Aryavarta

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Map of Ancient Jat habitations, The Aryavarta

Aryavarta (आर्यावर्त) is the ancient name for northern and central India, where the culture of the Indo-Aryans was based. It is erroneous to give this name to the whole of India, since the borders of Aryavarta have been described differently in sources from different times. It means "abode of the Aryans"

Variants of name

Mention by Panini

Aryavarta (आर्यावर्त) is a term mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

In Epics

The Manu Smriti (2.22) gives the name to "the tract between the Himalaya and the Vindhya ranges, from the eastern to the western sea".

The Vasistha Dharma Sutra I.8-9 and 12-13 locates Aryavarta to the east of the disappearance of the Sarasvati in the desert, to the west of Kalakavana, to the north of the mountains of Pariyatra and Vindhya and to the south of the Himalaya.

Baudhayana Dharmasutra (BDS) 1.1.2.10 gives similar definitions and declares that Aryavarta is the land that lies west of Kalakavana[2], east of Adarsana[3], south of the Himalayas and north of the Vindhyas. In BDS 1.1.2.11 Aryavarta is confined to the Ganga - Yamuna doab, and BDS 1.1.2.13-15. Some sutras recommend expiatory acts for those who have crossed the boundaries of Aryavarta. Baudhayana Srautasutra recommends this for those who have crossed the boundaries of Aryavarta and ventured into far away places.[4]

Patanjali's Mahābhāṣya defines Aryavarta like the Vasistha Dharma Sutra.

Aryavarta may thus have different definitions. In some later texts, Northwest-Indian subcontinent (which earlier texts consider as part of "Aryavarta") is even seen as "impure", probably due to invasions. The Mahabharata Karnaparva 43.5-8 states that those who live on the Sindhu and the five rivers of the Punjab are impure and dharmabahya.

आर्यावर्त

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...आर्यावर्त (AS, p.70) प्राचीन संस्कृत साहित्य में आर्यावर्त नाम से उत्तर भारत के उस भाग को अभिहित किया जाता था जो पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक और हिमालय से विंध्याचल तक विस्तृत है। आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्राच्च पश्चिमात् तयोरेवान्तरंगिर्यो: (हिमवतविन्ध्यों:) आर्यावर्त विदुर्बुधा:'- मनुस्मृति 2,22

आर्यावर्त का विस्तार

शाब्दिक अर्थ आर्यावर्त का शाब्दिक अर्थ है- 'आर्यो आवर्तन्तेऽत्र' अर्थात् 'आर्य जहाँ सम्यक प्रकार से बसते हैं।' आर्यावर्त का दूसरा अर्थ है- 'पुण्यभूमि'। मनुस्मृति 2.22 में आर्यावर्त की परिभाषा इस प्रकार दी हुई है- आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात्। तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्त विदुर्बुधा: ॥ ...पूर्व में समुद्र तक और पश्चिम में समुद्र तक, (उत्तर दक्षिण में हिमालय, विन्ध्याचल) दोनों पर्वतों के बीच अन्तराल (प्रदेश) को विद्वान् आर्यावर्त कहते हैं।

मेधातिथि मनुस्मृति के उपर्युक्त श्लोक का भाष्य करते हुए लिखते हैं: "आर्या आवर्तन्ते तत्र पुन: पुनरूद्भवन्ति। आक्रम्याक्रम्यापि न चिरं तत्र म्लेच्छा: स्थातारो भवन्ति।" आर्य वहाँ बसते हैं, पुन: पुन: उन्नति को प्राप्त होते हैं। कई बार आक्रमण करके भी म्लेच्छ (विदेशी) स्थिर रूप से वहाँ नहीं बस पाते।

इसका शाब्दिक अर्थ है- जहां आर्य निवास करते हैं। प्राचीन वांड्मय में इस स्थान के बारे में विभिन्न मत हैं। ऋग्वेद इसे 'सप्तसिंधु प्रदेश' बताता है। उपनिषद काल में यह काशी और विदेह जनपदों तक फैल गया था। मनुस्मृति में इसकी परिभाषा देते हुए कहा गया है कि पूर्व में समुद्र तट, पश्चिम में समुद्र तट, उत्तर में हिमालय से दक्षिण में विंध्याचल तक के प्रदेश को विद्वान् आर्यावर्त कहते हैं। पतंजलि के मत से गंगा और यमुना के मध्य का भू-भाग आर्यावर्त है। इन कथनों से विदित होता है कि उस समय उत्तर भारत के सभी जनपद इसमें सम्मिलित थे और आर्य संस्कृति का विस्तार इतना ही था। पुराणों का समय आते-आते यह देशव्यापी हो गई और भारतवर्ष और आर्यावर्त पर्यायवाची माने जाने लगे। अच्युत आर्यावर्त के राजाओं में से एक हैं।

मध्यकालीन इतिहास में: भारत के मध्यकालीन इतिहास में उत्तर भारत के लिए 'आर्यावर्त' शब्द का प्रयोग मिलता है। मनुस्मृति में आर्यावर्त की सीमाओं का निर्देश करते हुए उत्तर भारत में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत तथा पूर्व और पश्चिम में समुद्रतटों तक उसका विस्तार बताया गया है।

आर्यावर्त के लिए अन्य अन्य पाँच भौगोलिक नामों का भी उल्लेख मिलता है- 1. उदीची (उत्तर), 2. प्रतीची (पश्चिम), 3. प्राची (पूर्व), 4. दक्षिण, 5. मध्य

आर्यावर्त का मध्य भाग ही हिन्दी भाषा और साहित्य का उद्गम एवं विकास स्थल मध्यदेश कहलाता है। 12 वीं शती तक के साहित्य में इस नाम का निरन्तर प्रयोग हुआ है। तत्पश्चात् इसका प्रयोग कम होता गया। विभिन्न युगों में आर्य संस्कृति के विस्तार एवं विकास के साथ आर्यावर्त की भी सीमाएँ बदलती रहीं हैं[6]

आजकल यह समझा जाता है कि इसके उत्तर में हिमालय शृंखला, दक्षिण में विन्ध्यमेखला, पूर्व में पूर्वसागर (वंग आखात) और पश्चिम में पश्चिम पयोधि (अरब सागर) है। उत्तर भारत के प्राय: सभी जनपद इसमें सम्मिलित हैं। परन्तु कुछ विद्वानों के विचार में हिमालय का अर्थ है पूरी हिमालय श्रृखंला, जो प्रशान्त महासागर से भूमध्य महासागर तक फैली हुई है और जिसके दक्षिण में सम्पूर्ण पश्चिमी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रदेश सम्मिलित थे। इन प्रदेशों में सामी और किरात प्रजाति बाद में आकर बस गयी।

संदर्भ: भारतकोश-आर्यावर्त


दलीपसिंह अहलावत [7]लिखते हैं... पूर्व में ब्रह्मपुत्र से लेकर पश्चिम में यूफ्रेट्स (फ्रात) और टाईग्रिस (दजला) नदियों तक, उत्तर में हिमालय पर्वत की माला, समरकन्द, कोकन्द, निशांपुर, कैस्पियन और कॉकेशस, दक्षिण में समुद्र पर्यन्त आर्यजन निवास करते थे। इन सीमाओं के अन्तर्गत जितने देश हैं वे आर्यावर्त कहलाते थे। इसलिए ईरान, अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, एशिया माइनर, पाकिस्तान, बांग्लादेश और वर्तमान भारतवर्ष के जितने प्रदेश हैं वे सब आर्यावर्त के प्रांत मात्र हैं।

इतिहासकार स्वामी ओमानन्द सरस्वती लिखते हैं -

हरयाणा प्रान्त के प्राचीन नाम यौधेयों का बहुधान्यक, मयूरभूमि, ब्रह्मर्षि देश, कुरु प्रदेश, कुरु-जांगल, मध्यदेश, ब्रह्मावर्त थे, और 'आर्यावर्त' का यह प्रान्त एक भाग माना जाता है । जैसा कि निम्नलिखित शास्त्रीय प्रमाणों से सिद्ध होता है । प्रथम आर्यावर्त के विषय में मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में इस प्रकार है -

आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात् ।
तयोरेवान्तर गिर्योरार्थावर्तं विदुर्बुधाः ॥
मनु० अ० श्लोक-२२

उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र है । इस देश का वा इस भूमि का नाम आर्यावर्त है, क्योंकि आदि सृष्टि से इसमें आर्य लोग निवास करते रहे हैं, परन्तु इसकी अवधि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पश्चिम में अटक (सिन्धु) और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी है । इन चारों के बीच में जितना देश है उसको आर्यावर्त कहते हैं और जो इसमें सदा से रहते हैं उनको भी आर्य कहते हैं । कुछ विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि आर्यावर्त का दूसरा नाम ब्रह्मवर्त भी है । इसकी सीमा के विषय में मनु जी महाराज ने लिखा है -

सरस्वती दृषद्वत्योर्देव नद्योर्यदन्तरम् ।
तं देव निर्मितं देशं ब्रह्मावर्त प्रचक्षते ॥

अर्थात् सरस्वती पश्चिम में, अटक नदी पूर्व में, दृषद्वती जो नेपाल के पूर्व भाग पहाड़ से निकलकर बंगाल और आसाम के पूर्व और ब्रह्मा के पश्चिम की ओर होकर दक्षिण के समुद्र में मिली है, जिसको ब्रह्मपुत्रा नदी कहते हैं । और जो उत्तर के पहाड़ों से निकल कर दक्षिण के समुद्र की खाड़ी में आ मिली है । हिमालय की मध्य रेखा से दक्षिण और पहाड़ों के अन्तर्गत रामेश्वर पर्यन्त, विन्ध्याचल के भीतर जितने देश हैं उन सबको आर्यावर्त इसलिये कहते हैं कि यह आर्यावर्त वा ब्रह्मवर्त को देव अर्थात् विद्वानों ने बसाया । विद्वानों और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त व ब्रह्मवर्त कहलाया ।[8]

Notes

  • Kane, Pandurang Vaman: History of Dharmasastra: (ancient and mediaeval, religious and civil law) -- Poona : Bhandarkar Oriental Research Institute, 1962-1975

See also

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.38
  2. region of modern Allahabad
  3. where the Sarasvati disappears
  4. Vishal Agarwal: Is there Vedic evidence for the Indo-Aryan Immigration to India
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.70
  6. 'स्कन्दगुप्त', पृ. 70 [सहायक ग्रन्थ-मध्य देश: डा. धीरेन्द्र वर्मा।] ----रा0कु0
  7. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 339)
  8. वीरभूमि हरयाणा (पृष्ठ 112-113)