Lahari Raja

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Lahari Raja (1315 AD) was a Sangwan Gotra King who founded kingdom at Leeri village in Peesangan tahsil of Ajmer district in Rajasthan with the capital named after him.

History

Thakur Deshraj[1] writes that the Sangwan Jats ruled at Sarsu in Jangladesh region of Rajasthan in 8th to 10th century.

Thakur Deshraj[2] writes that the Leeri (लीड़ी) village founded by Lahari Raja in Peesangan tahsil in Ajmer district in Rajasthan was the capital of rulers of Sangwan clan.

Thakur Deshraj[3] writes thatThe Lahari Raja came to Ajmer area after long fight with Rajputs in Marwar area. Their title changed to Rana in Ajmer. The kingdom name was Lahadi in the name of Raja Lahari. The present name is village Lihdi near Ajmer. Sangwan Jats ruled here for 9 generations. Last king of this clan in Ajmer area was Sangram Singh or Rana Sangu. He left the land Ajmer-Merwara. Dada Sangu came to Dadri area in 1540-45 AD during rule of Shersah Suri.

इतिहास

पंडित अमीचन्द्र शर्मा[4]ने लिखा है : [p 21]: सांगवाण गोत्र का बड़ा सांगू सरोहा क्षत्रिय था। सांगू अजमेर से चलकर हिसार प्रांत में आकर बसगया। सांगू के बड़े सूर्यवंशी सरोहा क्षत्रिय थे। उनकी पदवी राजा की थी। सांगू के पूर्वज मारवाड़ देशीय सारसू जांगला नामी ग्राम में रहते थे। इनका पूर्वज आदि राजा था। उसकी संतान 13 पुश्त तक सारसू जांगला रही। पीछे आदिराजा की संतान के लोग अजमेर आकर बसे। 9 पुश्त तक अजमेर में रहे। पुनः सांगू किसी कारण से अजमेर से चलकर चरखी और दादरी के बीच जंगल में एक कूप पर आकर रुक गए। उस कूप के पास खेड़ी ग्राम बसता है। सांगू के 3 भाई और थे वे भी साथ ही आए थे।

सांगू की संतान के 40 ग्राम तो तहसील दादरी रियासत जींद में हैं। अन्य प्रान्तों में भी सांगवान गोत्र के बहुत गाँव हैं। सांगू का डीघल ग्राम में, जो अब जिला रोहतक में है,


[p.22]: सांगू जाटों के धडे में मिल गया। झोझु ग्राम के सांगवान गोत्र के जाटों की वंशावली निम्नानुसार है।

1 आदि राजा, 2 युगादिराजा, 3 ब्रहमदत्त राजा, 4 अतरसोम राजा, 5 नन्द राजा, 6 महानन्द राजा, 7 अग्निकुमार राजा, 8 मेर राजा ,9 मारीच राजा, 10 कश्यप राजा, 11 सूर्य राजा, 12 शाह राजा, 13 शालीवाहन राजा।

यहाँ तक सारसू जांगल में रहे थे। और राजा की पदवी भी रही।

शालीवाहन का पुत्र लहर हुआ वह अजमेर आ गया। उसकी राणा की पदवी हो गई। 9 पीढ़ी तक अजमेर में रहे। लैहर से 9 पीढ़ी पीछे आकर राणा सांगू हुआ। अब सांगू से लेकर झोझू निवासी हरनारायण प्रधान आर्यसमाज झोझु तक की वंशावली इस प्रकार है –

1 |राणा सांगू (1450 ई.), 2 खमू, 3 वणगू, 4 दूजन, 5 सेद्दा, 6 डूंगर, 7 बूड़ा, 8 कौरसिल, 9 रूपचन्द, 10 माधो, 11 केसरीसिंह, 12 अभयराम, 13 तुलसीराम, 14 बहादुर, 15 दौला, 16 चेतराम, 17 लक्ष्मण, 18 हरनारायण, 19 भरतसिंह


ठाकुर देशराज लिखते हैं कि सांगू के नाम पर उसके साथी सांगवान कहलाये। ये कश्यप गोत्री जाट हैं। आरम्भ में इनका राज्य मारवाड़ के अन्तर्गत सारसू जांगल प्रदेश पर था। इनके पुरखा आदू अथवा आदि राजा से लेकर 13 पीढ़ी तक इनका राज्य सारसू जांगला पर रहा। जिन 13 सांगवान राजाओं ने मारवाड़ के सारसू जांगला प्रदेश पर राज्य किया, उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-(1) आदि राजा, (2) युगादि राजा, (3) ब्रह्मदत्त राजा, (4) अतरसोम राजा, (5) नन्द राजा, (6) महानन्द राजा, (7) अग्निकुंमार राजा, (8) मेर राजा, (9) मारीच राजा, (10) कश्यप राजा, (11) सूर्य राजा, (12) सूर्य राजा, (13) शालिवाहक राजा।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-595


इन तेरह जाट राजाओं ने सारसू जांगला में राज किया और राजा की पदवी से भूपित भी रहे।

शालिवाहन के उत्तराधिकारी का नाम लैहर अथवा लहरी था। वह जांगला देश को छोड़कर अपने साथियों समेत अजमेर में आ गया। यहां उसकी पदवी राणा की हो गई। इस समेत नौ पीढ़ी तक सांगवान गोत के जाट नरेशों ने अजमेर की भूमि पर राज्य किया। हमारे मत से लैहर ने जिस स्थान को अपनी राजधानी बनाया था वह वर्तमान का लीड़ी ग्राम हो सकता है। लहैड ने अपने नाम से जो नगर होगा, वह आरम्भ में लैहड़ी रहा होगा और वही वर्तमान में लीडी हो सकता है। इस कुल का अन्तिम राजा संग्रामसिंह अथवा सांगू था। सांगू और उसके साथी मेरवाड़े की भूमि को छोड़कर चर्खी दादरी की ओर चले गये। भाट-ग्रन्थों में जो वंशावली दी गई है, उससे सांगू का समय पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी के बीच का जान पड़ता है और वह शेरशाह सूरी का समय कहा जा सकता है। भाट-ग्रन्थों में सांगू को अब से 20 पीढ़ी पहले लिखा है। औसतन 20 पीढ़ी के 400 वर्ष माने जाते हैं। इसीलिए हमने सांगू को पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी के मध्य में बताया है। इनका प्रथम राजा जो कि मारवाड़ में सारसू-जांगला पर राज करता था, उस समय आठवीं, दसवी सदियों के बीच का हो सकता था, क्योंकि उसे अब से 50 पीढ़ी पहले बताया गया है।[5]

References

  1. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, p.595-596
  2. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, p.595-596
  3. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, p.595-596
  4. Jat Varna Mimansa (1910), Author: Pandit Amichandra Sharma, Published by Lala Devidayaluji Khajanchi, pp.21-22
  5. जाट मीमांसा, पेज 22 (ले. अमीचन्द शर्मा)

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