Maharaja Balbir Singh
महाराज बलवीरसिंह फरीदकोट के राजा वराड़ वंशी जाट सिख थे। जाट इतिहास:ठाकुर देशराज से इनका इतिहास नीचे दिया जा रहा है।
महाराज बलवीरसिंह
महाराज बलवीरसिंह - मि० सिलकाक कमिश्नर जालन्धर ने फरीदकोट आकर बलवीरसिंह जी को राज्याधिकार देने की रस्म अदा की। राजतिलक की रस्म पहले ही अदा हो चुकी थी। अच्छे मुहूर्त के समय में संवत् 1955 (1898 ई.) के पूष में राजगद्दी पर बैठने के कुल रस्म अदा हुए। राजगद्दी के बाद महाराज ने खुशी में देशी-विदेशी मेहमानों को भोज दिया जिसमें मि० इण्डरसन कमिश्नर जालंधर, मि० सी० एम० किंग डिप्टी फीरोजपुर अंग्रेज सरकार की ओर से पधारे और सर राजेन्द्रसिंह महाराज पटियाला, लोकेन्द्र महाराज राणा निहालसिंह धौलपुर जातीय नरेशों में से शामिल हुए। इन बड़े-बड़े मेहमानों के आने से फरीदकोट में बड़ी खुशी और चहल-पहल रही। कमिश्नर ने महाराज साहब की कमर में अपने हाथ से किरच बांधी और एक घड़ी भी दी। महाराज धौलपुर और पटियाला की ओर से तोहफे दिए गए। अन्य रियासतों से भी तोहफे भेजे हुए आये थे।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-472
युवावस्था में आपने शिक्षा-क्षेत्र में प्रवेश किया। गुरुमुखी तो पहले से ही जानते थे, फारसी, अंग्रेजी की शिक्षा पं० स्वरूप नारायण जी से पाई। फिर चार साल मेयो कॉलेज अजमेर में रहकर योग्यता प्राप्त की। इन दिनों बाबू अमरनाथजी बी०ए० भी आपके साथ रहे। जिस समय आप पढ़ रहे थे, उसी समय आपकी शादी हुई। आपने अपने छोटे भाई गजेन्द्रसिंह की शिक्षा का प्रबन्ध एक प्राइवेट अंग्रेज मास्टर रखकर किया, जिसे सालाना छः हजार रुपया और सवारी आदि मुफ्त दी जाती थी। भाई के गुजारे के लिए अलग जायदाद और रहने के लिए उम्दा कोठियां भी बनवाईं थीं। किन्तु शोक के साथ कहना पड़ता है कि 21 साल की उम्र में भरी जवानी में देहान्त हो गया। उस तरह दो भाइयों में से सिर्फ अकेले महाराज ही रह पाए। कुछ ही दिन बाद बीबी जी साहिबा का भी जो कि मुड़सान ब्याही थी, स्वर्गवास हो गया। वह फरीदकोट में बुलाई गई थी। यहीं उनके पुत्र-रत्न हुआ। इसी समय बीमारी ने धर दबाया और मासूम बच्चे को छोड़कर चल बसीं।

इस आघात और शोक-रंज से जब दिल बेचैनी से सुलझा तो राज्य की भलाई के लिए उन लोगों को नियुक्त किया जो पहले से राज-भक्त साबित हुए थे, अथवा जिन्होंने नए जमाने के माफिक योग्यता प्राप्त कर ली थी। किन्हीं कारणों वश राज के बिछुड़े हुए लोगों को भी इकट्ठा किया। उन्हें नौकरियां और भूमि देकर राज्य में आबाद किया। बिरादरी के सम्बन्ध जो कि कुछ कबीलों में अविच्छिन्न हो गए थे, स्थिर किये।
आपके शासन-काल में सन् 1899 में अंग्रेजों और दक्षिणी अफ्रीका के लोगों में युद्ध छिड़ा। इस समय अंग्रेज सरकार की प्रार्थना पर आपने घोड़े भेजकर सहायता की, जिसके लिए युद्ध की समाप्ति पर सरकार ने महाराज को धन्यवाद दिया। प्रजा के फायदे के लिए तालाब, बावड़ी बनवाये। कहत के समय जो कि लगातार पांच वर्ष तक रहा, महाराज ने जहां लगान में माफी दी, वहीं अपने खत्तों में से गल्ला देकर भी प्रजा के गरीब लोगों की मदद की। बिना ब्याज और म्याद के कर्जा बांटा गया। जो बिल्कुल तंग हाल थे, उन्हें अनाज मुफ्त दिया गया। 30 अक्टूबर सन् 1900 ई० में आपने प्रजा का एक दरबार भी किया जिसमें सभी श्रेणी के प्रजा-जनों ने शामिल होकर महाराज को आशीर्वाद दिया। इस दरबार में निम्न घोषणा की -
- (1) स्कूल मिडिल से बढ़ाकर एन्ट्रेंस तक कर दिया जायेगा।
- (2) मेला व मवेशी फरीदकोट की भांति कोटकपूरा में भी हुआ करेगा।
- (3) अदालतों के जाब्ते और कायदों में सुधार किये जायेंगे तथा महकमों के लिए मकानात भी बनाये जायेंगे।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-473
- (4) मुसाफिरों के लाभ के लिए रेलवे के सामने एक वेटिंग रूम बनाया जायेगा।
इस दरबार में प्रजा के लोगों ने महाराज से रियासत का दौरा करने की प्रार्थना की। उसे स्वीकार करके कुल राज्य में दौरा किया और प्रजा की हालत को देखा। साथ ही अनुभव किया कि प्रजा को किन सुविधाओं की आवश्यकता है।
महाराज चित्रकारी के कार्य में भी निपुण थे। वह मकानात के चित्र स्वयम् तैयार करके कारीगरों को देकर इमारत बनवाते थे। फरीदकोट में उनके समय में उनके ही बनाये मकानों के आधार पर कई इमारतें हैं।
Gallery
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Maharaja Balbir Singh Brar Bans Bahadur of Faridkot, Source - Jat Kshatriya Culture
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The tower was built by Maharaja Balbir Singh Brar of Faridkot in 1902. The hight of this tower is 115 ft.
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References
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