Madhopura Laxmangarh

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Madhopura (माधोपुरा) is a village in Laxmangarh tahsil in Sikar district of Rajasthan.

Jat Gotras

History

रणमल सिंह[1] लिखते हैं कि कूदन ग्राम में पढ़ते समय मेरा संपर्क श्री बद्रीनारायण सोढानी से हुआ। उनको सीकर का गांधी कहते थे। उन्होने कहा कि पढ़ाना छोड़ो और देश की आजादी के आंदोलन में आ जाओ। उनकी प्रेरणा से मैं 29 फरवरी 1944 को अध्यापक पद से त्याग पत्र देकर जयपुर प्रजामण्डल में शामिल हो गया। प्रजामण्डल में मेरे साथ माधोपुरा का लालसिंह कुलहरी था। हम दोनों जनजागृति के लिए रोजना गाँव में 24 मील पैदल सफर करते थे। मैं देश की आजादी के लिए जागीरदारों के ज़ुलम के खिलाफ सीकर किसान आंदोलन में भाग लेने लगा। सीकर ठिकाने में काश्त की जमीन का बंदोबस्त सन 1941 में हो गया था परंतु लगान व लाग-बाग के नाम पर जागीरदारों की लूट-खसोट बंद नहीं हुई थी। हमने इसका विरोध किया। हमने पहली मीटिंग बेरी गाँव की खेदड़ों की ढाणी में की। इसमें ईश्वर सिंह, त्रिलोक सिंह भी साथ थे, जिनहोने आगे चलकर अलग किसान सभा बना ली थी।

मोल्यासी में गोली चली

राजेन्द्र कसवा [2] ने लेख किया है कि सीकर के मोल्यासी गाँव में 23 दिसंबर 1945 को चौधरी लेख राम कसवाली ने प्रजामंडल की सभा बुलाई. जब आदमी इकट्ठे हो गए और सभा का समय हो गया तो मोल्यासी के ठाकुरों ने सभा करने का विरोध किया तथा भारी संख्या में हथिया लेकर आये. एकत्रित भीड़ ने हटने से मन कर दिया तो उन पर गोलियां चला दी जिससे लेखराम कसवालीरिडमल सिंह छर्रे लगने से घायल हो गए. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 42)

उस समय की परिस्थितियों का वर्णन राजेन्द्र कसवा (मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, पृ. 198-199) ने स्वतंत्रता सेनानी रणमल सिंह के शब्दों में कुछ यों किया है:

"मौल्यासी गाँव में 23 दिसंबर 1945 की रात को मीटिंग रखी गयी थी. नेतृत्व देने वालों में किसनसिंह बाटड , मास्टर कन्हैया लाल स्वरूपसर, कुमार नारायण वकील, चन्द्रसिंह बिजारनिया, लालसिंह कुलहरी माधोपुर, लेखराम कसवाली और मैं (रणमल सिंह) थे. बदरी नारायण सोढानी को भी आना था, लेकिन वे नहीं पहुँच सके.
"हम लोग मंच को ठीक कर ही रहे थे कि रात को 10 बजे 50 राजपूत नारे लगाते आये. उनका जय घोष था - करणीमाता की जय. मैं मंच पर खड़ा हो गया. मेरे साथ एक फौजी हनुमान महला भी खड़ा था. हमारे अन्य साथियों ने समझाया कि हमें बिना मीटिंग किये चलना चाहिए. लेकिन मैं नहीं माना. मैं भाषण देना चाहता था लेकिन राजपूतों के शोर के कारण कुछ बोल नहीं पा रहा था. तब मैंने भी जोर-जोर से नारे लगाने शुरू कर दिए - 'भारत माता की जय ! महात्मा गाँधी की जय ! 'ठिठुरती रात में, जब चारों और सन्नाटा बिखरा था, गाँव के चौक में गर्जना हो रही थी.
"एक राजपूत ने आकर मेरे कान में कहा, "राजपूत सरदारों के पास हथियार हैं. मुकाबला करना ठीक नहीं है. लेकिन मैं रूका नहीं और जोर-जोर से नारे लगाता रहा. इससे मेरा गला भी ख़राब हो गया. तभी एक राजपूत ने मंच पर आकर बर्छी से मुझ पर वार किया. सर व नाक पर चोट आई (इस चोट के निशान आज भी उनके सर तथा नाक पर हैं) . मैं बेहोश होकर गिर पड़ा. मुझे सीकर लाया गया और इलाज कराया गया. इसके बाद मैंने विरोध स्वरुप पांच दिन उपवास रखा.
"मैं तो बच गया लेकिन यह आंकड़े हैं कि सम्पूर्ण शेखावाटी में आन्दोलन के दौरान 117 व्यक्ति मरे थे. इनमें 104 जाट, 8 जाटव, 4 अहीर एवं एक ब्राहमण था. ...."

Notable persons

References

  1. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0, पृष्ठ 57, 121
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 198-199
  3. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0, पृष्ठ 117

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