Deokaran Singh Hanga

From Jatland Wiki

Ch. Deokaran Singh Hanga

Name:-Chaudhary Deo Karan Singh
Father:-Chaudhary Girdhari Singh Ji
Was a:-Great Freedom Fighter (Martyr)
From:-Village Kursanda of Sadabad
Born:-in a Noble Jat family of Agha clan
Martyrdom:- 1 November 1857
Cause(Death):-Hanged by Britishers
Hanged at:-Village Khadoli (Mathura).
Deo Karan Singh Ji is recognized as the overthrower of British Power from the Sadabad Pargana.

Chaudhary Deokaran Singh (चौ.देवकरण सिंह) was a great freedom fighter and martyr from Uttar Pradesh, who took part in the first struggle of Independence (1857) of India. He was hanged by British Government on 01 November 1857 at village Khadouli (खदौली) near Mathura. He was from Village Kursanda in Sadabad tahsil of Hathras district in Uttar Pradesh.

Variants of name

अमर बलिदानी चौ.देवकरण सिंह जी

बात उन दिनों की है जब भारतवर्ष पर अंग्रेज़ी हुकूमत के काले बादल छाए थे जगह जगह लोग अत्याचारों से त्राहि त्राहि मचा रहे थे तब उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में कुरसण्डा ग्राम के बड़े प्रभावशाली जमींदार चौधरी गिरधारीप्रताप सिंह जी (चौ॰ गिरधारी सिंह जी) के घर जन्म हुआ एक सूरवीर का जिसने अपने बलिदान से स्वयं को इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया, यहां कुरसण्डा के अमर शहीद स्वतंत्रा संग्राम के महानायक चौ.देवकरण सिंह जी की बात हो रही है।

जब दिल्ली में क्रांतिवीरों ने बाबा शाहमल श्री जाट के नेतृत्व में आज़ादी का बिगुल बजा दिया था तो सादाबाद के यह क्रांतिकारी वीर भला किसी से कम कैसे रह जाते, इन्होंने चौ.देवकरण सिंह के नेतृत्व के अन्तर्गत में विद्रोह की कमान संभाली, लगभग 350 लोगों ने इनके झण्डे के नीचे इखट्ठा होकर स्वतंत्रा संग्राम में अपना योगदान दिया, जिनमें ज़ालिम सिंह तथा सूबेदार हीरा सिंह जाट (दोनों हागा गोत्री जाट) के नाम प्रमुख हैं।

डॉ.ओमपाल सिंह तुगानिया ने चौ.देवकरण सिंह जी का ज़िक्र हंगा पाल (अग्रपाल खाप पंचायत) के शहीद योद्धा के रूप में किया है।[1] तो वहीं चिंतामणि शुक्ला ने इनका ज़िक्र महान् क्रान्तिकारी सूरवीर व देशभक्त नायक के रूप में किया, उन्होंने लिखा है "जब सादाबाद के आस-पास का ग्रामीण क्षेत्र अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ, तब कुरसण्डा के प्रभावशाली देशभक्त देवकरण के नेतृत्व में आसपास के स्वातंत्र्य सैनिकों ने सादाबाद के थाने और तहसील को लूट लिया था।"[2] चौ॰देवकरण सिंह जी के बारे में जानने का सबसे अच्छा स्रोत उन्हीं के वंशज चौधरी दिगंबर सिंह जी(अग्रे) की पुस्तक "राजा महेंद्र प्रताप" से जानने को मिलता है, जिसमें देवकरण सिंह जी की वीरता का वर्णन् बड़े ही गर्व से उनके ही वंशज द्वारा किया गया है।[3]

नोट- दिगंबर सिंह जी, इस महान् हस्ती(शहीद) के वंशज(पौत्र) हैं।[4]

तब 350 लोगों का अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध में उत्साह वाकई देखने का दृश्य रहा होगा.....

शीघ्र ही देवकरण सिंह ने बिना वक्त गवाए सादाबाद परगने पर आक्रमण कर अपना ध्वज लहरा दिया, पहले तो अंग्रेज़ों के गढ़ "सादाबाद के थाने" पर हल्ला बोल कर उसे द्वस्त कर दिया गया फ़िर देवकरण के नेतृत्व में जाटों ने खुदको आज़ाद (स्वतंत्र) घोषित कर दिया, जैसे ही यह ख़बर आगरे में बैठे अंग्रेज़ी अफ़सरों के कानों तक पहुंची तब उन्होंने एक बड़े सैन्यबल के दम पर परगना वापस छीनने का प्रयास किया अपितु विफल रहे, सादाबाद शायद कभी भी अंग्रेज़ों को फ़िर से नहीं मिल पाता, लेकिन वो कहते हैं ना "घर का धोबी लंका ढहाए" ठीक उसी प्रकार सिर्फ़ एक गद्दार के कारण क्रांतिवीरों को पीछे हटना पड़ा, हाथरस के ठा॰सामंत सिंह (Thakur Samant Sinh)[5] ने अंग्रेज़ों का साथ दिया और इस बीच अंग्रेज़ों की बढ़ती फ़ौज ने चौ.देवकरण सिंह जी व उनके साथी ज़ालिम सिंह को गिरफ़्तार कर लिया, जब अंग्रेज़ों ने क्रांतिवीरों के आगे एक प्रस्ताव रखा, "शान्त रह कर हमें गांव वालों को लूटने दो, तुम्हें सादाबाद का राजा बना देंगे, नहीं तो फाँशी होगी" यह सुन देवकरण सिंह जी ने कहा, "मेरे जीते जी आप गांव वालों को नहीं लूट सकते आप मुझे फाँशी देदो!" जहां एक ओर ज़ालिम सिंह और देवकरण जी को गांव 'खदौली' (मथुरा के समीप) में फाँशी दी गई तो वहीं दूसरी ओर ठा॰सामंत सिंह को अलीगढ़ में एक गांव की ज़ागिर प्राप्त हुई,[6] तारीख़ थी 1 नवंबर सन् 1857. याद रहे इस संग्राम में सात क्रांतिकारियों ने अपनी जान गवां दी थी, सभी को सादर नमन्।

लेखक का कथन: काश चौधरी साहब के पास भी राणा के जैसा घोड़ा होता, तो वो भी वहां से भाग कर अपनी जान बचा पाते, और आज इतिहास में उनका भी नाम होता।

वास्तविकता, ऐसा नहीं है कि उनके पास घोड़े नहीं थे, उनके घर के दोनों दरवाजों पर 2 से 3 और कभी कभी तो 4-4 घोड़े तक खड़े रहते थे, वह काफ़ी बड़े व प्रभावशाली ज़मींदार थे, लेकिन बस बात इतनी थी कि उनकी रगों में देशभक्ति का रक्त बहता था, और भागना कायरता की निशानी होती है, ना कि किसी ऐसे देशभक्त की, सिर्फ़ इसी कारण की देवकरण सिंह जी की रगों में देशभक्ति का शुद्ध खून दौड़ता था, आज उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं है।......

सन् सत्तावनी क्रांति के जल सैलाव में मृत्यु का आलिंगन करने वाले देशभक्तों में चौधरी साहब का नाम बड़ी ही प्रमुखता से गौरवता के साथ लिया जाता है, मेरा विश्वप्रसिद्ध भारतीय पाठ्यक्रम से अनुरोध है कि ऐसे महान् क्रान्तिकारी देशभक्त को इतिहास के पन्नों में जगह अवश्य मिलनी चाहिए, बल्कि मैं तो आग्रह करूंगा की उनके जैसे हर महानतम स्वतंत्रता सैनानी का नाम इतिहास के इन पन्नों में दर्ज होना अनिवार्य है। देवकरण सिंह जी, बड़े ज़मीनदार खानदान से थे मुंह में सोने की चम्मच लेके पैदा हुए थे लेकिन अंतिम सांस फाँशी के फंदे पर ग्रहण करी, वह चाहते तो शान्ती से बैठ कर आराम की ज़िंदगी जीते अपितु इसके अलावा उन्होंने फ़न्दा चूमना उचित समझा, सादर नमन्।

लेखक: चौ.रेयांश सिंह।


  • नोट:- यह लेख (आर्टिकल) "अमर बलिदानी चौ॰देवकरण सिंह जी" के नाम से तारीख़ 18 अप्रैल 2017 को "जाट हिस्ट्री अवर वैलर पत्रिका (हाथरस)" में छापा गया था, जिसके लेखक का नाम "चौ॰रेयांश सिंह" है, तथा इसका द्वितीय संस्करण 1 नवंबर 2019 को छापा गया था।

देवकरण सिंह जी की वंशावली

गांव के 'जगा' के अनुसार, इस वंश की वंशावली कुछ इस प्रकार है:
चौधरी श्यामल सिंह के पुत्र श्री धनीराम के पुत्र दौलतराम हुए और दौलतराम के पुत्र श्री गिरधारी सिंह जी, जिनके तीन पुत्रों का नाम निम्न है।

  • श्री जयकिशोर सिंह
  • श्री देवकरण सिंह (स्वतंत्रता संग्राम में शहीद)
  • श्री पीताम्बर सिंह (दिगम्बर सिंह जी के सगे दादा जी)

यहां, श्री पीताम्बर सिंह जी के पुत्र श्री छत्र सिंह चौधरी हुए जिनके पुत्र का नाम चौधरी दिगम्बर सिंह है।

देवकरण सिंह जी का विवाह

चौधरी देवकरण सिंह जी एक अति सुन्दर व्यक्ति थे जिनका कद साढ़े छः फुट माना जाता है, इनका विवाह पथैना (भरतपुर) के राजा की पुत्री से बड़ी धूम धाम से हुआ था, जिसमें इन्हें भेंट के तौर पर 101 गायें प्राप्त हुई थीं, जिनके सींग सोने से मढ़े गए थे। इनमें एक गाय 16 सेर दूध दिया करती थी, जो आदमी उसे लेकर आया था उसने देवकरण सिंह जी से कहा, की अब यह इतना दूध नहीं देगी, देवकरण जी ने उस आदमी को एक महीने बाद आने को कहा, और एक महीने बाद उसी के हाथों दूध निकलवाया तो दूध 18 सेर अधिक था, वह आदमी सर्मिंदा हुआ।

स्रोत

  • उपर्युक्त दो खण्डों(जिनमें देवकरण सिंह जी की वंशावली एवं विवाह की गाथा वर्णित् है) का स्रोत "भारत डिस्कवरी वेबसाइट" को जाता है।
  • एक लेख (आर्टिकल) "अमर बलिदानी चौ॰देवकरण सिंह जी" के नाम से तारीख़ 18 अप्रैल 2017 को "जाट हिस्ट्री अवर वैलर पत्रिका (हाथरस)" में छापा गया था, जिसके लेखक का नाम "चौ॰रेयांश सिंह" है, तथा इसका द्वितीय संस्करण 1 नवंबर 2019 को छापा गया था।
  • चौ॰दिगंबर सिंह जी की पुस्तक, "राजा महेंद्र प्रताप" पृ.395

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संदर्भ

यह सभी संदर्भ रेयांश सिंह जी द्वारा लिखित आर्टिकल, "अमर बलिदानी चौ॰देवकरण सिंह जी" के हैं।


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