Rajnandgaon
Author: Laxman Burdak IFS (R) |
Rajnandgaon (राजनन्दगांव) is a town and district in Chhattisgarh. It was a princely state of Dahiya Jats from Khanda, Sonipat, Haryana who were followers of Bairagi Sect. Author (Laxman Burdak) visited it on 28.12.1987.
Variants
Origin
Tahsils in Rajnandgaon district
History
Originally known as Nandgram, Rajnandgaon State was ruled by Somavanshis, Kalachuris of Tripuri and Marathas.[1]
The palaces in the town of Rajnandgaon reveal their own tale of the rulers, their society and culture, and the traditions of those times.[2]
The city was ruled by a dynasty of Bairagis, who bore the title Vaishnav and Gond rajas (chiefs). Succession was by adoption. Its foundation is traced to a religious celibate who came from the Punjab towards the end of the 18th century. From the founder it passed through a succession of chosen disciples until 1879, when the British government recognized the ruler as an hereditary chief and it came to be known as princely state of Raj Nandgaon. Afterwards conferred upon his son the title of Raja Bahadur. The first ruler Mahant Ghasi Das was recognized as a feudal chief by the British government in 1865 and was granted a sanad of adoption. Later the British conferred the title of raja on the ruling mahant.[3][4]
Nandgaon State of Dahiya Jats
Nandgaon State, also known as Raj Nandgaon, was one of the princely states of India during the period of the British Raj. It was in the present-day Rajnandgaon District of Chhattisgarh.
Nandgaon state's last ruler signed the accession to the Indian Union On 1 January 1948. The twin princely states of Rajnandgaon and Chhuikhadan were established by two followers of Baba Banda Singh Bahadur. His two followers Rup Dahiya and Prahlad Dahiya came from Khanda, Sonipat village. Who belonged to famous Nirmohi akhara of Khanda.[5]
Lineage | |||||
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Mahant (Raja Bahadur) | Reign | ||||
Mahant Prahlad Das | 1765-1797 | ||||
Mahant Hari Das | 1797-1812 | ||||
Mahant Ram Das | 1897-1812 | ||||
Mahant Raghubar Das | 1812-1819 | ||||
Mahant Himanchal Das | 1819-1832 | ||||
Mahant Moujiram Das | 1832-1862 | ||||
Mahant Ghanaram Das | 1862-1865 | ||||
Mahant Raja Ghasi Das | 1865-1883 | ||||
Mahant Raja Balram Das (Raja Bahadur) |
1883-1897 | ||||
Mahant Raja Rajendra Das | 1897-1912 | ||||
Mahant Raja Sarveshwar Das | 1913-1940 | ||||
Mahant Raja Digvijay Das | 1940-1947 |
राजनांदगांव में नांदगांव और छुईखदान जाट रियासतें
आमतौर पर यही धारणा है कि साधु संतों की भूमिका केवल धर्म का प्रचार-प्रसार करने तक ही सीमित रही है परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि स्वतंत्र भारत जिन 562 छोटी-बड़ी रियासतों से मिलकर बना है, उनमें से दो रियासतों पर दहिया गोत्र के बैरागी जाट साधुओं ने लगभग 200 वर्ष तक शासन किया है और वे कुशल राजा एवं योद्धा रहे हैं। ब्रिटिश कालीन भारत में जिन रियासतों पर बैरागी जाट साधुओं का शासन रहा है उनके नाम हैं- नांदगांव और छुईखदान। ये दोनों ही रियासतें वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के राज नांदगांव जिले में हैं।
इन दोनों ही रियासतों के राजा संयुक्त पंजाब (वर्तमान हरयाणा) से गए थे और दोनों ही रियासतों के साधु राजा निर्मोही अखाड़े तथा निंबार्क संप्रदाय से संबंध रखते थे। छुईखदान रियासत की स्थापना वर्ष 1750 में रूप दास दहिया नाम के एक बैरागी जाट संत ने की थी। वह वीर बंदा बैरागी के प्रथम सैनिक मुख्यालय हरियाणा के सोनीपत जिले के सेहरी खांडा गांव से संबंध रखते थे तथा मूलत: दहिया गोत्र के जाट थे और बैरागी सम्प्रदाय के अनुयाई थे। वर्ष 1709 में जब महान योद्धा वीर बंदा बैरागी ने सेहरी खांडा के निर्मोही अखाड़ा मठ में अपनी सेना का गठन किया तो उस समय महंत रूप दास केवल 11 वर्ष के थे।
11 वर्ष के इस साधु बालक ने वीर बंदा बैरागी से युद्ध विद्या सीखी और इसके बाद वह नागपुर जाकर मराठा राजाओं की सेना में शामिल हो गए। महंत रूप दास एक कुशल योद्धा बने और वर्ष 1750 में मराठों ने उनको कोंडका नामक जमींदारी पुरस्कार के रूप में दी। कृष्ण भक्त होने के कारण महंत रूप दास ने अपनी पूरी रियासत में पारस्परिक अभिवादन के लिए ‘जय गोपाल’ शब्दों का प्रयोग किया।
देश की स्वतंत्रता प्राप्ति तक बैरागी जाट साधुओं ने इस राज्य पर शासन किया और 1 जनवरी 1948 को छुईखदान रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय हो गया। विलय की संधि पर आखिरी राजा महंत ऋतुपरण किशोर दास ने हस्ताक्षर किए। वर्ष 1952 तथा 1957 के आम चुनाव में महंत ऋतुपरण किशोर दास मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। छुईखदान में बैरागी जाट राजाओं का राजमहल आज भी बहुत अच्छी स्थिति में है।
बैरागी जाट साधुओं की दूसरी रियासत थी नांदगांव जिसकी राजधानी राजनांदगांव में थी। नांदगांव रियासत की स्थापना महंत प्रह्लाद दास दहिया ने वर्ष 1765 में की। प्रह्लाद दास बैरागी, अपने साथियों के साथ सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब से छत्तीसगढ़ आए थे। अपनी यात्रा का खर्च निकालने के लिए ये बैरागी साधु, पंजाब से कुछ शाल भी अपने साथ ले आते और उन्हें छत्तीसगढ़ में बेचकर अपनी यात्रा का खर्च चलाते।
बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठा राजाओं के प्रतिनिधि बिंबाजी का महल था। स्थानीय लोग बिंबाजी को भी राजा के नाम से ही जानते थे। बिंबाजी, महंत प्रह्लाद दास बैरागी के शिष्य बन गए और उन्हें अपनी पूरी रियासत में 2 रुपए प्रति गांव के हिसाब से धर्म चंदा लेने की इजाजत दे दी। धीरे-धीरे ये बैरागी साधु अमीर हो गए और उन्होंने आसपास के कई जमींदारों को ऋण देना आरंभ कर दिया। जो जमींदार ऋण नहीं चुका पाए उनकी जमींदारी इन साधुओं ने जब्त कर ली और धीरे-धीरे चार जमींदारी उनके पास आ गई जिनको मिलाकर नांदगांव रियासत की स्थापना हुई।
ये बैरागी जाट राजा बहुत ही प्रगतिशील थे। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। इन बैरागी जाट राजाओं ने वर्ष 1882 में राजनांदगांव में एक अत्याधुनिक विशाल कपड़े का कारखाना लगाया। इससे पहले वर्ष 1875 में उन्होंने रायपुर में महंत घासीदास के नाम से एक संग्रहालय भी स्थापित किया, जो आज भी भारत के 10 प्राचीनतम संग्रहालयों में से एक है।
Source - Niyati Bhandari, Punjabkesari, 29 May, 2020
Notable persons
External links
References
- ↑ https://rajnandgaon.nic.in/
- ↑ "official website of rajnandgaon".
- ↑ "official website of rajnandgaon".
- ↑ Chhattisgarh ki Janjaatiyaa/Tribes aur Jatiyaa/Castes. Delhi: Mansi publication. ISBN 978-81-89559-32-8.
- ↑ Haryana State Gazetteer, Volume-I
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