Narsingh Jat

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Narsingh Jat (1488) (Gotra: Tomar) was a Jat ruler of Jangladesh region in Rajasthan prior to formation of Bikaner princely state of Rathores.

History

इन जाट जनपदों के वंशावली लेखकों के अनुसार विक्रम संवत 1545 में धाणसिया से गणगौर के मगरिया में से मलकी जाटनी को गोदारा पट्टी के मुखिया पाण्डुजी गोदारा के पुत्र नकोदर द्वारा ले जाने से इन जाट जनपदों में छह जनपदों का गोदारा जनपद के साथ भेंटवाले धोरे (सोन पालसर से उत्तर-पश्चिम और राजासर पंवारान से पश्चिम में 10 कि.मी.) पर संघर्ष हुआ व लादडिया को जलाए जाने से पाण्डुजी गोदारा ने जांगलू इलाके में पहले से रह रहे राव बीका की सहायता ली।

इधर छह पट्टी के जाटों ने सिवानी के नरसिंह जाट (तंवर) से सहायता ली। नरसिंह तंवर का ससुराल सिद्धमुख के पास ढाका गाँव में ढाका जाटों में था, इसलिए रात्रि में वह अपने सेनापति किशोर के साथ ढाका के तालाब मैदान में शिविर लगाये हुए रात्रि विश्राम कर रहा था। कुछ जाटों ने बीका कान्धल व नकोदर गोदारा को नरसिंह के रुकने का गुप्त भेद बता दिया तो बीका, कान्धल और नकोदर ने मध्य रात्रि को नरसिंह पर हमला बोल दिया। सन 1488 में ढाका (सिद्धमुख) में कांधल ने स्थाई कैम्प लगाकर सहवा के इर्द-गिर्द इलाके पर प्रभुत्व जमाया। स्थाई सैन्य संगठन और आपसी सामंजस्य के अभाव में विक्रम संवत 1545 में बीकानेर रियासत की स्थापना से जाटों की गणतंत्रात्मक व्यवस्था समाप्त हो गयी तथा राव बीका ने पांडू गोदारा से राजतिलक करवाकर नराजी जाट की भूमि पर बीकानेर नाम से राजधानी स्थापित की। मूल स्थान नराजी का होने से राव बीका ने अपने नाम के साथ नराजी का नाम जोड़कर बीकानेर नाम दिया।

मलकी और लाघड़िया युद्ध

उस समय पूला सारण भाड़ंग का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. पूला की पत्नी का नाम मलकी था जो बेनीवाल जाट सरदार रायसल की पुत्री थी. उधर लाघड़िया में पांडू गोदारा राज करता था. वह बड़ा दातार था. एक बार विक्रम संवत 1544 (वर्ष 1487) के लगभग लाघड़िया के सरदार पांडू गोदारा के यहाँ एक ढाढी गया, जिसकी पांडू ने अच्छी आवभगत की तथा खूब दान दिया. उसके बाद जब वही ढाढी भाड़ंग के सरदार पूला सारण के दरबार में गया तो पूला ने भी अच्छा दान दिया. लेकिन जब पूला अपने महल गया तो उसकी स्त्री मलकी ने व्यंग्य में कहा "चौधरी ढाढी को ऐसा दान देना था जिससे गोदारा सरदार पांडू से भी अधिक तुम्हारा यश होता. [1]इस सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित दोहा है -

धजा बाँध बरसे गोदारा, छत भाड़ंग की भीजै ।

ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।[2]

सरदार पूला सारण मद में छका हुआ था. उसने छड़ी से अपनी पत्नी को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू पर रीझी है तो उसी के पास चली जा. पति की इस हरकत से मलकी मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी से बोलना बंद कर दिया. मलकी ने अपने अनुचर के मध्यम से पांडू गोदारा को सारी हकीकत कहलवाई और आग्रह किया कि वह आकर उसे ले जाए. इस प्रकार छः माह बीत गए. एक दिन सब सारण जाट चौधरी और चौधराईन के बीच मेल-मिलाप कराने के लिए इकट्ठे हुए जिस पर गोठ हुई. इधर तो गोठ हो रही थी और उधर पांडू गोदारे का पुत्र नकोदर 150 ऊँट सवारों के साथ भाड़ंग आया और मलकी को गुप्त रूप से ले गया. [3] पांडू वृद्ध हो गया था फ़िर भी उसने मलकी को अपने घर रख लिया. परन्तु नकोदर की माँ, पांडू की पहली पत्नी, से उसकी खटपट हो गयी इसलिए वह गाँव गोपलाणा में जाकर रहने लगी. बाद में उसने अपने नाम पर मलकीसर बसाया. [4]

पूला सारण ने सलाह व सहायता करने के लिए अन्य जाट सरदारों को इकठ्ठा किया. इसमें सीधमुख का कुंवरपाल कसवां, घाणसिया का अमरा सोहुआ, सूई का चोखा सियाग, लूद्दी का कान्हा पूनिया और पूला सारण स्वयं उपस्थित हुए. गोदारा जाटों के राठोड़ों के सहायक हो जाने के कारण उनकी हिम्मत उन पर चढाई करने की नहीं हुई. ऐसी स्थिति में वे सब मिलकर सिवानी के तंवर सरदार नरसिंह जाट के पास गए [5] और नजर भेंट करने का लालच देकर उसे अपनी सहायता के लिए चढा लाए. [6]

तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. [7] युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया. [8]

ढाका का युद्ध (1488) और जाट गणराज्यों का पतन

इधर गोदारों की और से पांडू का बेटा नकोदर राव बीका व कान्धल राठोड़ के पास पुकार लेकर गया जो उस समय सीधमुख को लूटने गए हुए थे. नकोदर ने उनके पास पहुँच कर कहा कि तंवर नरसिह जाट आपके गोदारा जाटों को मारकर निकला जा रहा है. उसने लाघड़िया राजधानी के बरबाद होने की बात कही और रक्षा की प्रार्थना की. इसपर बीका व कान्धल ने सेना सहित आधी रात तक नरसिंह का पीछा किया. नरसिंह उस समय सीधमुख से ६ मील दूर ढाका नमक गाँव में एक तालाब के किनारे अपने आदमियों सहित डेरा डाले सो रहा था. रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से ६ मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था.[9] [10]

राव कान्धल ने रात में ही नरसिंह जाट को युद्ध की चुनोती दी. नरसिंह चौंक कर नींद से उठा. उसने तुरंत कान्धल पर वार किया जो खाली गया. कान्धल ने नरसिंह को रोका और और बीका ने उसे मार गिराया. [11] घमासान युद्ध में नरसिंह जाट सहित अन्य जाट सरदारों कि बुरी तरह पराजय हुई. दोनों और के अनेक सैनिक मरे गए. कान्धल ने नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट को भी मार गिराया. इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार भाग निकले. भागती सेना को राठोड़ों ने खूब लूटा. इस लड़ाई में पराजय होने के बाद इस एरिया के सभी जाट गणराज्यों के मुखियाओं ने बिना आगे युद्ध किए राठोड़ों की अधीनता स्वीकार कर ली और इस तरह अपनी स्वतंत्रता समाप्त करली. फ़िर वहाँ से राव बीका ने सिधमुख में डेरा किया. वहां दासू बेनीवाल राठोड़ बीका के पास आया. सुहरानी खेड़े के सोहर जाट से उसकी शत्रुता थी. दासू ने बीका का आधिपत्य स्वीकार किया और अपने शत्रु को राठोड़ों से मरवा दिया. [12] इस तरह जाटों की आपसी फूट व वैर भाव उनके पतन का कारण बना.[13]

References

  1. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
  2. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
  3. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 202
  4. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  5. दयालदास री ख्यात , पेज 9
  6. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  7. डॉ दशरथ शर्मा री ख्यात, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर, संवत 2005, पेज 7
  8. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  9. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
  10. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  11. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
  12. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
  13. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 210

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