर प्राप्त हुई। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 के लिए राजस्थान में मूंग का समर्थन मूल्य रु. 72.75/- प्रति किलो निर्धारित किया गया है। गाँव के अन्य किसानों का मूंग ज्यादा भीग गया था इसलिये दर रु. 20/- – 40 /- प्रति किलो ही मिल रही है।

राजस्थान में खरीफ के मौसम में खेती मुख्य रूप से बाजरा, मूंग, मोठ, ग्वार, चंवला, तिल आदि की होती है। काकड़ी-मतीरा फल के रूप में और काचरा, लोया, टींडसी, ग्वार-फली, मोठ और चवला की फली सब्जी के रूप में मिलती हैं। इन कृषि उपजोऺ के उत्पादन और गुणवत्ता की अनिश्चितता को देखते हुये इन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना आवश्यक है।

खेती को लाभ का धंधा कैसे बनाया जाए ?

भारत के प्रधानमंत्री का किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य प्राप्त करना असंभव प्रतीत हो रहा है। किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य छोड़िये बहुसंख्यक किसान खुश होंगे यदि खेती को लाभ का धंधा बना दिया जाए! मैं कोई कृषि विशेषज्ञ नहीं हूं परंतु उपरोक्त केस-स्टडी के आधार पर खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं:

1. खेती के काम आने वाले उपकरणों और यंत्रों का मूल्य घटाया जाए।

2. अधिकांश किसान ट्रैक्टरों में डीजल का प्रयोग करते हैं इसलिए डीजल का मूल्य भी कम किया जाना आवश्यक है।

3. खेती के लिए काम आने वाले बीज खाद और पेस्टिसाइड का मूल्य भी कम किया जाए और किसानों को इन्हें सुगमता से सुलभ करवाया जाए।

4. मौसम की अनिश्चितता से किसान को बचाने के लिए खेत की मध्यम भूमि गुणवत्ता और फसल के औसत उत्पादन और गुणवत्ता के आधार पर फसल बीमा की जाए जिससे किसान अनिश्चित मौसम के कारण घाटे में जाने से बच सके।

5. प्रत्येक कृषि उपज का समर्थन मूल्य निश्चित किया जाए और किसान को उसके खेत में ही समर्थन मूल्य दिए जाने की व्यवस्था विकसित की जाए ताकि मंडियों के चक्कर काटने से किसान को छुटकारा मिल सके।

6. कृषि के अनुसंधान और विस्तार को प्राथमिकता दी जावे और इसके लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध किया जावे।

7. गाँवों में फसलों के भंडारण के लिए किसानों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जावे।

8. पकी हुई फसलों को मौसम की मार से बचाने के लिए शासन की तरफ से आपदा प्रबंध योजना लागू की जानी चाहिए।

9. आवारा पशुओं के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए उचित नीति निर्धारित की जावे जिससे सुरक्षा पर किए जा रहे अनावश्यक और परिस्थितिजन्य खर्च को कम किया जा सके।

बाहरी कड़ियाँ

चित्र गैलरी

संदर्भ