Shershah Suri

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Sher Shah Suri (शेरशाह सूरी) (1486 – 22 May 1545) (birth name Farid Khan), and also known as Sher Khan, ("The Lion King") was the founder of the Sur Empire in North India, with its capital at Delhi.

History

An ethnic Pashtun, Sher Shah took control of the Mughal Empire in 1540. After his accidental death in 1545, his son Islam Shah became his successor. He first served as a private soldier, before rising to become a commander in the Mughal army under Babur and then as the governor of Bihar. In 1537, when Babur's son, Humayun was elsewhere on an expedition, Sher Khan overran the state of Bengal and established the Sur dynasty. A brilliant strategist, Sher Shah proved himself a gifted administrator as well as an able general.

During his five year rule from 1540 to 1545, he set up a new civic and military administration, issued the first Rupiya and re-organised the postal system of India. He further developed Humayun's Dina-panah city and named it Shergarh and revived the historical city of Pataliputra as Patna which had been in decline since the 7th century.

He extended the Grand Trunk Road from Chittagong (now in Bangladesh) to Kabul in Afghanistan in the far northwest of the country. This road is now known as Sher Suri Road and National Highway No. 1 (in India).

Sher Shah Suri in Jat History

Ram Sarup Joon[1] writes that ... Sher Shah Suri succeeded in getting the help of Jat Khap and overthrew the Moghul ruler.

शेरशाह और जाट

मुगल बादशाह बाबर की मृत्यु सन् 1530 ई० में हो गई। उसके बाद उसका पुत्र हुमायूं मुगल साम्राज्य का शासक बना जिसका शासन सन् 1530 से 1540 ई० तक और फिर दोबारा सन् 1555 से 1556 ई० तक रहा। बाबर की मृत्यु के पश्चात् अफगान जाति शेरखां के नेतृत्व में मुग़लों से अपना खोया हुआ राज्य वापिस लेने का प्रयत्न कर रही थी। शेरखां सूर जाति के अफ़गान मियां हसन का पुत्र था जो कि शेरशाह सूरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-582


जाट इतिहास पृ० 108 पर लेफ्टिनेन्ट रामसरूप जून ने लिखा है कि “जाट कभी भी मुगल सम्राटों के राजभक्त नहीं रहे, बल्कि सदा उनके विरुद्ध युद्ध करते रहे।”

मुगल बादशाह हुमायूं ने किसी बात से नाराज होकर अपने हाकिम मुल्ला शकीबी को ग्राम ढांढर्स (तहसील गोहाना, जि० सोनीपत) को घेरा देकर बरबाद करने के लिए भेजा। किन्तु जाट खापों ने मिलकर उस पर भयंकर आक्रमण करके उसकी सेना को वहां से भगा दिया। शेरशाह सूरी ने जाट खापों की सहायता से हुमायूं को युद्ध में हराकर दिल्ली और आगरे पर अधिकार कर लिया और भारत का सम्राट् सन् 1540 ई० में बन गया। इस प्रकार उसने द्वितीय अफ़गान राज्य की नींव डाली।

सम्राट् शेरशाह सूरी और जाट

(सन् 1540 से 1545 ई०)

शेरशाह सूरी ने अपने 5 वर्ष के थोड़े से समय में एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। यह साम्राज्य पूर्व में सोनार गांव (ढाका के निकट) से लेकर पश्चिम में अटक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्याचल तक था। इस साम्राज्य में पंजाब, उत्तरी सिन्ध, दिल्ली, आगरा, बिहार, बंगाल, राजस्थान और मध्यभारत का बहुत सा भाग सम्मिलित था। जब शेरशाह सूरी पंजाब में मुगलों का पीछा कर रहा था तो उसने गक्खड़ (खोखर जाट) प्रदेश में रहने वाली अनेक युद्धप्रेमी और स्वतन्त्र जातियों को अधीन करने का प्रयास किया। (भारत का इतिहास का इतिहास, पृ० 179, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी)।

बाबर की मृत्यु तथा शेरशाह सूरी के दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठने के बीच के समय में कोट कोबूलाह के एक मुख्य शूरवीर लूटेरा फथखाँ जाट ने लखी जंगल के सारे प्रदेश का विनाश कर दिया तथा लाहौर से पानीपत के मध्य प्रधान सड़क पर ऊधम मचा दिया। शेरशाह सूरी के पंजाब के राज्यपाल हैबतखाँ नियाजी ने घोर युद्ध करके उसको कुचल दिया (जाट इतिहास, पृ० 17, लेखक कालिकारंजन कानूनगो)।[2]

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References