Pandu Godara

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Pandu Godara (1486) (पाण्डुजी गोदारा) was a Jat ruler of Jangladesh region in Rajasthan prior to formation of Bikaner princely state of Rathores. Raja Pandu Singh Godara was the king of Bikaner area, the Godara Canton. The Godara Canton was established by Nimbhuji in 11th century AD. The internal conflict among Jats lead to other Jat Cantons declaring a war against Pandu Singh Godara. Pandu sought the help of Bika Rathore and Bhati Rajput and gave his kingdom to Bika. Though they lost there land the descendants of Godara retain the right to Tilak every new Rathore king of Bikaner. [1]

The site of Bikaner was land of Nehra Jat. Rao Bika founded it in in 1486. The Nehra Jat had put a condition that he would give land for the capital of Rathores only if his surname appears in the name of the town being founded. Hence the name, Bika + Naira= Bikaner.

Founder of Pandusar

Pandusar village is in Nohar tahsil of Hanumangarh district in Rajasthan. It was founded by Pandu Godara , the ruler of Jangladesh.

Introduction

According to James Todd the republic of Godara Jats in Jangladesh, whose chief was Pandu Godara was having 700 villages in his state with capital at Shekhsar. The districts included in his state were Shekhsar, Pundrasar, Gusainsar Bada, Gharsisar, Garibdesar, Rungaysar, Kalu. [2]

पाण्डुजी गोदारा का इतिहास

चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[3] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
1. गोदारा पट्टी 360 गाँव लादड़िया (शेखसर) पाण्डुजी गोदारा पून्दलीसर, गुसाईंसर , शेखसर, रासीसर

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज [4]लिखते हैं कि भारत की स्वतंत्रता को नष्ट कराने में जिस भांति जयचन्द राठौर का नाम बदनाम है, उसी भांति जांगल प्रदेश के जाट-साम्राज्य को पांडु गोदारा ने नष्ट कराकर अपने नाम को जाटों के लिए अहितकारी सिद्ध कर दिया है। आज उसकी संतान के नौजवान इस बात के लिए पश्चाताप कर सकते हैं कि शासक-जाति के होते हुए भी शासित हैं। किन्तु इतिहास में सभी प्रकार की घटनाएं हमें मिलती हैं। पांडु को यह कुछ भी पता न था कि उनकी संतान के जो अधिकार इस समय सुरक्षित हो रहे हैं, वे भविष्य में नष्ट हो जाएंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं, पांडु बड़ा बहादुर सरदार था। उसके गोदारे बांके योद्धा थे। जांगल-प्रदेश में सबसे अधिक राज्य गोदारों के ही पास थे। उनके अधिकार में 700 गांव थे। इसी एक बात से जाना जाता है कि वे प्रसिद्ध योद्धा और महत्वाकांक्षी थे। पांडु से एक गलती हो गई थी कि वह सारन पूला की स्त्री को ले गया। कहा ऐसा जाता है कि सारन पूला से पहले उस स्त्री की शादी पांडु से होने वाली थी। पांडु ने स्त्री को उठाकर गलती ही की। किन्तु सभी जाट राज्यों का उससे शत्रुता कर लेना उचित न था। एक ओर से मोहिल जाति गोदारों की शत्रु बनी हुई थी, दूसरी ओर से जैसलमेर के भाटी उन्हें हड़प जाना चाहते थे, तीसरी ओर स्वयं जाट उन्हें मिटाने पर तुले हुए थे और चौथी ओर से प्रबल राठौर आक्रांता आ रहे थे। ऐसी हालत में गोदारा क्या करते? आत्म-समर्पण के सिवाय उन्हें कोई चारा नहीं दिखाई दिया। उन्होंने राठौर के साथ जो संधि की थी, उसकी शर्तें मांडलिक राजों से कम नहीं हैं। मुन्शी ज्वालासहाय जी ने लिखा है - बीका के वंशजों ने उन शर्तों का पालन नहीं किया।1

गोदारों का वर्णन जो ‘वाकए राजपूताना’ में लिखा गया है, उसके कुछ अंश हम ज्यों के त्यों उद्धृत करते हैं-

“अपनी कदीम रियासत जोधपुर से आने के कुछ दिनों के बाद बीका 2470 गांव का मालिक हो गया। चूंकि इन दलों के लोगों ने उसे खुद मालिक स्वीकार

1. वाक-ए राजपूताना, जिल्द 3 ।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-621


कर लिया था, यह स्वीकारी उसे विजय से अच्छी पड़ी। किन्तु तब से अब तक उनमें से आधे देहात बरबाद हो गए हैं। किन्तु सूरतसिंह के जमाने में तो आधे भी न रहे थे। इस देश के जाट और जोहिया उत्तरी देशों में गाढ़ा नदी तक फेले हुए थे। वे अपना निर्वाह प्रायः पशुपालन से करते थे। भेड़-बकरियों के ऊन और भैंसों-गांयों के घी को सारस्वत ब्राह्मणों के हाथ बेच देते थे। उस रुपये से आवश्यक वस्तु मंगा लेते थे। जाटों की प्राचीन सादगी रफा हो के राजपूतों के अधिकृत होने और राज्य बीकानेर के कायम होने में चन्द नगर अनुकूल हो गए थे। बीका के मोहिलों पर विजयी होने से उन्हें विजय करना सुगम हो गया था। किन्तु जाटों में वह फूट न होती जिसने दुनिया की प्रायः सल्तनतों को बर्बाद कर दिया है, तो सहज ही में बिना खून-खराबी के सफल न होता। जाटों के छः दलों में से उनके दो बड़े दलों - जोहिया और गोदारों में अनबन थी। इससे उन्होंने राजी से बीका की हुकूमत को स्वीकार कर लिया। दूसरे वे बीका की फौज के उस अत्याचार को देख चुके थे जो उसने मोहिलों पर विजय पाने के समय किए थे। तीसरे वे यह भी चाहते थे कि हमारे और जैसलमेर के बीच कोई सरहद कायम हो जाए।

गोदारों का सरदार पाण्डु जो सेखसर में रहता था और रूनियां का सरदार जो उससे दूसरे दर्जे पर था, गोदारा जाटों की सभा ने इन दोनों को बीका के पास अधीनता स्वीकार करने की बात तय करने को भेजा। उन्होंने बीका के सामने निम्न प्रस्ताव रखे-

  • 1. जोहिया आदि दीगर फिरकों के मुकाबले में हमारी मदद की जाये,
  • 2. पश्चिमी सीमा की हिफाजत रखें,
  • 3. हमारी जमात के अधिकार और लाभों में कोई हस्तक्षेप न किया जाये, अर्थात् सुरक्षित रखें।

‘भारत के देशी राज्य’ नामक इतिहास में लिखा है कि -

“बीका ने उक्त प्रस्ताव स्वीकारते हुए कहा था - ‘मैं’ तथा मेरे उत्तराधिकारी किसी भी समय तुम्हारे अधिकारों में हस्तक्षेप न करेंगे। और जब तक इस तरह राजतिलक न दिया जाएगा, तब तक राजसिंहासन सूना समझा जाएगा।”

मुन्शी ज्वालासहाय जी ‘वाकए-राजपूताना’ में आगे लिखते हैं -

'इस पर गोदारों ने अपने इलाके में महसूल धुआं फी घर एक रुपया और जोता जमीन फी सौ बीघे पर दो रुपया लगान वसूल करने का अधिकार बीका को दिया।

'इस पशुपालन गिरोह के इस तरह इन्तकाल आतअत करने से शौक आजादी जो आक्सस और जगजार्टिस के किनारे से हिन्दुस्तान के जंगल तक उनके साथ रहा, बखूबी अयां है और अगर्चे उनकी हुकूमत मालिकाना बिलकुल चली गई है लेकिन उनका राजपूत आकाए, उनके नामुमकिन उल-इन्तकाल वापोती यानी


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-622


हुकूक मौरुसी पर दस्तन्दाजी करना चाहें तो अब भी खूरेजी पर मुस्तैद हैं।1

गौदारों की अनबन से बीका को बिना लड़ाई-झगड़ा किए भू-भाग व हुकूमत मिल गई। ऐसा बहुत कम होता है और कुछ एक रस्में जो बतौर यादगार तरज हसूल हुकूमत मालिकाना कदमि वाशिन्दगान मुल्क से कुल हिन्दुस्तान के राजपूतों में जारी है असलियत की जानकारी के लिए बड़े काम की है। फर्मान रवायां मेवाड़ का मुल्क के कदीम वाशिन्दगान यानी भीलों से तिलक कराना आमेर में खजाने व किलआत का मैनों की हिफाजत व अहतमाम में रहना। कोटा-बूंदी का मदीक मालिकान हाडौती के नाम से मासूम होना और औलाद बीका का जाटों से टीका कराना ऐसी रस्में हैं कि उनके सबब से कदीम मालिकान सर जमीन के हकूक और तर्ज हसूल रियासत फर्मान वालिया हाल सहू नहीं हो सकते। आज तक दस्तूर जारी है कि बीका की औलाद में से कोई तख्तनशीन होता है तो पांडु खानदान का कोई शख्स उसके राजतिलक करता है। उस जाट को राज पच्चीस अशर्फियां देता है। अलावा इसके जिस जमीन को बीका ने अपनी राजधानी बनाने के लिए पसन्द किया था, वह एक जाट की मुल्क-मौरूसी थी। उसने भी दावा किया कि शहर के नाम के साथ मेरा नाम भी शामिल किया जाये। उसका नाम नेरा था, इसलिए बीका और नेरा के नाम से शहर का नाम बीकानेर रखा गया। दवामी यादगार मिल्कित के सिवा शेखसर और रूनियां के जमींदार होली और दशहरा पर रईस और उसके सरदारों के टीका करते हैं। रूनियां का सरदार अपने हाथ में नकरई तस्त व प्याला लेता है और शेखसर वाला रईस की पेशानी पर तिलक करता है। रईस इनको एक अशर्फी और पांच रुपये पेश करता है। अशर्फी शेखसर वाला ले लेता है और रुपये रूनियां वाले के पास रहते हैं। अन्य सरदार भी इसी तरह अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार नजर करते हैं।”


ऊपर के वर्णन से मालूम होता है कि गोदारों की जो सन्धि बीकाजी के साथ हुई थी, वह सम्मानपूर्ण थी। उसमें यह कहीं भी जाहिर नहीं होता कि उन्होंने अपनी स्वाधीनता खो दी थी। यह ठीक है कि पीछे से शनैः-शनै उनकी स्वाधीनता नष्ट हो गई। कई इतिहासकारों ने राठौरों को इसके लिए दोष दिया है कि उन्होंने यह अच्छा नहीं किया कि अपने सहायक गोदारों की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी, उन्हें ठिकानेदारों के रूप में भी नहीं रहने दिया। कुछ लोगों की ऐसी भी शिकायत है, किन्तु हम इस बात के लिए राठौर शासकों एवं बीकाजी के वंशजों को तनिक भी दोष देना उचित नहीं समझते। राजनीति में ऐसा होता है। यदि हमें भी राठौरों जैसा अवसर प्राप्त होता तो हम भी उनके साथ यही व्यवहार करते।


1. ये शब्द हमारे नहीं. 'वाकए राजपूताना' जिल्द में मुंशी ज्वालासहयजी ऐसा ही लिखा है. (लेखक)

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-623


बीकानेर एयर पोर्ट का नाम पाण्डू गोदारा के नाम करने की मांग

पाण्डू गोदारा के राज्य में जांगलप्रदेश का एक लाख पचास हजार वर्ग कि.मी. था। गोदारा साम्राज्य का पूर्वी छोर दिल्ली स्थित पालम गांव तक था. पांडू गोदार बडा ही प्रतापी, दयालू और दानी राजा थे। जोधपुर महाराजा के भाई बीका ने उनसे कुछ गांव अपना राज्य स्थापित करने के लिये मांगे। पाण्डू गोदारा ने अपना पूरा राज्य ही दान में दे दिया. राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने पान्डू गोदारा के बलिदान, त्याग और दानवीरता के सन्दर्भ में बीकानेर एअर पोर्ट का नाम उनके नाम से करने की मांग की है। [5]

References

  1. Source - Jat Kshatriya Culture
  2. James Todd, Annals of Bikaner, p. 139
  3. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  4. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृ.620-623
  5. जाट एक्षप्रेस जयपुर, 10 सितम्बर 2013

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