Kundli
Kundli or Kundali (कुंडली) village is in district Sonipat in Haryana.
Location
It is situated on Delhi-Haryana border, on the main highway (National Highway No. 1) which is also called Sher Shah Suri Marg or GT Road. It falls under Rai tahsil of Sonepat district of Haryana. The newly-built Kundli-Manesar-Palwal expressway (also known as Western Peripheral Expressway) also passes through this village's lands. Many industrial units have been developed near this village, hence, agricultural area has reduced to a large extent.
Jat Gotras
History
This village took part in First war of Independence (1857) and many villagers were punished by Britishers. Please read book देशभक्तों के बलिदान written by Swami Omanand Sarswati. The contents of this book are available on this site.
कुण्डली का बलिदान
सूबा देहली में नरेला के आस-पास लवौरक गोत्र के जाटकुल क्षत्रियों के दस बारह ग्राम बसे हुए हैं । उनमें से ही यह कुण्डली ग्राम सोनीपत जिले में जी. टी. रोड पर है । इस ग्राम के निवासियों ने भी सन् 1857 के स्वतन्त्रता युद्ध में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था । यहां के वीर योद्धाओं ने भी इसी प्रकार अत्याचारी भागने वाले अंग्रेज सैनिकों का वध किया था ।
एक अंग्रेज परिवार ऊँटकराची में बैठा हुआ इस गांव के पास से सड़क पर जा रहा था । वे चार व्यक्ति थे, एक स्वयं, दो उसके पुत्र और एक उसकी धर्मपत्नी । जब वे चारों इस ग्राम के पास आए तो गांव के लोगों ने उँटकराची को पकड़ लिया । ऊँट को भगा दिया और कराची को एक दर्जी के बगड़ में बिटोड़े में रखकर भस्मसात् कर दिया । उस अंग्रेज और उसके दोनों लड़को को मार दिया । उस देवी को भारतीय सभ्यता के अनुसार कुछ नहीं कहा । उसे समुचित भोजनादि की व्यवस्था करके गांव में सुरक्षित रख लिया । जब युद्ध की समाप्ति पर शान्ति हुई तो एक अंग्रेज नरेला के पास पलाश-वन में, जो कुण्डली से मिला हुआ है, शिकार खेलने के लिए आया । उसकी बन्दूक के शब्द को सुनकर अंग्रेज स्त्री आंख बचाकर उसके पास पहुंच गई और उसने अपने परिवार के नष्ट होने की सारी कष्ट-कहानी उसको सुना दी । वह उसे अपने साथ लेकर तुरन्त देहली पहुंच गया । एक किंवदन्ती यह भी है कि उस कराची में 80 हजार का माल था जो उस ग्राम वालों ने लूट लिया । अंग्रेज आदि उस समय कोई कत्ल नहीं किया । वह माल लूटकर इस भय से कभी तलाशी न हो, नरेला भेज दिया गया । कुण्डली ग्राम के कुछ निवासी इस घटना को असत्य भी बताते हैं । कुछ भी हो, इस ग्राम को दण्ड देने के लिए एक दिन प्रातः चार बजे अंग्रेजी सेना ने आकर घेर लिया ।
ग्राम के वस्त्र, आभूषण, पशु इत्यादि सब अंग्रेजी सेना ने लूट लिये और सारे पशु इत्यादि को अलीपुर ले जाकर नीलाम कर दिया । स्त्रियों के आभूषण बलपूर्वक उतारे गये, यहां तक कि भूमि खोद-खोद कर गड़ा हुआ धन भी निकाल लिया गया । बहुत से व्यक्ति तो जो भागने में समर्थ थे, ग्राम को छोड़कर भाग गए । ग्राम के कुछ मुख्य-मुख्य आदमी जो भागे नहीं थे, गिरफ्तार कर लिए गए । कुछ व्यक्ति ग्राम के सर्वनाश का एक कारण और भी बताते हैं । जब अत्याचारी मिटकाफ जो काणा साहब के नाम से प्रसिद्ध था और हरयाणा के वीर ग्रामों को दण्ड देता और आग लगाता हुआ फिर रहा था, वह नांगल की ओर से आया तो कुछ व्यक्ति उसके स्वागत के लिए दूध इत्यादि लेकर नांगल की ओर चले गए । वे मार्ग में ही इसका स्वागत करके अपने गांव को बचाना चाहते थे । किन्तु उस दिन मिटकाफ ने दूसरे किसी ग्राम का प्रोग्राम नांगल, जाखौली इत्यादि का बना लिया । कुण्डली वाले विवश हो लौट आये । जिस समय यह लौट रहे थे, तो अंग्रेजी सरकार की चौकी पर मालिम नाम का व्यक्ति रहता था । उसने ग्रामवासियों से दूध मांगा कि यह दूध मुझे दे जाओ, किन्तु चौधरी सुरताराम जो कठोर प्रकृति के थे, उसे यह कहकर धमका दिया कि तेरे जैसे तीन सौ फिरते हैं, तेरे लिए यह दूध नहीं है । उस व्यक्ति ने कहा - अच्छा, मुझे भी उन तीन सौ में से एक गिन लेना, समय पड़ने पर मैं भी आप लोगों को देखूंगा । उसी व्यक्ति ने मिटकाफ साहब को सूचना दी कि अंग्रेजों को कुण्डली ग्राम वालों ने मारा है । और अंग्रेज अपनी सेना लेकर ग्राम पर चढ़ आये । निम्नलिखित व्यक्तियों को गिरफ्तार किया –
1- श्री सुरताराम जी, 2- उनक पुत्र जवाहरा, 3- बाजा नम्बरदार 4- पृथीराम 5- मुखराम 6- राधे 7- जयमल । कुछ व्यक्ति जो और भी गिरफ्तार हुए थे, उनके नाम किसी को याद नहीं । यह लोकश्रुति है कि 14 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए थे - ग्यारह को दण्ड दिया गया और तीन को छोड़ दिया गया । इनमें से 8 को एक-एक वर्ष का कारागृह का दण्ड मिला । तीन को अर्थात् सुरताराम, उनके पुत्र जवाहरा तथा बाजा नम्बरदार को आजन्म काले पानी का दण्ड दिया गया । इनको अण्डमान द्वीप (कालेपानी में) भेज दिया गया । वहां पर चक्की, कोल्हू, बेड़ी इत्यादि भयंकर दण्ड देकर खूब अत्याचार ढ़ाये गये । अतः ये तीनों वीर अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए बलिवेदी पर चढ़ गये, इनमें से कोई लौटकर नहीं आया । इसके विषय में लोगों ने बताया कि जब इनको गिरफ्तार करके ले जाने लगे तो बाजा नम्बरदार ने सुरता नम्बरदार को कहा - यह ग्राम सुख से बसे, हम तो लौटकर आते नहीं । सुरता ने कहा - बाजिया, तू तो यों ही घबराता है, मेरे माथे में मणि है (अर्थात् मैं भाग्यवान् हूं), हम अलीपुर व देहली से ही छूटकर अवश्य घर लौट आयेंगे, हमारा दोष ही क्या है ? बात यथार्थ में यह है कि अंग्रेजों ने खूब यत्न किया । इस ग्राम के द्वारा अंग्रेजों के कत्ल के अभियोग को सिद्ध नहीं क्या जा सका । सुरता की बात सुनकर बाजा ने कहा - जिनके ढोर, पशुधन आदि ही नहीं रहा, वह लौटकर कैसे आयेगा ? हुआ भी ऐसा ही । ये तीनों बहीं पर समाप्त हो गए । जो इस ग्राम के वीर स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर चढ़े, उन की पीढ़ियां निम्न प्रकार से हैं -
कुंडली के शहीदों की वंशावली
आजकल कुंडली ग्राम के स्वामी सोनीपत निवासी ऋषिप्रकाश आदि हैं, यह ग्राम उनको किस प्रकार मिला, इसके विषय में यह किंवदन्ती है कि सोनीपत निवासी मामूलसिंह नाम का ब्राह्मण (मोहर्रिर) लेखक था । सड़क पर एक आदमी की लाश पड़ी थी । कोई यह कहता है कि वह किसी अनाथ का ही शव था । उसके ऊपर वस्त्र डालकर उसके पास बैठकर मामूलसिंह रोने लगा । जब उसके पास से कुछ अंग्रेज गुजरे तो कहने लगा - यह मेरा आदमी आप लोगों की सेवा में मर गया । इसी के फलस्वरूप अंग्रेजों ने प्रसन्न होकर उसे पहले तो खामपुर ग्राम पारितोषिक के रूप में दिया था किन्तु पीछे कुण्डली ग्राम का स्वामी बना दिया । जिस समय नोटिश (विज्ञापन) लगाया गया था कि यह गांव तीन वर्ष के लिए जब्त किया जा रहा है और मामूलसिंह को दिया जा रहा है, ग्राम वालों का कहना है कि उस समय उसने अपनी चालाकी, दबाव अथवा लोभ से दबा और सिखाकर सदा के लिए अपने नाम लिखा लिया । ग्राम के लोगों ने अनेक बार मुकदमा भी लड़ा और कलकत्ते तक भाग दौड़ भी की, किन्तु नकल ही नहीं मिली । मुकदमे में यह झूठ बोल दिया गया कि यह ग्राम मेरे बाप दादा का है, हमारी यह पैतृक सम्पत्ति है । इसीलिए आज तक भी मामूलसिंह के व्यक्ति इस ग्राम के स्वामी हैं और गांव के देशभक्त कृषक जो ग्राम के निवासी और स्वामी हैं, भूमिहीन (मजारे) के रूप में अनेक प्रकार से कष्ट सहकर अपने दिन काट रहे हैं । मामूलसिंह के बेटे पोतों ने इस ग्राम को खूब तंग किया । अनेक प्रकार के पूछी आदि टैक्स लगाये, चौपाल तक नहीं बनाने दी । ग्रामवासियों ने भी खूब संघर्ष किया । अनेक बार जेल में गये । अन्त में चौपाल तो बनाकर ही छोड़ी । श्री रत्नदेव जी आर्य, जो सुरता और जवाहरा के परिवार में से हैं, इन्होंने ग्राम पर होने वाले अत्याचारों को दूर करने के लिए संघर्षों में नेतृत्व किया और खूब सेवा की । इस ग्राम के निवासी प्रायः सभी उत्साही हैं । अंग्रेजी राज्य के रहते इस ग्राम के पढ़े लिखे को किसी भी सरकारी नौकरी में नहीं लिया गया । सभी प्रकार के कष्ट यह लोग सहते रहे और यह आशा लगाये बैठे थे कि जब देश स्वतन्त्र होगा तब हमारे कष्ट दूर हो जायेंगे । जब सन् 47 में 15 अगस्त को देश को स्वतन्त्रता मिली और लाल किले पर तिरंगा झण्डा फहराया गया उस समय यह गांव बड़े हर्ष में मग्न था कि अब हमारे भी सुदिन आ गये हैं । किन्तु आज देश को स्वतन्त्र हुए 38 वर्ष हो चुके हैं, यहां के ग्रामवासी पहले से भी अधिक दुःखी हैं । हमारे राष्ट्र के कर्णधारों व राज्याधिकारियों का इनके कष्टों की ओर कोई ध्यान नहीं । भगवान् ही इनके कष्टों को दूर करेगा । कुण्डली ग्राम के निवासी वृद्ध जीतराम जी जिनकी आयु 85 वर्ष है, तथा सुरता और जवाहरा के परिवार के श्री महाशय रत्नदेव जी और उनके बड़े भाई आशाराम जी ने इस ग्राम के इतिहास की सामग्री इकट्ठी करने में मुझे पूरा सहयोग दिया है, इन सबका मैं आभारी हूँ ।
खामपुर, अलीपुर, हमीदपुर, सराय आदि अनेक ग्राम हैं जिन्होंने सन् 1857 के युद्ध में बड़ी वीरता से अपने कर्त्तव्य का पालन किया था । जब कभी मुझे समय मिला, मेरी इच्छा है मैं हरयाणा का एक बहुत बड़ा इतिहास लिखूं, तब इनके विषय में विस्तार से लिखूंगा । खामपुर आदि ग्राम भी जब्त कर लिए गए थे । ग्राम खामपुर दिल्ली निवासी एक ब्राह्मण लछमनसिंह के बाप दादा को दिया गया था । आज भी वह परिवार उस ग्राम का स्वामी है । खामपुर ग्राम के जाट जो निवासी थे वे भाग गये थे, वह खेड़े आदि अन्य ग्रामों में बसते हैं । इस ग्राम में तो अन्य मजदूरी करने वाले लोग बसते हैं । अलीपुर ग्राम के आदमियों को भी [Libaspur|लिबासपुर]] के निवासियों के समान सड़क पर डालकर कोल्हू से पीस दिया गया था और अलीपुर ग्राम को बुरी तरह लूटकर जलाकर राख कर दिया गया था । अलीपुर ग्राम को जब्त करके दिल्ली के कुछ देशद्रोही मुसलमानों को दे दिया गया था । उन मुसलमानों के परिवार ने जो इस ग्राम के स्वामी थे, चरित्र संबन्धी गड़बड़ कुण्डली ग्राम में आकर की । कुंडली ग्राम के दलितों ने इन पापियों के ऊपर अभियोग चलाया और उसी अभियोग में विवश होकर वह अलीपुर ग्राम मुसलमानों को जाटों के हाथ बेचना पड़ा । हमीदपुर ग्राम भी जब्त करके मुसलमानों को दिया गया था । इसी प्रकार ही ऐसे देशभक्त ग्रामों को जब्त करके देशद्रोहियों को दे दिया गया था । इसके विषय में विस्तार से कभी समय मिलने पर लिखूंगा ।
- (देखें पेज देशभक्तों के बलिदान - लेखक स्वामी ओमानन्द सरस्वती)
Jat Gotras
Notable persons
Population
Kundli village in Jalor, Rajasthan
Kundli is also the name of a village in Ahore tahsil of Jalor district in Rajasthan.
External Links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 297)
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