Khuri Bari

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

Note - Please click → Khuri for details of similarly named villages at other places.


Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Location of Khuri Bari in Sikar district

Khuri Bari/ Khuri Bari / Khudi Bari / Khudi Badi (खुड़ी बड़ी) / Khuri/ Khudi (खूड़ी) is a village in Laxmangarh tahsil, Sikar district in Rajasthan.

Location

Khuri Chhoti is on west of NH-11 between Sikar-Laxmangarh and Khuri Bari is on east.

Jat Gotras

The major Jat gotras in the village are Mahla, Thalod. Khuri came in the news in 1935 for struggle by jats against Jagirdari system in Sikar.

Khuri in Princely states report

The main agricultural caste in Rajasthan is the Jats: they comprise the largest single caste in the state (9 per cent), and were, in the 1930's and even earlier, the most self-conscious and prosperous among the peasant castes. In 1935 their claims to certain privileges led to a series of clashes between them and the Rajputs, who resisted their attempts to revise accepted signs of status. The clash of 1935 is reminiscent of similar ones in other areas between lower castes on the rise and higher established castes. [1]

The Jat demonstrations broke out in Sikar, the largest thikana in Jaipur State, and involved both economic and social issues. The Jats in the area had formed two associations, the Sikarwati Jat Panchayat and the Jat Kisan Sabha, and had received some help and encouragement from the British Indian province of Uttar Pradesh. Some of these "outsiders" were organizers for the socialist-oriented Kisan Sabha which attempted to mobilize the peasantry in the 1930's in response to radical pressures in the Congress. [2]

The initial demonstration in Khuri village on March 27, 1935, was occasioned by a social issue, whether a Jat bridegroom should be allowed to ride to his bride's house on a horse, a ceremonial act asserting higher station than Rajputs were prepared to concede. 20 March 1935 was a day of marriage in a Jat family in Khuri. The barat had come and they were preparing for the toran ceremoney with bridegroom riding a horse. The Rajputs objected, the Jats insisted, fighting broke out, and an old Jat Ratan Singh Bajiya was killed. Jats and Rajputs gathered in large number. Jats sat on dharna and refused to return the barat. The incident led to further clashes, and the thikana police, the Sikar Lancers, under command of the English chief of the Sikar police Captain veb reached Khuri on 27 March 1935, warned the crowd to disperse. The Rajputs dispersed but Jats did not move. Captain Veb charged the Jat crowds with lathis (quarter-staffs), killed four Jats and injured about 100 Jats. [3] The incidence of Khuri was condemned all the news papers and by Mahatma Gandhi wrote a strong note in Harijan news paper about this incidence. [4]


This incident was followed by others as Jats in the area protested against the revenue collections and resisted and attacked Sikar revenue officials on April 22 1935 at Bhainrupura and at Kudan village on April 25 1935. The Sikar police killed four Jats while putting down this last demonstration and arrested 104 persons. The anti-rent agitation eventually involved some twenty-one villages, and local headmen were as active as any outsiders. A school where, according to the Jaipur durbar, unlawful doctrines were being preached by a Jat teacher from outside the state, was knocked down. The agitation had some effects. The Rao Raja of Sikar remitted all arrears of revenue previous to 1934 and promised to open schools, provide loans where needed, and embark on a permanent land settlement that would introduce some certainty into the vagaries of the thikana's revenue demand. [5] [6]

खुड़ी में लाठीचार्ज

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है ....15 मार्च 1935 को चौधरी सर छोटूराम जी के प्रयत्न से एक समझौता और हुआ उसके अनुसार पिछली सहूलियतों के अलावा कुछ ओर सहूलियतें और देना स्वीकार किया गया।

संभावना यह थी की यह दोनों समझौते अवश्य ही अमल में आ जाएंगे किंतु इस समझौते के ठीक पांचवें दिन एक ऐसी दुर्घटना हुई जिसने सारा खेल बिगाड़ दिया।

खुड़ी के जाटों की एक बारात गई हुई थी। वहां के भौमिए राजपूतों ने घोड़ी पर चढ़ कर तोरण मारने से जाट वर को रोक दिया। जाटों ने सीकर के अधिकारियों से भौमियों के इस अनुचित हस्तक्षेप के खिलाफ कार्यवाही करने की प्रार्थना की। सीकर के अधिकारियों ने भौमियों को नेक सलाह देने के बजाय दूल्हे के एक संबंधी को गिरफ्तार कर लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि भोमियों का दिमाग और शह पर चढ़ गया और उन्होंने दूसरे दिन रतना चौधरी का, जब कि वे जा रहे थे, सिर काट लिया। जाट इस पर भी शांत रहे। इन्होंने तोरण मरने के लेए धरणा दे दिया, बारात वापस नहीं की। तारीख 27 मार्च 1934 को वेब घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया। यह लाठीचार्ज क्या था जान देने वाला कांड था। इसमें 4 आदमी जान से मर गए। और 100 के लगभग घायल हुये। ....कर्मवीर खंडवा 25 मई 1936


[पृ.279] इससे आगे का विवरण कर्मवीर के इसी अंक में इस प्रकार प्रकाशित हुआ अस्पृश्यता की ही परिणाम है।

सीकर की भयंकर घटना पर टिप्पणी करते हुए महात्मा जी ‘हरिजन’ में लिखते हैं... जयपुर राज्य के अंतर्गत सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गांव है। मेरे पास जो पत्र आए हैं उनसे इस बात की पुष्टि होती है कि गत 28 मार्च 1934 को राजपूतों की एक टोली ने जाटों की एक बारात को घेर लिया। बेचारे निहत्थे जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाई-- गुस्ताखी बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर सवार था। [कहीं-कहीं तो राजपूतों के सामने गरीब जाट न तो खटिया पर बैठ सकते हैं न हुक्का ही नली लगाकर पी सकते हैं] इधर दुनिया के इस हिस्से में रवाज मालूम देता है कि शादी-ब्याह के अवसर पर जाटों को हाथी या घोड़े की सवारी के लोग में नहीं आना चाहिए। यह विश्वास किया जाता था कि दोनों पार्टियों में समझौता हो गया है और किसी भी अवसर पर जाट लोग हाथी या घोड़े को सवारी के काम में ला सकते हैं। इन घटनाओं से तो यह जाहिर होता है कि जिसने यह करार कराया था वह उसका पालन कराने में राजपूतों पर जो जोर नहीं डाल सका। कहा जाता है कि राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को कत्ल कर दिया। 40 आदमी से ऊपर ही लाठियों से सख्त घायल हुये और एक आहात तो बेचारा मर ही गया।


[पृ.280]: हमें आशा करनी चाहिए कि राज्य के अधिकारी इस मामले की पूरी पूरी तहकीकात करेंगे और गरीब जाटों को उचित संरक्षण देंगे कि जिससे वे उन सभी अधिकारों को अमल में ला सकें जो मनुष्य मात्र को प्राप्त है।

सीकर के जाटों पर जुल्मों का पहाड़

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा।

लादूराम और बिरम सिंह दो जाट किसी कारणवश सीकर आए थे उन्हें गिरफ्तार करके बुरी तरह पीटा गया। बीरमसिंह की हालत नाजुक कही जाती है। खुड़ी के राजपूतों के घस्सू गांव के 4 जाटों को पकड़कर मनमाना पीटा और पुलिस ने गिरफ्तार करा दिया।


सरदार पन्ने सिंह जी जाखड़ ग्राम कोलीड़ा को बहुत पीटा जा रहा है। पुलिस इंचार्ज के नाम पूछने पर उसने अपना नाम पन्नेसिंह बतलाया था। उसको अपना नाम थाने पर लिखाने को कहा जाता है, परंतु वह नहीं लिखाता।


[पृ.284]: कई घायल अस्पताल में भर्ती नहीं किए जाने के कारण ग्रामों की ओर जा रहे हैं। खुड़ी में आए हुए जाटों से बीबीपुर ग्राम का एक और घस्सु ग्राम के 2 जाट का पता नहीं है। जाट जनता में विश्वास है कि वे दोनों खुड़ी में लाठीचार्ज के समय मर गए। उनके घरवाले उन्हें ढूंढ रहे हैं। अभी तक उनका या उनकी लाश का पता नहीं चला है।

खुड़ी में गोलीकांड 1935

संभावना यह थी कि ठिकानेदारों के किसानों के साथ हुए दोनों समझौते 23 अगस्त 1934 और 15 मार्च 1935 अब अवश्य ही अमल में आएंगे किन्तु इस समझौते के ठीक पांचवें दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने सारा खेल बिगड़ दिया. 20 मार्च 1935 को खुड़ी गाँव में एक जाट लड़की का विवाह था. जाट घोड़ी पर बैठकर तोरण मारना चाहते थे परन्तु वहां के राजपूत भौमियों ने ऐसा करने से रोक दिया. जाटों ने सीकर के अधिकारियों से भौमियों के इस अनुचित हस्तक्षेप के खिलाफ कार्यवाही करने की प्रार्थना की. सीकर के अधिकारियों ने भौमियों को नेक सलाह देने के बजाय दुल्हे के एक सम्बन्धी को गिरफ्तार कर लिया. इसका नजीता यह हुआ कि भौमियों का दिमाग और शह पर चढ़ गया और उन्होंने दूसरे दिन 22 मार्च 1935 को रतनाराम बजिया का , जबकि वह ठाकुरों की कोटड़ी के सामने से जा रहे थे, सर काट दिया. जाट इस पर भी शांत रहे. उन्होंने तोरण मारने के लिए धरना दे दिया, बारात वापस न की. जाट व राजपूत दिन-प्रतिदिन बड़ी संख्या में एकत्रित होने लगे. स्थिति गंभीर होती गयी. तब 27 मार्च 1935 को कैप्टन वेब स्वयं खुड़ी पहुंचे और जाटों और राजपूतों को बिखर जाने का आदेश दिया. राजपूत तो बिखर गए, परन्तु जाट डटे रहे. तब वेब ने लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया. लाठी चलाने में गाँव के ठाकुरों ने भी आगे बढ़कर भाग लिया. वेब के सामने ही बर्बरता का खुला प्रदर्शन हुआ. निहत्ते किसान जमीन पर लेट गए. इस काण्ड में दो आदमी जान से मरे और 100 के लगभग घायल हुए. [बीकानेर कोंफिड़ेंसियल रिकोर्ड, फ़ाइल न. 29-सी, रा.रा.ए. बीकानेर, दी सन्डे स्टेट्समेन 31 मार्च 1935] इस घटना पर महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में बड़े कड़े शब्दों में अपनी टिपण्णी लिखी. "जयपुर राज्य के अंतर्गत सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गाँव है. ...गत 27 मार्च को राजपूतों की एक टोली ने जाटों की एक बारात को घेर लिया और बेचारे निहत्ते जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाईं. गुस्ताखी उन बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर स्वर था. ...राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को क़त्ल कर दिया... आशा करनी चाहिए कि राज्य के अधिकारी इस मामले की पूरी तहकीकात करेंगे और गरीब जाटों को ऐसा उचित संरक्षण देंगे की जिससे वे उन सभी अधिकारों को अमल में ला सकें जो मनुष्य मात्र को प्राप्त हैं." [9][10]

जयपुर सरकार का कड़ा रुख - खुड़ी कांड के बाद सीकर के अधिकारियों ने जाटों पर हो रहे अत्याचारों पर कोई ध्यान नहीं दिया. सीकर में जो भी जाट आया, पुलिस वालों ने उसे पकड़ा और पीटा. जो आदमी सीकर में माल बेचने गया उसको पीटा और माल छीन लिया. जयपुर के अधिकारियों ने भी जाटों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया. उलटे जाटों का दमन करने के लिए कुछ कठोर कदम उठाये. 10 अप्रेल 1935 को जयपुर सरकार ने दो आदेश निकले. एक आदेश से आठ बहरी नेताओं को जयपुर राज्य से निष्कासित कर दिया. ये लोग थे- 1 .बाबा नरसिंहदास अग्रवाल नागौर, 2 . कुंवर रतनसिंह भरतपुर, 3 . ठाकुर देशराज भरतपुर, 4. हुकुम सिंह और 5.भोला सिंह, उपदेशक अखिल भारतीय जाट महासभा, 6. मूलचंद्र अग्रवाल रींगस, 7.तुलसीराम मन्सुदा आगरा, तथा 8. रामानंद उर्फ़ दयानंद जाट भरतपुर [जयपुर ज्यूडिसियल रिकार्ड, फाईल न. 4326 , रा.रा.अ. बीकानेर]. दूसरे आदेश से सीकरवाटी जाट पंचायत और जाट किसान सभा को अवैधानिक संस्थाएं घोषित कर लोगों को इसमें भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. साथ ही सीनियर अफसर कैप्टन वेब को इन आदेशों को लागू करने तथा ठिकाने में शांति बनाये रखने के लिए विशेष अधिकार प्रदान किये. [दी जयपुर गजट, असाधारण, 10 अप्रेल 1935] [11]

थालोड़ गोत्र का इतिहास

थालोड़ गोत्र के रेकोर्ड उनके बडवा गोपालराव (मोबा - 09828173479) गाँव श्रीनगर, तहसील राजगढ़, जिला अलवर द्वारा रखे जाते हैं. इनके अनुसार थालोड़ गोत्र की उत्पति चौहान वंश में आबू पर्वत से मानी गयी है. इनके पहिचान चिन्ह हैं - सफ़ेद झंडा, नगारा बेरीसाल, वृक्ष चंपा, निशान घोडा सफ़ेद.

बडवा गोपालराव के बही अनुसार चौधरी बाबलजी धमाणा से आये और चैत बदी दूज संवत 1221 (1164 AD) में लोसल-खेड़ा गाँव बसाया. पक्का कुआ करवाया. कुआं चिनते समय तीन आदमी दब गये. थालोड़ लोग खुवान माता को मानते है. बाबल को खुवान माता का दर्शाव हुआ. बाबल ने तीनों लोगों को जिन्दा निकाल दिया. तब से थालोड़ खुवान माता की पूजा करते हैं. खुवान माता ने प्रण करवाया कि कोई भी थालोड़ जाया कुए पर जूती नहीं ले जायेगा, शिकार नहीं करेगा, मांस नहीं खायेगा, सफ़ेद बकरी नहीं बेचेगा, न सफ़ेद बकरी का दूध खायेगा, न इसके दूध का बिलोवणा करेगा, हरा मुरायला नहीं काटेगा. यदि ये काम कोई करेगा तो उसका वंश नहीं चलेगा.

इनके कुल देवता शकल जी उर्फ़ सावल जी हैं. शकलजी का जन्म थालोड़ गोत्र में गाँव खुडी में पिता तहराजजी के घर चैत बदी 5 संवत 1652 (1595 AD) को हुआ. इनकी माताजी का नाम राजादेवी था और वे गाँव भोजासर के कानजी ढाका की पुत्री थी. राजादेवी के दो भाई थे - कोलाजी और दूदाजी.

शकलजी ने गायों को बचाने के लिए प्राण दिए. मुसलमान गायों को चुरा कर ले जा रहे थे. शकल जी ने चोरों का पीछा किया और छुड़ा कर सिधराणा जोड़ा में गायें ले आये. गायों को छुड़ाने में संघर्ष हुआ और उन्होंने 5 लोगों का क़त्ल किया. वे में लड़ाई में जुझार हुए. सिधराणा जोड़ा में शकलजी की देवली जेठ सुदी 11 संवत 1671 में चिनवाई. इनकी याद में बैसाख माह की चानणी 11 को मेला लगता है. पशुओं को रोग होने पर शकलजी की तांती बांधी जाती है. मस्से होने पर भुवारी चढ़ाई जाती है. यह मान्यता है की 2-3 दिन में मस्से ठीक हो जाते हैं.

सिधराणा जोड़ा खुडी से पहले सांवलोदा बस-स्टैंड से पूर्व में तथा राष्ट्रीय राजमार्ग-11 से आधा किमी पूर्व में स्थित है. वर्त्तमान में थालोड़ गोत्र के लोगों द्वारा शकलजी का एक सुन्दर मंदिर बनाया जा रहा है. शकलजी का एक मंदिर फतेहपुर से 8 किमी दूरी पर रतनगढ़ जाने वाली सड़क पर गाँव गोविन्दपुरा में बना है. यह मंदिर गाँव के श्री रिछपाल थालोड़ द्वारा बनाया गया है.

Population

As per Census-2011 statistics, Khuri Bari village has the total population of 2194 (of which 1110 are males while 1084 are females).[12]

Notable persons

  • Harphul Singh Khichar - Advocate, ph-01572-233641, mob-941492300
  • Hari Ram Thalod - Mob:9929295267
  • Birbal Singh Mahla - Asst. Branch Manager LIC, Date of Birth : 29-July-1962, Mobile Number : 9414117979
  • Suman (Thalor) - RTS, Date of Birth : 15-July-1982, Mob: 9460835521

चित्र गैलरी

External links

References

  1. Princely States Report
  2. Princely States Report
  3. The Statesman, 31 March 1935
  4. Sahiram: Ek adhūrī krānti, Shekhawati kā kisān āndolan (1922-1952), page-208
  5. Amrit Bazar Patrika, April 4, 1935; Statesmen, April 4 and 18, Mayj2 and 16, June 6, 1935; Times (London), April 30 and July 5, 1935. Barnett R. Rubin, Feudal Revolt
  6. Princely States Report
  7. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.278-280
  8. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.283-84
  9. ठाकुर देशराज : जाट जन सेवक, पृ.279-280
  10. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.116
  11. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.117
  12. http://www.census2011.co.in/data/village/81461-khuri-bari-rajasthan.html

Back to Jat Villages