Agra

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Agra district map

Agra (आगरा) is a city in Uttar Pradesh. It was founded by Agre clan of Jats.[1]

Variants of name

Mention by Pliny

Pliny[2] mentions Arabia....We then come to a gulf which runs far into the interior, upon which are situate the Lænitæ, who have given to it their name; also their royal city of Agra44, and upon the gulf that of Læana, or as some call it Ælana45; indeed, by some of our writers this has been called the Ælanitic Gulf, and by others again, the Ælenitic; Artemidorus calls it the Alenitic, and Juba the Lænitic. The circumference of Arabia, measured from Charax to Læana, is said to be four thousand six hundred and sixty-six miles, but Juba thinks that it is somewhat less than four thousand. Its widest part is at the north, between the cities of Heroopolis and Charax. We will now mention the remaining places and peoples of the interior of Arabia.


44 Probably in the district now known as Akra. It was situate on the eastern coast of the Red Sea, at the foot of Mount Hippus.

45 See B. v. c. 12, where this town is mentioned.

Tahsils in Agra district

Villages in Agra Tahsil

Abhaypura, Agra (CB), Agra (M Corp.), Akbarpur, Akola, Albatia, Anguthi, Artauni, Azizpur (CT), Babarpur Mustkil, Baad, Bagda, Bahenta, Bain Khera, Bainpur Mustkil, Bajhera, Balhera, Bamrauli Ahir, Bamrauli Katara, Barara, Barauli Ahir, Barauli Gujar, Basai, Basua Nagla, Bhahai, Bhandai, Bichpuri, Bijhamai, Bilahani, Bisarna, Bishara Kalan, Bishari Bhand, Brahmnagar, Budhana Mustkil, Budhera, Chak Vi Chor Nagaria, Chamrauli, Chauhatna, Dayalbagh (NP), Dehtora, Deoretha, Deori, Dhamota, Dhanauli (CT), Digner, Etmadpur Madra, Gamari, Gangraua, Garhsani, Gutla, Hingot Kheria, Ikthara, Islampur, Itaura, Jakhoda Agra, Janara, Jarua Katra, Jaupura, Kaboolpur, Kahrai, Kakrari, Kakua, Kalal Kheria, Kalika Nagla, Kalwari, Karmana Mustkil, Kaulakha, Khal, Khallauwa, Khaspur Mustkil, Khera Bhagor, Kuan Khera, Kundol, Kuthawati, Lakavali, Lakhanpur, Lalau Agra, Laramada, Lodhai, Mahua Khera, Malpura, Manghatai, Mankenda, Mayapura, Mehra Naharganj, Midhakur, Mohammadpur Agra, Mundhera, Nadauta, Nagla Kare, Nagla Jayram, Nagla Nathu, Nainana Jat (CT), Nainana-Brahman, Nanpur, Naubari, Nauphari, Pachgain Khera, Patholi, Patti Pachgain, Pawawali, Pinani Ramnagar, Rajrai, Rampura, Rohta, Sadarban, Sahara, Saimari, Salemabad, Samogar Ehtmali, Samogar Mustkil, Sargan Khera, Sarvatpur, Shyamo, Sikandarpur Mustkil, Siroli, Sucheta, Sujgai, Sunari, Sutendi, Swami Mustkil, Swamibagh (NP), Tanora Nurpur Mustkil, Tapara, Tora,

History

It finds mention in the epic Mahabharata where it was called Agrevaṇa (अग्रेवण). Monier Williams interprets it as 'the border of the forest'.[3] . But it is not the correct interpretation. This area was inhabited by the Agre clan of the Jats and hence its meaning is 'the forest of Agre people'. Ptolemy, the famous second century A.D. geographer, marked it on his map of the world as Agra. [4]

Legend ascribes the founding of the city to Rājā Badal Singh (around 1475), whose fort, Badalgarh, stood on or near the site of the present Fort. However, the 11th century Persian poet Mas'ūd Sa'd Salmān writes of a desperate assault on the fortress of Agra, then held by the Shāhī King Jayapala, by Sultan Mahmud of Ghazni.[5] Sultan Sikandar Lodhī was the first to move his capital from Delhi to Agra in the year 1506; he died in 1517 and his son Ibrāhīm Lodhī remained in power there for nine more years, finally being defeated at the Battle of Panipat in 1526.[6] It achieved fame as the capital of the Mughal emperors from 1526 to 1658 and remains a major tourist destination because of its many splendid Mughal-era buildings, most notably the Tāj Mahal, Agra Fort and Fatehpūr Sikrī, all three of which are UNESCO World Heritage Sites. In addition Akbar's tomb at Sikanrabad in Agra is a monument of note.

अग्रवन

अग्रवन उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। अग्रवन प्राचीन ब्रजमंडल का एक वन है। कालांतर में यहाँ आगरा नगर बसाया गया। [7]

आगरा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...आगरा, उ.प्र, (AS, p.60): मुग़ल काल के इस प्रसिद्ध नगर की नींव दिल्ली के सुल्तान सिकंदरशाह लोदी ने 1504 ई. में डाली थी। उसने अपने शासन काल में होने वाले विद्रोहों को भली भांति दबाने के लिए वर्तमान आगरा के स्थान पर एक सैनिक छावनी बनाई थी, जिसके द्वारा उसे इटावा, बयाना, कोल, ग्वालियर और धौलपुर के विद्रोहियों को दबाने में सहायता मिली। 'मखजन-ए-अफ़ग़ान' के लेखक के अनुसार सुल्तान सिकंदरशाह ने कुछ चतुर आयुक्तों को दिल्ली, इटावा और चांदवर के आस-पास के इलाके में किसी उपयुक्त स्थान पर सैनिक छावनी बनाने का काम सौंपा था और उन्होंने काफ़ी छानबीन के पश्चात् इस स्थान (आगरा) को चुना था। अब तक आगरा या 'अग्रवन' केवल एक छोटा-सा गाँव था, जिसे 'ब्रजमंडल' के चौरासी वनों में अग्रणी माना जाता था। शीघ्र ही इसके स्थान पर एक भव्य नगर खड़ा हो गया। कुछ दिन बाद सिकदरशाह भी यहाँ आकर रहने लगा। 'तारीख़दाऊदी' के लेखक के अनुसार सिकंदरशाह प्राय: आगरा में ही रहा करता था।

1505 ई. में रविवार, जुलाई 7 को आगरा में एक विकट भूकंप आया, जिसने एक वर्ष पहले ही बसे हुए नगर के अनेक सुंदर भवनों को धराशायी कर दिया। 'मख़जन' के लेखक के अनुसार भूंकप इतना भयानक था कि उसके धक्के से इमारतों का तो कहना ही क्या, पहाड़ तक गिर गए थे और प्रलय का सा दृश्य दिखाई देने लगा था। इसके पश्चात् आगरा की उन्नति मुग़ल बादशाह अकबर के समय में प्रारंभ हुई। 1565 ई. में उसने यहाँ लाल पत्थर का क़िला बनवाना शुरू किया, जो आठ वर्षों में तैयार हुआ। अब तक इसके स्थान पर ईटों का बना हुआ एक छोटा-सा क़िला था, जो खंडहर हो चला था। अकबर के क़िले को बनाने वाला तीन हज़ारी मनसबदार कासिम ख़ाँ था और इसके निर्माण का व्यय 35 लाख रुपया था। क़िले की नींव भूमिगत पानी तक गहरी है। इसके [p.61]: पत्थरों को मसाले के साथ-साथ लोहे के छल्लों से भी जोड़ कर सुदृढ़ बनाया गया है। अकबर ने अपने शासन के प्रारंभ में ही फ़तेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया था, किंतु 1586 ई. में अकबर पुन: अपनी राजधानी आगरा ले आया था। जहाँगीर के राज्यकाल में और शाहजहाँ के शासन के प्रारंभिक वर्षों में आगरा में ही राजधानी रही। इस जमाने में यहाँ क़िले की अंदर की सुंदर इमारतें-मोती मस्जिद और एतमादुद्दौला का मक़बरा (जिसका निर्माण नूरजहाँ ने करवाया था) बना।

शाहजहाँ ने आगरा को छोड़कर दिल्ली में अपनी राजधानी बनाई। इसी समय आगरा में विश्वविश्रुत ताजमहल का निर्माण हुआ।

आगरे में मुगल वास्तुकला के पूर्व और उत्तर कालीन दोनों रूपों के उदाहरण मिलते हैं. अकबर के समय तक जो इमारतें मुगलों ने बनवाई वह विशाल, भव्य और विस्तीर्ण हैं जैसे फतेहपुर सीकरी के भवन या दिल्ली में हुमायूं का मकबरा. नूरजहां के बनवाए हुए एत्माद्दौला के मकबरे में पहली बार पत्थर पर बारीक नक्काशी और पच्चीकारी का काम किया गया और उस कला का जन्म हुआ जो विकसित होते हुए ताजमहल के अभूतपूर्व वास्तुशिल्प में प्रस्फ़ुटित हुई. ताज महल में भव्य तथा सुक्षम दोनों कला पक्षों का अद्भुत मेल है जो उसे संसार की सर्वश्रेष्ठ इमारतों में प्रमुख स्थान दिलाता है.

शाहजहां के दिल्ली चले जाने के बाद आगरा फिर कभी मुगलों की राजधानी नहीं बन सका यद्यपि यह नगर मुगल काल का एक प्रमुख नगर तो अंत तक बना ही रहा.

आगरा परिचय

आगरा उत्तर प्रदेश प्रान्त का प्रसिद्ध शहर, ज़िला व तहसील है। यह 27.18° उत्तर 78.02° पूर्व में यमुना नदी के तट पर स्थित है। भारतीय इतिहास में यह नगर अपना विशिष्ट स्थान रखता था। ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी आगरा बहुत प्रसिद्ध है। समुद्र-तल से इसकी औसत ऊँचाई क़रीब 171 मीटर (561 फ़ीट) है। यह उत्तर में मथुरा, दक्षिण में धौलपुर, पूर्व में फ़िरोज़ाबाद, शिकोहाबाद, दक्षिण पूर्व में फ़तेहाबाद और पश्चिम में भरतपुर से घिरा हुआ है। आगरा उत्तर प्रदेश का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। ताजमहल आगरा की विशेष पहचान है, जो यमुना नदी के किनारे स्थित है। उत्तर प्रदेश सहित आगरा सम्पूर्ण भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।

आगरा एक ऐतिहासिक नगर है, जिसका प्रमाण यह अपने चारों ओर समेटे हुए है। इतिहास में आगरा का प्रथम उल्लेख महाभारत के समय से माना जाता है, जब इसे 'अग्रबाण' या 'अग्रवन' के नाम से संबोधित किया जाता था। कहा जाता है कि पहले यह नगर 'आर्य गृह' के नाम से भी जाना जाता था। तौलमी[9] पहला ज्ञात व्यक्ति था, जिसने इसे 'आगरा' नाम से संबोधित किया।

मध्य काल में आगरा गुजरात तट के बंदरगाहों और पश्चिमी गंगा के मैदानों के बीच के व्यापार मार्ग पर एक महत्त्वपूर्ण शहर हुआ करता था। मुग़ल साम्राज्य के पतन के साथ 18वीं सदी के उत्तरार्ध में यह शहर क्रमशः जाटों, मराठों, मुग़लों और ग्वालियर के शासक के अधीन रहा और अंततः 1803 में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया। 1833 से 1868 तक यह आगरा प्रांत (बाद में पश्चिमोत्तर प्रांत) की राजधानी रहा।

संदर्भ: भारतकोश-आगरा

वीर गोकुला जाट की प्रतिमा का अनावरण 01.10.2022

Gokula Jat Statue Agra-6.jpg
वीर गोकुला जाट शिलालेख, आगरा

आगरा में दिनांक 1 अक्टूबर 2022 को आगरा लाल किले के पास वीर गोकुला जाट की प्रतिमा का अनावरण हुआ.

औरंगबेज ने आगरा किला में 31 दिसम्बर, 1669 को हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट की अंग-अंग काटकर हत्या करने का हुक्म दिया। ठीक 352 साल बाद वीर गोकुला जाट उसी आगरा किले के पास प्रतिमा के रूप में विराजमान हो गए। वीर गोकुला जाट की विशालकाय और भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। जाट समाज की मांग पर आगरा के महापौर और अखिल भारतीय महापौर परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन जैन ने प्रतिमा की स्थापना कराई है। प्रतिमा अनावरण के दौरान वीर गोकुला जाट की जय, वीर गोकुला अमर रहे जैसे नारे लगते रहे।

वीर गोकुला जाट की प्रतिमा शाहजहां गार्डन के मुख्य द्वार पर स्थापित है। युद्ध के लिए तैयार घुड़सवार प्रतिमा का मुंह आगरा किला की ओर है। वीर गोकुला के हाथ में तलवार है। जाटों ने ताजमहल को लूटकर और सिकंदरा में अकबर की कब्र खोदकर तथा हड्डियां जलाकर वीर गोकुला के बलिदान का बदला लिया था। महापौर नवीन जैन ने प्रतिमा की स्थापना कराकर इस कड़ी को आगे बढ़ाया है। आगरा किला के पास वीर गोकुला जाट की प्रतिमा स्थापित कराकर महापौर नवीन जैन ने नया इतिहास ही लिख दिया है। अतिथियों ने दुग्धाभिषेक और गंगाजल से स्वच्छ कर प्रतिमा को अनावरण किया। अनावरण से पूर्व कार्यक्रम स्थल पर मंत्रोच्चारण एवं विधि विधान से हवन यज्ञ संपन्न हुआ। जिसमें सभी अतिथियों और समाज के लोगों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया और यज्ञ हवन में आहुति डाली।

महापौर नवीन जैन ने बताया कि वीर गोकुल सिंह जाट की यह प्रतिमा लगभग 17 फीट उंची है (आधार की उंचाई लगभग 5 फीट मिलाकर)। इसे तैयार करने में लगभग 35 लाख की लागत आई है। इस प्रतिमा को ग्वालियर के शिल्पकार प्रभात राय ने तैयार किया है।

मुख्य अतिथि, केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने कहा- वीर गोकुला जाट हगा गोत्र के थे, जो सिद्ध करता है कि वे तिल्हू चहत्तर के थे। चूंकि सांसद निधि से मूर्ति नहीं बनाई जा सकती, इसलिए मैंने पुलिस चौकी के बराबर से तिल्हू-चहत्तर तक सड़क का निर्माण करवाया था। मैं जब गांव में गया तो महिलाएं गीतों में गोकुला जाट का नाम ले रही थीं। मैंने पूछा तो उनकी वीरता के बारे में पता चला। उन्होंने महापौर नवीन जैन को सराहा कि साढ़े तीन सौ साल बाद ही सही, वीर गोकुला जाट की प्रतिमा स्थापित कराई है। गोकुला जाट को औरंगजेब के खिलाफ युद्ध में वैश्य समाज ने मदद की थी और आज वैश्य समाज के नवीन जैन ने गोकुला जाट की प्रतिमा लगवाई है। प्रो. बघेल ने भाषण में अपने इतिहास संबंधी ज्ञान का प्रकटीकरण किया।

महापौर नवीन जैन ने अपना उद्बोधन महापौर नवीन जैन ने वीर गोकुला जाट की जय का नारा लगवाकर की। उन्होंने कहा कि हमने आगरा कैंट पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय, कोठी मीना बाजार के सामने सरदार वल्लभ भाई पटेल, बल्केश्वर में महाराजा अग्रसेन, शाहजहां गार्डन में वीर गोकुला जाट, यमुना किनारे यमुना आरती स्थल पर महाराणा प्रताप की प्रतिमा स्थापित की है। वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब के दांत खट्टे कर दिए थे। औरंगजेब ने अंग-अंग कटवाकर वीर गोकुला जाट की हत्या करवा दी थी वह स्थान फुव्वारा चौक है।

राज्यसभा सांसद हरद्वार दुबे ने कहा – वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब से कह दिया था कि तुम चाहे अपनी लड़की का विवाह मुझसे कर दो, फिर भी हिन्दू धर्म नहीं छोड़ूंगा। उन्होंने औरंगजेब को आतताई बताया। विधायक एवं पूर्व मंत्री डॉ. जीएस धर्मेश ने देश के लिए शहीद होने वालों को हम नमन करते हैं। विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे, विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह ने भी गोकुला जाट के बलिदान को याद किया।

विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने कहा कि हमारा देश 800 साल गुलाम रहा। हम तो गोकुला जाट को प्रातः स्मरण करते हैं। औरंगजेब ने वीभत्स अत्याचार किए। जो लोग राजनीति की बात करते हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि भारत माता की रक्षा के लिए जिन लोगों ने संघर्ष किया है, वे हमारे लिए परम आदरणीय हैं। नगर निगम गार ने ऐसे ही महायोद्धाओं को याद किया है। विधानसभा में हम बोल चुके हैं कि अकबर महान नहीं हो सकता है। अकबर और औरंगजेब कायर थे। जो लोग औरंगजेब और अकबर के इतिहास को छिपाना चाहते हैं वे गोकुला जाट, महाराणा प्रताप के विरोधी हैं और भारत माता के भी विरोधी हैं। जेएस फौजदार ने समाज के लिए कार्य करने की नसीहत दी। हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट पुस्तक के लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह भी मंच पर विराजमान थे।

कार्यक्रम का संचालन जाट नेता अनिल चौधरी ने किया। मथुरा से आए डॉ. जेएस जाट के नेतृत्व में जाटों ने महापौर नवीन जैन को साफा बांधकर और मालाओं से लादकर अभिनंदन किया। कार्यक्रम में संजय चौहान, भाजपा पार्षद दल के नेता मोहन सिंह लोधी, डॉ. मुनीश्वर गुप्ता, पार्षद रवि माथुर, पार्षद राकेश जैन, डॉ. भोज कुमार शर्मा, डॉ. हरि नारायण चतुर्वेदी, गौरव शर्मा, नवीन गौतम, युवा पत्रकार देवेश शर्मा, रामकुमार गुप्ता, हरवीर सिंह, राजेश्वरी देवी, कर्मवीर सिंह, बृज किशोर अग्रवाल, प्रदीप अग्रवाल, हेमेन्द्र पाल सिंह, भवतोष चौधरी, सपना जैन, हरी कुमारी, रवि शर्मा, जितेन्द्र सिंह, जगदीश पचौरी, नेहा गुप्ता, मुकेश सोलंकी, ठाकुर पवन भदौरिया, प्रवीन जैन आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

Source - Live Story Time, October 1, 2022, Dr. Bhanu Pratap Singh

Capture of Agra Fort (12 June 1761)

Maharaja Jawahar Singh Memorial Agra

Agra was the richest town during those. Maharaja Suraj Mal decided to capture Agra fort to re-establish his influence in doab region. On 3 may 1761 the Jat army of Suraj Mal with 4000 Jat soldiers reached Agra under the command of Balram Singh and gave the massage of Maharaja Suraj Mal to the kiledar (incharge) of Agra fort that the army wants to cross Jamuna and needs camping place. The kiledar gave the sanction for camping. Meanwhile the Jat army started entering the fort, which was resisted by the guards in which 200 people died. Jat army started war from Jamamasjid. During this period Maharaja Suraj Mal stayed at Mathura to observe the situations. On 24 May 1761 Maharaja Suraj Mal along with Imād and Gangadhar Tantya moved from Mathura, crossed Jamuna and reached Aligarh. From Aligarh his army moved and captured the areas of Jat ruler koīl and Jalesar. They reached Agra to help his army at Agra in the first week of June. Maharaja Suraj Mal arrested the family members of the guards staying in Agra town and pressurized the guards of fort for surrender. At last the kiledar agreed to surrender by receiving a bribe of Rs 1 lakh and jagir of five villages. Thus after a seize of one month Maharaja Suraj Mal captured Agra Fort on 12 June 1761 and it remained in the possession of Bharatpur rulers till 1774. [10]

After Maharaja Suraj Mal, Maharaja Jawahar Singh, Maharaja Ratan Singh and Maharaja Kehri Singh (minor) under residentship of Maharaja Nawal Singh ruled over Agra Fort. There is a haveli in the name Maharaja Nawal Singh in Agra Fort and also a Chhatri of Maharaja Jawahar Singh built in right-side of Khasmahal near the Chhatri of Rosanara-Jahanara.[11],[12]

Jat Khaps in Agra districts

  • Source: Jat Bandhu, April 1991

Gallery

References

  1. Ch. Harit Khan(Deswal)'s book, "Zato Qaa Itihas" (Urdu, 1988) p.43
  2. Natural History by Pliny Book VI/Chapter 32
  3. Monier Williams' Sanskrit Lexicon. http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/
  4. http://agra.nic.in/hist.htm
  5. District Profile - Government Website
  6. http://asi.nic.in/asi_monu_whs_agrafort.asp
  7. भारतकोश-अग्रवन
  8. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.60-61
  9. Ptolmy 2nd century A.D.
  10. Dr. Prakash Chandra Chandawat: Maharaja Suraj Mal aur unka yug, Jaypal Agencies Agra, 1982, Pages 197-200
  11. Agra Gazeteer 1884, page 620
  12. Jatbandhu Agra, 25 January 2005

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