Mathura Lal Arauda

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

Mathura Lal Arauda (born:1895) (मथुरालाल अरौदा), from Arauda (अरौदा), Wair , Bharatpur was a Social worker in Bharatpur, Rajasthan. [1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... श्री मथुरालाल जी - [पृ.71]: भरतपुर राज्य में जयपुर रोड पर हलेना के पूर्व की ओर अजरौदा गोधारा जाटों का एक पुराना मशहूर गाँव है। गाँव की नींव सन् 1590 ई. में पड़ी थी। राया से चलकर आए कुछ लोगों ने इसे आबाद किया। आबाद करने वालों का सरदार कुवेर गोधारा था। जिस समय वीर गोकुला ने मुगल अत्याचारों के खिलाफ तलवार उठाई थी उस समय गुलाब का लड़का सम्पत यहाँ का जवाँमर्द आदमी था। उसने गोकुला की सेना में अपना नाम लिखाकर जाति भक्ति का परिचय दिया था। सम्पत का लड़का माधोसिंह हुआ। इसी माधोसिंह की तीसरी पीढ़ी में ठाकुर नानगराम हुये। उनके दो पुत्र हुये - 1. चतुर्भुज सिंह और 2. मथुरा लाल

मथुरा लाल की यौवन से ही रुचि जाति सेवा की ओर थी। आज से 53 साल पहले सन् 1895 ई. के दिसंबर महीने में मथुरा लाल का जन्म हुआ। मोहनसिंह और विजयसिंह उनके दो लड़के हैं। मोहनसिंह ने कृषि कालेज कानपुर और बलवंत कालेज


[पृ.72]: आगरा में कृषि की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त की है। विजैसिंह जी हाई स्कूल में पढ़ते हैं। आपकी दो पौत्रियों में बड़ी दरयाव कौर भी हाई स्कूल में शिक्षा पा रही हैं।

सन् 1877 ई. में आपके पिता अरौदा से कोटा राज्य में पहुंचे। वहाँ आपके पितामह ने देहात में खेती का धंधा अपनाया था। क्योंकि कोटा की भूमि उपजाऊपन के लिए मालव भूमि है। सन् 1901 में आपके पितामह कोटा की सेना में मुलाजिम हो गए। तभी से आपका परिवार कोटा का वाशिंदा हो गया।

शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप बारां में टीचर नियुक्त हुये। पढ़ाई में आप सदैव फ़र्स्ट रहे। कुछ वर्ष के बाद मथुरा लाल कस्टम और एक्साइज के इंस्पेक्टर हो गए। आपको काम के सिलसिले में महकमों के अफसरों, दीवानों और खुद महाराज साहब ने सर्टिफिकेट बक्से हैं।

आपके काम से आप जहां भी रहते हैं जनता के लोग भी निहायत खुश रहे।

आपकी धर्मपत्नी श्रीमति कंचन कुमारी धार्मिक वृति की स्त्री हैं। व्रत-उपवास और पूजा पाठ में उनकी रुचि है। कौम के कामों की तरफ भी स्नेह रखती हैं।

मथुरालाल जी एक्साइज के इंस्पेक्टर रहे हैं किन्तु शराब, गाँजा और भांग का नशा करना तो दूर आप पान, बीड़ी और तंबाखू से भी दूर भागते हैं।

सन् 1917 से आपकी रुचि जाति सेवा में हुई। सन् 1925 ई. में जब 'जाट-वीर' शुरू हुआ तो हाड़ौती भर में आपने इसके ग्राहक बनाए। जहां जहां जाट जलसे हुये आप सपरिवार पहुँचने


[पृ.73]: की कोशिश की। पुष्कर जाट महोत्सव 1925 संबंधी जो साहित्य मिला उसे आपने हाड़ौती के जाटों में वितरण करवाया।

आपकी इच्छा बारां में एक जाट छात्रावास देखने की थी। सन् 1942 में जब देवी सिंह बोचल्या उधर गए तो आपने देहात में घूमकर बड़े-बड़े जाटों से उनका परिचय करवाया।

कोटा के देहातों में करीब 11,000 जाट आबाद हैं। उनमें सैकड़ों रईस हैं जिनके यहां 50-50 बैल, हजारों बीघा जमीन और बड़े-बड़े अन्न भंडार रहते आए हैं। उनमें शिक्षा प्रचार और कुरीति निवारण के लिए आपने भरपूर कोशिश की हैं।

मथुरालाल जी की ईमानदारी की प्रशंसा जहां उनके अफसरों ने की है वहां मिलनसारी की प्रशंसा जनता ने की है। उनके हाथ सिर्फ यश ही रहा है रुपया नहीं क्योंकि रुपया तो बेईमानी से पैदा होता है। वे चाहते तो लाखों कमा सकते थे। किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।

उनकी लोगों में कद्र है यही उनकी सबसे बड़ी संपत्ति है। उन्हें इसके अलावा सुघड़ स्त्री और योग्य संतानों का भी महासुख है। यही मनुष्य जीवन की लौकिक सफलता है। और बड़ी बात तो यह है कि जिसका जाति हित में सब्र हो वह पुरुष सराहनीय है।

जीवन परिचय

गैलरी

संदर्भ


Back to Jat Jan Sewak