Arvind Bhaskar

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Arvind Singh Bhaskar

Arvind Singh Bhaskar from Sikar, Rajasthan is an educationist and a historian. He has authored a number of Books on History.

Early life and education

Arvind Bhaskar was born on 27.3.1982 at village Ghassu in tehsil Laxmangarh of Sikar district in Rajasthan. His father's name is Sh. Birju Ram Bhaskar. He did his upper primary education from village Ghassu, Secondary School from Narodara, High School from Laxmangarh and College education from Sikar. He did B.Ed. from Bikaner.

Career

He was lecturer in History from 2006-2016 and promoted to the post of Principal in 2016.

His contribution to History

He has written number of books for guidance of candidates appearing in civil services out of which two books are worth mentioning - 1. World History (Hindi) published by Orange Publications, and 2. 'Bharat Ka Swatantrata Sangram' (Hindi) published by Kalam Publications.

He has written many text books on history which include:

  • सीकर किसान आन्दोलन 1935 - खुड़ी से कूदन (ऐतिहासिक दस्तावेज), लेखक: अरविंद सिंह भास्कर प्रकाशक - कलाम पब्लिकेशन नवलगढ़ रोड़, सीकर (राजस्थान) - 332001, प्रथम संस्करण-2024 , मूल्य रु. 250/-

अरविंद सिंह भास्कर का जीवन परिचय

अरविंद सिंह भास्कर का जन्म ग्राम घस्सू तहसील लक्ष्मणगढ़ जिला सीकर (राजस्थान) के एक साधारण किसान परिवार में श्री बिरजू राम भास्कर के घर दिनांक 27 मार्च 1982 को हुआ.

शिक्षा: उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा ग्राम घस्सू के राजकीय विद्यालय में प्राप्त करने के बाद 1994 में माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए राजकीय माध्यमिक विद्यालय नरोदड़ा शिवराना का बास में प्रवेश लिया, जहां आने-जाने के लिए 12 वर्ष की उम्र में रोजाना 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा लक्ष्मणगढ़ कस्बे के श्री रघुनाथ उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्राप्त की और उसके बाद अधि स्नातक तक की शिक्षा सीकर के श्री कल्याण राजकीय महाविद्यालय में प्राप्त की.

कैरियर: 2005 में राजकीय उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान बीकानेर से B.Ed करने के बाद 2006 में इतिहास व्याख्याता के रूप में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बलारां (सीकर) में पदस्थापन हुआ. 10 वर्ष तक इस पद पर रहने के बाद 2016 में प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति होने के बाद राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय दाड़मी (भोपालगढ़) जोधपुर में कार्य किया. इसके बाद स्थानांतरण पर सीकर जिले के करड़ और रशीदपुरा गांव में कार्य करते हुए वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय लालासी (लक्ष्मणगढ़) सीकर में कार्यरत हैं.

लेखन: एक दशक से लेखन के क्षेत्र में कार्य करते हुए आपने प्रतियोगी परीक्षार्थियों के मार्गदर्शन हेतु दर्जन भर से अधिक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें ऑरेंज पब्लिकेशन से प्रकाशित विश्व इतिहास और कलाम पब्लिकेशन से प्रकाशित भारत का स्वतंत्रता संग्राम काफी प्रसिद्ध हैं. आपने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान के लिए कक्षा 12 की इतिहास की पुस्तक लिखी है और कक्षा 10 की पुस्तक 'राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति' के संशोधन एवं परिवर्धन का कार्य भी किया है. इस दौरान ठाकुर देशराज द्वारा लिखित पुस्तक रियासती भारत के जाट जनसेवक का पुनर्मुद्रण प्रकाशित करवाया है और शेखावाटी किसान आंदोलन के पुरोधा नेतराम सिंह गोरीर की आत्मकथा का डिजिटल संस्करण भी तैयार किया है. सीकर के ऐतिहासिक किसान आंदोलन पर आप लंबे समय से शोध कार्य कर रहे हैं. समय-समय पर आपके लेख और टिप्पणियां इस संदर्भ में समाचार पत्र में प्रकाशित होती रहती हैं.

धनिया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट 26.04.1935

धनिया पुत्र घड़सी जाट उम्र लगभग 25 वर्ष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट 26.04.1935

Reference - https://www.facebook.com/arvind.bhaskar.96

A forgotten Hero - "धनिया पुत्र घड़सी जाट उम्र लगभग 25 वर्ष"

कूदन कांड के शहीदों में एक नया नाम जिसकी कहीं कभी कोई चर्चा नहीं हुई.

(राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर में मौजूद 'धनिया' की पोस्टमार्टम रिपोर्ट संलग्न)

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 25 अप्रैल 1935 को किसानों और पुलिस के बीच कूदन में हुई गोलीबारी में 4 किसान मारे गए जबकि चौधरी छोटूराम ने 'हिंदुस्तान टाइम्स' को इस घटना कांड में शहीद हुए 12 लोगों के नाम, गांव और उम्र बताई. 'धनिया' का नाम आश्चर्यजनक रूप से न तो जनमानस में प्रचलित चार लोगों की सूची में है और ना ही चौधरी छोटूराम द्वारा बताई गई 12 लोगों की सूची में. समकालीन नेता और इतिहासकार ठाकुर देशराज के अनुसार इस घटना के बाद कई गांवों के कई लोग लापता हो गए थे जो बाद में कभी नहीं मिले. संभवत: वे इस गोलीकांड में मारे गए. देश-विदेश के समकालीन समाचार पत्रों में इस गोलीकांड के मृतकों की संख्या कुल 37 बताई गई. इस गोलीकांड की स्वतंत्र जांच करवाने की देशभर में भारी मांग की गई लेकिन जयपुर दरबार द्वारा ऐसी जांच कभी नहीं करवाई गई जिसके कारण मृतकों की यह संख्या सदैव के लिए एक पहेली बन कर रह गई.

लेखक: अरविन्द भास्कर

कूदन गोलीकांड: ब्रिटिश संसद में छिपाया गया था हत्याकांड का सच, मिले सबूत

राजस्थान के सीकर जिले के कूदन गांव में 1935 में हुए गोलीकांड का सच ब्रिटिश संसद में छिपाया गया था। संसद में पेश रिपोर्ट में ब्रिटिश हुकूमत ने केवल चार किसानों की मौत का जिक्र किया था। जबकि उस समय देश- विदेश के समाचार पत्रों में छपी खबरों में 37 किसानों के शहीद होने का […]

राजस्थान के सीकर जिले के कूदन गांव में 1935 में हुए गोलीकांड का सच ब्रिटिश संसद में छिपाया गया था। संसद में पेश रिपोर्ट में ब्रिटिश हुकूमत ने केवल चार किसानों की मौत का जिक्र किया था। जबकि उस समय देश- विदेश के समाचार पत्रों में छपी खबरों में 37 किसानों के शहीद होने का जिक्र है। बीकानेर अभिलेखाकार में मिली एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मौत का आंकड़ा ज्यादा होने की पुष्टि कर रही है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कूदन कांड में किस हद तक कू्ररता हुई थी।

इन समाचार पत्रों में मिले प्रमाण: कूदन गोलीकांड में 37 किसानों के शहीद होने के प्रमाण कई समाचार पत्रों में मिले हैं। 9 अप्रेल 1935 के विश्वामित्र समाचार पत्र में गोलीकांड में 37 किसानों के मरने व 100 को गिरफ्तार किए जाने की खबर छपी। इसी समाचार पत्र में 8 मई को राजपूताना सेंट्रल इंडिया पीपुल्स सोसायटी के मंत्रियों द्वारा वायसराय और राजनीतिक मंत्री के नाम भेजे तार में भी 37 मौत व 200 जाटों के घायल होने की बात लिखी। इसी तरह 30 अप्रेल 1935 को न्यूजीलेंड से प्रकाशित न्यूजीलेंड हेराल्ड के समाचार की हेडलाइन भी ‘क्लेश इन इंडिया, 37 पीसेंन्ट्स किल्ड, अटैक ऑन टेक्स कलेक्टर्स‘ थी। इनके अलावा महाराष्ट्र के अकोला से प्रकाशित नव राजस्थान सहित अन्य 20 से ज्यादा समाचार पत्रों में कूदन आंदोलन में 37 किसानों के मरने की खबरें प्रकाशित हुई थी।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया नए शहीद का नाम: कूदन कांड को लेकर लोगों के जहन में भी गोठड़ा भूकरान निवासी तुलछाराम भूकर, टीकूराम भूकर, चेताराम भूकर व अजीतपुरा निवासी आशाराम पिलानिया के नाम है। जबकि बीकानेर के अभिलेखागार में मिली एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कूदन नरसंहार में धनिया पुत्र घड़सी जाट नाम के शख्स की मौत का जिक्र है। जिसका नाम ना तो ब्रिटिश संसद में पेश रिपोर्ट में था और ना ही उस समय चौधरी छोटूराम के हवाले से हिंदूस्तान टाइम्स में प्रकाशित 12 शहीदों की सूची में था।

कई आंदोलनकारी हुए गायब, नहीं हुई जांच: कूदन गोलीकांड जयपुर स्टेट के जरिए ब्रिटिश सरकार के लिए लगान वसूली के खिलाफ किसानों का आंदोलन था। जिसमें कूदन में 21 गांवों के लोगों द्वारा लगान का विरोध करने पर सीकर के तत्कालीन पुलिस प्रभारी मेजर मलिक मोहम्मद की अगुआई में किसानों पर गोलियां बरसाई गई। तत्कालीन लेखों के अनुसार घटना में 37 आंदोलनकारी शहीद व 104 गिरफ्तार हुए। मामले की जांच व न्याय के लिए देशभर से आवाज उठी। पर ब्रिटिश सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। उल्टे ब्रिटिश संसद में भी आंदोलन में चार किसानों की मौत की ही रिपोर्ट पेश की गई।

लेखक: अरविंद भास्कर, इतिहासकार व प्रधानाचार्य राउमावि लालासी, सीकर

स्रोत - पत्रिका, सीकर, 07.07.2024

'Khuri to Kudan' Book by Arvind Bhaskar

सीकर किसान आन्दोलन 1935
खुड़ी से कूदन (ऐतिहासिक दस्तावेज)

लेखक: अरविंद सिंह भास्कर

प्रकाशक - कलाम पब्लिकेशन नवलगढ़ रोड़, सीकर (राजस्थान) - 332001

प्रथम संस्करण-2024 , मूल्य रु. 250/-

पुस्तक समीक्षा - खुड़ी से कूदन (ऐतिहासिक दस्तावेज)

लेखक अरविंद भास्कर की यह पुस्तक खुड़ी से कूदन सीकर किसान आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को विस्तार से समझाती है. शेखावाटी के किसानों की बदहालात चरम पर पहुँच चुकी थी. ठिकानेदार और जागीरदार भूराजस्व के अलावा 80 प्रकार के टैक्स वसूल कर किसानों की कमर तोड़ देते थे. जबरदस्ती लादे गए इन करों को लाग-बाग़ की संज्ञा दी गयी थी. उस समय शेखावाटी के किसानों की पशुवत हालत को जान कर रोंगटे खड़े हो जाते थे. कुछ चंद ठिकानेदारों की सुविधा और मनोविनोद के लिए भेंट चढ़ाना लाजमी था. शेखावाटी किसान आन्दोलन ने किसानों को बहुत कुछ दिया है. किसानों को बहुत यातनाएं झेलनी पड़ी, अनोकों किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी. शेखावाटी किसान आन्दोलन ने ब्रिटिश पार्लियामेंट का भी ध्यान खींचा था.

दीर्घकाल से सुषुप्त पडी हुई शेखावाटी की स्वाभाविक किसान शक्ति, जो सामंती व्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक बदहाली व शोषण का शिकार हो रही थी, में कुछ प्रेरक शक्तियों का समावेश हुआ. ये उत्प्रेरक तत्व मूलत: बाहरी थे, जिनका संसर्ग स्थानीय शक्तियों से हुआ और एक महान आन्दोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ.

सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गांव है. 27 मार्च 1935 को सीकर ठिकाने की पुलिस ने जाटों की एक बारात को घेर लिया. बेचारे निहत्थे जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाई-- गुस्ताखी बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर सवार था. राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को क़त्ल कर दिया. कूदन गाँव शेखावाटी का प्रथम गाँव है, जो सामंती दौर में भी नेतृत्व देता रहा है और स्वतंत्रता के बाद भी यह गाँव चर्चा में रहा. कूदन पूरी सीकर वाटी का चेतना केंद्र बन गया था. कूदन में ही कालूराम सुंडा तथा गणेशराम महरिया जैसे किसान नेता थे. कैप्टन वेब 25 अप्रेल 1935 को कूदन पहुंचा तो वहां आस-पास के गाँवों से बड़ी संख्या में जाट एकत्रित हो गए थे और राजस्व अधिकारियों को लगान वसूल नहीं करने दिया और विरोध को तैयार हो गए.

शोध पूर्ण प्रयास से लिखी गई यह पुस्तक इतिहास और लोकजीवन दोनों का सम्मिश्रण है. सीकर की जमीन पर पले-बढे और शिक्षा जगत से जुड़े अरविंद भास्कर का नाम राजस्थान के चर्चित इतिहासकारों में शुमार होता है. वह इतिहास को समझने, उसके विभिन्न आयामों पर तीक्ष्ण दृष्टिपात करने, उसको प्रमाणित स्रोतों से परख कर नीर-क्षीर करने, इसका सहज शैली व सरल भाषा में विश्लेषण करने की कूवत रखते हैं. इन्होंने देश-विदेश के प्रमुख समाचार पत्रों में सीकर किसान आंदोलन के बारे में तत्समय छपे लगभग 1000 से अधिक समाचारों का संकलन कर उनका अवलोकन किया. देश भर के अभिलेखागारों में संबंध दस्तावेजों को खंगाला, ब्रिटिश संसद की प्रोसीडिंग्स में जहां-जहां इस आंदोलन का उल्लेख हुआ उसको पढ़ा, आंदोलन के बारे में पहले लिखी गई विभिन्न प्रामाणिक पुस्तकों का अध्ययन किया और उन्होंने उल्लेखित संदर्भों का मिलान मूल पुस्तकों से किया. तथ्यों का संग्रह कर उनका सत्यापन किया. आंदोलन के बारे में फर्स्ट हैंड जानकारी रखने वाले वयोवृद्ध आंदोलनकारी किसान नेताओं से व्यक्तिश: संपर्क कर उनसे तथ्यों की जानकारी ली. सभी समीचीन तथ्यों का संग्रह कर उनका सत्यापन किया और उनका मूल्यांकन कर उनके आधार पर निष्कर्ष निकाला है. यह सारा दुष्कर कार्य करने के उपरांत उन्होंने इस पुस्तक को कलमबद किया है. इनकी शोधपूर्ण खोज का दायरा व्यापक रहा है. लेखक ने दिल्ली, बीकानेर, जयपुर के अभिलेखागारों के अलावा तत्कालीन सभी अखबारों का परीक्षण किया है.

इस किताब में पहली बार आंदोलन के बारे में विदेशी अखबारों में छपे समाचारों को शामिल किया गया है. सीकर किसान आंदोलन का अरविंद भास्कर द्वारा किया गया यह पुनर्मूल्यांकन जन केंद्रित इतिहास दृष्टि का नमूना है. कुल मिलाकर यह पुस्तक एक ऐसा दस्तावेज है जिसके पन्नों पर एक तरफ लोमहर्षक उत्पीड़न की घटनाएं मिलती हैं, तो दूसरी तरफ तीखे प्रतिवाद और प्रतिरोध का इतिहास भी दर्ज है. पुस्तक को परिपक्व अनुभव के साथ बेहद उत्साह के साथ लिखा गया है.

खूड़ी और कूदन इन दोनों गांवों में हुए घटनाक्रम पर समुचित विस्तार के साथ लिखी गई यह पहली पुस्तक है. आंदोलन में शामिल किसान वर्ग के बलिदानों को समुचित रूप में पाठकों के सामने रखा गया है. कूदन गांव के घटनाक्रम के सिलसिले में मारे गए किसानों के बारे में जो तथ्य उपलब्ध थे उनमें बड़ा घाल-मेल था. लेखक ने प्रसिद्ध पुस्तक में इस घालमेल को कम करने का प्रयास किया है. इस पुस्तक में पहली बार कुछ भूले-बिसरे किसान नायकों पर विशेष ध्यान दिया है. शेखावाटी किसान आन्दोलन पर यह एक प्रमाणिक पुस्तक है.

पुस्तक का प्राक्कथन प्रोफ़ेसर हनुमान राम ईसराण, पूर्व प्राचार्य, राजकीय श्री कल्याण महाविद्यालय सीकर द्वारा लिखा गया है. पुस्तक में मुख्य मंत्री राजस्थान श्री अशोक गहलोत का सन्देश सम्मिलित किया गया है. पुस्तक में 474 पृष्ठ हैं. पुस्तक की अनुक्रमणिका इस प्रकार है.

1. 1935 के आंदोलन के समय सीकर ठिकाने का सामान्य परिचय....1
2. सीकर ठिकाने में जाट आंदोलन....6
3. सीकर में आंदोलन का पुनरारंभ....10
4. सीकर का दूसरा समझौता व जातीय तनाव....51
5. खुड़ी दुखांतिका
6. लगान वसूली व प्रतिरोध....102
7. समाचार प्रेषण व बाह्य समर्थन....163
8. समाचार पत्रों की खबरें....170
9. परिशिष्ट....344-374

Historical Articles and Cuttings

External links

References

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