Betul
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Betul (बेतुल) is a city and district in Madhya Pradesh. Betul district forms the southernmost part of the Narmadapuram Division. Author (Laxman Burdak) stayed at Betul from 15.07.1993-28.01.1995.
Variants
Origin
- Vaitula-kantha (वैतुलकंथ) is name of a town mentioned by Panini in Ashtadhyayi.[1]
- During the early 20th century, Betul was known as Badnur.[2] It derives its present name from a small town called Batul Bazar about 5 km to its south. The word Betul —literally mean "without" (be) "cotton" (tool) it was referred for its position outside the area's cottonfields.
Location
Betul district is a part of Narmadapuram Division. It lies almost wholly on the Satpura range and occupies nearly the whole width of the range between the Narmada Valley on the north and the Berar plains on the south.
Betul is connected to the broad-gauge Delhi–Chennai (Grand Trunk) line of the Indian rail network, which also communicates with Bhopal and Nagpur. Betul is serviced by National Highway 46 connecting it with Bhopal and Nagpur. National Highway 47 connects it to Indore. The nearest airports are at Nagpur and Bhopal, both about 180 km (112 mi) away.
Jat Gotras
- Dhadariya (ढडारिया)
- Khenwar (खेनवार)
- Pachehre (पचहरे)
- Beta Thakur (बेटा ठाकुर)
Tahsils in Betul District
- Amla
- Betul
- Bhainsdehi
- Multai
- Shahpur
- Aathner
- Ghoradongari
- Chicholi
- Prabhatpattan
- Bhimpur
- Betul Nagar
Villages in Betul tahsil
History
Nearby fort called Kherla Quila was formerly the seat of an independent kingdom in the medieval and early modern period.[3] Under Company Rule, its fort was permitted to fall into ruin.[4] Badnur became the headquarters of Betul District in 1822. Surrounded by hills on all sides, it was used by the British for the exportation of coal.[5] It supported two bazaars; the larger, Kothi Bazar, held 2015 people in the 1870s.[2] At that time, the town had a circuit house, a dak bungalow, a caravanserai, jail, police station, pharmacy, and schools.[6]
Following independence, Betul lay near the geographical center point of the new country, which is now marked by a stone at Barsali. Betul was connected to the Delhi–Chennai line of the Indian rail network in the early 1950s. It now serves as a junction point, providing the access to the Chhindwara District on broad-gauge rail Biggest City in India .
People
Main tribes inhabiting the district are Gonds and Korkus. The remaining population are castes like Kshatriya Pawar/Panwar, Kunbi, Brahmin, Maratha, Chamar, Mali, Pal, Patil and Soni.[7]
बैतूल में पुरातात्विक महत्व के स्थान
बैतूल में पुरातात्विक संपदा एवं पर्यटन की संभावनाओं वाले अनेक स्थान हैं. बेतुल जिला सतपुड़ा पर्वतमालाओं के बीच सघन सागौन वनों से आच्छादित है. यहाँ अनेक खूबसूरत पहाड़ियां हैं जो इको-टूरिज्म की दृष्टि से सर्वथा उपयुक्त हैं. लेकिन अधोसंरचना के विकसित न होने तथा जानकारी के प्रचार के अभाव के कारण बाहरी सैलानियों के लिए अछूत ही हैं. केवल स्थानीय लोग ही इन क्षेत्रों में पिकनिक, मेला इत्यादि हेतु जाते हैं. उत्तर वन मंडल की कार्य योजना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कुछ महत्वपूर्ण स्थल निम्नानुसार हैं:
1. असीरगढ़ - बैतूल से 64 किलोमीटर उत्तर पूर्व में परिक्षेत्र सारणी के कक्ष क्रमांक 305 में असीरगढ़ किला अवस्थित है. यह वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है.
2. भंवरगढ़ - शाहपुरा परिक्षेत्र के कक्ष क्रमांक 200, 199 एवं 187 की सीमा पर स्थित है. आदिवासियों के ईस्ट भंवरदेव की पूजा स्थलीी एवं कुछ प्राकृतिक झरने भी हैं. यह बैतूल से लगभग 50 किलोमीटर दूर है.
3. भोपाली - बैतूल से 27 किलोमीटर उत्तर पूर्व में रानीपुर परिक्षेत्र के कक्ष क्रमांक 506 में भोपाली वन ग्राम में प्राकृतिक गुफाएं हैं. इनमें शिव पार्वती की मूर्तियां स्थापित हैं.
4.बालाजीपुरम - राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 69 पर बैतूल बाजार में बालाजीपुरम देवस्थान है. यहां कई हिंदू आराध्य देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं.
5. भोंंड़ियाखाप शैलचित्र - भौंरा परिक्षेत्र में ग्राम भोंंड़ियाखाप के निकट कक्ष क्रमांक 90 में पाषाणयुगीन मानव द्वारा बनाए गए शहर शैलचित्र हैं. शिकार अनुष्ठान को प्रदर्शित करने के चित्र आज भी संरक्षित अवस्था में हैं.
6. खेड़लादुर्ग - बेतुल से 5 किलोमीटर पूर्व में ग्राम खेड़ा में खेड़ला का मध्यकालीन किला है. यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. राजा जैतपाल बैतूल जिले में 11 वीं शताब्दी में भोपाली क्षेत्र में राज करता था। उसकी राजधानी खेड़लादुर्ग में थी। इस दुर्ग के तक्कालीन अधिपति राजा जैतपाल ने ब्रहम का साक्षात्कार न करा पाने के कारण हजारों साधु सन्यासियों को कठोर दण्ड दिया था। इसकी मांग के अनुसार महापंडितों योगाचार्य मुकुन्दराज स्वामी द्वारा दिव्यशकित से ब्रहम का साक्षात्कार कराया था तथा इस स्थान पर दण्ड भोग रहे साधु सन्यासियों को पीड़ा से मुक्त कराया था उन्होंने हजारों सालों से संस्कृत में धर्मग्रंथ लिखे जाने की परम्परा को तोड़ा। उन्होनें मराठी भाषा मे विवके सिन्धु की महत्ता पूरे महाराष्ट्र प्रान्त में है। यह स्थान पुरातत्व एवं अध्यात्म की दृषिट से अति प्राचीन है।
7. सांवलीगढ़ - गवासेन परिक्षेत्र के कक्ष क्रमांक 20, 30 में वनग्राम कुरसना के नजदीक सांवलीगढ़ का किला है. यहां प्राकृतिक झरने दर्शनीय हैं.
8. सारणी - बैतूल से 60 किलोमीटर दूर स्थित पूर्व का सारणी वन ग्राम आज एक बड़ा नगर है. जहां ताप विद्युत संयंत्र है एवं नजदीकी ग्राम पाथाखेड़ा में भूगर्भीय कोयला खदानें हैं. परिक्षेत्र सारणी के कक्ष क्रमांक 349 में मठारदेव की पहाड़ियों पर प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. कार्य योजना बैतूल की सबसे ऊंची पहाड़ियों की श्रृंखला कििलनदेव भी सारणी परीक्षेत्र के अंतर्गत है.
9. धाराखोह जलप्रपात - बैतूल से 6 किलोमीटर उत्तर में बैतूल परिक्षेत्र के वन ग्राम धाराखोह के निकट कक्ष क्रमांक 259 में महारुख नदी जलप्रपात बनाती है जहाँ पानी लगभग 50 मीटर ऊंचाई से कई स्तरों में गिरकर मनोरम दृश्य बनाता है.
10. बजरंग एवं शिव मंदिर सोनाघाटी - बैतूल शहर से 3 किलोमीटर दूर नारंगी क्षेत्र में बजरंग एवं शिव मंदिर हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 69 के दोनों और पहाड़ी में आमने-सामने स्थित इन मंदिरों से कोसमी बाँध एवं बैतूल शहर का विहंगम बंगम दृश्य दिखाई देता है.
11. मलाजपुर: मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का मेला प्रतिवर्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर तकरीबन एक माह बसंत पंचमी तक चलता है। बाबा साहब की समाधि की मान्यता है इसकी परिक्रमा करने वाले को प्रेत बाधाओं से छुटकारा मिलता है। यहां से कोई भी निराष होकर नहीं लौटता है। इस वजह से मेला में दूर-दूर से श्रद्धालु आते है। मलाजपुर जिला मुख्यलाय से 42 किलामीटर की दूरी पर विकासखण्ड चिचोली में सिथत है। मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का समाधि काल 1700-1800 ईसवी का माना जाता है। यहां हर साल पौष की पूर्णिता से मेला शुरू होता है। बाबा साहब का समाधि स्थल दूर-दूर तक प्रेत बाधाओं से मुकित दिलाने के लिये चर्चित है। खांसकर पूर्णिमा के दिन यहां पर प्रेत बाधित लोगों की अत्यधिक भीड रहती है। यहां से कोर्इ भी निराश होकर नहीं लौटता है। यह सिलसिला सालों से जारी है। उन्होंने कहां कि यहा पर बाबा साहब तथा उन्हीं के परिजनों की समाधि है। समाधि परिक्रमा करने से पहले बंधारा स्थल पर स्नान करना पड़ता है, यहां मान्यता है कि प्रेत बाधा का शिकार व्यकित जैसे-जैसे परिक्रमा करता है वैसे वैसे वह ठीक होता जाता है। यहां पर रोज ही शाम को आरती होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि दरबार के कुत्ते भी आरती में शामिल होकर शंक, करतल ध्वनी में अपनी आवाल मिलाते है। इसकी लेकर महंत कहते है कि यह बाबा का आशीष है। मह भर के मेला में श्रद्धालुओं के रूकने की व्यवस्था जनपद पंचायत चिचोली तथा महंत करते है। समाधि स्थल चिचोली से 8 किमी. दूर है। यहां बस जीप या दुख के दुपाहिया, चौपाहिया वाहनों से पहुंचा जा सकता है। मेला में सभी प्रकार के सामान की दुकाने भी लगती है।[8]
जठान देव: प्राकृतिक सौंदर्य के बीच ग्राम पचामा में स्थित है रमणिक स्थल - पाढ़र क्षेत्र में ऐतिहासिक रमणीक स्थल में बसे बाबा जेठान देव. यह पर्यटन स्थल जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर ग्राम पचामा में स्थित है. यह स्थल अपने पीछे लंबा इतिहास लिए खड़ा है. जठानदेव का धार्मिक स्थल पचामा गांव से बिल्कुल सटा हुआ है, जो अपने कोख में कई रहस्यों को छिपाए है. क्षेत्र हरियाली के बीच बसा हुआ है, यहां पर्वत श्रृंखलाएं हैं. पहाड़ों के बीच स्थित जठानदेव का धार्मिक स्थल प्राकृतिक सौंदर्य का बोध कराता है. इस धार्मिक स्थल के बारे में कहा जाता है कि दर्शन हेतु आने वाले भक्तगण यहां सुकून व ताजगी का अनुभव करते हैं. बाबा जठानदेव स्थान के इतिहास के बारे में जानकार बताते है कि इस जगह पर वर्ष 1985 से 1990 के समय गुफा हुआ करती थी. यहां जनजाति समुदाय पूजा करने आते थे. पहले गुफा के ऊपर से झरना बहता था. पिछले 10 वर्षों से यह क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत है. ग्राम पंचायत पचामा के संरक्षण में यहां प्रतिवर्ष मेला आयोजित किया जा रहा है, जिसमें रामसत्ता, डंडार, कबड्डी जैसी प्रतियोगिता भी आयोजित होती है. आस्था के इस केंद्र में आज भी प्राकृतिक रूप से झरने से बाबा के शिवलिंग पर जलाभिषेक होता है.[9]
स्रोत - आर डी महला,कार्य आयोजना अधिकारी, उत्तर बेतूल वनमंडल
पर्यटन स्थल
ताप्ती उदगम: मुलताई नगर म.प्र. ही नही बल्कि पूरे देश मे पुण्य सलिला माँ ताप्ती के उदगम के रूप मे प्रसिद्ध है । पहले इसे मूलतापी के रुप में जाना जाता था । यहां दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए आते है । यहां सुन्दर मंदिर है । ताप्ती नदी की महिमा की जानकारी स्कंद पुराण में मिलती है । स्कंद पुराण के अंतर्गत ताप्ती महान्त्म्य का वर्णन है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माँ ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है । यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते है उन्हे ताप्ती मे स्नान करनेे से राहत मिलती है । ताप्ती सभी की ताप कष्ट हर उसे जीवन दायनी शक्ति प्रदान करती है श्रद्धा से इसे ताप्ती गंगा भी कहते है । म.प्र. की दूसरी प्रमुख नदी है । इस नदी का धार्मिक ही नही आर्थिक सामाजिक महत्व भी है । सदियों से अनेक सभ्यताएं यहां पनपी और विकसित हुई है । इस नदी की लंबाई 724 किलोमीटर है । यह नदी पूर्व से पशिचम की और बहती है इस नदी के किनारे बरहापुर और सूरत जैसे नगर बसे है । ताप्ती अरब सागर में खम्बात की खाडी में गिरती है ।
कुकरु
बैतूल जिला सतपुड़ा की सुरम्यवादियों में बसा है। कुकरू बैतूल जिले की सबसे ऊंची चोटी है। जिला मुख्यालय से लगभग 92 किमी के दूरी पर सिथत है। इस क्षेत्र में कोरकू जनजाति निवास करती है। इस कारण ही इस क्षेत्र को कुकरू के नाम जाना जाता है। म.प्र. में जो स्थान पचमढ़ी का है ठीक वहीं स्थान बैतूल जिले में कुकरू का है। इसकी उंचाई समुद्रतल से 1137 मीटर है। यहा से उगते सूर्य को देखना तथा सूर्यास्त होते सूर्य को देखना बड़ा ही मनोरम लगता है। कुकरू काफी के बागवान के लिये भी प्रसिद्ध है। यह प्राकृतिक स्थल चारों तरफ से घनों जंगलों से आच्छादित है।
बालाजी पुरम: बालाजी पुरम भगवान बालाजी के विशाल मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान बैतूल बाजार नगर पंचायत के अंतर्गत आता है। जिला मुख्यालय बैतूल से केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 69 पर स्थित है। इसकी ख्याति दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है। यही कारण है कि आप इसे किसी भी मौसम में देखने जा सकते है यहां भक्तों का ताता लगा रहता है। मंदिर के साथ ही चित्र भी बने है। जिसमें भगवान राम के जीवन से जुड़ी विभिन्न घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है। मूर्तियाँ इस तरह बनाई जाती हैं मानो उन्हें बोलना हो। इसके अलावा यहां वैष्णव देवी का मंदिर है। वहां जाने के लिए आपको गुफा केंद्रों से गुजरना पड़ता है। कृत्रिम झरना भी बहुत सुंदर है। कृत्रिम मंदाकिनी नदी भी बनाई गई है। आप नव विहार का आनंद भी ले सकते हैं। हर साल वसंत पंचमी पर यहां एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। यह पूरे भारत में पांचवें धाम के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।
सालबर्डी - सालबर्डी में भगवान शिव की गुफा है। यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। यह स्थल बैतूल जिले के विकासखंड प्रभातपटटन की ग्राम पंचायत सालवर्डी के अंतर्गत सिथत है। सालवर्डी बैतल की तहसील मुलताई और महाराष्ट्र के अमरावती जिले की मोरसी के पास पहाड़ी है, जिस पर एक गुफा में भगवान शिव की मूर्ति प्रतिषिठत है। आमतौर पर यह विश्वास किया जाता है कि इस गुफा के नीचे से पचमढ़ी सिथत महादेव पहाड़ी तक पहुंचने के लिये एक रास्ता जाता है। बैतूल जिले की जनपद पंचायत प्रभातपटटन के अंतर्गत ग्राम सालबर्डी अपनी सुरम्य वादियों एवं भगवान शिव की प्राचीन गुफा एवं उसमें स्थित प्राचीनतम शिवलिंग हेतु विख्यात है। इस शिवलिंग की विशेषता है कि यहां प्रकृति स्वयं भगवान शिव का अभिषेक अनवरत रूप से करती है। शिवलिंग के ठीक ऊपर सिथत पहाड़ी से सतत जलधारा प्रवाहित होती रहती है। यह किवदन्ती है कि पौराणिक काल से स्थित यह शिवलिंग स्वत: प्रस्फुटित हुआ है। यह स्थान मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र प्रान्त के लाखों श्रृद्धालुओं की श्रृद्धा का केन्द्र है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें उमड़ने वाला जनसैलाब अपने आप में कौतुहल का विषय है। प्रतिवर्ष आयोजित सात दिवदीय मेले में प्रतिदिन लगभग 75 हजार से एक लाख श्रृद्धालु एकत्रित होते है। मेले की प्रमुख विशेषता जो अन्यत्र कहीं देखने नहीं मिलती है वह है लोगो की श्रृद्धा। इसका अनुपम उदाहरण है कि दुर्गम पथ को पार करते हुये भी न केवल पुरूष बलिक महिलाएं व छोटे छोटे बच्चे भी तमाम दिन और रात शिवदर्शन के लिये आते है। शिवगुफा ग्राम से लगभग तीन किमी ऊपर पहाडी पर सिथत है इतने विशाल जन समुदाय का नियंत्रित हो पाना भी अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं। शिवगुफा पहुंच मार्ग के दोनो ओर निर्सग ने मुक्तहस्त से अपनी सौन्दर्य छटा बिखेरी है। सर्वप्रथम सीतानहानी नामक स्थान है जो कभी अपनी गरम पानी के कुण्ड के लिये विख्यात था, मुप्तगंगा में भी लगातार जलप्रवाह वर्ष पर्यन्त देखा जा सकता है। यात्री जब तीन किमी लम्बी चढ़ाई को पार कर शिवगुफा में प्रवेश करता है तो उसे अलौकिक शांति का अनुभव होता है और यात्रा की समस्त थकान कुछ ही पलों के भीतर दूर हो जाती है। शिवगुफा के अंदर भी 3-4 अन्य गुफा है जिनके संबंध में कहा जाता है कि इन गुफाओं से होकर मार्ग सुंंदुर बड़ा महादेव अर्थात पचमढ़ी पहुंचता है। सालबर्डी के विषय में यह भी कहा जाता है कि जब भगवान शिव का पीछा भस्मासुर नामक राक्षस कर रहा था तब शिव ने कुछ देर के लिये इस गुफा में शरण ली थी। पहाड़ी चटटानों पर स्थित पांंडव की गुफा भी विख्यात है, जहां पर कभी अज्ञातवास के समय पांडवों ने अपना बसेरा किया था। अन्य विशेषताओं के साथ ग्राम सालबर्डी की एक विशेषता यह भी है कि यह ग्राम आधा मध्यप्रदेश व आधा महाराष्ट्र में है। इस प्रकार यह ग्राम दो पृथक संस्कृतियों के अदभुत संगम का भी प्रतीक है। वर्तमान में जनपद पंचायत प्रभातपटटन समस्त व्यवस्थाएं देख रही है तथा इस स्थल को पर्यटन स्थल घाोषित करने हेतु प्रयास किये जा रहे है।
मुक्तागिरि, बैतूल मध्य प्रदेश: बैतूल जिले के विकासखण्ड भैसदेही की ग्राम पंचायम थपोडा में जैन तीर्थ मुक्तागिरि स्थित है. यह क्षेत्र पहाडी पर स्थित है तथा क्षेत्र में पहाड पर 52 मन्दिर है तथा पहाड की तहलटी पर 2 मन्दिर है. क्षेत्र पर अधिकतर मन्दिर 16 वी शताब्दी या उसके पश्चात के बने हुये हैं. मुक्तागिरि अपनी सुन्दरता, रमणीयता और धार्मिक प्रभाव के कारण लोगों को अपनी और आकर्षित करता है. इन मंदिरों का संबंध श्रेणीक विम्बसार से बताया जाता है. यहां मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफणिक प्रतिमा स्थापित है जो शिल्प का बेजोड नमूना है. जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 102 किलोमीटर है. क्षेत्र पर मन्दिर क्रमांक 10 एक अति प्राचीन मन्दिर है जो कि पहाडी के गर्भ में खुदा हुआ बना है, जो मेंढागिरी के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा विराजमान है. [10][11]
बेतुल में 24 शहीद किसानों को याद किया
बैतूल जिला- एक परिचय
भारत की हृदय स्थली में स्थित बैतूल जिला परित्र ताप्ती नदी के उद्गम स्थल का गौरव प्राप्त किये हुए है। दिल्ली मद्रास मुख्य लाईन पर भोपाल नागपुर के मध्य में स्थित है। अकबर महान के नौ रत्नों में से एक रत्न टोडरमल के द्वारा कराये गये सर्वेक्षण से ज्ञात अखंड भारत के केन्द्र बिन्दु पर बसा यह जिला आदिवासी संस्कृति को उद्घाटित करता है।
भौगोलिक स्थिति: आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल के दक्षिण में सतपुडा की श्रृंखलाओं में फैला हुआ है। उत्तर में नर्मदा की घाटी और दक्षिण में बरार का मैदार है। यह जिला 21”22′ से 22”23′ उत्तरी अक्षांश एवं 77”-10′ से 78”-33′ देशांश के मध्य स्थित है। इसके उत्तर में होशंगाबाद जिला, दक्षिण में महाराष्ट्र प्रदेश का अमरावती जिला, पूर्व में छिंदवाडा जिला और पश्चिम में पूर्व निमाड (खण्डवा) जिला है।
पर्वत श्रृंखला: बैतूल जिला सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाओं में समुद्र सतह से 365 मीटर और इससे अधिक उंचाई पर बसा हुआ है। पर्वत श्रृंखला पूर्व की ओर अधिक उंची है। जो पश्चिम की ओर कम होती जाती है। औसत उंचाई 653 मीटर उंची है। चार भागों में विभाजित श्रृंखलाएं (1) सतपुडा पर्वत श्रृंखला (2) तवा मोरण्ड घाटी (3) सतपुडा पठार के बीच में (4) ताप्ती की घाटी है।
सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के दोनो ओर तवा और नर्मदा स्थित है। श्रृंखला में कई उूंची चोटियां है। जिनमें सबसे उंची चोटी पूर्व में किलनदेव 1107 मीटर है। चोटियों पर ही पुराने किले बने थे, जो पूरे क्षेत्र में प्रशासन के लिए उपयोगी थे। तवा घाटी समुद्र सतह से 396 मीटर उंचाई पर है। घाटी का अधिक भाग कीमती वृक्षों (पमुख सागौन) से ढंका हुआ है और किनारे की भूमि उपजाउ है।
सतपुड़ा का पठार, जिले के पूर्वी भाग में उंची-उंची चोटियां उत्तर तक फैली है। इसमें सबसे उंचा पठार 685 मीटर चैडी पटटी के रूप में फैला है। मुलताई तहसील 791 मीटर, भैंसदेही तहसील के खामला ग्राम के पश्चिम की ओर सबसे उंची चोटी 1137 मीटर है जो प्रदेश की पचमढी के बाद दूसरी उंची चोटी है ताप्ती घाटी 15 मीटर लंबी और 20 मीटर चैडी पट्टिका के रूप में है, जो दामजीपुरा तक फैली है।
नदियाॅ:- जिले की प्रमुख नदियों में से ताप्ती, तवा, माचना, वर्धा, बेल, मोरण्ड एवं पूर्णा आदि है। ताप्ती दक्षिण की प्रमुख नदियों में से एक, जो पुराणों के अनुसार सूर्य पुत्री महलाई है। इसका उद्गम मुलतापी (मुलताई) में स्थित तालाब से माना जाता है। वस्तुतः यह मुलताई के उत्त्र में सतपुड़ा का पठार से 790 मीटर उंचाई से 21”48′ उत्तुर से 78”15′ पूर्व से निकली है, जो गुजरात प्रदेश के सूरत जिले से होती हुई अरब सागर में जा मिलती है। इसकी कुल लंबाई 701.6 किलोमीटर है।
तवा नदी जिले के उत्तर पूर्व से प्रवेश करती है, जेा छिंदवाड़ा जिले से निकली है। इसमें आगे माचना नदी मिल जाती है, जो ढोढरामोहार के आगे होशंगाबाद जिले में प्रवेश करती है। जिस पर रानीपुर के पास बहुउद्देशीय वृहद परियोजना (तवा बांध) का निर्माण किया गया है। जिले के सारनी ग्राम में स्थित सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन के उपयोग हेतु बांध बनाया गया है।
वर्धा नदी मुलताई तहसील के उत्त्र पूर्व से निकलकर 35 किलोमीटर दूरी पार कर महाराष्ट्र प्रदेश में प्रवेश करती है। जो आगे चलकर चन्द्रपुर जिले के वेनगंगा नदी में मिल जाती है। (467 किलोमीटर) माचना नदी जिले के पूर्व से निकलकर उत्तर की ओर बैतूल उत्तरी सीमा पर बहती है और ढोढरामोहार के पास तवा नदी में मिल जाती है। जिसकी कुल लंबाई 185 किलोमीटर है।
Source - https://betul.nic.in/
Notable persons
- Shri Dashrath Singh Jat (Khenwar), purv Parshad, Nagar palika, Sarni. Hotel & lodge in pathakheda mob. No. 9926433811
- Smt. Ramvati jat (Dondariya), purv Upadhyaksh , Nagar Palika Sarni & house wife mob. No. 7772858539
- Harendra Singh, software engineer, TCS co. Mumbai.
- Miss Krapika,BE, MBA, manager media management, G channel, Mumbai.
- M S Verma, Govt. Service (Agriculture Deptt).Mob. No. 8889820594
External links
Source
- Santosh Kumar Thakur (Khenwar)mob.9826546968
References
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.68
- ↑ Chisholm, Hugh, ed. (1911), "Badnur" , Encyclopædia Britannica, vol. 3 (11th ed.), Cambridge University Press, p.
- ↑ Baynes, T. S., ed. (1878), "Badnur" , Encyclopædia Britannica, vol. 3 (9th ed.), New York: Charles Scribner's Sons, pp. 228
- ↑ Baynes, T. S., ed. (1878), "Badnur" , Encyclopædia Britannica, vol. 3 (9th ed.), New York: Charles Scribner's Sons, pp. 229
- ↑ betul history". betul.nic.in.
- ↑ Baynes, T. S., ed. (1878), "Badnur" , Encyclopædia Britannica, vol. 3 (9th ed.), New York: Charles Scribner's Sons, pp. 228
- ↑ https://betul.nic.in/
- ↑ https://betul.nic.in/
- ↑ [1]
- ↑ मुक्तागिरि,बैतूल मध्यप्रदेश
- ↑ http://travel.vibrant4.com/2016/09/muktagiri-betul-madhya-pradesh.html
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