Kisan Andolan 2020

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Author: Laxman Burdak IFS (R)

Kisan Andolan 2020
Kisan Andolan 2020
27 नवंबर 2020 दिल्ली चलो मार्च

किसान आंदोलन-2020 के अंतर्गत विभिन्न राज्यों के हजारों किसान और किसान संगठन लगातार भारत सरकार के हाल ही में लागू किए गए तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. केन्द्र सरकार सितंबर माह में 3 नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं. लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं. उनका कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा. किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाने का भी डर है. कानून के खिलाफ नाराजगी जताते हुए किसान 27.11.2020 से सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर डट गए.

किसान आंदोलन-2020

किसानों का साथ देने के तरीके
किसानों का साथ देने के तरीके-"पिरावण्डे" पर जय जवान -जय किसान

पंजाब में अगस्त 2020 में कृषि विधायकों को सार्वजनिक करने के बाद छोटे पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आरंभ (आरम्भ) हो गए थे. यह अधिनियमों के पारित होने के बाद ही था कि भारत भर में अधिक किसान और किसान संघ 'कृषि सुधारों' के विरोध में शामिल हुए थे. पूरे भारत में फार्म यूनियनों ने 25 सितंबर (सितम्बर) 2020 को इन कृषि कानूनों के विरोध में भारत बंद (राष्ट्रव्यापी बंद) का आह्वान किया. सबसे अधिक व्यापक विरोध प्रदर्शन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए, लेकिन उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, केरल और अन्य राज्यों के हिस्सों में भी प्रदर्शन हुए. अक्टूबर से शुरू होने वाले विरोध प्रदर्शनों के कारण पंजाब में दो महीने से अधिक समय तक रेलवे सेवाएं निलंबित रहीं. इसके बाद, विभिन्न राज्यों के किसानों ने कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली तक मार्च किया. किसानों ने विरोध को गलत तरीके से पेश करने के लिए राष्ट्रीय मीडिया की भी आलोचना की.

देश के करीब 500 अलग-अलग संगठनों ने मिलकर संयुक्त किसान मोर्चे का गठन किया है, जिसके नेतृत्व में किसान 26-27 नवंबर 2020 से दिल्ली कूच कर चुके हैं. हरियाणा की कई खापों ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों के दिल्ली चलो आह्वान में शामिल होने का निर्णय लिया है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उसकी सीमा पर किसानों का धरना-प्रदर्शन जारी है. कानून के खिलाफ नाराजगी जताते हुए किसान आज भी सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं. किसान बुराड़ी के निरंकारी मैदान में शिफ्ट होने के लिए राजी नहीं हुए हैं. रविवार दोपहर हुई किसान संगठनों की बैठक में किसान नेताओं ने सरकार के सशर्त वार्ता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया .

कृषि कानून के विरोध में बुराड़ी का निरंकारी मैदान किसानों का नया ठिकाना बन गया है. इस मैदान में पंजाब से लेकर मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड से भी किसान लगातार पहुंच रहे हैं. बुराड़ी के मैदान में किसानों की रणनीति बन रही है. दिल्ली पुलिस सुबह आठ बजे से निरंकारी मैदान के बाहर किसानों को रोकने के लिए बेरीकेट से लेकर सीमेंट के बड़े-बड़े गार्डर सड़क पर लगा रही है. चप्पे-चप्पे पर पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती है.

किसान आंदोलन-2020 का स्वरूप

विरोध प्रदर्शन और घेराबंदी: विरोध प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों द्वारा धनसा सीमा, झरोदा कलाँ सीमा, टिकरी सीमा, सिंघू सीमा, कालिंदी कुंज सीमा, चिल्ला सीमा, बहादुरगढ़ सीमा और फरीदाबाद सीमा सहित कई सीमाओं को अवरुद्ध कर दिया गया था. 29 नवंबर (नवम्बर) को, प्रदर्शनकारियों ने घोषणा की कि वे दिल्ली में प्रवेश के पाँच और बिंदुओं (बिन्दुओं) को अवरुद्ध करेंगे, अर्थात् गाजियाबाद-हापुड़, रोहतक, सोनीपत, जयपुर और मथुरा.

अब तक के प्रयास: अब तक किसान नेताओं और केंद्र सरकार बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है. सरकार न किसानों को क़ानून पर कमेटी बनाने से लेकर 18 महीने तक कृषि क़ानून स्थगित करने का ऑफ़र दिया है. इसके साथ ही बिजली बिल और पराली क़ानून पर भी किसानों की बात मानने का भरोसा दिया. लेकिन किसान तीन कृषि क़ानून को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क़ानून लाने की माँग कर रहे हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुँचा. सुप्रीम कोर्ट ने मामले का हल ढूंढने के लिए चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई. एक सदस्य ने इस्तीफ़ा दे दिया. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी देश भर के किसानों से नए क़ानून पर चर्चा कर रही है. दो महीने में उन्हें अपनी रिपोर्ट सौंपनी है. इस बीच आंदोलन में शामिल कई किसानों की मौत भी हुई है. पंजाब के मुख्यमंत्री ने ऐसे किसानों के परिवार वालों को सरकारी नौकरी देने का एलान किया है.[1]

किसान ट्रैक्टर परेड 26 जनवरी 2021 - भारत ने अपना 72वां गणतंत्र दिवस मनाया. अब तक इस दिन परेड में सैन्य टुकड़ियां, अत्याधुनिक हथियार, अलग-अलग राज्यों की झाकियां और लड़ाकू विमान नज़र आते थे. लेकिन इस बार के गणतंत्र दिवस में इन तस्वीरों के साथ किसानों की ट्रेक्टर परेड की तस्वीरें भी दिखी. किसान नेताओं ने कहा कि आज हम इस ट्रैक्टर रैली के माध्यम से गण की प्रतिष्ठा करना चाहते हैं, किसानों की बात सुनाना चाहते हैं. लोगों के मन की बात तो सुनाई जाती है आज हम चाहते हैं कि किसानों के मन की बात सुनी जाए. गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के किसान नए कृषि क़ानूनों के विरोध में शांति पूर्ण तरीके से ट्रैक्टर रैली निकालना चाहते थे. नए कृषि क़ानून के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर ट्रैक्टर मार्च निकाल रहे किसानों पर दिल्ली पुलिस कहीं लाठियाँ बरसाती नज़र आई तो कहीं किसान प्रदर्शनकारी पुलिस बैरिकेडिंग को तोड़ कर सेंट्रल दिल्ली में जबरन घुसते नज़र आए. कहीं प्रदर्शनकारियों के हाथ में तलवारें दिखीं तो कहीं बस तोड़ते आंदोलनकारी तो कहीं आंसू गैस के गोले दागते पुलिस वाले. मीडिया द्वारा लालकिले पर झंडा पहनाते दीप सिद्धू को दिखाया और आईटीओ पर हो रहे किसान-पुलिस संघर्ष को दिखाया.

किसान ट्रैक्टर परेड में नवरीतसिंह

किसान ट्रैक्टर परेड: कैसे हिंसक हुआ ITO का प्रदर्शन?: दिल्ली में किसानों की परेड 26 जनवरी की दोपहर अचानक हिंसक हो गई. सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में से एक था दिल्ली का आईटीओ. आईटीओ में हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान उत्तराखंड के रामपुर जिले के निवासी नवरीतसिंह नाम के व्यक्ति की मौत हो गई. चश्मदीदों का दावा था कि नवदीप की मौत 'पुलिस की गोली लगने से हुई.' सोशल मीडिया पर पुलिस की ओर से शेयर किए गए वीडियो में नवदीप तेज रफ़्तार में ट्रैक्टर चलाते दिख रहे हैं. मौत की वजह की बीबीसी पुष्टि नहीं कर पाया है. वीडियो में नवदीप का ट्रैक्टर पुलिस की बैरिकेडिंग से टकराकर पलटता हुआ देखा जा सकता है. ये घटना आईटीओ से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर जाती सड़क पर हुई.[2]

गाज़ीपुर बॉर्डर की तरफ से दिल्ली में प्रवेश कर रहे किसानों पर पुलिस ने आँसू गैस के गोले छोड़े. दिल्ली-नोएडा और दिल्ली-गाज़ियाबाद सड़क पर अक्षरधाम मंदिर के पास पुलिस के आँसू गैस के गोले छोड़ने की तस्वीरें सामने आई. यहाँ पुलिस की भारी तैनाती थी. किसान एकता मंच के नेता ने सभी किसानों से अपील की कि आंदोलन में शामिल किसान शांतिपूर्वक रैली करें और इसे आख़िरी आंदोलन न समझें. उन्होंने कहा, हम बार बार कह रहे हैं कई शरारती तत्व आंदोलन में शामिल हो सकते हैं, इनसे किसानों को बच कर रहना है और अपना आंदोलन जारी रखना है. आपको ध्यान रखना होगा कि इस लड़ाई को जीतने के लिए शांति बहुत ज़रूरी है और इसलिए सभी को अपनी ज़िम्मेदारी संभालते हुए काम करना है. उन्होंने आगे कहा, सरकार चाहती है कि आंदोलन में फूट पड़े और आंदोलन हिंसक हो जाए. लेकिन आपसे विनती है कि हमें साथ रहना है. ये आंदोलन आगे भी होगा.[3]

टिकरी बॉर्डर पर मौजूद बीबीबी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने बताया कि टिकरी बॉर्डर से किसानों की रैली निकल चुकी है. उनके मुताबिक़ परेड में लोग शांतिपूर्ण तरीके से ट्रैक्टर रैली निकालते दिख रहे हैं, सड़क की एक तरफ ट्रैक्टर चल रहे हैं और उसके साथ किसान पैदल चल रहे हैं. रैली के दौरान देशभक्ति के गीत बजाए जा रहे हैं. उनका कहना है कि ये काफ़िला पीछे कहाँ तक है, इस बारे में कहना मुश्किल है. उन्होंने जिन किसानों से बात की है, उनका कहना है कि पीछे ये रैली 30 किलोमीटर से भी लंबी है.[4]

ट्रैक्टर परेड की योजना: प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों के अनुसार परेड में दो लाख से अधिक ट्रैक्टरों के भाग लेने की उम्मीद थी और रैली के करीब पांच मार्ग तय किए गए थे. दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड समाप्त होने के बाद दोपहर 12 बजे ट्रैक्टर परेड निकाली जाना तय किया गया था. प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों के मुख्य संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ सदस्य अभिमन्यु कोहाड़ ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने किसानों को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी में ट्रैक्टर परेड निकालने की अनुमति दी है. कोहाड़ ने यूनियनों और पुलिस के बीच हुई बैठक में शिरकत करने के बाद कहा कि ट्रैक्टर परेड दिल्ली के गाजीपुर, सिंघू और टीकरी बॉर्डरों से शुरू होना तय था. दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड समाप्त होने के बाद दोपहर 12 बजे ट्रैक्टर परेड निकाली जाना तय किया गया था. किसान नेताओं ने कहा है कि पांच मार्गों को सैद्धांतिक मंजूरी दी गई है और हर मार्ग पर किसान ट्रैक्टरों से 100 किलोमीटर तक का सफर तय करेंगे. 70 से 78 फीसदी मार्ग दिल्ली में होंगे, जबकि शेष मार्ग राष्ट्रीय राजधानी से बाहर होंगे. सूत्रों के मुताबिक, सिंघू बॉर्डर से ट्रैक्टर परेड का एक संभावित मार्ग गांधी ट्रांसपोर्ट नगर होगा. यहां से परेड कंझावाल और बवाना इलाकों से होती हुआ जाएगी और वापस प्रदर्शन स्थल पर लौट आएगी. टिकरी बॉर्डर पर डटे किसान प्रदर्शन स्थल से अपनी परेड शुरू करेंगे और यह नांगलोई, नजफगढ़, बादली, और कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे होती हुई जाएगी.[5]

किसानों की ट्रैक्टर रैली गणतंत्र दिवस परेड के बाद शुरू होनी थी लेकिन ये समय से पहले ही शुरू किया गया. दिल्ली में प्रवेश करने के लिए किसानों ने कई जगहों पर बैरिकेड को तोड़ दिया. इसके साथ ही पुलिस किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया. हालांकि, किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि किसान ट्रैक्टर रैली शांतिपूर्ण तरीके से हो रही है.[6]

ट्रैक्टर परेड के दौरान किसानों के एक धड़े ने हिंसा की थी और सैकड़ों किसान लाल किले में घुस गए थे. इन किसानों ने लाल किले के अंदर जमकर हंगामा किया निशाना साहिब फहरा दिया था. दीप सिद्धू पर किसानों को लाल किले में घुसने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था. किसान संगठनों ने दीप सिद्धू पर लाल किले पर हुई इस हिंसा की साजिश रचने का आरोप लगाया था. हंगामे के समय दीप सिद्धू वहां मौजूद भी थे. गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा में आरोपी बनाए गए पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू को गिरफ्तार कर लिया गया. हिंसा के बाद फरार चल रहे सिद्धू की जानकारी देने पर पुलिस ने एक लाख रुपये का ईनाम घोषित किया था. गौरतलब है कि सिद्धू 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सनी देओल का प्रचार कर चुके हैं. उनकी प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के साथ तस्वीरें भी हैं. इन्हीं चीजों के आधार पर किसान संगठनों ने सिद्धू को सरकार का आदमी बताते हुए और लाल किले के अपमान के लिए उनके सामाजिक बहिष्कार की अपील की थी. [7]

मुंबई के आज़ाद मैदान का हाल: महाराष्ट्र के 21 ज़िलों के किसान मुंबई के आज़ाद मैदान में कृषि बिल के विरोध में जुटे हुए हैं. ये किसान दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में पहुँचे हैं. आज़ाद मैदान में पहुँचे किसानों को महाराष्ट्र सरकार का भी समर्थन प्राप्त है. सोमवार को पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार, एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप इनके समर्थन में आज़ाद मैदान पहुँचे. किसान नेता महाराष्ट्र के गवर्नर को नए क़ानून के विरोध में ज्ञापन सौंपना चाहते थे. लेकिन गवर्नर गोवा चले गए. इसके बाद शरद पवार ने महाराष्ट्र के गवर्नर पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके पास अभिनेत्रियों से मिलने का वक़्त है, लेकिन किसानों से नहीं. गणतंत्र दिवस की सुबह मैदान में मौजूद किसानों में पहले भारत का झंडा फहराया. आंदोलन के नेताओं ने कहा कि दिल्ली की कोर कमेटी के फैसले के बाद यहाँ के आंदोलन की आगे की रणनीति तय की जाएगी. [8]

06 फरवरी 2021 को चक्का जाम - कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन (Farmers Protest) के बीच प्रदर्शनकारियों ने शनिवार 06 फरवरी 2021 को चक्का जाम किया. 12 बजे शुरू हुआ किसानों का चक्का जाम तीन बजे खत्म हो गया. चक्का जाम के दौरान, प्रदर्शनकारी किसानों ने हाईवे समेत अन्य राजमार्गों को जाम कर दिया था. दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर समूचे देश में राजमार्गों पर चक्का जाम किया गया. किसानों ने सरकार से चाहे जितना लंबा समय लगे जब तक कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया जाएगा तब तक आंदोलन समाप्त नहीं होगा. किसानों के 'चक्का जाम' के मद्देनजर दिल्ली के बॉर्डरों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है. दिल्ली में चक्का जाम नहीं होने के बावजूद करीब 50,000 जवानों की तैनाती दिल्ली-एनसीआर में की गई. साथ ही ड्रोन के जरिए निगरानी भी की जा रही थी. किसानों ने देश भर में चक्काजाम कर दिखाया कि उनका आंदोलन कुछ राज्यों तक सीमित नहीं है. दिल्ली में 50 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए.पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर ही नहीं तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, से लेकर बंगाल तक किसानों के चक्काजाम का ऐलान का असर दिखा. राजमार्ग पर किसानों का हुजूम उमड़ा. यूपी, उत्तराखंड और दिल्ली में चक्काजाम नहीं करने का निर्णय़ था.

किसानों के चक्का जाम का कार्यक्रम दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक चला. किसानों ने वाहनों के हॉर्न बजाकर चक्का जाम का कार्यक्रम समाप्त किया. किसान ने ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफ़ेरेल एक्सप्रेसवे बंद कर दिया है, लेकिन किसान उन लोगों का भी ध्यान रख रहे थे, जो चक्का जाम की वजह से सड़कों पर फंस गए थे. किसान ट्रैफिक में फंसे लोगों को पानी, छाछ और चाय पिला रहे थे और साथ में खाना खिलाकर उन्हें हो रही असुविधा के लिए माफ़ी भी मांग रहे थे.

किसानों के देशव्यापी चक्का जाम को देखते हुए दिल्ली के अंदर और दिल्ली की सीमाओं पर सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गई. टिकरी बॉर्डर की किलेबंदी की गई. टिकरी बॉर्डर पर करीब 20 लेयर की सुरक्षा थी. तारों और नुकीली कीलों के साथ अब पुलिस ने एक जाल भी लगाया. पथराव से बचने के लिए सड़क पर रोड रोलर खड़े किये. किसानों तक पहुँचने वाले छोटे छोटे रास्तों को बंद किया गया.

स्रोत - khabar.ndtv.com Dated 6.2.2021

18 फरवरी 2021 को पूरे देश में 'रेल रोको आंदोलन'

उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में किसानों ने आज रेल रोको आंदोलन निकाला, जिसके तहत किसानों ने कई जगहों पर रेल पटरियों पर बैठकर प्रदर्शन किया और ट्रेनें रोकीं. कई जगहों पर पहले ही एहतियातन ट्रेनों को रोक दिया गया. (स्रोत: एनडीटीवी रेल रोको आंदोलन)

ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मुल्ला ने कहा कि 18 तारीख को हजारों किसान दोपहर 12 बजे से शाम चार बजे तक रेल पटरियों पर बैठकर रेल रोको आंदोलन में हिस्सा लेंगे. (स्रोत: एनडीटीवी रेल रोको आंदोलन)

पंजाब में रेल रोको आंदोलन का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने पंजाब जाने वाली ट्रेनें रोक दी थीं. इससे वहां पर जरूरी सामानों की आपूर्ति बाधित हो रही थी, इसे ही लेकर अमरिंदर सिंह राष्ट्रपति से मिलना चाहते थे. (स्रोत: एनडीटीवी रेल रोको आंदोलन)

नये कृषि कानूनों के खिलाफ अपना प्रदर्शन तेज करते हुए पंजाब के किसानों ने बृहस्पतिवार से अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू करते हुए आज राज्य में कई जगहों पर ट्रेन की पटरियों को अवरुद्ध कर दिया. किसानों ने भाजपा नेताओं के घरों के बाहर धरना भी दिया. इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन तेज करने के लिए 31 किसान संघ एकजुट हुए हैं और उन्होंने एक अक्टूबर से अनिश्चितकाल के लिए रेल रोको आंदोलन चलाने की घोषणा की है. (स्रोत: एनडीटीवी रेल रोको आंदोलन)

बीजेपी सरकार के माथे पर चिंता: किसान आंदोलन की वजह से केंद्र की बीजेपी सरकार की माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखने लगी है. इसका एक इशारा मंगलवार को मिला, जब पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'जाटलैंड' कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के नेताओं के साथ इस बारे में चर्चा की. बैठक के बाद इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान तो सामने नहीं आया, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ बीजेपी का ख़ुद का आकलन है कि 40 लोकसभा सीटों पर किसान आंदोलन असर डाल सकता है. इसलिए बीजेपी अध्यक्ष ने नेताओं से अपने-अपने इलाक़े में नए कृषि क़ानूनों पर जनता के बीच जा कर जागरूकता अभियान तेज़ करने के लिए कहा है. स्पष्ट है कि बीजेपी किसान आंदोलन से चिंतित है, फिर भी क़ानून को लागू करने लिए अटल निश्चय किए बैठी है. इस क़ानून को लागू करने के लिए मोदी सरकार को एक बड़ी क़ीमत चुकानी भी पड़ रही है. राजनीतिक क़ीमत का एक अंदाज़ा तो सरकार ने ख़ुद लगा लिया है, लेकिन उनके इस फ़ैसले का तात्कालिक आर्थिक नुक़सान भी देखने को मिल रहा है.

स्रोत - https://www.bbc.com/hindi/india-56095600

संयुक्त किसान मोर्चा के घटक

संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति जैसे निकायों के समन्वय के तहत, तीन कृषि कानून-2020 का विरोध करने वाले किसानों संघों में शामिल संगठनों की आंशिक सूची निम्नानुसार है:

  • भारतीय किसान यूनियन (उगरालन, सिधुपुर, राजेवाल , चदुनी, दकाउंडा)
  • जय किसान आंदोलन (आन्दोलन)
  • आल इंडिया किसान सभा
  • कर्नाटक राज्य रैथा संघ
  • आल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन
  • किसान मजदूर संघर्ष कमिटी
  • राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन
  • आल इंडिया किसान मजदूर सभा
  • क्रांतिकारी किसान यूनियन
  • आशा-किसान स्वराज
  • नैशनल एलाईन्स फॉर पीपुल्स मूवमेंट
  • लोक संघर्ष मोर्चा
  • आल इंडिया किसान समासभा
  • पंजाब किसान यूनियन
  • स्वाभिमानी शेतकारी संघटना
  • संगठन किसान मजदूर संघर्ष
  • जमहूरी किसान सभा
  • किसान संघर्ष समिति
  • तेराई किसान सभा

क्या हैं तीन नए कृषि कानून

1. किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम 2020 (Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act:) : इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है. यह कानून चुनिंदा क्षेत्रों से "उत्पादन, संग्रह और एकत्रीकरण के किसी भी स्थान पर किसानों के व्यापार क्षेत्रों का दायरा बढ़ाता है". अनुसूचित किसानों की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ई-कॉमर्स की अनुमति देता है. राज्य सरकारों को 'बाहरी व्यापार क्षेत्र' में आयोजित किसानों की उपज के व्यापार के लिए किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म पर कोई बाज़ार शुल्क, उपकर या लेवी वसूलने से प्रतिबंधित करता है. सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे.

लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं. किसानों को यह भी डर है कि सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म कर सकती है, जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है. यद्यपि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी खत्म नहीं किया जाएगा.

2. किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं अधिनियम,2020 (Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act): किसी भी किसान के उत्पादन या पालन से पहले एक किसान और एक खरीदार के बीच एक समझौते के माध्यम से अनुबंध कृषि के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है. यह तीन-स्तरीय विवाद निपटान तंत्र के लिए प्रदान करता है: सुलह बोर्ड, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और अपीलीय प्राधिकरण.

इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा. किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी. किसानों को डर है कि इस कानून के बहाने बड़े औद्योगिक घरानों की कंपनियां उनकी जमीन छीन लेंगी और किसान केवल अपनी ही जमीन पर खेती करने वाला मजदूर रह जाएगा.

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 (Essential Commodities (Amendment) Act): केंद्र युद्ध या अकाल जैसी असाधारण स्थितियों के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों को विनियमित करने की अनुमति देता है.

यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है. यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है. इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी.

किसानों का कहना है कि यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. इसके चलते कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? आवश्यकता है कि कृषि उपज पर किसी भी स्टॉक सीमा को लागू करने की आवश्यकता मूल्य वृद्धि पर आधारित हो.

किसानों की अहम मांगें

आंदोलनकारी किसान संगठन केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं और इनकी जगह किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून लाने को कह रहे हैं. उन्हें आंशका है कि लाए गए नए कानूनों कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा. किसान यूनियनों का मानना ​​है कि कानून किसानों के लिए अधिसूचित कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियों (मण्डियों) के बाहर कृषि उत्पादों की बिक्री और विपणन को खोलेंगे. इसके अलावा, कानून अंतर-राज्य व्यापार की अनुमति देंगे और कृषि उत्पादों के स्वैच्छिक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार को प्रोत्साहित करेंगे. नए कानून राज्य सरकारों को एपीएमसी बाजारों के बाहर व्यापार शुल्क, उपकर या लेवी एकत्र करने से रोकते हैं; इससे किसानों को यह विश्वास हो गया है कि कानून "मंडी (मण्डी) व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त करेंगे" और "किसानों को निगमों की दया पर छोड़ देंगे". इसके अलावा, किसानों का मानना ​​है कि कानून अपने मौजूदा रिश्तों को खत्म कर देंगे (आयोग के एजेंट जो बिचौलिये के रूप में वित्तीय ऋण प्रदान करते हैं, समय पर खरीद सुनिश्चित करते हैं, और उनकी फसल के लिए पर्याप्त कीमतों का वादा करते हैं) और कॉर्पोरेट भी उस तरह के नहीं होंगे. इसके अतिरिक्त, किसानों की राय है कि एपीएमसी मंडियों (मण्डियों) के विघटन से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनकी फसल की खरीद को समाप्त करने को बढ़ावा मिलेगा. वे इस प्रकार सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने की मांग कर रहे हैं.

  • तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. इनसे होर्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा. कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए एक विशेष संसद सत्र आयोजित किया जावे.
  • एक विधेयक के जरिए किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन खरीद सिस्टम खत्म नहीं होगा. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और फसलों की राज्य खरीद को कानूनी अधिकार बनाए जाने की माँग है.
  • स्वामीनाथन पैनल की रिपोर्ट लागू करें और उत्पादन की भारित औसत लागत की तुलना में कम से कम 50% अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दें.
  • बिजली अध्यादेश 2020 का उन्मूलन: किसान संगठन कृषि कानूनों के अलावा बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003 की जगह लाए गए बिजली (संशोधित) बिल 2020 का विरोध किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है. इस बिल से किसानों को सब्सिडी पर या फ्री बिजली सप्लाई की सुविधा खत्म हो जाएगी.
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में वायु गुणवत्ता प्रबंधन (प्रबन्धन) पर आयोग का निरसन और 2020 तक का अध्यादेश जारी करना और डंठल (डण्ठल) जलाने पर सजा और जुर्माने को हटाना. एक प्रावधान के तहत खेती का अवशेष जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.
  • पंजाब में धान की पराली जलाने पर गिरफ्तार किसानों की रिहाई की माँग है.
  • केंद्र को राज्य के विषयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, व्यवहार में विकेंद्रीकरण लागू किया जावे.
  • कृषि उपयोग के लिए डीजल की कीमतों में 50% की कटौती करें.
  • किसान नेताओं के विरुद्ध सभी मामलों को वापस लेना.

किसान आंदोलनों का इतिहास

वर्तमान किसान आंदोलन को समझने के लिए हमें कुछ चुनिंदा किसान आंदोलनों के इतिहास पर प्रकाश डालना उचित होगा. ऐसा लग रहा है कि ठीक एक शताब्दी बाद किसान आंदोलन का इतिहास दोहराने जा रहा है. 2022 का वर्ष किसान आंदोलन के इतिहास के लिए महत्वपूर्ण होने जा रहा है.

खेड़ा सत्याग्रह (1918 ई. ):

यह किसान आंदोलन गाँधीजी द्वारा शुरू किया गया था. खेड़ा गुजरात में है जहाँ 1918 ई. में एक किसान आन्दोलन हुआ. गाँधीजी ने खेड़ा में किसानों की बदतर हालत को सुधारने का अथक प्रयास किया. खेड़ा में बढ़े लगान और अन्य शोषणों से किसान वर्ग पीड़ित था. कभी-कभी किसान जमींदारों को लगान न देकर अपना आक्रोश प्रकट करते थे. 1918 ई. में सूखा के कारण फसल नष्ट हो गयी. ऐसी स्थिति में किसानों की कठिनाइयाँ बढ़ गईं. भूमिकर नियमों के अनुसार यदि किसी वर्ष फसल साधारण स्तर से 25% कम हो तो वैसी स्थिति में किसानों को भूमिकर में पूरी छूट मिलनी थी. बम्बई सरकार के पदाधिकारी सूखा के बावजूद यह मानने को तैयार नहीं थे कि उपज कम हुई है. अतः वे किसानों छूट देने को तैयार नहीं थे. लगान चुकाने हेतु किसानों पर लगातार दबाव डाला जाता था. गाँधीजी ने खेड़ा के किसानों की ओर ध्यान दिया. उन्होंने किसानों को एकत्रित किया और सरकारी कार्रवाइयों के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए उकसाया. किसानों ने भी गाँधीजी का भरपूर साथ दिया. किसानों ने अंग्रेजों किए सरकार को लगान देना बंद कर दिया. जो किसान लगान देने लायक थे उन्होंने भी लगान देना बंद कर दिया. सरकार ने सख्ती से पेश आने और कुर्की की धमकियाँ दी पर उससे भी किसान नहीं डरे. इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया. अनेक किसानों को जेल में डाल दिया गया.

मोपला विद्रोह (1920 ई.):

केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपलाओं द्वारा 1920 ई. में विद्राह किया गया। प्रारम्भ में यह विद्रोह अंग्रेज़ हुकूमत के ख़िलाफ था. महात्मा गाँधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं का सहयोग इस आन्दोलन को प्राप्त था. इस आन्दोलन के मुख्य नेता के रूप में 'अली मुसलियार' चर्चित थे. 15 फ़रवरी, 1921 ई. को सरकार ने निषेधाज्ञा लागू कर ख़िलाफ़त तथा कांग्रेस के नेता याकूब हसन, यू. गोपाल मेनन, पी. मोइद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद यह आन्दोलन स्थानीय मोपला नेताओं के हाथ में चला गया. इस आन्दोलन ने हिन्दू-मुसलमानों के मध्य साम्प्रदायिक आन्दोलन का रूप ले लिया, परन्तु शीघ्र ही इस आन्दोलन को कुचल दिया गया।

बारदोली सत्याग्रह (1922 ई.):

सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुके में 1922 ई. में किसानों द्वारा 'लगान' न अदायगी का आन्दोलन चलाया गया. इस आन्दोलन में केवल 'कुनबी-पाटीदार' जातियों के भू-स्वामी किसानों ने ही नहीं, बल्कि 'कालिपराज' (काले लोग) जनजाति के लोगों ने भी हिस्सा लिया. बारदोली सत्याग्रह पूरे राष्ट्रीय आन्दोलन का सबसे संगठित, व्यापक एवं सफल आन्दोलन रहा है. बारदोली के 'मेड़ता बन्धुओं' (कल्याण जी और कुंवर जी) तथा दयाल जी ने किसानों के समर्थन में 1922 ई. से आन्दोलन चलाया था. बाद में इसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया. बारदोली क्षेत्र में कालिपराज जनजाति रहती थी, जिसे 'हाली पद्धति' के अन्तर्गत उच्च जातियों के यहाँ पुश्तैनी मज़दूर के रूप में कार्य करना होता था.

शेखावाटी किसान आन्दोलन:

दीर्घकाल से सुषुप्त पडी हुई शेखावाटी की स्वाभाविक किसान शक्ति, जो सामंती व्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक बदहाली व शोषण का शिकार हो रही थी, में कुछ प्रेरक शक्तियों का समावेश हुआ. ये उत्प्रेरक तत्व मूलत: बाहरी थे, जिनका संसर्ग स्थानीय शक्तियों से हुआ और एक महान आन्दोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ. आर्य समाज और समाचार पत्र जागृति के अग्रदूत बने. इस आन्दोलन ने एक बड़े भू-भाग की आबादी का जीवन परिवर्तन करने में अहम् भूमिका निभाई और एक नई व्यवस्था को जन्म दिया. यह आन्दोलन मुख्य रूप से जागीरदारों की स्वेच्छाचारिता और शोषण के विरुद्ध था. सैनिकों का योगदान - शेखावाटी की देहाती प्रजा का बाहरी दुनिया से पहला संसर्ग यहाँ के किसान पुत्रों का ब्रिटिश सेना में भर्ती होने के कारण हुआ. प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1919 ) में इस इलाके से 14 हजार जवान सेना में भर्ती हुए, जिनमें से 2000 व्यक्तियों ने अपने प्राण दिए. यह तथ्य निजामत भवन झुंझुनू के मुख्य द्वार पर अंकित है. युद्ध की समाप्ति पर जब ये सैनिक वापस अपने वतन को लौटे तो वे अपने साथ एक नई विचारधारा और आत्मसम्मान का भाव लेकर लौटे. उनका शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ गया था और उन्होंने अपने बच्चों को कस्बों में चल रही पाठशालाओं में प्रवेश दिलाया. ब्रिटिश सेना के पेंशनधारी सैनिक होने से इनकी समाज में भी साख बन गयी. छोटे-छोटे जागीरदार इन सैनिकों से घबराने लगे. आगे चलकर इन सैनिकों व फौजी अफसरों ने शिक्षा, समाज-सेवा व जातीय संगठनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया. इस कारण शोषण से दबे कुचले किसानों में एक नव स्फूर्ति और चेतना आई. गांधीजी का भिवानी आगमन सन् 1921 - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में प्रमुख व्यक्ति थे -

झुंझुनूवाटी से रामेश्वर रामगढ़िया, रामसिंह कुंवरपुरा, गोविन्दराम हनुमानपुरा, चिमनाराम और भूदाराम (दोनों सगे भी) सांगसी, पंडित ताड़केश्वर शर्मा पचेरी, गुरुमुखसिंह सांई दौलतपुरा, इन्द्राजसिंह घरडाना, लादूराम किसारी, चैनाराम हनुमानपुरा, मामराज सिंह इन्दाली, नेतरामसिंह गौरीर, पन्ने सिंह देवरोड़, घासीराम खरिया, हरलालसिंह हनुमानपुरा, भैरूंसिंह तोगडा, आदि प्रमुख रूप से सम्मिलित हुए. राजस्थान के अन्य जिलों में भी किसान आंदोलन फैला और इसकी परिणति जागीरदारी प्रथा के अंत के रूप में हुई और किसानों को अपनी जमीन पर मालिकाना अधिकार मिला. इस आंदोलन के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं - Shekhawati Kisan Andolan

नील-विद्रोह की कहानी

किसान और मध्य वर्ग को जागृत करने के लिए नील-विद्रोह की कहानी जानना बहुत जरूरी है. नील विद्रोह किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् 1859 में किया गया था. किन्तु इस विद्रोह की जड़ें आधी शताब्दी पुरानी थीं, अर्थात् नील कृषि अधिनियम (Indigo Plantation Act) का पारित होना. इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया. यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया. सन् 1860 तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई.

नील की खेती का शुभारंभ:

कहानी यहीं से शुरु होती है. ऐसी ही एक कहानी आज से 243 साल पहले बंगाल के हुगली जिले में शुरू हुई थी. जब 1777 ई. में एक फ्रेंच नागरिक श्री लूईस बोनार्ड यूरोप से नील के पौधे लेकर भारत आया था. किसानों को वही तर्क दिया गया था जो आज दिया जा रहा है- फसल का उच्च मूल्य. फसल के लिए अग्रिम. और फिर शुरू हुई अनबंध पर नील की खेती. किसान हमेशा के लिए नील कारखाने वालों का गुलाम बन कर रह गया. 1859-60 में भयंकर विद्रोह हुआ जिसको इतिहास में नील विद्रोह के नाम से जाना जाता है. कुछ सुधार हुए किन्तु किसान अनुबंध खेती की इस गुलामी से अंततः 1917 में हुए चंपारण सत्याग्रह के बाद ही मुक्त हो पाया.

अनुबंध पर नील की खेती:

आश्चर्य जनक रूप से स्थिति वही थी, जिसका आज प्रचार किया जा रहा है. किसान पर अनुबंध करने का कोई प्रत्यक्ष दवाब नहीं था. यह उसकी इच्छा पर निर्भर था कि नील की खेती के लिए अनुबंध करे या न करे. पर अनुबंध किए गए. लगभग संपूर्ण बंगाल ऐसे अनुबंधों के जाल में फंस गया. गरीब किसान चाह कर भी उसे दिखाए गए सब्जबाग के सम्मोहन से बच नहीं पाया. कहते हैं कि इन अनुबंधों में फंसने के लिए दो महत्वपूर्ण कारकों ने उत्प्रेरक का काम किया था- एक तो किसान भूमि के लगान और साहूकार के कर से बुरी तरह दबा हुआ था और दूसरे कुछ बचत करके वह धूमधाम से दुर्गा उत्सव मनाना चाहता था. जब उसे खाद्यान्नों की तुलना में नील के ऊँचे बाजार मूल्यों का लालच दिया गया तो वह आसानी से अनुबंध खेती के जाल में फंस गया और इस जाल से मुक्त होने में उसे 150 साल लग गए. कई पीढ़ियां गुलामी में गुजर गई.

किसान को मृग-मरीचिका दिखाई जा रही है:

वही कारक आज भी विद्यमान हैं. किसान कर्ज से मुक्ति चाहता है. किसान आज उन सभी बुराइयों से , जिनसे उनके पुरखे आजादी से पहले से मुक्ति दिलाने का प्रयास करते आ रहे थे, आकंठ डूबा हुआ है. उसे नहाण-दशोटण-छूछक, मौसर-शादी, रामकथा-श्यामकथा, सवामणी और अनेक अनावश्यक कर्मकांडों के लिए धन चाहिए. हाल के वर्षों में कुछ नए कारक और इस सूची में जुड़ गए हैं- सपने बेचने वाले कोचिंग संस्थाओं ने अपने बेटे के लिए सपने खरीदने के लिए भी आज किसान वर्ग लालायित है. नशा एक नया स्वरूप लेकर पीछे खड़ा है. अनुबंध खेती के लिए मृगमरीचिका दिखाने वाली पृष्ठ-भूमि पूरी तरह तैयार है. कोई आश्चर्य नहीं इस बार पूर्ण संपूर्ण भारत का किसान अनुबंध खेती के जाल में फंस जाए!

एक बार अनुबंध खेती के जाल में किसान फंसा नहीं कि इतिहास को दोहराने से कोई रोक नहीं सकता. वही अग्रिम लोन, महंगा खाद-बीज, फसल की गुणवत्ता के बहाने से मनमानी कीमतें! वही कर्ज का दुष्चक्र. कहने को तो कानून कहता है कि अनुबंध, भूमि की खरीद-फरोख्त या गिरवी के लिए नहीं हो सकता. पर यह धोखे की टट्टी मात्र साबित होगा. कंपनी के अनुबंध में फंसे कर्जदार किसान के सामने अपनी जमीन बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा!

मध्यमवर्ग गफलत में है :

जब 1859-60 में नील विद्रोह हुआ था तब मध्यमवर्ग किसान के साथ था. पर आज मध्यमवर्ग स्वयं गफलत में है. जो आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 पारित हुआ है वह किसान से कहीं ज्यादा मध्यम और निम्न वर्ग को प्रभावित करेगा. किंतु गफलत का आलम यह है कि मध्यम वर्ग इसको भी किसान से संबंधित मान कर बैठा है! इस कानून से सरकार और जनप्रतिनिधियों ने अपने हाथ बांध लिए हैं. सरकार खाद्यान्न और फल-सब्जी के स्टाक और कीमतों में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर पायेगी जब तक पिछले साल की औसत की तुलना में खाद्यान्न की कीमतों में 50% और फल-सब्जी की कीमतों में 100% की वृद्धि नहीं हो जाए. मतलब सीधा सा है, सटोरिए कीमत में 50% और 100% वृद्धि होने तक तक स्टाक दबाकर रखेंगे और फिर से डेढ़ से दो गुना लाभ कमा कर माल बेचेंगे. यह लाभ किसकी जेब से आएगा? निश्चित रूप से मध्यम और निम्न वर्ग की जेब से! क्योंकि किसान खाद्यान्न और फल-सब्जी खरीदने के लिए सटोरियों के पास नहीं जाएगा.

कुछ किसान-पुत्र किसानों को इन नए कृषि कानूनों के फायदे समझाने का प्रयास कर रहे हैं और उनको कुछ नए सपने दिखा रहे हैं. वे या तो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में पड़े हुए अक्ल के अंधे हैं या फिर राजनीतिक पार्टी में पद पाने के लालच में अंधे हो रहे हैं. परंतु उनको याद रखना चाहिए कि जब तक उनका किसान उनके पीछे है तब तक ही उनकी पूछ है. जिस दिन किसान गुलाम हुआ, उसी दिन उनको कोई टक्के के भाव पूछने वाला नहीं. याद रखो जागीरदारों के चाकर बनकर किसानों का शोषण करवाने वाले चौधरियों को आखिर किसानों की ही शरण लेनी पड़ी थी. शेखावाटी किसान आंदोलन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है. किंतु तब तक उनका धन और इज्जत सब मटिया-मेट हो चुके थे.

राजनीतिक पार्टियां और किसान

कुछ राजनीतिक पार्टियां इन नए किसान कानूनों का विरोध तो कर रही हैं परंतु यह कोई स्पष्ट रूप से नहीं बता रहा कि किसान के साथ इन कानूनों से क्या होने वाला है. इन कानूनों का किसान पर और आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है. कोई भी इस समय नील की अनुबंध-खेती का हवाला नहीं दे रहा! आखिर क्यों? क्योंकि शायद किसान की आजादी वे भी नहीं चाहते. उनकी स्थिति उन भेड़ियों की तरह है जो शिकार करते शेर के पीछे-पीछे झुंड बनाकर इसलिए चलते हैं कि जैसे ही शेर शिकार करे वह शिकार को झपट ले जाएं. मतलब उनका उद्देश्य शिकार की जान बचाना नहीं शिकार को खाना मात्र है. यानी उनकी दृष्टि केवल किसान के वोट तक है!

कैसे लुटने वाला है किसान?

तीसरा कृषि कानून कहीं भी वस्तुओं की खरीद- फरोख्त की आजादी देता है. अब सोचिए इसकी शुरुआत कैसे होगी. अमेजन, वालमार्ट जैसी रिटेल कंपनियों की तरह पहले कुछ घाटा खाकर कुछ समय तक मंडियों के बहार वस्तुओं के ऊंचे दाम दिए जाएंगे. बाहर ऊंचे दाम मिलने से मंडियों में वस्तुओं की आवक खत्म हो जाएगी और धीरे-धीरे किसानों का संगठित बाजार मृतप्राय हो जाएगा. वर्षों से किसान और आढ़तियों के खून पसीने से बनी मंडी की बेशकीमती संपत्तियां वीरान हो जाएंगी और एक दिन चुपके से औने पौने दाम में पूंजीपतियों के हाथ में पहुंचकर माल में परिणित हो जायेंगी. फिर खेल शुरू होगा. मंडी के बाहर खरीद-फरोख्त करने वालों का संघ बनेगा और फिर मनमाने दामों पर वस्तुओं की खरीद होगी. अनुबंध खेती से बचा हुआ किसान यहाँ लूटा जाएगा.

क्या कानून किसान की सहायता करेगा?

बताने की आवश्यकता नहीं, किसान खुद अनुमान लगाए. किसान को हक देने के लिए 50 के दशक में कानून बने थे. अब्बल तो न्यायालयों ने लंबी लड़ाई और अनेक संविधानिक संशोधनों के बाद ही उन्हें सूरज की रोशनी देखने दी थी. और फिर कभी मंदिर-नाबालिक के नाम पर तो कभी सेटलमेंट-पैमाइश के नाम पर किसान राजस्व न्यायालयों में आज तक हताश-निराश चक्कर काट रहा है. मालामाल हुए तो वकील और अफसर. किसान तो कंगाल का कंगाल रहा. नए कृषि कानून में फिर राजस्व अधिकारियों और वकीलों के लिए नए रास्ते खोल दिए गए हैं. बड़ी-बड़ी कंपनियों के सामने कौन जीतेगा और किसकी और न्याय की अंधी माई का पलड़ा झुकेगा! कहने की आवश्यकता नहीं.

एक बार किसान इन कानूनों की जद में आया नहीं कि इस बार या तो वह जमीन से हाथ धो बैठेगा या उसके पास कर्ज और बाँझ-बंजर भूमि का टुकड़ा बचेगा. कौन बचाएगा किसान को? राजनेता? प्रेस? उसका अकल-अंध या लालच- बंध गुमराह किसान पुत्र? नहीं! 1860 ई. में नील किसानों की व्याख्या-गाथा कहने वाले एक बंगाली नाटक ‘नील दर्पण’ का एक ईसाई मिशनरी ने अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करवाया तो नील-कारखाने वालों का संघ और उनकी पिछलग्गु प्रेस उसके पीछे पड़ गई और उसे कोर्ट में घसीट ले गई. कोर्टों का इतिहास बताता है कि वह हमेशा सबल का साथी होता है. इस मामले में भी यही हुआ. कोर्ट ने पादरी पर ₹10000 का जुर्माना लगाया और अंततः एक बंगाली साहित्यकार ने जुर्माना अदाकर पादरी को छुड़वाया. प्रेस, कोर्ट और कथित जन नेता, सब चांदी के जूते से पानी पीते हैं. किसान की टूटी मोजड़ी तो बमुश्किल उसके पांव की रक्षा कर पाती है.

तो किसान की बचने की राह क्या है?

नील की खेती और नील-विद्रोह का इतिहास पढ़ें-पढ़ाएँ .अपने दुर्योधनों और अर्जुनों को पहचाने. जाति-धर्म से दूर होकर किसानों को ही जाति और धर्म माने. अनावश्यक रूढ़ी परंपराओं और धार्मिक ढकोसलों में पैसा बर्बाद करना बंद करें. अपनी आवश्यकताओं को सीमित करें. ग्राम स्तर पर स्वयं सहायता समूहों का निर्माण करें. इन सहायता समूहों के माध्यम से अनाज एवं फल सब्जियों का स्टॉक करें और जो कानून सटोरियों के फायदे के लिए बनाया गया है उसका फायदा उठाकर अपने को आर्थिक रूप से सबल बनाएं. आवश्यकता से अधिक उत्पादन बंद करें ताकि हरित क्रांति से भरे अन्य भंडारों को देखकर बोराए मूर्ख मनुजों को एक बार फिर किसान की महता का पुनः एहसास हो! “किसान तू ही सभ्यता का जन्मदाता है. तूने ही धरती के सीने से मोती लाकर मनुज को शिकारी से सभ्य-मानव बनाया था. तूने ही वह पहला गांव बसाया था जो महानगरों का पूर्वज बना. सब व्यापार-अर्थ का तू ही मूल आधार है. अपनी शक्ति को पहचान. चल एक बार फिर उठ खड़ा हो जा. सभ्यता के माथे पर बढ़ते कलंक को एक बार फिर धोदे!”

किसान आंदोलन के नवजीवन का ऊर्जा केंद्र

राकेश टिकैत गुरुवार रात 29.1.2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर

किसान आंदोलन-2020 में 26 जनवरी 2021 दिल्ली में हिंसा और लालकिले पर दीप सिद्धू द्वारा झंडा फहराने के बाद तनाव की स्थिति बन गई थी. अधिकांश किसान अंदोलनकारी मानते हैं कि दिल्ली की हिंसा सरकार प्रायोजित थी. 28 जनवरी की सुबह लग रहा था मानो धीरे-धीरे ग़ाज़ीपुर पर घरना स्थल ख़ाली होने वाला है. लेकिन राकेश टिकैत की एक भावुक वीडियो अपील ने मानो पूरी बाज़ी पलट दी हो. देर रात तक ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर दोबारा से किसानों का आना एक बार फिर शुरू हो गया और 29 तारीख़ सुबह से दोबारा 26 जनवरी वाली भीड़ देखने को मिली. गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत समेत बैठे किसानों ने उस तनाव को तकरीबन दूर कर दिया. पुलिस की चेतावनी के बाद भी गाजीपुर बॉर्डर से ये किसान नहीं उठे और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की आंसुओं ने माहौल बदल दिया. पश्चिमी यूपी, हरियाणा के अलग-अलग गांवों से किसान उठकर गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे. इतना ही नहीं मुजफ्फरनगर में महापंचायत बुलाई गई, जिसमें भारी संख्या में किसानों ने हिस्सा लिया.

गुरुवार रात 29.1.2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर के उनके एक भावुक वीडियो से ना सिर्फ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बल्कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसानों में भी आंदोलन के लिए एक नई ऊर्जा देखने को मिली है. सोशल मीडिया पर इन इलाक़ों के सैकड़ों लोग हैं जिन्होंने लिखा है कि 'उनके यहाँ कल रात खाना नहीं बना' और वो 'अपने बेटे की पुकार' पर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुँच रहे हैं.' 26 जनवरी के दिन लाल क़िले पर हुई घटना के बाद किसान संगठन जिस नैतिक दबाव का सामना कर रहे थे, उसके असर को ग़ाज़ीपुर की घटना ने कम कर दिया है और किसान नेता राकेश टिकैत के क़द को बढ़ा दिया है. [9]

शुक्रवार को गाजीपुर बॉर्डर पर यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, अलका लांबा, आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, आरएलडी नेता जयंत चौधरी पहुंचे.इंडियन नेशनल लोकदल के महासचिव अभय चौटाला भी राकेश टिकैत से मिलने वाले हैं. कुल मिलाकर गाजीपुर प्रदर्शन स्थल किसान आंदोलन का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है. [10]

किसान आंदोलन का नया पुनर्जन्म

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के भावुक संदेश और आंसुओं ने आंदोलन का माहौल और दिशा ही बदल दी. किसान आंदोलन का नया पुनर्जन्म हो गया है. पश्चिमी यूपी, हरियाणा, राजस्थान प्रांतों से अलग-अलग गांवों से भारी संख्या में किसान उठकर गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे.

किसान महापंचायतों का सिलसिला: मुजफ्फरनगर में महापंचायत बुलाई गई, जिसमें भारी संख्या में किसानों ने हिस्सा लिया. राकेश टिकैत के बढ़ते समर्थन ने उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. मुजफ्फरनगर से शुरू हुई किसान महापंचायतों का सिलसिला लगातार चल रहा है. जगह-जगह हो रही इन किसान महापंचायतों को भारी जन समर्थन मिल रहा है. इन किसान महापंचायतों में तीनों नए विवादित कृषि कानून वापस लेने, एमएसपी व्यवस्था को कानून से वैधानिक बनाने की लगातार माँग की जा रही है.

पंजाब के बाद अब हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान में भी यह जनांदोलन बनता जा रहा है. इस पूरे इलाके में किसान पंचायतों/खाप पंचायतों/ महापंचायतों की बाढ़ आ गयी है.

अभूतपूर्व दमनात्मक कदम: एक ओर प्रधानमंत्री वार्ता की बात कर रहे है, दूसरी ओर अभूतपूर्व दमनात्मक कदम उठाये जा रहे हैं, जैसा आज़ाद भारत में कभी हुआ नहीं. दो महीने से एकदम शांति पूर्ण ढंग से, अहिंसक आंदोलन पर बैठे अपने ही क़िसानों को बैरिकेड की दीवारें, कील-कांटे खड़े करके जिस तरह घेरा जा रहा है. उनकी बिजली काट दी गयी है. लंगर और टॉयलेट तक के लिए पानी के टैंकर नहीं पहुंचने दिए जा रहे हैं. इस सब को देखकर लोगों को ब्रिटिश राज की कहानियाँ याद आने लगी हैं. न सिर्फ किसान नेताओं वरन पत्रकारों और राजनेताओं पर भी राष्ट्रद्रोह और UAPA के तहत मुकदमे कायम हो रहे हैं. स्वतन्त्र पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है. सोशल मीडिया सीधे निशाने पर है, इंटरनेट बंद है क्योंकि सरकार की निगाह में आंदोलन के पुनर्जीवन के लिए ये ही सबसे बड़े खलनायक हैं.

यह समर्पण करने, टूटने और भागने के लिए किसानों को मजबूर करने की सरकार की रणनीति है. लेकिन इससे किसानों में और गुस्सा बढ़ता जा रहा है. दमन के बल पर आंदोलन को कुचलने की मुहिम का उल्टा असर हो रहा है. पंजाब की ही तरह अब यह हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी जनांदोलन की शक्ल अख्तियार करता जा रहा है. तमाम जिलों में हो रही खाप पंचायतों व किसान महापंचायतों ने सरकार की नींद उड़ा दी है.

आंदोलन का राजनीतिक समर्थन: आंदोलन का राजनीतिक समर्थन भी बढ़ता जा रहा है. लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक पार्टियाँ किसानों के समर्थन में खड़ी हो गई हैं.

किसान आंदोलन की अब ग्लोबल स्तर पर भी ध्वनि सुनी जा सकती है. किसान आंदोलन के समर्थन में उठ रही अंतरराष्ट्रीय आवाजों पर जिस तरह सरकार ने प्रतिक्रिया दी है, वह इसकी भारी घबराहट दिखाता है. चर्चित अश्वेत पॉपस्टार रिहन्ना और 18 वर्षीय पर्यावरण ऑइकन ग्रेटा के बयानों के बाद पहले विदेशमंत्री की सफाई, फिर गृहमंत्री की प्रतिक्रिया और फिर ताबड़तोड़ बॉलीवुड और खेल जगत की नामचीन हस्तियों की ओर से प्रायोजित बयानों का सिलसिला, IT सेल की ओर से # India Together, #IndiaAgainstPrapaganda की बाढ़ आ गयी है. सरकार ने भारत को बदनाम करने की कथित अंतरराष्ट्रीय साजिश की जांच शुरू कर दी है.

साफ है, किसान आंदोलन के देश और विदेशों में बढ़ते समर्थन से घबराई सरकार का प्रचार युद्ध किसान आंदोलन को राष्ट्रद्रोही बताकर JNU छात्र-आंदोलन से लेकर शाहीन बाग़ आंदोलन तक की आजमाई हुई रणनीति से संचालित है - आंदोलन विदेशी शह पर टुकड़े-टुकड़े गैंग की साजिश है जो भारत को कमजोर और बदनाम करने के उद्देश्य से किसानों को गुमराह करके चलाया जा रहा है, जिसमें कम्युनिस्टों और विपक्ष की मिलीभगत है.

बजट घोषणा और किसान आंदोल

यह स्पष्ट है कि सरकार आंदोलन के विराट फलक ग्रहण करते जाने से दबाव में जरूर है, पर कार्पोरेटपरस्त कृषि कानूनों को आगे बढ़ाने के लिए वह कृत संकल्प है. देश में चल रहे इतने बड़े किसान आंदोलन के बावजूद सरकार ने हाल ही में पेश बजट में आंदोलन के बुनियादी प्रश्नों से जुड़ी खतरनाक घोषणा करके किसान आंदोलन के प्रति अपने रुख और दिशा का ऐलान कर दिया है. इस संदर्भ में बजट में सबसे महत्वपूर्ण घोषणा FCI के सम्बंध में है जो आंदोलन के केंद्रीय विषय -MSP पर सरकारी खरीद से सीधे जुड़ी हुई है. वित्तमंत्री ने घोषणा की है कि अब तक FCI को छोटी बचत योजनाओं के फंड (National Small Savings Fund) से जो कर्ज मिलता था, वह अब बंद किया जा रहा है. इसका MSP पर सरकार द्वारा खरीद और PDS द्वारा देश के 80 करोड़ गरीबों को मिलने वाले सस्ते खाद्यान्न वितरण योजना दोनों पर गम्भीर असर होगा. दरअसल, यह बदलाव इन दोनों प्रश्नों- MSP और PDS पर सरकार की दिशा का सूचक है.

बजट घोषणा ने किसानों की आशंकाओं को सही साबित किया: दरअसल FCI किसानों से MSP पर जो खरीद करती है और सस्ते दर पर PDS में गरीबों को देती है, उस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार से उसे सब्सिडी मिलने का प्रावधान है. पर, असलियत में बेहद कम सब्सिडी उसे मिल पाती है, 2019-20 में FCI को 3 लाख 17 हजार करोड़ सब्सिडी की जरूरत थी, पर उसे मात्र 75 हजार करोड़ राशि मिली. बाकी पैसा अब तक सरकार की लघु बचत योजनाओं के फंड (NSSF) से 8% ब्याज दर पर FCI उधार लेता था. यह कर्ज लगातार बढ़ते हुए 31 मार्च 2020 तक 2 लाख 54 हजार करोड़ हो गया है. अब जब सरकार ने यह तुलनात्मक रूप से सस्ता कर्ज़ NSSF से FCI को मिलने पर रोक लगा दिया है, तब FCI को बेहद मंहगी दरों पर इसे बाजार से लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. जाहिर है, भारी कर्ज़ में डूबे FCI द्वारा यह MSP पर खरीद को हतोत्साहित करेगा और अंततः इस समूची MSP-PDS व्यवस्था को अवसान की ओर ले जायेगा. सरकार की इस घोषणा ने किसान आंदोलन द्वारा उठाये जाए सवालों और आशंकाओं को बिल्कुल सही साबित कर दिया है और इस झूठ को बेनकाब कर दिया है कि ये कानून किसानों के हित में हैं और वे गुमराह हैं.

इन नीतियों का सबसे भयावह असर हमारी खाद्य-सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका पर पड़ेगा. अर्थशास्त्री प्रो. बिश्वजीत धर ने अपने पेपर, "India Compromises its WTO Strategy" में इस तथ्य को बेहद शिद्दत से नोट किया है कि इन कानूनों के क्रियान्वयन के बाद WTO और द्विपक्षीय FTA की वार्ताओं में अब तक हमारी सरकारों द्वारा अपने कृषि क्षेत्र की रक्षा के लिए जो रणनीति अख्तियार की जा रही थी, अब इन कानूनों के लागू होने के बाद, उस पर पानी फिर जाएगा. हमारी सरकारें अब तक इन वार्ता-चक्रों में बेहद मजबूती से यह समझाने में सफल होती थीं कि भारत में 86% छोटी और सीमांत जोतें होने के कारण हमारी कृषि मूलतः खाद्य-सुरक्षा और ग्रामीण-आजीविका पर केंद्रित है. इस आधार पर वे वैश्विक एग्री-बिजनेस की असमान प्रतियोगिता से भारतीय कृषि को बचाने हेतु विदेशी अनाज के अंधाधुंध आयात के खिलाफ टेरिफ-प्रोटेकशन देने तथा अपने किसानों को तरह-तरह की सब्सिडी देने की नीति का औचित्य सिद्ध कर पाते थे.

अब जबकि कृषि कानूनों का पूरा फोकस निर्यात को बढ़ावा देना और भारत को कृषि उत्पादों का एक्सपोर्ट-हब बनाना है, तब वैश्विक कृषि बाजार के अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े खिलाड़ी भारत के खाद्यान्न निर्यात पर WTO शर्तों का सवाल उठाते हुए लेवलप्लेईंग फील्ड की मांग करेंगे और भारत को अपना बाजार पूरी तरह विदेशी कृषि उत्पादों के लिए खोलने का दबाव बनाएंगे.

प्रो. धर ने सवाल उठाया है कि क्या भारत का कृषि क्षेत्र अकूत सरकारी सहायता से संचालित US, EU, ऑस्ट्रेलिया से खाद्यान्न के खुले आयात की प्रतियोगिता झेल पायेगा? उन्होंने आशंका जाहिर की है इसके फलस्वरूप भारत की 60% आबादी की आजीविका के आधार भारतीय कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व उथलपुथल मच जाएगी.

स्रोत: लाल बहादुर सिंह, newsclick, 06 Feb 2021

प्रधानमंत्री के 'आंदोलनजीवी' शब्द से बवाल

आंदोलनजीवी: राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नए शब्द "आंदोलनजीवी" का ज़िक्र किया. राज्यसभा में मोदी ने कहा, "हम लोग कुछ शब्दों से बड़े परिचित हैं, श्रमजीवी, बुद्धिजीवी- ये सारे शब्दों से परिचित हैं. लेकिन, मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ समय से इस देश में एक नई जमात पैदा हुई है, एक नई बिरादरी सामने आई है और वो है आंदोलनजीवी." माना जा रहा है कि पीएम मोदी का इशारा किसान आंदोलन से जुड़े लोगों पर था. उन्होंने आगे कहा, "ये जमात आप देखेंगे, वकीलों का आंदोलन है, वहाँ नज़र आएँगे, स्टूडेंट्स का आंदोलन है, वो वहाँ नज़र आएँगे, मज़दूरों का आंदोलन है, वो वहाँ नज़र आएँगे. कभी पर्दे के पीछे, कभी पर्दे के आगे. ये पूरी टोली है जो आंदोलनजीवी है, ये आंदोलन के बिना जी नहीं सकते हैं और आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूँढते रहते हैं."

संसद के दोनों सदनों में दिए गए प्रधानमंत्री के भाषणों में कृषि कानूनों के संदर्भ में उनकी बातों को एक जगह रखें तो उन सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं जो पिछले सात-आठ महीने से चले आ रहे किसान आंदोलन के दौरान उठाए गए हैं. अंदोलकारी किसान संगठनों में प्रधान मंत्री के आंदोलनजीवी कथन पर बहुत नाराज़गी है. 41 किसान यूनियनों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के इस बयान की आलोचना की है और कहा है कि वे "इस अपमान की निंदा करते हैं." किसान संगठन मानते हैं कि नए कृषि कानूनों पर अजीबोगरीब बयान देकर केंद्र सरकार कहीं-न-कहीं छोटे और बड़े किसानों में फूट डालने की कोशिश कर रही है, ताकि उनमें वर्ग विभाजन हो और किसानों का आंदोलन कमज़ोर किया जा सके. जबकि नए कृषि कानूनों में ऐसा कोई विभेद किसानों में नहीं किया गया है.

पीएम मोदी के "आंदोलनजीवी" वाले बयान पर विरोधी दलों के नेताओं और कई आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं की कड़ी प्रतिक्रिया आई है. सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर सरगर्मी पैदा हो गई है और तमाम लोग इस पर अपनी टिप्पणियाँ दे रहे हैं.

योगेंद्र यादव स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष और किसानों के आंदोलन के प्रवक्ता ने इस पर तल्ख टिप्पणी की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, "हाँ, मैं "आंदोलनजीवी" हूँ मोदी जी!" उन्होंने एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया है जिसमें उन्होंने कहा है, "जो दूसरे की बीमारी पर पलता है उसे परजीवी कहते हैं." उन्होंने आगे कहा, "वैसे आपको याद दिला दूँ कुछ दिन पहले आप ही ट्वीट करते थे कि इस देश को जन आंदोलन की ज़रूरत है."

प्रशांत भूषण ने पूछा है, "मोदी की आंदोलनजीवी टिप्पणी के दोहरेपन और अपनी आरामदायक ज़िंदगी छोड़कर किसानों के हक़ के लिए प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों, अल्पसंख्यकों, ग़रीबों और कमज़ोर लोगों को बदनाम करने की कोशिशों से इतर आप उसे क्या कहेंगे जो विपक्ष की कमज़ोरी पर ज़िंदा रहता है? परजीवी?" उन्होंने इसके साथ एक तस्वीर भी साझा की है जिसमें मोदी के जन आंदोलन के समर्थन में दिए गए पिछले ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट्स लगे हैं.

प्रियंका चतुर्वेदी, शिवसेना की नेता और राज्यसभा सदस्य, ने लिखा है, "देश को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता भी एक आंदोलन से ही मिली थी. गर्व है उन सभी 'आंदोलनजीवी' स्वतंत्रता सेनानियों का जो देश के लिए समर्पित रहे."

कांग्रेस पार्टी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है, "मोदी जी, आपकी विचारधारा चाहे जो भी हो कम से कम अपने पद की मर्यादा का ही ख्याल रख लेते, ऐसी बातों से देश के सम्मान पर चोट पहुँचती है."

सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता, ने अपने ट्वीट में लिखा है, "आंदोलनजीवी? लोग अपनी ज़िंदगियाँ बचाने और सुरक्षा के लिए, ज़्यादा अवसरों और बेहतर आजीविका के लिए विरोध-प्रदर्शन करते हैं. आंदोलनकारी देशभक्त हैं, परजीवी नहीं. जो लोग प्रदर्शनों की ताक़त से सत्ता हथिया लेते हैं, वे परजीवी होते हैं."

अखिलेश यादव : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने ट्वीट किया है, "आंदोलनों से स्वतंत्रता पाने वाले देश में आंदोलनरत किसानों-नागरिकों को 'आंदोलनजीवी' जैसे आपत्तिजनक शब्द से संबोधित करना हमारे देश के क्रांतिकारियों एवं शहीदों का अपमान है. आज़ादी के आंदोलन में दोलन करने वाले आंदोलन का अर्थ क्या जाने. भाजपा शहीद स्मारक पर जाकर माफ़ी माँगे!"

पीएम की टिप्पणी पर कई लोगों ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स में नाम के आगे 'आंदोलनजीवी' जोड़ लिया है.

कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग के राष्ट्रीय संयोजक सरल पटेल ने लिखा है, "आप आंदोलनजीवी हैं या सावरकरजीवी?"

स्रोत - https://www.bbc.com/hindi/social-55991847

विश्व स्तर पर किसान आंदोलन को समर्थन

भारत में पिछले ढाई महीनों से नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जारी किसान आंदोलन दुनियाभर में लोगों का ध्यान आकर्षित करता जा रहा है. कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों में प्रवासी भारतीय किसानों के पक्ष में रैलियाँ कर रहे हैं और भारतीय मूल के और स्थानीय नेता भारत में आंदोलन कर रहे किसानों के पक्ष में बयान दिए जा रहे हैं. [11]


पिछले दिनों अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना का किसानों के पक्ष में एक ट्वीट इस विरोध प्रदर्शन को वैश्विक सुर्खियों में ले आया. ट्विटर पर रिहाना के 10 करोड़ से अधिक फ़ॉलोअर्स हैं. इस ट्ववीट ने विरोधों की रूपरेखा को बड़ा कर दिया और इसे दुनिया भर में हाई-प्रोफ़ाइल हस्तियों से समर्थन प्राप्त हुआ. इसके तुरंत बाद युवा पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग ने अपने एक ट्वीट से किसानों के साथ "एकजुटता" का संकल्प लिया. अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने भी किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त की. इस पर भारत में काफ़ी हंगामा हुआ. बॉलीवुड और खेल के मैदान के सेलिब्रिटीज ने अपनी प्रतिक्रिया दी और भारत सरकार के पक्ष में ट्वीट किए.[12]

किसान आंदोलन के समर्थन की आवाज़ कैलिफ़ोर्निया के एक छोटे शहर में भी सुनाई दी. रविवार को सुपर बोल कहे जाने वाले नेशनल फुटबॉल लीग चैंपियनशिप के अंतिम गेम और अमेरिका के सबसे लोकप्रिय खेल प्रतियोगिता को 12 करोड़ लोगों ने टीवी पर देखा. खेल शुरू होने से पहले कमर्शियल ब्रेक के दौरान कैलिफ़ोर्निया के फ्रेस्नो काउंटी में 30 सेकंड का एक विज्ञापन प्रसारित किया गया, जिसमें भारतीय कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे भारतीय किसानों के विरोध प्रदर्शन को दिखाया गया. कैलिफ़ोर्निया के कृषि उत्पाद के लिए चर्चित फ्रेस्नो शहर के मेयर जेरी डायर ने इस वीडियो विज्ञापन में किसानों के आंदोलन का समर्थन किया.[13]


गुरप्रीत सिंह पिछले 30 सालों से पत्रकार हैं और पिछले 20 सालों से कनाडा में आबाद हैं. वो किसानों के आंदोलन के पक्ष निकलने वाली रैलियों में हिस्सा लेते हैं. वैंकुवर के नज़दीक सरी के इलाक़े में शाम में तीन घंटे के लिए भारतीय किसानों के आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए रोज़ प्रदर्शन होता है, जिसमे 200-250 लोग भाग लेते हैं. [14]

तिरंगा रैली: कनाडा के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी भारतीय किसानों के समर्थन में रैलियाँ दिसंबर से ही निकल रही हैं, जो अक्सर भारतीय दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शन में ख़त्म होती हैं. रॉयटर्स न्यूज़ एजेंसी ने अपनी एक हाल की रिपोर्ट की सुर्खी कुछ इस तरह से दी: "सिख प्रवासी भारत में किसानों के आंदोलन के लिए वैश्विक समर्थन हासिल कर रहे हैं". लेकिन पिछले कुछ दिनों से भारत सरकार और कृषि क़ानूनों के पक्ष में भी रैलियाँ निकाली जा रही हैं. शनिवार को भारतीय मूल की कुछ संस्थाओं ने वैंकुवर में एक रैली निकाली, जिसमें 350 कारें शामिल थीं. इस रैली को तिरंगा रैली का नाम दिया गया. स्थानीय मीडिया में इसमें शामिल होने वाले लोगों ने कहा कि गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में जो कुछ हुआ था, उस पर यहाँ के भारतीय समुदाय में इतना ग़ुस्सा था कि उन्हें कुछ करना ही था. भारत सरकार के समर्थन में लोगों ने कनाडा में विरोध प्रदर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि हर दिन यह यहाँ हो रहा है. यह बहुत परेशान करने वाला है. लेकिन पत्रकार गुरप्रीत सिंह के अनुसार तिरंगा रैली में शामिल लोग बहुत कम संख्या में हैं, जबकि किसानों के समर्थन में रोज़ निकाली जाने वाली रैलियों में संख्या कहीं अधिक होती है और इसमें हर समुदाय के लोग शामिल हैं. [15]

भारत में जारी किसान आंदोलन का समर्थन विदेश में केवल भारतीय मूल के लोगों तक सीमित नहीं रहा है. ये अब कनाडा की राष्ट्रीय सियासत में एक मुद्दा बन चुका है. बात आगे बढ़ चुकी है. टोरंटो में वरिष्ठ पत्रकार गुरमुख सिंह का कहना है कि दिसंबर के पहले हफ़्ते में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के किसान आंदोलन के समर्थन वाले बयान के बाद देश के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन का बयान आया और इसके बाद कनाडा की ख़ास विपक्षी दल नई डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष जगमीत सिंह का भी किसानों के समर्थन में बयान आया. [16]

उधर ब्रिटेन में 36 सांसदों ने देश के विदेश मंत्री डोमिनिक राब को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमे कहा गया है कि ब्रिटेन की सरकार किसानों के मसले के हल को निकालने के लिए भारत सरकार से बात करे. इसके अलावा इस मुद्दे पर एक याचिका पर एक लाख से अधिक हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसे ब्रिटेन के पार्लियामेंट को भेजा गया है ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो. ब्रिटेन में अगर किसी याचिका पर एक लाख से अधिक संख्या में हस्ताक्षर किए जाते हैं, तो उस पर संसद में चर्चा होना लाज़मी है.[17]

भारत का विदेश मंत्रालय विदेश में होने वाली रैलियों और विदेशी नेताओं द्वारा दिए गए बयानों को देश के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप मानता है. प्रधानमंत्री ट्रूडो के बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया तीखी थी और कनाडा से कहा गया कि वो भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करे. [18]

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, "पहली बात तो ये है कि आज दुनिया एक ग्लोबल विलेज है. किसी भी देश में घटना घटती है, तो कोई भी अपने विचार रख सकता है. अब जैसे बर्मा वाली घटना में हमारे देश से ट्वीट किए गए. कोई मंदिर टूट जाए पाकिस्तान में, तो हम कूदते हैं. बांग्लादेश में हिंदुओं का दमन हो, तो हम उछलने लगते हैं. ये कभी आपके पक्ष में हो सकता है, कभी आपके ख़िलाफ़ भी हो सकता है. इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए." [19]

कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि सारा देश इस मुद्दे को लेकर चिंतित है. इस मुद्दे का समाधान जरुरी है ताकि किसान अपने घर जा सकें. देवेंद्र शर्मा ने कहा कि अमेरिका में 1979 में एक आंदोलन हुआ था. उस वक्त भी हजारों ट्रैक्टर वॉशिंग्टन डीसी में आए थे. उस वक्त भी किसान गारंटेड इन्कम मांग रहे थे कि उन्हें कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन के ऊपर प्रॉफिट मिले. लेकिन वहां की सरकार ने ऐसा नहीं किया और आज वहां छोटे किसान खेती से बाहर हो गये हैं. मैं यह जानना चाहता हूं कि ये जो रिफॉर्म्स दुनिया में जहां कहीं भी लाए गए हैं वहां कहां ऐसा हुआ है कि इससे छोटे किसानों को मदद मिली है. छोटे किसान बिल्कुल ही किसानी से बाहर हो जाएंगे.

वर्ल्ड की मशहूर सिंगर Lilly ने संगीत के सबसे बड़े अवार्ड समारोह Grammy अवार्ड्स में किसानों की आवाज़ उठा कर एक बार फिर से भारतीय किसान प्रोटेस्ट को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया.

26 मई 2021 को काला दिवस मनाया

26 मई 2021 को किसानों ने किसान आन्दोलन के 6 माह पूरे होने पर काला दिवस मनाया है।

मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत 5.9.2021

Kisam Mahapanchayat Muzaffarnagar.5.9.2021.jpg

मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में रविवार दिनांक 5.9.2021 को केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने महापंचायत आयोजित की। इस महापंचायत में शामिल होने के लिए यूपी के अलावा पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे 15 राज्यों से किसान जुटे. महापंचायत में सैकड़ों की संख्या में महिलाएं भी आईं हैं. यहां आईं महिलाओं ने केंद्र सरकार से तीनों कानूनों की वापसी की मांग की है. इस महापंचायत में देशभर से आए लाखों किसानों ने तय किया कि राज्य के हर जिले में संयुक्त मोर्चा का गठन कर आंदोलन को धार दी जाएगी. किसानों का उमड़ा सैलाब देख किसान नेताओं ने कहा कि यह मोदी सरकार के लिए सिर्फ वार्निंग सिग्नल है या तो रास्ते पर आ जाओ, नहीं तो किसान 2024 तक आंदोलन करने को भी तैयार हैं. उन्होंने कहा कि किसानों की मांगें नहीं मानी तो बंगाल की तर्ज पर यूपी में योगी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. राकेश टिकैत ने कहा कि पूरे यूपी में आने वाले दिनों मे ऐसी 8-10 महापंचायतें की जाएंगी.

किसान महापंचायत में कृषि कानूनों की वापसी, एमएसपी की गारंटी, गन्ना मूल्य बढ़ोत्तरी की मांग उठाई. रेलवे, एयरपोर्ट, बैंक व बीमा समेत सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर कड़ा विरोध जताया.

पश्चिमी यूपी के जाटलैंड कहे जाने वाले मुजफ्फरनगर की महापंचायत से किसानों ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव में बीजेपी को वोट से चोट देने का खुला ऐलान कर दिया है. पिछले दो दशक में जब-जब मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत जिस सरकार के खिलाफ हुई, उसे सत्ता से विदा होना पड़ा है.

भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र मलिक बताते हैं, हम महापंचायत तक ही सीमित नहीं रहेंगे. महापंचायत के बाद अब मंडल स्तरों पर 18 बड़ी बैठकें होंगी.

किसान नेताओं ने महापंचायत में 4 बड़े फ़ैसले किए.

  • 1. 7 सितंबर 2021 को हरयाणा के करनाल में लाठी चार्ज के खिलाफ़ महापंचायत आयोजित करना,
  • 2. 9-10 सितंबर 2021 को लखनऊ में मीटिंग आयोजित करना,
  • 3. 15 सितंबर 2021 को राजस्थान के जयपुर में किसान संसद आयोजित करना,
  • 4. 27 सितंबर 2021 को भारत बंद का आव्हान

मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत 5.9.2021 की झलकियाँ

Muzaffarnagar Kisan Mahapanchayat.5.9.2021

Rakesh Tikait in Muzaffarnagar Kisan Mahapanchayat.5.9.2021

Anthused by the success of the Kisan Mahapanchayat held under the banner of Samkyut Kisan Morcha (SKM) in Muzaffarnagar on Sunday, the farmers of western Uttar Pradesh have decided to oppose Bharatiya Janata Party (BJP) leaders travelling to their constituencies ahead of the 2022 Assembly elections.

Inspired by the strategy of their counterparts in Punjab and Haryana, the farmers of western UP will block roads leading to venues of BJP leaders’ election speeches or events and demand from the Centre to support the farmers’ movement and withdraw the three agricultural laws. BJP leaders who do not agree to their demands will be barred from entering their venues. Farmers will also show black flags to BJP leaders during their speeches and events.

Though the plan could be implemented on Bharat Bandh, called by the farmers on September 27, the strategy will be decided during a meeting of the SKM in Lucknow on September 9-10.

Union minister of state animal husbandry, dairy and fisheries Sanjeev Balyan, an MP from Muzaffarnagar, was recently forced to abandon a meeting with Khap leaders in Shamli district in the face of protests by farmers. Balyan and other BJP leaders, including Suresh Rana, had to beat a hasty retreat from Bhainswal village, where they were scheduled to “educate farmers about the benefits of the newly enacted farm laws”.

Farmers protesting the farm laws have also decided to free the toll plazas at multiple places after September 27 to mount pressure on the government. Private companies and factories and fuel stations are also on their radar.

The farmer leaders made it amply clear that they would campaign against the ruling BJP in the Assembly elections if their demands are not accepted. “Following the footprints of farmers in Punjab and Haryana, western Uttar Pradesh peasants will gather at several toll plazas on September 27 and allow free passage to vehicles unless the Centre accepts our demands. Demonstrations will be held at toll plazas on national highways,” an organiser requesting anonymity told Newsclick.

The farmers’ movement has so far been most effective in western UP. Now, farmers are planning to strengthen it in the districts of Purvanchal. Public meetings will be held at the village, block and district levels so that maximum number of farmers can join it. Farmer leaders from all over the country will travel to UP to address the people, Harinam Singh Verma, state vice-president, Bharatiya Kisan Union told Newsclick.

The BJP’s 2014 election campaign in UP gained momentum after the 2013 Muzaffarnagar riots. But the recent bonding between Muslims and Jats during the ongoing farmers’ protests could dent the BJP vote base in the polls.

Source - Abdul Alim Jafri, 07 Sep 2021, News Click

करनाल में किसान महापंचायत 7.9.2021

करनाल में किसान महापंचायत 7.9.2021
करनाल में किसान महापंचायत 7.9.2021

7 सितंबर 2021 को हरयाणा के करनाल में लाठी चार्ज के खिलाफ़ महापंचायत आयोजित की गई। करनाल और पड़ोसी जिलों के हजारों किसानों ने जिला प्रशासन से बातचीत के विफल होने के बाद मंगलवार से ही शहर में लघु सचिवालय की घेराबंदी कर रखी है। आक्रोशित किसान एसडीएम आयुष सिन्हा को निलंबित करने और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग कर रहे हैं।

मंगलवार को करनाल अनाज मंडी में किसानों के आने पर किसान नेताओं ने महापंचायत को सूचित किया कि उन्हें जिला प्रशासन से बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया है और बैठक के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। किसानों ने सहमति व्यक्त की कि वे अपनी मांगों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हुए कानून और व्यवस्था को चुनौती नहीं देंगे। परन्तु ये बातचीत विफल रही इसके बाद किसानों ने सचिवालय कूच किया और फिर उसके बाद दो और दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला।

किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ज़िद पर अड़ी है और किसानों की मांग पर विचार तक नहीं कर रही है। इसके बाद किसानों ने रात में वहीं डेरा डाल दिया जिसके बाद रात में प्रशासन ने एक बार फिर बातचीत न्यौता भेजा लेकिन किसानों ने साफ़ किया वो रात में कोई बात करेंगे। जिसके बाद आज यानी बुधवार दोपहर दो बजे के करीब एकबार फिर किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल जिला प्रशासन से मिलने गया है। हालाँकि सूत्रों की मने तो सरकार भारी दबाव में है और वो सिन्हा को सस्पेंड कर परे मसले पर एक न्यायिक जाँच बिठा सकती है।

किसानों का आरोप है कि 28 अगस्त 2021 को शांतिपूर्ण किसानों के खिलाफ प्रशासनिक हिंसा में एक किसान सुशील काजल शहीद हो गए और कई किसान घायल हुए। उस समय हरियाणा सरकार को एसडीएम सिन्हा और अन्य अधिकारियों, जो किसानों के ‘सर फोड़ने’ का आदेश देते हुए देखे गए थे। उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई करने का अल्टीमेटम जारी किया गया था। किसानों ने मांग की थी कि अधिकारियों को बर्खास्त किया जाए और एसडीएम आयुष सिन्हा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाए, साथ ही शहीद काजल के परिवार को 25 लाख रुपये और राज्य हिंसा में घायल हुए किसानों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। अल्टीमेटम की समय सीमा 6 सितंबर तक थी, जिसके बाद किसानों ने लघु सचिवालय का घेराव करने की चेतावनी दी थी।

चूंकि खट्टर सरकार ने किसानों की मांगों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है,और इसके बजाय एसडीएम की कार्रवाई का समर्थन किया है, किसानों ने विरोध के लिए अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने का फैसला किया। इसी सिलसिले में मंगलवार को करनाल की अनाज मंडी में एक महापंचायत का आयोजन हुआ। किसान अनाज मंडी में जुटे और फिर लघु सचिवालय का घेराव करने के लिए आगे बढे। जिसे शुरआत में प्रशासन ने रोकने का प्रयास किया और पानी की बौछार भी की लेकिन वो किसानों की संख्या और हौसले के सामने टिक न सका और किसान सचिवालय पहुँच गए। हज़ारों हज़ार किसानों ने रात में भी अपना घेराव जारी रखा है। इस बीच सचिवालय के सामने ही किसानों ने अपने टेंट गाड़ दिए।

किसान संगठनों ने कहा कि एक शर्मनाक और कायरतापूर्ण कृत्य में, करनाल के जिला प्रशासन ने क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी है और इंटरनेट बंद कर दिया है, और प्रदर्शनकारियों पर आईपीसी की धारा 188 के तहत मामला दर्ज करने की धमकी दी है। एसकेएम ने कहा कि इन दमनकारी कदमों से उन किसानों का हौसला नहीं टूटेगा, जिन्होंने पिछले 10 महीनों से इस अत्याचार को झेला है।

अत्यधिक आवेशपूर्ण माहौल में, किसानों के साथ बातचीत से पता चलता है कि हाल के महीनों में राज्य सरकार के साथ टकराव की एक श्रृंखला के बाद एक अविश्वास गहरा गया है। पिछले कुछ महीनों में कई मुद्दों को लेकर किसान फतेहाबाद, हिसार और सिरसा में राज्य सरकार के साथ पहले ही आमना-सामना हो चुका है।

स्थानीय ग्रामीणों और करनाल के दो गुरुद्वारे निर्मल कुटिया एंव डेरा कारसेवा ने वहां मौजूद किसानों और ड्यूटी कर रहे जवानों के खाने के लिए लंगर पहुंचाया। इस घेराव को देखते हुए प्रशासन ने करनाल के साथ-साथ कुरुक्षेत्र, कैथल, पानीपत और जींद में सोमवार रात 12 बजे से मंगलवार रात 12 बजे तक इंटरनेट बंद किया गया था।

हरियाणा के सहाबाद के सुलखानी से यात्रा कर करनाल पहुंचे सवर्णा सिंह नंबरदार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें अब मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के वादों पर विश्वास नहीं है। उन्होंने कहा, "हमने कभी नहीं सोचा था कि स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी और हमें इतनी बार सड़कों पर उतरना होगा।" यह पूछे जाने पर कि जब उन्होंने लाठीचार्ज के दृश्य पहली बार देखे तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी, उन्होंने कहा, “बहुत बुरा लगा। जब बातचीत से मामला सुलझाया जा सकता था तो उन्हें इतनी बेरहमी से क्यों पीटा गया? किसानों ने हथियार नहीं उठाए।”

नंबरदार ने कहा कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में शामिल होना अपनी जमीन बचाने के लिए उनका अंतिम उपाय था।

आगे उन्होंने कहा “अगर अनुबंध खेती लागू हो जाती है, तो हम एक समय बाद जमीन के मालिक नहीं रहेंगे। सरकार पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि 2022 तक कृषि आय दोगुनी हो जाएगी। हम समय से केवल तीन महीने दूर हैं। क्या हमारी आमदनी दोगुनी हो गई है? उन्होंने यहां बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया है। क्या इसमें पैसा नहीं लगता है? वे इसका इस्तेमाल रोजगार पैदा करने के लिए कर सकते थे। ऐसे में मुझे उस दिन से डर लगता है जब मेरे बच्चे कहेंगे कि हमने उनके लिए कोई जमीन नहीं छोड़ी। वे अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे?”

कैथल से आई एक महिला प्रदर्शनकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे अपनी मांगों पर अडिग हैं और पूरी होने तक घर नहीं जाएंगी। उन्होंने कहा, 'हम देखना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी के पास हमारे लिए जेलों में कितनी जगह है।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि प्रशासन अधिकारी और उसके आपराधिक आचरण का बचाव करता रहा। “हमने उनसे स्पष्ट रूप से तीन बार पूछा कि क्या वे अपराधी अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर रहे हैं। वे कहते रहे कि उनकी बातें अनुचित थीं। यह किसी भी बातचीत का आधार नहीं हो सकता। अगर वे अड़े रहते हैं, तो हम भी अपने उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

पुलिस ने कल, मंगलवार को किसान नेता राकेश टिकैत, बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढूनी, विकास शिशर, इंद्रजीत सिंह सहित मोर्चे के अन्य नेताओं को हिरासत में लिया था। परन्तु कुछ ही देर में रिहा कर दिया।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के नेता इंद्रजीत सिंह ने न्यूज़क्लिक से कहा कि “प्रशासन अतार्किक तर्कों से बचाव कर रहा है। उन्होंने कहा, "एक बच्चा भी बता पाएगा कि अधिकारी ने जो किया वह सेवा नियमों और संविधान के खिलाफ था, और उसका बचाव नहीं किया जा सकता है। अगर कोई पीड़ित परिवार 25 लाख रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी और घायलों को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग कर रहा है तो हम चांद नहीं मांग रहे हैं। किसान समाधान चाहते हैं लेकिन प्रशासन इसमें देरी कर रहा है।"

मोर्चा ने एक बयान में कहा, "किसान दृढ़ संकल्प के साथ खड़े हैं, और सरकार हत्या करके बच नहीं सकती है। हम विरोध के पीछे मजबूती से खड़े हैं और हरियाणा सरकार के कार्यों की निंदा करते हैं। किसान सीएम मनोहर लाल खट्टर को सबक सिखाएंगे”।

इस बीच 27 सितंबर को होने वाले भारत बंद की तैयारियां जोरों पर हैं। देशभर में तैयारी बैठकें हो रही हैं। बिहार में किसान संघ 11 सितंबर को पटना में अधिवेशन करेंगे। मध्य प्रदेश में 10 सितंबर तक सभी तैयारी बैठकें पूरी कर ली जाएंगी, जिसके बाद बंद के लिए समर्थन जुटाने के लिए किसान संघ की बैठकें होंगी। उत्तर प्रदेश में एसकेएम के मिशन उत्तर प्रदेश कार्यक्रम के लिए 9 सितंबर को लखनऊ में एसकेएम की बैठक होगी।

स्रोत - न्यूज़क्लिक रिपोर्ट 08.Sep.2021

जयपुर में किसान संसद - 15.9.2021

जयपुर के बिरला ऑडिटोरियम में बुधवार 15.9.2021 को आयोजित 'किसान संसद' में किसानों ने केन्द्र सरकार द्वारा लागू किये गये नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर राजस्थान के किसान मोर्चा की ओर से आयोजित 'किसान संसद' में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में भाग लेने आये किसानों ने किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक पर विस्तार से चर्चा की और अपने विचार रखे।

किसान मोर्चा के एक प्रतिनिधि हिम्मत सिंह ने बताया कि केन्द्र द्वारा लागू कृषि कानूनों से होने वाले नुकसान पर प्रकाश डाला गया और किसानों ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। किसान संसद की चर्चा के अंत में अध्यक्ष ने मतदान करवाया और सभी ने सर्वसम्मति से कृषि कानूनों को खारिज कर दिया।

वहीं, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि केन्द्र सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए और समाधान करना चाहिए। कृषि कानून वापस लिये जाने चाहिए। गहलोत ने ट्वीट के जरिये कहा, "अनुशासन के साथ और जिस रूप से तमाम परेशानियों के बावजूद बिना उम्मीद खोए किसान कई महीनों से संघर्ष कर रहे हैं इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।"

स्रोत: नवभारत टाइम्स 15.9.2021

सीतापुर महापंचायत - 20.9.2021

सीतापुर किसान महापंचायत - 20.9.2021

लखनऊ से सटे सीतापुर में 20 सितम्बर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आर एम पी इंटर कॉलेज के मैदान में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया जिसमें सीतापुर, बहराइच, लखीमपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, हरदोई समेत उत्तराखंड के रुद्रपुर जिले से आए हजारों किसानों ने शिरकत की जिसमें महिला पुरुष दोनों शामिल थे।

महापंचायत में राकेश टिकैत, मेधा पाटकर, डॉ. सुनीलम, संदीप पाण्डेय समेत कई किसान संगठनों के नेता पहुंचे थे।

अवध में दस्तक के बाद पूर्वांचल की राह पकड़ेगा किसान आंदोलन। पूर्वांचल के जिलों के लिए यह आंदोलन ख़ास मायने रखता है क्योंंकि पश्चिमी यूपी की तरह न तो यहां कोई सशक्त किसान संगठन है जो किसानों के सवालों के लिए लड़ता रहे और न ही यहां पश्चिमी यूपी की तरह अनाज मंडियां है और न ही यहां किसान को अपनी फसल का उचित दाम मिल पाता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होता हुआ यह किसान आंदोलन अब अवध पहुंच चुका है इसके बाद पूर्वांचल तक जाएगा। तो कुल मिलाकर योगी सरकार के लिए यह किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती बन चुका है। पूर्वांचल के जिलों के लिए यह आंदोलन खास मायने रखता है क्योंंकि पश्चिमी यूपी की तरह न तो यहां कोई सशक्त किसान संगठन है जो किसानों के सवालों के लिए लड़ता रहे और न ही यहां पश्चिमी यूपी की तरह अनाज मंडियां है और न ही यहां किसान को अपनी फसल का उचित दाम मिल पाता है।

स्रोत: सरोजिनी बिष्ट, न्यूज क्लिक, 21.9.2021

भारत बंद - 27.9.2021

भारत बंद - 27.9.2021 का दृश्य दिल्ली

किसान आंदोलन के द्वारा 27.9.2021 को किए गए भारत बंद को भरपूर समर्थन मिला है। विपक्षी दल भी इसके साथ रहे। हर राज्य से बंद की सफलता के समाचार हैं। मज़दूरों, छात्र-युवा, महिलाओं सभी ने किसानों के साथ भरपूर एकजुटता दिखाई। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के 10 महीने पूरे होने पर किसानों ने सोमवार 27.9.2021 को 10 घंटे के लिए भारत बंद किया। भारत बंद को भारी जन समर्थन मिला। अधिकांश स्थानों पर समाज के विभिन्न वर्गों की सहज भागीदारी देखी गई।

बंद और इसके साथ होने वाले कई कार्यक्रम के बारे में, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पांडिचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल से सैकड़ों स्थानों से रिपोर्ट आई हैं। किसान मोर्चा ने अपने बयान में कहा कि इस बंद के आह्वान को पहले की तुलना में अधिक व्यापक जनसमर्थन मिला है। लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने बंद को बिना शर्त समर्थन दिया, और वास्तव में साथ आने के लिए उत्सुक थे।

श्रम संगठन एक बार फिर किसानों और श्रमिकों की एकता का प्रदर्शन करते हुए किसानों के साथ थे। विभिन्न व्यापारी, व्यापारी और ट्रांसपोर्टर संघ, छात्र और युवा संगठन, महिला संगठन, टैक्सी और ऑटो यूनियन, शिक्षक और वकील संघ, पत्रकार संघ, लेखक और कलाकार, महिला संगठन और अन्य प्रगतिशील समूह इस बंद में देश के किसानों के साथ मजबूती से खड़े थे। अन्य देशों में भी प्रवासी भारतीयों द्वारा समर्थन में कार्यक्रम आयोजित किए गए।

एसकेएम ने बंद के दौरान पूर्ण शांति की अपील की थी और सभी भारतीयों से हड़ताल में शामिल होने का आग्रह किया था। और ये पूरा बंद शांन्तिपूर्ण ही रहा है। जिसे लेकर संयुक्त मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने देशभर में शान्तिपूर्वक बन्द को सफल बनाने के लिए किसान-मज़दूरों का धन्यवाद दिया।

राकेश टिकैत ने कहा कि तीन राज्यों का आंदोलन बताने वाले लोग आंख खोल कर देख लें कि पूरा देश किसानों के साथ खड़ा है। सरकार को किसानों की समस्या का समाधान करना चाहिए। किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक द्वार जारी बयान में कहा गया कि किसान 10 माह से घर छोड़कर सड़कों पर है लेकिन इस सरकार को न तो कुछ दिखाई देता है और नहीं सुनाई देता है ।

पंजाब और हरियाणा में नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, लिंक रोड और रेलवे ट्रैक सुबह से ही बंद कर दिए गए थे।

स्रोत: न्यूज़क्लिक रिपोर्ट 27.7.2021

Conference on Three Agri Laws at Jaipur - 29.9.2021

A seminar cum conference was organized under the auspices of Thakur Deshraj Memorial Trust (Intellectual Cell) on 29th September to discuss various issues arising out of the three Agri Laws which have led to the ongoing peaceful protests by farmers. Retired officers from army, judiciary, administrative services, police and social activist participated in the discussions.

Overwhelming view was that these laws in their present avatar shall not yield projected benefits for the farmers, that these laws raise more doubts than solving the problems of the farmers who remain perennially indebted and all the time live with uncertainty. Their fears and apprehensions are valid and need to be assuringly addressed .

Regarding MSP, three was unanimity that government should make law which ensures that every farmer, small or big, should get profitable price of his farm produce whether sold in a mandi or outside it, to government or anybody else.

All participants were of the view that government should shun its obdurate approach and solve the issues amicably. Present laws should be scrapped and a fresh consultative process should be started to formulate a view which is balancing to all and take care of the conflicting interests of all the stakeholders.

(Sahi Ram Choudhary and P R Dhayal)

स्वीटी बूरा ने एशियन चैंपिशनशिप में जीता कांस्य पदक, किसानों को किया समर्पित

Saweety Boora

हरियाणा की बॉक्सर स्वीटी बूरा (Saweety Boora) ने एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप दुबई में (Asian Boxing Championship Dubai) में कांस्य पदक जीता है. हरियाणा की बॉक्सर स्वीटी बूरा ने एक बार फिर प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है. स्वीटी बूरा ने दुबई में चल रही एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप (Asian Boxing Championship Dubai) में 81 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीता है. स्वीटी बूरा ने ये पदक किसान आंदोलन दौरान मारे किसानों को समर्पित किया है.

स्वीटी बूरा हिसार के एक किसान परिवार से संबंध रखती हैं. वो घिराय गांव की रहने वाली हैं. पिता महेंद्र सिंह खेती करते हैं. माता सुदेश देवी ग्रहणी हैं. स्वीटी ने नेशनल इंटरनेशनल स्तर पर कई पदक देश के लिए जीते हैं. स्वीटी बूरा इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप रसिया 2018 में भी गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.

मेडल जीतने के बाद स्वीटी बूरा ने प्रधानमंत्री को ट्वीट कर कहा कि 'मैंने अभी दुबई में 21 मई से 1 जून तक हो रही एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता है, मैं अपना मेडल हमारे शहीद हुए किसानों को समर्पित करती हूं और मैं हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi से अपील करती हूं कि वो किसानों की अपील सुनें और इस महामारी में भी इतने समय से बैठे किसानों के बारे में सोचें'.... बॉक्सर स्वीटी बूरा का ट्वीट

संदर्भ: E-TV Bharat, May 30, 2021

चुरू जिले की खेती-किसानी और किसानों की समस्याओं को विश्व-स्तर पर प्रकाश में लाया गया

फ्रांस का एक प्रतिष्ठित अख़बार है 'Le Monde' जिसका अंग्रेजी में अनुवाद होता है 'The World'. इसका अंग्रेजी में संक्षिप्त परिचय है - 'Le Monde' is a French daily afternoon newspaper. It is considered one of the French newspapers of record, along with Libération, and Le Figaro.

इस अख़बार की विश्व-विख्यात पत्रकार Sophie Landrin ने हाल ही में चुरू जिले की खेती-किसानी और किसानों की समस्याओं को जानने के लिए चुरू जिले के विभिन्न गाँवों का प्रवास किया था. इस प्रवास में उनके साथ प्रोफेसर एच.आर. ईसराण और मौलीसर बड़ा के राम रतन सिहाग (पूर्व सरपंच और भारतीय किसान यूनियन चुरू अध्यक्ष) रहे थे और किसानों से सीधा संवाद कराया. प्रोफेसर एचआर ईसराण ने किसानों की बातों को अंग्रेजी में अनुवाद कर समझाया तथा कृषि से लाभ-हानि के आँकड़े लेखक (लक्ष्मण बुरड़क) की निम्नलिखित केस-स्टडी से लिए गए थे. फ्रांस के इस प्रतिष्ठित अख़बार ने एक रिपोर्ट इस विषय में विस्तार से प्रकाशित की है- 'Au Rajasthan, la chaleur pousse les paysans à migrer' यह रिपोर्ट यहाँ संलग्न है (File:MLMQ-MLMQ 20211208 extrait.pdf)/(Report by Sophie Landrin in French Newspaper 'Le Monde') जिसमें चुरू जिले की कृषि पर वास्तविक समस्याओं और कृषि में होने वाली हानि को विस्तार से उजागार किया है और विश्व-समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है. किसान आंदोलन-2020 में यह एक सराहनीय और महत्वपूर्ण योगदान रहा.

खेती-किसानी और कृषि कानूनों तथा कृषि से लाभ का एक जमीनी विश्लेषण लेखक (लक्ष्मण बुरड़क) द्वारा jatland.com पर उपलब्ध कराया और लेखक (लक्ष्मण बुरड़क) के Face-book पेज पर भी प्रकाशित किया था। यह केस-स्टडी आप यहाँ देख सकते हैं -

https://www.jatland.com/home/Kheti-Kisani_Aur_Krishi_Kanunon_Ki_Jamini_Hakikat खेती-किसानी और कृषि कानूनों की ग्राउंड रिपोर्ट - गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरु राजस्थान की केस-स्टडी

https://www.jatland.com/home/Krishi_Se_Labh_Ka_Ek_Vishleshan कृषि से लाभ का एक जमीनी विश्लेषण - गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरु राजस्थान की केस-स्टडी

https://www.facebook.com/laxman.burdak.37/posts/6247120258663983 ‘खेती-किसानी और कृषि कानूनों की ग्राउंड रिपोर्ट - गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरू राजस्थान की केस स्टडी’ दिनांक 20 सितंबर-2021

https://www.facebook.com/laxman.burdak.37/posts/6657240000985338 कृषि से लाभ का एक जमीनी विश्लेषण - गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरु राजस्थान की केस स्टडी, दिनांक 04.12.2021

पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लिए:19.11.2021

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आखिरकार मोदी सरकार को किसानों की संगठित शक्ति के सामने झुकना पड़ा है। कृषि सुधार के नाम पर किसानों की कमर तोड़ने और कॉरपोरेट घरानों को कृषि सेक्टर में घुसकर लूट मचाने की खुली छूट देने की नीयत से बनाए गए तीन काले कृषि कानूनों को वापिस लेने (repeal) का एलान करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को मजबूर होना पड़ा है। 19.11.2021 को पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने की टीवी पर घोषणा की। यह किसान वर्ग की संगठित शक्ति की जीत है।

भारत का किसान आंदोलन - 2020 एक अभूतपूर्व शांतिपूर्ण आंदोलन के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया है।आजाद भारत का सबसे लंबा शांतिपूर्ण एवं अहिंसक आंदोलन जिसके आगे अहंकारी सत्ता को आखिरकार झुकना पड़ा है। भारत के किसानों की अहिंसक और शांतिपूर्ण आंदोलन की ताकत को दुनिया ने देखा और समर्थन किया।

दुनिया में शायद ही इतना लंबा और शांतिपूर्ण संघर्ष कभी चला हो!

आंदोलन पर सरकार और गोदी मीडिया ने धार्मिक, क्षेत्रीय, जातीय आंदोलन का टैग लगाकर इसे बदनाम करने की ख़ूब कोशिश की परन्तु किसान झुका नहीं!!

सरकार के अहंकार और हठ ने करीब 700 किसानों की जान ले ली। शहीद किसानों की शहादत को हम सलाम करते हैं !!!

विस्तार से यहाँ पढ़ें - फेसबुक पोस्ट प्रो. ईसरान, 19.11.2021

किसानों के संघर्ष की जीत, सरकार के अहंकार की हार

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तीनों कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ 26.11.2020 से दिल्ली में शुरू हुआ किसान आंदोलन गुरुवार 09.12.2021 को ख़त्म हो गया। केंद्र सरकार की ओर से किसानों की पाँच मांगों पर भेजे गए प्रस्ताव पर संयुक्त किसान मोर्चा ने सहमति दी और किसानों ने आंदोलन स्थगित करने का ऐलान किया। किसान नेता राकेश टिकैत ने बताया कि 11 दिसंबर-2021 से किसान दिल्ली छोड़ेंगे। इस प्रकार एक साल 13 दिन (378 दिन) तक चले किसान आंदोलन-2020 में आखिर जीत किसानों की हुई और सरकार ने अपनी नाकामियों को स्वीकार कर लिया!

  • तीनो कृषि कानून वापिस हुए।
  • पराली जलाने पर किसानों को अपराधी घोषित करने वाले क्लोज हटे।
  • बिजली बिल रुका और किसानों से बात करके ही भविष्य में लाने की घोषणा।
  • आंदोलन के दौरान दर्ज किए सभी मुकदमें वापिस।
  • आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों को मुआवजा।
  • एमएसपी गारंटी कानून का प्रारूप तैयार करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चे के साथ कमेटी का निर्माण

किसान आंदोलन-2020 ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे। सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच मांगों पर सहमति बनने के बाद इस आंदोलन की समाप्ति भी एक नया उदाहरण पेश कर रही है। 19 नवंबर 2021 को गुरू पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र को संबोधन में तीन कानूनों की वापसी की घोषणा, उसके बाद कानूनों को निरस्त करने की संसदीय प्रक्रिया का पूरा होना, संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच मांगों पर सहमति बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव का पत्र संयुक्त किसान मोर्चा को पत्र आंदोलन को इसकी परिणति तक ले गया। यह घटनाक्रम भी अपने आप में ऐतिहासिक बन गया है।  प्रधानमंत्री की अप्रत्याशित घोषणा के बावजूद, किसान नेताओं ने कहा है कि वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक कि संसद में कानूनों को औपचारिक रूप से निरस्त नहीं किया जाता है।

तीन विवादास्पद कृषि कानून इस प्रकार हैं:

• मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता

• किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा अधिनियम 2020,

• आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने का विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया गया। 29 नवंबर 2021 से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन यह प्रस्ताव पारित कर दिया गया। 

कृषि कानून निरस्त विधेयक, 2021 को दोपहर 12.09 बजे लोकसभा में पेश किया गया और दोपहर 12:13 बजे तक पारित कर दिया गया, जबकि विपक्ष ने चर्चा की मांग की थी।

दोनों सदनों में हंगामा भी हुआ, जिसने सितंबर 2020 में बिना किसी उचित चर्चा के विधेयकों को पारित किए जाने की याद दिला दी।

इसके बाद दोपहर दो बजे के बाद इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया। विपक्ष के हंगामे के बीच तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी कृषि विधि निरसन विधेयक 2021 को बिना चर्चा के ही राज्यसभा से भी ध्वनिमत से पास करा लिया गया।

11 दिसंबर 2021 को किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपने रहवास के लिए बनाए गए अस्थाई मोर्चों से अपने घरों को वापसी शुरू की। 378 दिन चला किसान आंदोलन देश और दुनिया के इतिहास में एक ऐसा मुकाम बना चुका है जिसके दोहराये जाने की कल्पना अभी संभव नहीं है। किसान आंदोलन-2020 में शहीद 709 किसानों को देश नमन करता है। लाखों बुजुर्गों को सलाम जो सर्दी,गर्मी,बारिश झेलते हुए डटे रहे। लाखों उन युवाओं का शुक्रिया जो जमीन से लेकर सोशल मीडिया,मीडिया के माध्यम से आंदोलन की आवाज को मुखर किया।उन धार्मिक संस्थाओं का विशेष आभार जिन्होंने पीने के पानी से लेकर खाने,रहने के इंतजाम किए। संयुक्त किसान मोर्चे के सभी अगुवाओं को सलाम जो तमाम मतभेदों को किनारे रखकर एक साल 13 दिन तक किसानी मुद्दों,किसानों की भावनाओं का बोझ कंधों पर सफलतापूर्वक लेकर चलते रहे। दुनियाँ के इतिहास में सबसे लंबा आंदोलन चलाकर जीत के साथ लौट रहे है इसलिए विश्व विजेताओं की तरह सम्मान होना चाहिए।

किसान आंदोलन-2020 से किसे क्या लाभ मिला?

26 नवम्बर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर चले किसान आंदोलन के दौरान किसानों ने कानून वापसी होने तक तरह-तरह की परेशानियों का सामना किया। सर्दी, गर्मी और बरसात के बीच उन्होंने खालिस्तानी आतंकवादी जैसे आरोप भी झेले। लेकिन किसान डटे रहे, वो जरा भी नहीं डिगे। 19 नवंबर को गुरू पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र को संबोधन में तीन कानूनों की वापसी की घोषणा, उसके बाद कानूनों को निरस्त करने की संसदीय प्रक्रिया का पूरा होना, संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच मांगों पर सहमति बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव का पत्र संयुक्त किसान मोर्चा को पत्र आंदोलन को इसकी परिणति तक ले गया। यह घटनाक्रम भी अपने आप में ऐतिहासिक बन गया है।

अब सवाल ये है कि इतने लंबे चले आंदोलन से किसानों ने क्या पाया और क्या खोया?

11 दिसंबर 2021 को किसान दिल्ली की सीमाओं पर लगे मोर्चों से अपने घरों को वापसी करेंगे। 378 दिन चला किसान आंदोलन देश और दुनिया के इतिहास में एक ऐसा मुकाम बना चुका है जिसके दोहराये जाने की कल्पना अभी संभव नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा जून, 2020 में अध्यादेशों के जरिये लाये गये तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग शांतिपूर्ण चले इस आंदोलन ने कई लोकतांत्रिक मूल्यों और अहिंसक विरोध की सफलता को मजबूती से दर्ज किया है। महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाला हाल के दशकों का यह सबसे बड़ा उदाहरण है। जिसके केंद्र में अहिंसा, धैर्यता और अपने मकसद की कामयाबी के लिए आंदोलनरत किसानों का भरोसा था। यह आंदोलन आजादी के पहले और उसके बाद से अभी तक के देश के सभी किसान आंदोलनों के मुकाबले समग्रता और अपने उद्देश्यों को हासिल करने वाला सबसे सफल आंदोलन माना जा सकता है। आजाद भारत के इतिहास में बहुत कम ऐसे आंदोलन हुए हैं जो इतने कामयाब रहे और किसान आंदोलन उनमें से एक है. किसानों ने सरकार को ना सिर्फ तीन कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर किया बल्कि सरकार को किसानों के ऊपर दर्ज किये मुकदमे भी वापस लेने पड़े. इस आंदोलन ने प्रधानमंत्री के अहंकार को तोड़ा है.

स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस तरह का शायद ही कोई दूसरा उदाहरण है जिसमें किसी एक सरकार द्वारा लागू किये गये कानूनों को इतने कम समय में निरस्त किया गया हो। इस आंदोलन की दूसरी प्रमुख मांग एमएसपी पर कानूनी गारंटी का कानून बनेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन किसानों के बीच एमएसपी की अहमियत और उसके जरिये किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम को लेकर ऐसी जागरूरता पैदा हो गई है कि यह सरकार की कृषि नीति के केंद्र में रहने वाले सबसे अहम मुद्दा बन गया है।

खाप पंचायतों ने इस आंदोलन के दौरान साबित किया वह किसान आंदोलन को ऊर्जा देने वाली एक अहम व्यवस्था है। वहीं गुरुद्वारों के लंगर और सिख समुदाय की कम्यूनिटी सर्विस इस आंदोलन के ऐसे पक्ष हैं जिसने आंदोलन को खड़ा रखने वाली रीढ़ का काम किया। वहीं पंजाब और हरियाणा के मुख्यधारा के गायकों और लोक गायकों व संस्कृति कर्मियों ने आंदोरनरत युवाओं, बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं के बीच लगातार अपनी मांगों के लिए डटे रहने की भावनात्मक ताकत देने का काम किया। जो अभी तक के किसी आंदोलन में इतने व्यापक स्तर पर देखने को नहीं मिला था।

भारत में ही नहीं किसान आंदोलन को विदेशी हस्तियों का भी साथ मिला. पॉप स्टार रिहाना से लेकर ग्रेटा थनबर्ग तक ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया और इसके अलावा विदेशों में रहने वाले भारतीयों से भी किसानों को समर्थन मिला. इसके अलावा ब्रिटेन में लेबर पार्टी, लिबरल डेमोक्रेट और स्कॉटिश नेशनल पार्टी के सांसदों ने किसानों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और कंज़रवेटिव विपक्ष के नेता एरिन ओ' टूले ने भी इन विरोध प्रदर्शन पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता जताई थी. किसानों ने क्या खोया?

सरकार ने किसानों की बात मानी है, आंदोलन सफल रहा, लेकिन इसके लिए किसानों ने भारी कीमत अदा की है.  आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों ने जान गंवाई है. क्या इस लंबे आंदोलन के दौरान जो सात सौ से ऊपर कुर्बानियां दी गईं, किसान उन्हें इतनी आसानी से भूल जाएंगे? बिल्कुल नहीं।

378 दिन चले इस जनान्दोलन की ढेर सारी उपलब्धियां हैं.  इस किसान आन्दोलन में भी सामंती नेतृत्वकर्ता मांग पूरी होने से पहले ही समझौता करके घर-वापसी करना चाहते थे मगर इतना भारी जनदबाव था कि कानून वापसी से पहले घर-वापसी करने की हिम्मत नहीं जुटा सके. इस जनान्दोलन की सबसे बड़ी यही उपलब्धि रही कि जाति की सीमाओं को लांघते हुए किसान लामबंद होकर विरोध स्वरूप सड़क पर उतरकर एक मिशाल पेश करने में सफल रहे कि लोग एक जुट होकर अपनी मांगे मनवा सकते हैं.

यह आंदोलन सरकार को  क्या सिखाता है?

इस आंदोलन ने सरकार को सिखाया है कि कोई भी कानून बिना संवाद और विचार-विमर्श के पारित नहीं करना चाहिए. इस आंदोलन ने यह चेतावनी भी दी है कि कारपोरेटकरण जनहित में नहीं हैं, विशेषत: जब ये खाद्य सामग्री से जुड़ा हो क्योंकि किसानों की जीविका इस पर टिकी हुई है.

इस आंदोलन ने हमें ये भी सिखाया है कि इस तरह के आंदोलनों के समाधान अदालतों से नहीं निकल सकते.

किसान आंदोलन-2020 से किसे क्या आर्थिक लाभ मिला?

किसान आंदोलन-2020 से किसी को भी कुछ भी आर्थिक लाभ नहीं मिला! सभी पक्षों को अपूर्णीय हानि हुई। सरकार को इस आंदोलन से निबटने में भारी कठिनाई हुई और अरबों रुपये का नुकसान हुआ। इस आंदोलन से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की गरीब हितैषी छवि तार-तार हो गई। भारत के सारे किसान वर्ग के समुदाय उनके खिलाफ हो गए। किसान वर्ग को बड़े किसान और छोटे किसान में बाँटने की योजना असफल हो गई। प्रधानमंत्री के बारे में यह छवि बन गई कि वह किसान विरोधी हैं क्योंकि पहले जमीन अधिग्रहण के अध्यादेश लाकर और अब तीन नए किसान कानूनों को अध्यादेश के माध्यम से लागू करके। इससे उनकी छवि को यह भी नुकसान हुआ कि वह संसदीय परंपराओं में विश्वास नहीं करते हैं। विश्व समुदाय में भी उनकी छवि तार-तार हुई क्योंकि वह एक एक संवेदनशील प्रधानमंत्री माने जाते रहे हैं। परंतु खुदकी ही जनता के खिलाफ इतने लंबे समय तक अड़े रहना उनकी छवि के लिए घातक सिद्ध हुआ।

किसान आंदोलन से उपजी परिस्थितियों में नए कृषि कानूनों के निरस्त होने से निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने की जो आशा बनी थी वह भी ध्वस्त हो गई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बड़े कॉरपोरेट घरानों ने कोरोना काल की आपदा का लाभ लेते हुये जो संरचना विकास किया उससे होने वाली हानि कहाँ से पूर्ति होगी?

किसान को भी कुछ भी आर्थिक लाभ नहीं मिला। किसान जहाँ से चले थे वहीं खड़े हैं। हां एक वर्ष से अधिक घर से बाहर सड़कों पर पड़े रहे। इससे जो भरी परेशानी हुई वह जरूर मिली। 700 से अधिक किसानों ने अपनी जान गवा दी और उनके परिवार वाले जो परेशान हुए वह कल्पना से बाहर है। किसानों को केवल एक सीख मिली कि आपदा और संघर्ष के समय एक बनकर लड़ो तो जीत होगी।

जनता लगातार एक वर्ष से अधिक समय तक धरने-आंदोलनों और प्रदर्शनों से होने वाली बाधाओं के कारण परेशान हुई वह अलग। जनता ने कोरोना काल की आपदा के साथ ही इस नई समस्या को भी झेला।

10 महीने बाद किसानों ने खोला मोर्चा

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10 महीने बाद किसानों ने खोला मोर्चा, लखीमपुर बना ‘मिनी पंजाब’; केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की मांग

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान संगठन धरने पर बैठ गए हैं। यह धरना 75 घंटे तक चलेगा। यह आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और टिकैत गुट के संयुक्त नेतृत्व में हो रहा है। मंडी समिति के जिस टीनशेड में खेतों से आने वाली फसलें रखकर बेची जाती थीं, वहां अब हजारों किसानों की रंगबिरंगी पगड़ियां नजर आ रही हैं। हिंसा मामले में न्याय देने समेत अन्य मांगों को लेकर केंद्र के खिलाफ फिर से बड़े स्तर पर किसान आंदोलन की शुरुआत की है। इस आंदोलन में भाकियू नेता राकेश टिकैत केसरिया पगड़ी में दिखे।

किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि दिल्ली के आंदोलन और तिकुनिया में हिंसा के बाद समझौतों के वादों से सरकार मुकर रही है। इस आंदोलन को 2024 के आम चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए हिंसा के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा मोनू के पिता केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को किसानों ने निशाने पर लिया है। आंदोलन का केंद्र यह जिला वेस्ट यूपी का अंतिम छोर है और टिकैत के प्रभाव के बावजूद पहले दिन ही वेस्ट यूपी के किसानों की भागीदारी कम रही। अधिकांश किसान पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से यहां पहुंचे हैं। जत्थों में पंजाब की महिलाओं की भी खासी तादाद है।

धरना शनिवार तक चलेगा। शौचालयों की व्यवस्था न होने पर टिकैत ने धमकी दी है कि अगर व्यवस्था नहीं हुई तो जिला मुख्यालय पर इस धरने को शिफ्ट करेंगे। मंच पर टिकैत के अलावा योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर, भाकियू एकता (उग्राहां) के जोगिंदर सिंह समेत कई नेता पहुंचे। एकता उगराहां के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां बताते हैं कि 2,000 किसान पहुंचे हैं। उधर, बीकेयू (दोआबा) के अध्यक्ष मनजीत सिंह राय का दावा है कि पंजाब के 10,000 किसान पहुंच चुके हैं।

किसानों की रिहाई के साथ बिजली बिल-2022 वापस लेने समेत कई मांगें: हिंसा में 4 किसानों और पत्रकार की हत्या में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर गिरफ्तार किया जाए। हिंसा को लेकर जेल भेजे गए किसानों की रिहाई। दिल्ली आंदोलन में दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं। सभी फसलों के ऊपर स्वामीनाथन कमीशन के फॉर्मूले से एमएसपी की गारंटी का कानून बने। बिजली बिल- 2022 वापस लिया जाए। सभी किसानों के कर्ज माफ हों। यूपी की चीनी मिलों से गन्ना किसानों का बकाया मिले।

आशीष मिश्रा को जमानत नहीं: हिंसा मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जमानत देने से इनकार कर दिया है। आशीष की याचिका खारिज कर कोर्ट ने 15 जुलाई को आदेश सुरक्षित रखा था।

टेनी के खिलाफ मोर्चा: हिंसा टेनी के इशारे पर हुई थी। वह 120 बी के आरोपी हैं। हमारा आंदोलन कमजोर नहीं पड़ेगा। हमने हाईकोर्ट से मंत्री पुत्र आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करवाई। सरकार पुलिस को कहे की वह टेनी को नामजद करे।

-राकेश टिकैत, भाकियू

संदर्भ - भास्कर - किसानों ने मोर्चा खोला:10 महीने बाद किसानों ने खोला मोर्चा, लखीमपुर बना ‘मिनी पंजाब’; केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की मांग

बढती लागत, घटते दाम, मजबूर किसान बना मजदूर

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एनएससो के सिचुएशन सर्वे एनालिसिस (एसएएस) के अनुसार पिछले 10 वर्षों में किसानों की कुल आमदनी में खेती से आय का प्रतिशत 48 से घटकर 37 रह गया, जबकि मजदूरी से आए 32 से बढ़कर 40% हुई है. सरकार जनमंचों से दावा करती रही की पहली बार एमएसपी की दरें किसान की लागत की 50% हैं. स्वयं कृषि लागत एवं कीमत आयोग (CACP) के आंकड़े का विश्लेषण बताता है कि इस काल में खेती में जिस दर से लागत बढी है उसके मुकाबले कृषि उत्पादों की कीमतें नहीं. यानी किसानों को लगातार खेती से घाटा हो रहा है. तो क्या एमएसपी की गणना गलत है क्योंकि इसकी दरें तो लागत को देखते हुए तय होती हैं. या दूसरा कारण यह हो सकता है कि एमएसपी पर सारा उत्पादन न बिकने के कारण किसान नीची दरों पर आढ़तियों को बेचने को मजबूर हो रहा है. आंकड़े बताते हैं कि गन्ने की खेती में लागत पिछले 10 वर्षों में 116% बढी जबकि कीमत मात्र 37.2%. कामोबेश यही हाल कपास, धान, गेहूं के साथ-साथ दलहन और तिलहन का भी रहा. यानी किसान पहले से गरीब हुआ है. जिसकी वजह से वह खेती पर निर्भर न रहकर पास के शहरों या कस्बों में जाकर मजदूरी कर अपना पेट पलता है. इसलिए किसान खेती छोड़ रहा है.

स्रोत: भास्कर जयपुर, सम्पादकीय 25.08.2023

एमएसपी की लीगल गारंटी

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"2024 के चुनाव से पहले मोदी जी को किसानों से किया एमएसपी की लीगल गारंटी देने का वायदा अवश्य पूरा कर देना चाहिए, वरना आंदोलन होगा और चुनाव में नुकसान भी। इस विषय को समझने के लिए 'इंडियन एक्सप्रेस' में छपे ये दो लेख अवश्य पढ़ें- एक 'भूपेंद्र हुडा जी' का है, और दूसरा उसी स्थान पर एक अन्य दिन छपा मेरा।"- चौधरी पुष्पेंद्र सिंह, 9811503033

Not quite Jai Kisan

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GOI on Sunday tightened restrictions on basmati exports. A minimum price for exports has been fixed at $1,200 per metric tonne. A contract below the floor price will be evaluated by a GOI committee for clearance. This move needs to be read in the context of two preceding moves to discourage rice exports. In July, exports of non-basmati white rice were prohibited. Subsequently, on August 25, GOI imposed a 20% export duty on parboiled rice. GOI’s explanation for Sunday’s decision is that it’s meant to prevent exporters circumventing rice export bans by misclassifying the product as basmati.

International rice prices are surging – FAO rice price index in July 2023 reached its highest level since September 2011. India has been the world’s biggest rice exporter for over a decade and the commodity makes up 18.5% of the country’s agri-export basket. In volume terms, non-basmati varieties dominate India’s rice exports. In addition to measures to discourage rice exports, GOI this month also imposed a 40% export duty on onions. The combined impact of these measures is that Indian farmers face an income cap at a time when the global demandsupply scenario is in their favour. Indian consumers, on the other hand, will benefit. ​ GOI’s attempt to put a lid on domestic food inflation makes sense. Controlling inflation is essential to ensuring India’s macroeconomic stability. However, it doesn’t have to come at the expense of farmers. The current approach makes it a zero-sum game, helping consumers at the expense of farmers. A way out is for GOI to mop up agricultural products singled out for export restriction or bans at an export parity price, which represents a price farmers would have got if they had been allowed to fulfil their export contracts. This stock can be offloaded in the market to keep prices under check. ​ It will impose a fiscal cost but any temporary measure can be offset through savings elsewhere, something that happens every year. There are long-term benefits to using export parity prices. Capping farm income in a good year has a negative impact on their willingness to support agricultural reforms. Reforms are characterised by upfront costs and benefits follow once the results show up. However, if farmers are apprehensive about policy instability, convincing them about reforms will be hard even if they are aware that the status quo is unsustainable.

Source - Times of India Editorial, Not quite Jai Kisan

कृषि उत्पादों के निर्यात पर सरकार के प्रतिबंध

28 अगस्त 2023 के टाइम्स आफ इंडिया के संपादकीय में किसानों के लिए एक समाचार छपा है जो कृषि उत्पादों के निर्यात पर सरकार के प्रतिबंध से संबंधित है. इसमें बताया गया है कि किसानों की आय पर किसप्रकार बहुत विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कृषि उत्पादों की बहुत ऊंची कीमत मिल रही हैं जिनसे किसानों को फायदा हो सकता था. परंतु निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से कृषि क्षेत्र के उत्पादन और किसान की आय पर पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ेगा. भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है परंतुचावल के निर्यात पर प्रतिबंध से किसानों को बहुत नुकशान हॉग. उल्लेखनीय है कि कृषि उत्पादन के निर्यात का लगभग 18.5% हिस्सा केवल चावल से ही है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों को कितना घाटा होने वाला है. इसी प्रकार किसानों ने पिछले समय में ₹5 किलो से प्याज बेचे थे परंतु अब जब बाजार में प्याज की कीमत मिलने लगी है तो निर्यात पर 40% एक्सपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी गई है. सरकार को इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और किसान हित में निर्णय लिए जाने चाहिए.

देश के अन्नदाता कैसे मजदूर बनते जा रहे हैं ?

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देश के अन्नदाता कैसे मजदूर बनते जा रहे हैं ?: आजादी मिली तो देश के कुल श्रम-बल का 70 फ़ीसदी मजदूर कृषि क्षेत्र में था, लेकिन जीडीपी में कृषि का योगदान 54 प्रतिशत था. राजनीतिक वर्ग ने किसानों को अन्नदाता तो कहना शुरू किया लेकिन उसके कल्याण की अनदेखी होती रही क्योंकि अनाज के दाम बढ़ना महंगाई यानी सरकार की विफलता मानी गई जो वोट की राजनीति के लिए अच्छी नहीं थी. नतीजतन 70 साल बाद भी कुल श्रम का 45% खेती से आजीविका पाता है, लेकिन कृषि का योगदान जीडीपी में घटकर 17-18% रह गया. ओईसीडी के आंकड़े के अनुसार दुनिया के तमाम देश खासकर चीन, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन 'उत्पादक सुरक्षा' के नाम पर अपने किसानों को जीडीपी के प्रतिशत का बड़ा हिस्सा देते हैं. 70 साल पहले देश में लगभग 72% खेतीहर होते थे और बाकी खेत-मजदूर. खेती अलाभकारी होने की वजह से वर्ष 2011 तक इनमें से हर तीसरा किसान खेती छोड़कर खेत मजदूर बन गया. वर्ष 2011 की जनगणना और वर्ष के एस ए एस के आंकड़ों की तुलना की जाए तो पिछले 12 वर्षों में किसानों की खेती में लागत बढ़ती गई जबकि उनकी फसलों के दाम उस अनुपात में कम होते गए, कर्ज बढ़ता गया. किसान खेती छोड़ देगा तो अंततः पूंजीपति ही खेती करेंगे लेकिन सरकार की चिंता होनी चाहिए कि फिर ये किसान कहां जाएंगे. (भास्कर, 30.03.2024)

Kisan Andolan 2024

शंभू बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसान

आंदोलनकारी किसानों की मांगें: आंदोलनकारी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश (C2+50%) को लागू करने, किसानों व कृषि मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफ करने, पुलिस में दर्ज मामलों को वापस लेने, लखीमपुर खीरी हिस्सा के पीड़ितों के लिए न्याय, भूमि अधिकरण कानून 2013 बहाल करने और पिछले आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं.

12 फरवरी 2024 की रात चंडीगढ़ में साढ़े 5 घंटे चली मीटिंग में किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) गारंटी कानून और कर्ज माफी पर सहमति नहीं बन पाई थी. इससे पहले 08 फरवरी 2024 को भी वार्ता हुई थी परन्तु सहमती नहीं बनी. किसान मजदूर मोर्चा के संयोजक सरवण सिंह पंधेर ने कहा- सरकार किसानों की मांगों को लेकर सीरियस नहीं है. उनके मन में खोट है. वह सिर्फ टाइम पास करना चाहती है. हम सरकार के प्रस्ताव पर विचार करेंगे, लेकिन आंदोलन पर कायम हैं.

उधर, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि बातचीत के जरिए सब बातों का हल निकलना चाहिए. कुछ ऐसे मामले हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए कमेटी बनाने की जरूरत है. आंदोलन को देखते हुए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ की बॉर्डर सील हैं. हरियाणा के 7 और राजस्थान के 3 जिलों में इंटरनेट बंद है. 15 जिलों में धारा 144 लागू की गई है. हरियाणा और दिल्ली की सिंघु-टीकरी बॉर्डर, यूपी से जुड़ी गाजीपुर बॉर्डर सील कर दी गई हैं. दिल्ली में भी कड़ी बैरिकेडिंग है. यहां एक महीने के लिए धारा 144 भी लागू कर दी गई है. भीड़ जुटने और ट्रैक्टर्स की एंट्री पर रोक लगा दी है.

फतेहगढ़ साहिब से किसान ट्रक और ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में रवाना हो गए हैं पंजाब से किसानों का दिल्ली कूच शुरू हो गया है.

शंभू बॉर्डर का मानचित्र

शंभू बॉर्डर: पुलिस ने ड्रोन से बरसाए आँसू गैस के गोले, किसान नेता बोले - भारतीय इतिहास का काला दिन.

एमएसपी समेत कई मांगों को लेकर दिल्ली के लिए निकले किसानों को अंबाला के नज़दीक शंभू बॉर्डर पर रोक लिया गया है. अपनी मांगों को लेकर मंगलवार को पंजाब से चले किसानों की अंबाला में पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर पुलिस से झड़प हुई. बॉर्डर पर सीमेंट के बैरियर और कटीली तारें लगाई गई थीं. मौक़े पर मौजूद बीबीसी संवाददाता अभिनव गोयल ने बताया कि पंजाब के किसान शंभू बॉर्डर की ओर बड़ी संख्या में ट्रैक्टर, ट्रॉली लेकर निकले थे. इस दौरान प्रदर्शनकारी किसानों ने सीमा पार करने की कोशिश की जिस दौरान सुरक्षाबलों ने उन्हें रोकने की कोशिश की और इस दौरान पत्थरबाज़ी हुई. पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले, रबर बुलेट और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया. इसमें सुरक्षाबलों समेत कुछ लोग घायल भी हुए हैं. शंभू बॉर्डर पर मंगलवार दिन भर रहे बीबीसी हिंदी संवाददाता अभिनव गोयल ने ड्रोन्स को किसानों पर आँसू गैस के गोले छोड़ते देखा. संगठन का कहना है कि उसे इस बात पर हैरत है कि प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए ड्रोन से आंसू गैस के गोले गिराए. संगठन ने बयान जारी कर अपने सभी किसान संगठन सदस्यों से 16 फ़रवरी को किसानों पर बल प्रयोग करने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की अपील की है. एसकेएम ने कहा है कि ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों के ख़िलाफ़ पुलिस और सुरक्षाबलों का इस्तेमाल दिखाता है कि मोदी सरकार जनता में अपना भरोसा खो चुकी है. एक लोकतांत्रिक समाज में हर नागरिक के पास शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है.’(BBC News-Hindi,13.2.2024)

चंडीगढ़ में सरकार के साथ मीटिंग बेनतीजा होने के बाद हजारों किसानों ने दिल्ली चलों के तहत राजधानी की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया है. दिल्ली के शंभू बॉर्डर से जब किसानों ने अंदर एंट्री करने की कोशिश की तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़ दिए. इसके बाद मौके पर अफरा-तफरी मच गई. पुलिस की कार्रवाई से गुस्से में आए किसानों ने बैरिकेड उखाड़ दिए. शंभू बॉर्डर पर किसानों के ऊपर लगातार आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं. वहीं किसान भी उग्र हो चुके हैं. उन्होंने बॉर्डर पर बने एक ओवरब्रिज की रेलिंग भी तोड़ दी. किसान पीछे हेट, लेकिन फिर तैयारी के साथ गीली बोरी, गैस मास्क के साथ आगे बढे. इस पर पुलिस ने ड्रोन से आंसू गैस के गोले छोड़े. रबर की बुलेट और वाटर कैनन भी चलाये गले. 50 से ज्यादा किसान बेहोश हो गले. 100 से ज्यादा किसान जख्मी हुए. दिन भर चला तनाव शाम को सीजफायर के साथ ख़त्म हुआ. (भास्कर, 14.2.2024)

शंभू बॉर्डर पर आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट दागीं; आज केंद्र से फिर बातचीत: पंजाब के हजारों किसान हरियाणा की सीमाओं पर डटे हैं. दिल्ली जाने के लिए पंजाब हरियाणा की दो सीमाओं पर बैरिकेट्स तोड़ने का प्रयास कर रहे किसानों ने मंगलवार शाम सीजफायर का ऐलान किया था लेकिन देर रात से ही संघर्ष दोबारा शुरू हो गया. पुलिस ने कई राउंड हवाई फायरिंग की. सुबह 7:00 बजे गैस के गोले दागने शुरू किये. दिन भर रुक-रुक कर रबर बुलेट और आंसू गैस के गोले दागने का सिलसिला चलता रहा. इस बीच किसान नेताओं ने केंद्र की बातचीत की पेशकश को मान लिया. अब गुरुवार को चंडीगढ़ में तीसरे राउंड की वार्ता होगी. इसमें केंद्र की तरफ से कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल व गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय हिस्सा लेंगे. दूसरी तरफ दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आवास पर कृषि मंत्री समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने बैठक की. इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने घायल किसान से फोन पर बात की व मोदी सरकार पर निशाना साधा. (भास्कर, 15.2.2024)


हरियाणा पंजाब के शंभू बॉर्डर पर आंदोलन के तीसरे दिन गुरुवार (15.2.2024) को शांति रही. बुजुर्ग किसानों ने युवाओं को आगे बढ़ने से रोका और कहा कि जब तक केंद्र से मीटिंग नहीं हो जाती तब तक कोई बैरिकेड तोड़ने की कोशिश नहीं करेगा. संयुक्त किसान मोर्चा और मजदूर संघ ने शुक्रवार को भारत बंध का आह्वान किया है. किसान नेताओं और केंद्र के मंत्रियों के बीच शाम 5:00 बजे होने वाली मीटिंग रात 8:30 बजे शुरू हुई. इसमें पंजाब सीएम भगवंत मान भी जुड़े. किसान नेता एम्एसपी गारंटी पर अड़े रहे. (भास्कर, 16.2.2024)


केंद्र से आज (18.2.2024) अहम चर्चा, बात नहीं बनी तो 14 टीमें संभालेंगी आन्दोलन - हरियाणा और पंजाब बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन का पांचवा दिन (17.2.2024) शांतिपूर्वक बीता. शनिवार को शंभू बॉर्डर पर न तो किसान और नहीं पुलिस की तरफ से हरकत हुई. हालांकि रविवार को सरकार के साथ चंडीगढ़ में होने जा रही चौथे दौर की बातचीत के लिए बंद कमरों में रणनीति बनती रही. किसान इस वार्ता को निर्णायक मान रहे हैं. उनके संगठनों की बैठक में तय हुआ है कि यदि बात नहीं बनी तो किसानों की 14 टीमें आगे आंदोलन संभाललेंगी. दूसरी ओर पंजाब और हरियाणा में जिला स्तर पर आंदोलन तेज हो गया है. हरियाणा में किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला. कुरुक्षेत्र में इसकी अगुवाई भारतीय किसान यूनियन नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने की. (भास्कर, 18.2.2024)

राजस्थान में आंदोलन - राजस्थान में किसानों ने किसान महापंचायत की बैनर तले 500 ट्रैक्टर का जत्था अजमेर से दिल्ली वाया जयपुर दिनांक 21 फरवरी 2024 को ले जाने का फैसला किया है. किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामलाल जाट के अनुसार किसानों की मांगों के समर्थन में प्रधानमंत्री कार्यालय को ज्ञापन दिया है और मुख्यमंत्री राजस्थान को भी लिखा गया है. किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून बनाने की मांग की है और स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले के अनुसार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिए जाने की मांग की है. (TOI.18.2.2024)


किसानों को सरकार का प्रस्ताव नामंजूर, दिल्ली कूच की तैयारी; हरियाणा ने और सख्त की सुरक्षा

हरियाणा पंजाब बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों ने सोमवार (19.2.2024) देर रात मक्का, कपास, उड़द और अरहर पर एमसपी लागू करने के सरकार के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया. किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि 4 फसलों पर एमएसपी से पूरे देश के किसानों का फायदा नहीं होगा. हम चाहते हैं कि सभी 23 फसलों पर एमएसपी मिले. आंदोलनकारी किसानों का नेतृत्व कर रहे सरवन सिंह पंढेर ने कहा, हम बुधवार सुबह 11:00 बजे तक स्टैंडबाय हैं. तब तक सरकार रुख स्पष्ट करे. इससे पहले संयुक्त किसान मोर्चा (नेशनल) ने भी प्रस्ताव खारिज कर दिया था. इधर, किसान मोर्चा ने 21.2.2024 से दिल्ली में दो दिवसीय बैठक बुलाई. किसान संगठन भाजपा नेताओं के घरों पर प्रदर्शन करेगा. दूसरी तरफ, हरियाणा सरकार ने पंजाब के साथ लगती शंभू और खनौरी बॉर्डर सहित सभी उनमार्गों पर सुरक्षा कड़ी कर दी, जो पंजाब-हरियाणा को जोड़ते हैं. आशंका है किसान छोटे मार्गो से होते हुए दिल्ली कूच कर सकते हैं. (भास्कर, 20.2.2024)

Editorial-Bhaskar.20.2.2024

कृषि को देखने का हमारा नजरिया बदलना होगा

अगर कृषि देश का 45-46% कार्यबल ढो रही है और पिछले 12 वर्षों में यह हिस्सेदारी बढी ही है, तो इसका सीधा मतलब है कि एक बड़ी आबादी इस पर निर्भर है. एक दूसरा उदाहरण लें. भारत के इतिहास में पहली बार मैन्युफैक्चरिंग (11.6%) से ज्यादा लोग कंस्ट्रक्शन (12.4%) और होटल, रेस्तरां व ट्रेड (12.1%) में रोजगार पा रहे हैं. अगर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र दूसरे स्थान से गिरकर चौथे स्थान पर पहुंच गया है तो मतलब अर्थ नीति में कुछ भारी गड़बड़ है. सोचिए अगर कृषि न होती तो देश के 50 करोड लोग कहां जाते? कहना न होगा कि कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और रेस्तरां आदि आमतौर पर असंगठित क्षेत्र हैं, जहां श्रमिक की स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में यह मानना गलत होगा कि कृषि में इनपुट सब्सिडी, इनकम सप्लीमेंट या एमएसपी जैसी अन्य मदद देना कोई बड़ा एहसान है. अगर देश की आधी आबादी आज भी कृषि में है लेकिन जीडीपी में उसका योगदान मात्र 17% ही है जबकि अमेरिका में 1.2% आबादी खेती करती है. अगर चीन की 4.4% आबादी खेती में 7.3 फिसदी योगदान करती है तो समाधान कृषि पर लोड कम करने से होगा. किसानों को अन्नदाता बता कर ₹17 रोज की सम्मान निधि और एमएसपी देने से आर्थिकी में शायद ही कोई मौलिक सुधार हो. कुछ अर्थशास्त्रियों को यह भी ऐतराज है कि किसानों को उनकी सकल लागत (C-2) का 50% लाभ क्यों? जबकि कई शीर्ष उद्योगपतियों का लाभ कई गुना है. सरकार भूल रही है कि आज भी कृषि का जीवीए-जीवीओ (ग्रास वैल्यू ऐडेड और ग्रास वैल्यू आउटपुट) अनुपात इंडस्ट्रीज से कई गुना ज्यादा है, लेकिन मौसम की मार, श्रमिकों का बाहुल्य, सिंचाई सुविधा का अभाव और मार्केट का शोषण जो किसानों को झेलना पड़ता है उद्योगपतियों को नहीं. किसान टमाटर, प्याज और दूध जैसे उत्पाद यूं ही नहीं सड़कों पर फेंकता. (भास्कर, सम्पादकीय, 20.2.2024)

कृषि विशेषज्ञों की राय है कि 4-5 फसलों पर एमएसपी से पूरे देश के किसानों का फायदा नहीं होगा. यह केवल आन्दोलन रोकने का अस्थाई हल है. सभी 23 फसलों पर एमएसपी मिलने से ही समस्या का समाधान होगा. किसानों को डर है कि सरकार के 5 वर्ष के लिए अनुबंध फार्मिंग के प्रस्ताव के पीछे सरकार द्वारा निरस्त कर दिए गए तीन नए कृषि कानूनों को चोर दरवाजे से वापस लाने का प्रयास है. (TOI.18.2.2024)


दिल्ली कूच आज (21.2.2024), बैरिकेड्स तोड़ने पोकलेन, जेसीबी मंगाईं: एमएसपी पर सरकार का प्रस्ताव खारिज करने के बाद किसानों ने बुधवार (21.2.2024) सुबह है 11:00 बजे से दिल्ली कूच का ऐलान किया है. बैरिकेट्स हटाने के लिए कवर्ड पोकलेन, जेसीबी, क्रेन समेत कई मशीन मंगवाए हैं. दिल्ली कूच रोकने के लिए बनाई गई दरिया पाटने के लिए किसानों ने 5000 मिट्टी की बोरियां जुटाईं. शंभू व खनोरी में किसानों की आमद बढ़ रही है. वहीं पुलिस दिनभर पंजाब हरियाणा के बॉर्डर सील करने में जुटी है. पंजाब में भी शंभू व खनोरी बॉर्डर हाइपरसेंसेटिव जोन घोषित किया गया है. ऐसे में संकेत है कि एक बार फिर किसान आंदोलन उग्र हो सकता है. इस बीच शंभू बॉर्डर पर एक और पुलिसकर्मी की हार्ट अटैक से मौत हो गई. अब तक तबीयत खराब होने से दो किसान और दो पुलिस कर्मी की मौत हो चुकी है. (भास्कर, 21.2.2024)


नौवें दिन (21.2.2024) हरियाणा पंजाब बॉर्डर पर उपद्रव जैसे हालात: हिंसक संघर्ष.... युवक की मौत से वार्ता टल गई, दिल्ली कूच भी दो दिन रुका

हरियाणा पंजाब बॉर्डर पर चल रहा आंदोलन बुधवार (21.2.2024) को हिंसक संघर्ष में बदल गया. किसान शंभू-खनौरी बॉर्डर पर बैरिकेट्स तोड़ने लगे तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले व रबर बुलेट दागी. इस झड़प में खनौरी बॉर्डर पर युवक शुभकरण की मौत हो गई. युवक की मौत से केंद्र व किसानों के बीच वार्ता टल गई. इसके चलते किसानों ने दिल्ली कूच भी दो दिनों के लिए टाल दिया. उधर संयुक्त किसान मोर्चा ने देश भर के जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया. खनौरी बॉर्डर पर बुधवार को युवक की मौत के बाद किसानों ने दिल्ली मार्च फिलहाल रोक दिया है. किसान मजदूर मोर्चा (KMM) कोऑर्डिनेटर सरवण सिंह पंधेर ने कहा कि 2 दिन हम रणनीति बनाएंगे. 23 फरवरी को अगला फैसला लिया जाएगा. आंदोलन के 10वें दिन (22.2.2024) शंभू और खनौरी बॉर्डर पर हालात सामान्य रहे. (भास्कर, 22.2.2024)


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केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच अब तक सुलह का कोई रास्ता नहीं निकल पाया है. बुधवार (21.2.2024) को एक युवा की गोली लगने से मौत होने के बाद स्थिति और जटिल हो गई है. हालांकि, गोली किसकी तरफ़ से चली, इसकी जांच जारी है. किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने दावा किया है कि खनौरी पर सुरक्षाबलों की गोली में एक किसान युवक की मौत हो गई है और 15 घायल हुए हैं. पंढेर के मुताबिक़, घायलों में तीन की हालत गंभीर है. उन्होंने यह भी दावा किया गया कि पुलिस दो आंदोलनकारी किसानों को उठाकर ले गई है. किसान नेता रमनदीप सिंह मान ने बीबीसी से कहा, “देखिए हम बातचीत को तैयार थे, उसका इनाम हमें ये मिला कि हमारे एक युवा किसान को मार दिया गया.”

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने किसान नेताओं को पांचवे दौर की बातचीत का न्योता दिया था. दोनों पक्षों में आगे की बात भले ही थम गई हो लेकिन सरवन सिंह पंढेर ने ऐलान किया है कि अगले दो दिनों यानी शुक्रवार तक के लिए 'दिल्ली चलो' अभियान रोक दिया गया है. इस मामले में जहां एक ओर आगे की बातचीत की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. वहीं, दूसरी ओर बुधवार को हरियाणा की ओर मौजूद सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारी किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए. सुरक्षाबलों पर किसान आंदोलनकारियों के ख़िलाफ़ रबर की बुलेट्स के इस्तेमाल से जुड़े आरोप भी लग रहे हैं. बुधवार को मरने वाले युवक की मौत भी सिर पर गोली लगने से हुई. पटियाला ज़िले के सरकारी अस्पताल राजिंदरा हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ हरनाम सिंह रेखी ने बुधवार को ही बताया था कि मौत का प्राथमिक कारण सिर के पीछे गोली लगना है. शंभू बार्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की तबियत ख़राब होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. किसानों ने दावा किया कि आंसू गैस की वजह से उनकी हालत ख़राब हुई. (BBC News-Hindi,22.2.2024 )


किसान नेताओं पर रासुका, संपत्ति कुर्ग होगी, बैंक खाते भी सीज होंगे: प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई की कार्रवाई शुरू - आंदोलन कर रहे किसान नेताओं के खिलाफ हरियाणा पुलिस ने गुरुवार (21.2.2024) देर रात राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई शुरू की. अंबाला पुलिस ने बताया कि प्रदर्शनों के दौरान सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई आंदोलनकारी किसान नेताओं से ही की जाएगी. इसके लिए उनकी संपत्ति कुर्की होगी. बैंक खाते सीज करने की कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है. दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा की गुरुवार को 4:30 बजे चली बैठक के बाद भी किसान आंदोलन-2 के लिए एक मंच पर आने पर सहमति नहीं बन सकी. (भास्कर, 23.2.2024)

The Indian government issues a directive to social media platform X to remove accounts related to the ongoing farmers' protests. The directive could lead to severe penalties if not complied with, including substantial fines and imprisonment. (TOI.23.2.2024)

किसान आंदोलन-11वां दिवस- हिसार में पथराव - किसान नेताओं पर रासुका 12 घंटे में वापस, मार्च 29 फरवरी तक टला -

हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को आंदोलन कर रहे किसान नेताओं पर रासुका में कार्रवाई का फैसला 12 घंटे में वापस ले लिया. संयुक्त किसान मोर्चा के नेता सरवन सिंह पंढेर ने बताया, 29 फरवरी तक दिल्ली चलो मार्च स्थगित रहेगा. 29 फरवरी को अगले कदम की घोषणा करेंगे. वहीं खनोरी बॉर्डर पर शुक्रवार को 62 वर्षीय किसान दर्शन सिंह की हार्ट अटैक से मौत हो गई. शुक्रवार (23.2.2024 को शंभू बॉर्डर पर किसानों ने काला दिवस मनाया. उधर खनोरी बॉर्डर पर शहीद 22 वर्षीय किसान शुभकरण के परिवार को पंजाब सरकार ने एक करोड रुपए की आर्थिक सहायता व उसकी बहन को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया. इस बीच किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका आई है. इसमें मांग है कि प्रदर्शन करना किसानों का हक है, सरकार न रोके. किसानों द्वारा नई रणनीति बनाई जा रही है जिसमें सभी संगठनों को साथ लाने की मुहिम छेड़ी गई है. (भास्कर, 24.2.2024)


फ्रांस कृषि मेले में किसानों का हंगामा, भ्रष्ट नेताओं के घर के बाहर दीवार बनाई: फ्रांस में किसान आंदोलन तेज होता जा रहा है. किसान लाल फीताशाही, खाद्य पदार्थों के आयात और यूरोपीय संघ की पर्यावरण नीतियों का विरोध कर रहे हैं. इस क्रम में शनिवार (24.2.2024) को कृषि मेले के अंदर किसानों ने हंगामा किया. उनका पुलिस से भी सामना हुआ. उन्होंने राष्ट्रपति मैक्रों के खिलाफ नारेबाजी कर इस्तीफे की मांग की. कई किसानों को गिरफ्तार भी किया गया है. कुछ प्रदर्शनकारियों ने नेताओं के घर के बाहर दीवार बनाकर विरोध जताया. उनका कहना था कि वह भ्रष्ट नेताओं का रास्ता ही बंद कर देंगे. (भास्कर, 25.2.2024)

आंदोलनकारियों ने चौथे दिन भी शव नहीं हटाया, पर शांति: हाईवे से बैरिकेड हटा रही पुलिस:

हरियाणा और पंजाब के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में दिल्ली कूच का फैसला 29 फरवरी तक टालने के बाद शांति है. किसानों के दिल्ली कूच के आह्वान के बाद 13 फरवरी को बंद किए गए नेशनल हाईवे-44 के सर्विस रोड को दिल्ली की सीमा से पुलिस ने खोलना शुरू कर दिया है. दिल्ली पुलिस सर्विस रोड पर चारों लेन को खोल रही है. बहादुरगढ़ में पुलिस ने टिकरी बॉर्डर से बैरिकेड हटाने का काम शुरू कर दिया है. इस बीच किस नेता रणनीति में व्यस्त हैं. खनोरी बॉर्डर पर जान गवांने वाले युवा किसान शुभकरण का शव चौथे दिन भी अस्पताल में रखा रहा. किसान नेता अडे हैं कि पंजाब सरकार शुभकरण को मारने के जिम्मेदारों पर हत्या का केस दर्ज करें. दूसरी और घायल किसान प्रितपाल का रोहतक पीजीआई में इलाज चल रहा है. पहले आरोप लगा था कि पुलिस ने उसे कहीं छुपा रखा है. लेकिन अब आरूप है कि पुलिस ने उसे बोरी में बंद करके मारा. शनिवार देर शाम शंभू और खनोरी बॉर्डर पर किसानों ने आंदोलन में जान गंवाने वालों की याद में कैंडल मार्च भी निकाल. (भास्कर, 25.2.2024)


पंजाब, हरियाणा, यूपी में ट्रैक्टर मार्च - किसान बोले मददगार संगठनों के अकाउंट ब्लॉक करवा रही सरकार :

विभिन्न मांगों के समर्थन में किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के बैनर वाले सोमवार (26.2.2024) को कई राज्यों में ट्रैक्टर मार्च निकाले गए. इस दौरान पंजाब और यूपी में किसानों ने ट्रैक्टर हाईवे पर खड़े कर दिए. इधर हरियाणा और पंजाब के बॉर्डर पर आंदोलन में ठहराव दिखा. बॉर्डर पर बुजुर्ग किसान ही दिख रहे हैं. जबकि युवा घरों को चले गए हैं. उनकी नजर किसान नेताओं के अगले निर्णय पर है. सोमवार को शंभू बॉर्डर पर शांति रही. दिनभर किसान नेताओं ने मंच से किसानों को WTO के बारे में बताया और खेती को इससे बाहर निकालने की मांग की. दोपहर बॉर्डर पर WTO का पुतला जलाया गया. किसान नेताओं का आरोप है हम शांति से बैठे हैं फिर भी सरकार सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर रही है. खालसा एड जैसे NGO हमें मेडिकल हेल्प दे रहे हैं. उनके सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद कर दिए हैं. अगर सरकार को वार्ता करनी है तो पहले माहौल ठीक करें और इस तरह की कार्रवाई बंद करें. हरियाणा पुलिस किसान नेताओं के घर जाकर नोटिस देकर धमका रही है जो गलत है. (भास्कर, 27.2.2024)


दोनों संगठनों की साझा बैठक - कुछ दिन स्थगित होगा दिल्ली कूच, अन्य संगठन भी आ सकते हैं साथ : एमएसपी समेत अन्य मांगों को लेकर हरियाणा और पंजाब के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में फिर से भीड़ बढ़ने लगी है. बुधवार (28.2.2024) को दिन में दोनों संगठनों की संयुक्त बैठक होनी थी, लेकिन प्लान बदल गया. किसान मजदूर मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) ने अपनी अलग-अलग बैठे की. इसके बाद देर शाम दोनों संगठनों की संयुक्त बैठक शुरू हुई. यह देर रात तक चली. किसान नेता अपना निर्णय गुरुवार को बताएंगे. सूत्रों के अनुसार किसान नेता अभी दिल्ली कूच के कार्यक्रम और कुछ दिन के लिए स्थगित करेंगे. गुरुवार को किसान नेता दिल्ली कूच नहीं करेंगे. वह अभी कुछ दिन के लिए अन्य कार्यक्रमों का ऐलान करेंगे. इन कार्यक्रमों के माध्यम से अभी शंभू बॉर्डर और खनोरी बॉर्डर से आंदोलन को लंबा खींचा जाएगा. किसानों का मानना है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन को लंबा चलाना पड़ेगा. (भास्कर, 29.2.2024)


किसानों का ऐलान: 6 मार्च 2024 को दिल्ली कूच और 10 को देश भर में ट्रेनें रोकी जाएंगी - हरियाणा और पंजाब के बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने रविवार (03.2.2024) को अपने कार्यक्रमों का ऐलान कर दिया. हरियाणा और पंजाब को छोड़कर देश के अन्य राज्यों के किसानों को दिल्ली पहुंचने की अपील की है. इसके लिए 6 मार्च 2024 को अलग-अलग राज्यों से किसान ट्रेन, बस और अन्य तारीकों से दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचेंगे. ये किसान ट्रैक्टर या ट्राली से नहीं जाएंगे. वहीं हरियाणा व पंजाब के किसान शंभू और खनोरी बॉर्डर से ही आंदोलन चलाएंगे. दूसरा ऐलान रेल रोको का किया है. 10 मार्च को देशभर में दोपहर 12:00 से 4:00 तक ट्रेनें रोकी जाएंगी. किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि सरकार को लगता है कि आचार संहिता कभी भी लग जाएगी और फिर मांगोंं पर कुछ नहीं करना पड़ेगा. पर वे इस भ्रम में न रहें.(भास्कर, 4.3.2024)


इधर दिल्ली में किसानों को रोका, हरियाणा की खाप पंचायतें किसानों के समर्थन में आईं:

एमएसपी समेत अन्य मांगों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन में हरियाणा और पंजाब के बॉर्डर पर हलचल रही. बुधवार (4.3.2024) को दिल्ली की सीमाओं पर भारी पुलिस बल तैनात रहा. इस बीच किसान नेताओं ने आरोप लगाया है कि राजस्थान, यूपी और एमपी से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे, लेकिन उन्हें रास्ते में रोका गया. साथ ही 130 से अधिक किसानों को हिरासत में ले लिया गया. किसान नेताओं ने यह भी दावा किया है कि कुछ किसान जंतर मंतर तक पहुंचने में सफल भी हुए हैं, पर पुलिस उन्हें वहां धरना नहीं करने दे रही है. किसान नेताओं ने 8 मार्च 2024 को शंभू और खनोरी बॉर्डर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का निर्णय भी लिया है. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा महिला किसानों से बॉर्डर पर पहुंचने का आह्वान किया गया है. इधर हरियाणा की अलग-अलग खापों की एक बैठक हुई इसमें निर्णय हुआ कि वह किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं. खापों ने सरकार को 16 मार्च 2024 तक का समय दिया है. (भास्कर, 07.3.2024)

पोलैंड में किसान आंदोलन - यूक्रेन से अनाज आयात के खिलाफ किसानों ने किया हाईवे जाम:

पोलैंड में बुधवार (4.3.2024) को किसानों का प्रदर्शन उग्र हो गया. यूक्रेन से अनाज आयात और यूरोपीय संघ की नीतियों के खिलाफ किसानों के समर्थन में छात्र और आम लोग भी उतर आए. प्रदर्शनकारियों ने राजधानी वारसा में प्रधानमंत्री आवास की घेराबंदी कर दी है. किसानों के ट्रैक्टरों के साथ पहुंचने से वारसा की ओर जाने वाला हाईवे जाम हो गया. इस बीच कई जगह पुलिस और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच झड़पें हुई है. यूरोपीय संघ का झंडा भी जला दिया. प्रदर्शनकारी किसान यूरोपीय संघ के ग्रीन डील रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए बनाई गई एक योजना है. प्रदर्शनकारी इसे किसान विरोधी और महंगाई बढ़ने वाली योजना बता रहे हैं. प्रदर्शनकारियों के बैनर पर लिखा है, मैं किसान बनना चाहता हूं ब्रुसेल्स का गुलाम नहीं.


पंजाब हरियाणा समेत पांच राज्यों में किसानों ने रेलेंं रोकीं, दावा -9 ट्रेन रद्द, 49 प्रभावित हुईं: एमएसपी समेत अन्य मांगों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन के तहत रविवार (10.3.2024) को चार घंटे तक किसानों ने रेल रोको आंदोलन किया. पंजाब में किसान मजदूर मोर्चा () और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के आह्वान पर 22 जिलों में 52 स्थानोंं पर रेल रोकी गई. के एम एम के संयोजक सरवन सिंह पंढेर ने बताया कि हरियाणा में अंबाला, पंचकूला समेत चार स्थानों पर रेल रोको आंदोलन चला. वहीं राजस्थान के पीलीभीत, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में भी आंदोलन के तहत रेल रोकी गई. उन्होंने दावा किया कि हमारे आंदोलन के चलते 49 ट्रेन प्रभावित हुई. 9 रद्द कर दी गई (भास्कर, 11.3.2024)


किसान महापंचायत.... केंद्र सरकार को चेतावनी, अगला आंदोलन आर-पार का होगा: आंदोलनकारी किसानों ने गुरुवार (14.3.2024) को अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान पर महापंचायत की. उन्होंने संकल्प पत्र जारी कर कहा कि यदि केंद्र सरकार ने किसानों के प्रति रवाया नहीं सुधरा तो अगला आंदोलन आर-पार का होगा. महापंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल व पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों के करीब 10000 किसान जुटे. उन्होंने ऐलान किया कि एमएसपी पर कानून समेत उनकी मांगे पूरी नहीं हुई तो लोकसभा चुनाव के दौरान आंदोलन जारी रखेंगे. महापंचायत में किसान नेता राकेश टिकैट ने कहा कि यह आंदोलन सरकार तक संदेश पहुंचाने के लिए था. हमने आंदोलन खत्म नहीं किया है. बता दें कि महापंचायत के लिए किसानों को सशर्त इजाजत मिली थी. बिना ट्रैक्टर ट्राली के सिर्फ 5000 किसान ही जुट सकते थे. इसके बावजूद रामलीला मैदान पर अर्ध सैनिक बलों की 7 तो पूरी दिल्ली में 22 कंपनियां तैनात थी. किसान एमएसपी की गारंटी वाले कानून समेत अन्य मांगों को लेकर पंजाब हरियाणा सीमा पर 13 फरवरी 2024 से प्रदर्शन कर रहे हैं. (भास्कर, 15.3.2024)

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