Amra Ram Paraswal
Amra Ram Paraswal is a farmer leader from Moondwara village in tehsil Dhod of Sikar district in Rajasthan.He was awarded with the honour of Best MLA for the year-2011.[1] He has been elected the Member of Parliament (CPI-M) in Loksabha from Sikar (Rajasthan) constituency in general elections-2024.
Election History
Serial | Year | House | Constituency | Party | Result |
---|---|---|---|---|---|
1 | 1985 | Vidhan Sabha 08 | Dhod | CPI(M) | Lost |
2 | 1990 | Vidhan Sabha 09 | Dhod | CPI(M) | Lost |
3 | 1993 | Vidhan Sabha 10 | Dhod | CPI(M) | Won |
4 | 1996 | Lok Sabha 11 | Sikar | CPI(M) | Lost |
5 | 1998 | Lok Sabha 12 | Sikar | CPI(M) | Lost |
6 | 1998 | Vidhan Sabha 11 | Dhod | CPI(M) | Won |
7 | 1999 | Lok Sabha 13 | Sikar | CPI(M) | Lost |
8 | 2003 | Vidhan Sabha 12 | Dhod | CPI(M) | Won |
9 | 2004 | Lok Sabha 14 | Sikar | CPI(M) | Lost |
10 | 2008 | Vidhan Sabha 13 | Danta Ramgarh | CPI(M) | Won |
11 | 2009 | Lok Sabha 15 | Sikar | CPI(M) | Lost |
12 | 2013 | Vidhan Sabha 14 | Danta Ramgarh | CPI(M) | Lost |
13 | 2014 | Lok Sabha 16 | Sikar | CPI(M) | Lost |
14 | 2018 | Vidhan Sabha 15 | Danta Ramgarh | CPI(M) | Lost |
15 | 2019 | Lok Sabha 17 | Sikar | CPI(M) | Lost |
16 | 2023 | Vidhan Sabha 16 | Danta Ramgarh | CPI(M) | Lost |
17 | 2024 | Lok Sabha 18 | Sikar | CPI(M) | Won |
जीवन परिचय
हाल ही में हुए देशभर में चर्चित सीकर किसान आंदोलन के नेतृत्व कृता कॉमरेड अमराराम का जीवन परिचय। किसान बंधुओं में खासा लोकप्रिय, ठेठ देशी अंदाज, साधारण जीवन, और सीकर की राजनीति का लाल सितारा। इनका जीवन संघर्ष का प्रयाय रहा है, तो इंसान भी क्रांतिकारी ही रहा होगा।
सीकर की धोद तहसील का एक गांव है, मूंडवाड़ा. साल था 1987. 32 साल का एक नौजवान अपने गांव आया हुआ था। यहां उसके रिश्तेदारी में एक शादी थी। पिछले कई महीनों से पुलिस उसका पीछा कर रही थी लेकिन फिर भी जोखिम लेकर वो पारिवारिक जश्न में शामिल हुआ था.
वो महज़ 26 साल की उम्र में गांव का सरपंच बन गया था. यह बतौर सरपंच उसका दूसरा टर्म था. सुबह करीब छह बजे वो उठा. उसे बताया गया कि चार सौ पुलिस वाले गांव के बाहर उसे गिरफ्तार करने के लिए खड़े हैं. वो कई महीनों से पुलिस को चकमा दे रहा था. अब शायद उसे धर लिया जाने वाला था.
उसकी नींद खुली और उसने दौड़ना शुरू किया. उस समय पुलिस के पास आज की तरह संसाधन नहीं हुआ करते थे. वाहन के नाम पर जीप होती थी जो कच्चे रास्ते में फिसड्डी साबित होती थी. पुलिस महकमे में स्पोर्ट्स कोटे से अच्छे धावक भर्ती किए जाते थे. इन्हें लोग रेसर के नाम से जाना करते थे. इनका काम कच्चे रास्तों और खेतों में अपराधी को दौड़ कर पकड़ने का होता था.
नौजवान दौड़ता देख कर पुलिस ने अपने रेसर उसके पीछे दौड़ा दिए. यह दौड़ करीब डेढ़ किलोमीटर चली. नौजवान दौड़ते-दौड़ते पास ही के गांव मांडोता के बस स्टैंड के करीब पहुंच गया. पुलिस का रेसर उससे महज़ 20 कदम की दूरी पर था. बस स्टैंड पर खड़े लोग इस दौड़ को देख रहे थे. पुलिस के रेसर ने चिल्ला कर कहा, “पकड़ो-पकड़ो, चोर-चोर”. नौजवान जानता था की इस गांव में लोग उसका साथ देने वाले हैं. इसी गांव की वजह से वो आज फरारी काट रहा था. नौजवान पीछे की तरफ मुड़ा और रेसर की तरफ दौड़ लगा दी. रेसर ने सुन रखा था कि पुलिस को बार-बार चकमा देने वाला यह नौजवान हमेशा खतरनाक हथियार लेकर चलता है. पुलिस की टुकड़ी यहां से काफी दूर थी. डर की मारे रेसर नौजवान से दूर भागने लगा.
नौजवान फिर गांव की तरफ लौटा तो बस स्टैंड पर खड़े लोग यह नज़ारा देख कर हंस रहे थे. उसे गले लगाया गया, पानी पिलाया गया. आखिर इसी गांव की वजह से वो यह सब भुगत रहा था. जल्दी एक आदमी को गांव की तरफ दौड़ाया गया ताकि नौजवान को भगाने के लिए ऊंट का बंदोबस्त किया जा सके. इस नौजवान का नाम था अमरा राम.
मांडोता गांव का एक लड़का था मंगल सिंह यादव. अमराराम और मंगल सिंह बचपन के दोस्त हुआ करते थे. छात्र जीवन में दोनों का रुझान मार्क्सवादी राजनीति की तरफ हुआ. मंगल उस समय मूंडवाड़ा गांव में सरकारी टीचर की नौकरी किया करते थे . वो सीकर किसान हॉस्टल में अपने छोटे भाई काना राम के साथ रहा करते थे. यह हॉस्टल 1935 के किसान आंदोलन की देन था और आज़ादी के बाद सीकर में मार्क्सवादियों का बड़ा अड्डा था.
22 अप्रैल 1987. मंगल मूंडवाड़ा से ड्यूटी करके लौटे थे. उस समय सीकर में वकीलों का एक आंदोलन चल रहा था और शाम को मशाल जुलूस रखा गया था. मंगल इस मशाल जुलूस में शामिल होकर देर शाम हॉस्टल की तरफ लौटे. हॉस्टल के पास ही मिलन रेस्टोरेंट हैं. मंगल और उनके साथियों ने बतकही और चाय के लिए यहां अड्डा जमा लिया. इधर पुलिस को मारपीट के एक मामले में मंगल की तलाश थी. वो उन्हें गिरफ्तार करने पहुंच गई. मंगल के साथ उनके साथी सोहन लाल और नाणदा राम को भी पुलिस गिरफ्तार कर लिया. इस बीच इस गिरफ्तारी की सूचना हॉस्टल पहुंच गई. छात्रों का एक गुट पुलिस के पीछे लग गया और पुलिस पर पथराव करने लगा. सीकर हॉस्पिटल के पास से लोग हॉस्टल की तरफ लौट आए.
मंगल को थाने में छोड़ कर पुलिस पूरी तैयारी के साथ फिर से लौटी और हॉस्टल पर चढ़ गई. पुलिस का कहना है कि छात्रों की तरफ से पुलिस पर गोलियां दागी गईं जबकि हॉस्टल के भीतर मौजूद लोग 30 साल बाद भी सिर्फ पथराव की बात को कबूल करते हैं. खैर पुलिस की तरफ से गोली चली और मंगल का छोटा भाई कानाराम इस गोलीबारी में शहीद हो गया. सीपीएम और उससे जुड़े तमाम संगठनों के दूसरे नेता गिरफ्तार कर लिए गए. बच गए सिर्फ अमरा राम. वो उस समय वहां मौजूद नहीं थे. अमरा राम याद करते हैं-
“जिस समय सीकर में गोली चल रही थी, मैं अपने गांव मूंडवाड़ा में लादूराम जोशी जी के पास बैठा था. लादूराम जी स्वतंत्रता सेनानी थे और सीकर के लोग उनकी बड़ी इज़्ज़त किया करते थे. लेकिन जब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की तो मेरा नाम सबसे ऊपर लिखा गया. इसकी वजह थी 1985 के किसान आंदोलन में मेरी भूमिका. मजबूरी में मुझे भूमिगत होना पड़ा.
छात्रों से उनका हॉस्टल छीन लिया गया. इस दौरान अमरा राम भेष बदल कर गांव-गांव में इस पुलिसिया दमन के खिलाफ सभाएं कर रहे थे. इस बीच कई मौकों पर वो पुलिस की गिरफ्त में आते-आते बचे.
अब हम फिर से मांडोता गांव के बस स्टैंड की तरफ लौटते हैं. अमरा राम की सांस सामान्य गति में लौट आई. उनके सामने एक ऊंट खड़ा था. वो तेज़ी से उस पर चढ़े. तब तक पुलिस भी मांडोता पहुंच चुकी थी. पुलिस को देख कर उन्होंने अपने ऊंट को भगाना शुरू किया. अमरा राम यहां पैदा हुए थे. उन्होंने स्कूली दौर में यहां के मैदानों में बकरियां चराई थीं. वो हर कच्चे रास्ते से वाकिफ थे. अमरा राम तेजी से उन रास्तों की तरफ बढ़ने लगे जहां से जीप का गुज़रना मुमकिन नहीं था. भागते हुए अमरा राम को पीछे से भड़ाक की आवाज आई. गोली दगी थी. उनकी किस्मत रही कि पुलिस का फायर उनको छू नहीं पाया. अमरा राम ने भी हमारी-आपकी तरह बचपन में स्कूल की पोथी में पढ़ा था , “ऊंट रेगिस्तान का जहाज़ होता है.” उस दिन उन्हें इसका असल मतलब पता चला.
अमरा राम पुलिस को एक बार फिर से चकमा देकर भाग गए थे. गांव-गांव में इस कहानी के अलग-अलग संस्करण चल चुके थे. हर बार सुनाने वाला अपनी तरफ से इसमें कोई क्षेपक जोड़ देता था. अमरा राम धीरे-धीरे एक आदमी की बजाए किवदंती बनते चले गए.
14 अप्रैल 2017. सीकर की सब्जी मंडी में चल रही विजय सभा को संबोधित करने बाद वो मंच से नीचे उतर रहे थे. लोग उनके चारों तरफ खड़े थे. नौजवान अजीब से कोण से उनको फ्रेम में घुसा रहे थे ताकि उनके साथ सेल्फी ली जा सके. वो लोगों से हाथ मिला रहे थे, गले लग रहे थे. इस बीच एक किसान अपने हाथ में हुक्का लिए उनके करीब पहुंचा. उसने हुक्का अमरा राम की तरफ इस अंदाज़ में बढाया कि इसे इतनी जनता के सामने पीकर साबित करो कि तुम हमारे जैसे ही हो. चार बार विधायक बनने के बाद भी भीतर का किसान अभी जिंदा है. अमरा राम ने हुक्का लिया और एक हल्का कश मारा. लोग ताली बजाने लगे.
राजनीति में अमरा राम को साढ़े तीन दशक हो चुके हैं लेकिन उनकी किसान वाली पहचान अब भी कायम है. किसानों के धरने में अक्सर उन्हें लोगों के साथ बीड़ी और तम्बाकू वाली चिलम पीते देखा जा सकता है. लंबे समय तक उनके पास एक पुरानी महिंद्रा जीप रही थी. सफ़ेद कुरता पैजामा और गले में गमछा. कृषि मंडी के महापड़ाव में मिले एक किसान ने हमें बताया,
- “हमारे गांव में जो लोग कांग्रेस या बीजेपी का झंडा ढोते हैं, उनको भी अगर किसानी के मामले में कोई मदद चाहिए तो वो भी अमरा राम के पास ही पहुंचते हैं. ये आदमी सीकर में मोदी से भी ज़्यादा लोकप्रिय है. इन्होंने आज तक आठ किसान आंदोलन सीकर में किए हैं, यह नौवां है. अब तक के सारे आंदोलन सफल रहे हैं. इस वजह से जनता का भरोसा है कि अमरा जिस काम को हाथ लगाएगा उसका रिजल्ट आएगा.”
आंदोलनों की वजह से अमरा राम किसानों के बीच खासे लोकप्रिय हैं.
एक सीनियर पत्रकार 2004 का चुनाव कवर करने सीकर गए थे. उन्होंने बताया कि उस समय सीकर में नारा लगा करता था ‘लाल-लाल लहराएगा, अमरा दिल्ली जाएगा.’ उन्होंने जनता का मूड भांपने के लिए चाय की दुकान पर एक बूढ़े किसान से पूछा कि क्या अमरा राम यह चुनाव जीत पाएंगे? जवाब आया,
- “अमरा राम का समर्थक होने के बावजूद मैं उन्हें वोट नहीं दूंगा. अगर अमरा राम दिल्ली चला गया तो पटवारी से हमारी ज़मीन की सही पैमाइश कौन करवाएगा?”
उनकी जीप के बारे में भी काफी किस्से मशहूर थे. दूसरे विधायकों से उलट वो एक सेकेंड हैण्ड जीप रखा करते थे और उसे खुद ही चलाया करते थे. किसानों के प्रदर्शन के दौरान दूर से एक जीप आ रही होती थी. जीप, जिसका रंग फीका पड़ चुका होता. जैसे-जैसे जीप करीब आती लोग उठ खड़े होते. तालियां बजाने लगते. अमरा राम बताते हैं-
“1981 के साल में मैं पहली बार सरपंच बना. 1984 के साल में यह तय हो चुका था कि मुझे 1985 का चुनाव लड़ना है. अब बस या मोटरसाइकिल के भरोसे चुनाव प्रचार नहीं किया जा सकता था. मैंने अपने ही गांव के एक आदमी से 70,000 रुपए में एक जीप खरीद ली. उसके पैसे भी मैंने टुकड़ों में चुकाए. इसके बाद 1993 में जब विधायक बना, तभी यह जीप चलने से मना करने लगी. मैंने नीलामी से आर्मी डिस्पोज़ल जीप (सेना अपने इस्तेमाल के बाद जिन्हें नीलाम कर देती है) खरीद ली. इसे मैं 2011 तक चलाता रहा. तब तक वो भी खस्ताहाल हो चुकी थी.”
“मेरा विधानसभा क्षेत्र दांता-रामगढ़ भी काफी लंबा-चौड़ा था. मैं खुद ही जीप चलाया करता था. एक गांव के दौरे के बाद जब घर लौट रहा था तो रास्ते में ड्राइव करते-करते नींद आ गई. मेरे साथ कुछ पार्टी कार्यकर्ता भी थे. हम एक पेड़ से टकराते-टकराते बचे. इससे वो लोग काफी नाराज़ हुए. इस घटना के बाद मैंने किस्तों पर नई बोलेरो खरीद ली.”
एक भूतपूर्व अध्यापक आखिर इतना पॉपुलर नेता बना कैसे?
1969 में अमरा राम 8वीं क्लास से आगे की पढ़ाई के लिए अपने गांव से सीकर आए. यहां उन्हें रहने का आसरा मिला किसान हॉस्टल में. सीकर में मार्क्सवादी आंदोलन का लंबा इतिहास रहा था. आज़ादी से पहले से आल इंडिया किसान सभा (AIKS) यहां सक्रिय रही थी. 1952 में पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के रामदेव सिंह मेहरिया को किसान सभा के ईश्वर सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
इसी किसान आंदोलन की उपज थे कामरेड त्रिलोक सिंह. त्रिलोक सिंह किसान नेता थे और किसान हॉस्टल सीकर उनका स्थाई अड्डा था. अमरा राम त्रिलोक से काफी प्रभावित हुए वामपंथी छात्र आंदोलन से जुड़ गए. 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद सीकर श्री कल्याण कॉलेज में छात्रसंघ के चुनाव हुए. यह कॉलेज छात्रों की संख्या के लिहाज से राजस्थान का सबसे बड़ा कॉलेज था. उस समय इस कॉलेज में करीब 14,000 छात्र हुआ करते थे.
सीपीएम की छात्र इकाई एसएफआई की तरफ से मैदान में उतरे किशन सिंह ढाका. उन्होंने बड़े अंतर के साथ अध्यक्ष पद का चुनाव जीता. किशन सिंह ढाका से शुरू हुआ यह सिलसिला 2014 में टूटा, जब संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यर्थी परिषद् ने इस कॉलेज के छात्रसंघ की सभी चारों सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की. किशन सिंह ढाका के बाद 1978 के चुनाव में अमरा राम को अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतारा गया. उन्होंने किशन सिंह ढाका की विरासत को आगे बढ़ाया.
छात्र राजनीति में अमरा राम ने किशन सिंह ढाका की विरासत संभाली.
इस बीच अमराराम बीएड कर चुके थे. कॉलेज से निकलने के बाद उन्हें शिक्षा विभाग में बतौर टीचर नौकरी मिल गई और वो अपने ही गांव के सरकारी स्कूल में ‘मारसाब’ बन गए. तकरीबन एक साल तक नौकरी करने में बीता. 1981 का साल था और सूबे में पंचायत चुनाव थे. अमरा राम ने नौकरी छोड़ दी और अपने गांव से सरपंच का चुनाव लड़ा. उस चुनाव में सीपीएम ने दो छात्र नेताओं को सरपंच चुनाव में उतारा था. किशन सिंह ढाका और अमरा राम. दोनों चुनाव जीत गए. त्रिलोक सिंह के बाद अब सीपीएम को ज़िले में दूसरी पंक्ति के नेता मिलने शुरू हो गए थे.
त्रिलोक सिंह 1985 में सरपंच रहते हुए धोद से ही सीपीएम की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े. इस चुनाव में कांग्रेस की तरफ से रामदेव सिंह मेहरिया चुनाव लड़ रहे थे. उनके सामने लोकदल की तरफ थे जय सिंह शेखावत. रामदेव मेहरिया ने 35,549 वोट हासिल करके चुनाव जीता. जय सिंह 27,240 वोट के साथ उनके निकटतम प्रतिद्वंदी साबित हुए. अमरा राम 10, 281 वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे. यह उनका पहला चुनाव था और शुरुआत के लिहाज से यह आंकड़ा बुरा नहीं था.
1990 में सूबे में फिर से चुनाव हुए. 1987 के आंदोलन की वजह से अमरा राम को काफी लोकप्रियता हासिल हुई थी. चुनाव में फिर से 1985 वाला त्रिकोण मैदान में था. इस बार भी वही नतीजे सामने आए. रामदेव मेहरिया ने 32,906 वोट के साथ पहले नंबर पर रहे. जय सिंह शेखावत 30,614 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे. वो इस बार जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. अमरा राम सीपीएम की टिकट पर फिर से तीसरे नंबर आए लेकिन इस चुनाव में उनका वोट डेढ़ गुना बढ़ा. उन्हें 26,868 वोट हासिल हुए.
1990 के विधानसभा चुनाव में अमरा राम तीसरे नंबर पर थे.
अमरा राम विधायक बने:1993
इस बीच 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. चार सूबों में बीजेपी की सरकार बर्खास्त कर दी गई. 1993 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के वक़्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, लिहाज़ा रामदेव सिंह मुस्लिम मतदाताओं के निशाने पर आ गए. ऐसे में मुलिम वोट शिफ्ट हुआ सीपीएम की तरफ. अमरा राम इस बार चुनाव जितवाने वाले समीकरण के साथ मैदान में उतरे.
राजस्थान विधानसभा की सीट नंबर 33, माने धोद का परिणाम घोषित हुआ. सीपीएम के अमरा राम ने शेखावाटी के कद्दावर नेता रामदेव सिंह मेहरिया को पटखनी दे दी. वो रामदेव सिंह मेहरिया जिनके दादा बक्साराम मेहरिया किसी दौर में सीकर दरबार को लोन दिया करते थे. रामदेव सिंह मेहरिया जिन्होंने 40 साल के अपने सियासी करियर में किसान सभा के नेता ईश्वर सिंह के हाथों सिर्फ एक हार देखी थी. इस बार फिर से किसान सभा के ही एक और नेता अमरा राम ने उनकी सियासी पारी का अंत किया.
1993 के विधानसभा चुनाव में अमरा राम ने पहली बार जीत हासिल की.
चुनाव में अमरा राम को मिले 44,375 के मुकाबले रामदेव सिंह 31,843 ही हासिल कर पाए थे. चुनाव जीतने के बाद पहली बार विधानसभा पहुंचना आज भी अमरा राम को अच्छे ये याद है. वो बताते हैं-
“जब सीकर से बस के जरिए जयपुर पहुंचा और वहां से ऑटो लेकर विधानसभा. मैं विधानसभा के गेट के पास ही उतरा और पैदल चलते हुए गेट तक पहुंचा. वो गेट विधायकों के प्रवेश के लिए था. जब मैं गेट पाकर पहुंचा तो गार्ड्स ने मुझे भीतर नहीं घुसने दिया. उनके लिए उस बात पर भरोसा करना बहुत कठिन था कि कोई विधायक पैदल विधानसभा पहुंचा सकता है. मेरे पास दस्तावेज के तौर पर सिर्फ मेरी जीत का सर्टिफिकेट. काफी समझाइश के बाद अंत में मैं विधानसभा के भीतर दाखिल हो पाया.”
इसके बाद वो 2008 तक धोद सीट से माननीय विधायक रहे. उनके पास महिंद्रा की एक जीप हुआ करती थी. 2007 परिसीमन में यह सीट अनुसूचित खाते में डाल दी गई. 2008 में अमरा राम को सीट बदल लेनी पड़ी. वो बगल की सीट दांता-रामगढ़ से सीपीएम की टिकट पर मैदान में उतरे. वहां सीपीएम के पास कोई बहुत मजबूत जमीन नहीं थी. 2003 के विधानभा चुनाव में हरफूल सिंह सीपीएम की टिकट पर चुनाव लड़े थे और 13,278 वोट के साथ पांचवे नंबर रहे थे.
दांता-रामगढ़ से अमरा राम के सामने थे कांग्रेस के नारायण सिंह. वो 1993 से लगातार इस सीट से विधायक थे. मुकाबला काफी दिलचस्प था. नतीजे आए और इस सीट पर भी अमरा राम का जादू चल गया. उन्होंने 45,909 वोट हासिल किए. नारायण सिंह का खाता 40,990 पर सिमट गया.
इधर धोद सीट पर भी सीपीएम अपना कब्ज़ा बरक़रार रखने में कामयाब रही. यहां से पेमा राम आसानी से चुनाव जीत गए. पेमा राम भी अमरा राम की तरह मूंडवाड़ा गांव के रहने वाले थे. इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद उनके घर की तस्वीरें अखबार में छपी. दो कमरे वाला एक साधारण घर. पेमा राम जब चुनाव में खड़े हुए तो उनके पास ज़मानत के लिए ज़रूरी रकम भी नहीं थी. अमरा राम याद करते हैं-
“जब मैंने धोद सीट छोड़ी तो उस वक़्त पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि अगर पेमा राम इस सीट से चुनाव हारे तो मेरा यहां से तीन बार चुनाव जीतना बेकार जाएगा. लोगों ने वोट और नोट दोनों से पेमा राम की मदद की. उनका एक पैसा चुनाव में खर्च नहीं हुआ. उस सीट पर पेमा राम ने मुझसे ज़्यादा वोट हासिल किए. जब नतीजे आए तो मैं अपनी जीत से ज़्यादा पेमा राम की जीत पर खुश था.”
अपने ज़िले के दो कद्दावर नेताओं को धूल चटा चुके अमरा राम 2013 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के सामने नहीं टिक पाए. हालांकि सूबे में वसुंधरा राजे बीजेपी का चेहरा थीं लेकिन यह चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा था. अमरा राम और नारायण सिंह के अलावा इस बार मैदान में नए खिलाड़ी ने अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई. नाम था हरीश कुमावत और उनकी जेब में था बीजेपी का टिकट.
चुनाव हारे 2013
मोदी लहर में अमरा राम 2013 का चुनाव हार गए.
हरीश कुमावत पहले बगल के ही कस्बे कुचामन में नगरपालिका अध्यक्ष रहे थे. इसके बाद 2003 में नावां सीट से बीजेपी की टिकट पर विधायक बने थे. 2013 के चुनाव में उन्हें नावां की बजाए दांता-रामगढ़ सीट चुनाव लड़ने भेजा गया. कारण साफ़ था. दांता-रामगढ़ सीट पर कुमावत या प्रजापति समाज के वोट काफी अच्छी तादाद में थे. पिछले चुनाव तक प्रजापति समाज सीपीएम का वोटर माना जाता था. हरीश कुमावत के आने से सीपीएम के इस वोट बैंक में सेंध लग गई. नतीजतन नारायण सिंह 2008 में अपनी हार का बदला लेने में कामयाब रहे. नारायण सिंह 60,926 वोट लेकर पहले नंबर पर रहे. 60,351 वोट के साथ हरीश कुमावत उनके निकटम प्रतिद्वंदी साबित हुए. अमरा राम को 30,142 वोट के साथ तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा.
यह अमरा राम का अब तक का सियासी सफ़र रहा है. उनकी छवि साफ़-सुथरे जननेता की रही है. इस आंदोलन के बाद एक फिर से उनकी स्थिति मज़बूत हुई है. विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल का वक़्त बाकी है. ऐसे में इस आंदोलन ने उनके सियासी कद को कितना बढ़ाया, इसके मूल्यांकन में अभी थोड़ा वक़्त है।
- इस भाग के लेखक:बलबीर घींटाला, 9024980515, 9414980415
सीकर किसान आंदोलन 2017
1 सितंबर से राजस्थान के सीकर में किसानों का अनिश्चितकालीन आंदोलन चल रहा है. यहां से बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, गंगानगर का रास्ता जाता है जो इस आंदोलन के कारण बंद हो चुका है. सीकर से शुरू हुआ यह आंदोलन अब राजस्थान के 14 ज़िलों में फैल गया है. सीकर में रोज़ सभाएं हो रही हैं, रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हो रहा है. दस सितंबर को ज़िले के प्रभारी मंत्री से सीकर सक्रिट हाउट में बातचीत हुई मगर असफल रही. उसके बाद किसानों ने चक्का जाम का फैसला किया.
Ref - dainiknavajyoti 19.9.2017
सीकर। किसान प्रतिनिधियों और सरकार के बीच क़ृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी के कक्ष में वार्ता हुई, जिसमें 10 मांगों पर सहमति बनने का दावा किया जा रहा है। वही एक बड़ी मांग कर्ज माफी पर सहमति नहीं बनी है। कर्ज माफी को लेकर सरकार ने किसान नेताओं को आयोग बनाने का सुझाव दिया है। इस वार्ता में सरकार की ओर से कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी, सहकारिता मंत्री अजय सिंह किलक, बिजली मंत्री शामिल हैं।
वहीं किसानों के कर्ज माफी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू कराने सहित 11 सूत्रीय मांगों को लेकर सीकर में किसानों का महापड़ाव बुधवार 13वें दिन भी जारी रहा, वहीं चक्का जाम का बुधवार को तीसरा दिन है। चक्का जाम के कारण पूरा सीकर जिला जाम हो गया है। शहर में आना और यहां से जाना सब पूरी तरह से बंद है। केवल पैदल आने के अलावा कोई साधन नहीं है। हजारों की संख्या में किसान कृषि मंडी में सीकर-जयपुर मार्ग पर डेरा डाले हुए हैं। किसान पूरे जिले में करीबन 150 से अधिक स्थानों पर जाम लगाए बैठे हैं, जिसमें काफी संख्या में महिलाएं भी शामिल है।
इधर, चक्का जाम के चलते आमजन को परेशानी होना शुरू हो गई है, अधिकांश संगठन किसानों के आंदोलन के समर्थन में है। दूध-सब्जी की किल्लत से इनके भाव दोगुने हो गए हैं। सीकर शहर में दूध 80 रुपए किलो बिक रहा है, तो सब्जी के भाव दोगुने हो गए हैं। इसके साथ ऑटो व बसों के पहिए थमे हुए हैं। सरकारी दफ्तरों में कर्मचारी-अधिकारियों की संख्या में भी कमी आई है। रोजाना अप-डाउन करने वाले लोग दफ्तरों में नहीं पहुंच पा रहे हैं।
बता दें कि इस आंदोलन से करीबन चालीस से पचास करोड़ का व्यापार प्रभावित हो रहा है। वहीं चक्का जाम के चलते भारी पुलिस बल भी तैनात है। सीकर शहर सहित जिले में रींगस, श्रीमाधोपुर, खाटूश्याहमजी, नीमका थाना, दातारामगढ़, लक्ष्मणगढ़, फतेहपुर, नेछवा, लोसल, कटराथल, बाजौर, खंडेला, अजीतगढ़ और तमाम इलाकों में किसान महिलाओं के साथ चक्का जाम किए हुए हैं।
किसानों की 11 सूत्रीय मांगे
- 1- किसानों के संपूर्ण कर्ज माफ किए जाएं।
- 2- किसानों को फसलों का लाभकारी मूल्य दिया जाए. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
- 3- पशुओं को बेचने पर लगाई गई पाबंदी का कानून 2017 वापस लिया जाए. पशु व्यापारियों की संपूर्ण सुरक्षा की जाए।
- 4- आवारा पशुओं की समस्या का समाधान किया जाए. बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटाया जाए।
- 5- सहकारी समिति के कर्जे में कटौती को बंद किया जाए. सभी किसानों को सहकारी समितियों से फसली ऋण दिया जाए।
- 6- 65 वर्ष की उम्र के बाद किसानों को 5000/- रुपये मासिक पेंशन दी जाए।
- 7- बेरोजगारों को रोजगार दिया जाए।
- 8- सीकर जिले के वाहनों को जिले में टोल मुक्त किया जाए।
- 9- सीकर जिले को नहर से जोड़ा जाए।
- 10- किसानों को खेती के लिए बिजली मुफ्त दी जाए।
- 11- दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाई जाए. खाद्य सुरक्षा व मनरेगा को मजबूती से लागू किया जाए।
वार्ता में कर्ज माफी पर नहीं हुआ फैसला आज भी चक्का जाम रखेंगे किसान:
Ref - Bhaskar News Network | Last Modified - Sep 13, 2017
कर्जमाफी सहित 11 सूत्री मांगों को लेकर मंगलवार को भी किसानों का महापड़ाव चक्का जाम जारी रहा। देर शाम जयपुर में मंत्री समूह और किसान नेताओं के बीच करीब साढ़े तीन घंटे चली वार्ता में कर्ज माफी पर फैसला नहीं हो पाया। इसे लेकर बुधवार को एक बार फिर वार्ता का दौर शुरू होगा।
ऐसे में अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमराराम ने कर्ज माफी पर किसी तरह का फैसला नहीं होने तक चक्का जाम जारी रखने की घोषणा की है। मंगलवार को चक्का जाम के कारण शेखावाटी से निकलने वाले सभी नेशनल हाईवे स्टेट हाईवे जाम रहे। सोमवार को किसानों द्वारा जयपुर रोड पर चक्का जाम कर महापड़ाव डालने के बाद सरकार ने वार्ता का न्यौता दिया। मंगलवार को जयपुर स्थित कृषि भवन में मंत्री समूह किसान नेताओं के बीच वार्ता शुरू हुई। वार्ता में मंत्रियों ने किसानों की मांगों पर सहानुभूति जताई। लेकिन किसी भी मांग पर आखिरी फैसला नहीं हो पाया। कर्ज माफी के मुद्दे पर चर्चा के लिए बुधवार दोपहर एक बजे फिर वार्ता होगी। दो दिन से चक्काजाम के कारण आमजन को भारी परेशानी हो रही है। रोडवेज, निजी बस, ट्रक, निजी वाहन सब ठप हैं। पलसाना डेयरी में दो दिन से दूध नहीं जा रहा है। मंडियों में सब्जियां, फल अन्य कृषि जींस नहीं पा रहे हैं। इसके चलते सब्जी, दूध और फलों की किल्लत बढ़ रही है। फागलवा गांव में महिलाओं ने पुलिस की जीप को नहीं निकलने दिया। झुंझुनूं में मंडावा मोड़ पर पुलिस ने हल्का बल प्रयोग करके लोगों को खदेड़ा। जगह-जगह कच्चे-पक्के रास्तों को जाम कर दिया। इससे दूध, सब्जियां और फल सहित अन्य जरूरी वस्तुएं आमजन तक नहीं पहुंच सकी।
वार्ता में कर्ज माफी
राहगीरों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई और लोग रास्तों में ही फंस गए। वहीं चूरू जिला मुख्यालय पर किसानों ने सांकेतिक जाम किया। किसानों ने कुछ देर के लिए रोड जाम कर दी लेकिन पुलिस अधिकारियों ने समझाइश कर रास्ता खुलवा दिया। किसानों ने सादुलपुर कस्बे में बुधवार को हाईवे सहित सभी राजमार्गों पर अनिश्चितकालीन चक्काजाम की चेतावनी दी है।
श्रीगंगानगर में किसानों का बेमियादी चक्काजाम शुरू
किसानोंकी 11 सूत्री मांगों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में किसानों ने बुधवार से बेमियादी चक्काजाम की घोषणा की है। बुधवार को श्रीगंगानगर सहित राज्य के 21 जिलों में बसें चलेंगी ही ट्रेनें चलने दी जाएंगी। दूध, सब्जी की सप्लाई भी रोकी जाएगी और स्कूल बसों को भी रोकेंगे।
जयपुर स्थित कृषि भवन में मंगलवार को मंत्री समूह किसान नेताओं के बीच वार्ता हुई। वार्ता में मंत्रियों ने किसानों की मांगों पर सहानुभूति जताई, लेकिन किसी भी मांग पर आखिरी फैसला नहीं हो पाया। बुधवार दोपहर एक बजे फिर वार्ता होगी।
सर्वश्रेष्ठ विधायक का सम्मान
जयपुर | शांतिलाल चपलोत, गुलाबचंद कटारिया, गोविंद सिंह डोटासरा सहित 12 को सर्वश्रेष्ठ विधायक के तौर पर सम्मान मिला। मंगलवार 6 मार्च 2018 को राजस्थान विधानसभा में आयोजित एक कार्यक्रम में इन्हें सम्मानित किया गया। लंबे समय से विधायकों को यह सम्मान नहीं मिल रहा था, जिसकी शुरूआत फिर से की गई है।
विधानसभा में आयोजित समारोह में वर्षवार सर्वश्रेष्ठ विधायक के रूप में सम्मानित सम्मानित विधायक थे:
- शांतिलाल चपलोत को वर्ष 2003-04 के लिए,
- भरत सिंह को 2007,
- राजेन्द्र राठौड़ को 2009,
- गुलाबचंद कटारिया को 2010,
- अमराराम को 2011,
- सूर्यकांता व्यास को 2012,
- राव राजेन्द्र सिंह को 2013,
- माणिकचंद सुराणा को 2014,
- जोगाराम पटेल को 2015,
- गोविंद सिंह डोटासरा को 2016,
- बृजेन्द्र सिंह ओला को 2017 और
- अभिषेक मटोरिया को वर्ष 2018 के लिए
इस मौके पर सीएम वसुंधरा राजे ने कहा कि विधायकों के लिए विधानसभा ही सबसे अच्छी पाठशाला है। सत्ता और प्रतिपक्ष सदन में लोकतंत्र के दो पहिए होते हैं। इसलिए सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के साथी विधायकों के साथ हमारा व्यवहार समान रूप से सरल होना चाहिए। पक्ष-प्रतिपक्ष की भावना से ऊपर उठकर ही सदन के विभिन्न सदस्यों को सर्वश्रेष्ठ विधायक के रूप में चयन किया गया है। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने राज्यपाल कल्याण सिंह का संदेश पढ़ा। चुने गए सर्वश्रेष्ठ विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष ने प्रशस्ति पत्र, मुख्यमंत्री ने स्मृति चिन्ह, उपाध्यक्ष राव राजेन्द्र सिंह ने गुलदस्ता, संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने श्रीफल तथा नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर लाल डूडी ने शाल भेंट कर सम्मानित किया।
संदर्भ - दैनिक भास्कर जयपुर 7 मार्च 2018
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