Kharia Sirsa

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Note - Please click Kharia for similarly named villages at other places.


Kharian on Map of Sirsa District

Kharia (खड़ियां) (Kharian) is a large village in tahsil Rania of Sirsa district in Haryana. It is one of the biggest villages in District Sirsa

Location

It is situated at approx 28 KM North-West of Sirsa.

Jat Gotras

History

रामूराम जी नैण का खारिया आगमन

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है... चौधरी हरीशचन्द्र जी के पिता चौधरी रामूराम जी (1848-1911 AD) जब बीकानेर जाते थे तो महाराज खड़ग सिंह जी की पासवान चम्पा बनियाणी से जरूर मिलते। वह इन्हें बड़े प्रेम से खिलाती-पिलाती। राजवी जवानी सिंह मन में रामूराम जी से खुटक रखते थे। उन्होने मौका पाकर चम्पा पासवान के कान भरे कि यह चौधरी तुम्हारी निंदा करता है। चम्पा दबंग तो थी किन्तु व्यवहार कुशल न थी। उसने बिना छान-बीन किए महाराज डूंगर सिंह को भड़का दिया। महाराज ने रामूराम को पकड़ कर जूनागढ़ के किले में बंद कर दिया।

शेखावाटी में लोठू की बहादुरी के गीत गए जाते हैं। क्योंकि वह आगरे के किले में से कूदकर भाग आया था। चौधरी रामूराम ने भी ऐसी ही बहादुरी का काम किया। वे जूनागढ़ के किले में से दीवार फांदकर भाग आए और रातों रात शेरपुरा पहुंचे। शेरपुरा को अपनी उम्रभर के लिए नमस्कार कर वहाँ से बाल- बच्चो को लेकर चल दिये और गंधेली के पास सरदारपुरा आकर बस गए। उस समय चौधरी हरीशचन्द्र जी सिर्फ ढाई महीने के थे। कुछ दिन सरदारपुरा में रहकर पंजाब (वर्तमान हरयाणा) की सिरसा तहसील के खारिया गाँव को उन्होने अपना स्थाई निवास बनाया।

नेकी और बदी की कहानी साथ-साथ चलती है। बछराला को नैनों ने बसाया था। बीकानेर के राजा करणसिंह से 6 हजार बीघा जमीन उस आव-भगत के बदले ली थी जो उन्होने दिल्ली से लौटते हुये में राजा की गोठ की थी। यह जमीन सदा उनके पास ही रहनी चाहिए थी किन्तु करणसिंह के बाद राठौड़ नरेशों ने इस जमीन को किशनसिंहोत बीका को पट्टे पर दे दिया। ये पट्टेदार भोगता अर्थात निम्न श्रेणी के जागीरदार थे। आरंभ में ये लोग तंग हालत के थे इसलिए चौधरी हीराराम नैन से कर्ज लेते रहे। ठाकुर उम्मेद सिंह रुघ जी की कर्जे लेने की लिखत चौधरी हरीश चन्द्र जी के पास सुरक्षित है। कर्जा तो नैन लोग इन भोगतों को देते ही रहे किन्तु अन्य मूसीबतों में भी साथ देते थे। एक साल पट्टे की रकम चुकता न करने के कारण ठाकुर सगतसिंह को हवालात में दे दिया तो टोडा राम जी नैन उसे अपनी ज़िम्मेदारी पर छुड़ाकर लाये। इन सब अहसानों को सगतसिंह और उसके बेटे भूल गए और टोडा राम के पौतों को दुख देने लगे।

खैर रामूराम जी अपने पौरुष से ही मुक्त हो गए। बछरारे और शेरपुरा को भी छोड़ आए। खारिया गाँव जहा वे आए थे वहाँ एक नैन सरदार पहले से ही रहते थे । वे परगने के जेलदार भी थे। उन्होने रामूराजी को खारिया में बड़े प्रेम से स्थान दिया।

चौधरी हरीशचन्द्र जी लिखते हैं कि “पिताजी हम दोनों भाईयों और तीनों बहनों पर अत्यंत स्नेह करते थे। खारिया में रहकर उन्होने अपने कठिन परिश्रम से शीघ्र ही अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार लिया। दूध, घी के बिना तो वह रह ही नहीं सकते थे इसलिए बैल और ऊंटों के अलावा उन्होने गाय और भैंस भी खरीद ली। हमारी माताजी भी खूब श्रम करती थी। वास्तव में किसान का धंधा ही ऐसा है कि उसमें सभी कमाते हैं और घर में कितने ही आदमी हों थोड़े ही पड़ते हैं। हम दोनों भाई सयाने हुये तो हमसे खेती नहीं कारवाई। अपितु पढ़ने में लगाया। भाई हिमताराम तो थोड़े ही दिन पढे और मन उचाट गया। पिताजी के बहुत समझने पर भी नहीं माने। परंतु मैं पढ़ता ही रहा और लगातार 12 साल तक पढ़ा।“

“इसमें संदेह नहीं कि रामूराम जी निरे हट्टे-कट्टे ही नहीं थे समझदार भी थे। उनके बल और बुद्धि से लोग प्रभावित होते थे। खारिया गाँव में तो उनका पूरा प्रभाव हो गया था। अतिथि सत्कार में भी वे खारिया में अग्रणी हो गए थे। जानकार ही नहीं अनजान लोग भी आते तो सबको भोजन और निवास का प्रबंध होता था। वे अपनी संतानों को भी सुख देने में अग्रणी थे। बेटियों को भी अच्छा खिलाते-पिलाते थे और अच्छे घरों में शादी की। संतान के अलावा अन्य सगे संबंधियों की भी उन्होने बहुत सहायता और सेवा सुश्रूषा की।"

चौधरी हरीश चन्द्र जी की शिक्षा

ठाकुर देशराज[2] ने चौधरी हरीशचन्द्र जी के बारे में लिखा है कि उनकी प्रारम्भिक शिक्षा खरिया गाँव में हुई। ....उन दिनों तक शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ था। तहसील मुकामों पर स्कूल थे। गांवों और छोटे कस्बों में निजी पाठशालाएं चलती थी। खरिया गाँव में भादरा के पंडित रामनाथ पढाने आते थे। इन्हीं पंडित रामनाथ जी के पास चौधरी रामूराम जी के बेटे पढने लगे। स्कूल जाने का शौक चौधरी हरीश चन्द्र जी को कैसे लगा इसकी एक कहानी है। रामनाथ जी ने स्कूल के लिए गाँव वालों से कच्ची ईंटें तैयार करवाई। उन्हें ढोने का काम उनके शिष्य करते थे। बालक हरीश चन्द्र भी खेलता हुआ वहाँ पहुंचा। पंडित रामनाथ के शिष्यों ने हरीश चन्द्र से कहा तुम भी ईंट ढोलो तुम्हें एक ईंट की दो कौड़ी मिलेंगी। बालक हरीश चन्द्र ईंट ढोने को तैयार हो गए। पंडित रामनाथ ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा और पीपल के पत्ते पर खांड दी। बस यहीं से बालक हरीश चंद्र को पढ़ने का शौक लगा। और वह लगातार स्कूल जाता रहा। पंडित रामनाथ से बालक हरीश चन्द्र ने पढ़ने का श्रीगणेश किया और फिर बद्री प्रसाद जी से पढे। बद्री प्रसाद जी रेवाड़ी तहसील के सीहा गोठड़ा से आकार खरिया में पाठशाला आरंभ की। संवत 1949 तक बालक हरीश चन्द्र ने कुछ आधारभूत गणित और कुछ धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया। एक दिन गुरुजी ने उनकी पिटाई करदी तो वह जंगल में जाकर छुप गए और स्कूल जाने से मना किया। पिताजी उनको ढूंढकर लाये।

बालक हरीश चन्द्र को पिताजी ने समझा बूझकर वापस स्कूल भेजा। इसके बाद हरीश चन्द्र ने कभी भी पढ़ाई में नागा नहीं की। गाँव की हिन्दी की पढ़ाई पूरी कर हरीश चन्द्र अपने गुरुजी के गाँव सीहा गोठड़ा उर्दू पढ़ने गया। वहाँ की पढ़ाई पूरी कर वह गुरुजी के साथ ही लौट आया और पढना लिखना बंद हो गया। आस पास पढ़ने के लिए कोई स्कूल नहीं थी।

संवत 1951 में चौधरी रामूराम जी ने अपनी दो लड़कियों की शादी की क्योंकि संवत 1950-51 में फसल अच्छी हुई थी। इसके बाद श्रवण संवत 1951 में बालक हरीश चन्द्र उर्दू पढ़ने के लिए खिवाली गया।

Population

The Kharian village has a population of 9300, of which 4933 are males while 4367 are females (as per Population Census 2011).[3]

External links

Notable persons

  • चौ. भागमल बान्दर पुत्र चौ. नानकचन्द ग्रा.पो. खारिया तहसील व जिला सिरसा[4]

References


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