Yasha Gupta

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Yasha Gupta (यश गुप्त) (491 AD) was a popular king of Gor Jat Kshatriya clan in Chhoti Sadri of Chittorgarh.

Maharaja Dhanya soma (धान्य सोम) was a popular king of Gor Jat kshatriya clan in Chhoti Sadri of Chittorgarh. Rajyavardhan (राज्यवर्द्धण), Rashtra (राष्ट्र) and Yasha Gupta (यश गुप्त) (491 AD) rulers followed in succession. The inscription also reveals that the Gor kings had constructed goddess temple in memory of their ancestors on magha shukla 10 in samvat 547 (491 AD). The inscription proves the rule of Gor kings near 'Chhoti Sadadi' place in Rajasthan in 6th century. They were considered to be powerful till the rule of Maharana Raimal (1488).[1]

Chhoti Sadri Inscription of samvat 547 (491 AD)

Sanskrit Text
तस्या प्रणम्य प्रकरोम्यह x x जस्त्रम
(कीर्तिशु) भां गुणा गणोघम (पींन्टपाणाम) (3)
x x कुलो (भद्) वव (ञ् श) गौरा
क्षात्रेप (दे) सतत दीक्षित x शौंडा
x x x
धान्य सोम इति क्षत्र गणस्य मध्ये (4)
... ... ...
x x किल राज्य जित प्रतापो
यो राज्यवर्द्धण (न) गुणै कृत नाम धेयः
x x x
जातः सुतो करि करायत दीर्घ बाहु ।
नाम्ना स राष्ट्र इति प्रोद्धत पुन्य (पय) कीर्ति (6)
सोयम यशो भरण भूषित सर्व गात्रः
प्रोत्फुल पद्मः ......तायत चारु नेत्रः ।
दक्षो दयालु रिह शासित शत्रु पक्षः ।
क्षमां शासति ....यश गुप्त इति क्षितीन्दुः (8)
तेनेयं भूतधात्री क्रतु मिरिहचिता (पूर्व) श्रंगेव भाति
प्रासादे रद्रि तुंगैः शशिकर वषुषैः स्थापितेः भूषिताद्य
नाना दानेन्दु शुभ्रैर्द्विजवर भवनैर्येन लक्ष्मीर्व्विभक्ता ।
x x x स्थित यश वषुशा श्री महाराज गौरः (11)
यातेषु पंचसु शतेष्वथ वत्सराणाम्
द्वे विंशतीसम धिकेषु स सप्तकेषु ।।
माघस्य शुक्ल दिवसे त्वगमत्प्रतिष्ठाम् ।
प्रोत्फुल्ल कुन्द धवलोज्वलिते दश म्याम् (13)
Chhoti Sadri Inscription of samvat 547 (491 AD)[2]

The rule of Gora clan Jat Kshatriyas has been mentioned in an inscription found in Bhavara Mata (भवर माता) temple on a hillock near village 'Chhoti Sadri' (छोटी सादड़ी) in Chittaurgarh district. It is in Brahmi script and Sanskrit language.[1]Pandit Gauri Shankar Hirachand Ojha has written about the inscription of 'Chhoti Sadri' in an article published in Nagari pracharini-patrika, part 13, issue-1 under the title Gaur namak agyat kshatriya vansh - गौर नामक अज्ञात क्षत्रिय वंश. Some lines from that inscription are as under in Sanskrit language:[1]

The above inscription proves that Maharaja Dhanya soma (धान्य सोम) was a popular king of Gor Jat kshatriya clan. Rajyavardhan (राज्यवर्द्धण), Rashtra (राष्ट्र) and Yasha Gupta (यश गुप्त) rulers followed in succession. The inscription also reveals that the Gor kings had constructed goddess temple in memory of their ancestors on magha shukla 10 in samvat 547 (491 AD). The inscription proves the rule of Gor kings near 'Chhoti Sadadi' place in Rajasthan in 6th century. They were considered to be powerful till the rule of Maharana Raimal.[1]

Meenas and Bhil tribe dominated the area in later period.

ठाकुर देशराज लिखते हैं

ठाकुर देशराज [3] लिखते हैं कि आरंभ में ये लोग अजमेर-मेरवाड़े और मेवाड़ तथा बून्दी-सिरोही के प्रदेश पर फैले हुये थे. अब तो किसी-न-किसी संख्या में सारे उत्तर-भारत में पाये जाते हैं. प्रचीन भाट के ग्रन्थों में इनको ’अजमेर के गोर’ नाम से लिखा गया है. इससे ज्ञात होता है कि चौहानों से पहले ये उस देश में आबाद हुये थे. [4] आबू पर्वत पर नव-क्षत्रिय वर्ग के गठन के फल स्वरूप ये चौहानों में सम्मिलित हो गये.

गौर लोगों का एक शिला लेख छोटी सादड़ी से दो मील के दूरी पर स्थित पहाड़ पर भ्रमर-माता के मंदिर में पाया गया था. इसकी लिपि ब्रह्मी और भाषा संस्कृत है. पंडित गौरी शंकर हीराचन्द ओझा ने उसे देखा है और नागरी-प्रचारिणी-पत्रिका, भाग 13, अंक 1 में ’गौर क्षेत्रिय वंश’ शीर्षक लेख भी लिखा है. उस घिसे हुए और पुराने लेख की पंक्तियों से इसका मूल पाठ यहाँ दिया गया है.


इन श्लोकों में दो प्रार्थना सम्बन्धी श्लोक हैं. शेष में बताया गया है - महाराज धान्यसोम क्षत्रिय लोगों में प्रसिद्ध राजा थे. उनके पीछे राज्यवर्धन हुये. राज्यवर्धन के पुत्र राष्ट्रों में राष्ट्र-नायक हुये. उनका पुत्र यशगुप्त हुआ. उन गोर नरेश ने संवत 547 माघ सुदी दसमी (ई. 491) को अपने माता-पिता के पुण्य (स्मृति) के निमित्त देवी का मंदिर बनवाया. इस लेख से स्पष्ट है कि छ्ठी शताब्दी में गोरा लोग छोटी सादड़ी में राज करते थे. महाराणा रायमल के समय तक वे पूरे शक्तिशाली थे. पं गौरी शंकर ’नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ के उसी अंक में लिखते हैं कि - "गोरा-बादल जिनके सम्बन्ध में काव्य बन चुके हैं दो व्यक्ति नहीं थे बल्कि बादल ही गोरा था. उसके सम्बन्ध के काव्य भी 250-300 वर्ष पीछे बने हैं, इसी से ऐसा भ्रम हुआ होगा. गोरा वंश सूचक और बादल नाम है."

गयासुद्दीन (शाह) से राणा रायमल की सन 1488 ई. में जब लड़ाई हुई तो गोरा ने बड़ी बहादुरी दिखाई. वह कई-कई मुसलमानों को मारता था. उस बुर्ज का ही नाम गोर-श्रंग (गोर बुर्ज) रख दिया गया. उदयपुर के एकलिंगजी के मंदिर के दक्षिण द्वार के सामने की बड़ी प्रशस्ति में इस लड़ाई और गौरा वीर की वीरता का वर्णन है. चित्तौड़ के किले में गोरा-बादल के महल नाम से दो गुम्बजदार मकान, जो कि पद्मिनी के महलों से दक्षिण की और बने हुये हैं, पुकारे जाते हैं. राणा रायमल के बाद सन 1509 में राणा सांगा मेवाड के उत्तरधिकारी बने.

डॉ गोपीनाथ शर्मा[5] इस शिलालेख के बारे में लिखते हैं कि छोटी सादड़ी जिला चितोडगढ़ का भ्रमरमाता का 17 पंक्तियों का लेख पांचवीं शादी की राजनीतिक स्थिति को समझाने में सहायक है. इसमें गौरवंश तथा औलिकरवंश के शासकों का वर्णन मिलता है. गौर वंश के पुण्यशोभ , राज्यवर्धन, यशोगुप्त आदि शासकों तथा औलिकर वंश के आदित्यवर्द्धन के नाम उपलब्ध हैं. इन शासकों का राज्य चित्तोड़ क्षेत्र तक तथा निकट वर्ती भागों में होने की संभावना इस लेख से प्रमाणित होती है. गौर वंशीय शासकों द्वारा यहाँ माता का मंदिर बनवाया गया जिससे इनकी शाक्त-धर्म के प्रति भक्ति होना दिखाई देता है. प्रस्तुत लेख में अपराजित राजपुत्र गोभट्टपादानुध्यात् पंक्ति बड़े महत्व की है. 'राजपुत्र' शब्दों से किसी भी सामंत का किसी शासक के प्रति सेवाभाव होना प्रमाणित होता है.

References

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 Thakur Deshraj, Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992, Page - 592 Cite error: Invalid <ref> tag; name "Thakur Deshraj" defined multiple times with different content Cite error: Invalid <ref> tag; name "Thakur Deshraj" defined multiple times with different content Cite error: Invalid <ref> tag; name "Thakur Deshraj" defined multiple times with different content
  2. ठाकुर देशराज:जाट इतिहास, 1992,पृ.591-592
  3. ठाकुर देशराज:जाट इतिहास, 1992,पृ.591-593
  4. टाड राजस्थान’ - अध्याय 6
  5. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ. 46 -47

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